स्त्रियों का पुनर्विवाह एक अभिशाप

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स्त्रियों के लिए पुनर्विवाह का निषेध क्यों?

दिगम्बर जैन मतानुसार स्त्री जिस पुरुष के साथ एक बार विवाह के बंधन में बंध जाती है, उसी पुरुष को अपना सर्वस्व देती है और उसी पुरुष के लिए पूर्ण समर्पित होती है| विषम परिस्थिति आने पर भी स्त्रियाँ पुनर्विवाह के लिए अग्रसर नहीं होती हैं और कर्म सिद्धांत पर अटूट श्रद्धान रखते हुए, परिस्थितियों का पूरी निडरता के साथ सामना करती हैं| ऐसी महान शीलवती स्त्रियाँ ही समाज में आदर का पात्र बनती हैं| पति की मृत्यु के बाद पुनर्विवाह से पापानुबंधी पाप का बन्ध होता है, जो चिरकाल के लिए अनंत दुखदायी होता है | जबकि ऐसी स्थिति में ब्रह्मचर्य व्रत के धारण से महान पुण्य का बंध होता है जो संसार को काटने के लिये परम उपादेय है |

पति की मृत्यु हो जाने पर अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत करें?

दुर्भाग्यवश अगर पति की अल्प उम्र में मृत्यु हो जाती है तो इसे अपना पाप कर्म का उदय मानकर ब्रह्मचर्य पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए| आवश्यकतानुसार घर और बच्चों की जिम्मेदारियों का धैर्य एवं समता के साथ निर्वाह करना चाहिए| जिम्मेदारियों से निवृत्त हो जाने पर यथाशक्ति अपना समय धर्म–ध्यान में समर्पित करना चाहिए|

क्या विधवा स्त्रियों को अपशकुन की दृष्टि से देखना चाहिए ?

ब्रह्मचर्य व्रत को धारण कर सादगी से रहने वाली स्त्री को जैन धर्म में सती का रूप दिया गया है| अतः ऐसी स्त्रियाँ कोई अपशकुन नहीं बल्कि हर कार्य के लिए सर्वत्र कल्याणकारी होती हैं| इन्हें नीच दृष्टि से देखना सर्वथा अनुचित है|

परिवार और समाज का ऐसी स्त्रियों के लिए क्या कर्त्तव्य बनता है?

किसी स्त्री के साथ ऐसी घटना घट जाने पर समाज और परिवार को उसका पूर्ण सहयोग करना चाहिए, उसके लिए उत्तम रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए और अपनी संवेदनाओं को प्रकट करते हुए उसके जीवन यापन में यथासंभव सहयोग देना चाहिये|

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