Letter N

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Letter N

सांप दूध पीने के बाद जहर ही उगलता है, चंदन तपाये जाने के बाद सुगंध ही देता है, कोयल जब भी बोलती है तो केवल मीठा बोलती है और कौवा जब भी बोलता है तो कर्कश बोलता है, ऐसा क्यों? क्योंकि यह इनका स्वभाव है| सांप का स्वभाव है दूध पी के जहर उगलना और चंदन का स्वभाव है जलते हुए भी सुगंध फैलाना, कोयल का स्वभाव है मीठा गाना और कौवे का स्वभाव है कर्कश बोलना| यह सब प्राणी अपने-अपने स्वभाव के अनुरूप कार्य करते है, कौवा कभी मीठा नहीं बोलता, कोयल कभी कडवा नहीं बोलती, चंदन कभी ताप नहीं देता और सांप कभी निर्विष नहीं होता, वह दूध नहीं उगलता, यह इन सब का स्वभाव है| पूरी प्रकृति, संपूर्ण प्रकृति को देखो| आज Alphabet में किसका नंबर है- ‘N’ यानि नेचर|

पूरे नेचर में अपनी दृष्टि दौड़ाओ| हर प्राणी अपने-अपने नेचर के अनुरूप चलते हैं, चलते कि नहीं| सब प्राणी अपने नेचर के अनुरूप चलते हैं और नेचर के against नहीं जाते| यानि दोनों नेचर रखना, एक अपना स्वभाव और एक प्रकृति रूप नेचर| प्रकृति के आश्रित रहने वाले जितने भी प्राणी हैं, वह प्रकृति के बंधन में बंधे होते हैं एक बार और अपने नेचर का कभी उल्लंघन नहीं करते| और उन सब के बीच यदि मनुष्य को देखे तो मनुष्य नेचर को बिगाड़ता है और मनुष्य का नेचर भी बिगड़ा हुआ दिखता है| इस नेचर को बिगाड़ने की जिम्मेदारी किसके ऊपर है? प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का जवाब देह कौन है? मनुष्य| मनुष्य ने प्रकृति को बिगाड़ा है, प्रकृति की मर्यादा को नष्ट किया है, नेचर की सीमा का उल्लंघन किया है, पूरे के पूरे नेचर को polluted कर दिया और दूसरी तरफ मनुष्य का नेचर देखो तो बड़ा विचित्र, कोयल मीठा बोलती है तो मीठा ही बोलती है और कौवा कर्कश बोलता है तो कर्कश ही बोलता है पर आदमी है कभी मीठा बोलता है और कभी कौवे जैसा हो जाता है| कभी चंदन जैसा होता है, कभी सांप जैसा हो जाता है, पल-पल में बदलता है और जितने भी कोयल है, सब के एक से स्वर है, रंग भी एक सा है| पर जितने मनुष्य है सब का एक सा स्वाभाव है क्या? नहीं है| सब का अपना अलग-अलग स्वभाव| कोई बहुत मीठा होता है तो कोई बहुत कड़वा होता है, किसी- किसी का नेचर बहुत सुंदर लगता है, कहते है good नेचर वाला है और किसी-किसी का नेचर खराब होता है, कहते है बड़ा bad नेचर है| ये good-bad, good-bad कैसे चलता है? एक व्यक्ति good नेचर वाला, एक व्यक्ति bad नेचर वाला, इतना तो हम समझते हैं लेकिन एक ही व्यक्ति 24 घंटे में कई बार अपना नेचर अच्छा बनाता है और कई बार उसका बर्ताव खराब होता है| सुबह कुछ, दोपहर में कुछ, शाम को कुछ, सोते समय कुछ, घर में कुछ, मंदिर में कुछ, दुकान में कुछ, दफ्तर में कुछ, बच्चों के आगे कुछ, बीवी के आगे कुछ, यह क्या है| यह परिवर्तन क्यों? आज बात मुझे आपसे ‘N’ की करनी है और शुरुआत नेचर से करूंगा|

सबसे पहले तो आपसे एक सवाल करते हैं, आप किस प्रकार के नेचर वाले व्यक्ति को पसंद करते हैं? क्या हुआ, किस प्रकार के नेचर वाले व्यक्ति को पसंद करते हैं? कैसा नेचर पसंद आता है, थोड़ा बताइए| good नेचर| ये good-good क्या है? शांत-स्वभावी, मिलनसार, विनम्र व्यवहार वाला, सहनशीलता रखने वाला, सेवा-भाव में तत्पर रहने वाला, परोपकारी वृति रखने वाला, मीठा बोलने वाला, ऐसे ही व्यक्ति को पसंद करते हैं ना| इसके अलावा जो उग्र मिजाजी हो, जिसका तेवर हमेशा तीखा रहता हो, जो मुंह से कड़वा बोलता हो , जो लोगो से दुर्व्यवहार करता हो और बात-बात में चिड़चिड़ा जाता हो, छोटी-छोटी बातों में प्रतिक्रियाएं करता हो, ऐसा आदमी| क्या होता है, उसको पसंद करते हो? बिल्कुल नहीं| और ऐसा आदमी सामने आ जाए तो क्या करते हो? उससे पिंड छुड़ाना चाहते हो, थोड़ा अपने भीतर झांक कर देखो तो तुम्हारे भीतर किस नेचर का आदमी है, थोड़ा देखो, किस नेचर का आदमी है? अगर पहले वाला ऑप्शन है तो welcome करो और बाद वाला है तो पिंड छुड़ाओ| क्योंकि जैसे किसी बदमिजाज व्यक्ति को तुम पसंद नहीं करते, वैसे ही तुम्हारी बदमिजाजी को कोई पसंद नहीं कर सकता| अपने जीवन की प्रासंगिकता को बनाए रखना चाहते हो, अपना मिजाज ठीक करो| समझ में आ रही है बात| जैसे तुम बदमिजाज व्यक्ति को पसंद नहीं करते वैसे ही तुम्हारी बदमिजाजी को भी कोई पसंद नहीं करता| अपनी पसंदगी को बनाए रखना है और अपनी प्रासंगिकता को कायम रखना चाहते हो तो अपने मिजाज को ठीक बनाइए, अपने स्वभाव का ध्यान रखिए, अपना स्वभाव ठीक कीजिए, नेचर बदलिए| महाराज! हम तो यह सुनते हैं कि नेचर और सिग्नेचर बदलता ही नहीं और आप नेचर बदलने की बात कर रहे हैं| ठीक कह रहे है| अगर हम मनुष्य के स्वभावगत बातें करें तो हमारी दो प्रकार की वृति होती है, एक मौलिक वृति जो हमारा मूल स्वभाव है जो हमारी हेरेडिटी से आता है, वंशानुगत क्रम जिसके साथ जुड़ा होता है, वो मूल वृति है और कुछ चीजें ऐसी है जो इसको इन्वायरमेंट से सीखते हैं, वातावरण से सीखते हैं, वो अर्जित आदतों के अनुरूप होती है और वह हमारे नेचर का एक अंग बन जाता है| मनुष्य की मूलभूत वृति को हम बदल नहीं सकते, यह सच है| मनोविज्ञान ऐसा ही बताता है, हमारे कर्म सिद्धांत से में भी ऐसी ही बात है कि हम हमारा जो भी स्वभाव है, हमारी जो भी प्रवृत्तियां हैं, वह हमारे प्राचीन कर्म जन्य संस्कारों के कारण हैं, पूर्व जन्म के कर्म में जनित जो संस्कार है, वह हमारे स्वभाव का निर्धारण करते हैं और विज्ञान की भाषा में कहें तो हेरेडिटी वंशानुगत क्रम जैसी हमारी genetic स्थितियां होती है, उसके अनुरूप हमारा स्वभाव बनता है| लेकिन ये बात पूरी नहीं, अधूरी है| यह हमारी प्रवृत्ति का एक भाग है, ये हमारी प्रवृत्ति का एक पहलू है, इसका दूसरा पहलू भी है, दूसरा भाग भी है| वह क्या है? हम अपने मूलभूत स्वभाव को और नेचर को बदल नहीं सकते पर उसमे निखार ला सकते है| और जो हम environment से सीखते है, उनमे आमूलचूल परिवर्तन ला सकते है, वातावरण बदलते ही सब कुछ बदल जाता है| मेरे संपर्क में बहुत सारे लोग कहते है, महाराज! पहले में कुछ था, अब कुछ हो गया, पहले मेरी सोच कुछ और थी, अब मेरी सोच कुछ और हो गई, मेरी प्रवृत्ति पहले कुछ और थी, अब मेरी प्रवृत्ति कुछ और हो गई, यह क्या है| यह प्रयत्न साध्य परिवर्तन है, यदि हम अपने अंदर बदलाव घटित करना चाहे तो निश्चित तौर पर बदलाव घटित कर सकते हैं| अपना बदलाव हम घटित कर सकते हैं, स्वयं को बदल सकते हैं, बहुत कुछ बदल सकते हैं, अपने नेचर में निखार लाया जा सकता है और यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए, यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए, यही हमारा ध्येय होना चाहिए और यही हमारी भावना होनी चाहिए| मैं आपसे पूछना चाहता हूं, आप अपने नेचर से संतुष्ट हैं, पहला सवाल तो यह बोलो संतुष्ट हो? क्या हो गया? नहीं हो| तो फिर बदलने को तैयार है, नेचर से संतुष्ट नहीं है तो बदलने को तैयार है| जो नेचर को बदलना चाहते हैं, उनके लिए दूसरा शब्द कह रहा हूं, नेचर के बाद है नेवर|

नेवर यानी कभी नहीं| बस मन में एक दृढ संकल्प लाईये| स्वभाव में परिवर्तन का पहला सूत्र संकल्प| संकल्प मतलब बस अब यह काम कभी नहीं| यह करना है तो करना है और यह नहीं करना है तो नहीं करना| किसको किसको नेवर कहना है? गुस्सा नेवर, गुरुर नेवर, गुमान नेवर, चिड़चिड़ापन नेवर, प्रतिक्रिया देना नेवर, चीखना नेवर, चिल्लाना नेवर, हल्ला मचाना नेवर| कर दीजिए, क्या हो गया इतना ही तो करना है, इतना ही करना है| महाराज! ये ही तो नहीं होता, ज्यादा कुछ नहीं करना है लेकिन जो करना है वही नहीं होता, यही मनुष्य की दुर्बलता है| नेवर, कभी मुझे वो कार्य करना ही नहीं| मनुष्य की एक बड़ी दुर्बलता है, वह बहुत सारे काम करना तो चाहता है, करने का मनोभाव भी होता है और कभी-कभी मन में ठान भी लेता है, संकल्प भी ले लेता है लेकिन उसका संकल्प इतना लचीला होता है कि अभी संकल्प लेता है और थोड़ी देर बाद वो सब हवा हो जाता है| जिस समय आप लोग प्रवचन सुनते हैं, क्या होता है उस समय? महाराज! उस समय की तो पूछो मत, वो प्रवचन का 1 घंटा पूरे दिन का 1 घंटा बन जाए तो फिर क्या है| जीवन ही बदल जाए, उस समय मन में हलन-चलन नहीं होती| आप सोचते है, अब मैं गुस्सा नहीं करूंगा| सोच लिया, हर गुस्सा करने वाला ये सोचता है कि मुझे गुस्सा नहीं करना, खामोखाह गुस्सा किया, बेकार हो गया|, मुझे कंट्रोल करना चाहिए था, ठीक नहीं, अब आगे ध्यान रखूंगा लेकिन बाद में, थोड़ी देर बाद फिर जब गुस्सा का मौका आया गुस्सा कर दिया| क्यों? संकल्प पक्का नहीं है, दृढ संकल्प लीजिए, जो कार्य मुझे नहीं करना है तो नहीं करना है| व्यक्ति के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन घटित हो सकता है| एक बार ठान लिया तो ठान लिया, सोच लिया तो सोच लिया| मैं आपसे एक सवाल करता हूं, आप जब अपने दुकान पर होते हैं और किसी कस्टमर या क्लाइंट को डील करते हैं| तो जो कस्टमर होता है आपसे, उल्टी-उल्टी भी बातें करता है कि नहीं करता, करता है| कभी-कभी यह भी कह देता आप तो लूट रहे हो| कहता है कि नहीं? आप तो लूट रहे हो यानि आपको लुटेरा बना दिया| अब आप तो लूट रहे हो, ऐसा आपको ग्राहक कह रहा है| आप क्या जवाब देते हो? उस घड़ी बौखला जाते हो, गुस्सा करते हो, चिड़चिड़ाते हो, डाँट-डपट करते हो, क्या कहते हो? अरे, महाराज! मुस्कुराते हुए कहते है, नहीं भाई साहब ऐसी बात नहीं है, नहीं बहन जी ऐसी बात नहीं है| आप जो बोल रहे हैं, आप हमारी बात पर यकीन कीजिए, हमारे घर में भी इतना नहीं पडता, कोई खास मार्जिन नहीं है| नहीं हम तो आप को ऑन पर दे रहे हैं| कितने मिठास से बोलते हो? और सड़क चलते कोई आदमी तुम्हें लूटेरा कह दे तो क्या होगा? तो ग्राहक ने लुटेरा कहा, तुमने उसे सहज रूप से स्वीकार कर लिया लेकिन किसी गैर ने लूटेरा कहा तो बर्दाश्त नहीं किया| मैं आपसे पूछता हूं, दुकान में आप क्यों सहज बने हो और घर-परिवार में आप, जीवन-व्यवहार के दूसरे क्षेत्र में आपकी सहजता क्यों खंडित होती है| कभी विचार किया है? उसकी एक ही वजह है, दुकान में बैठते समय आपने अपना माइंडसेट अलग बना रखा है, एक कोडिंग डाल दिया है| आजकल तो कोडिंग का सिस्टम है, अपने सबकॉन्शियस में कोड ढल गया, ग्राहक से हम जब तक विनम्र व्यवहार नहीं करेंगे, तब तक दुकानदारी चलेगी नहीं और मार्केटिंग के विषय में लोग यही सिखाते हैं, वह यही कहते है, भैया, कुछ भी हो, पेशेंस रखो| पेशेंस रखो, पोलाइट बनो, ग्राहक के सामने पोलाइट बन जाते हो, दुनियादारी के काम में पेशेंस रख लेते हो| भैया जो पेशेंस और पोलाइटनेस तुम अपनी दुकान में रखते हो, वही पेशेंस और पोलाइटनेस पूरे जीवन रख लो, जीवन आनंदमय बन जाएगा, तुम्हारा नेचर बदल जाएगा| पर ये कोडिंग 24 घंटे क्यों नहीं? कर तो सकते हो, कर सकते हो कि नहीं| कर सकते हो, फिर करते क्यों नहीं यह और बताओ, क्योंकि करना नहीं चाहते| ईमानदारी की बात यही है| करना नहीं चाहते, बोलते हो, ऊपर-ऊपर से बोलते हो, अंतर्मन कहता है, अरे गुस्सा नहीं करेंगे तो घर में काम कैसे चलेगा, थोड़ा बहुत टेढ़ा तो होना ही चाहिए| सांप काटे नहीं पर फूफकारना नहीं छोड़ना चाहिए| यह चीजें तुमने अपनी बना रखी है, यह मान्यता, यह भ्रम-पूर्ण अवधारणा, जब तक हृदय में भरी रहेगी तब तक तुम्हारे नेचर में कोई परिवर्तन नहीं आएगा| क्या चाहते हो? अपनी छवि कैसी देखना चाहते हो? good नेचर वाले इंसान जैंटलमैन का या एक bad नेचर का? कैसी छवि बनाना चाहते हो? अंदर से इच्छा शक्ति जगाइए, दृढ संकल्प लीजिए कि नहीं मुझे ऐसा करना ही है| अब यह काम नहीं करना तो नहीं करना| एक झटके में कोडिंग दाल दीजिये| मनुष्य के संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति होती है, परिवर्तन किया जा सकता है|

एक जमाना था, जब मैं बड़ा उग्रमिजाजी था| मेरे अंदर जीरो टोलरेंस थी, जब संघ में नहीं आया था, तब की बात कर रहा हूं, अभी की नहीं और आज आप के सामने हूँ| आज आप के सामने हूँ, आखिर यह बदलाव क्यों घटा? हर मनुष्य बदल सकता है, अगर उसके अंदर बदलने की इच्छा-शक्ति हो, बदलाव घटित होगा, तुम्हारे अंदर इच्छा-शक्ति होनी चाहिए, संकल्प-शक्ति होनी चाहिए| मन में ठान लो, यह काम मुझे नहीं करना नहीं करना तो नहीं करना| अरे भैया, कैसे चलेगा, क्या चलेगा? झूलते ही रहोगे| मुझे मेरे जीवन में एक बड़ा अच्छा सौभाग्य मिला कि जिस दिन पहली बार पडगाहन को खड़ा हुआ, गुरुदेव को पड़गाया, साक्षात गुरुदेव को पड़गाया| लोगों ने मुझे जग पकड़ा दिया, आहार देना था, शुद्धि बुलवाया, शुद्धि बोला और हमसे किसी ने कहा कि कुछ दिन के लिए रात्रि भोजन त्याग दो, कुछ दिन के लिए रात्रि भोजन त्याग दो, ये बोला| मैंने सोचा रात्रि भोजन त्याग दो, मेरे मुंह से फट से निकला, खाना तो जिंदगी भर, छोड़ना तो जिंदगी भर, रात्रि भोजन का त्याग, एक पल लगा| यद्यपि उससे पहले मेरी कोई मानसिकता नहीं थी, शायद मुझसे पहले कहा जाता कि आचार्य श्री को आहार देना है तो रात्रि भोजन छोड़ना पड़ेगा तो शायद में पड़गाहन भी नहीं करता| क्योंकि कोई ऐसी मानसिकता नहीं थी पर जब कहा गया कुछ समय के लिए रात्रि भोजन छोड़ना है तो मन में बात आई कि खाना तो जिंदगी भर, छोड़ना तो जिंदगी भर| मैंने कहा, गुरुदेव! रात्रि भोजन का आजीवन त्याग और जैसे ही मेरे मुंह से ये निकला कि खाना तो जिंदगी भर और छोड़ना तो जिंदगी भर| उन्होंने नीचे से ऊपर तक देखा कि ये छोकरा तो अलग दिखता है लगता है, त्याग दिया| अब रात्रि भोजन तो छूट गया, पर फलाहार तो चलता है तो वो चलता था|एक रोज मैंने पूछा, गुरुदेव कि रात्रि भोजन के त्याग के बाद फलाहार ले सकते हैं| उन्होंने कहा- अगर तुमने रात्रि भोजन छोड़ दिया और फलाहार किया तो तुम्हारी आसक्ति कहाँ छूटी और आसक्ति को छोड़े बिना तुम्हारे छोड़ने का मजा क्या| ये बात मेरे दिमाग में बैठ गई और वाकई में जब छोड़ा है तो आसक्ति भी छूटनी चाहिए, उसी दिन से फलाहार बंद| उसी पल से फलाहार बंद, हालाँकि उस समय मेरा कोई इरादा नहीं था कि मैं साधु बनूंगा, मैं संघ में आऊंगा| यह तो उसके बाद, दो-तीन महीने बाद हुआ| संकल्प का बीजारोपण अंतर्मन में हो गया था और वही संकल्प फलीभूत हो कर आज यह स्वरूप धारण किया है| उन्होंने मुझे राह दिखाई, मैंने राह पकड़ ली और जिस राह पर अब तक चल रहा था, उससे पहले तक मैंने कह दिया नेवर| अब उधर देखना भी नहीं है तो क्या कहा? अपने अंदर बदलाव लाना है तो क्या करोगे? नेवर, महाराज! नेवर तो कहेंगे पर किसके लिए? चेंज के लिए, चेंज नेवर| बदलाव नेवर| जहां है वैसे ही रहेंगे, नो चेंज| तुम लोगों के हाल ही बेहाल है, जहां के तहां रहना चाहते हो, जीवन में कोई परिवर्तन घटित करने की उत्कंठा हृदय में जैसी होनी चाहिए, वैसा नहीं करना चाहते| इसका ये परिणाम निकलता है कि जीवन की सारी व्यवस्थाएं छिन्न-भिन्न होने लगती है| बदलाव ला सकते हैं, संकल्प में बहुत बड़ी ताकत है| मेरे संपर्क में ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्होंने अपने स्वभाव और प्रवृत्ति में आमूलचूल परिवर्तन घटित किया|

एक व्यक्ति जो बड़े उग्र तेवर वाले, उग्रमिजाजी, बात-बात में भड़कने वाले, गुस्सा हमेशा नाक में बैठे रहे, ऐसा व्यक्ति| घर-भर के लोग परेशान थे लेकिन एक घटना ने उस व्यक्ति के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया| घटना क्या घटी? उसके पड़ोस के एक बेटे की 27 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई, हार्ट फेल हुआ, दीवार से दीवार लगी, 27 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई, मन में बात बैठ गई| अरे, मैं क्या जीवन जी रहा हूं, मेरे जीवन का कब अंत हो जाएगा, कोई पता नहीं? मैं क्या कर रहा हूं? मुझ में बदलाव होना चाहिए, मुझ में परिवर्तन होना चाहिए और वही सोच उसके हृदय को परिवर्तित कर दिया| वह व्यक्ति संयम साधना के मार्ग पर लग गया और प्रतिमा धारण कर लिया| आज 7 प्रतिमा का धारण कर रहा है और अब अपने में रहता है, अपने धर्म ध्यान में रहता है| एकदम शांत| जिसको हम कहें तो ऐसा कह सकते है, जो क्रोध की मूरत था, वह शांति का दूत बन गया| इतना परिवर्तन| पश्चिम से पूरब में आया जा सकता है, मन में बात लगनी चाहिए तो नेचर को ठीक करना चाहते हो तो कहिए नेवर| आज से आप तैयार है, किसको-किसको नेवर कहोगे? बोलो तो| महाराज! जितनी देर प्रवचन में, उतनी देर के लिए तो आप जिसको कहो, सबको नेवर, उसके बाद की बात मत करो| आप तो सामने की बात करो, हम आपके सामने फेयर रहना चाहते है| आगे-पीछे की बात तो हमें हमारे तरीके से जीने दो, यह हमारी दुर्बलता है और इस दुर्बलता को दूर करने का उपक्रम हमें करना चाहिए| जब तक उस तरह की जागरुकता हमारे हृदय में विकसित नहीं होती तब तक जीवन का वास्तविक रूपांतरण नहीं हो सकता| संकल्प जगाईये, हमारे यहां कहा गया है|

सर्वं संकल्प असावती लगुर भवति वामह {२९:००}

मनुष्य जो कुछ भी बनता है, अपने संकल्प के बल पर ही बनता है| कोई लघु बनता है तो अपने संकल्प के बल पर और कोई महान बनता है तो संकल्प के बल पर| कोई मोक्ष जाता है तो संकल्प के बल पर और नरक जाता है तो अपने संकल्प के बल पर| एक संकल्प है जो तुम्हारे जीवन को नरक बना देता है और एक संकल्प है जो तुम्हारे जीवन को मुक्त कर देता है| अपना संकल्प, सत संकल्प जगाओ| संकल्प में वह ताकत है जो वादियों में भी गुलाब खिला दे| गुरु-शिष्य दोनों जा रहे थे, कई शिष्य थे, गुरु थे| एक चट्टान दिखी रास्ते में, एक शिष्य ने कहा- गुरुदेव! यह चट्टान बड़ी कठोर है, चट्टान से कठोर कुछ है तो दूसरे ने कहा गुरुदेव चट्टान से कठोर तो लोहा है जो इस चट्टान को भी फोड़ देता है| उसकी बात पूरी हुई कि तीसरे शिष्य ने कहा, गुरुदेव! लोहे से भी कठोर तो अग्नि है जो लोहे को भी गला देती है और चौथे शिष्य ने कहा, गुरुदेव! अग्नि से कठोर तो पानी है जो अग्नि को भी बुझा देती है और पांचवे शिष्य ने कहा कि पानी से भी कठोर तो वायु है जो पानी को भी उड़ा देती है| अगला शिष्य कुछ कहने ही जा रहा था कि गुरु ने कहा- वत्सो! सबसे कठोर है मनुष्य का संकल्प, जो चट्टान को फोड़ सकता है, लोहे को गला सकता है, अग्नि को बुझा सकता है, पानी को उड़ा सकता है और हवा को भी बांधने में समर्थ है| अपनी संकल्प की शक्ति को पहचानिए, उसको जगाइये, उसे उद्घाटित करने की कोशिश कीजिये, नेचर में बदलाव आएगा तो पहली बात, चार बातें पूरी करनी है| नंबर वन नेचर, उसको सुधारने के लिए क्या करना है, नेवर| इस नेचर को सुधारने के लिए तीसरी बात नोटिस|

नोटिस मतलब सूचना देना, संज्ञान लेना, सतर्क रहना| दोनों सन्दर्भों में समझना, नोटिस में लीजिये| क्या कीजिए? अपने भीतर झांकिये, अपने जीवन में बदलाव करना चाहते हो तो ये बड़ा मनोवैज्ञानिक उपाय है तो आप इसका उपयोग कीजिए| मेरी क्या कमजोरी है, मेरे क्या दोष है, दुर्गुण है, दुर्बलता है? इसको नोटिस में लीजिए| मेरे अंदर कौन सी कमजोरी है, मेरी कौन सी विकनेस है, मेरा कौन सा दोष है, मेरे अंदर कौन सी दुर्बलता है, इसको नोटिस में लेना शुरू कीजिए| करके देखिये| एक काम कीजिए, कागज-पेन लीजिए और लिखना शुरू कीजिए कि मेरे अंदर कौन-कौन से दोष है| बिना रुके कितने लिख पाओगे| मेरे अंदर कितने दोष हैं, पता तो है सबको और पता होना भी चाहिए| एक कागज-पेन लीजिए और यह तय कीजिए कि मेरे अंदर कौन-कौन से दोष हैं और कौन-कौन सी दुर्बलताये है? बिना रुके लिखिए| मेरे ख्याल से ज्यादा नहीं लिख पाओगे, 5-7 में थक जाओगे| हां, पर दूसरों के दोष लिखना हो तो डायरी भर जाएगी, उसके लिए कोई दिक्कत नहीं| आप तो कई, एक-एक करके लिखना शुरू करेंगे पूरे लेकिन खुद के 5-7 के बाद याद करना पड़ता है और खींचतान के याद करोगे तो 10-20 लिख पाओगे, उससे ज्यादा नहीं क्योंकि मनुष्य की एक बहुत बड़ी दुर्बलता है कि वह अपने दोषों को दोष मानने के लिए ही राजी नहीं होता| उसे अपने दोषों का ख्याल ही नहीं है और जब तक तुम्हें दोष, दोष नहीं दिखेंगे तो तुम उसको दूर क्यों करोगे| अभी चार-पांच दिन पहले की बात है, मैं अंदर कमरे में था, काम कर रहा था, बाहर से सब दर्शन कर रहे थे| एक भाई रोक रहा था, जब उसको रोकने लगा तो एक आदमी चिल्ला पड़ा जोर से| जब चिल्लाया तो गुस्से में तेवर उसका तीखा था तो हमने बोला भैया जो बोल रहा है, उसका ध्यान रखो थोड़ा wait करो दर्शन करना| मैं अपना काम कर रहा हूँ, वहां से दर्शन तो हो रहा है, इतना चिल्ला क्यों रहे हो| बोलै, महाराज! मैं चिल्ला थोड़ी रहा हूं, मैं तो निवेदन कर रहा हूं| हमने कहा- भाई साहब, आपके निवेदन का यह तेवर है तो चिल्लाने का क्या होगा| आप बता सकते है, क्या कहानी है| निवेदन ऐसा तो फिर चिल्लाओगे तब तो भूचाल आ जाएगा| जो आदमी गुस्सा करता है, गुस्से में तीखा बोलता है, उसको इस बात का आभास है कि मैं तीखा बोलता हूं| वो कहेगा, नहीं भाई, यह तो मेरी लैंग्वेज है, यह मेरी भाषा है| जो आदमी गुस्से को अपनी भाषा बना लेगा, जिंदगी में कभी नहीं परिवर्तित हो सकेगा, उसे गुस्से की परिभाषा समझने की जरूरत है और उसे नोटिस में लेने की आवश्यकता है, तभी गुस्से को बदल पाएगा, स्वभाव में परिवर्तन ला पाएगा| नोटिस मे लीजिए एक-एक करके, यहाँ ऐसा कोई मनुष्य नहीं है including मैं खुद| मैं भी अपने आप को कहता हूं, मेरे अंदर भी कुछ विकनेस है, संसार में ऐसा एक भी प्राणी नहीं जिसमे कोई दोष ना हो, केवल एक ही है जिनके अंदर कोई दोष नहीं वह है भगवान, बस और कोई नहीं| सब में दोष है और दोषों का शमन और दोषों का शोधन ही हमारी साधना है| वही हमारा ध्येय है तो कैसे शमन करोगे, कैसे शोधन करोगे, दोषों को नोटिस में लोगे और उनके प्रति जागरूक होओगे तो दोषों का शमन कर पाओगे, तभी दोषों का शोधन हो सकेगा| नोटिस मे लीजिए, मेरे ये-ये दोष है, एक लिस्ट बनाइये, आज ही बनाईयेगा| ज्यादा देर नहीं लगेगी, अगर ईमानदारी से बनाओगे तो चिंता मत करना, वह आपका प्राइवेट रजिस्टर होगा| दूसरों को दिखाने में तो दिक्कत होगी लेकिन आप अपने पास रखिए, अपने दोषों को नोट डाउन कीजिए, उसको लिखिए और लिखने के बाद यह देखिए कि इस में से किन-किन को मैं दूर कर सकता हूं या इनमें कौन-कौन सी बड़ी-बड़ी दुर्बलता है|

जो जो बड़ी-बड़ी दुर्बलताये दिखे और जिससे आपका जीवन ज्यादा प्रभावित हो| आप तय करो ये आज से बंद| इनको कहो, नेवर, नेवर, नेवर| मन में संकल्प लीजिए और उनके प्रति जागरूक हो जाइए, आप उनको जीत सकेंगे| जब तक आप अपने दोषों को नोटिस में नहीं लेंगे, अपने, दूसरों के नहीं तब तक आप जीवन का शुद्धीकरण नहीं करेंगे| अपने दोषों को नोटिस में लो और औरो के दोषों को नजरअंदाज करो| आप लोग करते क्या हो, दूसरों के दोष हो तुरंत नोटिस में लेते हो| अच्छाई को तो फिर भी हम आगे-पीछे टाल दे, बुराइयों को तो हम तुरंत नोटिस में लेते है और हम पकड़ लेते है, कैच आउट कर लेते है| इससे क्या होता है? हमारे सबकॉन्शियस में एक दूषित संस्कार जन्मता है, हम सामने वाले को और बुराइयों को जितना पकड़ेंगे, हमारा जीवन उतना बुरा बनेगा और वह हमारे भविष्य को खिलाफ करेगा कि हम बुराइयों की तरफ देखते हैं, देखते हैं, देखते हैं, देखते हैं तो वह बुराई हम accept करना शुरू कर देते हैं| वो हमारे सबकॉन्शियस में फीड होता है और वही कालांतर में हमारे सबकॉन्शियस माइंड के माध्यम से एक्सप्रेस होता है| हमारे जीवन को बुरा कर देता है, बुरी बातों को नोटिस में नहीं लेना| अच्छी बातों को नोटिस में लो और खुद की जो बुराइयां है उनको नोट डाउन करो, उनको नोटिस में लो| उनके प्रति जागरूक हो और यह तय करो कि इन्हे मुझे दूर करना है| देखिये, हमारी जो दुर्बलताये हैं, जिससे हमारा स्वभाव बना है, उसमें हमारी कुछ प्रवृत्तियां तो ऐसी होती है, जिसको हम बुद्धि पूर्वक करते हैं और कुछ प्रवृत्तियां ऐसी होती है जो हमको पता ही नहीं लगता कि हम कब कर बैठते हैं, वो अबुद्धि पूर्वक| जिस चीज को करते वक्त हमें पता है कि यह काम गलत है, उनके प्रति थोड़ी सी जागरूकता पर्याप्त है, आप उन पर अंकुश लगा सकते हैं| बूढी पूर्वक किए जाने वाले पाप को बड़े आसानी से रोका जा सकता है, जो हम होश-हवास में गलती करते हैं, उनसे बचा जा सकता है| उनको आप पहले त्यागिये, नहीं मुझे ये नहीं करना| देखिये, कोई क्राइम करा जाता है, कोई भी कितना भी बड़ा क्रिमिनल है, प्लानिंग के साथ करता है कि बिना प्लानिंग के| क्राईम आदमी प्लानिंग से करता है, पर झूठ| क्या हो गया, झूठ बिना प्लानिंग के भी होता है बल्कि बिना प्लानिंग के ही होता है| आप बताइए, थोड़ा सा सोचिए, दिन भर में अगर आप सौ बात बोलते हो तो उसमे सच का कितना और झूठ का परसेंट कितना होता है| हिसाब लगाना, कई बार तो इतने झूठ हो जाते हैं, इतने झूठ हो जाते है, जिनका कोई लेना-देना नहीं| झूठ बोलते हैं, आप को कोई पता ही नहीं, बस झूठ बोल रहे हो| क्यों बोल रहे हो, ये पता नहीं| आदत पे सवार है, अबुद्धि पूर्वक झूठ बोल रहे हो| तो इस झूठ बोलने की आदत से बचने के लिए कुछ अलग अभ्यास करना पड़ेगा लेकिन मुझे कोई क्राइम नहीं करना, यह संकल्प तो आप ले सकते हो और सब इंसान उससे बच जाता है| इसी प्रकार मैं अपने नेगेटिव इमोशंस पर कंट्रोल करूं, यह थोड़ा कठिन है पर अपनी बेड habits पर अंकुश लगाऊ, यह तो ईजी है| बुरी प्रवृत्तियों को तुरत नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि वह हम चला करके करते हैं और जो अबुद्धि पूर्वक हमसे भावात्मक त्रुटियां होती है, उनके प्रति हमें जागरूक होने की जरूरत है| उनके प्रति जब जागरूकता होगी तब हमारे जीवन में व्यापक बदलाव आएगा| क्या कीजिए? देखे, कोई आदमी अपशब्द बोलता हो| पहला स्टेज, किसी ने अपशब्द बोला, उनका तकिया कलाम ही अपशब्द है| कई लोग है जो हम लोगो के सामने भी बोलते हैं, उनका वाक्य का श्री गणेश होता है और अपशब्दों से हो जाता है| उनको होश ही नहीं है, हम कहाँ बैठे है, वो बेहोशी में जी रहे है और अबुद्धि पूर्वक बोल रहे है, अभिप्राय नहीं है पर निकल रहा है, इस आदमी में कोई चेंज नहीं हो सकता| फिर थोड़ा आगे बोला अपशब्द, निकल गया होगा, अभी रिलाइज भी नहीं है| तीसरा स्टेज, भैया, अपशब्द बोला, हाँ भाई, निकल तो गया, बोला तो हूं, रिलाइज कर रहा है लेकिन अभी कोई ग्लानि का भाव नहीं है| फिर आगे, भैया तुमने अपशब्द क्यों बोला? गलती हो गई, मुझे नहीं बोलना चाहिए था, आगे ध्यान रखूंगा| यह सुधार है, ग्रेजुअली सुधार है, नोटिस में लिया कि नहीं मैंने अपशब्द बोला| फिर ये बात आई कि यह मुझे यहां नहीं बोलना चाहिए, आगे ध्यान रखूंगा, इंप्रूवमेंट है| फिर किसी ने अपशब्द बोला, हां, मैंने गलत बोल दिया भाई साहब, माफ करो, क्षमा मांगने का भाव हो गया, सॉरी, यह उससे परिष्कृत रूप है| उसके बाद अपशब्द बोला, सामने वाले ने टोका, उससे पहले ही अंदर से अपशब्द निकल रहे हैं, मन में ख्याल आ गया| मैंने अपशब्द बोला, आधी बात को रोक दिया और उसके बाद की स्टेज है, अपशब्द का जन्म हुआ और तुरंत अवेयरनेस आया, मुझे अपशब्द नहीं बोलना| मन का भाव ही खत्म हो गया| क्या हुआ? इतनी मशक्कत करनी पड़ी तब एक बुराई दूर हुई| तो बंधुओ! जैसे तुम्हारे कपड़े का मैल एक बार साबुन फिरने से साफ नहीं होता, वैसे ही अपने स्वभावगत दुर्बलता को एक पल में दूर नहीं किया जा सकता, उसके लिए सारे जीवन अपने आप को तपाना पड़ता है, साधना करनी पड़ती है| तपाईये, साधना कीजिए, जागिये, 1-1 दुर्बलता को अपनी नोटिस में लीजिए| अगर आप अपनी दुर्बलताओं को नोटिस में लेने लगे और उनको दूर करने का यत्न करना शुरू कर दे तो क्या होगा, मालूम| नेचर के बाद नेवर, नेवर के बाद नोटिस और सब चीजों को ठीक से नोटिस में लोगे तो बन जाओगे नाइस|

नाइस का मतलब- सुंदर| अपने स्वभाव को ठीक करना चाहते हो तो संकल्प लो, संज्ञान में लो तो सौंदर्य को प्राप्त कर जाओगे, सब कुछ सुव्यवस्थित हो जाएगा| अपने जीवन को नाइस बनाना चाहते हो तो इन सब बातों का तो ख्याल रखना ही पड़ेगा और नाइस के लिए क्या करना| नाइस की स्पेलिंग और देख लो थोड़ी सी, क्या है, nice|

N नेगलेक्ट करो, जितनी भी दुर्बलतायें है, नेगेटिविटी है, सबको नेगलेक्ट करना शुरू कर दो, उनको दूर करो और उनको उपेक्षित करो, उनके प्रति तिरस्कार का भाव रखो, नेगलेक्ट करो| आप accept करते हो अपनी गलतियों को, गलतियों का accept करने का मतलब गलतियों को एक्सेप्ट नहीं करते, गलतियों को पुष्ट करते हो, स्वीकार करते हो| हाँ, ठीक है, यह रहना चाहिए, अंदर रहना चाहिए, नहीं, निकलकर बाहर करना शुरू करो उनको, नेगलेक्ट करना शुरू करो, जो अपने दोषों को, दुर्बलता को दूर करना शुरू कर लेगा, उसके जीवन में एक अलग चमक प्रकट हो जाएगी, एक अलग सौंदर्य विकसित होगा| दूर कीजिये, नेगलेक्ट करना शुरू कीजिए|

फिर ‘I’ Ignore| सामने वालों के जीवन में कोई गलतियां है, उसको इग्नोर करिए| सामने वाले का कोई दुर्व्यवहार हो उसको इग्नोर कीजिए| आप लोग क्या करते हैं? खुद के दोषों को तो नेगलेक्ट करते हैं और सामने वाले बातों को पकड़ लेते है| गड़बड़ हो जाती है ना| हमारे यहाँ एक शब्द आता है-

स्वदोषे भिन्निनीम {४६:१६}
दूसरों के छोटे-छोटे दोषों को पकड़ लेना और अपने बड़े-बड़े दोषों को अनदेखा कर देना, नजरअंदाज कर देना| कैसे? हाथी की आंख की तरह आँख मूंद लेना| हाथी इतना विशालकाय प्राणी है पर उसके संपूर्ण शरीर में उसकी आंखें अनुपाततः छोटी होती है| ऐसा प्रकृति ने इसलिए बनाया कि हाथी की आंखें छोटी है तो उसको पता नहीं रहता मैं कितना बड़ा हूं| अगर उसकी आंखें बड़ी होती है और अपनी कद-काठी को हाथी पूरी तरह देख लेता तो ज्यादा उद्दंड हो जाता| शायद प्रकृति ने संतुलन बनाया है| तो नीतिकार कहते हैं कि जो लोग अज्ञानी होते हैं, वह स्वयं के दोषों में हाथी की तरह आंख मूंदने वाले होते है, दूसरों के दोषों को उघाड़ते नहीं है|

अपने दोषों को देखिए और दुसरो के दोषों को नजरअंदाज कीजिए और किसी का कोई दुर्व्यवहार हो, किसी का कोई आपके साथ बुरा बर्ताव हो जाए, इग्नोर कीजिए| ठीक है, let us go, खत्म कहानी|

और ‘C’ – Correct कीजिए| करेक्ट कीजिए यानि सुधार कीजिए| अपना सुधार कीजिए औरों के सुधार करने में तो आप लोग तो माहिर है| कई लोग तो महाराज को भी सुधारना चाहते है, अपना सुधार, स्वयं को आप सुधारे, उसके लिए प्रयत्न कीजिए, पुरुषार्थ कीजिए| तो आप अगर नेगलेक्ट करेंगे, इग्नोर करना सीखेंगे और करेक्ट करना सीखेंगे तो आपके जीवन में एक अलग प्रकार का एंजॉय प्रकट हो जाएगा| जो मिला, जैसा मिला, सब को एंजॉय कीजिए| पूरा जीवन भरपूर एंजॉय के साथ बिताइये| तो बोलिए, फिर आप की जिंदगी नाइस होगी कि नहीं| तो नाइस बनना चाहते हैं, सबका जीवन ऐसे ही नाइस बना रहे, सबके जीवन में वैसा ही सौंदर्य बने रहे तो जिंदगी आनंद में बनी रहेगी| इन सब चीजों को लेके चले तो नॉनस्टॉप Enjoy| बिना रोक-टोक के, हर पल एंजॉय| एंजॉय बाहर नहीं भीतर है, अपार| जिसकी कोई सीमा नहीं, जिसकी कोई मर्यादा नहीं लेकिन तुम हो जो उस तरफ जाना ही नहीं चाहते| बाहर-बाहर भटक कर रह जाते हो और बाहर-बाहर की इस भटकन में जीवन वही का वही जड़ हो जाता है| अपने जीवन को चैतन्य बनाइए, जीवन को उसी रूप में बढ़ने की कोशिश कीजिये| इसलिए आज की चार बातों को ध्यान में रखियेगा- नेचर, नेवर, नोटिस और नाइस| मजा आया कि नहीं आया, बस ये ही हमारे जीवन में सुधार की प्रक्रिया है| बंधुओं! बातें छोटी है, अर्थ गहरे है| हम अगर छोटी बात को भी गहराई से समझना चाहे तो उससे बड़े अर्थ मिल जाते हैं और यदि हम बड़ी-बड़ी बातों को भी गहराई से ना ले तो उसका कोई अर्थ नहीं होता| बंधुओं! किसी विचारक ने एक बहुत अच्छी बात लिखी है, किसी पुस्तक का महान अंश वो नहीं, जिसमें बड़े विचार हो अपितु वह है जो विचारों को स्पंदित करें| समझ गए ना, छोटी बात भी हमारे लिए, छोटा विचार भी हमारे विचारों में एक अलग स्पंदन उत्पन्न कर सकता है| कहने को ये Alphabate है पर ये alphabate तुम्हारी जिंदगी के alphabate को चेंज कर देने वाले हैं और वह अगर बदल गया तो जीवन धन्य हो जाएगा| हम सबके भीतर अब ऐसा ही परिवर्तन घटित हो और हम उसी मार्ग में अग्रसर होने की प्रक्रिया में आगे बढ़ते रहें| परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जय|

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