क्या धर्म विज्ञान से पीछे रह गया है?

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क्या धर्म विज्ञान से पीछे रह गया है?

धर्म और विज्ञान, दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं| दोनों की दिशाओं में विभिन्नता है| विज्ञान की निष्पत्तियाँ प्रयोग आधारित है वहीं धर्म अनुभव के आधार पर अपनी निष्पत्तियाँ बनाता है| प्रयोग आधारित निष्पत्तियाँ समय काल के अनुरूप बदलती रहती हैं| जैसे हम एटॉमिक सिस्टम के बारे में समझें, जहाँ डाल्टन के परमाणुवाद से लेकर, अभी हाकिंस जिसने गॉड पार्टिकल की खोज की थी, यहाँ तक आयें तो परमाणु की अवधारणा में कितना अन्तर आ गया है| विज्ञान की पुरानी सारी निष्पत्तियाँ रोज बदलती हैं, निष्कर्ष रोज बदलते हैं| जिसमे विज्ञान की अपनी प्रगति होती है| वहीं दूसरी तरफ अनुभव सदैव एक सा रहता है| जैसे कि एक बच्चा हो या बूढ़ा, सबका अनुभव है| तो अध्यात्म हमेशा अनुभव आधारित निष्पत्तियाँ देता है| तो ये धर्म से जो कुछ भी कहा गया, अनुभव एवं प्रत्यक्ष ज्ञान के बल पर कहा गया

विज्ञान और धर्मग्रन्थों में भिन्नताएँ क्यों?

धर्मशास्त्रों में जो लिखा है, वह अपनी जगह बिल्कुल सही लिखा है और विज्ञान की जो निष्पत्तियाँ हैं वो भी अपनी जगह सही हैं| तो फिर इन दोनों में ये फेर क्यों? देखा जाए तो ये फेर हमारी समझ का है| विज्ञान को जो दिखा, उसने वो लिखा और विज्ञान ने जो देखा, वो लिमिटेड देखा | जो विजिबल(द्रश्य) है, उसने वो देखा | वहीँ हमारे ऋषि-मुनियों, सन्तों ने इनविजिबल(अद्रश्य) को देखा | हर विज़िबल फाॅर्स के पीछे एक इनविजिबल फाॅर्स होती है, जिसे केवल अनुभव से जाना जाता है और विज्ञान उसे नहीं पकड़ पाता |

इसे हम एक उदाहरण से समझते हैं:

पंखा चल रहा है, ये विज़िबल है| लेकिन ये पंखा पॉवर से चल रहा है, जो की दिखती नहीं है | हाँ, इसका अनुभव किया जा सकता है वो ही इसके संपर्क में आने पर|  तो उदाहरण के आधार पर हम कह सकते हैं  कि विज्ञान की पहुँच केवल द्रश्य तक ही है और धर्म अद्रश्य तक अपनी पहुँच रखता है| इसलिए धर्म विज्ञान से बहुत ऊपर है और यही कारण है कि धर्म की अवधारणाएँ कभी बदलती नहीं हैं| धर्म की बहुत सारी व्याख्याएँ ऐसी हैं जो विज्ञान से नहीं मिलती, क्योंकि हमारे धर्मशास्त्रों में जो लिखा है वो पूरा नहीं है|  हमारे बहुत सारे धर्मशास्त्र नष्ट हो गये हैं| धर्मग्रन्थों में जो सूचनाएँ उपलब्ध हैं, उनकी व्याख्याएँ हमारे पास बहुत थोड़ी हैं| इसलिए हम जो व्याख्याएँ कर पा रहे हैं, वो पूरी नहीं कर पा रहे हैं| अगर हमारे शास्त्र आज उपलब्ध होते तो शायद हमारी सूचनाएँ अलग होतीं|

क्या विज्ञान धर्म से ऊपर हो गया है?

“अब तो विज्ञान भी ऐसा मानने लगा है तो क्या विज्ञान धर्म से ऊपर हो गया है”:
ऐसा कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि विज्ञान आगे बढ़ गया है, पर हमारे यहाँ एक परम्परा रही कि जो जिस भाषा को जानता है, उसे उसी भाषा में समझायें| अनाड़ी को अनाड़ी की भाषा में समझाओ तब समझ आयेगा| आज के लोग विज्ञान-२ की रट लगाते हैं, सब विज्ञानवादी हैं| अब तो वैज्ञानिक युग भी चला गया है, टेक्नोलॉजी(तकनीकी) का जमाना आ गया है| तकनीकी, विज्ञान से दो कदम आगे है| इसलिए हम सभी को विज्ञान की रट लगाने की बजाए यह समझना चाहिए वो साइंस है और अध्यात्म सुपरसाइंस है| हम इसे जिस दिन समझ जायेंगे, उस दिन हमारे जीवन की दशा और दिशा अपने आप परिवर्तित हो जायेगी और जीवन धन्य हो जायेगा|

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