Letter S

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एक आदमी अपनी गाड़ी बड़ी तेज गति से ले जा रहा था। रास्ते में एक बच्चे ने उसे हाथ दिया। उसकी माँ बीमार थी। उसे गांव से शहर की ओर ले जाना था अस्पताल के लिए। हाथ दिया, गाड़ी वाले ने उसे नजरंदाज कर दिया, आगे बढ़ गया। गाड़ी जैसे ही आगे क्रॉस हुई उसने एक पत्थर उठाया और उसके शीशे को फोड़ दिया। जैसे ही शीशा फोड़ा, गाड़ी वाले ने गाड़ी रोकी और पूछा कि भैया! आखिर तुमने मेरे शीशे को क्यों फोड़ा? तो उसने कहा- भाई! गाड़ी को इतनी तेज़ मत दौड़ाओ कि किसी को पत्थर उठाना पड़े। गाड़ी को इतनी तेज़ मत दौड़ाओ कि किसी को पत्थर उठाना पड़े।
आज बात s की है। स्पीड, सब स्पीड में हैं, बहुत तेज़ स्पीड में हैं। सब हर काम फास्ट चाहते हैं। संत कहते हैं- ‘गति का जितना महत्त्व है, उससे ज्यादा उसकी दिशा का’, ‘गति का जितना महत्त्व है, उससे ज्यादा उस पर नियंत्रण का’। आज गति है पर दिशा नहीं, उस पर कोई नियंत्रण नहीं। इसलिए गति प्रगति का रूप ना लेकर प्रतिगती बन रही है। लोग उल्टे जा रहे हैं। आज कोई भी व्यक्ति अपने आपको सेफ फील नहीं करता। सारी दुनिया चाहती है- आगे बढ़े, सक्सेस पाए। लेकिन इन सब चीज़ों के पीछे जो सबसे पहली आवश्यकता है- अपने जीवन की सुरक्षा और सलामती की उसकी तरफ ध्यान दें। आज s की बात है। चार बातें आपसे कहूंगा- सेव (save), सेफ (safe), सेल्फ (self) और सेट (set)।
बड़े सामान्य से शब्द हैं- सेव, सेफ, सेल्फ और सेट।

सेव (save), सेव करने का मतलब बचाव। बचाव करें। किसका? जीवन में अगर अपने आपको ठीक रखना है, तो बचाना जरूरी है। किसको बचाएं? बर्बादी से बचें! बचाएं! किसको?
सेव टाइम, सेव मनी, सेव एनर्जी और सेव लाइफ।

टाइम की सेविंग कीजिए, मनी की सेविंग कीजिए, एनर्जी की सेविंग कीजिए और लाइफ की सेविंग कीजिए।
आप टाइम की सेविंग के प्रति कितना ध्यान रखते हैं? आजकल लोग समय के प्रबंधन का बिल्कुल भी खयाल नहीं रखते। वही आगे बढ़ता है जो समय के मूल्य को समझता है, महत्त्व को समझता है। हमारे लिए जो समय मिला, वो कितना कीमती है इसको जानिए। अपना एक-एक क्षण कीमती है। एक सेकंड का मूल्य क्या है, उस व्यक्ति से पूछिए जिनकी ट्रेन छूट गई। पाप/बात करने से बचें। सेव का उल्टा वेस्ट। हम उसे सुरक्षित करें या बर्बाद करें। टाइम को सेव करते हैं या आप टाइम को वेस्ट करते हैं? क्या करते हैं? हैं? सेव करते हैं या वेस्ट करते हैं? कुछ लोग हैं, जो सेव करते हैं और कुछ लोग हैं, जो वेस्ट करते हैं। जिसे समय का मूल्य पता है, वो अपने समय की बचत करते हैं। समय को व्यर्थ में बर्बाद नहीं करते और जिनको समय का कोई मूल्यबोध नहीं, वो समय को बर्बाद करते हैं। सेव करना सीखिए। समय के महत्त्व को जानिए। हमें ये जीवन मिला है। थोड़ा-सा जीवन मिला है लेकिन थोड़ा जीवन पाकर यदि हम कुछ अच्छा करें, तभी इस जीवन की सार्थकता है और अच्छा हम तभी कर पाएंगे, जब हम एक-एक श्वास का सही उपयोग करेंगे, एक-एक समय का सदुपयोग करेंगे। आपके पास जब बहुत सारे काम होते हैं और समय कम दिखता है, तो आप क्या करते हैं? हैं? क्या करते हैं? महाराज जी! देखते हैं जरूरी काम कोन-सा है। जरूरी काम में अपने समय को लगाते हैं, फालतू के काम से अपना ध्यान हटा लेते हैं। इसी का नाम तो टाइम सेविंग है। टाइम को सेव करने का मतलब ये थोड़े है कि टाइम को कहीं स्टोर करके रख दो जैसे बैंक में अपना अकाउंट बनाते हैं सेविंग अकाउंट खोल करके; वैसे ही टाइम का एक अकाउंट खोल दो, जरूरत आने पर काम आ जाए। समय को कहीं स्टोर करके नहीं रखा जा सकता। समय का सदुपयोग ही समय की सेविंग है। समय के अनुरूप ही काम करो और जो जरुरी है उसमें अपना समय लगाओ, उसमें अपना समय खपाओ। गैर जरूरी कामों से अपने आप को अलग कर लो। दुनिया में जो सफल लोग हैं वे और जो सामान्य लोग हैं वे, सबको वे चौबीस घंटे ही मिलते हैं। सभी को चौबीस घंटे मिलते हैं लेकिन कोई सफल हो जाता है, कोई असफल रह जाता है। वजह क्या है? सफल वे होते हैं, जो प्राप्त समय का सही उपयोग करते है और जो अपने समय को बर्बाद करते हैं, सारी जिंदगी विफलता का सामना करते हैं। समय का सदुपयोग कीजिए। कोई पच्चीसवां घंटा कभी नहीं होगा, जो कुछ करना है चौबीस घंटे में ही करना है और चौबीस घंटे में करके अपने टारगेट को पाना है। तो हमें क्या करना है? हमें अपनी priorities सुनिश्चित करना है। priorities को फिक्स करना है। priorities फिक्स कीजिए। किसको करें? जो मेरे लिए करने योग्य है, उसे करें। जो मेरा मूल लक्ष्य है, जो मेरा मूल उद्देश्य है, जो मेरा मकसद है, धेह है, उसे मैं करूं बाकी को छोडो। आजकल लोग गैर जरूरी कार्यों में ज्यादा उलझते हैं, जरूरी बातें हाथ से छिटक जाती हैं। आप जरूरी कामों को पूरा करने का प्रयास कीजिए और ये तभी संभव होगा, जब आपका धेह आपके सामने हो। सेव कीजिए। समय का मूल्यांकन करना सीखिए। कुछ लोग होते हैं, जो सारा काम शेड्यूल से करते हैं। उनका टाइम मैनेजमेंट बहुत सुपर होता है और कुछ लोग होते हैं, जिनका कोई काम टाइम पर नहीं होता। जो समय के पाबंद होते हैं, उनका जीवन व्यवस्थित होता है और जो समय को उपेक्षित कर देते हैं, वो बड़े अस्त-व्यस्त होते हैं। समय के मूल्य को समझिए। टाइम को सेव कीजिए यानि टाइम को वेस्ट करना बंद कर दीजिए। यदि आपने टाइम को सेव किया, आप सेव हो जाएंगे।

दूसरी बात- सेव मनी (save money), पैसे को बचाइए। महाराज! बहुत अच्छी बात आज आपने कही। अभी तक तो हम लोग ये ही उपदेश सुनते हैं कि पैसा को बचा के मत रखो, जो है सब लगा दो। आज पहली बार आप बोल रहे हैं- पैसे को बचाओ। हाँ! बोल रहा हूँ- पैसे को बचाओ। मेहनत से पैसा कमाते हो, पैसे को बचाओ। इसका मतलब- पैसे को बर्बाद मत करो। अच्छे काम में पैसा लगाओ, बुरे काम में पैसे को व्यर्थ मत बहाओ। आज लोग हैं, जो पानी की तरह पैसा बहा देते हैं। मेहनत से कमाते हैं लेकिन ऐसे बहाते हैं जिसका कोई अता ही पता नहीं। जिस पैसे से अच्छे काम हो सकते हैं, उस पैसे को बर्बाद करना, कहाँ की समझदारी, फालतू के कार्यों में आडंबर करके पैसा बर्बाद करना। लोग लाखों रूपए ऐसे लूटा देते हैं। किस काम का? संत कहते हैं- पैसे को बचाइए। ध्यान रखो। पैसे को कैसे बचाएं? बैंक में रखो, सेविंग अकाउंट खोल दो। यहाँ जितने हैं, सबका सेविंग अकाउंट खुला हुआ होगा। नहीं खुला है तो खोलने की तैयारी होगी। बचा के रखो, सेविंग में डालो। क्यों? महाराज! जरूरत पर काम आएंगे। ठीक है, सेविंग कीजिए, पैसे की सेविंग कीजिए। मैं आपको एक ही बात कहता हूँ- पैसे को बचाना अच्छी बात है। ध्यान से सुनना। पैसे को बचाना अच्छी बात है। पैसे से किसी और को बचाना ओर अच्छी बात है। पैसा बचाओ, पर पैसा पाया है तो पैसे से किसी और को बचाओ। औरों को बचाने की बात सीखो। ये पैसे की सेविंग है। तुमने जो बैंकों में पैसा रख रखा है ना, वो सेव है? बोलो! हाँ? नहीं है ना? क्यों? तुम्हीं सेव नहीं हो, तो वो कहाँ से सेव होगा। चले जाओगे, फिर क्या ठिकाना? गवर्नमेंट की एक पॉलिसी बदल गई, तो क्या होगा? जिस बैंक में तुमने रुपया दिया, वो बैंक ही दिवालिया हो गई तो तुम्हारा क्या होगा? होती है ना? हाँ? कहते हैं- होते ही रहते हैं। …. के टाइम हुआ, कईयों के टाइम में हुआ, होता ही रहता है। तुमने जहाँ रुपया रखा, वो सेफ नहीं है। अपने पैसे को सेफ करने का मतलब फालतू के कामों में वेस्ट मत करो और अच्छे कार्यों में उदारता से नियोजित करो। वही पैसा सुरक्षित है, जो अच्छे कार्य में लगा है। बाकी तो एक दिन नष्ट हो जाने वाला है।

राजा भोज बड़ा उदार था और जो आए दरियादिली से उसको दान देता था। एक दिन मंत्रियों ने देखा कि राजा अगर इसी तरह दान-धर्म करते रहेंगे, तो राजकोष खाली हो जाएगा। पर राजा से सीधे-सीधे बोलें कैसे? तो क्या किया? एक सुप्त लिख दिया- आपदार्थम धनम रक्षेत। राजा भोज के कक्ष के द्वार पर लिख दिया- ‘आपदार्थम धनम रक्षेत’: आपत्ति-विपत्ति के लिए पैसा बचाएं, पैसे की रक्षा करें। राजा भोज ने देखा, तो उसके नीचे एक लाइन लिख दी- ‘सताम आपदा कुत:’: सत्पुरुषों को आपत्ति कहाँ! ‘आपदार्थम धनम रक्षेत’: आपत्ति के लिए धन की रक्षा करो। उन्होंने नीचे लिख दिया- ‘सताम आपदा कुत:’: सत्पुरुषों को आपत्ति कहाँ! तो उन्होंने तीसरी लाइन लिखी- ‘देवात कुचित समायाती’: अरे भाई! दुर्भाग्य से महापुरुषों को भी विपत्ति का सामना करना पड़ता है, आ सकती है। क्या पता कब कुछ अघट घट जाए, कोई ऐसा मौका आ जाए इसलिए पैसा संभाल कर रखो। पहली लाइन- ‘आपदार्थम धनम रक्षेत’। तो उन्होंने जवाब में लिख दिया- ‘सताम आपदा कुत:’ सत्पुरुषों को आपत्ति कहाँ! लिख दिया- ‘देवात कुचित समायाती’। चौथी लाइन राजा भोज ने लिखी, जो जीवन का बहुत बड़ा सार बता दिया। उन्होंने लिखा-
संचिदार्थम विनष्टती
संचित धन एक दिन विनष्ट हो जाता है। वहाँ उसकी सुरक्षा नहीं है। उसकी सुरक्षा कहाँ है? अच्छे कार्य करने में। बुरे कार्य में पैसे की बर्बादी कभी मत करो और अच्छे कार्य में पैसा लगाने में कोई संकोच मत करो। मनी की सेविंग इसी में है। दो तरह के लोग ज्यादा मिलते हैं। एक वे लोग, जो पैसे को पानी की तरह बर्बाद करते हैं, सुरा और सुंदरी के चक्कर में और दूसरे वे लोग, जो पैसे को तिजोरी में बंद करके रखते हैं। वो सेव करने के लिए सेफ खोजते हैं। सेफ यानी तिजोरी। दुनिया की किसी तिजोरी में पैसा सेव नहीं होता। होता है क्या? दोनों अपने जीवन के साथ एक प्रकार का खिलवाड़ करते हैं। ये दोनों स्थितियां अच्छी नहीं। तो टाइम की सेविंग के बाद मनी की सेविंग।

तीसरी बात- सेव एनर्जी (save energy). एनर्जी की सेविंग करो। अपनी एनर्जी को व्यर्थ मत जाने दो। आज बाहर कहते हैं- ‘save energy, save power’. उसका सही उटिलाइज करो, उसे वेस्ट मत करो। जहाँ जरूरत नहीं है, वहाँ उसका उपयोग मत करो। बिजली उतनी ही जलाओ, जितनी जरूरत है। पंखा उतना ही चलाओ, जितनी आवश्यकता है। गैस उतना ही जलाओ, जितनी जरूरत है। हैं ना? बाहर की एनर्जी वेस्ट ना हो, इसका तो ख्याल है। अपनी आत्मा की एनर्जी को सुरक्षित करने का आपको खयाल है? अपनी आत्मा की ऊर्जा को व्यर्थ मत बहाओ। मालूम है, हमारी आत्मा की ऊर्जा व्यर्थ कब होती है? जब हम नेगेटिव एक्टिविटीज में इन्वॉल्व होते हैं, नकारात्मक कार्यों में प्रवृत्त होते हैं। लड़ने में, झगड़ने में एनर्जी वेस्ट होती है। क्रोध, कलुषता, ईर्ष्या, विद्वेष आदि की दुर्भावनाओं से जब हम ग्रसित होते हैं, हमारे मन में घृणा और संताप के भाव आते हैं, चिंता समाती है, अहंकार आता है, वासना के भाव आते हैं, अन्य प्रकार के विकार आते हैं। उन घड़ियों में हमारी आत्मा की ऊर्जा बर्बाद होती है। अपने आपको नकारात्मकता से बचा लीजिए, एनर्जी की सेविंग होगी और जब आपकी एनर्जी सेव हो जाएगी, तो आप चौबीस घंटे energised होंगे। आजकल हर एक व्यक्ति थका हारा सा महसूस होता है। ऐसा लगता है कि कोई जान ही नहीं है। एकदम बेदम जैसा लगता है। खाने-पीने के बाद कोई बेजान लगे, तो समझ में नहीं आता। किसी को खाना-पीना ना मिला हो, ठीक है, भाई बेजान है लेकिन खाने-पीने के बाद भी ऐसा क्यों? क्योंकि उसने अपने अंदर की ऊर्जा को बर्बाद कर दिया है। अपना चिंतन, अपनी शक्ति को एकदम नकारात्मक दिशा में लगा रखा है। उसे मोड़िए। उसे बदलिए।

और आखिरी बात लाइफ सेविंग (life saving). जीवन की सुरक्षा कीजिए। जीवन की सुरक्षा कैसे करोगे? आजकल तो जीवन की सुरक्षा की गारंटी देने वाले बहुत लोग घूमते हैं। इतने जितने भी इंश्योरेंस वाली कंपनी हैं, वो क्या कहते हैं? आपको नारा लुभाते हैं- ज़िन्दगी के साथ भी ज़िन्दगी के बाद भी। यही है ना? मन भावन लुभावना नारा है। दुनिया में कोई ऐसी कंपनी जो आपकी लाइफ को इंश्योर कर सके, बोलो है? है? कोई भी कंपनी? कोई कंपनी नहीं है। हम अपने जीवन को मरने से नहीं बचा सकते, अमर कोई नहीं है। तो फिर महाराज! लाइफ सेविंग का मतलब क्या? जीवन को गलत दिशा में जाने से रोकना ही लाइफ की सेविंग है। रोंग डायरेक्शन में मत जाइए। पाप और अनाचार में अपने जीवन को मत लगाइए। जो व्यक्ति फालतू के भोग-विलासता में अपना जीवन बर्बाद करते हैं, वो अपने जीवन को वेस्ट करते हैं और जो त्याग, तपस्या, साधना का रास्ता अपनाते हैं, वे अपने लाइफ को सेव करते हैं। लाइफ की सेविंग करना है तो क्या करो? धर्म से जुड़ जाओ। जिसने धर्म से अपने आपको जोड़ लिया, समझ लेना उसकी ज़िंदगी सुरक्षित है। यहाँ भी जीते जी जीवन का रस लेगा और यहाँ से जहाँ जाएगा, वहाँ भी जीवन का रस लेगा। उसको कोई खतरा नहीं है। और जिसने धर्म से मुख मोड़ लिया, उसे कदम-कदम पर खतरा है। वो जहाँ जाएगा, वहाँ खतरा ही मिलेगा। बचाइए अपने आपको। धर्म से नाता जोड़िए। दुनिया की कोई कंपनी तुम्हारी सुरक्षा नहीं करेगी। देखो, आप लोग इंश्योरेंस तो कराते ही हो। यहाँ बैठे जितने हैं, सब ने कोई ना कोई पॉलिसी ले रखी होगी। हाँ? कोई नहीं है। आपकी दूसरी इंश्योरेंस हो गई तगड़ी। इन लोगों से अच्छी इंश्योरेंस। इंश्योरेंस कराते हो, दुनिया की कोई भी कंपनी ऐसी है, जो इस बात की गारंटी दे कि हम तुमको मरने से बचा लेंगे। बोलो! कहते हैं लाइफ इंश्योरेंस। लाइफ इंश्योरड है ही नहीं पर है। लाइफ का इंश्योरेंस कराना चाहते हो? एक व्यवस्था है, वो इन कंपनियों में नहीं। समझ गए? बाहर के इंश्योरेंस की कंपनियों में तुम जाओगे, वो तुम्हारे लाइफ को इंश्योर नहीं करेंगे। अगर अपनी लाइफ को इंश्योरेंस कराना है तो भगवान के दरबार में चले जाओ। जिनालय आत्मा का …भवन है, सतगुरु उसके एजेंट हैं और धर्म की क्रियाएं उसकी पॉलिसी है। एक भी पॉलिसी को तुमने स्वीकार कर लिया, तुम्हारी ज़िन्दगी इंश्योरड है, 100% इंश्योरड। अभी बोल रहे थे- आपने इंश्योरेंस नहीं कराया। अरे! दूसरी प्रतिमा ले ली, तुमसे अच्छा इंश्योरेंस और किसका होगा? पक्का सीट सुरक्षित। जीवन में किसी भी प्रकार की दुविधा नहीं। धर्म से जुड़िए, पाप से बचिए। लाइफ की सेविंग इसमें है। बाहर की प्रवृति में सावधानी रखना, खान-पान में संयम रखना, नियमित दिनचर्या रखना- ये भी लाइफ सेविंग का एक बाहरी रूप है और अपनी आत्मा को अंदर से परिष्कृत कर देना, भव-भवानतरों के लिए उसे सुरक्षित कर लेना- ये लाइफ सेविंग है। समझ गए तो सेव कीजिए। हाँ? आप लोग क्या करते हैं? सेव करने के नाम से सुबह से शेव कर आते हैं। हाँ? वो शेविंग दूसरी है, उस सेविंग की बात नहीं है। अपने आपको बचाने का प्रयत्न कीजिए, बचाइए। कब बचाओगे? सेव कब कर पाओगे? जब सेव को ठीक ढंग से समझोगे। सेव की स्पेलिंग क्या है? Save, माने? s यानी सोर्स (source)। खोजो इसका सोर्स क्या है? इसका मूल्य क्या है? इसकी जड़ क्या है? a- aware रहो या उसके प्रति एक्टिव हो जाओ, जो सोर्स है उसको पाने के लिए। v- उसकी value समझो और e- ensure हो जाओ, निश्चिंत हो जाओ। तुम्हारे जीवन में सेव हो जाएगा और कोई दिक्कत नहीं। सेव

दूसरा है- सेल्फ (self)। सेल्फ मतलब अपना। सेव करने के बाद सेल्फ। स्वयं को, खुद को ठीक ढंग से समझो। जीवन में सक्सेस चाहते हो, तो चार सेल्फ हो।
(1) सेल्फ कॉन्फिडेंस/आत्मविश्वास: जीवन में आगे बढ़ने का ये कीमिया है। आत्मवश्वास से लबरेज रहो, तुम कभी अनसेफ नहीं होओगे। जिनका आत्मविश्वास कमजोर होता है, वो बड़े डांवाडोल और भयातुर होते हैं। उनको हर पल असुरक्षा का भान होता है। वे असहज से अनुभव करने लगते हैं। कदम-कदम पर अपने आपको अनसेफ फील करते हैं। उनके अंदर का उत्साह ही ख़तम हो जाता है। संत कहते हैं- नहीं, आत्मविश्वास जगाओ। आत्मविश्वास को जगाने के दो फायदे हैं। पहला … तो कुछ भी करने की उमंग और चाह बढ़ती है, स्वयं पर भरोसा बढ़ता है और दूसरी बात- आत्मा का विश्वास हो जाने से मन का सारा भय दूर हो जाता है। आत्मविश्वास मनुष्य को साहसी भी बनाता है और आत्मविश्वास से मनुष्य संयमी भी बन जाता है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए इन बातों की बहुत अधिक आवश्यकता है। कुछ भी हो, अपना कॉन्फिडेंस कभी मत खोना। सेल्फ कॉन्फिडेंस को बनाकर के चलिए, उसे किसी भी तरीके से डगमगाने मत दीजिए। नहीं, ये काम है, मैं कर लूंगा- इतना विश्वास। मैं आता हूँ, प्रवचन करता हूँ, किसके बदौलत करता हूँ? हाँ, कॉन्फिडेंस है, सेल्फ कॉन्फिडेंस है। हाँ, ठीक है। मैं जिस विषय को छूउंगा, उसको प्रतिवादित कर दूंगा और यदि मेरे मन में संशय आ जाए, दुविधा आ जाए। अरे भाई! इस विषय को मैंने छुआ है, निर्वाह हो पाएगा कि नहीं हो पाएगा? इसको ठीक ढंग से इलेबोरेट कर पाएंगे कि नहीं कर पाएंगे? कहीं बात अटक ना जाए! तो कुछ नहीं कर पाएंगे। ‘संशय आत्मा विनश्यती’- जो संशय से भरे रहते हैं, जो doubt में उलझे रहते हैं, वो ज़िंदगी भर डोलते रहते हैं। उनका विनाश होता है। काम करना है तो करना है। बढ़ जाओ। हमारे यहाँ सम्यगदर्षण का पहला अंग है निशंकित अंग, जो कहता है सेल्फ कॉन्फिडेंस अपने अंदर होना चाहिए, आत्मा का विश्वास अपने हृदय में जगना चाहिए। आगे तभी बढ़ पाओगे। ओवर कॉन्फिडेंस नहीं होना लेकिन सेल्फ कॉन्फिडेंस में कभी कमी नहीं होने देना चाहिए। सेल्फ कॉन्फिडेंस को कैसे डेवलप करें? सेल्फ कॉन्फिडेंस को डेवलप करने का पहला उपाय है- सकारात्मक सोचिए। हमेशा पॉजिटिव सोचिए। जितना आप सकारात्मक सोचेंगे, आपके कॉन्फिडेंस का लेवल उतना स्ट्रॉन्ग होगा। नकारात्मक सोचेंगे, कॉन्फिडेंस डाउन होगा। पहली बात- सकारात्मक सोचिए। दूसरी बात- श्रद्धालु बनिए, भगवान के प्रति श्रद्धा रखिए, गुरु के प्रति श्रद्धा रखिए। मन डगमगाने लगा, आंख बंद करके उनको याद कीजिए। कॉन्फिडेंस बिल्ड अप हो जाएगा, काम हो जाएगा। तब आपके अंदर निर्णय लेने की क्षमता जागेगी। कई लोग होते हैं, जो निर्णय ही नहीं ले पाते और कई लोग ऐसे होते हैं, निर्णय लेते हैं तो उसको इंप्लीमेंट नहीं कर पाते। डिसीजन लिया, आगे नहीं बढ़ पाते, डोलते रहते हैं। कॉन्फिडेंस आएगा। धीरे-धीरे आएगा। सकारात्मक सोचिए, श्रद्धालु बनिए। नकारात्मक लोगों से सुरक्षित दूरी बनाकर रहिए। अगर आपका कॉन्फिडेंस लेवल कमजोर है, तो ऐसे लोगों के संपर्क में मत रहिए जो आपको हतोत्साहित करते हों। ऐसे लोगों से अपना वास्ता रखिए, जो आपको उत्साहित करें, एंकरेज करें। समझ गए? एंकरेज करें, आगे बढ़ाएं। आपका कॉन्फिडेंस डेवलप होगा, आप कुछ कर पाएंगे। तो पहली बात- सकारात्मक सोचिए, दूसरी बात- श्रद्धालु बनिए।

तीसरी बात- नकारात्मक सोच वाले लोगों से सुरक्षित दूरी रखिए और चौथी बात- स्पिरिच्युअल थिंकिंग बनाइए, अध्यात्म निष्ठ हो जाइए, आत्मा के स्वरूप को पहचानिए। आपका कॉन्फिडेंस अपने आप डेवलप हो जाएगा, आगे बढ़ जाएगा। देखो, सेल्फ वर्ड को भी देख लो। सेल्फ की स्पेलिंग क्या? Self. बहुत गहरा अर्थ है। s- strong बनो, e- encourage करो, l- love करो और f- follow करो। स्ट्रॉन्ग बनो, एंकरेज करो, लव करो, फ़ॉलो करो। सेल्फ हो गया, फिर कुछ कई नहीं। कहीं फेल नहीं होओगे, आगे बढ़ते जाओगे। तो पहली बात सेल्फ कॉन्फिडेंस। दूसरी बात- सेल्फ एनालिसिस, आत्मविश्लेषण। हर पल अपना आत्मविश्लेषण करो, अंतरविशलेषण करो। अपने भीतर झांक कर देखो- मेरे अंदर क्या खूबी और क्या खामियां हैं? खूबियों को पुष्ट करो और खामियों का शोधन करो। आप करते हैं सेल्फ एनालिसिस? एनालिसिस तो करते हैं पर औरों का, खुद का नहीं। किसी दूसरे के बारे में बोलो, पूरा पोस्टमॉर्टम करके रख दोगे, पूरी जन्मपत्री खोल दोगे। वो ऐसा है, वैसा है। अरे भैया! खुद के गिरेबान में झांककर देखो कि आखिर तुम कौन हो? तुम कहाँ हो? तुम कैसे हो? वो तो देखो। अपना अंतरविष्लेशन तुम्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा, जीवन को उत्साहित करेगा। तुम कुछ अच्छा कर सकोगे या अच्छा घटित कर सकोगे। अपना अंतरविष्लेशन बहुत कम लोग करते हैं। मैं आपको बताता हूँ- अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहते हो तो रोज़ शाम होने के पहले या सोने से पहले आंख मुंदिए, दिन भर के क्रियाकलापों को ध्यान में लाइए, अपने विचारों को रिकॉल कीजिए और उनको एनालाइज कीजिए। विश्लेषण कीजिए कि मैंने सुबह से अब तक जो कुछ भी किया है, उसमें क्या सही किया, क्या ग़लत किया। जो सही किया, उसको सेफ कर लीजिए और जो गलत किया, उसको दूर कीजिए, साइड करना शुरू कीजिए। अब कभी ऐसी बात आएगी, ऐसा मौका आएगा तो मैं ऐसा नहीं करूंगा। ऐसा सोचने की कोशिश कीजिए, चेष्टा कीजिए। ये आपको परिपक्व बनाएगा। इससे जीवन में स्थिरता आएगी, जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव आएगा। कभी आप आत्मसमीक्षा करते हो? अपना अंतरविश्लेशन करते हो? प्रवृत्ति की भी करो और स्वरूप का भी करो। प्रवृत्ति को करने से प्रवृत्ति नियंत्रित होती है और स्वरूप का आप अंतरविश्लेशन करोगे तो स्वरूप निमग्नता बढ़ेगी। स्वभाव के प्रति तुम्हारा लगाव होगा। विकारों का शमन करने में समर्थ हो जाओगे। तो सेल्फ कॉन्फिडेंस, सेल्फ एनालिसिस। सूत्रों में काम चलेगा, कि और व्याख्या करूं? चारों बात पूरी करनी है।

सेल्फ कंट्रोल (self control) सेल्फ कंट्रोल मतलब आत्मनियंत्रण। कहाँ करना है सेल्फ कंट्रोल? जब कोई नकारात्मक प्रसंग आए, आत्मनियंत्रण रखो। गुस्सा आ रहा है- सेल्फ कंट्रोल, अभिमान उमड़ रहा है- सेल्फ कंट्रोल, वासना का विकार छा रहा है- सेल्फ कंट्रोल, लालच और लिप्सा बढ़ रही है- सेल्फ कंट्रोल, किसी के प्रति कोई दुर्भाव आ रहा है- सेल्फ कंट्रोल करना सीखिए। अपने आप पर अपना नियंत्रण। बोलो, कभी कोई गुस्सा का मौका आए, उस घड़ी में अपने आप पर नियंत्रण करने की क्षमता तुम्हारे पास है? बोलो। हाँ? गुस्सा का मौका आया। गुस्सा का मौका कब आता है?- ये और बता दो। जब सामने वाला मन के विरूद्ध बोलता है, तब गुस्सा आता है। तो उस समय अपने आपको नियंत्रित कर सकते हो कि नहीं? कंट्रोल कर सकते हो कि नहीं? हैं? कर सकते हो? हाँ? मुश्किल है। एक बार मैंने ऐसे ही पूछा कि गुस्सा का मौका आए, तो गुस्सा कंट्रोल करते हो? बोले- नहीं होता महाराज, मेरे लिए तो असंभव है। हमने कहा- ठीक कहते हो। हमने कहा- तुम जिस कंपनी में काम करते हो, तुम्हारे बॉस ने कभी तुम्हें झाड़ पिलाई? बोले- पिलाई महाराज, अक्सर पिलाता है। जब झाड़ पिलाता है, तो क्या तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान आता है? नहीं महाराज, अंदर से गुस्सा आता है। तो हमने कहा- क्या करते हो, जब गुस्सा आता है? तो तुम अपने बॉस पर बरस जाते हो? बोले- महाराज! ऐसा पागलपन थोड़े ही करेंगे। क्या करेंगे? बोले- कंट्रोल करते हैं। बोले- ये कंट्रोल क्या है?- ये ही तो सेल्फ कंट्रोल है। बॉस के सामने सेल्फ कंट्रोल है, बीवी के सामने क्यों नहीं है? अगर तुम बॉस के सामने अपने आपको नियंत्रण होना चाहिए? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? कहाँ खो जाते हैं? कहाँ खो जाते हैं? यहाँ हमारा संयम क्यों चला जाता है? इसको हमें डेवलप करना है। अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं कि हृदय में भावनाओं का उफान आ रहा है, फिर भी उनको रोकना पड़ता है। एक्सप्रेस नहीं होने देना, नियंत्रित रखना। आप देखो, जितने भी कॉल सेंटर में लोग बैठे रहते हैं, प्रायः महिलाओं को बिठाया जाता है। हैं ना? और लोग बोलते हैं- महाराज! कॉल सेंटर में जिनको बिठाया जाता है, उनको पहली ट्रेनिंग ये दी जाती है- सेल्फ कंट्रोल कि सामने वाला कैसा भी बोले, कितना भी चिखे-चिल्लाए, गाली दे, तो भी उसको मुस्कुराते हुए जवाब दो। होता है? बोलो होता है? एक ऐसी लेडी मेरे से जुड़ी। वो एयर होस्टेस थी और एयर होस्टेस को आप लोग जानते हैं, देखने में भी अच्छी लगनी चाहिए, व्यवहार भी अच्छा होना चाहिए। अब देखो, कैसी जीवन की विडम्बना है? वो अपने प्रोफेशनल लाइफ में तो एकदम ठीक, वैसी जैसी रिक्वॉयरमेंट और पति पत्नी में रोज की तना-तनी। पति के सामने आग उगले। एक दिन पति ने कहा- महाराज! पूरे दिन भर की ड्यूटी पीरियड का जितना भी इसका फ्रस्ट्रेशन होता है, उसकी पूरी भड़ास मेरे ही ऊपर निकालती है। इसको बोलो कि जब सब के साथ ऐसा है, तो मेरे साथ क्यों नहीं? बोले- नौकरी के छुटने का डर है, तुम्हारे छुटने का डर नहीं है। नौकरी के छुट जाने का डर है, तुम्हारे छुटने का डर नहीं है। ये तो ठीक है, पक्का एग्रीमेंट। कहाँ कमजोर पड जाता है मन? कहाँ कमजोर पड़ता है? सेल्फ कंट्रोल की क्षमता को अपने अंदर डेवलप कीजिए, आगे बढ़िएगा।

नंबर चार- सेल्फ सेटिस्फेक्शन (self satisfaction)। सेल्फ सैटिसफाइड रहिए, आत्मतुष्टि। तुम जीवन की बड़ी से बड़ी उपलब्धि अर्जित कर लो। अगर तुम्हारे पास आत्मसंतुष्टि है, तब तो ठीक; अगर आत्मसंतुष्टि नहीं है, तो आत्मसंतोष के अभाव में दुनिया की बड़ी से बड़ी उपलब्धियां भी फीकी हैं। आप अपने मन से पूछो- तुम जो कुछ कर रहे हो, दुनिया तुम्हारे गीत गा रही है, दुनिया में तुम्हारी प्रशंसा हो रही है पर तुम्हारा मन उससे प्रसन्न है कि नहीं? मन उससे संतुष्ट है कि नहीं? इस पर गहराई से विचार करो। कई बार लोगों में ऐसा देखने को मिलता है- सब कुछ होने के बाद भी उन्हें संतुष्टि नहीं है। सेल्फ सेटिस्फाई नहीं रहते लोग। ऐसे लोग मृगतृष्णा में दौड़ते हैं। सारी ज़िन्दगी दौड़ भाग बनी रहती है, उपलब्धि कुछ भी नहीं होती। तो कहते हैं- नहीं! सेल्फ कॉन्फिडेंस, सेल्फ कंट्रोल, सेल्फ सेटिस्फेक्शन और सेल्फ एनालिसिस चारों को ध्यान में रखिये। यदि ये चारों सेल्फ से जुड़ गए तो फिर सेफ है। फिर आप सुरक्षित, आपकी सक्सेस निश्चित, आपको कुछ सोचने की ही जरुरत नहीं। कहीं कोई खतरा है? बोलो। अपने आप आगे बढ़ोगे।
देखो, कॉन्फिडेंस बिल्ट अप होता है, तो उसका क्या परिणाम आता है? एक राजा था। परचक्र के अचानक आक्रमण से उसका राज खो गया। उसके पास सेना की एक छोटी-सी टुकड़ी भर बची। वो अपनी सेना के साथ जंगलों में भागा। जंगल में उसे एक संत के दर्शन हुए। उसने अपनी व्यथा उन संत के चरणों में प्रकट की और उनसे अपनी पूरी कहानी सुनाते हुए कहा कि अब बताइए, मैं अपना राज्य पा पाऊंगा कि नहीं? संत ने अपने झोले से एक सिक्का निकाला और कहा- मेरे पास ये करिश्माई सिक्का है। इसको मैं उछालता हूँ, तुम हेड या टेल बोलो। अगर तुम्हारे पक्ष में आ गया तो फैसला पक्का। उसने सिक्का उछाला। उसने हेड बोला, नीचे गिरा, हेड आया। हेड आया, उसने कहा- जाओ! मेरा आशीर्वाद है, तुम्हारी विजय सुनिश्चित। उसने अपनी सेना को वापस संगठित किया। विरोधी राजा की तुलना में उसकी सेना बहुत थोड़ी-सी थी लेकिन उसके अंदर का उत्साह और उमंग अपार था। पूर्ण उत्साह के साथ उसने युद्ध किया। युद्ध में उसको विजय मिली, जीता। अपने खोए हुए साम्राज्य को फिर से प्राप्त कर लिया। शत्रु राजा को उसने पराभूत कर लिया, बंधी बना लिया। जब वापस राज्य पाया तो उस संत के चरणों में कृतज्ञता अर्पित करने के मनोभाव से उनके पास पुनः पहुंचा और कहा- गुरुदेव! आपकी कृपा से मैंने ये साम्राज्य पा लिया। गुरु ने कहा- भाई! इसमें मेरी क्या कृपा? ये तो तुम्हारे खुद के पुरुषार्थ का फल था। नहीं गुरुदेव, जो कुछ भी हुआ उस सिक्के के कारण हुआ। आपके जादुई सिक्के ने हमें विजय दिलाई, जीत दिलाई। नहीं भाई, ये सब तो..। नहीं, आप कितना भी कहो, मैं तो ये आपकी ही कृपा मानता हूँ। बोले- ठीक है। गुरु ने कहा- एक बार हाथ बाहर बढ़ाओ। उसने हाथ बढ़ाया। उन्होंने झोले से सिक्के को निकाला, देखा- हेड था। बोले- इसको पल्टो, उसमें भी हेड था। उस सिक्के के दोनों तरफ हेड था। बोले- देख, इसमें मेरा कोई करिश्मा नहीं। मैंने सिक्का उछाला, उसके दोनों तरफ हेड था। तुने हेड बोला, हेड ही आना था, तो मैंने कुछ नहीं किया। मैंने तेरे कॉन्फिडेंस को जगा दिया और तू कॉन्फिडेंस को जगा लिया, खोए हुआ साम्राज्य पा लिया। बधुओं! मैं आपसे केवल इतना ही इतना कहना चाहता हूँ- अपने जेब में एक ऐसा सिक्का रखिए, जिसके दोनों तरफ हेड हो, टेल कहीं हो ही नहीं। टेल कहीं रहे ही नहीं, आगे बढ़ते जाइए- आगे बढ़ते जाइए- आगे बढ़ते जाइए। अपने कॉन्फिडेंस लेवल को आप बढ़ाएंगे, जीवन में कभी विफल नहीं हो पाएंगे। तो सेव, सेल्फ।

सेफ- इतना सब कुछ होगा तो आप सेफ हो जाएंगे। सेफ हो जाएंगे यानी आपको फिर कहीं किसी भी तरीके की कोई प्रॉब्लम होगी ही नहीं। सेफ मतलब सिक्योर्ड। S: पूरी तरह से सुरक्षित, अब आपको कहीं कोई किसी तरह की प्रॉब्लम आ नहीं सकती। A: आप अवेयर बने रहोगे। F: जो मिलेगा, उसे फुलफिल करने में समर्थ हो जाओगे और E: चौबीस घंटे अपने काम में एंगेज रहोगे। कभी तुम अपने आपको अनसेफ फील नहीं कर पाओगे। सिक्योर्ड रहो, अवेयर रहो, जो सामने आए उसको फुलफिल करो, अपने काम में एंगेज हो जाओ, एकदम सेफ हो। सोचो ही नहीं अपने आपको इंसिकयोर्ड। मनोज फीयरफीलिंग होगी। हर पल अपने आपको सिक्योर्ड समझो। ये समझो- मेरी आत्मा का तो कुछ बिगाड़-सुधार हो ही नहीं सकता। मेरे ऊपर कौन हमला करेगा? मेरा कौन बिगाड़ करेगा? मुझे कौन नुकसान पहुंचाएगा? जो मेरा स्वरूप है, उसको कोई बिगाड़ नहीं सकता और बाहर के जो सन्योग हैं, वो मेरे हाथ में नहीं हैं, सामने वाले के हाथ में भी नहीं हैं, वो मेरे कर्मों के हाथ में है। जब तक कर्म मेरे अनुकूल होंगे, दुनिया की कोई ताकत मुझे हिला नहीं सकती और कर्म अगर प्रतिकूल हो जाएं, तो कोई मुझे बचा नहीं सकता। इसलिए हम किसके सेफ की बात करें? सब अपने आप में है। अनसेफ तो कुछ है ही नहीं। ये तीन ….हो गई, तो ज़िन्दगी सेट हो गई। सेट यानि बिल्कुल फिट, फिर कुछ करने की ही जरुरत नहीं। अपने जीवन में इन तीन बातों को जोड़ करके चलो। ये सेट हो गया, तुम्हारा जीवन सेट और जिसका जीवन सेट, वो हर पल आनंद, वो अपसेट होगा ही नहीं। आप लोग अपसेट ज्यादा हो जाते हैं। सेट रहिए, फिर किसी से सेटिंग बनाने की जरूरत नहीं। अपने आपको इनमें पूरी तरह सेट कर लीजिए, तो जीवन अपने आप ठीक बन जाएगा। लेकिन क्या करें, सेट नहीं होते। आपका माइंडसेट तुरंत बिगाड़ जाता है। इसलिए तुरंत अपसेट हो जाते हैं। अपने माइंडसेट को ठीक करने के लिए ऊपर की तीन बातों को ध्यान में रखकर के चलिए और अपने जीवन को उत्तरोत्तर आगे बढाते चलिए- आगे बढाते चलिए- आगे बढाते चलिए। यदि आप ऐसे आगे बढ़ेंगे और बढ़ाएंगे, निश्चित: जीवन में परम उपलब्धियों को अर्जित कर पाएंगे, जीवन को आगे बढ़ा पाएंगे। यही हमारे जीवन को क्रम से आगे बढ़ाने के स्टेप्स हैं।

एक एडिशनल बात बोल रहा हूँ- स्टेप (step). स्टेप यानी कदम, सीढ़ी। सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ो एक के बाद एक, एक के बाद एक, एक के बाद एक चढ़ो। सक्सेस पाना चाहते हो, स्टेप दर स्टेप चढ़ो। तो ये स्टेप्स क्या है? स्टेप दर स्टेप अगर अपने आपको चढ़ाना है, आगे बढ़ना चाहते हो, तो इसे एक स्टेप मानो और स्टेप क्या है? स्टेप की स्पेलिंग क्या है? Step, हैं ना? जब भी आप किसी काम में आगे बढ़ें तो s, हैं ना? जो भी s है, इसे मानो। ये श्योर है। क्या मानो? श्योर है, पक्का है। दिमाग में संशय हटा दो, फिर t- ट्राई करना शुरू कर दो, कोशिश करो। पहले श्योर मानो, फिर ट्राई करो। समझ गए? फिर e- उसमें अपनी पूरी एनर्जी लगा दो और p- परफेक्ट बन जाओ, फिर कुछ कहने की जरूरत नहीं। परफेक्ट हो जाओगे, फिर तुम्हारा परफॉर्मेंस कहीं से गड़बड़ाएगा नहीं। पहले श्योर हो, ट्राई करो, उसमें आप अपनी पूरी एनर्जी लगा दो या उसको एक्सटेंड करने की कोशिश करो, उसकी और वृद्धि करो, परफेक्ट हो जाओगे। यही स्टेप हैं जीवन को आगे बढाने का, अपने आपको ऊंचा उठाने का। हम स्टेप दर स्टेप आगे बढ़ें, अपने जीवन को ऊंचा उठाएं। तभी हम जीवन को सक्सेस तक पहुंचा सकेंगे, जीवन को सार्थक बना सकेंगे, सफल बना सकेंगे।

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