उन्नत मानसः उन्नत जीवन

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उन्नत मानसः उन्नत जीवन

शांतम तुष्टम पवित्रं च सानंदनम इति तत्वतः।

जीवनम् जीवनम् प्राहो भारतीय सुसंस्कृतम्।।

कल जिस कारिका से मैंने अपनी बात की शुरुआत की थी। भारतीय संस्कृति में उसी जीवन को जीवन कहा गया है जिसमे शांति हो, तुष्टि हो, पवित्रता हो और आनंद हो। सवाल शांति का है। हर व्यक्ति आज शांति की चाह रखता है पर शांति उससे कोसों दूर है। कल मैंने कुछ बात की थी कि हम शांति कैसे पाएं। यह बड़ा अहम प्रश्न है। जब कभी भी हम शांति की बात सोचते हैं अपनी अशांति के बारे में विचार आता है। यह लगता है कि मेरे जो हालात हैं वह मेरी अशांति के कारण हैं। परिस्थितियों के कारण मुझे अशांति है और प्रायः लोग ऐसा सोचते हैं कि परिस्थिति बदल जाएगी तो मैं शांति प्राप्त कर लूंगा। आप अपने मन का अंतःविश्लेषण करें कि जीवन में अशांति किन-किन स्थितियों में आती है और उसका समाधान क्या है। मेरे हिसाब से मनुष्य की अशांति के चार कारण हैं। विपरीत परिस्थितियां, प्रतिक्रिया, भय और अहम। इन चार वजहों से मनुष्य अशांत होता है। थोड़ा हम देखें कि संसार में एक भी प्राणी ऐसा है जो इनसे बच सकता है? जहां तक विपरीत परिस्थितियों का सवाल है हर इंसान के साथ होती है।

एक बार एक युवक ने मुझसे सवाल किया बोला महाराज सामने पहाड़ खड़ा हो कोई रास्ता नहीं दिख रहा हो, चारों ओर अंधेरा हो, मन में हताशा के बादल छाए हो, अपने आप को एकदम लाचार निरुपाय महसूस करते हो वैसी स्थिति में क्या करें? तो मैंने कहा जब भी तुम्हारे सामने अंधेरा हो अंधेरे को कोसने की बजाए सुबह होने की प्रतीक्षा करो। जब भी तुम्हारे सामने अंधेरा हो, पहाड़ हो तो उससे टकराने की बजाए उसे पार करने का रास्ता ढूंढो। कितना भी बड़ा पहाड़ हो उसे पार किया जा सकता है। कितना भी सघन अंधेरा हो वह उजाले में परिवर्तित होता है। बशर्ते हमारे अंदर उतना पेशेंस हो, वैसी समझ हो और इस तरह की दृष्टि हो। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसके जीवन में कोई प्रतिकूल परिस्थिति नहीं आती लेकिन हम जब भी प्रतिकूल  परिस्थिति आए कोशिश करें कि इस स्थिति को बदलने की क्या संभावना है। यदि बदलने की संभावना है तो हम पूरी ताकत लगाएं और जब हमें ऐसा लगने लगे की ऐसी स्थिति में जीना मेरी मजबूरी है तब उसे स्वीकार करें। एक चुनौती के रूप में स्वीकार करें और अपनी कुशलता से उसे एक उपलब्धि में परिवर्तित कर दें। प्रतिकूल परिस्थिति में भी आप अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं। विपत्ति में भी संपत्ति के भागीदार बन सकते हैं स्थितियां चाहे जैसी  हो।

एक विचरक ने बहुत अच्छी बात लिखी कि तुम्हारे पास दो रुपए हो तो एक रुपए से एक फूल खरीदो  और दूसरे रुपए से खरीदो रोटी। रोटी तुम्हें जिंदगी देगी और फूल देगा तुम्हें जीने की कला। क्या है जीने की कला? कांटों से घिरे रहने के बाद भी खिला रहना यह जीने की कला है। फूल को देखो कांटों से घिरा है फिर भी खिला है। हम अपने जीवन में ऐसी छोटीछोटी बातों से घबरा जाते हैं और मनुष्य हिम्मत हार बैठता है, हताशा से भर जाता है, डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। वैसी घड़ी में अपने मन को कैसे समझाएं? रात को दिन में बदलने की ताकत हमारे पास नहीं है लेकिन रात का दिन जैसा उपयोग करने की क्षमता हमारे पास है। यदि रात में हम दीया जलाएं, अपने भीतर की शक्ति को जगाएं, अपनी सारी चेतना को एक जगह केंद्रित करें तो रात में भी दिन जैसा काम हम कर सकते हैं। जीवन में आई विपत्ति को टालने का सामर्थ्य हमारे पास भले ना हो लेकिन विपत्ति में भी हमारे मन को संभालने की क्षमता हमारे पास है। और मन को संभाल लिए तो विपत्ति भी हमारे लिए संपत्ति बन सकती है। वह क्षमता विकसित होनी चाहिए। कैसे विकसित करें? बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है। अपने आप को कैसे आगे बढ़ाए मैं तो यह कहता हूं कि जब तक मनुष्य के जीवन में विपत्तियां नहीं आती तब तक वह अंदर से मजबूत नहीं बनता। विपत्ति मनुष्य को मजबूत बनाती है यदि उसे जीवन की समझ हो तो।

जब हथौड़ी कांच पर पड़ती है तो कांच चकनाचूर हो जाता है और वही हथौड़ी सोने पर पड़ती है तो सोना दमक उठता है। जिन्हें जीवन की समझ है वह विपत्ति के प्रहार से सोने की भांति दमकते हैं और जिन्हें जीवन की समझ नहीं वह कांच की भांति टूट जाते हैं। संत कहते हैं कांच की भांति टूटो मत सोने की भांति दमकना सीखो। राजस्थान में आने के बाद में मैंने एक बात देखी कि प्रायः सर्दियों के समय में पेड़ों को कांटछांट किया जाता है और एक था ठूंठ के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है। मैंने लोगों से पूछा कि यह कांटछांट क्यों करते हैं?  बोले महाराज जी इनको जितना काटा जाता है पेड़ उतने बढ़ते हैं। तो मैंने समझा कितना बड़ा जीवन का सूत्र है कि जीवन में जितना विरोध होंगे विकास की संभावनाएं उतनी बढ़ेगी। तुम अवरोधों को देखकर हिम्मत मत हारो। विकास की संभावनाओं को तलाशो और अपने जीवन को आगे बढ़ाने की कोशिश करो।

कुछ सूत्र में आपको दे रहा हूं। सबसे पहली बात जब परिस्थितियां मेरे अनुकूल ना हो तो मैं क्या करूं?

प्रतिकूल की अनुकूल व्याख्या करना शुरु कर दो, परिस्थितियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल दो बुरा भी अच्छा लगने लगेगा। हमें कोई दिक्कत नहीं होगी।

भारत के राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन जिस समय राष्ट्रपति थे एक बार अमेरिका गए। अमेरिका में उस समय राष्ट्रपति मि कैनेडी थे। अचानक मौसम बिगड़ जाने के कारण उनका विमान पहले ही उतार लिया गया और वह सड़क मार्ग से सीधे वाइट हाउस पहुंचे। प्रोटोकॉल के तहत उनके सारे स्वागतसत्कार की व्यवस्था धरी रह गई। कैनेडी साहब ने अपनी तरफ से खेद व्यक्त करते हुए कहा कि परिस्थितियों के अनुकूल नहीं होने के कारण हम आपका समुचित सत्कार नहीं कर पाए इसका हमें खेद है। राधाकृष्णन ने जो जवाब दिया वह बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा– “Never mind Mr president, we can not change the  event but certainly change our attitude towards them”. “राष्ट्रपति महोदय आप खेद ना करें, हम परिस्थितियों को भले ना बदल सके लेकिन परिस्थितियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को जरूर बदल सकते हैं

आप अपने दृष्टिकोण को बदलने की क्षमता अपने भीतर क्यों विकसित नहीं करते? जिस दिन बदल लोगे उसी दिन जीवन का ढंग बदल जाएगा।

एक बहन जी मेरे पास आई। बड़ी दुखी थी। बोली मेरे पति बिल्कुल धर्म नहीं करते। महाराज बहुत दुख होता है। मैं सोचती हूं कि वह धर्म में आगे बढ़ें। मुझे भी बड़ी अनुकूलता होगी। बड़ी तकलीफ होती है। महाराज कहां फंस गई। हमने कहा ठीक है। तुम्हारा पति धर्म नहीं करता अच्छी बात है पर यह बताओ कोई नशा तो नहीं करता? बोली महाराज सुपारी भी नहीं खाते। मैंने बोला तुम्हें तो नहीं रोकता? बोली महाराज मेरे लिए खुली छूट है। बड़े अच्छे हैं, मैं शंका समाधान में आती हूं तो रोटी भी अपने हाथ से निकाल कर खा लेते हैं। तुम्हारी भावनाओं की कद्र करते हैं? बोली महाराज उसमें कोई कमी नहीं है। तुम्हारी रिक्वायरमेंट पूरी करते हैं? महाराज आगे से आगे पूरी हो जाती है। पैसे कमाते हैं कि नहीं? बोली महाराज वह सब तो आपके आशीर्वाद से ठीक है। और कोई बात? बोली महाराज वैसे तो देवता है। तो हमने कहा सुनो भगवान के चरणों में एक नारियल चढ़ाओ। कहो है भगवान बड़े पुण्य से ऐसा पति मिला है। तुम एक बात को पकड़ कर के अपने मन को दुखी कर रही हो। थोड़ा सोचो कि आज तुम्हारा पति यदि  ख़ुद धर्म नहीं कर रहा है और तुम्हें भी धर्म करने से रोकता होता तो क्या होता? यदि तुम्हारा पति शराबी या व्यभिचारी होता तो तुम्हारा क्या होता? यदि तुम्हारा पति कमाऊ नहीं होता तो तुम्हारा क्या होता? तुम्हारा पति बड़ा गुस्सैल होता तो तुम्हारा क्या होता? तुम्हारा पति तुम्हारी भावनाओं की कद्र नहीं करता तो तुम्हारा क्या होता? और रोज तुम्हारे साथ लड़ाई झगड़ा कर रहा होता तो क्या होता? और तुमने क्या किया एक कमी को पकड़ लिया। सारी अच्छाइयों पर पानी फिर गया। एक सीख लीजिए जब भी मेरे जीवन में कोई प्रतिकूल परिस्थितियां, प्रसंग आएं मैं उसकी व्याख्या अनुकूल करूंगा। उसमें अच्छाई देखूंगा। उसके प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल लूंगा। दृष्टिकोण के बदलते ही बुरा भी अच्छा लगने लगता है। बदल लो।

एक सज्जन थे। उनका ट्रांसफर हो रहा था। जहां ट्रांसफर होने वाला था वहां वह जाना नहीं चाह रहे थे। सोच रहे थे यहां पर धर्म ध्यान हैं, साधु संतों का समागम है, बड़े अच्छे से रह रहे हैं वहां जाएंगे पता नहीं सारी अनुकूलता मिलेगी नहीं मिलेगी। उस बात को लेकर बड़े दुखी मेरे पास आए और बोले महाराज जी ऐसा कुछ आशीर्वाद दो कि मेरा ट्रांसफर रुक जाए। हमने बोला भैया कोई जबरदस्ती थोड़े ही है कि ट्रांसफर करवाएं। बोलामहाराज रूटीन ट्रांसफर है, मैं यहां पांच साल से हूं वैसे तीनचार साल में ट्रांसफर हो जाता है ट्रांसफर तो होना ही है। महाराज क्या करें आप लोगों का यहां सानिध्य मिल जाता है, कोई ना कोई संत यहां आते रहते हैं। जहां ट्रांसफर हो रहा है वहां हमारा मन नहीं लगेगा। हम क्या करें? मैनें कहा भैया इतना ही साधुसंतों से लगाव है तो नौकरी छोड़ दें और धंधा करना शुरू कर दो। महाराज वह भी नहीं हो सकता। संयोग बना कि बैंक merge हो गए और बैंक merge होने के बाद उसका प्रमोशन हो गया और प्रमोशन होने के बाद उसने अपने सारे प्रयास छोड़ दिए और बोला अच्छा अवसर है चलो वहीं चलते हैं। मेरे पास दोतीन महीने बाद आया। हमने पूछा क्या हुआ भैया तुम्हारे ट्रांसफर का? बोले महाराज हमने अपना मन बना लिया अब वहीं ठीक है। इसका मतलब क्या हुआ? जो आदमी अपने ट्रांसफर के कारण दुखी था मन बदलते ही वह व्यक्ति सुखी हो गया। यह केवल एक उदाहरण है। तुम्हारे रोजमर्रा के जीवन में जिन बातों के पीछे तुम दुखी होते हो अपना दृष्टिकोण बदल लो पल में सुखी हो जाओगे। होओगे कि नहीं? तो पहली बात अपने दृष्टिकोण को बदलना सीखिए। कुछ भी हो उल्टा को सीधा देखो बहुत परिवर्तन होता है। विपरीत परिस्थितियों में भी मनुष्य अपने आप को बहुत अच्छे से संभाल सकता है और अपने जीवन को आगे बढ़ा सकता है। यह चुनौती के रूप में लेना चाहिए और अपनी कुशलता से उन्हें उपलब्धि में परिवर्तित कर देना चाहिए। यह हमारे लिए अवसर है। तो पहली बात हम अपनीदृष्टि को बदलेंजो हमारे हाथ में है।

दूसरी बातसकारात्मक सोच हो कोई भी परिस्थिति हो, कैसी भी विपत्ति हो, कोई भी प्रसंग हो आप पॉजिटिव सोचो। मेरे संपर्क में एक युवक था। बड़ा धर्मात्मा था। पढ़ा लिखा था। उसके मांबाप किसी बड़े घराने में उसकी शादी कराना चाहते थे। लड़का धर्मात्मा था और उसने ऐसी लड़की को अपना जीवनसाथी बनाना पसंद किया जो उसके धर्म धारने में सहायक हो और एक साधारण घर की लड़की से उसने विवाह कर लिया। उसके मांबाप इस बात से चिढ़ गए। शादी के कुछ दिन बाद छोटे भाई के बहकावे में आकर मातापिता ने उसे घर से निकल जाने को कह दिया। दोनों पतिपत्नी ने एक पल का विलंब किए बिना दोदो जोड़ी कपड़े अपने अटेची में रखें, मातापिता के चरणों में प्रणाम किया और कहाआप आशीर्वाद दें कि हम आपकी आज्ञा का पालन कर सकें। आपसे हमें कोई शिकायत नहीं, आपने हमें पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बनाया, योग्य बनाया। आज मैं जो कुछ हूं आपकी कृपा से हूं इसलिए आपके प्रति हमेशा कृतज्ञ बना रहूंगा और जब कभी हमारी जरूरत हो हमें याद जरूर करना। हम 24 घंटे आपके लिए तत्पर हैं। वहां से निकल गए जिस दिन निकले उस दिन उनकी जेब में केवल रूपरेखा थे। मां बाप ने एक पैसा नहीं दिया। कितनी बड़ी विपत्ति लेकिन उन्होंने मांबाप को  कुछ भी नहीं पूछा और केवल इतना ही कहा कि हवा के झोंके से शाक टूटी जरूर है पर इसे सूखने नहीं दूंगा कलम बनाकर के स्वतंत्र पेड़ बनाकर ही रहूंगा। निकल गया एक दिन होटल में रहा। उसके बाद उसके मित्र उससे मिलने आए। अपने एक मित्र के घर रहा। कुछ मित्र उसके साथ आगे आए इंजीनियर तो वह था ही उसने एक कंपनी बनाई और कंपनी बनाकर रियल स्टेट के कारोबार में उतरा। यह घटना 2005 की है। वह आदमी पहले कुछ भी नहीं था और आज एक बहुत बड़ी कंपनी का मालिक बना हुआ है और उधर कुछ दिन बाद छोटे भाई ने भी अपने मांबाप को अंगूठा दिखा दिया। अंत में उसने स्वयं अपने मांबाप की शरण स्वीकार की। मांबाप को अपने साथ रखा और बोलने पर जब पूछा कि आजकल मांबाप तुम्हारे साथ हैं तो कहा नहीं! मैं मांबाप के साथ हूं। मांबाप मेरे साथ क्या होंगे। वह युवक यदि उस समय अपने मन में सकारात्मकता नहीं रखता तो शायद टूट जाता कमजोर हो जाता अपने आपको संभाल नहीं पाता लेकिन उसकी सोच ने उसे संभाला। हमारे अंदर ऐसी क्षमता आनी चाहिए। आप अपने मन को टटोल कर देखो जब तक सब ठीक चलता रहता है तब तक तो तुम बड़े अच्छे रहते हो लेकिन जब कुछ उल्टा पुल्टा होता है तो उसको झेलने में असमर्थ होते हो कि नहीं? अनुकूलता में तो सब खुश होते हैं। सच्चा इंसान वही है जो प्रतिकूल स्थिति में भी अपने अंदर स्थिरता बना सकें। लोग सक्सेस को देखते हैं सफलता को मानते हैं लेकिन मैं उस सफलता को जीवन की विफलता मानता हूं जो थोड़े से आधार आने पर मनुष्य को तोड़ दे। सच्ची सफलता वही है जो बुरी से बुरी स्थिति में भी उसे स्थिरता प्रदान कर सके। अपने मन में ठहराव लाओ। सोच को एकदम सकारात्मक रखो कि जो है चलो ठीक है। नुकसान भी हुआ है तो थोड़ा हुआ है ऐसा मान कर चलो। ज्यादा रोना मत। आदमी परिवर्तित होता है।

देखिए! मैं जितनी भी बातें करता हूं आप लोगों की बात ही आपको सुनाता हूं। जो आपके प्रेक्टिकल लाइफ से जुड़ी है। हमारे शास्त्र तो संकेतों में, सूत्रात्मक शब्दों में यह सब बातें कहते हैं लेकिन हम उन्हें जीवन व्यवहार में उतारने में सक्षम हो जाएं तो हमारा जीवन धन्य हो जाए। हमारे शास्त्र कहते हैं इष्ट वियोग में और अनिष्ट के संयोग में समता रखो। समता कैसे रखें? हमारी दृष्टि सही हो, हमारे अंदर सकारात्मकता हो। एक युवक कारोबार में जैसे ही पांव रखा उसे 40 लाख रुपए का नुकसान हुआ। उस समय उसके लिए 40 लाख रुपए की रकम बहुत बड़ी थी। उसका भाई और उसके पिताजी बड़े पॉजिटिव आदमी थे। एक दिन बडे़ भाई ने मुझसे कहामहाराज भाई ने जो 40 लाख का नुकसान किया उसकी हमें रंच मात्र भी तकलीफ नहीं लेकिन इस 40 लाख के नुकसान से मेरा भाई जो हिम्मत हार बैठा है उसकी बड़ी तकलीफ है। आप थोड़ा मोटिवेशन दो जिससे वह आगे बढ़ सके। रुपया तो हम बहुत कमा लेते हैं आगे भी कमा लेंगे। आएगा जाएगा लेकिन इसका विश्वास टूट गया आप इसके मनोबल को जगाओ। वह लड़का आया साथ में पिताजी भी आए। मैंने बात की तो पिताजी ने कहामहाराज इसने नुकसान किया मैं तो यह जानता हूं कि जब तक मनुष्य गिरता नहीं तब तक चढ़ता नहीं। गिरने के बाद ही चढ़ा जाता है। आज हमारे पास सब है। जब हमने करियर की शुरुआत की थी तब हमारे पास कुछ भी नहीं था। महाराज मैंने 500 रूपये की नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की। आज इसने 40 लाख का नुकसान दिया वह मेरी कुल संपत्ति का अगर देखा जाए तो 5% भी नहीं है। इसको कहिए कि जो नुकसान हुआ इसे नुकसान मत मानो अपितु जीवन के लिए एक बहुत बड़ी नसीहत मानो। अगर थोड़ी सी बात से यह नसीहत पा जाए तो आज 40 लाख खोया है और कल 40 करोड़ कमा भी सकता है। इससे कहिए महाराज जी 40 लाख खोने की चिंता ना करें 40 करोड़ कमाने की संभावनाओं को तलाशने की कोशिश करें। यह एक मोटिवेशन है। आप क्या करते हो? जो होता है उसके पीछे भागते हो या जिसे पाया जा सकता है उसकी संभावनाओं को तलाशते हो? जो खोया है उसके पीछे भागोगे तो जो गांठ का है वह भी खो जाएगा। जिसके प्राप्त होने की संभावना है उसे तलाशो तो हो सकता है पहले से भी आगे बढ़ोगे। मैंने उसे मोटिवेट किया और मैंने केवल इतना ही कहा कि तुम्हें जो नुकसान हुआ है उस नुकसान से विचलित होने की जगह नुकसान के कारणों को देखो और अपने सिस्टम को ठीक करो। उन्होंने तीन महीने तक अपने बिजनेस को ड्राप आउट किया, सिस्टम ठीक किया और आज आप सुन कर ताज्जुब करोगे पिछले पांच सालों में उन्होंने अपने बिजनेस में 300% की ग्रोथ दे दी। सिस्टम ठीक किया। हार नहीं मानी। उन्होंने सोचा गलती की है पर गलती कहां हुई है। अगर इंसान के अंदर समझ हो तो हर विपत्ति से भी एक बहुत बड़ी समझ ले सकता है। गलती से भी एक बहुत बड़ी नसीहत ले सकता है और उसके अंदर यदि सही समझ नहीं है तो गलती पर गलती कर बैठता है। गलती करना कोई बड़ी बात नहीं पर इसलिए गलती कीजिए गलती से सीख लीजिए। घबराइए मत आगे बढ़ने की कोशिश कीजिए। सकारात्मकता जीवन में होनी चाहिए। हर बात को पॉजिटिव एंगल से देखने की कोशिश कीजिए। कभी किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। चाहे कोई व्यक्ति से जुड़ी बात हो, चाहे व्यापार से जुड़ी बात हो, चाहे लोक व्यवहार से जुड़ी बात हो। अगर आपका एंगल पॉजिटिव है, आपका एटीट्यूड पॉजिटिव है तो आपके लिए कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। एट्टीट्यूड हर प्रॉब्लम का सलूशन है और नेगेटिव एटीट्यूड खुद में एक प्रॉब्लम है। इस बात को अपने गांठ में बांध कर रख लो। हमें उस समस्या से अपने आपको कैसे बाहर निकालना है उस संभावनाओं को तलाशने की कोशिश करनी चाहिए। तो दूसरी बात मैंने आपसे कही वह है– “सकारात्मक सोचने की।

तीसरी बात जीवन में जब भी इस तरह की कोई स्थिति आए आप “धैर्य रखना सीखें”।

नीति कहती है “विपति धैर्यं अथा भूदेव क्षमः”

अर्थात विपत्ति जीवन में जब भी आए उस का मुकाबला तुम धैर्य से कर सकते हो। धीरज रखो। अपने मन का धैर्य कभी मत खोओ। कितनी भी बड़ी से बड़ी विपत्ति हो अगर तुम्हारे मन में धीरज हो तो हर हर समस्या का समाधान पा सकते हो।

एक वैज्ञानिक ने कहाधैर्य हर समस्या का समाधान है अगर तुम्हारे मन में धैर्य हो तो तुम सब काम कर सकते हो। एक युवक ने पूछा तो क्या धैर्य के बल पर हम चलनी में पानी को ठहरा सकते हैं? वैज्ञानिक ने कहाहां! पानी को बर्फ बनने तक की धीरज आपके पास हो तब। पानी को बर्फ बनने दो छलनी में पानी जाएगा। पर लोगों के मन में धैर्य नहीं। प्रायः जब भी मनुष्य के सामने कोई प्रतिकूलता आती है तो उसका चित्त अधीर हो जाता है और अधीरता में सबसे पहले उसका आत्मविश्वास डगमगाता है और आत्मविश्वास डगमगाने से उसकी सोच नकारात्मक हो जाती है और नकारात्मकता उसे उलझा देती है। उसकी क्षमताओं को कुंठित कर देती है। अधीर मत होइए। धैर्य रखिए। धैर्य के बल पर आप बड़े से बड़ी समस्या का सलूशन पा सकते हैं। सन 2002 की बात है। मैं फिरोजाबाद में था। मेरे पास एक युवक आया, वह देहरादून का था। अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहामहाराज थोड़ा देखिए ना मेरे जीवन में सुख है कि नहीं? मैं अपने जीवन से हार चुका हूं। मैंने देखा 25-26 साल का युवक हाथ फैला रहा है। मैंने कहा तुम जैसे तेजस्वी युवक को किसी के आगे हाथ फैलाते देख मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। तुम हाथ क्यों फैला रहे हो? कौन हो तुम? कहां से आए हो? बोलामहाराज देहरादून का हूं। उसका नाम था मनीष रावत। जैन नहीं था। मैंने बोला क्या बात है? समस्या क्या है? तुम क्यों इस तरह से अधीर हो रहे हो? बोलामहाराज मैंने आज तक जीवन में सुख नहीं देखा। मेरे बाबा मां बाप ने मुझे बड़े अभाव में पाला। मेरे दो छोटी बहनें हैं और एक भाई है। मेरे पिताजी हैं नहीं। मैंने पढ़ाई लिखाई की, UPSC के लिए मैं तीन बार इंटरव्यू दे चुका लेकिन आज तक सलेक्शन नहीं हुआ। मैं अपने करियर को लेकर बड़ा चिंतित हूं। मुझे लगता है कि मैं कभी सलेक्ट नहीं हो पाऊंगा। कुछ कर नहीं पाऊंगा। मैंने कहाधन्य हो भाई! UPSC में तीन बार इंटरव्यू तक पहुंचने वाला युवक अपने आप से हार मान रहा है। इसे देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा है। यह बताओ UPSC में कितने लोग बैठते हैं? बोलालाखों लोग बैठते हैं। मैंने बोला उसमें pre में कितने निकलते हैं? उसने बोलाहज़ारों और हमने बोला pre से mains में कितने निकलते हैं? उसने बोलाहज़ारों और मैंने बोला इंटरव्यू में कितने लोग निकलते हैं? बोलाजितनी सीट होती है उससे तीन गुना। मैंने बोला तुम लाखों से सैकड़ों में गए। कितने लकी हो सब तो नहीं निकलते। तीन बार तुम हार गए इसका मतलब यह नहीं कि चौथी बार भी हारोगे। अपने मन का विश्वास जगाओ। बोलामहाराज बड़ा मुश्किल होता है खर्चा कैसे करें? मैंने बोला भाई दुनिया में वह लोग भी हैं जो ट्यूशन पढ़ा कर अपनी जिंदगी को आगे बढ़ा रहे हैं, वह लोग भी आगे बढ़े हैं जो रिक्शा चलाकर जिंदगी को आगे बढ़ा रहे हैं, वह लोग भी अपने जीवन में आगे बढ़े हैं जो न्यूज़पेपर बेचते हैं। तुम हिम्मत क्यों हारते हो। मैंने उसे मोटिवेट किया। उसके मन के विश्वास को जगाया और वह युवक चौथी बार अटेंड किया और अटेंड करने के बाद सेलेक्ट हो गया। आज वह कस्टम में एक बड़ा अधिकारी है। क्या हुआ? मन में धैर्य खोते ही विश्वास डगमगाता है। तुम्हारे जीवन में कितनी भी बड़ी कठिनाई हो, मुश्किल हो यह सोचो कि आज मुश्किल है कल अच्छा होगा कल अच्छा होगा।रात कितनी भी लंबी क्यों ना हो प्रभात होगी। रात लंबी हो सकती है पर शाश्वत नहीं। रात के बाद अब रात नहीं होगी अब जब भी होगा प्रभात ही होगा। लोक में कहावत है कि एक दिन भूरे के भी दिन फिर जाते हैं। यह तो कर्म का चक्र है। कर्म के उदय से यदि तुम्हारे सामने कोई प्रतिकूल स्थिति आई है कर्म अनुकूल होगा तो परिस्थितियों को बदलते भी देर नहीं लगेगी। इसलिए धैर्य रखो। मन का धैर्य मत खोने दो। अपने आत्म विश्वास को जगाने दो। चित्त में नकारात्मकता हावी मत होने दो। अधीरता में कहीं ऐसा ना हो जाए कहीं वैसा ना हो जाए उल्टा ज्यादा सोचते हैं। देखिए, Negative thoughts का हमारे मन पर क्या असर पड़ता है? एक प्रयोग हुआ।

एक विद्यालय में एक शिक्षक को वर्ष बीत गया और छात्रों से कहा कि मैं तुम लोगों को एक कठिन सवाल देता हूं और मुझे मालूम है यह सवाल बहुत कठिन है। अच्छेअच्छे स्टूडेंट्स क्या प्रोफेसर भी सवाल को सॉल्व नहीं कर सकते। फिर भी मैं देखना चाहता हूं कि तुम लोग इसको कर सकते हो कि नहीं। हालांकि मुझे इसकी उम्मीद नहीं है। सवाल दिया। तीस बच्चे पूरी क्लास में थे। तीन का उत्तर सही आया 27 का उत्तर गलत आया। वही व्यक्ति दूसरी क्लास में गया और उनसे कहा कि मैं तुम लोगों को एक साधारण सा सवाल दे रहा हूं। मुझे मालूम है कि तुम में से सभी इसको हल कर लेंगे पर मैं यह देखना चाहता हूं कि तुम में से सबसे पहले कौन इसको हल करता है। उस क्लास में वही सवाल दिया। वही सवाल उन्नतीस लोगों ने सही हल किया।  एक लंबे प्रयोग के बाद एक निष्कर्ष पर पहुंचे कि पहले क्लास के बच्चे भी उसका उत्तर जानते थे लेकिन उनके दिमाग में जो नकारात्मकता भर दी गई थी उसके कारण जानकर के भी अनजान हो गए और दूसरी क्लास के बच्चों के अंदर इतनी पॉजिटिविटी की थी कि उन्होंने अपने अंदर का उत्साह संचालित किया और वह काम कर लिया। अपने चित्त पर नकारात्मकता को कभी हावी मत होने दो। सोचो ठीक है विपत्ति है थोड़े दिन में ठीक हो जाएगी। आत्मविश्वास को बढ़ाओ। आज नहीं कल ठीक होगा। इससे बचने के लिए धैर्य कैसे रखे यह सोचो। थोड़े दिन की बात है। कुछ भी हो। अभी आप लोग यहां आनंद से बैठे हैं। गर्मी का मौसम है। आप को गर्मी लग रही है? लेकिन यदि मैं कह दूं कि आज मेरा मूड़ बिल्कुल अलग है। आज मैं 12 बजे के पहले प्रवचन नहीं छोडूंगा तो क्या करोगे? आप बोलोगे महाराज को क्या सनक चढ़ गई 12 बजे तक तो धूप सर पर चढ़ जाएगी। हो सकता है अभी मैं कहूं तो आप ना उठो लेकिन इतनी प्रचंड गर्मी में आपसे कहा जाए कि महाराज का प्रवचन 8 से 12 है तो घर से ही आओगे क्या? सोचोगे अरे भरी गर्मी में कौन जाएगा। दूसरी तरफ आपको पता है महाराज जी बिल्कुल ठीक टाइम पर छोड़ देंगे। थोड़ी बहुत गर्मी सह लेंगे। क्या अंतर आया? थोड़ी देर की बात है। यह जब मनुष्य के मन में बैठ जाती है तो उसके लिए कष्ट भी कष्ट नहीं दिखता और छोटे से कष्ट को अगर हम लंबे समय की बात मान लेते हैं तो वह हमारे लिए बहुत दुखदाई होता है। आपको यात्रा करना हो यहां से घर जाना  हो और 5 की सीट पर 8 आदमी कार में बैठकर चले जाओ कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सोचोगे थोड़ी देर की बात है पहुंच जाएंगे और वहीं अगर कहें यहां से मुंबई जाना हो तो सोचोगे 5 सीटों में चार लोग ही जाएं तो अच्छा होगा। वहां एडजस्टमेंट नहीं होगा। बगल के स्टेशन पर जाना है आप खड़ेखड़े बिना टिकट रिजर्वेशन के चले जाओगे लेकिन लंबी यात्रा हो तो रिजर्वेशन के ही जाओगे।

संत कहते हैं सुख की यात्रा भले ही लंबी होती है पर दुख की यात्रा को थोड़ी देर की बात समझो थोड़ी देर की बात है। जब थोड़ी देर की बात समझोगे तो सब अपने आप ठीक हो जाएगा। सिर्फ तुम्हारे मन में धैर्य होगा। तुम्हारे मन का धैर्य तुम्हें आत्मविश्वासी बनाएगा, तुम्हारे अंदर की सकारात्मकता बढ़ेगी, और यह उस परिस्थिति से जूझने में समर्थ बनाएगा।

एक राजा के बचपन के मित्र अचानक साधु बन गए। उनसे मिलना हुआ। राजा ने उनका बहुत समुचित सत्कार किया और उसे प्रार्थना की कि मुझे कोई मंत्र दे दो जो मेरे लिए काम का हो। उस साधु ने कहा देख तूने मंत्र मांगा है, तू मेरे बचपन का अजीज है तो जो मेरे गुरु ने मुझे मंत्र दिया वह मैं तुम्हें देता हूं। इसे संभाल कर रखना। अपनी बांह की ताबीज में उस साधु ने मंत्र को रखा था और कहा आज तक मेरे काम नहीं आया तू रख ले तेरे काम में आएगा। मेरे गुरु ने कहा था जब सबसे बड़ी विपत्ति में अपने आप को घिरा पाऊं तो इस मंत्र को पढ़ लेना विपत्ति पल में दूर हो जाएगी। साधु ने राजा को ताबीज दे दिया। राजा ने प्रसन्न मन से उस ताबीज को अपनी बांह में बांध लिया। पर कहते हैं राजनीति का चक्र एक गति से नहीं चलता। समय पलटा और एक बार अचानक ऐसा हुआ कि परचक्र ने अनायास हमला कर दिया और परचक्र के आकस्मिक हमले से वह अपने आप को संभाल नहीं पाया। उसका सारा राज्य खो गया। वह अपने कुछ सैनिकों की टुकड़ी के साथ जंगल की ओर भागा। जान बचाने के लिए भागा। पीछेपीछे शत्रु के सैनिक उसका पीछा करते हुए भाग रहे थे। आगे बढ़ा, एक पहाड़ गया। रास्ता बंद। सामने पहाड़ है पीछे शत्रु है। अब क्या करें? आजू बाजू कोई रास्ता नहीं है। उसने सोचा बुरा फंसा लेकिन तभी पहाड़ में एक गुफा दिखी उसने अपने सैनिकों से कहा हम सब इस गुफा में छुप जाएं और वह गुफा में छुप गया। अंदर चला गया। लगा कि अब तो मरे। पीछे से शत्रु सैनिक रहे हैं हमारे पदचिन्हों को देखेंगे और यहां पहुंचेंगे और हम सब की हत्या हो जाएगी। उसे लगा कि इससे बड़ी विपत्ति मेरे जीवन की और कोई नहीं होगी। साधु की बात याद आई और उसने उस ताबीज को निकाला। उस मंत्र को खोला। उस मंत्र में कुछ नहीं लिखा था केवल इतनी बात थी किथोड़े समय की बात है, थोड़ी देर की बात है वापस उस ताबीज को रखा। मन में संतोष आया कि गुरु के वचन हैं अब जो कुछ है समय की प्रतीक्षा करो सब ठीक होगा। इस बीच शत्रु की सेना आई। देखा आगे कोई रास्ता नहीं। लेकिन कहां गए यहां कोई दूरदूर तक दिखाई नहीं दे रहा। किसी ने कहागुफा में होंगे लेकिन तब तक मकड़ी ने गुफा के द्वार पर एक जाल बना लिया था और जाल से पूरे द्वार को कवर कर लिया था। उनमें से एक ने कहा नहीं इस गुफा में गए होते तो जाल टूट गया होता इसलिए यहां हम समय लगाएं। दूसरी तरफ उसे खोजें। वे सब वापस हो गए। थोड़ी देर बाद जब घोड़ों की टोपें शांत हो गई तो उनकी जान में जान आई। सब तरफ से निश्चिंत होने के बाद वह बाहर निकले। कुछ दिन जंगल में रहा अपनी सैन्य संगठन को मजबूत किया और योजनाबद्ध तरीके से हमला करके अपने खोए हुए साम्राज्य को पा लिया। फिर से राजगद्दी पर बैठा। गुरु की बात याद आईथोड़ी देर की बात है राज्य खोया वह भी थोड़ी देर की बात थी। राज्य पाया वह भी थोड़ी देर की बात है। बस यह सूत्र जीवन में लेकर चलो। कोई विपत्ति आए यह थोड़ी देर की है और तुम्हारे साथ कोई संपत्ति जुड़े तो वह भी थोड़ी देर की है। थोड़ी देर की विपत्ति मानकर अधीर मत होना और थोड़ी देर की संपत्ति मानोगे तो अभिमान नहीं होगा। अधीरता और अभिमान दोनों मनुष्य के पतन के कारण हैं। उनसे अपने आप को बचाइए। यहां अपने आप को संभालिए। तो अधीर मत होइए थोड़ी देर की बात है।

आखिरी बात है– “आशावादी बने हताशा को अपने मन में हावी मत होने दें। कितना भी बुरा हो सब ठीक हो जाएगा। आज बुरा है कल अच्छा होगा। सब ठीक हो जाएगा सब ठीक हो जाएगा सब ठीक हो जाएगा। अगर आपकी सोच आशावादी है तो आप कभी विफल नहीं होंगे और मन में पहले से हताशा के बादल छाए हैं तो आप कभी सफल नहीं होंगे। सब ठीक होगा। एक बार फेल हो गए, दूसरी बार सक्सेस होंगे। दूसरी बार फेल हो गए तीसरी बार होंगे। तीसरी बार फेल हुए चौथी बार होंगे। होंगे ज़रूर। हताश मत होइए।

अब्राहम लिंकन के बारे में मैंने पढ़ा कि वह व्यक्ति अपने जीवन में 19 बार विफलता का शिकार हुआ। Legislature के इलेक्शन से लेकर वाइस प्रेजिडेंट तक हारे, पत्नी का वियोग झेला, बड़ेबड़े एक्सीडेंट्स झेले, व्यापार में नुकसान झेलना। 19 बार जीवन में विफल हुआ पर हार नहीं माना। 20वीं बार जीता तो सीधे अमेरिका का राष्ट्रपति बन गया। हारो पर हिम्मत मत हारो। आशावादी बनने की कोशिश करो। अपने जीवन को आगे बढ़ाने का एक बड़ा मंत्र है। हरिवंश राय बच्चन की कुछ पंक्तियां हैं

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, नन्हीं सी चींटी जब दाना लेकर चलती है दीवारों पर चढ़ती है सौसौ बार फिसलती है, गिरकर चढ़ना चढ़कर गिरना यह जीवन का सार है, आख़िर उसकी कोशिश बेकार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

यह जीवन है। जीवन में तुम जितना करोगे उतना आगे बढ़ोगे। आशावादी बनना चाहिए। अपने आत्मविश्वास को कभी डगमगाने नहीं देना चाहिए। सेल्फ कॉन्फिडेंस से अपने आप को लवरेज रखना चाहिए। कैसी भी विपरीत परिस्थिति हो हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं होगा। डिप्रेशन तुम्हारे ऊपर हावी नहीं होगा। हर चीज को एंजॉय करने की कला सीखो। मैं जो बाते बोल रहा हूं उनसे लगभग बहुत सारे लोग गुजर रहे हैं। किसी किसी प्रकार की प्रतिकूलता जीवन में आती है और मनुष्य अंदर से टूटता है। संत कहते है नहीं, टूटो मत मजबूत बनो। अपने आप को बलवान बनाकर उन परिस्थितियों को पार करने की क्षमता विकसित करो। तब हमारे जीवन में कुछ कामयाबी होगी।

गांव में एक बच्चा जो अनाथ था। सेठ ने उसे आगे बढ़ाने के ख्याल से उससे कहा तुम एक काम करो  4 बोरी अनाज लो और बगल के गांव में जाकर बेचो। जो कमाई होगी वह तुम्हारी। बीच में नदी पड़ती थी। नाव से दूसरे गांव जाना पड़ता था। वह चला। रास्ते में नाव डूब गई। मल्लाहों ने जैसेतैसे उस युवक को बचाया। 4 बोरा अनाज मिला था पूरा डूब गया। अब वह क्या करें। सेठ को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। सेठ के पास समाचार पहुंचा। सेठ ने उसे बुलवाया और बोले कोई बात नहीं नाव डूबी है ठीक है। अगले सप्ताह फिर तुम ले जाना और अगली बार उसे 8 बोरा अनाज दिया। इस बार भी गया तो फिर नाव डूब गई और वह कह रहा है अब मैं बचूंगा नहीं। इतना बड़ा भार मैं कैसे चुकाऊं। वह हार गया। मल्लाहों ने उसे सेठ के पास जैसेतैसे पहुंचाया। सेठ ने कहा नाव डूबी है कोई बात नहीं किस्मत नहीं डूबी। दो बार डूब गई, डूब जाने दो। तुम्हारी जिंदगी बच गई यही बहुत बड़ी बात है। अगले सप्ताह फिर आना और अगले सप्ताह उसने उसे 16 बोरा अनाज दिया और इस बार नाव सकुशल उस पार गई और इतना अच्छा कारोबार चला कि 16 बोरा अनाज में 12 बोरा अनाज का नुकसान भी उसने कवर कर लिया और आने के बाद सेठ ने उससे कहा की ध्यान रखो एक बार नुकसान खाओ दो बार नुकसान खाओ तो यह मत सोचो कि हमेशा नुकसान खाएंगे। नुकसान खाने के बाद ही आदमी लाभ कमाता है। इसलिए अपने जीवन की आशा को कभी ख़त्म मत होने दो। आप लोग क्या करते हो किसी से कोई चूक हो जाती है तो उसे encourage करने की बजाय discourage करते हो। उसे एकदम हतोत्साहित कर देते हैं। आशा का संचार करें। कारणों की समीक्षा करें और उन कारणों की पुनरावृति कभी ना होने दें जिससे किसी प्रकार का नुकसान होता है। यदि इन बातों को ध्यान में रखकर चलेंगे तो निश्चिततः हमारे जीवन में सफलता होगी। तो यह विपरीत परिस्थिति में अपने आप को संभालने के लिए चार सूत्र मैंने आपको दिएअपने दृष्टिकोण को बदलें“, “सकारात्मक सोचें“, “धैर्य रखेंऔरआशावादी बने यह चारों बातें अगर आपके जीवन में समाहित होगी तो मैं समझता हूं जीवन की कोई भी समस्या को प्रभावित नहीं कर पाएगी। आप अपने जीवन को सदाबहार प्रसन्न बनाए रखने में समर्थ होंगे। इसके साथ प्रतिक्रिया, भय और अहम ये ऐसे कारक है जो हमारे जीवन को अशांत करते हैं। इनसे कैसे बचें? इस बात की चर्चा मैं कल आपसे करूंगा।

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