क्या जरूरत है षड्यन्त्र रचने की?

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क्या जरूरत है षड्यन्त्र रचने की?

एक दिन एक सज्जन बहुत मेरे पास आए वे बहुत घबराए हुए थे। उन्होंने कहा- महाराज! मुझे एक पहचान वाले व्यक्ति ने कहा है कि थोड़ा सावधान रहना, आपके विरुद्ध एक बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है। मैने कहा-ठीक बात है, किसी ने कहा होगा, लेकिन आप इतने क्यो घबराए हो? उसने जो आपसे कहा है उसका कोई  प्रमाण प्रस्तुत किया? वह बोले कि उसकी बातों को सुनकर मुझे लगता है कहीं मेरे साथ कोई साजिश तो नही रची जा रही? अगर ऐसा हो गया तो मैं क्या करूंगा? मैंने कहा- भैया! घबराने से क्या होगा? कोई तुम्हारे विरुद्ध कितना भी षड्यंत्र रचे यदि तुम ठीक हो तो तुम्हारा बाल बाँका भी नहीं होगा। तुम्हारा कर्म ठीक है तो तुम्हारा कोई कुछ गलत नही कर सकता और कर्म खोटे होंगे तो तुम कितने भी फूंक-फूंक कर कदम रखो, कभी भी, किसी के भी षड्यंत्र के शिकार हो जाओगे।

आज बात ‘ष’ की है, ष से षड्यंत्र की बात मैं आप सबसे कर रहा हूँ। लोगों के मन में इस बात को लेकर के बड़ी चिंता होती है कि कोई मेरे विरुद्ध षड्यंत्र ना रच दे, चिंता कम शंका अधिक होती है। चार बातें षड्यंत्र के संदर्भ में आज आप सबसे कहूंगा- सबसे पहली बात – षड्यंत्र रचना। आज के समय में यह बड़ा कुचक्र है, दुरभिसंधि है। लोग एक दूसरे के विरुद्ध बहुत तेजी से षड़यंत्र रचते हैं और षड्यंत्र में सामने वाले को फँसाते है और उसका सत्यानाश कर देते है, यह घोर अनैतिक कर्म है। संत कहते हैं- कि जीवन में कभी किसी के विरुद्ध कोई षड्यंत्र मत रचना क्योंकि इसका परिणाम तुम्हें आगे-पीछे जरूर भुगतना पड़ेगा। लेकिन लोग अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए, ईर्ष्या या विद्वेष के लिए, अपने अहम की पुष्टि के लिए एक दूसरे के विरुद्ध गहरा षड्यंत्र, साजिश या कुचक्र रचते हैं। अपने भीतर झांक करके देखो कि मैंने अपने जीवन में कभी किसी के विरुद्ध कोई षड्यंत्र तो नहीं किया और अगर किया है तो मुझे बहुत सावधान होने की जरूरत है।और आज से अपने जीवन की धारा को परिवर्तित करने की आवश्यकता है। जो लोग एक दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र रचते है, अपनी चतुराई और चालबाजी के कारण सामने वाले को अपना शिकार बनाते है, लेकिन अंततः इसका परिणाम स्वयं के प्रति भी बहुत बुरा होता है। कई तरीके से लोग षड्यंत्र रचते है और सामने वाले को षड्यंत्र का शिकार बनाते है। कई बार लोग राजनीतिक षड्यंत्र रचते है, कई बार आर्थिक षड़यंत्र रचते है और कई बार अन्य दूसरे प्रकार के षड्यंत्र को रच करके सामने वाले की छवि को बिगाड़ कर देते है उसकी प्रतिष्ठा पर आघात पहुँचाते है और उसे परेशान करते है। कुछ लोगों की ऐसी प्रवृत्ति बन जाती है। लेकिन संत कहते हैं यह बहुत बुरा कर्म है। किसी के प्रति षड्यंत्र रचना घोर पाप का कार्य है, पर क्या कहूँ, निहित स्वार्थों के पीछे लोग गैरों की बात तो जाने दीजिए अपनों के विरुद्ध भी भयानक षड्यंत्र रचने से बाज नहीं आते है। यह मनुष्य के खून में है। इस तरह की दुरभिसंधि करने की प्रवृत्ति मनुष्य के भीतर है। जिसके प्रति ईर्ष्या होती है, जिसके प्रति द्वेष होता है, उसको या जिससे हमारा स्वार्थ(काम) बाधित होता है उसको, व्यक्ति अपने रास्ते से अलग करने के लिए, उसके प्रति अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचते रहते है। जिसमें रंच मात्र भी उनको संकोच नहीं होता है। लेकिन जब तक सामने वाले का पुण्य प्रबल होता है कोई कितना भी षड्यंत्र रचे उसका बाल बाँका नहीं होता।

 कौरवों ने पांडवों के लिए कैसे -कैसे षड्यंत्र रचे? लाक्षाग्रह में पांडवों को मारने का कुचक्र रचा, षड्यंत्र रच करके उन्हें जुए में हराया, सब कुछ किया लेकिन अंत में क्या हुआ? पांडवों का अंत हुआ या कौरवों का अंत हुआ? किसका अंत हुआ? तुम अपने भीतर झांक करके देखो जब भी व्यक्ति किसी के विरुद्ध कोई षड्यंत्र रचता है तो प्रारंभिक तौर पर उसमें वह सफलीभूत होता हुआ दिखाई पड़ता है लेकिन अंत में उसके परिणाम बुरे होते है, कभी-कभी तो मनुष्य खुद के षड्यंत्र में खुद ही फँस जाता है। मैं एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जानता हूँ, जिसके बड़े भाई ने बड़ी संपत्ति को स्थापित किया, वह 48 वर्ष की उम्र में चल बसे और उसका एक बेटा था। छोटे भाई के पास ज्यादा संपत्ति नहीं थी। बड़े भाई का बेटा चौदह वर्ष का था। उसे लगा कि अब बड़े भाई के बाद उसका बेटा ही इन सबका उत्तराधिकारी होगा तो सारी संपत्ति का मालिक वह बन जाएगा। यदि इसको रास्ते से अलग कर दिया जाए सब कुछ मेरा होगा, मनुष्य के मन की यह दुष्प्रवृत्ति है। जब कभी भी ऐसी चीजें होती है, इस तरह की दुरभिसंधि रचने में कोई संकोच नहीं करता। उसने अपने भतीजे को मारने की सुपारी दिलवा दी, प्लानिंग हो गई। सामने वाले को बोल दिया गया कि इतने उम्र का लड़का, इतने बजे, उस जगह जाएगा। उसने उसे काम का बहाना बना करके भेजा। बेटा जाने को था कि तभी उसका चचेरा भाई उसे मिल गया, बोला-  भैया कहाँ जा रहे हो? बड़े भाई का बेटा बोला अमुक काम के लिए जा रहा हूँ, तो चचेरा भाई बोला- मैं भी उधर ही जा रहा हूँ तो आप क्यों जा रहे हो, मैं वह काम कर लेता हूँ। उसको वहाँ छोड़ दिया और चचेरा भाई चला गया। सामने वाले को जो जिम्मेदारी दी गई थी, वह तो घात लगाए बैठे थे। उन्होंने अपना काम कर दिया क्योंकि दोनों लड़के हम उम्र ही थे। उधर उन्होंने काम कर दिया इधर थोड़ी देर बाद अपने भतीजे को सामने आया देखा तो बोला- क्या बात है, तू गया नहीं क्या काम के लिए? वह बोला- काम के लिए छोटा भाई गया है, वह बोला मुझे उधर जाना है तो वह हीं चला गया। चाचा बोले- कितनी देर हो गए, 2 घंटे हो गए, अभी तक लौटा नहीं। तब मन में धड़कन बढ़ने लगी, हलचल होने लगी सोचा, यह क्या हो गया, मैंने यह क्या कर लिया? उस रास्ते की तरफ गया तो देखता है उसका बेटा ढेर था, उसे गोली मारी हुई थी। अपने ही षड्यंत्र का शिकार खुद हो गया। वह हक्का-बक्का रह गया, यह क्या हुआ? धन के लोभ में अंधा होकर अपने भतीजे को मारने के चक्कर में खुद अपने बेटे को भी खो दिया। अब बेटा भी खोया, धन भी खोएगा और जीवन में खोएगा। वह आदमी आज भी जेल में हैं। यह मध्य प्रदेश की एक बड़े शहर की घटना है और वह मध्य प्रदेश की ही जबलपुर के जेल में है। चाचा ने भतीजे की हत्या का षड्यंत्र रचा, भतीजा तो बच गया और बेटा खो दिया। बेटा क्या खोया सारा जीवन बर्बाद हो गया, उसे सारा जीवन दंड का भागी बनना पड़ रहा है।

अपने भूतकाल को देखिए, अनेक ऐसे मौके आए होंगे जब इस तरह की स्थितियाँ हुई। आपने किसी के विरुद्ध कोई कुछ चाल चली और वह चाल उल्टी पड़ गई, पड़ती है कि नहीं। संत कहते है जीवन को सरलता से जियो, साजिश रचने की प्रवृति से अपने आप को बचाओ, नहीं तो वैसे ही साजिश के शिकार बनोगे, कहीं के नहीं रहोगे। आजकल एक शब्द आता है- ब्लैक मेलिंग बहुत गूढ़ हो गया है। लोग कुचक्र रचते हैं, चाल-बाजियाँ  करते है जिसमें सामने वाले को फँसाकर आर्थिक, शारीरिक या अन्य प्रकार का शोषण करते हैं, दोहन करते है। यह प्रवृत्ति कतई अच्छी नहीं है। हमें इस प्रवृत्ति से अपने आप को बचा करके चलना चाहिए। ऐसी प्रवृत्तियों से जब तक हम बाज नहीं आएंगे तब तक अपने जीवन का भला नहीं कर पाएंगे। ऐसे कई तरीके के किस्से अगर मैं सुनाने बैठूं तो पूरा एक घंटा ऐसे-ऐसे प्रसंगों पर सुना सकता हूँ। लेकिन यह दुरभि संधि है।

 पहली बात जीवन में कभी किसी के विरुद्ध षड्यंत्र मत करना। जो षड्यंत्र करते है वह आगे चलकर सड़ते है, उनका जीवन सड़ता है, वह बर्बाद होते है, यह बात हमेशा ध्यान में रख करके चलना है। इसके पीछे जो मूल भावना ईर्ष्या की, विद्वेष की, दम्भ की, अभिमान की, स्वार्थ की, इनके चक्कर में फस करके आदमी ऐसा करता है। ऐसा कभी मत करना। कोई सामान्य आदमी किसी के विरुद्ध षड्यंत्र करें तो फिर भी ठीक लेकिन जब धर्म और समाज के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका रखने वाले लोग इस तरह की साजिशे करते है और एक दूसरे को बदनाम करने की कोशिश करते है, एक-दूसरे को लांछित करने का प्रयास करते है, एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करते है, तो बड़ा आश्चर्य होता है। अज्ञानी व्यक्ति, अधर्मी व्यक्ति, पापी व्यक्ति नीच व्यक्ति करें तो फिर भी बात समझ में आती है, पर धर्मी होने का लेबल लगाने वाले, कथित तौर पर ज्ञानी कहलाने वाले लोग जब इस तरह ओछे, निम्न, थोथे हथकंडे अपनाते है, छोटे हथकंडे अपनाते है तो बड़ा दु:ख होता है। आज क्या है, किसी के बारे में कोई गलत खबर फैलाना, धुँआ उड़ा देना। मैं कहता हूँ यह बहुत बड़ा अपराध है, यह हत्या है। किसी के प्राणों की हत्या का नाम ही हत्या नहीं है, नाम, चरित्र का हनन भी बहुत बड़ी हत्या है। प्राणों के आघात से भी बड़ा आघात चरित्र के आघात का होता है। वह व्यक्ति हत्यारा है, वह व्यक्ति अपराधी है, वह व्यक्ति पापी है, वह व्यक्ति नीच है। कभी किसी के चरित्र को लांछित करने का प्रयास मत करना, कभी किसी के प्रति अपने स्वार्थवश उसे नीचा दिखाने के लिए इस तरह का छलावा मत करना, कोई भी इस तरह की कोई साजिश मत करना जिससे सामने वाला व्यक्ति किसी चाल में फस जाए। आज तुम उसे फँसाओगे कल तुम ऐसे फँसोगे कि निकल नहीं पाओगे। पाप का फल तो भोगना ही पड़ता है। लेकिन आजकल देखिए, किसी को बदनाम करना है तो हवा फैला देते है, WhatsApp पे खबर फैला देते है, पत्र छपवा देते है। लोग इतनी कुशलता के साथ अपनी बात को रखते है जिसको बहुत कम लोग समझ पाते है। लेकिन यह प्रवृत्ति बहुत बुरी प्रवृत्ति है, इससे बचना चाहिए। औरों की बात जाने दीजिए, अपने सगों के साथ इस तरह का, माँ-बाप के साथ षड्यंत्र, ऐसे षड्यंत्र रचते है लोग और विडंबना है सब पढ़े लिखे लोगों के द्वारा, अनपढ़ लोगों के साथ ऐसा कम देखने में आता है।

आजकल intellectual(बौद्धिक) crime(अपराध) बढ़ गया है। जितने बड़े अपराध है वह सब पढ़े लिखे लोगों के द्वारा ज्यादा हो रहे है। यह आज हमारे युग के लिए एक बहुत बड़ी विडंबना हो गई है कि माँ-बाप के साथ लोग षड़यंत्र करते है। मैं सम्मेद शिखरजी में था, एक माताजी मेरे पास आई, उम्र होगी लगभग 68-70 साल की, माता दिखने एकदम सामान्य घर की लग रही थी। उन्होंने कहा- महाराज जी मैं कुछ दान करना चाहती हूँ, शिखरजी की बात है गुणायतन के लिए कुछ दान करना चाहती हूँ, हमने कहा- ठीक है, कर दो जो करना है। वहाँ जाओ ऑफिस में बैठ करके बात कर लो, वह बोली- नहीं महाराज! आप मेरी सुन लो मुझे कुछ करना है। उन्होंने मुझे एक राशि बताइ, वह राशि कुछ बड़ी राशि थी। मुझे जैसे राशि बोली तो सुनकर आश्चर्य हुआ कि यह साधारण सी महिला इतनी बड़ी राशि दान में देना चाहती है, कैसे देगी। मैंने पूछा- आप यह राशि दे रही हो, आप कैसे दोगी।  आपके घर में सलाह कर ली, बोली नहीं महाराज मेरा कोई नहीं है। मुझे किसी से सलाह करने की जरूरत नहीं है, मैं ही आई हूँ। हमारे पति थे वह अब रहे नहीं, शिक्षक थे, मैं भी शिक्षक हूँ। शिक्षक की जॉब से रिटायर हो गई। महाराज! एक बेटा है उसकी मत पूछो और उसकी आंखों से आंसू आ गए, बेटा अमेरिका में रहता है। बेटा है ही नहीं, क्योंकि बेटा ही मेरे वैराग्य का कारण बन गया है। मैंने पूछा -हुआ क्या? क्या बात है? उसने कहा! मेने अपने बेटे को पेट काट-काट करके पढ़ाया, पति 42 साल की उम्र में एक्सपायर हो गए थे, संयोग की दोनों शिक्षक थे, पति की मृत्यु के बाद भी उसने बड़ी कठिनाइयों से अपने बेटे को पढ़ाया, बेटा आई.आई.टी पास आउट हुआ और उसके बाद अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में जॉब कर रहा है। उसने उसकी एक इंजीनियर लड़की से ही शादी भी कर दी। विवाह के बाद बेटे के मन में न जाने क्या सूझा, वह अपनी माँ से रोज पैसे की मांग करें। जो संचित निधि थी वह सब बेटे ने ले लिया, काफी कुछ रुपया ले लिए। पिताजी का जो भी पैसा था वह सब ले लिया। इसके बाद भी बेटे ने माँ के पास जाकर कहा कि माँ  मैंने एक बड़ी कंपनी खोली है, उसमें मुझे रुपया इन्वेस्टमेंट करना है, मुझे और रुपयों की जरूरत है। माँ ने अपने गहने भी दे दीए, बेटा है तो माँ क्या नहीं करती? बड़ी कंपनी खोलना है, तजो तुझे लेना है, ले और माँ ने भी बिना संकोच के दे दिया। फिर भी इतने से काम नहीं चलेगा माँ, आखिर तुम्हें सब कुछ तो देना ही है, यह जो कोठी है वह भी देदो, वह बोली महाराज जी! मेरी पाँच करोड़ की कोठी थी, एक बड़े शहर में कोठी थी। उसने उसकी पावर ऑफ अटॉर्नी(वकालतनामा) ले ली। उसने कहा- माँ पावर ऑफ अटॉर्नी(वकालतनामा) दे दो और उसके बाद बेटा-बहू आए, उन्होंने उस कोठी को माँ से बिना पूछे बेच दिया। बेच दिया तो माँ को पता तब लगा जब जिनको बेचा गया वह कोठी पर अपना कब्जा लेने के लिए आए। माँ एकदम स्तब्ध रह गई, बेटे ने यह तक नहीं बताया कि उसने कोठी बेच दी। माँ एक कोठी पर बची थी और कुछ नहीं। वह कोठी भी बिक गयी और ऐसे आदमी को बेचा गया कि वह आदमी ज्यादा मोहलत देने के लिए भी तैयार नहीं था, आठ दिन के अंदर उसे अपना घर छोड़ करके बाहर निकलना पड़ा। बोली महाराज! मेरे ऊपर तो बड़ा वज्राघात हो गया। मैंने उस दिन से बेटे से बात करना चाहा तो बेटा बात करने को भी राजी नहीं, मैं क्या करूं महाराज? उनके साथ एक बहन जी थी, इन्होने मुझे शरण दिया है, इन्होने मेरा साथ दिया है और उनके घर पर मैं एक कमरा लेकर रह रही हूँ। महाराज जी! तब से लगा कौन, किसका है? मेरे बेटे ने मुझे मेरी संपत्ति से बेदखल किया, मुझे कष्ट नहीं हुआ, मुझे कष्ट केवल इस बात का है कि उसने मेरे साथ छल किया। अगर मांग कर लिया होता तो मैं तो अपना पूरा प्राण बेटे के लिए दे सकती थी। लेकिन उसने मेरे साथ छल किया, धोखा किया, आज बहुत दुख है उसका। लेकिन अब मेरा कोई खर्च नहीं है, दिन में एक बार भोजन करती हूँ उसी समय पानी पीती हूँ, महाराज रिटायरमेंट हो गई, मुझे पेंशन मिलती है, मेरे पति की भी पेंशन मेरे पास आती है, मेरा कोई खर्च नहीं तो मैं सोचती हूँ अब मैं किसको दूं। रहने के लिए जो मकान है, वह किराए का है, तो मेरा जो बचता है, मैं बहुत दिन से गुणायतन के बारे में सोच रही थी, शिखरजी जाऊंगी तो दूंगी। महाराज यह मेरी जमा पूंजी है किसी अच्छे कार्य में लग जाए तो मुझे बड़ी खुशी होगी और चेहरे में एक अलग प्रकार के हर्ष का भाव था, मानो वर्षों से जुड़ी हुई निधि को मैंने कोई अच्छी जगह लगा दी हो।

उस बात को सुनकर के मेरा मन बड़ा मर्माहत हुआ, एक माँ, के प्रति उसके बेटे का इतना बड़ा कुचक्र। सोचिए, यह चालबाजी है या नहीं। कहाँ जा रही है संस्कृति? ऐसे रोज घटनाएं घटती है।  माँ- बाप के साथ, भाई-बहन के साथ, अब तो पति-पत्नी के मध्य भी दुरभिसंधियाँ चलने लगी। क्या स्थिति है, जीवन कहाँ जा रहा है, कितने नीचे गिरते जा रहे हैं लोग? हमें बहुत समझदारी से चलने की जरूरत है।

 पहली बात षडयंत्र करना गलत काम है, कभी किसी के विरुद्ध षड्यंत्र मत करना, करोगे तो आगे पीछे फँसे बिना नहीं रहोगे। दूसरी बात षड्यंत्र करने वालों का साथ देना। तुमने षड्यंत्र नहीं किया लेकिन कोई षड्यंत्रकारी है, उसके साथ तुम्हारा मौन सपोर्ट है तो भी आगे पीछे फँसे बिना नहीं रहोगे। भारतीय दंड विधान के अनुसार वह भी एक अपराध है। पाप में तुम कहीं भी सम्मिलित होओगे तो उस पाप के भगी बनोगे, सावधान हो जाओ, नियम ले लो मैं जीवन में कभी किसी के प्रति कोई षड्यंत्र नहीं रचूंगा और कोई षड्यंत्रकारी व्यक्ति होगा तो उसे अपनी सुरक्षित दूरी बनाकर रखूंगा। ना मुझे षड्यंत्र करना है ना षड्यंत्रकारी लोगों के साथ रहना है।

  तीसरी बात षड्यंत्र में फँस जाएं तो क्या होगा? कई बार लोग षड्यंत्र के शिकार बनते है। प्राय: लोग निर्दोष व्यक्तियों को लोग अपने षड्यंत्र का शिकार बना करके परेशान करते है। क्या करें, हो जाती है, कर्म की स्थिति ऐसी बनती है। लोग इस तरह की चालबाजियों करते हैं। एक सुनार था और वह सोने का काम करता था। सोना थोड़ा-थोड़ा बचाता था। उसके पास काफी अधिक मात्रा में सोना होगा। चौकीदार को मालूम पड़ गया कि यह सारा सोना उसने अपने दुकान में एक अलग बक्से में रख रखा हैं। एक रात बहुत बक्से को लेकर चलता बना और सुनार को मार डाला। उसका घर और दुकान एक ही जगह थी। एक दिन उसने सुनार को मार डाला और बक्सा लेकर चलता बना। उस सुनार के घर के सामने एक सज्जन आदमी रहता था। सज्जन आदमी की नजर उस पड़ गई। उसने चौकीदार को रोका और कहा कि तुम यह क्या कर रहे हो? चौकीदार ने कहा- मुँह बंद रखो, तुम अपना मुँह बंद रखो, मुझे अपना काम करना है। ज्यादा ही है तो तुम भी अपना हिसाब ले लेना। सज्जन आदमी बोले- नहीं-नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता, तुम यह चोरी करके जा रहे ठीक नहीं है। मैं अभी लोगों को बुलाता हूँ। जैसे ही उसने ऐसा बोला चौकीदार ने अपना पैंतरा बदला। उसने बक्से को नीचे पटका और चोर, चोर, चोर, चोर चिल्लाना शुरु कर दिया। जैसे ही चौकीदार ने इस तरह का शोर मचाना शुरू किया, आसपास और जो प्रहरी थे वह सब आ गए, बोले यह सब क्या है? चौकीदार बोला- इन्होने चोरी किया है सुनार के यहाँ से और उस सज्जन आदमी को उल्टा फँसा दिया। यह चोरी किया, सुनार के यहाँ इसने चोरी की, इसने चोरी की यह बोल रहा है, पर इसकी कौन सुने? जब एक झूठ को पाँच आदमी बोलने लगते है तो वह झूठ भी सच लगने लगता है। यह अकेला था बाकी सब चौकीदार के सपोर्ट में थे और जब अंदर जाकर देखा गया तो पता लगा सुनार भी मरा हुआ है, उसकी हत्या हो गई है। उस सज्जन व्यक्ति को हत्या और चोरी के अपराध में पकड़ लिया गया। इससे सज्जन आदमी को बड़ा झटका लगा। बोलने लगा- हे भगवान! यह तेरे दरबार में कैसा अन्याय है, दोषी तो खुला घूम रहा है, निरपराध आज जेल में फँसा है। उसके मन में एक ही बात चलती रही। मामला अदालत में पहुँचा, साक्षी- गवाह सब कुछ उसके विरुद्ध थे, जज ने उसे फाँसी की सजा सुनाई गई। सजा सुनकर उसने केवल एक ही बात कहा- कि मेरा भगवान पर भरोसा था पर भगवान ने अन्याय किया। सजा तो असली दोषी को मिलनी चाहिए थी, वह बच गया। जज को पता नहीं उसकी बात सुनकर क्या लगा? जज ने कहा ठीक है, मैं अभी अपने फैसले को रोकता हूँ। उसने एक योजना बनाई और कहा कि अमुक स्थान पर एक व्यक्ति मर गया है उसको लेकर आओ। लेकर आने के लिए जज ने उस व्यक्ति को, सज्जन व्यक्ति को और उस चौकीदार को दोनों को भेजा, जाओ उसको लेकर आओ। दोनों निर्धारित स्थान पर पहुँचे। एक व्यक्ति अपनी चारपाई पर लेटा था। खून बह रहा था, चादर से ढका था और वह व्यक्ति मृत पड़ा था। दोनों ने मिलकर के चार पाए लेकर आ गए। बाकी लोग सूचना देने आ गए। रास्ते में चौकीदार ने सज्जन व्यक्ति से कहा- कि भैया देख मैंने तेरे से कहा था, अपना हिस्सा ले ले और मुझे जाने दे अगर तूमने मेरी बात मान लि होती तो आज तुम्हारी फाँसी पर चढने जैसी नौबत नहीं आती, माल भी मिलता और बच भी जाते। अब तू सच्चाई पर चलने का फल भोग। बात आई-गई हुई, जैसे ही उस चारपाई को जज के पास रखा गया, चारपाई में लाश की तरह लेटा व्यक्ति उठ कर बैठ गया। बैठते ही उसने  रास्ते की सारी कहानी जज को सुना दी जज ने सुना और बाद में जब उस पर दबाव डाला गया तो चौकीदार ने अपना अपराध कबूल कर लिया। लेकिन जज के मन में एक बात चल रही थी कि यह आदमी निरपराध है तो मेरे मुख से इसके लिए सजा कैसे निकल गयी? कहानी के मोड़ को देखिए आप। उसने उस निरअपराधी व्यक्ति को बुलाया, एक तरफ बुला करके पूछा कि बाकी सब चीजें तो ठीक है। तुम आज भी निरअपराधी हो पर मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ कि तुमने अपने जीवन में कभी कोई अपराध किया कि नहीं किया। उसने कहा- हाँ आज से 25 बरस पहले मैंने एक अपराध किया था। वह बोला- मेरी पत्नी के साथ एक व्यक्ति गलत संबंध बनाना चाहता था मैंने उसकी हत्या करके उसको नदी में फेंक दिया था आज तक उसका पता नहीं चला जज ने कहा- मेरे हाथ से आज तक कोई गलत फैसला नहीं हुआ। समझ लो उस हत्या का आज तुम्हें दंड मिल रहा है। सजा तुम्हारी भी फांसी की ही होगी।

  कहानी अपनी जगह है। इस कहानी से हम एक बात अच्छे से समझ ले कि अगर हम कोई गलत काम करेंगे तो आगे-पीछे उसका परिणाम जरूर भोगना पड़ेगा। जीवन में कभी कोई गलत काम ना करने का संकल्प लो और तुम्हारे ऊपर यदि कोई गलत इल्जाम लग रहा है और तुम्हारे साथ को दुरभिसंधि हो रही है, तुम्हारे साथ कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है। यह मान करके चलो कि यह मेरे ही किसी षड्यंत्र का फल है, यह मेरे ही अपने पापों का फल है, मेरे अपने कर्मों का फल है, जिसे मुझे काटना है भोगना नहीं है। पाप को भोगते समय जो विचलित होते वह पाप भोगते है और जो स्थिर रहते वह कर्म काटते हैं, ठीक है, मुझे स्वीकार करना है।

 

  • षडयंत्र करना
  • षडयंत्र कारियों का साथ देना
  • षड्यंत्र का शिकार बनना

 

  1. षड्यंत्र से भयभीत होना

तुम्हारे विरुद्ध कभी, कोई, कैसा भी, कितना भी षड्यंत्र रचे, भयभीत मत होना। एक बात अपने मानस में स्थापित करके रखो कि जब तक मेरे पुण्य का उदय है सारी दुनिया भी मेरे खिलाफ हो तो मेरा बाल भी बाँका नहीं होगा। पापोदय आएगा तो मैं बेकसूर होऊंगा तो भी फँस जाऊंगा, डरने से क्या फायदा? अक्सर लोगो यह भय बहुत होता है, कोई मेरे विरुद्ध षड्यंत्र ना रचे, कोई मुझे साजिश में ना फसा दे, तुम सावधान रहो डरो मत। राजा नंद के महानंद की मृत्यु के उपरांत उसके महा आमात्य राक्षस ने चंद्रगुप्त मोर्य को मारने के लिए कितने षड्यंत्र रचे? आपने मुद्राराक्षस नाटक पढ़ा होगा तो पता होगा कि चंद्रगुप्त मौर्य को मारने के लिए उसने कई तरह के कुचक्र रचे पर चंद्रगुप्त के साथ चाणक्य का साया था जिसने चंद्रगुप्त मौर्य को कदम-कदम पर बचाया। चंद्रगुप्त के  राज्य अभिषेक की तैयारी थी और महा आमात्य राक्षस चंद्रगुप्त से प्रतिशोध लेने की ज्वाला में झुलस रहा था वह चाहता था कि किसी भी प्रकार से चंद्रगुप्त को रास्ते से अलग किया जाए। एक दासीपुत्र मगध का राज्याधिपति हो, यह कैसे संभव होगा? इधर चाणक्य को उसके गुप्तचर से मालूम पड़ गया कि चंद्रगुप्त के विरुद्ध कुछ षड्यंत्र चल रहा है। लेकिन चाणक्य तो चाणक्य था, उसने पूरे राज्य में खबर फैला दी कि चंद्रगुप्त गंभीर रुप से बीमार हो गए इसलिए राज्याभिषेक का समय अभी कुछ समय के लिए टाल दिया गया है। जब वह स्वस्थ होंगे तब उनका राज्याभिषेक होगा, यह बात पूरे मगध में फैल गई। राक्षस एक रोगी का भेष बनाकर वहाँ के राजवैद्य के पास पहुँचा, जैसे ही राजवैद्य के पास पहुँचा अपना असली रूप प्रकट कर दिया। महा अामात्य राक्षस को देखा तो राजवैद्य एकदम पूछ बैठा, क्या है? तब उसने कहा- सम्राट चंद्रगुप्त अभी बीमार है आपके पास चिकित्सा के लिए बुलावा आएगा अब मैं चाहता हूँ कि हमें उससे बदला लेना है। आपको अपने स्वामी के वध का बदला लेना है और आप ही यह काम कर सकते हैं राजवैद्य बोले- अरे मैं यह कैसे करूँगा? यह तो मेरे वैद्य कर्म के विरुद्ध है। अामात्य बोला- धर्म और कर्म को एक तरफ रखिए क्या आप अपने राजा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित नहीं करेंगे? आप चाहेंगे कि मगध में एक दासी पुत्र को राज्य का अधिकारी बनाया जाए। आपको यह करना होगा, तरीके से समझा करके राक्षस ने राज वैद्य को राजी कर लिया। थोड़ी देर बाद जब राजवैद्य को चन्द्रगुप्त की चिकित्सा के लिए बुलाया गया चंद्रगुप्त लेटा हुआ था देखने में बड़ा दुर्बल दिख रहा था। राजवैद्य ने सब देखा, नाड़ी वगैरा तो सब सामान्य थी लेकिन उसे तो अपना काम करना था सो अपना काम कर रहा था। वह बोला कि इनको सब कुछ ठीक है, थोड़ी सी दुर्बलता है एक खुराक औषधि लेने से वह दुर्बलता दूर हो जाएगी। मैं दवाई पिलाना चाहता हूँ जैसे ही दवाई के नाम पर जहर पिलाने के लिए राजवैद्य आगे हुआ तो चाणक्य ने कहा- ठहरो, अभी इसे कोई दवाई नहीं पिलाना है। अब चंद्रगुप्त कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, इस मगध का भावी राजा है। यद्यपि मैं आप पर कोई संशय नहीं करता लेकिन हम राजधर्म का पालन राजधर्म की तरह करना चाहते है राजा की सुरक्षा के लिए हम हर किसी पर विश्वास नहीं करेंगे। आपकी औषधि का पहले परीक्षण होगा उसके बाद इन्हें औषधि पिलाया जाएगा। मैं बिल्ली को पिला करके देखता हूँ कि औषधि पीने लायक है या नहीं। राजवैद्य ने देखा कि मैं तो बुरा फँसा, वह राक्षस के द्वारा रचे गए इस कुचक्र में, षड़यंत्र में सम्मिलित होने के कारण घोर आत्मग्लानि से भर गया। वह जहर की प्याली को खुद पी गया, उसका प्राण अंत हो गया, चंद्रगुप्त बच गया, चंद्रगुप्त को कुछ नहीं हुआ।

राक्षस को पता लगा कि चंद्रगुप्त बच गया तो अब उसके अंदर बेचैनी और बढ़ गई। बाद में मालूम पड़ा कि चंद्रगुप्त के लिए एक विशेष महल बनाया जा रहा है। उस महल के भीतर एक गुप्त द्वार भी है, सुरंग के रूप में जो सुरक्षा से निकलता है। राक्षस ने उस महल को बनाने वाले शिल्पकार से अपना संबंध बनाया उससे उस महल के बारे में पूरी जानकारी ली और अपनी सेना को एकत्रित किया। सुरंग के माध्यम से कुछ सेना को भेज दिया और कुछ लोग जाकर महल में घुस गए। बोला गया कि जैसे ही चंद्रगुप्त चाणक्य के साथ इस महल में प्रवेश करेगा तुम लोग अपना काम कर देना और चंद्रगुप्त को रास्ते से अलग कर देना लेकिन चंद्रगुप्त के साथ तो चाणक्य था। राजमहल में प्रवेश करने की जब बात आई, चंद्रगुप्त बड़े उत्साह के साथ उसमें प्रवेश करने जा रहा था कि अभी तक तो कुटिया में रहा आज राजमहल में जा रहा हूँ चाणक्य ने कहा- ठहरो इस महल में प्रवेश से पूर्व महल का निरीक्षण करना आवश्यक है। जब लोग महल में गए तो वहाँ उसे चीटियाँ दिखाई पड़ी। चाणक्य को समझ में आ गया कि दाल में कुछ काला है। जिस महल में एक अनाज का दाना भी नहीं है वहाँ चीटियाँ कहाँ से आ गई, उसे तुरंत संशय हुआ। वह बाहर निकल करके बोला-इस महल में आग लगा दो। चंद्रगुप्त को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना सुंदर महल पर आप आग लगवा रहे हो। चाणक्य बोले- चन्द्रगुप्त तुम चुप रहो, तुम्हे वह ही काम करना है जो मैं कह रहा हूँ, बिना विचारे हमें कुछ काम नहीं करना चाहिए। महल में आग लगा दी गई राक्षस के द्वारा नियुक्त सैनिकों की चीख पुकार मचना शुरू हो गई, सबको पता लग गया कि अपनी करनी का फल क्या होता है।

अब भी राक्षस को चैन नहीं पड़ा। फिर राक्षस ने एक विषकन्या को चंद्रगुप्त के पास भेजा। चंद्रगुप्त के राजतिलक के समय अनेक राजा महाराजा आए थे। राजा महाराजाओं ने भेंट किया तो उसमें से एक छदम में राजा ने अपने आपको कश्मीर का राजा बनाया और उसे विषकन्या भेंट कि। एक पल को चंद्रगुप्त भी उस कन्या को देख कर मुग्ध हो गया लेकिन चाणक्य ने बात को बीच में ही रोकते हुए कहा- यह कन्या बहुत खूबसूरत है। यह कन्या आपने चंद्रगुप्त को दी है अब हम इसे यह राजा पर्वत को देते है, वह हमारा सहयोगी रहा है। चंद्रगुप्त ने कहा- आप क्या कर रहे हो? चाणक्य बोले- यह ही ठीक है इस कन्या को पर्वत को दिया जाए पर्वत को वह दे दी गई। पर्वत कुछ दिन बाद उस विषकन्या का शिकार हो गया और मारा-मारा फिरा। कितने सारे षड्यंत्र चंद्रगुप्त के वध के लिए राक्षस ने किए पर चंद्रगुप्त का बाल भी बाँका नहीं हुआ। कहानी में इसलिए नहीं सुना रहा हूँ कि आप लोगो को चंद्रगुप्त की हकीकत सुनाओ। मैं तुमसे केवल इतना ही कहता हूँ तुम्हारे विरुद्ध ओचाहे कितना भी गुप्त षड्यंत्र क्यों ना हो, घबराना नहीं, अपने निष्ठा के चाणक्य को, अपनी नीति के चाणक्य को साथ लेकर चलना, तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा, घबराना नहीं लोग डरते हैं मेरे विरुद्ध साजिश ना हो, चालबाजी  करने वाले चाहे जितनी चालबाजी क्यों न दिखाएं जब तक तुम्हारे पुण्य का उदय है, उनकी एक चाल नहीं चलेगी। यह समझदारी हमारे अंदर होनी चाहिए। इतनी समझ अगर हमारे भीतर विकसित हो गई तो फिर ज्यादा कुछ कहने और करने की बात नहीं होगी। घबराते क्यों हो? अपने पुण्य पर भरोसा रखो, कुछ भी नहीं बिगड़ेगा, लोग तो थोड़ी-थोड़ी बातों में उदास हो जाते है। हकीकत में जो षड्यंत्र है ना षड्यंत्र, चालबाजी दुरभिसंधि के रूप, पर षड़यंत्र है क्या? षट यंत्र से षड्यंत्र बना, मतलब  मारन, ताड़न, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तम्भन, विषफारन, यह 6 प्रकार की क्रियाएं होती थी तंत्र की।

  1. मारन- अर्थात तंत्र विद्या के द्वारा किसी को मार दे।   
  2. ताड़न- मतलब उसे किसी तरीके से प्रताड़ित करे।  
  3. उच्चाटन- अर्थात उच्चट शब्द से व्यक्ति किसी को उच्चट कर दें यानी लोगों को तितर-बितर कर दे, लोगों को बिगाड़ दे।
  4. सम्मोहन- अर्थात व्यक्ति को एकदम मोहित कर दें।
  5. स्तंभन की एक प्रक्रिया होती सामने वाले के क्रियाकलाप को सीमित कर दे, एक जगह कीलित कर दे।
  6. विषफारन जो व्यक्ति को तोड़-फोड़ दे, उसका विनाश कर दे।

यह सब कुचक्र एक युग में चलता था। आगे चलकर राजनीति में आया और वह राजनीति में आ करके व्यक्ति-व्यक्ति के भीतर घुस गए और कुचक्र रच-रच कर लोग कुछ का कुछ करने लगे। लेकिन ध्यान रखना जिसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा जाए उसका कुछ हो यह उसके कर्म पर निर्भर है लेकिन जिसने षड्यंत्र रचा है उसका तो बुरा होकर ही रहेगा इसमें कोई संशय नहीं।

कंस ने श्री कृष्ण के विरुद्ध कितने षड़यंत्र रचे? रचे कि नहीं रचे? जन्म के पहले से ही षड़यंत्र था, देवकी को अपने कैद में रख लिया। अपनी बहन को अपने कब्जे में रखा लेकिन क्या हुआ? क्या कंस श्री कृष्ण के जन्म को रोक सका? जन्म लेने के बाद उसने पूतना को भेजा श्री कृष्ण को मारने के लिए, पूतना ने कैसा छलावा का रूप रखा। कृष्ण को मारने के लिए नंद गाँव गई। क्या हुआ? पूतना का सफाया हुआ। श्रीकृष्ण का क्या हुआ? पूरे जीवन काल में श्रीकृष्ण को बाल काल से लेकर राज्य काल तक अनेक-अनेक दुरभिसंधि का सामना करना पड़ा लेकिन क्या हुआ? श्री कृष्ण का क्या बिगड़ा? श्री कृष्ण का कुछ नहीं बिगड़ा। कंस जिसका कोई नाम भी लेना पसंद नहीं करता। बस मैं तुमसे केवल इतना ही कहता हूँ तुम्हारे विरुद्ध चाहे जितने कंस खड़े हो, घबराना नहीं तुम्हारे विरुद्ध चाहे कितने भी कंस क्यों ना पैदा हो जाए घबराना मत। श्री कृष्ण के आदर्श को आत्मसात करना, एक दिन कंस को मुँह  की खानी पड़ेगी। वह कहीं का नहीं रहेगा। तुम्हारे विरुद्ध कोई षड्यंत्र करें और तुम भी उसका जवाब षड़यंत्र से दो तो दोनों एक से हो गए, फिर अंतर क्या रहा दोनो के बीच? धैर्य से, समझदारी से, समता से उसका सामना करो। वह ही तुम्हारे जीवन के लिए उपलब्धि होगी अन्यथा सब कुछ तहस-नहस हो जाता है। अपने जीवन को बर्बादी की कगार से बचाने के लिए, हमें जीवन की इस सच्चाई को समझने की जरूरत है। अगर हम इन बातों को समझ कर चलेंगे तो कहीं कुछ गड़बड़ नहीं होगी। इस तरह के कुचक्र रचते है और कभी अपने ही कुछ इस कुचक्र के शिकार बनते है। शेर को सवा सेर मिल जाता है। अपने आपको इससे बचाने की जरूरत है।

चितरंजन दास बसु ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। जिनके नाम से चितरंजन का कारखाना बना। फर्स्ट क्लास में थे ट्रेन अपनी रफ्तार में थी। इसी मध्य एक युवती उनके कंपार्टमेंट पर आ गई। बसु साहब अखबार पढ़ रहे थे, उस युवती ने कहा- कि आप हमें एक हजार रुपए दो अन्यथा मैं चिल्ला करके लोगों को बोल दूंगी कि आपने मेरे साथ बदतमीजी की है। बसु साहब तो पक्के वकील थे, बैरिस्टर थे, उन ने अखबार पढ़ते हुए ही इशारे से कहा- मैं बोल नहीं सकता, मैं सुन नहीं सकता, तुम क्या कहना चाहती हो लिख कर बता दो, मैं पढ़ लूंगा। वह युवती तो बावली थी, लिख दिया कि मुझे एक हजार दो नहीं तो मैं चिल्ला करके बोल दूंगी कि तुम ने मेरे साथ बदतमीजी किया। उसने कागज में लिखा, उन्होंने कागज को उठाया, अपने एक खीसे में डाला और जोर से एक घुसा उसके पीछे पीठ पर मारा और बोले- चिल्ला, कितना चिल्लाना है? वह अपने ही चाल में फँस गई। आजकल व्यक्ति कहीं न कहीं कुचक्र करता है तो कुचक्र का शिकार भी बनता है। एक सिद्धांत बनाइए कि कभी हम किसी के साथ दगाबाजी नहीं करेंगे, किसी के साथ हम इस तरह का षड्यंत्र नहीं करेंगे, किसी का विश्वासघात नहीं करेंगे, किसी के साथ छल नहीं करेंगे, तभी हम अपने जीवन को पवित्र बनाने में समर्थ हो पाएंगे। ष से षड्यंत्र से हमें बचना चाहिए, जो हमारे जीवन को सड़ाए उससे अपने आप को बचाना चाहिए।

 

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