उत्तम त्याग

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उत्तम त्याग 

आज बात त्याग की हैं और त्याग के दो रूप हैं एक सर्वस्व और दूसरा अंश। जो सर्वस्व को त्यागता हैं, वह साधु होता हैं, साधुता हमारे भीतर तभी अभिव्यक्त होती हैं, प्रकट होती हैं, जब हम सर्वस्व त्यागते हैं। सर्वस्व में धन-संपत्ति, घर-परिवार तो हैं ही, शरीर का मोह भी छूटता हैं। सब त्यागने के बाद हम अपने आप से अपना संबंध जोड़ पाते हैं, वह सर्वस्व त्याग। साधु के जीवन की बात हैं, जिसकी आप रोज पूजा करते हैं लेकिन आप गृहस्थ हो, गृहस्थ सर्वस्व नहीं त्याग सकता क्योंकि उसके लिए उसकी गृहस्थी हैं, उसके ऊपर उसके स्वयं का, परिवार का, कुटुंब का, समाज का और देश का बहुत बड़ा दायित्व हैं, जिम्मेदारी हैं, कर्तव्य हैं, जिसका उसे अनुपालन करना हैं, सब का निर्वाह करना हैं तो हमारे यहाँ गृहस्थों के लिए कहा गया, अंश का त्याग करो, सर्वस्व को त्यागने का नाम त्याग हैं और अंश को छोड़ने का नाम दान हैं। और आज आप गृहस्थों के लिए त्याग की बात करते हुए कहा गया- 

त्यागो दानं।

दान ही त्याग हैं, तुम्हें दान करना चाहिए। क्यों करना चाहिए? किसी पर एहसान करने के लिए नहीं।

अनुग्रहार्थं स्वस्यतिसर्गो दानं।

स्व-पर के अनुग्रह के लिए अपने धन का त्याग करना दान हैं। महाराज! दान करते हैं तो पर का अनुग्रह तो दिखाई पड़ता हैं, स्व का अनुग्रह नहीं दिखाई देता। धन का त्याग करते हैं आप, धन का दान करते हैं। क्यों करते हैं दान? इसलिए कि कोई कितना भी विशुद्ध क्यों ना हो, धन उपार्जन में किसी ना किसी प्रकार का पाप तो होता ही हैं, नैतिकता से कमा सकते हो, प्रामाणिकता से कमा सकते हो पर निष्पाप होकर धन नहीं कमा सकते। ध्यान रखना, नैतिकता, सच्चाई, प्रामाणिकता अपनी जगह हैं और निष्पाप वृत्ति अपनी जगह हैं। जैन धर्म कहता हैं पाप अत्यंत सूक्ष्म हैं। तुम्हें अपने जीवन व्यवहार में किसी ना किसी प्रकार की हिंसा के दौर से गुजरना ही पड़ता हैं, अर्थ उपार्जन में किसी ने किसी प्रकार की हिंसा होगी, यतकिंचित झूठ का पुट मिलेगा, वह जो हिंसा सूक्ष्मतम हिंसा हैं, उसके भागीदार तुम हो। इसके लिए जैन परंपरा में एक शब्द आता हैं, सावद्य। सावद्य यानि सूक्ष्मजीव की भी विराधना ना हो। आप व्यापार करते हो, ईमानदारी से करते हो, नैतिकता से करते हो लेकिन जिस चीज का आप व्यापार करें, उसके उत्पादन से लेकर ग्राहक तक पहुंचाने में, उसके ट्रांसपोर्टेशन में कोई न कोई जीव हिंसा हुई हैं कि नहीं, उसके भागीदार आप हो। आप उद्योग चलाते हैं, उस उद्योग में हिंसा हो रही कि नहीं, आप उसके भागीदार हो। आप नौकरी करते हैं, सेवा करते हैं तो अपने कर्तव्य के पालन में आपको बहुत सारे निर्णय लेने पड़ते हैं, क्रियाएं करनी पड़ती हैं। ततसंबंधी आपकी भागदौड़ में यतकिंचित जो हिंसा होती हैं, उसके भागीदार आप हो। तुमने अपने द्वारा धन तो जोड़ा लेकिन उसके साथ जो अर्जित पाप हैं वो  कहां जाएगा तो कहते हैं जब तुम दान करते हो तो उससे तुम्हारे पापों का प्रक्षालन होता हैं, ये स्वउपकार हैं। दान करते हो तो तुम्हारी धन की आसक्ति मिटती हैं, यह स्वउपकार हैं। दान करते हो और तुम्हारे मन में उदारता आती हैं, यह स्वउपकार हैं। दान करते हो और तुम्हारे मन में अहोभाव आता हैं ये स्वउपकार हैं। स्व और पर के उपकार की भावना से अपने धन का त्याग करना दान हैं और यह दान तुम्हारा धर्म हैं।

प्रत्येक व्यक्ति को कुछ दान करना चाहिए, पर प्रायः देखने में आता हैं कि आदमी के अंदर दान की बात आते ही घबराहट होने लगती हैं, जल्दी से लोग दान करने का मन नहीं बनाते। एक सज्जन ने एक बार कहा, वह सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं तो समाज के कार्य करते हैं तो समाज के कार्य करने के लिए पैसे तो चाहिए। बोले महाराज! मैं अगर कभी निकलता हूँ और मुझे लोग देखते हैं तो दाएं-बाएं होने लगते हैं, कही  कुछ मांग ना ले। क्या मनोवृति हैं? बल्कि ऐसे व्यक्ति को देखकर के मन में प्रसन्नता आनी चाहिए कि चलो एक अच्छा आदमी आया और मेरे लिए कुछ पुण्य कमाने का अवसर लेकर आया हैं। जिसके हृदय में उदारता होगी, वह ऐसे आदमी को गले लगाएगा और जिसके ह्रदय में कृपणता होगी वो हमेशा उससे दाएं-बाएं झांकेगा। आज चार बातें मैं आपसे करूंगा-

  • कमाना

 

  • गंवाना
  • बचाना
  • लगाना

 

 

कमाना- धन कमाना तुम्हारी मजबूरी हैं। अपने जीविका के लिए, अपने जीविकोपार्जन के लिए, अपने जीवन के निर्वाह के लिए तुम्हें धन कमाना हैं। आप कमाइये। हमारे यहां गृहस्थों को धन उपार्जन की खुली छूट दी गई, पैसा कमाओ उसके बिना तुम्हारी गृहस्थी की गाड़ी नहीं चलेगी। बिना पानी के नाव कैसे चलेगी, नीचे पानी का प्रवाह हैं, कमाइये, कोई दिक्कत नहीं हैं पर कितना कमाए, कैसे कमाये और कमाकर क्या करें? कितना कमाये तो हमारी संस्कृति का आदर्श हैं-

साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय।

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाए।

इतना कमाओ, जितने से तुम अपना जीवन सुख पूर्वक गुजार लो और किसी जरूरतमंद के लिए सहायता कर सको, पर्याप्त हैं। कुछ दिन पहले मैंने कहा था, अपनी जरूरत के लिए कमाओ और उसके बाद भी यदि तुम्हारे कमाने की इच्छा हैं तो जरूरतमंदों के लिए कमाओ। पहला लक्ष्य अपनी जरूरतों की पूर्ति। उसके बाद मैं तुम्हें कहता हूँ, अक्लमंद मत बैठो, तुम में क्षमता हैं, तुम में कौशल हैं, प्रतिभा हैं, दक्षता हैं। कमाओ, पर किसके लिए? जरूरतमंदों के लिए। केवल अपने लिए कमाओगे, कमाओगे, कमाओगे तो एक दिन सब गँवा के जाओगे, हाथ में कुछ हासिल होने वाला नहीं हैं। कमाओ, अपने लिए कमाओ, अपनों के लिए कमाओ, जरूरतमंदों के लिए कमाओ। कमाने का लक्ष्य यही होता हैं, आप अपने मन से पूछो, आप जो कमा रहे हो, किसके लिए कमा रहे हो? अपने लिए, अपनी जरूरतों के लिए, अपनों के लिये  या जरूरतमंदों के लिए या केवल कमाने के लिए। कुछ लोग कमाने के लिए कमाते हैं, किस के लिये कमा रहे हो, यह सवाल तुम्हें अपने मन से पूछना हैं। क्या उत्तर आ रहा हैं? जरूरत के लिए, जरूरतमंदों के लिए या केवल कमाने के लिए। क्या? अपने लिए। कितना जरूरत हैं भैया बता दो, कितनी रोटी खाते होंगे 4-6, बाकी मैं तो जानता हूँ सेठों को तो खाना नसीब होता ही नहीं। खा ही नहीं पाते बेचारे, उनको तो रूखे फुलके और उबली हुई सब्जी खा करके संतुष्ट होना पड़ता हैं। कहां? अपने आप से पूछो कि मैं कमा रहा हूँ, मेरे कमाने का उद्देश्य क्या हैं। कमाना बुरा नहीं हैं, क्यों कमा रहे हो। बहुत कठिन हैं, मनुष्य के मन में जो धन की आसक्ति होती हैं, वह बड़ी प्रगाढ़ होती हैं।

एक बार मैंने कहा था कि वासना से भी ज्यादा बड़ा नशा पैसे का होता हैं, पैसे का नशा वासना के नशे से भी ज्यादा बड़ा होता हैं क्योंकि वासना मनुष्य के मन में एक उम्र पलने के बाद, एक उम्र पकने के बाद आती हैं और एक उम्र ढलने के बाद वह खत्म भी हो जाती हैं लेकिन पैसे का नशा तो दूध पीते बच्चे से लेकर कब्र में पांव लटकने तक बना रहता हैं। मौत सामने हो तब भी पैसे का मोह नहीं छूटता, बहुत कठिन हैं। इसको दूर करना हैं। पहले सवाल पर विचार करो, कमाना हैं तो किस लिए कमाना? आप पाओगे, यहां उपस्थित लोगों में बहुत कम लोग होंगे जो अपनी जरूरतों के लिए कमा रहे हो क्योंकि जो तुम कमा रहे हो, उसके थोड़े हिस्से में तुम्हारी जरूरत पूरी हो जाएगी। ज्यादा नहीं हैं, बहुत सरप्लस हैं, जितनी तुम्हारी कमाई हैं उसका एक छोटा हिस्सा तुम्हारी जरूरतों की पूर्ति करने के लिए पर्याप्त हैं, उसमें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं हैं। जरूरत पूरी करने के लिए जो तुम कमा रहे हो, हिसाब लगाओ, कितने प्रतिशत से काम हो जाएगा तो अब क्या करो, जरूरतमंदों के लिए कमा लो। हम तो केवल कमाने के लिए कमा रहे हैं, कमाइये, पाप भी कमाओगे और जिस दिन दुनिया से जाओगे, खाली हाथ जाओगे। क्या करोगे? कमाया, खूब कमाया पर क्या किए, सब छोड़ कर चले गए।

मैंने आपसे कहा, कमाइये, जरूरत के लिए कमाइये और अगर तुम्हारे पास इतना अनुकूल संयोग हैं कि तुम थोड़े प्रयासों से बहुत कमा रहे हो तो फिर जरुरतमंदो के लिए कमाइये, कमाने के लिए मत कमाइये क्योंकि वह छूट जाएगा और कमाना ही हैं तो धन कमाने के साथ थोड़ा पुण्य कमाइये, जो आपको निहाल करेगा। तुम्हारे द्वारा जोड़ा गया धन तो यही छूट जाएगा, पुण्य भवान्तरों में साथ जाता हैं, इसे कभी मत भूलना और आज जो तुम्हे कमाने के लिए अनुकूल बुद्धि मिली, अनुकूल संयोग मिला, तुम्हारे अंदर का कौशल विकसित हुआ, तुम्हारे अंदर दक्षता आई, तुम पढ़-लिख कर योग्य  हो गए, अच्छी गुडविल पा गए। यह किसने दिया? यह तुम्हारे पुण्य ने ही दिया हैं। तो भाई कमा रहे हो तो केवल पैसा मत कमाओ, पुण्य भी कमाओ। ध्यान रखना, जरूरत के लिए कमाना पाप हैं और जरूरतमंदों के लिए कमाना पुण्य हैं। तय करो, तुम क्या करते हो? जरूरत के लिए कमाना पाप हैं, बहुत ध्यान से समझना, यह पुण्य की क्रिया नहीं हैं, जो दुकानदारी करते हो, धंधा-पानी करते हो। जरूरत के लिये कमाना पाप हैं और जरूरतमंदों के लिए कमाना पुण्य हैं।

कमाइये, मैं तो कहता हूँ, कमाने के साथ-साथ पुण्य भी कमाइये। केवल कमा कर के सीमित मत होइये। जीवन की दिशा मोड़िये, आज मेरे पास प्रतिभा हैं, मेरे पास क्षमता हैं, आज मेरा प्रभाव हैं, मैं बहुत थोड़े से पैसों से कमा सकता हूँ और दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो बड़े अशक्त हैं, जिनके पास बुद्धि नहीं, जिनके पास शरीर नहीं, जिनके पास सत नहीं, जिनके पास कोई सुविधा नहीं, जो अपने बूते कुछ करने के लायक नहीं हैं तो प्रकृति ने मुझे अनुकूल संयोग दिए हैं। मेरे पुण्य से मुझे इतना अच्छा संयोग मिला हैं तो क्यों ना मैं अपने योग का प्रयोग करुं और उनके हाथ मजबूत करूं, जो कमजोर हैं। अपना हाथ उनके लिए बढ़ाओ, जिनके लिए आवश्यकता हैं तो कमाओ पर क्या कमाना हैं, पुण्य या पैसा? पैसा तो खूब कमाए, पुण्य कमाना चाहते हो तो ध्यान रखो पैसा जोड़ने में जितना रस आता हैं, पैसा छोड़ने में भी उतना ही रस आना चाहिए। बताओ, ईमानदारी से। पैसा कमाने में जितना तुम्हें रस हैं, पैसा छोड़ने में उतना रस होता हैं। अब सोच रहे हो कि इस साल चौमासा हो गया, खूब आप को दान करना पड़ा और जब दान किए तो क्या सोचते हो इस साल खर्चा बढ़ गया कि पुण्य बढ़ा? ईमानदारी से बोलना। मुझे खुश करने के लिए बोल रहे हो, ईमानदारी से बोलो तो यही कहेगा, इस साल खर्चा ज्यादा हो गया। ये स्वर क्यों निकलते हैं? क्योंकि तुम्हें केवल पैसा और पैसे का महत्व समझ में आता हैं, परमार्थ का मूल्य तुमने जाना नहीं और जो परमार्थ के मूल्य को पहचानता हैं, वह कहता हैं इस साल खर्चा बढ़ा नहीं पुण्य बढ़ा हैं, मेरा सौभाग्य बढ़ा हैं। पैसा तो मैं जीवन भर कमाता हूँ, पुण्य कमाने के अवसर तो यदा-कदा ही आते हैं और जीवन में जब भी ऐसा अवसर आए तो चूकना मत, वही तुम्हारी असली कमाई हैं, वही तुम्हारी असली संपदा हैं, जो भवान्तरो में तुम्हारे साथ जाने वाली हैं। इसलिए पहला सूत्र कमाए, जरूरत के लिए, जरूरतमंदों के लिए और केवल पैसा न कमाये, पुण्य कमाये और ऐसा नहीं हैं तो जो कमाने के लिए कमाते हैं, उनका क्या हाल हैं। वो एक दिन सब गँवा के जाते हैं। खूब कमाया और कमा-कमा कर रख लिया, ना खाया, ना खिलाया, ना उपभोग किया, ना उपयोग किया। बहुत से ऐसे लोग हैं, बड़े कंजूस लोग होते हैं, जोड़ते जाते हैं, जोड़ते जाते हैं पर जिंदगी में एक पाई का उपयोग नहीं करते, पैसा उनके लिए नशा हो जाता हैं। हमारे यहाँ कहावत हैं कि चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। जोड़ते जाओ, जोड़ते जाओ तो भैया ठीक अंत क्या होगा? तुमने कमाया, केवल कमाया, जोड़-जोड़ कर रखा और एक दिन छोड़कर चले गए तो सब गँवा दिए। तुम्हारे द्वारा कमाया हुआ पैसा अगर तुम्हारे साथ जाए तो तुम जी भर कर के कमाओ। तुम्हारे द्वारा कमाया गया पैसा, तुम्हारे बेटों के काम आए तो तुम जी भर के कमाओ पर तुम्हारे द्वारा कमाया गया पैसा ना तुम्हारे साथ जाए, ना तुम्हारे बेटों के काम आए और तुम्हें यही गँवा कर के जाना पड़े तो फिर क्या मतलब। बोलो, आप जितनी भी संपत्ति जोड़ते हो, अगर अपनी संतान के लिए छोड़ कर जाओ तो संतान उसका उपभोग करेगी, यह सुनिश्चित हैं। अगर वह योग्य होगी तो कई गुना बढ़ा लेगी और अगर हुनर शून्य होगी तो सब मिटा देगी और एक बहुत बड़ा बदलाव और ट्रेंड मैने देखा। पुराने समय में एक पिता के अनेक संतान होती थी और हर संतान के मन में होता था कि मुझे कुछ पैरेंटल प्रॉपर्टी मिले। लेकिन एक अच्छाई के रूप में देखता हूँ आज की नई पीढ़ी के लिए सब सेल्फ मेड होना चाहते हैं और आज के जितने भी युवा हैं वह कहते हैं कि हमें अपने माँ-बाप की संपत्ति से कोई मतलब नहीं हैं, उन्होंने हमें पढ़ा-लिखा कर योग्य बना दिया, हम सेल्फमेड हैं, हम अपना काम कर लेंगे। संतान नहीं चाहती कि तुम हमारे लिए छोड़ो तो आप गंवाते क्यों हो। पैसे का उपयोग नहीं करना, पैसे का उपभोग नहीं करना, पैसा गंवाना हैं।

गंवाना- एक तो इस तरह से गंवाते हो और पैसे को फिजूल खर्च करना, गंवाना हैं। तुमने मेहनत से कमाया हैं, पसीना बहाया हैं, उसे गंवाओ  मत। कमाये हुए पैसे से भी कुछ कमाओ। क्या बोल रहा हूँ? गंवाओ नहीं, तुमने पैसा कमाया, गँवा दिया, सुंदरी के चक्कर में। आजकल ऐसे लोग बहुत हैं, जो पाप में पैसा ऐसे ही आंख मूंदकर के बहाते हैं। आजकल का एक कल्चर बहुत तेजी से विकसित हो गया, पार्टी कल्चर। यंगस्टर्स में तो इसके प्रति बहुत ज्यादा रुझान हैं, रोज-रोज पार्टी, शराब में, शबाब में, कबाब में, पैसा बर्बाद करते हैं, यह गंवाना हैं या नहीं, wastage हैं। धन कमाया हैं, मेहनत से कमाया हैं, उसे कभी गंवाओ मत, बर्बाद मत करो। मुझे स्मरण आ रहा हैं, घनश्याम दास बिरला के द्वारा लिखे गए उस पत्र का, जिसे उन्होंने कभी अपने पुत्र बसंत बिरला को लिखा था। यह पत्र आज से लगभग 12 वर्ष पहले मैंने एक बार पढ़ा था जो पंजाब केसरी नामक पत्र में प्रकाशित हुआ था और उसके बाद वायरल हुआ। इस पत्र की कॉपी पूरे देश में चली, इसकी ऑडियो क्लिप भी लोगों ने बहुत फैलाया, बहुत प्रेरक हैं। वो आज के संदर्भ में बहुत ही प्रासंगिक हैं।

घनश्याम दास बिरला ने जो पत्र अपने बेटे को लिखा, उससे पता लगता हैं कि धन के प्रति हमारी दृष्टि क्या होनी चाहिए। उन्होंने लिखा कि प्रिय बसंत, यह पत्र मैं लिख रहा हूँ, अनुभव से लिख रहा हूँ, अच्छे से पढ़ना और चिंतन करना।

हमारे पास जो धन हैं, अच्छे साधन हैं, इनका सेवा में उपयोग किया जाए तब तो ठीक अन्यथा यह शैतान की औजार हैं। धन एक शक्ति हैं, इसका दुरुपयोग भी हो सकता हैं, इसका ध्यान रखना। जनक ने सेवा की थी, रावण ने उसका दुरुपयोग किया था, इस बात को कभी मत भूलना। एक बात और ध्यान रखना हमारे पास जो धन हैं, वह हमारी नहीं जनता की धरोहर हैं, हम तो उसके केवल ट्रस्टी ही हैं, अपनी संतान को भी ऐसे ही सीख देना अन्यथा वे व्यसनों में लग जाएंगे, पाप में पड़ेंगे और अपनी संपत्ति को बर्बाद कर देंगे। ऐसी कुसंतानों को अपना धन कभी मत देना, इसकी जगह अपने धन को गरीबों में बांट देना। नित्य व्यायाम करना, उससे  शरीर स्वस्थ रहता हैं, काम करने की क्षमता आती हैं। भोजन को औषधि समझकर ग्रहण करना और ईश्वर को कभी मत भूलना, वह सद्बुद्धि देता हैं। यह वाक्य घनश्याम दास बिरला के अपने उद्योगपति युवा पुत्र बसंत बिरला को लिखे गये। पत्र के कंटेंट को देखकर यह पता नहीं लगता कि कोई उद्योगपति पिता अपने उद्योगपति पुत्र को पत्र लिख रहा हैं अपितु ऐसा दिखता हैं कोई संत किसी उद्योगपति युवक को संबोध रहा हैं।

यह हमारी संस्कृति हैं, हमारे पास जो धन हैं, वह हमारे पास हैं पर हमारा नहीं हैं कि हम उसका चाहे जैसा उपयोग करें, यह जनता की धरोहर हैं। ट्रस्टीशिप की भावना अपने भीतर विकसित कीजिए। मेरे हाथ में उस  का प्रबंध हैं, मैं उसको मिस यूज नहीं करूंगा, मैं व्यर्थ में नहीं गंवाऊंगा। एक पाई भी व्यर्थ में मत गंवाओ, उसको सार्थक बनाओ। फिजूलखर्च से बचो और अपने दो पल की खुशी के लिए तुम पैसा पानी में बहा देते हो। यदि वही पैसा किसी अच्छे काम में लगा दो तो न जाने कितने लोगों का जीवन खुशियों से भर उठेगा, उसे सोचो। तुम्हारा ये कर्तव्य होता हैं, तुम्हारे में ऐसी संवेदना होनी चाहिए कि मैं पैसा कमाऊँ तो गँवाऊँ नहीं। पैसे का सदव्यय करें, गँवा कर के क्या होगा? पाप में गँवाओगे। एक बात मैं आपसे पूछता हूँ, आपने पैसा कमाया, अपनी अनुकूल बुद्धि के बल पर, अपनी कुशलता के बल पर, जिसमें पुण्य की वेकिंग रही, जिसने आपको यह सारी फैसिलिटी दी। आपने पैसा कमाया तो प्रकारांतर से यह सब आपके पुण्य का फल हैं, अब उस पैसे को कमाकर अगर आप आप पाप का कार्य करोगे तो क्या होगा?

रामलाल का रुपया रामलाल से लो और श्याम लाल को दो तो रामलाल खुश होगा कि नाराज। एक आदमी तुम्हारा पैसा खा ले एक बार तो दोबारा उसको अपनी देहरी पर चढ़ने दोगे, ईमानदारी से बोलना। नहीं दोगे ना। जिस पुण्य के संयोग से सारी अनुकूलता पाकर तुम ने पैसा कमाया, जिस पुण्य की कृपा से तुम ने पैसा कमाया, उस पुण्य को तुमने पाप में लगाया तो रामलाल का रुपया श्याम लाल के पास गया कि नहीं। अब दोबारा रामलाल की कृपा तुम पर होगी? सब कंगाल बन रहे हो, जो लोग पाप में पैसा लगाते हो, वो लोग अपने भावी दरिद्रता का प्रबंध कर रहे हैं, सब कंगाल बनेंगे, दरिद्र बनेंगे। अभी अपने अभिमान में जी रहे हैं कि मेरे पास बहुत पैसा, मेरा बड़ा रुतबा, मेरा बड़ा ठाठ हैं, कल भीख मांगना पड़ेगा। क्योंकि आप अपने पुण्य को खपा रहे हैं, कमा कहाँ रहे हैं, बर्बाद कर रहे हैं, गँवा रहे हैं। धन ही नहीं गंवाया, अपना पुण्य भी गंवाया। जो तुम्हे भीतर से खोखला करने वाला हैं तो कमाने के बाद गंवाना कतई नहीं। गंवाना कभी नहीं। गंवाने का कोई काम ही नहीं हैं, गंवाने का कोई नाम ही नहीं हैं। मेहनत करके कमाया हैं तो कमायेंगे अपने लिए, अपनों के लिए, जरूरत के लिए, जरूरतमंदों के लिए और कमाये हुए पैसे को गंवाएंगे नहीं बचाएंगे।

नंबर तीन, बचाना। कमाना, गंवाना, बचाना। किस को बचाना? पैसे को बचाना। फिजूल खर्च कभी मत करना, एक-एक पाई तुम बचाना, वेस्ट मत करो, हमें किसी चीज को व्यर्थ नहीं करना। धन, संसाधन कुछ भी वेस्टेज होना ही नहीं चाहिए। हमारी संस्कृति रही हैं मितव्ययता की। मितव्ययी बनो, फिजूलखर्ची मत करो। कुछ लोग आजकल बहुत पैसा कमाते हैं और पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। अरे भैया, व्यर्थ क्यों बहाओ। पानी तो ऐसे ही बहता हैं। पैसे को क्यों बहा रहे हो? अगर तुम्हारे पास इतना हैं तो थोड़ी उदारता अपनाओ। उसे उन लोगों तक पहुंचा दो, जो तरस रहे हैं, पर तुम बहा रहे हो व्यर्थ में। नहीं, बचाना हैं। बचाना हैं, किसके लिए बचाना हैं? ये एक अहम  सवाल। पैसा तो आप सब लोग बचाते हैं, यहां कौन-कौन ऐसा व्यक्ति हैं, जिसने सेविंग अकाउंट नहीं खोला। एकाध आदमी हैं, जिसका कोई सेविंग अकाउंट नहीं, हमको छोड़कर, हम लोगों को छोड़कर। बचत सब बनाते हैं, बनाइये, मुझे ऐतराज़ नहीं। मैं तो कह रहा हूँ, बचाओ, पैसा बचाओ और पैसा बचाकर औरों को बचाओ। किस लिए बचाओ? बचा के रखने के लिए नहीं, औरों को बचाने के लिए बचाओ। खुद को बचाओ औरों को बचाओ। पैसा कमाइये, फिजूलखर्ची से बचिये और उसे बचाइये, अपव्यय नहीं होना चाहिए। मेरे संपर्क में ऐसे अनेक लोग हैं, जो कमाते हैं, एक पैसा फालतू खर्चा नहीं करते हैं।

करोड़पति व्यक्ति, अभी रतलाम में ही आए और वह इंदौर से by बस आए। इंदौर तक ट्रेन से और इंदौर से बस से आये। किसी ने बोला, आप टैक्सी कर लेते, कैपेबल थे, टैक्सी कर सकते थे। वो बोले, जब चार्टेड बस चलती हैं, मैं टैक्सी से क्यों आऊं। आराम से आया हूँ। जो काम हमारा ₹400 में हो सकता हैं उसके लिए हम ₹4000 का खर्चा क्यों करें? हैं सोच आपके अंदर? हैं सोच? अरे नहीं, हम तो बस से चलेंगे, हमारी हेटी हो जाएगी। क्या सोच हैं? मेरे संपर्क में एक व्यक्ति हैं, अरबपति व्यक्ति अमेरिका रहते हैं, भारत भी रहते हैं और यहां पर उन्होंने साधारण सी कार रखी हैं, ₹500000 की। किसी ने कहा, भैया यह कार आप के स्टेटस के अनुकूल नहीं हैं। अरबपति व्यक्ति 5 लाख की कार पर चलते हैं, भारत में और उनसे किसी ने कहा, यह कार आप के स्टेटस के अनुकूल नहीं हैं। उन्होंने बहुत अच्छा जवाब दिया, कार से मेरा स्टेटस नहीं मुझसे कार का स्टेटस हैं। मैं अच्छी कार में बैठूंगा तो मेरा अच्छा स्टेटस होगा, यह धारणा गलत हैं। मैं अच्छा जीवन जीऊं तो जिस में बैठूं, उसमें मेरा स्टेटस अच्छा होगा। सब मुझे जानते हैं, मैं क्या हूँ और वह आदमी जब दान करने का मौका आये, 1-2 करोड़ के दान की बात भी आये तो खुले हाथ करते हैं, बोलते हैं, अच्छे कार्य के लिए मेरा नाम आप कभी भी ले लो। पैसे को मैं गलत जगह नहीं लगाऊंगा, मैं पैसा बचाता हूँ, save money। money को बचाइये, बर्बाद मत कीजिए और अंततः यह हमारे राष्ट्र का धन हैं, जनता की धरोहर हैं, अकेले तुम्हारा हक़ नहीं हैं कि तुम उसको चाहे जैसे बहाओ, बर्बाद करो।

आजकल बर्बाद करने की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। तुम लोगों के शादी-विवाह आदि में सब बर्बादी कर रहे हैं। पहले लोग शादी-विवाह में खर्च करते थे तो कैश देते थे, वह बचता था, जेवर देते थे तो वो बचता था। आजकल जो खर्चा होता हैं, कैटरिंग में होता हैं, होटल में होता हैं, डेकोरेशन में होता हैं, लड़का-लड़की के हाथ में कुछ नहीं। पता लगा दो करोड़ की शादी पर क्या हाल हैं? सब यूँ ही चला गया, लोग खाये-पिए और आलोचना किए और चल दिए। अरे देखो, बहुत पैसा हो गया, खूब दिखा रहा हैं, नंबर 2 का पैसा हैं, ये और सुनना पड़ता हैं। होता हैं, बोलो। तो क्या कर रहे हो, गँवा रहे हो कि बचा रहे हो।

सूत्र बनाईये आज से, आज के त्याग धर्म के दिन यह संदेश मैं आपको दे रहा हूँ, पैसा कमाना हैं, गंवाना नहीं, बचाना हैं। खूब पैसा कमाओ और खूब बचाओ। महाराज! अभी तक तो आप कहते थे, कमाओ मत, आज क्या हो गया। नहीं, बिलकुल सही कह रहा हूँ। कमाओ, अपने लिए कमाओ, जरूरतमंदों के लिए कमाओ, बचाओ, अब बचा के क्या करो?

लगानालगाओ, औरों को बचाने में लगाओ, धर्म को बढ़ाने में लगाओ, संस्कृति को बढ़ाने में लगाओ, मानवता की रक्षा में लगाओ, प्राणियों के कल्याण में  लगाओ, जनता के उद्धार में लगाओ तब पैसे का सदुपयोग हैं। हमारे यहां अपरिग्रह का आदर्श बहुत उच्च आदर्श हैं, जिसमे कहा गया कि धन जितना जरूरत उतना कमाओ और उसके बाद भी यदि तुम कमाते हो तो धन का संग्रह करो, उसे परिग्रह मत बनने दो।

संग्रह और परिग्रह में क्या अंतर हैं, जोड़ कर रखे रखना परिग्रह हैं और धन जोड़ कर उसे औरों के अनूग्रह में लगा देना संग्रह हैं। धन का सही जगह विनियोजन करो, वह तुम्हारा संग्रह हैं, परिग्रह नहीं। नहीं तो चिपक के बैठ जाते हैं बहुत से लोग, जिनके पास पैसा तो अपार हैं पर नंबर 1 के कंजूस। ना खाते हैं और ना खिलाते हैं। कंजूस तो कंजूस ही होता हैं। हमारे गुरु नाम गुरु ज्ञान सागर जी महाराज ने एक जगह बहुत अच्छी बात लिखी, उन्होंने लिखा कि कंजूस से बड़ा दानी इस दुनिया में कोई नहीं क्योंकि वह अपनी सारी संपत्ति बिना हाथ लगाए दे जाता हैं। दानी तो हाथ से देता हैं, कंजूस बिना हाथ लगाए देता हैं। बचाओ, केवल बचा कर मत रखो, बचाये हुए धन का सदुपयोग करो। लगाओ, अगर तुम्हारे पास सरप्लस पैसा हैं तो लगाने में बिल्कुल मत सोचो। ठीक हैं, जब कुएँ में स्त्रोत हैं तो पानी उड़ेलने में क्या दिक्कत। टंकी के पानी को खाली होने का भय रहता हैं, कुआँ कभी सूखता नहीं, क्योंकि उसका स्रोत हैं। बचा  हैं, उसे लगाओ और औरो को बचाने में लगाओ। कभी मौका आये तो चूकना नहीं। ठीक हैं, कल कमा लेंगे, और कमा लेंगे, आज मेरे पास हैं, ठीक हैं कल की क्या चिंता। जो कल देगा, वह कल की व्यवस्था देगा। बंधुओं! आप लोगों को कमाने का तो खूब अनुभव हैं और आपने कमाने का सुख भी भोगा होगा, हालांकि सुख हैं या दु:ख हैं। यह तो आप जानते हो की कमाने में कितना सुख होता हैं, ये आप जानते हो। कमाकर के सुख महसूस करो, बात अलग हैं, पर कमाने के लिए तो अपना सारा सुख त्यागना पड़ता हैं। बोलो, करना पड़ता हैं कि नहीं? पसीना बहाते हो तब कमाते हो। तो सारे सुख त्याग कर के तुम कमाते हो, कमाने का क्या सुख हैं, वह तुम जानो लेकिन जिस दिन बचाने के बाद लगाने के सुख का अनुभव करने लगोगे, जीवन की दिशा और दशा परिवर्तित हो जाएगी।

एक बड़ा कंजूस आदमी था, पैसा बहुत था पर कभी किसी को कुछ दिया नहीं। एक जगह एक अस्पताल खोलने की योजना कुछ लोगों ने बनाई और सोचा की कलेक्शन करें। छोटा सा अस्पताल उनको खोलना था और  ₹1 करोड़ का लक्ष्य था जिससे हमारे गांव में एक छोटी सी व्यवस्था बन जाए। युवकों ने एक युक्ति बनाई, योजना बनाई और सबसे पहले उसी व्यक्ति के घर चले गये, जो कंजूस था। उस आदमी ने मिलने से इंकार कर दिया। युवकों ने नौकर से बोला, नहीं जाओ और बोलो एक बार मिलने आए हैं, हम केवल आपसे मिलने आए हैं। ठीक हैं केवल मिलियेगा और कोई बात मत करिएगा। ठीक हैं, गया। बैठने के लिए भी नहीं बोला और बोला क्या बात हैं। युवक बोले, कुछ नहीं हम लोग एक अस्पताल बनाने की योजना से आये हैं तो कंजूस बोला, भैया मेरे पास पैसे की बात मत करना, मैं दान में भरोसा नहीं करता। युवक बोले, हम आपसे दान नहीं लेने आये, हम आपके नाम का केवल 1 दिन का उपयोग करने आये हैं। कंजूस बोला, मेरे नाम का क्या उपयोग? पर्ची दिखाई और बोले हम पर्ची लेकर आए हैं और इसमें सबसे ऊपर आपका नाम लिखकर आपके नाम पर ₹500000 की रकम लिखना चाहते हैं। हम आपसे कुछ मांग नहीं रहे, केवल आपके नाम का यूज करेंगे और केवल 1 दिन के लिए यूज करेंगे, कल हम इसको फाड़ कर अलग कर देंगे, आपको ₹1 नहीं देना हैं। कंजूस ने पहले सोचा, फ्री में नाम हो जाए, अच्छी बात हैं फिर अंदर शंका हुई, देखो तुम लोग कल चैलेंज नहीं कर दो, एक एफिडेविट लिख कर दो कि हम लोग केवल आपके नाम का उपयोग करने के लिये नाम लिख रहे हैं, कोई क्लेम नहीं करेंगे। युवकों ने शपथ-पत्र लिखकर दे दिया, कंजूस ने एफिडेविट ले लिया। अब निकले, बाजार में गये, जबरदस्त चंदा। उनका एक करोड़ का टारगेट था और डेढ़ करोड़  से ऊपर आ गया, अरे उसने ₹500000 दिया तो जो लाख देने वाला था, वह दो लाख दिया और जो दो लाख देने वाला था उसने चार लाख दिया। लोग बोले, उसने पांच दिया जिसने आज दिन तक पांच पैसा नहीं दिया। सब बहुत खुश। अगले दिन तय कार्यक्रम के अनुसार वे सब लोग उसका नाम उसे वापस करने के लिए गए, जैसे ही सूचना मिली कि वे लोग आए हैं, वह खुद दरवाजे तक लेने आए, बिठाया, सबको बढ़िया दूध पिलाया। सब लोगों ने सोचा ये हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? पहली बार तो बैठने को नहीं बोला, आज दूध पिला रहा हैं और दूध पिलाने के बाद जैसे ही उन्होंने कहा कि आज हम आपको धन्यवाद देने आए हैं और आपका नाम वापस करने आये हैं। उसने कहा, नहीं, तुम लोगों को धन्यवाद देने की जरूरत नहीं, धन्यवाद तो मैं तुम्हें दे रहा हूँ, धन्यवाद तो मैं देना चाहता हूँ। सबको लगा ये क्या हो गया, कौन सा जादू हो गया? कंजूस बोला, मैं तुम्हें धन्यवाद देना चाहता हूँ, कल मैंने जीवन में जो अनुभव किया, वह मेरे जीवन का पहला अनुभव था। मैंने अब तक केवल कमाने का सुख देखा था, आज पहली बार मैंने महसूस किया कि लगाने का क्या सुख होता हैं। जीवन में पहली बार मैंने महसूस किया कि लगाने का क्या सुख होता हैं। मैंने तुम्हें केवल नाम के लिए बोला और मेरे पास सैकड़ो लोगों के बधाई संदेश आ गए, लोगो ने धन्यवाद दे दिया। सेठ साहब, आपने क्या कर लिया, गजब कर लिया, आपने गजब कर लिया, गजब कर लिया, आपको धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद। उसने कहा करोडो जोड़कर जो मैं नहीं पाया, ₹500000 नाम के लिए देकर के पाया। मैं अभिभूत हूँ, मुझे आज समझ में आ गया कि कमाने से ज्यादा मजा लगाने का हैं। मेरे पास पैसा बचा हैं और ₹500000 की गड्डी निकाल करके उनको दी और कहा ₹500000 ले जाओ और जरूरत पड़े तो आप सबसे पहले मेरे ही दरवाजे पर आना।

यह सोच हैं, सीखो लगाना, कमाने का मजा तो सब ने लिया, लगाने का। ध्यान रखना, पैसा कमाने वाले लोगों को, जिनके पास पैसा हो लोग उन्हें जानते हैं, जिनके पास पैसा होता हैं लोग उन्हें  पहचानते हैं लेकिन जो पैसे को लगाते हैं, लोग उन्हें चाहते हैं। बोलो, क्या चाहते हो? लोग तुम्हें पहचाने या लोग तुम्हें चाहे? क्या? चाहे। तो फ्री में नहीं चाहेंगे, लगाओ। महाराज! आप तो कोई दूसरा उपाय बता दो। यहाँ भी नाम के लिए ले लो, उनका काम हो जाएगा पर तुम्हारा काम नहीं बनेगा। अपने जीवन के मर्म को पहचानिए, अपने धर्म को पहचानिए, जब मौका आये लगाने में मत चूकिए। बहुत जरूरत हैं समाज में, सभी एक से नहीं होते, अगर तुम सक्षम हो तो तुम्हारी सक्षम होने की सार्थकता तभी हैं जब तुम किसी अक्षम को सक्षम बना सको। हर व्यक्ति संकल्प ले मैं अपने जीवन में जब तक मैं समर्थ रहूँगा, 1-2 असमर्थ को समर्थ बनाने का उपक्रम करता रहूँगा। मेरी जो संचित निधि हैं उसका एक हिस्सा अच्छे कार्य में लगाने में कभी नहीं संकोच करूंगा। मुझे लगाना ही हैं। कायदे से तो कम से कम 25% दान करना चाहिए, नहीं हैं तो कम से कम 10% का दान तो करो, सब सेविंग नहीं, जितनी तुम्हारी कमाई हैं। 100 रुपया कमाया हैं तो 90 पर तुम्हारा अधिकार हैं, टैक्स देने के बाद। जो तुम्हारी नेट इनकम हैं टैक्स देने के बाद, टैक्स में चोरी मत करना, वह राष्ट्र की सेवा हैं, तुम्हारा दायित्व हैं, उससे सरकार तुम्हें सुविधाएं देती हैं। ₹100 तुमने कमाया, जो तुम्हारी नेट प्रॉफिट हैं तो उसमे 90 तुम्हारा हैं, 10 परमार्थ का हैं, यह सोच अपने भीतर लाओ। लगाओ, कुछ नहीं होना, किसी के साथ आज तक नहीं गया और ना जायेगा।

कल मुझे एक क्लिप दिखाई किसी ने, बहुत जबरदस्त क्लिप थी। एक करोड़पति पिता ने अपने बेटे से मरणासन्न घडी में निवेदन किया कि बेटे मेरी एक अंतिम इच्छा तू पूरी कर देना। बेटा बोला-क्या? अपना एक मोजा दिया, यह मोजा जब मैं मरूंगा तो मेरे पैरों में लगा देना। बेटे ने कहा,  छोटी सी इच्छा हैं। मेरे पिताजी की इच्छा की पूर्ति तो मैं करूंगा। थोड़े दिन बाद पिता मर गया और उसे अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया, उसे सफेद कफन उड़ा दिया गया और जब चिता पर लिटाया गया तो उससे पहले कफन भी उतार लिया गया और जब कफ़न उतारा गया तो मौजा था। उसने कहा, ये मेरे पिता की इच्छा हैं, मौजा नहीं उतारना। बोले, ये हो नहीं सकता, कायदे के विरुद्ध हैं। दाह संस्कार में तो एक धागा भी शरीर में नहीं होना चाहिए, यह मौजा कैसे रहेगा। सारे बिरादरी के लोग इकट्ठे हो गए हो गये और बोले मौजा तो उतारना पड़ेगा। वह बोला, मेरे पिताजी की इच्छा थी तो पहनाना पड़ेगा। बात बढ़ गई और इसी बीच एक व्यक्ति आया और उसने एक पत्र उस युवक के हाथ में थमाया और बोला, इसे पढ़ो, इसे पढ़ो। युवक ने पत्र लिया, पत्र उसके पिता का था और उसमें लिखा था बेटे, मैंने अपनी वसीयत में तुझे अपनी सारी संपत्ति दी, यह अंतिम नसीहत दे रहा हूँ कि देख करोड़ों जोड़ने के बाद एक मौजा भी मेरे चिता के साथ नहीं जा रहा हैं, तो ये धन तेरे साथ कहां जाएगा, इसका विचार कर लेना। कुछ भी जाने वाला नहीं हैं तो किसके लिये बचा रहे हो? अरे किसी को बचा लो तो जीवन धन्य हो जाएगा। यह प्रयास होना चाहिए।

आज त्याग धर्म का दिन हैं, संकल्प लीजिए कि मैं अपने कमाई का 10% दान में जरूर दूँगा, जहाँ आवश्यकता होगी वहाँ दूँगा, संकल्प लीजिए। आज जीव दया के लिए आप लोगों ने काफी अच्छी राशि दी। जैन परंपरा में त्याग धर्म के दिन लोग दान करते हैं, अच्छी राशि बोली पर यह पर्याप्त नहीं। पूरे देश के लोगों से मैं कहूँगा, जीव दया के लिए काम करो, जो अभय दान देता हैं, उसकी अपमृत्यु टलती हैं, तुम एक के प्राण बचाओगे, क्या पता कौन सा पुण्य आएगा जो तुम्हारे लिए सहारा बन जाए। एक आदमी भी इस सभा में ना हो और जो घर बैठे कार्यक्रम को सुन रहे हो वो ना हो जो आज जीव दया के लिए कोई दान ना दे।

चार बातें मैंने आपसे कही हैं- कमाना, गंवाना, बचाना और लगाना तो बस कमा करके बचा लो और बचा करके लगा दो। नहीं तो गंवाना तो हैं ही, गँवा के तो जाना ही हैं। अरे भाई धन ही नहीं जीवन भी गँवा दोगे और अभी तक तो तुमने यही किया हैं, अनंत जीवन तुमने धन-वैभव और मोह-माया में पड़कर के गँवा दिया। अब तो अपने आप को पहचानो, अपनी आत्मा को बचाओ और अपने धन को सही रास्ते पर लगाओ और जीवन को धन्य बना लो। इससे पहले यह तुम्हारा जीवन जाए, अपने धन का सदुपयोग करके अपने आपको धन्य कर लो अन्यथा निधन तो होना ही हैं। निधन होने के पहले अपने आप को धन्य बनाओ, यह हमारा मार्ग हैं, उस दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश कीजिए अन्यथा हमारे हाथ में कुछ नहीं होगा।

नीतिकारों ने कहा हैं कि लक्ष्मी के 4 पुत्र हैं, धन को लक्ष्मी कहा जाता हैं। तो लक्ष्मी के 4 पुत्र हैं- दान, राजा, तस्कर और अग्नि। जिसके घर पहले पुत्र का सम्मान होता हैं, उसके ऊपर तीनों का कोई प्रकोप नहीं होता और जिसके घर लक्ष्मी के पहले पुत्र का सम्मान नहीं होता, अपमान होता हैं, उसके तीनो पुत्र नाराज हो जाते हैं यानी दान का सत्कार होगा तो राजभय नहीं होगा, कोई टैक्स का चक्कर तुम्हारे ऊपर नहीं आएगा, कोई संकट तुम्हारे ऊपर नहीं आएगा। तुम्हारे पास अगर दान का भाव होगा तो तुम्हारे यहां चोरी कभी नहीं होगी और तुम्हारे लिए दान का भाव होता रहेगा, दान करते रहोगे तो कभी कोई अग्निकांड नहीं होगा, तुम्हारा धर्म नष्ट नहीं होगा, जीवन धन्य होगा तो दान करो, उदारता अपनाओ, दान करने वाला टैक्स भी देता हैं। क्यों? हम दान जब कर रहे हैं तो राष्ट्र के लिए अपना योगदान भी करें। दान और योगदान साथ-साथ चलना चाहिए, योगदान करें। आज दान की बात मैंने आपसे की, दान आप करेंगे, जिन कार्यों के लिए बताया गया, जीव-रक्षा के लिए आप दान कीजिए। दान भी दीजिए, योगदान भी दीजिए। बोलिये, परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जय।

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