जीवन के दो पक्ष- प्रकाश और अंधकार
प्रकाश और अंधकार दोनों का अस्तित्व एक दूसरे से है- प्रकाश है तो अंधेरा नहीं और अंधेरा है तो प्रकाश नहीं। कहीं उजाला है तो उसकी चमक के साथ पीछे छिपा हुआ अंधेरा भी है क्योंकि वो ही उजाले का अस्तित्व है। परछाई एक स्वाभाविक घटना है जो कि अंधकार के साथ ही दिखती है। परछाई को देखकर उसे अंधकार समझना हमारी नासमझी है अपितु वह तो प्रकाश की उपस्थिति का ध्योतक है। कहा गया है-
‘अंधेरे ने अंधेरे से कहा रोशनी से कर लो किनारा,
अगर किसी दिन रोशनी आ गई तो मिटेगा नामों-निशाँ हमारा-तुम्हारा।’
क्षणिक अनुभव
प्रकाश और अंधकार, फूल और काँटे की तरह जीवन में भी सुख-दुःख, लाभ-हानि, राग-द्वेष, सफलता-असफलता जैसे क्षणिक अनुभव हमारे साथ बने रहते हैं। एक पक्ष को देखकर जीवन और विचारों को सीमित करने की जगह दोनों पक्षों को सापेक्षता के साथ स्वीकारना चाहिए। हर क्षण इस बात का अहसास रहे कि कोई भी अनुभव स्थाई नहीं है। हमारे आसपास की छोटी-छोटी बातों में बड़ी-बड़ी प्रेरणाएँ मिल जाती है, हर काँटे के पास एक सुंदर, सुगंधित फूल और सुंदर फूल के पास काँटा दिखाई देता है।
सकारात्मक प्रेरणा के स्रोत
हम बचपन से ही एक प्रार्थना भी बोलते हैं –
असतो मा सदगमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय॥ मृत्योर्मामृतम् गमय॥
इसका अर्थ- हे भगवन! हमें असत्य नहीं अपितु सत्य के मार्ग की ओर ले चलो। अज्ञान रूपी अंधकार का अंत कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ज्योति की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो मतलब जीवन पर्यन्त अच्छे काम करके मृत्यु के बाद भी हमें याद किया जाए। इस तरह की भावना निरंतर करने से मन में सकारात्मक तरंगे रहती है। जब तक उजाला हैं हम उजाले का उपयोग करें और इससे पहले कि अंधेरा आए उससे जूझने के लिए सकारात्मक तरंगो का अध्यात्म रूपी दीपक भी हमेशा अपने साथ रखने का प्रयास करें। उजाले का उपयोग करते समय यह भी ध्यान रहे कि-
‘यह रोशनी है हकीकत में एक छल लोगों,
जैसे जल में दिखता हुआ एक महल लोगों।
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