चाह गई, चिन्ता मिटी
आज बात च की है, च से बहुत सारी बातें जुड़ी हैं। आप सब भी सोच रहे होंगे कि आज महाराज अपनी बात कहाँ से शुरु करते हैं। जब च की तरफ देखता हूं तो मेरे सामने चाह आती है। आप सब प्रवचन सुनने की चाह लेकर आए हैं। एक दूसरा शब्द आता है चिंता जो सबके हृदय में समाया हुआ है। एक शब्द दिखाई पड़ता है चेष्टा जिसकी चर्चा अभी मुझे करनी है और एक शब्द है चिंतन।
चाह, चिंता, चेष्टा, चिंतन।
और थोड़ी देर के लिए हम इन सब चीजों पर विचार करेंगे। मनुष्य के मन में अंतहीन चाह है और वह चाह उसके जीवन के लिए कांटो की राह बन जाती है। मनुष्य के मन में जो भी दुविधाएं उत्पन्न होती है, वह उसके मन में पलने वाली असीमित चाह के कारण होती है और चाह से ही चिंता होती है।
कहते हैं-
चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।
जिनको कुछ नहीं चाहिए, वे साहन के साह।।
अगर मन की चाह मिट जाए तो फिर कोई चिंता शेष नहीं रहती, जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वह शहंशाह बन जाते हैं लेकिन आज मैं आप सबसे मुख्य रुप से बात करूंगा- चिंता की। चिंता एक बीमारी है, बीमारी नहीं महामारी है। दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसके मन में किसी प्रकार की चिंता हावी ना होती हो। छोटा सा बच्चा हो या वृद्ध, युवक या युवती। हर व्यक्ति के हृदय में किसी न किसी प्रकार की चिंता है। बच्चा जब पढ़ता है तो उसे अपनी पढ़ाई की चिंता होती है, पढ़ाई करने के साथ-साथ उसे अच्छे मार्क्स लाने की चिंता होती है। आगे बढ़ता है तो उसके मन में प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने की चिंता होती है और उसमें अगर सफल हो जाए तो अच्छे rank लाने की चिंता होती है। अच्छे rank पा जाए तो अच्छी पोस्ट पाने की चिंता होती है और अच्छी पोस्ट पा जाए तो प्रमोशन की चिंता होती है। प्रमोशन हो जाए तो अपने पोस्ट में stable बने रहने की चिंता होती है। कोई व्यापारी यदि व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ता है तो व्यापार शुरू करने की चिंता, शुरू कर देने के बाद स्थिर होने की चिंता, स्थिर होने के बाद वह फेल ना हो जाए इसकी चिंता, ना जाने कितने प्रकार की चिंता आप सबको सताती है। वस्तुतः मनुष्य जन्म लेता है, जब से होश संभालता है उसके मन में किसी न किसी प्रकार की चिंता उत्पन्न होती रहती है। यह चिंता मनुष्य को चिता में जलने के पहले तक जलाती रहती है। चिता की आग तो मुर्दे को जलाती है, चिंता मनुष्य को जीते जी जलाती है। यह हर मनुष्य का अपना अनुभव है, है कि नहीं बोलिए? आप लोगों को कोई चिंता है कि नहीं, सब कोई चिंता करते हैं और किसी न किसी प्रकार की चिंता करते हैं।
चिंता में भी चार प्रकार की स्थितियां है, जिसकी आज मैं आप सब से चर्चा करूंगा- चिंता करना, चिंता में डालना। कोई व्यक्ति चिंता करते हैं, कोई व्यक्ति दूसरों को चिंता में डालते हैं।
चिंता करना, चिंता में डालना, चिंता मिटाना, चिंता छोड़ना चारों स्थितियां है।
हमें चारों से बचना है, सबसे पहले इन चारों में तीन से बचकर के चौथे में आना है।
चिंता करना– आप सब चिंता करते हैं? क्यों करते हैं? कभी आपने विचार किया, आपके मन में चिंता आती है, तो क्यों आती है? कभी सोचा, आप लोगों का अनुभव जानना चाहूंगा? मैं तो अपनी बात करूंगा ही, इस सभा में ऐसा कोई व्यक्ति है, जिसे आज तक कोई चिंता ना हुई हो, नहीं है ना। तो चिंता क्यों होती है? अपेक्षा ज्यादा होने के कारण। अपेक्षा हमें चिंतित नहीं करती, अपेक्षा हमें दुःखी बनाती है। चिंता के पीछे कुछ कारण है, गलत कार्य हो जाए तो चिंता है। चिंता क्या है, चिंता एक प्रकार का हमारे अंदर का संकोच है, हमारे विचार का किसी एक स्थान पर आ कर रुक जाना और उसका हावी हो जाना- चिंता है और विचार के प्रवाह का सदैव प्रवर्तित हो जाना- चिंतन है। चिंता कब आती है- जब आपके सामने कोई समस्या आती है और आप उसको पूर्ण नहीं कर पाते। कोई भी समस्या आए, कोई प्रतिकूल परिस्थिति आए, कोई प्रसंग आया या और कोई बात घट गई। आप वहां अटक गए, एक ही बात चित्त में बार-बार दोहराना, बार-बार दोहराना कि अब क्या होगा, अब क्या होगा? यह समस्या आ गई, कैसे पार होंगे? आपके चिंतन का एक जगह अवरुद्ध हो जाना चिंता है और चिंतन विचार के प्रवाह का आगे बढ़ जाना चिंतन है। चिंता हमारे लिए अवरोध उत्पन्न करती है और चिंतन हमारा रास्ता खोलता है। चिंतन में रास्ता खुलता है, चिंता सारे दरवाजे बंद कर देती है। हम आपसे पूछते हैं जब आपके सामने कोई काम आए, जब आपके सामने कोई परिस्थिति आए, जब आपके सामने कोई प्रसंग खड़ा होता है तो आपकी स्थिति क्या होती है? आप चिंता में आतुर होते हो या चिंता में लीन होकर, चिंतन में लीन होकर उसका रास्ता खोलते हो? यदि आपके सामने समस्या खड़ी है, तब तक आप चिंता में हैं और यदि आपने समाधान का रास्ता पकड़ा है, समझ लेना चिंतन में है। समस्या खड़ी है तो चिंता और समाधान के रास्ते को अंगीकार किया है तो वह चिंतन है। चिंतन समाधान के संभावनाओं को देता है और चिंता हमारी संभावनाओं को नष्ट-भ्रष्ट कर देती है तो कही आकर हमारे विचारों के रुक जाने का नाम चिंता है। समझ में आ गया। कोई बात हो, कई लोग छोटी-छोटी बातों में चिंता करते हैं, कहीं काम अटक तो नहीं जाएगा। बहुत से भाई लोग यहाँ चातुर्मास स्थापना के पूर्व जब तैयारियां चल रही थी तब लगातार बारिश को देखकर बड़े चिंतित हो रहे थे कि क्या होगा, क्या होगा। चातुर्मास स्थापना कि डेट फाइनल है, बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही है, पंडाल बन पायेगा कि नहीं। मेरे पास आए, मैंने बोला- चिंता मत करो अपना काम करो, होना होगा तो हो जाएगा नहीं तो alternate व्यवस्था बन जाएगी, एक व्यवस्था अपने साथ लेकर के चलो। हम परिस्थितियों को नहीं बदल सकते लेकिन परिस्थितियों के अनुरूप अपनी मनःस्थिति को ज़रूर बना सकते है और यदि हमने अपनी मनःस्थिति बना ली तो हमारे सामने कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो वह हावी नहीं होगी।
जीवन में कोई भी प्रसंग आए, कोई भी परिस्थिति आए, अगर तुम ठहर गए तो जीवन अवरुद्ध हो गया और यदि तुमने अपने चिंतन के प्रवाह को आगे बढ़ाया और अपने काम में लग गए तो दुनिया में कोई तुम्हारा रथ रोकने वाला नहीं। यह चिंता किनको होती है? चार बातें मैं कहूंगा- चिंता के संबंध में और फिर चार बातें हम आपसे कहेंगे चिंता को मिटाने के संबंध में।
पहली बात जो मैं आपसे कह रहा हूं- चिंता करने की बात। चिंता कौन करते हैं, किन्हें चिंता होती है, क्यों चिंता होती है? तो सबसे पहली बात- जिनके हृदय में नकारात्मक सोच होती है, जिनकी सोच नकारात्मक होती है, वह सदैव चिंता में पड़ते हैं। आप अपने मन को टटोल कर के देखिए जब भी आपके चित्त में चिंता हावी हुई होगी। आप देखिएगा, नेगेटिव बातों को लेकर के ही आपका चित्त चिंतित होता है। नकारात्मकता ही आपको चिंता में डालती है। आपका बेटा घर से बाहर गया, बोल करके गया था कि मैं शाम 8 बजे तक लौट आऊंगा। 8 बजे की जगह 10 बज गए, बेटा लौटा नहीं है। आपके मन में क्या आता है, चिंता आती है? और मोबाइल पर उसको रिंग कर रहे है, रिंग जा रही है, रिस्पांस नहीं आ रहा है। बताइए आपके मन में क्या होगा? चिंता, किस तरह की? कहीं एक्सीडेंट तो ना हो गया हो, क्या मामला है? पूरी घंटी जा रही है, उठ नहीं रहा है, मामला क्या है? 8 बजे आने वाला था, 10 बज गए क्या हो गया? धड़कन बढ़ेगी, घबराहट बढ़ेगी, यह चिंता हो गई है, आपकी। क्यों? आपके मन में यह ख्याल क्यों आता है कि कोई एक्सीडेंट ना हो गया हो? यह ख्याल क्यों नहीं आता कि हो सकता है कोई अर्जेंट काम आ गया हो, जिस काम से गया उसमें और कोई नई बात आ गई हो, कोई और अच्छी संभावना आ गई हो। ऐसा क्यों नहीं सोचते, बोलिए, क्या होता है? जबकि आपने चिंता की कि मेरे बेटे को कुछ हो तो नहीं गया है, कुछ हो तो नहीं गया है और बेटा ठीक 10 मिनट बाद घर आ गया। आपने बेटे को देखा, चेहरा खिल गया। बेटा कहाँ था तू अब तक? इतनी बार तेरे को रिंग कर रहे हैं, फोन कर रहे हैं, तेरा फोन रिस्पांस नहीं कर रहा। दो घंटे से हमारे अंदर कितनी बेचैनी है, तू था कहाँ और फोन रिसीव क्यों नहीं किया? बोला, क्या बताऊं? हमने काम किया काम करते-करते एक आवश्यक मीटिंग आ गई, हमने फोन को साइलेंट रख दिया था और फोन साइलेंट रखने के कारण वह अभी तक साइलेंट पड़ा हैं। आपने कितनी रिंग की हमें पता नहीं, मैं तो आ रहा था एक extra मीटिंग आ गई इसलिए 2 घंटे extra लग गए और हमें एक बड़ी सफलता मिली है, हम जिस काम के लिए गए थे उस एक काम के साथ चार काम करके लौटे हैं। अब बोलिए, आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
खामोखा हमने चिंता कर ली। है आपकी ऐसी नकारात्मक सोच को बदलना शुरू कर दीजिए। कोई भी घटना, कोई भी प्रसंग और कोई भी परिस्थिति, कोई भी निमित्त आएगा, हम उसे नकारात्मक लहजे में नहीं लेंगे, आप निश्चिंत हो जाएं। बड़ी विचित्रता होती है हर बात में व्यक्ति नेगेटिव सोच-सोच कर परेशान होता है। एक दंपत्ति मेरे पास आये, पति ने धर्मपत्नी की ओर देखते हुए कहा- महाराज! इनको समझाइये। मेरे बेटे का IIT में सलेक्शन हो गया और IIT दिल्ली में जैसा चाहता था, वैसा सब्जेक्ट मिल गया, अच्छा Rank था। IIT दिल्ली में selection हो गया। महाराज! मैं अभी उसको छोड़ कर के आया हूं और 3 दिन से इनको नींद नहीं आ रही है। इतने सालों से तो हम यह सोचते थे कि हमारा बेटा IIT में select हो जाएगा तो आगे चलकर के उसका कैरियर अच्छा बन जाएगा। अच्छा selection हो गया, मन मुताबिक Rank भी मिल गई और मन मुताबिक subject भी मिल गया। सब कुछ मिल गया पर मेरी धर्मपत्नी 3 दिन से सो नहीं पा रही है, ढंग से खा भी नहीं पा रही है। हमने पूछा क्यों क्या बात है? तो बोली इसको चिंता हो रही है कि कॉलेज में उसके साथ कोई दुर्व्यवहार तो नहीं होगा। आजकल IIT में बहुत गड़बड़ होता है। क्या भाई! यह तो उल्टी सोच है? हजारों लोग IIT में सिलेक्ट होते हैं और अपने जीवन को आगे बढ़ाते हैं। कोई 2-4 बिगड़ते होंगे या 2-4 के साथ दुर्व्यवहार होता होगा, सबके साथ थोड़ी होता होगा। तुम यह क्यों सोचते हो कि मेरा बेटा दिल्ली के IIT में गया है, कहीं उसके साथ गड़बड़ ना हो जाए। यह क्यों नहीं सोचते कि मेरा बेटा कितनी मेहनत से आगे बढ़ा और मन- मुताबिक subject, मन – मुताबिक कॉलेज को प्राप्त कर लिया। वह सफल होगा, सफलता के शिखर पर पहुंचेगा, यह क्यों नहीं सोचते?
आप अपने मन को टटोलिए, आपके साथ जब कभी भी ऐसा प्रसंग आता है तो आपके हृदय में प्रसन्नता आती है या चिंता? अगर आपकी सोच सकारात्मक होगी तो आपका हृदय अंदर से आनंदित होगा, यदि सोच नकारात्मक होगी, आप हमेशा दुःखी होओगे। एक सज्जन के बेटे ने दुकान start की, एक बड़ी कंपनी की उसको एजेंसी मिल गई, शोरूम खोला। उसमे अच्छे-अच्छे लोग लगे हुए थे। इनको मिल गया, उसमें बेटे की कुशलता थी। बेटे ने अपनी पूरी की पूरी कुशलता के बल पर अपने संपर्कों और संबंधों के बल पर वह एजेंसी ले ली और शोरूम खुल गया। शोरुम का ओपनिंग हुआ, ओपनिंग होने के दूसरे दिन पिताजी बड़े उदास हो गए- बेटे ने इतना रुपया लगाकर के शोरूम तो खोल लिया। कहीं शोरूम चले नहीं तो गड़बड़ ना हो जाए, पता नहीं चलेगी की नहीं चलेगी। आप लोगो के साथ कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है, काम की शुरुआत कर लेते हो और परिणाम की चिंता करना शुरु कर देते हो। अरे! पता नहीं हम success होंगे, कि नहीं होंगे? success की चिंता और fear feeling मनुष्य को बहुत ज्यादा अशांत और उद्वेगीत कर डालती है। बिल्कुल इन सब बातों से बचिए, नकारात्मकता अगर हावी होगी तो आप चिंता के चक्रव्यूह से कभी बाहर निकल नहीं पाएंगे। अपनी सोच को सकारात्मक बनाइए, हर बात को मैं सकारात्मक लहजे में लूंगा, आप चिंता से बाहर हो जायेंगे, कभी आपको किसी प्रकार की चिंता नहीं होगी।
दूसरी बात- इस नेगेटिविटी को खत्म करने के लिए आपको आत्मविश्वासी बनना होगा। जिनका आत्मविश्वास कमजोर होता है, नकारात्मकता मनुष्य के आत्मविश्वास को कमजोर करती है और जिनका आत्मविश्वास कमजोर होता है, उनकी नकारात्मकता बड़ी तेजी से बढ़ती है। आत्मविश्वास की कमी सदैव आपको चिंता में डालेगी। कुछ भी करें पता नहीं होगा कि नहीं होगा, कैसे होगा? यह सवाल वह करते हैं, जिनका आत्मविश्वास कमजोर है। कैसे करना है, यह चिंतन वह करते हैं जो आत्मविश्वास से मजबूर है। अपने मन से पूछो, जब कोई काम आता है तो तुम्हारे मन में क्या विचार आते हैं, क्या ख्याल आते हैं, कैसे होगा या कैसे करना है? क्या होता है? बोलो, कैसे होगा इसकी चिंता या कैसे करना है इसका चिंतन? मैं कर लूंगा यह आत्मविश्वासी कहता है और होगा कि नहीं यह जिनके आत्मविश्वास की कमी होती है वह कहते हैं। कुछ भी करना है मैं कर लूंगा और मैं सकता हूं, मैं इसमें capable हूं। मैं नहीं कर सकता, यह दिमाग में आना ही नहीं चाहिए। अगर शुरु किया है, मैं करूंगा। कोई चिंता नहीं होगी, बड़े आनंद से आप चलेंगे, आपका confidence buildup होगा।
मुझसे एक बार किसी ने कहा- महाराज जी! आप प्रवचन करने के लिए बैठते हैं। हम देखते हैं, आपके पास में ना कागज होता है, ना पेन होता और आप बैठते है बस शुरू हो जाते हैं और बस आपकी जो चलती है बात, धाराप्रवाह चलती रहती है। आपके मन में कोई प्रवचन को लेकर टेंशन नहीं होता। हमने कहा- भैया! मैं यह सोच करके बैठता हूं कि मैं जो बोलूंगा, वह अच्छे से बोल लूंगा फिर मेरे मन में कोई चिंता नहीं होती मेरा कॉन्फिडेंस ही इतना है। कही भी शुरुआत करूँगा, यह ‘क, ख, ग..’ की जो शुरुआत मैंने की, जिस दिन यहां बैठा था शुरूआत किया था, पहले से कोई मानसिकता मेरी नहीं थी। बस यह सोच रहा था कि कोई श्रृंखला मुझे अब चालू करनी है, यही मंच पर बैठा, मंच पर बैठकर के मन में आया चलो अब ABCD हो गई अब ‘क, ख, ग….’ शुरू करते हैं। ‘क’ से शुरू करो फिर देखा जाएगा, पहला शब्द मैंने सुनाया था ‘कला’ और आज वह पूरी कला देख रहे हो। यह किसने कराया, मेरे आत्मविश्वास ने। यदि मैं चिंता में पड़ जाऊं, हँस जाऊ, बोल पाऊंगा कि नहीं बोल पाऊंगा, बात तो शुरु कर दिया, होगा कि नहीं होगा तो कहते हैं- ‘संशयात्मा विनश्यति’। जो doubt में झूलते हैं वो झूलते ही रहते हैं, कुछ नहीं कर पाते, आप जो काम कीजिए आत्मविश्वास के साथ कीजिए। अति आत्मविश्वासी मत बने। कॉन्फिडेंस रहना चाहिए, ओवरकॉन्फिडेंस नहीं। कुछ लोगों का कॉन्फिडेंस एकदम जीरो होता है और कुछ लोग ओवरकॉन्फिडेंस कर लेते हैं, यह दोनों गफलत में फंस जाते हैं। हमें इन से बाहर आना है जो काम मुझे करना है, full कॉन्फिडेंस के साथ करना है। यदि आप ऐसा करेंगे, जीवन में कभी विफल नहीं होंगे। मैं अपने जीवन की सफलता का रहस्य यही जानता हूं कि मैं आज तक कभी अपने आत्मविश्वास को खोया नहीं और मेरे अंदर किसी भी बात को लेकर कभी कोई नकारात्मकता हावी नहीं होने दिया, मैं आगे बढ़ता गया। आप इनको हावी मत होने दें। सवाल पूछा- नकारात्मकता को हम हावी कैसे ना होने दें? तो मैं उसके लिए
तीसरी बात करता हूं- कर्म सिद्धांत के विश्वासी बनिए, चिंता हावी नहीं होगी। कर्म सिद्धांत के विश्वासी, जो मेरे कर्म के उदय में होगा, होगा। संसार के सारे संयोग हमारे अधीन नहीं हैं, सब कर्म के आधीन हैं। जिसके हृदय में कर्म पर विश्वास होता है, वह कभी भटकता नहीं और जो कर्म के ऊपर विश्वास नहीं करता, वह कभी एक जगह टिकता नहीं। उसके चित्त में सदैव चिंता हावी होती है। सकारात्मक सोचने के लिए आत्मा का विश्वास और कर्म सिद्धांत पर विश्वास यह दो बातें आपके हृदय में अंकित हो जाए, आपके मन में कभी नकारात्मकता हावी नहीं होगी और नकारात्मकता हावी नहीं होगी तो सिर पर कभी चिंता नहीं होगी। मैं आप से कहता हूं- चिंता से बचना है, कर्म सिद्धांत पर विश्वास कीजिए और यह बात अपने हृदय में गाढ़ रूप से स्थापित कर लीजिए कि संसार के सारे संयोग कर्म के अनुकूल चलते हैं। मेरे हाथ में केवल प्रयास है, परिणाम नहीं। मेरे हाथ में प्रयास है, परिणाम नहीं। Effort हैं, रिजल्ट नहीं। जो मैं कर सकता हूं, वह मुझे करना है। पता नहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए, कहीं कर्म का उदय, उल्टा ना हो जाए। जो होना होगा सो होगा, जो मैं कर सकता हूं मैं करूंगा। मेरे हाथ में मेरा पुरुषार्थ है, मेरे हाथ में मेरा प्रयत्न है, मेरे हाथ में मेरा प्रयास है, मेरे हाथ में मेरा उपक्रम है। वह मैं करूंगा, वह मैं कर सकता हूं। परिणाम जो आये उसे स्वीकार करुंगा। अच्छा है तो, बुरा है तो, मैं उसे स्वीकार कर लूंगा। यह धारणा आपके अंदर आ जाए तो फिर कभी चिंता आपके मन में हावी होने वाली नहीं है। लोग आज के समय में प्रयास कम करते हैं, परेशान ज्यादा होते हैं। संत कहते है- ‘प्रयास करो, परेशान मत हो।’ तो आप के चित्त पर कभी चिंता नहीं होगी और
चौथी बात- भविष्य की शंका, insecurity का डर, असुरक्षा का भाव । भविष्य की चिंता होगी, क्या होगा? अरे! वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा। चिंता करने की बात क्या है? यह जो भविष्य की चिंता होती है वो मनुष्य को कहीं का नहीं छोड़ पाती।
एक व्यक्ति एक मनोचिकित्सक के पास बड़ा घबराया हुआ आया, पसीने में तरबतर। उसने कहा- भैया! क्या बात हो गई? मैंने रात में बड़ा बुरा सपना देख लिया, रात में मैंने बड़ा बुरा सपना देख लिया। डॉक्टर बोला- क्या देखा, घबराया हुआ क्यों हैं? बोला- डॉक्टर साहब हद हो गई, बहुत बुरा सपना देखा। भला क्या देखा? रात सोते हुए मेरे पेट के ऊपर से चूहा निकल गया। उसने कहा, हद हो गई भाई, इतना परेशान क्यों हो, चूहा ही तो निकला हैं हाथी थोड़ी निकल गया? डॉक्टर साहब इसीलिए तो आपके पास आया हूं, आज चूहा निकला हैं, कल हाथी ना निकल जाए, रास्ता जो बन गया हैं। ऐसे इंसानो को कौन समझाएगा। तुम लोग चूहा निकलता देखकर हाथी निकलने की शंका पालते हो और अपने जीवन में बहुत बड़ी दुविधा डाल देते हो। भविष्य की चिंता मत कीजिए। एक बात आपने गाँठ में बांध के रखिए जो कल देगा वह कल की व्यवस्था देगा। चींटी को कण और हाथी को मण मिल ही जाता हैं। जो चौंच देगा, वह चुग्गा भी देता है, यह विश्वास अपने मन में होना चाहिए। क्यों चिंता करें, कल क्या होगा, कल क्या होगा, कल की चिंता में आज को विफल करने वाले व्यक्ति अपने जीवन को कभी सफल नहीं बना सकते और जो आज का सही उपयोग करते हैं, उनका आने वाला कल सदैव उज्जवल बनता है तो भविष्य की चिंता करने की जगह वर्तमान में जीने का अभ्यास कीजिए, आपके अंदर से चिंता कभी हावी नहीं होगी।
एक बार एक युवक ने मुझसे सवाल किया- महाराज! आप कहते हैं, भविष्य की मत सोचो, भविष्य की मत सोचो लेकिन आप ही लोग कहते हैं कि मनुष्य को दूरदर्शी होना चाहिए। मैंने कहा- हाँ, मनुष्य को दूरदर्शी होना चाहिए दुःखदर्शी नहीं होना चाहिए। दूरदर्शी और दुःखदर्शी में क्या अंतर है? भविष्य के विषय में सतर्क रहना दूरदर्शिता है और भविष्य की शंका में उलझ जाना दुःखदर्शिता है। कल मुझे क्या करना है, इसकी योजना बनाना कतई गलत नहीं है लेकिन उसी में उलझ जाने से ज्यादा गलत और कोई नहीं है। कल के विषय में आप सावधान हो जाइए, सतर्क हो जाइए कि कल कुछ मेरे सामने गड़बड़ ना हो जाए, कल कोई विषमता खड़ी ना हो जाए, कल कोई विपरीत स्थिति का मुझे सामना ना करना पड़े, कल कोई मुसीबत मेरे सामने आकर खड़ी ना हो जाए, यह सावधानी सतर्कता है। जो समझदारी मानी जाती है। पर कल कहीं गड़बड़ ना हो जाए, यह शंका पागलपन हैं। आप कार चलाते हो तो चलाते समय आपके मन में यह सावधानी होनी चाहिए कि मैं इस तरह से गाड़ी ड्राइव करुँ कि कोई दुर्घटना ना घटे। यह तो आप रखते हो ना? लेकिन गाड़ी पर बैठे नहीं, स्टार्ट नहीं की और कहे कहीं एक्सीडेंट ना हो जाए, कहीं एक्सीडेंट ना हो जाए तो ना होना होगा तो भी हो जाएगा। आप क्या करते हो? गाड़ी चलाने में तो फिर भी सावधानी रख लेते हो पर जिंदगी की गाड़ी चलाने में अक्सर चूक जाया करते हो।
संत कहते हैं- ‘जीवन की गाड़ी चलाओ, पूर्ण रफ्तार से चलाओ, सावधान होकर के चलो और चलाओ, पर चिंता अपने सिर पर हावी मत होने दो, तब जीवन सफल होगा’। मैं स्वस्थ रहूं- यह चिंतन हेल्थ कॉन्शियस है, आप उसके अनुरुप ठीक शुद्ध भोजन-पानी करो, अनुकूल हवा पानी में रहो और योग-प्राणायाम करो, अपनी जीवनशैली को वैसा रखो जिससे आप स्वस्थ रहें। आपको जितने स्वास्थ्य की चिंता होती है, उससे ज्यादा हमें अपने स्वास्थ्य की चिंता है। अंतर केवल इतना है आप को स्वास्थ्य के प्रति चिंता होती है और मेरे अंदर स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता है। जागरूकता और चिंता के अंतर को समझिए। सजग होना हमारा कर्तव्य है, धर्म है और चिंता करना मूढ़ता है, अज्ञानता है, पागलपन है। विज्ञान कहता हैं- ‘मनुष्य जैसे विचार करता है, उसकी तरंगे वातावरण में प्रभावित होती है और वैसी तरंगे हमारे चित्त पर हावी हो जाती हैं। अशुभ, अमंगल तरंग असुविधा को प्रकट करती हैं। तुम स्व के प्रति या पर के प्रति, किसी के प्रति भी ऐसा सोचोगे तो यह कुपरिणाम आए बिना नहीं रहेगा। इससे अपने आप को बचाइए, बाहर कीजिए। तो चार बातें मैंने आपको चिंता के विषय में कहा कि चिंता क्यों आती है?
नकारात्मक सोच के कारण, आत्मविश्वास की कमी के कारण, यथार्थ की अनदेखी यानी कर्म सिद्धांत को न समझ पाने के कारण और भविष्य के प्रति शंकापूर्ण दृष्टि बनाए रखने के कारण।
बस यह चिंता के कारण है, इनसे अपने आप को बाहर निकालिएगा। आपका मन कभी भी चिंता में नहीं पड़ेगा। तो चिंता करना समझ गए, हमें नहीं करना और इसमें सूत्र रूप में, मैं आप से कहता हूं- ‘प्रयास करो, परेशान मत हो, सतर्क रहो, शंका मत करो’।
यह दो बातें आपके मन में हो तो आप अपने आप को चिंता से मुक्त कर पाओगे। हम हमेशा कहते हैं, कोई भी समस्या आए हार मत मानो, चेष्टा करो, चर्चा मत करो। आप लोग क्या करते हैं? जब भी कोई समस्या होती है? मेरे सामने बड़ी प्रॉब्लम है, बड़ी समस्या आ गई, कोई रास्ता नहीं दिखता, कुछ समझ में नहीं आता। सारे गांव को सुनाते हो, तुम्हारा रोना सुनने के लिए कोई तैयार है? सबका अपना-अपना रोना है, तुम्हारा रोना कौन सुनेगा? चर्चा करके क्या पाओगे? लेकिन जब मनुष्य के मन में कोई इस तरह की चिंता या समस्याएं आती है, हारे हुए लोग होते है तो सारी दुनिया में अपना रोना रोते हैं और आरोप की भाषा मढ़ते हैं। कभी परिस्थितियों पर आरोप लगाते हैं, कभी व्यक्तियों पर आरोप लगाते हैं, निमित्तो की तरफ अपना ध्यान करते हैं, ऐसा हो गया ऐसा हो गया। भैया! चर्चा करने से क्या होगा, चेष्टा करो। इस परिस्थिति से हमें निपटना है उसके लिए अपना सब कुछ लगाओ, कैसे लगाए? उसके लिए चिंतन करो।
एक बात सदैव अपने मन-मस्तिष्क में स्थापित करके रखना- 99 दरवाजे बंद होते तो 100 वाँ द्वार खुलता है। हमारी दृष्टि खुले द्वार पर होनी चाहिए, बंद दरवाजों पर नहीं। आप लोग क्या करते हैं? खुले द्वार की तरह या बंद दरवाजे की तरह? अगर खुले द्वार की तरफ देखोगे तो तुम्हारे किस्मत का दरवाजा हमेशा खुला रहेगा और बंद द्वार की तरफ देखते रहोगे तो किस्मत का द्वार भी बंद हो जाएगा, इसे कभी भूलना मत। चिंता करना, चिंता से निश्चिंतता की ओर बढ़ना है तो पहली बात आप सब से मैंने की- चिंता करना।
दूसरी बात- किसी को चिंता में डालना। आपने आज तक कभी किसी को चिंता में डाला है, महाराज! रोज ही डालते हैं। कोई आपके निमित्त चिंता में क्यों फँसता है, क्यों डालते हैं? संत कहते है- ‘चिंता करो मत और किसी को चिंता में डालो मत’। चिंता में कोई कब डलता है? जब आप दायित्व विहीन आचरण करते हैं, आपसे संबंध लोग चिंता में पड़ेंगे, आपने तो कुछ भी कार्य कर लिया, आप का परिवार और आप के परिजन उसको लेकर के चिंता में है, आप से संबंध सारे लोग उसको लेकर के चिंता में है। अब क्या हो गया, किस को क्या जवाब देंगे? यह समस्या खड़ी हो गई, सामने वाले ने दायित्वविहीन आचरण किया, सामने वाले ने लापरवाही की और फंसे पूरे के पूरे परिजन। आपने ऐसा दायित्वविहीन कभी आचरण किया हो तो आज से संकल्प लो कि मैं कभी दायित्वविहीन आचरण नहीं करूंगा? फिर कई बार लोग होते हैं- परस्पर सूचनाओं का आदान-प्रदान ठीक ढंग से नहीं करते, इसलिए लोग चिंता में फंस जाते हैं। आज से संकल्प लो मैं कभी किसी को चिंता में नहीं डालूंगा। क्यों नहीं डालूंगा? चिंता करना जितना दुःख का कारण है, चिंता में डालना भी उतना ही बड़ा पाप है। जैन कर्म सिद्धांत की भाषा में शोक करना और शोक में डालना, दोनों तीव्र पाप के बंध का कारण हैं, असाता वेदनीय कर्म का कारण हैं। यदि तुम्हारे कारण कोई चिंतित होता है तो तुम्हारे निमित्त से हुआ है तो तुम भी पाप के भागी हो। इसलिए क्या करो? सूचनाओं के आदान-प्रदान में कभी कमी मत करो। जो तुम कहीं जाओ-आओ तो पहले बोल करके जाओ कि मैं आ रहा हूं, जा रहा हूं, आऊंगा तो इतने समय तक आऊंगा और यदि कदाचित लेट हो जाऊं तो समझ लेना मैं किसी काम में फंस गया, हो सकता है ज्यादा भी हो जाए, तुम wait मत करना, चिंता मत करना, मैं आऊंगा, information दे दूंगा। आप लोग ऐसा करते हैं, नहीं करते?
एक बार एक ने कहा कि प्रायः लोग घर-परिवार के प्रति लापरवाह होते हैं, घर से निकलते हैं, घरवाली की कोई फिक्र नहीं होती, घरवाली घर बैठे-बैठे फिक्र करते रहती है, क्या हुआ? उधर से फोन पर फोन, फोन पर फोन आ रहा है, उठाया नहीं जा रहा है, दूसरे काम में लगे हुए हैं, सामने वाले को आप चिंता में डाल रहे हैं । एक ने कहा- महाराज! missed कॉल तो तुरंत उठ जाता Mrs. कॉल उठाने में सोचना पड़ता है। यह क्या है? सावधान होने की जरूरत है, हम सूचनाओं का आदान-प्रदान करेंगे, कहीं कोई communication gap मत कीजिए। हमेशा आप कहीं जाइए, कुछ भी कीजिए दायित्व विहीन आचरण मत कीजिए। आप कुछ भी ऐसा अनैतिक कर्म मत करिए, जिससे आप कोई अपराध करो या अपराधी की श्रेणी में आओ। आपकी प्रतिष्ठा और आप की छवि प्रभावित होती हो और आप से जुड़े हुए लोग चिंता में फंसते हो। ऐसा कोई काम मत करें जिसमें लापरवाही होती हो और स्व-पर का नुकसान होता हो। लोगों को चाहे- सामाजिक, आर्थिक क्षति का नुकसान भोगना पड़ता हो, शारीरिक नुकसान भोगना पड़ता हो और उससे लोग चिंता में पड़ते हैं वैसा मुझे कोई काम कभी नहीं करना है। ऐसा कोई काम नहीं करना जिससे कोई दुर्घटना हो जाए। गाड़ी चला रहे हैं, आजकल के बच्चे ज्यादा करते हैं, तेज रफ्तार में गाड़ी भगाते हैं। एकदम दायित्व विहीन होकर और उनके मां बाप घर में बैठे-बैठे चिंता करते हैं, कहीं कुछ हो ना जाए। नहीं तुम सबसे मैं कहता हूं, जब भी घर से बाहर निकलो अपने दिमाग में एक बात बिठा कर रखो, घर में मेरा कोई इंतजार भी कर रहा है, मुझे लौटकर भी आना है, तो तुम्हारे पीछे कोई चिंता में नहीं फंसेगा।
आजकल तो लोग स्टंट करते है, कल मुझे किसी ने clip दिखाया कि कुछ युवक मुंबई के लोकल ट्रेन में बड़ी गलत हरकत कर रहे हैं, लटक रहे हैं एकदम ऐसे और खुद अपनी वीडियो बना रहे हैं, हालाँकि सब वीडियो वायरल होने के बाद गिरफ्तार हो गए, चार-पांच युवक थे। यह सब क्या है? यह सब दायित्वविहीन आचरण है, यह पागलपन है, थोड़ी सी चूक जीवन का सर्वनाश कर डालती है।
तो मैं आप सब से कहता हूं, आज आप यह संकल्प लीजिए- मैं खुद तो चिंता से बाहर होऊंगा ही होगा, कोई चिंता में पड़े ऐसा कोई काम मैं नहीं करूंगा।
किसी को चिंता में डालने वाला काम मैं अपने जीवन में कभी नहीं करूंगा लेकिन आजकल लोग तो थोड़े अलग है, मेरा काम टेंशन लेने का नहीं टेंशन देने का है, बड़े गर्व से कहते हैं। यह डायलॉग है आजकल, फिल्म का डायलॉग तो नहीं है ये? मुझे नहीं मालूम, फिल्म का ही डायलॉग है क्या? नहीं है, चलो अच्छा है। मेरा काम टेंशन लेने का नहीं देने का है। टेंशन लेने का नहीं यह बहुत अच्छा काम है और टेंशन देने का यह काम गलत है। तुम अपने वाक्य को सुधारो मेरा काम न टेंशन लेने का, न टेंशन देने का, अटेंशन रहने का हैं। यह सोच कर चलो। अटेंशन रहोगे तो जीवन में आनंद रहेगा और उसके लिए तुम्हें अपना इंटेंशन ठीक करना होगा। इंटेंशन ठीक करना होगा, अगर यह ठीक हुआ सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। कामयाबी की ऊंचाई को छूने में तुम समर्थ हो जाओगे। उसके लिए अपना पुरुषार्थ होना चाहिए, वैसी भीतरी तैयारी होनी चाहिए। यदि वह घटित हो गया, जीवन धन्य हो जाएगा। तो चिंता करना मत, चिंता में डालना मत। अब तो नहीं डालोगे किसी को चिंता में।
ऐसा कोई खोटा कर्म मत करो कि तुम्हारे मां-बाप तुम्हारे पीछे चिंता करे। ऐसा कोई दायित्वविहीन आचरण मत करो कि तुम्हारे पीछे के लोग तुम्हारे लिए परेशान हो, चिंता करना पड़े। ऐसा कोई काम ना करो जिससे समाज, संस्कृति, राष्ट्र और तुम्हारे कुल की गौरव-गरिमा खंडित होती हो, धर्म का नुकसान होता हो और तुम्हारे पीछे रहने वाले लोगों को चिंता में फंसना पड़ता हो तो चिंता करना, चिंता में डालना, ये ऊपर के दो कर्म तो बुरे कर्म हैं। लेकिन एक अच्छा पुण्य कर्म है, वह है- चिंता मिटाने का।
कोई व्यक्ति चिंतित हो, हताश हो, पीड़ित हो, दुःखी हो तो तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम उसे ऐसा मोटिवेशन दो कि उसकी सारी चिंता खत्म हो जाए। रोता हुआ आये और हंसता हुआ जाए। जिंदादिली अपनाओ और हर व्यक्ति को जिंदा दिल बनाने की कोशिश करो। यह कर्म होना चाहिए, कोई मायूस दिखता हो, कोई दुःखी दिखता हो, कोई हताश दिखता हो तो तुम उसकी उपेक्षा कभी मत करना। उसे थोड़ा सा समय देना, सबसे पहले मुस्कुरा करके बात करना, तुम्हारी छोटी सी मुस्कान से यदि किसी का जीवन संभल जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी? उससे तुम अच्छे से बात करो, उसकी बात को सुनो और समाधान का रास्ता निकालो, उसका जीवन बदल जाएगा।
मेरे पास एक युवक, एक लड़के को ले कर के आया। बोला- महाराज जी! इस व्यक्ति को थोड़ा संभाल लीजिए। वो सॉफ्टवेयर engineer था, लेकिन उसका एक लड़की से अफेयर चल रहा था, ब्रेकअप हो जाने के कारण वह बहुत टूट गया था। आजकल तो ऐसा रोज़ होता है, रोज प्यार होता है, रोज ब्रेकअप होता है। ब्रेकअप हो गया यह टूट गया और इतना गहरा टूटा कि इसने सुसाइड करने का मन बना लिया था। महाराज जी! अचानक मुझसे यह मिल गया। और मिला भी कैसे? महारज जी! मैं प्रामाणिक app पर आपको सुन रहा था, आपका प्रवचन इसी बात को लेकर के आ रहा था, डिप्रेशन से जुड़ा हुआ प्रवचन था, मैं उसे सुन रहा था। यह मेरे साथ ट्रेन में था, इसने फिर मुझ से बातचीत की और अपने अंदर की व्यथा कही। मैं इससे एकदम अनजान था, मेरा इसका कोई परिचय नहीं। लेकिन जब इसने पूरी बात बताई तो मेरा मन बड़ा व्यथित हुआ। मैंने इसे तरीके-तरीके से समझाया। मेरे समझाने के बाद इसका मन बन गया कि नहीं अब मैं ये काम नहीं करूंगा। महाराज! मैं इसको आपके पास लेकर आया हूं, आप मार्गदर्शन दीजिए ताकि इसका जीवन संभल जाए और इसकी जान बच जाए। मैंने फिर उसे समझाया, काफी कुछ काम तो उस लड़के ने कर दिया था। मैंने उसे संकल्पित किया और वह इस डिप्रेशन से बाहर आ गया। एक व्यक्ति के छोटे से मोटिवेशन से एक युवक की जान बच गई।
मैं तुमसे केवल इतना कहता हूँ- कितना बड़ा धर्म है यह? तुम लोग धर्म के बड़े-बड़े आदर्श उपस्थित करते हो, बड़ी-बड़ी बातें करते हो लेकिन कभी ऐसा सोचा? कोई चिंता में फंसा है तो तुम उसकी चिंता को मिटाने का उपाय किए? अरे! दो सहानुभूति के शब्द बता दो, उसके हर जज़्बात को जगाने वाले शब्द कर दो, जिससे उसका बुझा हुआ मन ठीक हो जाए, फिर से खिल उठे, यह प्रयास कर दो। तुम्हारा क्या बिगड़ेगा? मैं मानता हूं कि अगर किसी के ऊपर कोई आर्थिक बोझ है, वह तुम नहीं उतार सकते लेकिन उसके दिमाग का बोझ तो तुम उतार सकते हो। संकल्प लीजिए कि कोई मेरे सामने चिंता युक्त व्यक्ति आएगा तो मैं यथासंभव उसकी चिंता को मिटाने में निमित्त बनूंगा, मिटाने का प्रयास करूंगा। ऐसा कोशिश करना चाहिए और फिर खुद को चिंता से बाहर निकालना है, हमें चिंता मुक्त होना है, चिंता छोड़ना हैं।
आज से एक संकल्प लीजिए कि मैं किसी भी बात की चिंता नहीं करूंगा, चिंतन करूंगा। चिंतन से मेरा रास्ता खुलेगा। कोई भी कैसी भी स्थिति हो? महाराज ने कहा- ‘बंद दरवाजे को नहीं देखना है, खुले द्वार को देखना है’। कैसे होगा- यह नहीं सोचना है। कैसे करना है- यह हमें सोचना है। और चिंता से बाहर निकलने के लिए दो सूत्र आप सबको देता हूं- हमेशा याद रखना वो जीवन भर काम में आएंगे।
‘जो होगा सही होगा, जो होना होगा वही होगा’। यह दो लाइनें अपने मन-मस्तिष्क में अंकित कर लीजिए। और वाकई में जो होता है वह सही होता है, इसे आत्मसात कर लेने वाले के जीवन का मजा ही कुछ ओर होता है।
राजा था, राजा के पांव का अंगूठा अचानक तलवार गिर जाने से कट कर अलग हो गया, खून की धार बहने लगी, चीख मच गई। वही उसका मंत्री था, उसने कहा राजन जो होता है सही होता है, मंत्री के ऐसा कहने से राजा क्षुब्ध हो उठा, उसे जेल में बंद कर दिया। मंत्री जेल में चला गया। ठीक होने के बाद राजा एक बार जंगल में शिकार करने के लिए गया, शिकार करते समय वह अचानक भटक गया। भटक गया और भीलों के एरिया में चला गया, भीलों ने उसे पकड़ लिया। उन दिनों भीलों का एक कोई धार्मिक अनुष्ठान चल रहा था और वह अपने धार्मिक अनुष्ठान में जो अंधविश्वास पूर्ण था, एक नर बलि दे रहे थे और उन्हें नरबलि के लिए सुंदर सुलक्षण एक मनुष्य की आवश्यकता थी। राजा पकड़ा गया और उसे बलि की वेदी पर लेकर खड़ा कर दिया गया। भीलो के पुरोहितों ने राजा का पहले निरीक्षण किया और जैसे ही राजा का निरीक्षण किया। देखा तो उसका अंगूठा कटा हुआ था। कह दिया गया कि नहीं यह आदमी का शरीर खंडित है, यह बली पर चढ़ाने लायक नहीं है, उसे मुक्त कर दिया गया। इस आदमी का शरीर खंडित है और यह हमारे बलि के लायक नहीं हैं। इसे मुक्त कर दिया जाए, उसे मुक्त कर दिया गया। तभी उसे अपने मंत्री की बात सुनाई पड़ी- ‘जो होता है सही होता है’। वो लौट कर आया और सीधे सबसे पहले अपने मंत्री को कैद से बाहर निकाला, उसे अपने गले से लगाया कि तुमने बिलकुल सही कहा था- जो होता है सही होता है। लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आई। मेरा अंगूठा कटना तो मेरे लिए सही हो गया पर तुम्हारा ऐसा कहना तुम्हारे लिए सही कैसे हुआ तुम तो जेल में चले गए। तो मंत्री ने कहा अच्छा हुआ मैं जेल चला गया, अन्यथा मैं आपके साथ होता, आप तो बच गए होते, मैं बलि का बकरा बन गया होता।
समझ गए? तो यह बात अपने दिमाग में बिठाइये- जो होता हैं सही होता है और जो होना होता है वही होता है। हालाँकि यह दोनों अर्ध सत्य है, पूर्ण सत्य नहीं हैं। नहीं तो, किसी का जवान बेटा मर जाए और जा कर कह दो- महाराज! ने कहा था- ‘जो होता है सही होता है’। और गाड़ी चलाओ आंख मूंदकर और कहो- जो होना होता है वही होता है और किसी को ठोक दो, ऐसा मत करना।
यह दोनों बातें उस घड़ी की है, जब चित्त तुम्हारा दुविधा में फंसे। जब मन में अशांति हो, उद्वेग हो, चिंता हो। मैं आपको केवल इतना ही कहना चाहता हूं- जब भी तुम्हारे ऊपर कोई परिस्थिति हावी हो घबराना नहीं। परिस्थिति के पक्षी को अपने सिर पर बैठे, तो बैठने दो, घबराओ मत। परिस्थिति के पक्षी को तुम्हारे सिर पर बैठे, बैठने दो, पर उसे घोंसला मत बनाने देना। सिर पर बैठने में परेशानी नहीं है, उसने घोंसला बना दिया तो सिवाय परेशानी के और कुछ नहीं है। यह घोसला तुम्हारे जीवन को खोखला बनाता है। इसी का नाम है- चिंता।
चिता अंत में मुर्दे को जलाती है और चिंता सारे जीवन जीते जी मनुष्य को जलाती है, अपने आप को बाहर निकालिए, चिंता के चक्रव्यूह से बाहर आइए।
आज से एक बात अपने मन मस्तिष्क में स्थापित कर लो की मुझे चिंता करना नहीं है, चिंता में डालना नहीं है, बन सके औरों की चिंता मिटाना है और खुद को चिंता से बाहर निकालना है। एक अंग्रेजी writer ने एक बहुत अच्छी अंग्रेजी की कविता लिखी, जिसका हिंदी अनुवाद में आप सबको सुनाता हूं- Why Worry? चिंता क्यों?
यह एक नजरिया है, जिंदगी को चिंता मुक्त करके जीने का- आप स्वस्थ हैं या बीमार?
चिंतनीय केवल दो बातें हैं- आप स्वस्थ हैं या बीमार?
यदि आप स्वस्थ हैं, तब तो चिंता की कोई बात नहीं और
यदि आप बीमार हैं तो चिंता की केवल दो बातें- आप ठीक हो जाएंगे या आपको मरना पड़ेगा।
यदि आप ठीक हो जाते है तब तो चिंता की कोई बात नहीं और
यदि आपको मरना पड़ता है तो चिंतनीय केवल दो बातें- आपको जन्नत नसीब होगी या जहन्नुम में जाना पड़ेगा।
यदि आप को जन्नत नसीब होती है तो भी चिंता की कोई बात नहीं और
यदि आपको जहन्नुम में जाना पड़ा तो आप अपने पुराने मित्रों से हाथ मिलाने में इतने व्यस्त हो जाओगे कि आपको चिंता का वक्त ही नहीं मिलेगा तो फिर चिंता क्यों?
बंधुओं! बस मैं आपसे यही कहता हूं-
मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में।
अपनी मस्ती में जीने की कोशिश कीजिए। जीवन में किसी भी प्रकार की अशांति नहीं हो, उद्वेग नहीं हो, दुःख नहीं हो। धर्म और अध्यात्म हमें वही रास्ता दिखाता है, वही मार्ग बताता है जिसका अनुकरण करके हम अपने जीवन को एक नई ऊंचाई दे सकें।