अहं से ही अहंकार

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अहंकार

– झुकोगे तो मजबूत बनोगे, अकड़ोगे तो टूट जाओगे।

– अहं क्या है? अपने आपको सच्चा और अपने आपको अच्छा मानने की वृत्ति। अपने ही विषय में सोचने की वृत्ति । अपने आपको ही प्रदर्शित करने की वृत्ति।

– जिसमे जितना अहं होता है, वह उतना अहंकारी होता है और उतना ही मान चाहता है। जितना मान चाहता है, प्रसंग न मिलने पर अपने को उतना ही अपमानित महसूस करता है जो की अन्दर से अशांति एवं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करता है।

– दूसरा कोई अपमानित करे या न करे, पर जब व्यक्ति में अहं होता है, तो वह उसे स्वयं ही अपमानित महसूस कराने लगता है।

– अपनी प्रशंसा सुनकर सब सुखी होते हैं, धर्मी तो वह है जो दूसरे की प्रशंसा सुनकर सुखी हो।

सीख:

सम्मान की चाह न करो, अपमान को बर्दाश्त करो और सबका समता भाव से सम्मान करो।

Compiled by Shrish Jain, Pune

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