आकिंचन्य
आकिंचन्य मतलब खाली हो जाना।खाली होने से अभिप्राय है कि अंदर बाहर सब तरफ से त्याग करना। अगर त्याग कर दिया और मन से ‘अपना अपना’ नहीं गया तो सब बेकार है। मैंने इतना दान दिया, मैंने इतनी सारी सम्पति त्याग दी, ये मेरा सम्बन्धी था। ये मैंने और मेरे का अंतर्मन से त्याग करना ही उत्तम आकिंचन धर्म है।
जीवन का यथार्थ:
आकिंचन्य की अनुभूति वही कर सकता है। जिसे अपने आत्मा के स्वरुप का ज्ञान होता है। अध्यात्म की साधना का चरम रूप आकिंचन्य है । मेरा कुछ भी नहीं है, ये अनुभूति ही जीवन का यथार्थ है।
आकिंचन्य धर्म का पालन कैसे करे:
त्याग के बाद त्याग के ममत्व को भी त्याग देना ही उत्तम आकिंचन है। जब अंदर बाहर सब त्याग देते हैं बिल्कुल खाली हो जाते हैं, उसी से खुलापन मिलता है और मिलता है उन्मुक्त आकाश। साधना का चरम रूप है आकिंचन। शरीर, सम्पत्ति, सामग्री और सम्बन्धी ये चारों उत्तम आकिंचन में बाधक हैं। इनमे उलझनें वाला ही भारी होता है और भारी चीज तो पानी में डूबती ही है। इसलिए अगर इस संसार रूपी सागर से पार होना है तो हल्के बनना है यानि उत्तम आकिंचन धर्म का पालन करना चाहिए।
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