Letter Z जीरो को जानो, जीरो करो, जीरो बनो, नहीं तो जीरो हो जाओगे

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Letter Z जीरो को जानो, जीरो करो, जीरो बनो, नहीं तो जीरो हो जाओगे

शिक्षक ने बच्चों के सामने एक सवाल रखा। किसी व्यक्ति की टोकरी में पांच आम हों और पांच में से एक आम को बंदर उठा कर ले गया, तो कितना बचा? छात्रों ने बताया- चार। फिर बोला- दूसरा बंदर आया, उसने दूसरे आम को उठा लिया, फिर कितने बचे? कहा- तीन। फिर पूछा- फिर तीसरा बंदर आया, उसने तीसरे को उठाया, अब कितने बचे? बोला- दो। फिर कहा- चौथा बंदर आया, उसने चौथे को उठा लिया, अब कितना बचा? एक और जब पांचवा बंदर आया, उसने पांचवें को उठाया। पूछा- अब कितना बचा? बोला- zero। बोला- zero means Nothing. जीरो यानी कुछ भी नहीं, खाली, शून्य।

आज z for zero, समझ गए? क्या है जीरो? आज की चार बातें- जीरो को जानो, जीरो करो, जीरो बनो, नहीं तो जीरो हो जाओगे। जीरो को जानो, जीरो करो, जीरो बनो, नहीं तो जीरो हो जाओगे। समझिए, क्या है जीरो? जीरो यानी शून्य। जीरो यानी शून्य है। तुम्हारे पास जो कुछ है, सब जीरो है। पता है इसका? तुम्हारे पास जो कुछ भी है, सब जीरो है। उसका परिणाम जीरो है। क्या है तुम्हारे पास, हिसाब लगाओ। जिसके बल पर तुम अपने आप को हीरो मानते हो ना, वो भी जीरोे है। तुम्हारा धन, तुम्हारी संपत्ति, मौत के समय तुम्हारे काम में आती है? सब मुंह ताकते खड़े रह जाते हैं। जिंदगी भर मनुष्य जिसके लिए अपनी सांसें खपाता है, उन्हें दांव पर लगाने के बाद भी वो मनुष्य को एक श्वास के लिए नहीं बचा पाती। तब उसे लगता है- ये सब अर्थहीन है। काश! मैंने इनकी जगह अपने आप को समझा होता, तो कुछ और पाया होता लेकिन ये सब व्यर्थ हो गया, ये शून्य हो गया, कोई काम का नहीं। किसी की संपत्ति किसी के काम में नहीं आती, जाते समय सब जीरो हो जाता है। पता है- तुम्हारा ये रूप एक दिन चिता की आग में बदल जाएगा, चिता की राख में परिवर्तित हो जाएगा? तुम्हारा ये रुतबा सब यहीं छूट जाएगा। तुम्हारा रसूक तुम्हारे साथ जाने वाला नहीं। सच्चाई ये है कि तुम जिन पर इतराते हो, वो सब शून्य है। उनका अपने आप में कोई वजूद नहीं, उनका अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं, वो तुम्हारे नहीं हैं। तुम्हारे साथ भले हैं, पर अंत जीरो है।

शिक्षक ने ब्लैक बोर्ड पर एक जीरो लिखा। उसके सामने प्लस का निशान बनाया और फिर दूसरा जीरो लिखा। पूछा- जीरो प्लस जीरो बराबर क्या? उत्तर दिया- जीरो। फिर उन्होंने दो जीरो बनाए और उसके सामने प्लस का निशान बनाकर के दो जीरो बनाया। बोले- डबल जीरो प्लस डबल जीरो बराबर क्या? बोले- जीरो। फिर ट्रिपल जीरो बनाया और सामने ट्रिपल जीरो लिखा। बोला- ट्रिपल जीरो प्लस ट्रिपल जीरो बराबर क्या? बोला- जीरो। एक बड़ा सारा जीरो बनाया, उसके सामने उसी साइज का जीरो बनाया और कहा- इस जीरो के साथ जीरो को जोड़े, तो क्या होगा? बोला- जीरो। एक छात्र ने पूछा- सर! छोटे जीरो का जोड़ छोटा और बड़े जीरो का जोड़ क्या बड़ा होता है? छोटे जीरो का जोड़ छोटा और बड़े जीरो का जोड़ क्या बड़ा होता है? शिक्षक ने समझाया- बेटा! जीरो तो आखिर जीरो ही होता है, छोटा हो या बड़ा। जीरो सिर्फ जीरो है। संसार में जो भी है, सब जीरो है। राजा हो या रंक, करोडपति हो या रोड़पति, अमीर हो या गरीब, बड़ा हो या छोटा मरने के बाद सब जीरो है। यह बात हो सकती है कि राजा को चंदन की लकड़ी से जलाया जाए और रंक को गोबर के उपलों से जलाया जाए लेकिन अंत तो दोनों का राख है। चंदन की राख में सुगंध नहीं होती, तो उपले की राख में दुर्गंध नहीं होती। राख केवल राख होती है। अंत क्या है? राख। वो जीरो है। समझे? जिस दिन तुम्हें दुनिया जीरो लगने लगेगी, उसी दिन तुम अपने आप को हीरो बनाने में समर्थ हो जाओगे। दुनिया में हीरो है, कौन? भगवान। उन्होंने दुनिया से मुंह मोड़ा। क्यों? क्योंकि उन्हें दुनिया जीरो दिखी, उन्हें अर्थहीन दिखी, क्षणभंगुर लगी, पानी के बुलबुले के समान लगी। आज है, कल रहे ना रहे, कोई भरोसा नहीं। सब नश्वर है, भंगुर है, अशाश्वत है, क्षण है, ये उन्होंने जाना और उनसे मुंह मोड़ा। अपनी आत्मा को पहचाना, अपने भीतर के शाश्वत तत्व की तरफ दृष्टि दौड़ाई, वे जीरो से क्या बन गए? हीरो। जब सब शून्य प्रतीत होने लगता है, तब भीतर के परम ब्रह्मा का बोध होता है।

जगत शुन्यम, ब्रह्म सत्यम। भारत की ये बड़ी पुरातन उक्ति है। ये शून्य भारत की खोज है, गणित के क्षेत्र में भी और अध्यात्म के क्षेत्र में भी। गणित में शून्य नहीं होता, तो आज का सारा सिस्टम फैल। भारत में गणित शून्य का आविष्कार हुआ और वर्तमान में शून्य का सबसे प्राचीन उल्लेख लोग कहते हैं 8वीं शताब्दी में खजुराहो के एक मंदिर में उत्कीर्ण शून्य के रूप में है। कुल मिलाकर के शून्य के आविष्कारक भारत में हुए हैं और भारत में ही दशमलव प्रणाली के जनक महावीर आचार्य हुए। वो एक दिगंबर आचार्य थे, जिन्होंने गणित सार संग्रह नामक ग्रंथ लिखा। गणित में शून्य का अपना महत्त्व है और मैं आज आपको गणित में नहीं उलझाऊंगा, आपको आपके जीवन का गणित समझाना चाहूंगा। अध्यात्म में शून्य का और भी अधिक महत्व है। अध्यात्म कहता है- जगत शुन्यम, ब्रह्म सत्यम। शून्य का अर्थ है- व्यर्थ, शून्य का अर्थ है- बेकार, शून्य का अर्थ है- जिसका अपना कोई वजूद नहीं। शून्य का अर्थ- जिसका अपना कोई स्वरूप नहीं, जो व्यर्थ है, बेकार है, वजूद रहित है, जिसका अपना कोई स्वरूप नहीं है। उसमें मुक्त होना कतई समझदारी नहीं है। सत्य को जानो। जगत शुण्यम, ब्रह्म सत्यम। अभी तक तुमने शून्य को ही सब कुछ मान लिया, ब्रह्म को कुछ नहीं जाना। देखिए, मैं आपसे एक सवाल करता हूं- कितने भी जीरो लगाओ, उसका कोई वैल्यू है? हाँ? कोई ? कोई वैल्यू नहीं है। एक बार एक गणितज्ञ सब अंकों से बात कर रहा था। सारे अंक उसके सामने थे, पर जीरो नहीं दिख रहा था। गणितज्ञ ने जीरो को खोजा कि भाई! तुम कहाँ हो, बताओ। इधर-उधर देखा तो जीरो नजर नहीं पड़ा। बाद में मालूम पड़ा- वो एक पेड़ की ओट में छिपा है। शिक्षक ने उसको पुकारा- जीरो! तुम इधर आओ। इधर क्यों नहीं आ रहे? बोले- नहीं, मैं आपके पास नहीं आ सकता। बोले- क्यों? मेरा कोई मूल्य नहीं है, मुझे कोई वेट नहीं देता, मेरी कोई वैल्यू नहीं है। तुम्हारे जितने ये numbers हैं ना, वो सब मेरा तिरस्कार करते हैं, मेरी उपेक्षा करते हैं इसलिए मैं एक तरफ रहना चाहता हूं। टीचर ने कहा- ठीक है! एक काम करो, ऐसा करो- तुम इधर आओ और एक के बाजू में खड़े हो जाओ। जैसे ही एक के बाजू में जीरो खड़ा हुआ, पूछा- अब क्या हो गया? सब ने बोला- दस(10)। तो बोला- समझ में आ गया ना? तुम्हारा एक के पास रहने से तुम्हारी वैल्यू बढ़ी और 1 की 10 गुनी वैल्यू बढ़ गई। तुमने एक को मूल्य दिया है। अंक को मूल्य मिला है, तुम्हारे कारण से पर तुम्हारा मूल्य बना है, अंक के कारण से। जीवन में आगे बढ़ना है, इस गणित को समझो; एक-दूसरे के साथ अंक और शून्य बन करके चलो, जीवन आगे बढ़ता जाएगा। अंक के अभाव में शून्य का कोई मूल्य नहीं है लेकिन अंक से जुड़ जाने के बाद शून्य का तो मूल्य बढ़ता ही है, अंक का मूल्य भी बढ़ जाता है। संत कहते हैं- हमारे जीवन के साथ जितने भी जीवन से जुड़े हुए हैं, जितने भी संयोग हुए हैं, वे सब कब काम में आते हैं? कब काम में आते हैं? जब हमारे अंदर का जीवन है, हमारे भीतर की चेतना है, हमारे अंदर की आत्मा है। आत्मा के रहते बाहर के संयोग काम में आते हैं और आत्मा के खोते ही सब शून्य हो जाता है। आत्मा अंक है, जगत शून्य है। जगत शून्यम, ब्रह्म सत्यम का यही कंसेप्ट है। जब तक तुम हो, तुम्हारी दुनिया है; जिस दिन तुम चले गए, दुनिया शून्य हो गई। इस सत्य को जिस दिन समझोगे, उसी दिन तुम्हारे जीवन में एक आध्यात्मिक परिवर्तन घटित होगा। अध्यात्म की साधना कहती है- अपने आप को मानो, वही परिपूर्ण है, बाकी सब शून्य है। तुम्हारे रहते ही इस शून्य का मूल्य है, महत्त्व है; तुम गए, शून्य का महत्व खत्म, मूल्य खत्म। इसलिए आत्मा को जानो, पहचानो। तुम कौन हो और जगत शून्य है, पता है? शून्य क्या है? लगता है आपको कि शून्य है? कोई नहीं जानता। सब शून्य हो जाते हैं, निष्चेष्ट हो जाते हैं, निष्क्रिय हो जाते हैं। संत कहते हैं- शून्य से शिखर तक पहुंचा जा सकता है, अगर तुमने शून्य को पहचान लिया तो। संत कहते हैं- जगत को शून्य जानो। शून्य- जीरो; सार, अस्तित्व ही बेकार, व्यर्थ; इसे पहचानो। कभी ऐसा लगता है कि ये सब चीजें व्यर्थ हैं? कभी लगता है? नहीं लगता। इसलिए नहीं लगता कि हमारी आंखों में मोह का पर्दा चढ़ा है, जो हमें सच को देखने नहीं देता। हम व्यर्थ की चीजों में ही मुग्ध होकर के रहते हैं। यही हमारे अंदर की अज्ञानता है, जो हमें संसार में रुलाती रहती है। जिसे एक बार जीवन की सच्चाई का बोध हो जाता है, वो फिर कभी उस तरफ मुड़ कर भी नहीं देखते। सब शून्य है-सब शून्य है-सब शून्य है। एक पल लगता है और सब झटक करके चल देते हैं।

एक राजा था। प्रतिदिन सहस दल कमल उसको भेंट किया जाता था। राजभोग में मग्न रहता था। उसे अपनी राजसत्ता का बड़ा अभिमान भी था। नित्य की तरह जब एक दिन वो राज दरबार में बैठा था, माली ने उसे सहस दल कमल सौंपा। उसी कमल में उसे एक मरा हुआ भंवरा दिखाई पड़ा। मृत भवरे को देखते ही उसका चित्त फिर गया। हाय! मैं कितना अज्ञानी! कैसा अज्ञानी! मेरी दशा भी इस भंवरेे की तरह है, भंवरे से अलग नहीं है। ये भंवरा जो काट को छेदने की सामर्थ्य रखता है, गंध के मोह में रहकर के इसी में रह गया। कमल रात में मुकल्लीद हुआ, इसका दम घुटा और ये यहीं मर गया। मैं भी विषयों के रस में रमा हूं, कल मेरा दम घुटेगा, सब शून्य हो जाएगा। ये शून्य को शून्य होने से पहले मुझे अपने शब्द को पहचानना है और वो उसके भीतर वैराग्य हो गया। उसने सब एक पल में छोड़ दिया। जैसे ही छोड़ने की बात सोची, अपने बेटे को राजतिलक करना चाहा और बेटे से कहा- अब यह जगत मुझे व्यर्थ लगने लगा है। संसार मुझे शून्य दिख रहा है। मैं सत्य ब्रह्म की उपासना करना चाहता हूं। मुझे दीक्षा लेनी है, तुम राजगद्दी संभालो। बेटे ने कहा- पिताजी! जब जगत आपके लिए शून्य है, तो मेरे लिए सार्थक कैसे होगा? जिस पथ पर आप चल रहे हैं, उसी पथ पर मैं भी चलूंगा। आप जिस सत्य की उपासना करना चाहते हो, मैं भी उसी राह पर चलूंगा। इस शून्य को मुझे मत सोंपिए। कहा- बेटा! राजधर्म का पालन तो करना होगा। हमें अब राजधर्म की जरूरत नहीं, आप जिस धर्म का पालन करेंगे, वही मेरा धर्म है। जगत शुण्यम, ब्रह्म सत्यम। जगत शून्य है, ब्रह्म सत्य है और मैं और मैं केवल ब्रह्म की उपासना करूंगा, शून्य की तरफ मुझे जाने की कोई चाह नहीं। अंततः पोते का राजतिलक करके वे दीक्षित हुए और एक इतिहास के उदाहरण बन गए कि जगत की शून्यता को जानने वाले किस तरह सत्य की उपासना करते हैं। जिस पल तुम्हें शून्य दिखने लगेगा, तुम्हारे अंदर की सारी मोह-माया, तुम्हारे मन में पलने वाली आसक्ति और मूर्छा पल में दूर हो जाएगी। लेकिन जिसे शून्य ही अच्छा लगता है, वो उसी में लगा रहेगा। संत कहते हैं- शून्य को जानो।

नंबर 2: जीरो को जानो। अब जीरो करो। जीरो करो। किसको जीरो करो? किसको जीरो करना है? अपने अंदर की बुराइयों को जीरो करो। जीरो करने का मतलब- खत्म करो, समाप्त करो। देखो, मेरे अंदर कौन-कौन सी बुराइयां हैं? अभी a से y तक रोज मैंने कोई ना कोई बुराई की तरफ आप सब को इंगित किया है। अब अपने भीतर झांकिए, अपना अंतरविश्लेषण कीजिए। देखिए कि मेरे भीतर कौन-कौन सी बुराई है और उस बुराई को मैं कैसे समाप्त कर सकता हूं? उन बुराइयों का कैसे शमन हो सकता है? देखो तो सही अपने दोषों को, अपने दुर्गुणों को, अपनी दुर्बलताओं को; जीरो करो, दुख जीरो हो जाएगा। फिर कोई दुख नहीं बचेगा। लोग कहते हैं- हमें दुख से मुक्ति मिले। भैया! दुख से तो अपने आप मुक्ति मिल जाएगी, यदि तुमने दोषों और दुर्बलताओं को दूर कर लिया हो तो। दोष, दुर्बलता, दुर्गुण, ये हमारे जीवन में दुख और दुविधा उत्पन्न करते हैं। जिस पल हमने उसकी तरफ जागरूकता अपना ली, दोषों को जीरो किया, सब ठीक हो जाएगा। तय कीजिए- अब मुझे जीरो करना है। कहाँ से शुरुआत करें? बोलो- जीरो करना है कि नहीं करना? हाँ? जीरो करना है? कहाँ से शुरुआत करें? सबसे पहले किसको जीरो करना चाहते हो, बोलो। करना चाहते हो कि नहीं, ये और बता दो। हाँ? करना चाहते हो? सबसे पहले किसको जीरो करना चाहते हो? हाँ? कोई एक चीज बोलो, उसी को शुरू करते हैं। किसको जीरो करना चाहते हो, बोलो। क्या बोल रहे हैं? अहंकार को जीरो करना चाहते हैं। आज से तय कर लो, अहंकार को जीरो करने का एक सूत्र देता हूं- कहीं तुम्हारे अहम पर चोट लगे, अपने आप को अपमानित महसूस नहीं करें- पहला काम। अहंकार करना हम छोड़ेंगे, लेकिन पहले अगर मेरे लिए मेरे अहम को चोट लगे, अपने आप को अपमानित महसूस नहीं करेंगे। तो आज से तय कर सकते हैं, तय करो- किसी ने मुझे सम्मान नहीं दिया, यथोचित सम्मान नहीं दिया, मैं उसे इग्नोर करूंगा, अपने आप को अपमानित महसूस नहीं करूंगा। अभी उसने मेरा अपमान किया नहीं है लेकिन मैं खुद अपने आप को अपमानित महसूस कर रहा हूं, यह मेरे अहंकार की परिणति है। अपमान किया नहीं, मैं अपने आप को अपमानित महसूस कर रहा हूं। क्या सोच कर महसूस कर रहा हूं?- उसने मुझे सम्मान नहीं दिया। मेरी कितनी बड़ी दुर्बलता है? उसने सम्मान नहीं दिया, तो आपके पिताजी का नौकर थोड़ी है। उन्होंने नौकरी लगा रखी हो कि जब मिले, तो सम्मान करना। सम्मान करना, न करना उसकी बात है। उसने मुझे सम्मान नहीं दिया, कोई बात नहीं; मेरा अपमान नहीं किया, यही बहुत बड़ी बात है। आज से मैं अपमान को जीरो करने के क्षेत्र में पहला कदम रखूंगा। कोई मुझे सम्मान न दे, मैं अपने आप को अपमानित महसूस नहीं करूंगा। कर सकते हैं? ऐसा प्रयोग करो। मैं अपने आप को अपमानित महसूस नहीं करूंगा।

नंबर ii: मैं किसी का अपमान नहीं करूंगा। मैं किसी का अपमान नहीं करूंगा। मुझे कोई अपमानित करता है, कैसा लगता है? अपने आप को जब हम अपमानित महसूस करते हैं, तो क्या फील होता है? तकलीफ होती है? तो तुम किसी को अपमानित करोगे, उसको अच्छा लगेगा? नहीं लगेगा। तय करो- मैं अपने अहंकार की समाप्ति के क्षेत्र में पहला स्टेप: कोई मुझे सम्मान न दे, मैं अपने आप को अपमानित महसूस नहीं करूंगा। दूसरा स्टेप- कभी किसी का अपमान नहीं करूंगा। ध्यान रखना- मानी व्यक्ति ही सामने वाले का अपमान करता है, विनम्र तो सब का सत्कार करता है। विनम्रता सत्कार सिखाती है और अहंकार अपमान। तो हम अपने जीवन में कभी किसी का अपमान नहीं करेंगे, अहंकार को शून्य करने की ये प्रक्रिया है।

नंबर iii: किसी में गुण हो, उसका बहुमान करेंगे। गुणी का बहुमान करेंगे। अगर मुझे किसी में कोई अच्छाई दिखे, चाहे वो छोटा बच्चा भी हो, उसका हम बहुमान करेंगे। उसकी अच्छाई को हम ग्रहण करेंगे, प्रोत्साहित करेंगे। हाँ, तुम में ये बहुत अच्छी काबिलियत है, तुम में ये बहुत अच्छे एबिलिटी है, तुम्हारा ये बहुत अच्छा गुण है, तुम्हारी ये बहुत अच्छी अच्छाई है, मैं इसे अप्रिशिएट करता हूं। अगर तुम्हारे मन में अहंकार होगा, तुम कभी किसी का बहुमान नहीं कर सकते। अहंकारी किसी का बहुमान नहीं करता, खुद अपने मुंह से अपना गुणगान करता है और केवल अपना गुणगान चाहता है। और विनम्र व्यक्ति सदैव औरों का बहुमान करता है, दुनिया से बहुमान पाता है। बहुमान करना सीखिए। आज से किसी के अंदर कोई अच्छाई दिखेगी, कोई गुण दिखेगा, मैं उसका बहुमान करूंगा; तुम्हारा अहंकार खत्म होना शुरू हो जाएगा। तो पहली बात- कोई मुझे सम्मान न दे, मैं अपने आपको अपमानित महसूस नहीं करूंगा। दूसरी बात- मैं किसी का अपमान नहीं करूंगा। तीसरी बात- किसी में कोई गुण होगा, उसकी कद्र करूंगा, गुणी का बहुमान करूंगा और कभी अपने गुणों का मान नहीं करूंगा। ये चारों बातें हमारे अंदर आ गई, अहंकार जीरो हो गया। करना है जीरो? जीरो करना है, नहीं करना? बोलो। बस कुछ नहीं है, चार ही बातें हैं, मैं तो ज्यादा ऐसे ही नहीं बोलता। क्या करना है? क्यों? चार को अपनाना है, अहंकार जीरो। क्या हुआ? दोहरा लो चारो बातें। कोई मुझे सम्मान न दे, अपने आप को अपमानित महसूस नहीं करेंगे। कभी किसी का अपमान नहीं करेंगे। गुणी जनों का बहुमान करेंगे और कभी अपना मान नहीं करेंगे। इतनी बातें बस मन-मस्तिष्क में अगर हम बैठा ले, निश्चित: वो हमारे जीवन के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। अहंकार जीरो हो गया। और किसको-किसको जीरो करना है? बोलो। किसको जीरो करना है?

क्रोध को जीरो करना है, ईर्ष्या को जीरो करना है, विद्वेष को जीरो करना है। किसको-किसको करना है? माया को, प्रपंच को। जिसको भी जीरो करना है, सब जीरो हो सकता है, यदि तुम्हारे अंदर आत्मजागृति आ जाए तो। आत्मजागृति आए, अपने आप सब चीजें खत्म हो जाएगी। तय कीजिए- मैं अपनी बुराइयों को जीरो करूंगा और बुराइयों को जीरो करने के लिए चार बातें मैं आपको संक्षेप में कह रहा हूं। नंबर 1: बुराइयों के प्रति जागरूक होइए। बुराई है, बुराई जो भी है, उस बुराई के प्रति अपने मन में जागरूकता लाइए। तुम्हारे मन में जब तक बुराइयों के प्रति जागरूकता नहीं होगी, बुराइयां प्रश्रय पाती रहेंगी, वो आगे बढ़ती रहेगी और जिस पल तुम बुराइयों के प्रति जाग जाओगे, जागरूक हो जाओगे, बुराइयां अपना सिर नहीं उठा पाएगी, वहीं के वहीं शांत हो जाएगी। पहली बात: जागरूकता, अवेयरनेस हमारे भीतर होनी चाहिए। हम जितने-जितने जागरूक होंगे, हमारी बुराइयों का उतना-उतना शमन होगा। तो पहली बात: बुराइयों के लिए सजग रहें, दूसरी बात: उन बुराइयों को नष्ट करने के लिए संकल्प लें, संकल्पित हों। मुझे मेरे भीतर की जो भी बुराई नष्ट करना है, उसके लिए अपने आप को मन: प्राण से संकल्पित कर लीजिए। नहीं, इस बुराई को मुझे समाप्त करके ही रखना है, चाहे वह प्रवृत्तिगत हो, चाहे वह भावगत हो, दोनों प्रकार की बुराइयां हैं। हम अपने बेड हैबिट्स को भी कंट्रोल करेंगे और अपने नेगेटिव इमोशंस को भी कंट्रोल करेंगे। एकदम दृढ़ संकल्प हो, तो संकल्प से सिद्धि अपने आप होती है। बुराइयों के प्रति सजगता, बुराइयों के प्रति संकल्प और बुराइयों के प्रति सक्रियता; हमें अपने बुराइयों को जीरो करना है। उसके लिए एक्टिव बने रहो। हर पल एक्टिव रहो। हर पल एक्टिव रहो। हमारी जितनी भी धर्म आराधना है, वो बुराइयों की समाप्ति के प्रति सक्रियता का ही उदाहरण है; चाहे हम पूजा-पाठ करते हैं, चाहे हम स्वाध्याय करते हैं, चाहे हम सत्संग करते हों, चाहे हम ध्यान करते हों। हम जो भी क्रियाएं करते हैं, उन सब क्रियाओं के पीछे एक ही प्रयोजन है- अपनी बुराइयों का समन, बुराइयों के प्रति जागरूकता। अगर ये जागरूकता हमारे अंदर जग गई और हम उनके प्रति सक्रिय हो गए, तो हमारे ऊपर कोई भी बुराई हावी नहीं हो सकेगी और नंबर 4: नित्य अपनी समीक्षा कीजिए। समीक्षा कीजिए, देखिए कि मेरे अंदर की बुराइयां घटी है या नहीं? दूर हुई या नहीं? जिसे जीरो हम करना चाह रहे थे, वो जीरो हो पाया भी है या नहीं? यदि ये चारों बातें अपने साथ आ गई, तो सब चीजें जीरो अपने आप होने लगेगी। इसलिए जीरो करना सीखिए, जीरो करना शुरू करिए, जीरो को जानिए, जीरो करिए।

दो बातें हो गई, अभी दो बातें और। जीरो को जानो। संसार जीरो है, आत्मा सत्य है। जगत शून्य है, ब्रह्म सत्य है। बात आपको समझ में आई कि नहीं? पहली बात मैं कह रहा था- जीरो को जानो। आप ने जाना कि नहीं? जगत शून्यम, ब्रह्म सत्यम। संसार जीरो, आत्मा ही हमारे भीतर का सत्य है। दूसरा: जीरो करो। किसको जीरो करना है? अपनी सारी बुराइयों को जीरो करना है, खत्म करना है, निशिष करना है। उसके लिए आज से हमारी तत्परता हो जानी चाहिए। नंबर 3: जीरो बनो। जीरो बनो। मतलब जानते हो? जीरो। जीरो को शून्य भी कहते हैं पर भारत की परंपरा में जीरो पूर्णता का भी प्रतीक है। जीरो यानी वृत्त। वृत्त! वृत्त में कितना बड़ा एंगल होता है, पता है? 360 डिग्री, पूरा गोल होता है ना। जीरो कैसा बनाया जाता है? गोल। गोल यानी 360 डिग्री, 360 डिग्री यानी पूर्ण संपूर्णता का द्योतक। जीरो पूर्णता का द्योतक है, पूर्ण बनो। संसार में जितने भी प्राणी हैं, सब अपूर्ण हैं क्योंकि सब कोनों में बटे हुए हैं, सब खंडित हैं। एकमात्र प्रभु-परमात्मा ही परिपूर्ण है क्योंकि उन्होंने सब कोनों को खत्म कर दिया है। वो वृत्ताकार हो गए हैं, परिपूर्ण हो गए हैं। 360 डिग्री का एंगल है, 360 डिग्री का एंगल अपने आप में परिपूर्ण, उस परिपूर्णता की अभिव्यक्ति करना है। परिपूर्ण बनो। हिंदी में, संस्कृत में गोले को वृत्त बोलते हैं। वृत्त, हैं ना? जीरो वृत्त है और वृत्त को अगर आप देखो तो वृत्त का एक दूसरा अर्थ होता है चरित्र। हमारा वृत्त हमारे चरित्र को प्रकट करता है। तो वृत्त का दूसरा अर्थ है चरित्र। जीरो बनना है, यानी वृत्त बनना है। वृत्त बनने के लिए वृत्त को अपनाना है। अच्छे चरित्र को अपनाओ, परिपूर्ण बन जाओगे, भगवान की तरह दुनिया में पूजे जाओगे। अभी जीरो थे, सारे संसार के लिए आदर्श बन जाओगे, भगवान बन जाओगे। जीरो बनो, कौन-सा जीरो? वो वाला जीरो नहीं, जिसकी अभी मैंने चर्चा की। जीरो बनो, अपने आप को परिपूर्ण बनाओ। वृत्त सुधारो। खंडों में बटों मत, अखंड को अपनाओ। कहते हैं- ‘अखंड मंडलाकारम, ब्रह्म रूपम समातनम।’ कहते हैं- वो हमारा परम तत्व, अखंड तत्व, आकाश की तरह व्याप्त, एकदम गोलाकार मंडलाकार। वह परम तत्व है, वह परमात्मा है, जो अपने आप में परिपूर्ण है। थोड़ी इसकी दार्शनिकता की गहराई में जाना। पूर्ण बनो, वृत्त को अपने भीतर उद्घाटित करो, जीवन धन्य हो जाएगा। संसार में सब अधूरे हैं, पूरा कौन है? एकमात्र भगवान। हम सब अपूर्ण हैं। इस अपूर्ण से परिपूर्ण बनने का रास्ता है- वृत्त को सुधारो, वृत्त को धारो, अपने चरित्र को ठीक करो। अपने आचार, विचार और व्यवहार को यदि हमने सुधार लिया, जीवन बदल गया। परमात्मा ने अपने परमात्मापने को कैसे उद्घाटित किया? अपने भीतर के परम सत्य को जाना, जगत को शून्य के रूप में देखा और उस भीतर के तत्व को जैसे ही उद्घाटित किया, वे परिपूर्ण बन गए, सारे जग के आदर्श हो गए। तो जीरो को जानो, जीरो करो, जीरो बनो; नहीं तो जीरो हो जाओगे। रिजल्ट जीरो।

क्या पाया? मनुष्य जीवन जिया। भैया! ठीक, मनुष्य जीवन जिया, कितने बरस जिया? 80 बरस जिया। क्या किया? जीरो। थोड़ा सोचो! मनुष्य जीवन को पाकर के यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन के मर्म को नहीं जाना, सन्मार्ग पर खुद को नहीं लगाया, तो इस जीवन से क्या पाया? मैं आपसे एक सवाल करता हूं- आपने अपने जीवन में जीवन का एक बड़ा भाग व्यतीत कर दिया, बहुत सारी चीजें आपने पाई भी होगी; पर ऐसी क्या चीज है, जिसे आप अपने जीवन की उपलब्धि के रूप में गिनते हो? बोलो। लिस्ट बनाओ। थोड़ा 2-5-10-20 चीजें हैं? हैं कोई? ये ये ये मेरे जीवन की उपलब्धि है, तुम गिनवाओगे। महाराज! मैंने जब अपने कैरियर की शुरुआत की थी, 25 साल की उम्र में कैरियर की शुरुआत की, 5 लाख से अपने बिजनेस की शुरुआत की थी। महाराज! आज 75 का हो गया हूं और 5 लाख को मैंने 50 लाख में बदल दिया है। कम कर दिया शायद, 5 लाख को 5 करोड़ कर देना चाहिए। 5 लाख को 5 करोड़ में क्या, 50 करोड़ में बदल दिया। फिर उसके बाद? एक आदमी ने अपने करियर की शुरुआत 25 साल की उम्र में 5 लाख से की, 75 तक पहुंचते-पहुंचते उसने 50 करोड़ में बदल दिया और मर गया। पाया क्या? क्या पाया? 50 साल 5 लाख को 50 करोड़ में बदलने में लगा दिए, लेकिन अपने लिए क्या पाया? क्या? जीरो। समझ में आ रहा है? ऐसी क्या है, ऐसी कौन-सी चीज है, जिसे तुम अपने जीवन की उपलब्धि के रूप में गिन सकते हो? सब जीरो है, सब व्यर्थ है।

कहते हैं- सम्राट सिकंदर जब विश्व विजय के अभियान में निकला हुआ था, तो अपने उस अभियान में चलते-चलते एक ऐसे नगर में पहुंचा, जहाँ केवल नारियां ही नारियां थी, एक भी पुरुष नहीं था; वो भी एकदम निहत्थी और निर्द्वन्द, निहत्थी और निरस्त्र। सिकंदर के सामने ये पहला-पहला अनुभव था। उसे लड़कों से लड़ने का अभ्यास था, लेकिन अभी उसके सामने उसे चुनौती देने वाला कोई योद्धा नहीं, निरस्त्र नारियां थी; कहे भी तो क्या कहे? करें भी तो क्या करें? सिकंदर को कुछ समझ में नहीं आया, पर कुछ न कहना और कुछ न करना सिकंदर के स्वभाव के विरुद्ध था और सिकंदर ने कहा कि मुझे भूख लगी है, रोटियाँ दो। मुझे भूख लगी है, रोटियाँ दो। एक चतुर स्त्री गई और लाल कपड़े से ढककर सोने का थाल लेकर आई, सिकंदर के आगे कर दी। सिकंदर ने जैसे ही कपड़े को उठाया, देखता क्या है? उस थाल में रोटियों की जगह सोने की मोहरे हैं। सिकंदर स्तब्ध रह गया। बोले- ये क्या मजाक? क्या ये सोने की मोहरे खाई जाती है? मैंने तो रोटी मांगी थी, तुम रोटी क्यों नहीं लाई? ये मोहरे क्यों लाई? उस महिला ने सिकंदर के लिए एक ऐसी मार्मिक चोट की कि सिकंदर भी भीतर से हिल गया। कहा- महान सिकंदर! ये बात सच है कि रोटियाँ ही खाई जाती हैं, सोना नहीं खाया जाता पर मैं तुमसे यही सवाल करती हूं- क्या तुम्हारे यूनान में रोटियों की कमी थी, जो हम लोगों की रोटियाँ छीनने के लिए आ गए? क्या तुम्हारे यूनान में रोटियों की कमी थी, जो हमारी रोटियाँ छीनने के लिए निकल पड़े हो? अगर तुम्हें रोटियाँ चाहिए, तो यूनान में ही बहुत हैं। हमने सोचा- शायद! तुम्हारी भूख रोटियों की नहीं, इन्हीं की है इसलिए हमने तुम्हें दिया। सिकंदर के हाथ से थाल उसी समय गिर गई, नीचे गिर गई। कहते हैं- सिकंदर को उस नगर में जो कुछ भी करना था, सो किया और आखिरी समय उस नगर में एक शिलालेख लिखवा करके गया कि सिकंदर अबोध था, सिकंदर अबोध था, इस नगर की नारियों ने उसे बोध कर दिया। सिकंदर अबोध था, इस नगर की नारियों ने उसे बोध दे दिया। उसे समझ में आया धन, पैसा काम का नहीं है। तय है- तवा भले सोने का हो, रोटी तो गेहूं की ही होगी। हैं ना? सोने के तवे पर भी अगर पेट भरने के लिए खाना है, तो गेहूं की रोटी ही खानी होगी, अनाज की रोटी ही खानी होगी। इस सच्चाई को अगर तुम समझ लोगे, तुम्हारे जीवन की दिशा बदल जाएगी।

क्या है तुम्हारी उपलब्धि? अब तक के लिए तुमने जो कुछ भी किया, वह सब पर के लिए किया। अपने लिए करो। अपने लिए करो, अन्यथा जीरो। अभी तक अनादि काल से जीरो ही तो रहे हो, फिसड्डी रहे, फिसलते रहे, पिछड़े रहे। जब तक ज्ञान नहीं था, जब तक दिशा देने वाला नहीं था, जब तक दिशा नहीं मिली थी; तब तक अगर ऐसा हो, तो फिर भी समझ में आए। लेकिन अब सब दिशा मिल जाने के बाद भी यदि तुम सही राह न पकड़ो, तो ये बात अच्छी नहीं होती। अपना रिजल्ट सुधारो। जीरो मत बनो। जीरो बनना अच्छी बात नहीं है। इस संसार से पार उतरने के लिए हमें जीरो को समझना है। जिन चीजों को जीरो करना है, उन्हें जीरो करना है। स्वयं को जीरो बनाने का उद्यम करना है। अभी तक हम जीरो ही बने रहे, हमें जीरो को पाना है, वो हमारा गोल है, वो हमारा लक्ष्य है, वो हमारा धेह है, वो हमारा उद्देश्य है। यह हमारे अंदर अगर घटित हो गया, तो निश्चित: वो हमारेे जीवन की बड़ी उपलब्धि होगी। बंधुओं! एक लंबे समय तक, लगभग एक महीना हो गया, इस अल्फाबेट के माध्यम से हमे बहुत सारी; 26 और 4- 30, 26 हैं, a,b,c,d डबल थी और एक दिन भूमिका; पूरे 31 दिन हुए हैं। मैं समझता हूं- अगर हमने इसकेे माध्यम से अपने जीवन के अल्फाबेट को पहचान लिया, तो फिर कुछ कमी नहीं रही होगी। आज कुछ बचा नहीं, a to z पूरा हो गया। अब कुछ करने की जरूरत नहीं है। हम अपने जीवन की अल्फाबेट को समझें। अगर हमने उसे ठीक ढंग से समझ लिया, तो फिर हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं और यदि हमने उसे नहीं समझा, तो सिवाए कठिनाई के और कुछ भी नहीं है। इसलिए हम जीरो से अपने आप को ठीक करें। जीरो को जाने, जीरो करें, जीरो को पाएं, नहीं तो जीरो बनेंगे। या फिर दूसरे सेंस में लीजिए तो एक नई बात बोलता हूं- जीरो से अपने आप को हीरो बनाने का रास्ता अपनाओ। अभी तुम जीरो हो, हीरो बनो। कब बनोगे? जब सबको जीरो समझोगे। अपने अलावा जो है, सब जीरो है। उससे मोह छोड़ो, उससे माया छोड़ो, उससे आसक्ति छोड़ो, अपना मुख मोड़ो। जो अब तक रुचिकर है, उससे मुड़ो और जो अरुचिकर है, उसकी तरफ झुको, उसे अपनाओ, आत्मसात करो, अध्यात्म की साधना में जुडो, तो जीरो से हीरो बन जाओगे। दुनिया में जितने भी हीरो हैं, वे कब जीरो बनेंगे, कोई पता नहीं। देखो- ये भारत है, भारत में किस को आदर्श बनाया गया? बोलो। किसको? इस भारत में अनेक बड़े-बड़े राजा-रजवाड़े हुए, सेठ-साहूकार हुए और ऋषि-मुनि-संत भी हुए। भारत किसके नाम से जाना जाता है, राजा-रजवाड़ों के नाम से, सेठ-साहूकारों के नाम से या ऋषि-मुनि-संतों के नाम से? किसके नाम से? राजा-महाराजा तो हीरो से जीरो बन गए लेकिन संत, जिन्होंने सबको जीरो समझ कर के अपने आपको जीरो से जोड़ा, वो आज सबके हीरो बन गए हैं, महान बन गए। वो हमारे आदर्श हैं, वैसे आदर्श को हम आत्मसात करेंगे, निश्चित: वो हमारे जीवन की एक सार्थक उपलब्धि होगी। बंधुओं! a to z की बात है। बातें पूरी है, a to z की बात। बाबा जी कह रहे हैं- महाराज! एक प्रार्थना और सुना दो। हालांकि! प्रासंगिक नहीं है, फिर भी बाबा जी के कहने से मैं सुना रहा हूं कि a to z क्या है? भावना हमारी हो, हम a to z की बात को समझेंगे, तो जीवन को आगे बढ़ा पाएंगे। एक बच्चा भगवान के चरणों में जाकर के कुछ प्रार्थना कर रहा था। युवक को लगा- ये क्या बुदबुदा रहा है? नजदीक गया तो देखा कि वो भगवान को अल्फाबेट सुना रहा था- a b c d e f g h… युवक को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा- भैया! क्या कर रहे हो? बोले- प्रार्थना कर रहा हूं। बोले- ये क्या प्रार्थना? तुम भगवान को अल्फाबेट सुना रहे हो। बोले- नहीं, मैं प्रार्थना कर रहा हूं। कैसी प्रार्थना? बोले- बात ऐसी है कि मैं भगवान को a से z तक पूरी सुना देता हूं। भगवान को a to z पूरी सुना देता हूं और भगवान से कहता हूं- भगवन! मेरे हृदय में केवल भक्ति और भावना है, शब्द मेरे पास नहीं हैं। मैं इतना जानता हूं कि दुनिया की जितनी भी प्रार्थना बनी है, वो सब इसी अल्फाबेट से बनी है। मैंने पूरी अल्फाबेट आपको सुना दी, आपको जो पसंद है, वैसी प्रार्थना आप बना लो और अपना काम कर लो। जो प्रार्थना आप को पसंद हो, वो अपने मन की प्रार्थना बना लो और अपना काम कर लो। बंधुओं! इसे मैं दूसरे संदर्भ से आपसे कहूंगा, मैंने आपको a to z सब सुना दिया। a to z सब सुना दिया, अब तुम्हें तुम्हारे मतलब का जो है, उसे अपना लो और अपने जीवन को टॉप पर पहुंचा दो, अप टू डेट हो जाओ। जो अपने मतलब का हो, वो लेना लेकिन कभी गड़बड़ मत करना।

एक आदमी एक हलवाई की दुकान पर पहुंचा। हलवाई की दुकान पर पहुंचा, उससे पूछा- भैया! कलाकंद क्या भाव? उसने बोला- ये भाव। बोला- 100 ग्राम तोलो। ठीक, 100 ग्राम उसने टोला। तोलने के बाद उसने कहा- एक कोई बढ़िया पोट लाओ। पोट लाया। बोला- इसमें डालो। अच्छा! जलेबी क्या भाव? बोले- ये भाव। बोले- जलेबी भी 100 ग्राम दे दो। बोले- बालूशाही क्या भाव? बोले- ये भाव। बोले- चम-चम क्या भाव? बोले- ये भाव। बोले- बर्फी क्या भाव? बोले- ये भाव। बुंदिया क्या भाव? बोले- ये भाव। जो जो बोला सौ-सौ ग्राम डालते गया। फिर बोला- भजिया क्या भाव? ये भाव। जितने भी मीठे-नमकीन, जितने भी आइटम थे, सब के भाव पूछे और सौ-सौ ग्राम तुलवाया और सब को एक बर्तन में मिलवाया। हलवाई संकोच कर रहा है। भैया! बोले- मैं बोल रहा हूं ना, आप रखो, डालो। डाल दिया। भैया! ठीक है, कहने वाला कह रहा है, हमको डालने में क्या हानि? वो डालता गया, फिर जब सबको तुलवा के डलवा दिया, बोला- इसको मैश करो। इसको मैश करो, मिक्स करो, मिला दो। बोले- क्या कर रहा है? बोले- मिलाओ ना, मैं कह रहा हूं। सब मिला दिया, मिलाने के बाद बोला- अब क्या करूं? बोले- इसमें से 50 ग्राम मुझे दो। 50 ग्राम मुझे दो। हलवाई ने अपना माथा ठोक लिया। भैया! ऐसा मत करना। a to z से सब बातें हैं, मिलाकर के कहो 50 ग्राम दो, तो कुछ काम में नहीं आए। कोई एक को चुनना, या तो a को चुनना या b को चुनना या c को चुनना। सब को चुनेगा तो मामला गड़बड़ हो जाएगा। सही दिशा में हम चलेंगे, सही परिणाम हमारे साथ आएंगे। एक लंबे समय तक ये पूरी श्रृंखला चली है। आप सब लोगों ने इसका आनंद लिया है। आगे आने वाले दिनों से फिर एक नई श्रृंखला लेंगे और अपने जीवन को आगे बढ़ाएंगे।

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