छोड़ने से ही बनेगा जीवन निहाल

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छोड़ने से ही बनेगा जीवन निहाल

हम श्‍वास ले और वापस निःश्‍वास न छोड़ें, तो घुटन होगीI भोजन करें और मल ना छोड़ें तो तकलीफ होगीI श्‍वास का लेना जितना जरूरी है, उसको छोड़ना भी उतना ही आवश्यक हैI भोजन करना जितना आवश्यक है, मल विसर्जन भी उतना ही आवश्यक हैI कुल मिलाकर सार की बात यह है कि हमारा संपूर्ण जीवन लेने और छोड़ने के साथ जुड़ा हुआ हैI कदाचित लेने में कमी हो जाए तो चलेगा पर छोड़ने में कमी कतई नहीं होनी चाहिएI आप उपवास करके रह सकते हैं लेकिन मल को रोककर के रखना बहुत कठिन हैI यह प्रकृति का सिद्धांत है कि अपने जीवन में संतुलन कायम रखना चाहते हो तो तुम जितनी तत्परता से ग्रहण करते हो, उतनी ही उदारता से छोड़ने का भाव रखोI आज बात ‘छ’ की है,छोड़ने की हैI चार बातें आपसे करूँगा:-

  • छोड़ना
  • छूटना
  • छुटाना
  • छिनना

सबसे पहली बात है छोड़ने कीI संत कहते है- छोड़ोI क्या छोड़ो? जो- जो तुमने ग्रहण कर रखा है, उसे छोड़ोI अब थोड़ा देखो, आपने अपने साथ क्या-क्या जोड़ा है? जो-जो चीजें आपने अपने साथ जोड़ी हैं, उसे आप छोड़िएI थोड़ा अपने अंदर झांक कर देखिए, क्या जोड़ा? जब हम पैदा हुए थे, तो हमारे साथ क्या था? जन्म लेने के बाद मनुष्य  अपने जीवन में क्या-क्या जोड़ा? थोड़ा देखो, जिस समय हमने जन्म लिया था, हमारी स्थिति क्या थी? थोड़ी कल्पना करो, विचार करोI जब हम जन्म लिए खाली हाथ आए, हमारे पास कुछ नहीं था और उस पल हमारा मन भी बड़ा निर्विकार थाI लेकिन जैसे-जैसे हमने अपने जीवन को आगे बढ़ाया, हमने होश संभालाI हमारे साथ बहुत सारी चीजें जुड़ती गई, जुड़ती गई और जुड़ने के क्रम में हमने अपने साथ बुराइयां जोड़ी, हमने अपने साथ पाप जोड़ा, हमने अपने साथ पैसा जोड़ाI हमने न जाने कितनी- कितनी चीजों को जोड़ लिया और आज भी जोड़ते जा रहे हैंI संत कहते हैं – ‘केवल जोड़ते रहोगे तो बर्बाद हो जाओगे, जीवन में निखार तभी आएगा जब तुम छोड़ना शुरू करोगेIजो जोड़ता है वह सीमित होकर रह जाता है और जो छोड़ता है वह अपने जीवन को व्यापक बना लेता हैI हमें जोड़ने और छोड़ने की इस प्रक्रिया को समझना चाहिएI

सबसे पहले आपके जोड़ने की बात है तो आपने धन जोड़ा, हर आदमी धन जोड़ता है, जीवन की आधी से लेकर आखिरी तक धन जोड़ने की प्रवृत्ति मनुष्य की बहुत प्रगाढ़ता से बनी रहती है, बल्कि मैं तो यह कहता हूँ, धन जोड़ने की चाहत मनुष्य की बहुत अधिक प्रबल होती है,  कदाचित मनुष्य के भीतर वासना का विकार उतना प्रभावी नहीं होता जितना की धन की लालसा होती हैI वासना मनुष्य के मन में एक उम्र के बाद प्रकट होती है और उम्र ढल जाने के बाद धीरे-धीरे खत्म हो जाती है लेकिन धन की लालसा, धन का जुड़ाव एक छोटे से बच्चे के पास भी होता है और कब्र में पांव अटक जाने तक वह बना रहता है, आखिरी सांस तक बना रहता हैI छोटा बच्चा कागज फाड़ने को तैयार हो जाएगा पर तुम्हारे नोट फाड़ने की उसकी मानसिकता नहीं होगी और मरते दम तक आदमी के ह्रदय में धन की लालसा बनी रहती हैI और सब लोग उसे ही जोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं, रात-दिन जोड़ना, जोड़ना, जोड़ना की प्रवृति लोगों की बनती हैI संत कहते हैं- ठीक है तुम जोड़ तो रहे हो, अंत क्या है? जिसे तुम जोड़ रहे हो, उसका अंत क्या है और जोड़ने के पीछे तुम्हें मशक्कत कितना करना पड़ रहा हैI बोलो, कितना अंतर है, आप सब जोड़ने वाले हो और हम सब छोड़ने वाले हैंI आप सब जोड़कर नीचे बैठे हो, हमने सब छोड़ दिया आप ने मुझे ऊपर बिठाया हैंI अंतर क्यों? जोड़ने वाला बड़ा या छोड़ने वाला बड़ा? तो तुम को बड़ा बनना है, कि नहीं? महाराज! कसम खाए हैं, जहां हैं, वहीं रहेंगेI संत कहते हैं- ‘अपने जीवन का उत्थान करना चाहते हो तो केवल संग्रह की बात मत सोचो, अपने द्वारा जो कुछ भी संग्रह किया है उससे औरों का अनुग्रह करो,उपकार करो, कुछ छोड़ोI’ जोड़ोगे तो धरा रह जाएगा, छोड़ोगे तो अमर बन जाओगेI

आपने देखा नदियों का जल मीठा होता है और समुद्र का जल खारा, ऐसा क्यों? कभी आपने विचार किया, नदियों का जल मीठा और समुद्र का जल खारा, आखिर ऐसा क्यों? केवल इसलिए कि नदियां अपने पास कुछ नहीं रखती, उसे जो कुछ मिलता है सब बांट देती है और समुद्र, लाखो नदियां उस में समाती हैं तो भी उसकी प्यास नहीं बुझती वह केवल संग्रह करके रखता हैI बस मैं इतना कहूंगा, जहां वितरण है वहां मिठास है, जहां संग्रह है वहां  खारापन है तो तुम देखो, तुम्हारा जीवन कैसा है? समुद्र जैसा है या नदियों जैसा हैI यदि तुमने नदी को अपने जीवन का आदर्श बनाया तो मान करके चलना तुम्हारे अंदर मिठास घुलेगी और यदि तुम समुद्र का अनुकरण करोगे तो तुम्हारे जीवन में खारापन बना रहेगाI खारापन से बाहर आना चाहते हो, मिठास अपनाओI मिठास अपनाओ और देखो, समुद्र की स्थिति भीI समुद्र के पानी को जब सूरज अवशोषित करता है तो वहीं पानी बादल में परिवर्तित हो जाते हैं और बादल जब बरसते हैं तो मीठा पानी होता है लेकिन उसमें भी देखो प्रकृति कितना बड़ा संदेश हमें देती है, बादल जब तक अपने साथ पानी भरे रखते हैं, काले दिखते हैं और बादल जब पानी छोड़ देते हैं, सफेद हो जाते हैं उनमें भी शुभ्रता आ जाती हैI बादलों में पानी भरा है, बादल काले हैं, बादल ने पानी छोड़ा, पानी सफेद, तुम देखो तुम्हारी दशा क्या है? कजरारे बादल हो या शुभ्र स्वच्छ मेघI I बादल में यदि पानी है तो बादल में पानी बादल को रखने के लिए नहीं है, उसे बांटने के लिए है, प्रकृति को हरी भरी बनाने के लिए है, धरती को शस्य- श्यामला बनाने के लिए है, उसे छोड़ दो तुम्हारे जीवन में उज्ज्वलता और पवित्रता आ जाएगीI अपनी मानसिकता को टटोलिए, थोड़ा सोचिएI धन जोड़ने के प्रति तुम्हारा जितना उत्साह होता है, छोड़ने में वैसी उमंग हैI जितनी तत्परता से तुम कमाते हो, जब भी कमाई होती है, आंखें चमक जाती है लेकिन जब छोड़ने की बारी आती है तब? कैसी-कैसी मानसिकता होती है देखोI एक व्यक्ति ने एक बार कहा, महाराज 3 साल से बड़ा खर्चा हो रहा है,

हमने कहा, क्या बात हो गई भाईI कोई आपत्ति-विपत्ति आ गई क्या? बोला महाराज! 3 साल से लगातार बड़े चौमासे हो रहे है, बहुत खर्चा हो रहा हैI उसको चौमासे का खर्चा, खर्चा दिख रहा हैI दान में लग रहा है, उसको खर्चा दिख रहा है, कमाई उसको नहीं समझ आतीI यह मानसिकता है,इस मानसिकता को बदलने की आवश्यकता हैI हमें इस रहस्य को जानना चाहिएI संत कहते हैं- ‘तुम जिस अनुपात से कमाते हो, उसी अनुपात से लगाने का मनोभाव रखोI’ क्यों? तुम्हारे द्वारा जोड़ा गया धन यही छूट जाएगा और यदि तुम उसका सदुपयोग करोगे तो वह स्व-पर के कल्याण के काम में आएगाI जोड़ना बुरा नहीं है,जोड़ कर के रखे रहना बुरा हैI तुम्हें जोड़ना है जोड़ो, हमारे शास्त्रों में गृहस्थों के लिए धनार्जन के लिए मना कही नहीं किया गयाI तुम्हे जितना धनार्जन करना है करो लेकिन इस बात का सदैव ध्यान रखो कि मुझे केवल अर्जित नहीं करना है, अर्जित करके उसका सही कार्यो में विनियोजन भी करना हैI उसे लगाना भी है, विसर्जित भी करना हैI धन को नदी की तरह कहा गया है, नदी में बांध बनाया जाता है, नदी में बांध पानी को रोकने के लिए बनाया जाता हैI पानी क्यों रोका जाता है? रोकने के लिए, पानी को नहीं रोका जाता पानी को रोककर नहरों के माध्यम से वहां पहुंचाने की, जहां उसकी जरूरत हैI बांध बनाया जाता है, बांध बनाने के पहले पूरा सर्वे होता है और यह देखा जाता है कि यहां पर कितने पानी की कैपेसिटी है, उस अनुपात से पानी को वहां रोका जाता है, उसमें गेट भी बनाया जाता हैI बनाया जाता है कि नहीं और एक सिस्टम होता है हर माह की एक निश्चित तारीख तक हमें कितना पानी रखना है, कितना क्यूसेक पानी आ रहा हैI उस अनुपात से, जिस अनुपात से पानी आता है, उसी अनुपात से वो छोड़ते भी जाते हैंI कितने अनुपात से पानी आ रहा है, जिस अनुपात से पानी आ रहा है, उसी अनुपात से पानी को छोड़ना पड़ता हैI क्यों? बांध तो बनाया था पानी रोकने के लिए, अभी ऊपर से पानी भी बरसने की कोई संभावना नहीं हैI अधिकारी कैसे पागल है, सारा पानी छोड़ रहे है, मौका आएगा तो पानी कहां मिलेगा? नहीं, पागल वह नहीं, पागल तो तुम हो, क्योंकि उसे पता है यदि हमने समय पर पानी नहीं छोड़ा तो यह बांध विनाशकारी हो जाएगा, विप्लव का कारण बन जाएगाI इसलिए जिस अनुपात से पानी आ रहा है, हमें उसी अनुपात से पानी को छोड़ना है और छोड़ कर के उस पानी को छोड़ने से कितनों का कल्याण होगाI सूखी धरती को तर करने का काम बांध का पानी करता है, सूखी खेती को हरा बनाने का काम बांध का पानी करता है, प्यासे कंठ को बुझाने का काम बांध का पानी करता है और सारी दुनिया में हरियाली फैलाने का काम बांध का पानी करता हैI यह सब काम कब होता है? जब पानी को रोका जाता है,तब होता है लेकिन रोकने से नहीं होता रोके हुए पानी को छोड़ने से होता है,इस बात को ध्यान रखोI रोके हुए पानी को छोड़ो, तुम लोग रोकने में तो माहिर होI खूब रोक रहे हो, सरदार सरोवर की ऊंचाई तो फिर भी निश्चित हो गई, तुम लोगों की? आने दो, जितना आ रहा है, आने दोI ठीक है आ तो रहा है भाई, लेकिन तुम्हें पता है अगर निकासी नहीं होगी तो बांध टूट जाएगाI अगर एक बार बांध टूटा तो तुम फिर कहीं के नहीं रहोगेI इसलिए निकालिए, जिस अनुपात से आ रहा है, उसी अनुपात से निकालिए, तब तुम्हारी भलाई है, अन्यथा सब व्यर्थ हैI लेकिन तुम लोगों के साथ विचित्र कहानी है, आता हुआ पैसा अच्छा लगता है, जाता हुआ नहींI

एक बार लक्ष्मी और दरिद्रता में विवाद हो गया, लक्ष्मी और दरिद्रता दोनों के मध्य विवाद हो गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन? अब क्या हुआI धनपति सेठ के पास चले गए,जो नगरसेठ थे कि तुम फैसला करोI सेठ तो बड़ा समझदार था,बनिया थाI उसने कहा- दोनों में से किसी से भी पंगा लेना ठीक नहीं हैI दिमाग लगाया, कहा ठीक है, एक काम करो सामने वाले पेड़ को छूकर आओ, तो मैं फैसला दूंगा, दोनों में कौन श्रेष्ठ है? दोनों एक साथ दौड़ी, लक्ष्मी भी दौड़ी, दरिद्रता भी दौड़ीI पेड़ को छूकर के आ गए और जब दोनों वापस आएI सेठ ने कहा- तुम दोनों बराबर हो, तुम दोनों सुन्दर होI दोनों ने एक साथ पूछा कि दोनों कैसे सुंदर हो तो लक्ष्मी से कहा- जब तुम आती हो तो सुंदर लगती हो और दरिद्रता से कहा जब तुम जाती हो तो सुंदर दिखती होI लक्ष्मी आती है तो सुंदर दिखती है और दरिद्रता जाती है तो सुंदर दिखती हैI आती हुई संपदा को सब अपनाना चाहते हैं पर जाती हुई  संपत्ति को कोई देखना नहीं चाहते, छोड़ना नहीं चाहतेI संत कहते हैं- ‘यह तुम्हारे जीवन की भयानक भूल है, तुम छोड़ो, चाहे नहीं छोड़ो, जाना तो छोड़कर ही पड़ेगाI दुनिया में आज तक कोई ऐसा व्यक्ति है जो अपने साथ जोड़ी हुई संपत्ति को लेकर गया हो तो भैया अपने हाथों से छोड़ो ना, छोड़कर क्यों जाते होI जब-जब तुम्हें छोड़कर ही जाना है तो अपने हाथों से ही छोड़कर जाओ, बाकि तो सब यही छूटना ही है, धरा रह जायेगा जाएगाI इस विज्ञान को जो जानता है, इस वास्तविकता को जो पहचानता है, वह कभी भ्रमित नहीं होता और वह अपने जीवन की दिशा सुनिश्चित कर लेता है और जो इस सच्चाई को नहीं जानता वो सारे जीवन केवल जोड़ने-जोड़ने और जोड़ने की बात करता हैI तुम कहां हो ये तुम तय करो?

तुम्हारी दृष्टि केवल जोड़ने पर है या छोड़ने पर? बोलो, जिस अनुपात से आए उसी अनुपात से लगाओगे तो जीवन में संतुलन बना रहेगा और केवल जोड़ते-जोड़ते रहोगे, जीवन बर्बाद हो जाएगाI आज में ऐसे अनेक लोगों को जानता हूँ जिनके पास अपार पैसा है लेकिन उनका उपयोग करना नहीं जानते, एक दिन छोड़कर चले जाएंगेI इसी मध्य प्रदेश के एक शहर में, एक पंजाबी दंपति बुजुर्ग, जिनकी कोई संतान नहीं और काम क्या, ब्याज-बट्टे का काम करनाI ऐसा काम करना कि अगर कोई आदमी अपना जूता गिरवी रखे तो भी ले ले I आप सोच लो जूता भी गिरवी रखे, तो रख लेI उन दोनों की मौत गजब की, आप सब सुनोगे तो आप को भी बड़ा दुख होगाI दोनों दंपत्ति अपने घर में रहते थे और कोई था नहीं, 3 दिन से घर से बाहर कोई नहीं आयाI घर अंदर से बंद, बदबू आना शुरूI प्रशासन की मदद से दरवाजा खोला गयाI अंदर गए और वहां का जो दृश्य देखा, सब के सब सहम गएI उन दोनों बुजुर्गों की सारी संपत्ति जितना सोना, चांदी और पैसा था, सामने था और दोनों के दोनों छाती पर हाथ धरे थे और दोनों के प्राण पखेरु एक साथ 3 दिन पहले उड़ गएI छाती पर हाथ धरे और दोनों के प्राण निकल गए, 3 दिन से लाश सड़ रही है,कोई वहां पर नहीं हैI आप सोचो और इतनी संपत्ति और इतना सामान, रिक्शा, साइकिल, बैंड वालों के बैंड-बाजा, जूते प्रशासन को उठाने में ही 15 दिन लग गएI क्या हुआ? छोड़ कर चले गएI मैं आप से कहता हूं, आप भी यहां से जाओगे तो छोड़कर ही, ले कर के तो जाओगे नहींI पर मैं आप से कहता हूं, क्या छोड़ कर जाना चाहते हो अपने द्वारा जोड़ा गया धन या अपनी उदारता की छापI किसे छोड़ कर जाना चाहते हो, अगर तुमने जीवन भर धन जोड़ा और एक दिन छोड़कर गए तो यही होगाI इस आदमी ने जीवन में कमाया बहुत,पर लगाया कुछ नहीं, यह कंजूस सेठ था, मक्खी चूस सेठ थाI इसलिए जीवन में ना खाया, ना खिलायाI सब छोड़ कर चला गयाI अरबों की संपत्ति इसके काम ना आई, एक तो यह बात है और तुम इस दुनिया से जाओ तो लोग कहे, अरे, कितना उदार, कितना दरिया दिल, कितना कृपालु, कितना दयालु, कितना उपकारी, कितना दानी व्यक्ति इस दुनिया से गया हैI तुम कौन सी छवि बनाना चाहते हो? छवि, छाप सब तुम्हारे साथ जुड़ी हैI छोड़ने पर तुम्हारी जो छवि बनेगी वो और छोड़कर जाने पर जो छवि बनेगी, दोनों में कितना अंतर है? कौन सी छवि चाहते हो, थोड़ी देर के लिए कल्पना करोI अगर आपकी मृत्यु हो जाए, मृत्यु होने के बाद लोग आपके बारे में कुछ सोचे तो आप क्या सोचते हो? आप क्या चाहते हो, मरने के बाद लोग मेरे नाम की जय-जयकार करें, मुझे एक आदर्श के रूप में चुने या लोग मुझे गालियां देंI  मुझसे नफरत करें या मेरा नाम कंजूसों में शामिल होI क्या चाहते हो? कौन सी छवि पसंद है, थोड़ा यह तो बता दो भाई? अगर अच्छा चाहते हो तो ऐसा उद्यम, उपक्रम , छोड़ने की प्रक्रिया को अपनाना शुरू कर दोI आज से तय करो, मैं जो जोड़ूंगा, उसका एक अंश छोडूंगा, अच्छे कार्य में लगाऊंगाI ध्यान रखना, संपदा उसकी नहीं जिसके पास वह है, संपदा उसकी है जो उसका उपयोग करना जानता हैI यदि तुम उसका सदुपयोग नहीं कर पाते तो सब व्यर्थ हैI बड़े-बड़े सेठ साहूकार हो गए, आज कौन जानता है उनको? लेकिन दुनिया में भामाशाह जैसे एकाध हैं जो आज दुनिया से चले जाने के बाद भी सारे मानव जाति के आदर्श बन गएI भामाशाह आदर्श बने, अपने धन के कारण नहीं, धन के समर्पण के कारणI

मैं एक बात तुमसे कहता हूं- तुम पैसा कमाओगे, लोग तुम्हें जानेंगे-पहचानेंगेI पैसे वाले को लोग पहचानते हैं पर उदार हृदय को लोग चाहते हैंI तुम क्या चाहते हो, लोग तुम्हें पहचाने या लोग तुम्हें चाहे? बोलो, चाहे, तो फिर क्या करना है, छोड़ना हैI शुरुआत करो, जब मौका आये तो मुझे कहीं कोई कृपणता नहीं रखनी हैI क्यों, 1 दिन तो चला ही जाएगाI एक दिन तो सब छूट ही जाना है, तो मुझे उसका सदुपयोग करना है, सही क्षेत्र में लगाना हैI देखिए, क्या concept  होता है? आप लोगों से मैं पूछूं कि भैया आज आप पैसा कमा रहे हो, पैसा जोड़ रहे हो, किसके लिए जोड़ रहे हो? क्या उत्तर होगा आपका? अक्सर लोग बोलते हैं कि हम अपना पैसा, बच्चों के लिए जोड़ रहे हैं पर अगर आप अपने बच्चों से पूछो तो आपके बच्चे कहेंगे, पापा, हमें आपके पैसों की जरूरत नहीं है, हमें आपके प्यार और समय की जरूरत हैI विडम्बना यह है कि, तुम कहते हो कि हम बच्चों के लिए पैसा जोड़ रहे हैं पर पैसा जोड़ने की होड़ में ऐसे लग गए कि बच्चों के लिए तुम्हारे पास समय ही नहीं बचाI एक समय था, जब बच्चे सोचते थे कि मेरे मां बाप मेरे लिए बहुत धन जोड़े पर आजकल concept बहुत तेजी से बदल रहा है, आज का बच्चा कहता हमें कोई जरूरत नहीं, हम सेल्फ मेड बनेंगेI आप कुछ भी मत दीजिए, हम अपना सब कुछ संभाल लेंगे,अपना काम कर लेंगेI लेकिन तुम्हारा मोह, तुम्हारा अज्ञान, बच्चा-बच्चा-बच्चा ऐसा करके तुम अपने बच्चे को बर्बाद कर रहे होI हमारे समाज में एक बहुत बड़ा आदर्श उपस्थित किया Bill Gates ने, जिसने अपनी 90% संपत्ति को लोकोपकार के कार्य में समाज कल्याण के कार्य में समर्पित किया और उसके साथ यह टिप्पणी की कि मैं अपनी संपत्ति संतान को नहीं दूंगा, लोकोपकार के कार्य में दूंगा जो बिल गेट्स फाउंडेशन हैI उसमें उन्होंने समर्पित कर दिया क्योंकि उसमें उन्होंने एक बात कही क्योंकि इससे ना तो समाज का भला होगा ना मेरी संतान का भला होगा I समाज का भला इसलिए नहीं होगा कि पैसा एक जगह रह जाएगा और संतान का भला इसलिए नहीं होगा कि हमारी संतान अकर्मण बन जाएगी, उसमें हुनर होगा तो अपने हौसले से अपने आप बढ़ा लेंगेI मैं बनारस में था, मेरे संपर्क में एक युवक अपने परिवार सहित आया था, उसका बेटा BHU में पढ़ रहा थाI वैसे बोलते-बोलते कहा कि महाराज बस कुछ नहीं थोड़ा सोचता हूं कि अपने बच्चों के लिए कुछ कर लूं फिर आपके चरणों में आ जाऊं, मैं लगना चाहता हूंI बेटा वहाँ ही बैठा थाI उसने तुरंत कहा, पापा, आप हमारी चिंता मत कीजिएI आपने हमें पढ़ा लिखा दिया, 2 साल में मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी, मैं इस लायक हो जाऊंगा, अपना, अपने परिवार का और आपकी जरूरतों की पूर्ति कर दूंगाI आपको हमारे लिए पैसा कमाने की जरूरत नहीं है, आपने हमें जो शिक्षा दिया,संस्कार दिया वही हमारे लिए पर्याप्त हैI

एक ही बेटा था लेकिन तुम लोग बहाना बच्चों का करते हो हकीकत में मोह तो तुम्हारा खुद का हैI एक बात बोलूं आप लोग कहते हैं, बच्चों के लिए छोड़ कर जाना चाहते हैं, बोलते हो कि नहीं बोलो? तो तुम छोड़कर जाते हो यह तुम्हारी मजबूरी है या तुम्हारी खुद की मानसिकता? अगर ऐसा कोई सिस्टम होता, यहां से वहाँ ले जाने की व्यवस्था होती, तो ईमानदारी से बोलो- ले के जाते या छोड़ के जाते? तुम्हारी मजबूरी है, उसके पीछे छोड़ना पड़ रहा हैI तो भाई मेरे पास एक technique है, ले कर जाने की, ले जाना चाहते हो? वास्तव में समझो, जीवन की वास्तविकता को समझोI यदि आप अपनी संतान को जितना देना है, दीजिए, बाकी का सदुपयोग कीजिये, छोड़ना सीखिएI धन की आसक्ति मिटेगी, हृदय में उदारता आएगी, जीवन की उदारता आएगी और जीवन का उत्कर्ष होगा, स्व-पर का कल्याण होगाI हम अपने द्वारा जोड़े गए धन को छोड़ें, यानी त्यागे Iजब मौका आये, छोड़ने की कोशिश करें, धन छोड़े, बुराई छोड़े, पाखंड छोड़े, पाप छोड़े, यह हमे छोड़ना है, नहीं छोड़ोगे तो छूटना तो हैI अंत में सब छूट जाएगा लेकिन भाई छोड़ने में और छूटने में अंतर हैI गुरु ज्ञान सागर जी महाराज ने एक जगह बहुत ही अच्छी बात लिखी- ‘उन्होंने कहा छोड़ने और छूटने में उतना ही अंतर है, जितना की सुबह शौच जाकर निर्वृत होने में और उलटी करने मेंI

आप सुबह शौच जाते हो, फ्रेश हो जाते हो कि नहीं, क्यों? छोड़कर आए होI क्या किया? शौच गए, फ्रेश हो गए, क्योकि, आप छोड़कर आए और किसी दिन उल्टी हो जाए तो पूरे दिन जी मचलता है  क्योकि छूटा हैI छूटता है तो जी मचलता है और छोड़ते हो तो आनंद आता हैI आप किसी को हज़ार रूपया दो तो आपको अच्छा लगता है और आपसे सौ का नोट गिर जाए तो अफसोस होता हैI हजार रुपया हमने अपनी इच्छा से दिया है, छोड़ा है और सौ का नोट हमारी इच्छा के विरुद्ध गया, छूटा है I छूटने में दुःख है, छोड़ने में सुख हैI तय करो तुम क्या चाहते हो,सुख या दुःख? क्या चाहते हो, हां बोलोI हमको भी तो पता लगे कि तुम लोग सुन रहे होI सुख चाहते हैं पर छोड़कर नहीं, छोड़कर जाने मेंI छोड़ना सीखिए, यह हमारा धर्म हैI छूटना कोई बड़ी बात नहीं हैI एक दिन तो सब छूटना है, प्राण भी छूट जाएंगेI जो तुमने जोड़ा, सब छूटना है यहीI धरा रह जाएगाI कुछ भी किसी के साथ नहीं गया, यह सच्चाई जो जान लेता है, वह जीवन में कभी भी कहीं भी डगमगाता नहीं हैI तुम अपनी स्थिति देखो कि आखिर हो कहां? एक बार एक युवक ने कहा आपके सारे प्रवचन बड़े अच्छे लगते हैं, आपके सारे प्रवचन बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन जिस दिन आप पैसा छोड़ने की बात करते हो ना तो थोड़ा लगता कब खिसक जाओ? यह tendency तुम्हारी है, इसे ही बदलना होगा, ध्यान रखनाI संपन्न वो नहीं जिसके पास अपार दौलत है अपितु वह है जिसका ह्रदय उदार हैI अपने हृदय को उदार बनाइए, तब उद्धार होगाI दुनिया में बहुत से पैसे वाले लोग हैं जो विचारों से कृपण हैं और बहुत से साधारण लोग हैं जो हृदय से उदार हैंI जो हृदय से उदार हैं, समाज में उनका अलग स्थान होता हैं और जो विचारों से कृपण है, समाज उन्हें कहीं नहीं चाहतीI अपने जीवन में व्यापक बदलाव घटित करिए तो छोड़ना,छूटनाI छूटना तो एक दिन सब है, सब छूटेंगे, तुम्हारी संपति, संबंध है वह छुटेगा, सत्ता है वह छूटेगी, शरीर है वह छूटेगाI सब कुछ छूटने वाला हैI जिस दिन तुम्हारे दिल दिमाग में यह बात बैठ जाएगी, एक दिन सब छूट जाना है तो फिर तुम्हें छोड़ने के लिए किसी से प्रेरणा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगीI पर मुश्किल यह है कि इस सच्चाई को लोग स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होतेI तुम्हें पक्का भरोसा है, एक दिन यह शरीर छूटेगा, तुम्हें पक्का भरोसा है मेरे संबंध छूटेंगे,तुम्हें इस बात का पक्का भरोसा है मेरी संपत्ति यही छूट जाएगीI सब छूट जाएंगे तो भैया जब तक है तब तक इसका उपयोग करो, उपयोग करो, उपभोग करो, रोककर क्यों रखे होI जब छूटना ही है तो इतना चिपक क्यों रहे होI छूटने से पहले हम छोड़ने की कला सीखें और यह तभी होगा जब तुम्हारे हृदय में हर पल यह बात बैठ जाए कि एक दिन सब छूट जाना है, एक दिन सब छूट जाना हैI कैसी विडंबना है-

कोई सोता हो जैसे किसी डूबती हुई कश्ती के तख्ते पर,

अगर सच पूछो तो बस दुनिया की इतनी ही हकीकत हैI

तुम सब ऐसे तख्ते पर सो रहे हो जो डूबती हुई कश्ती का तख्ता हैI सो रहे हो, कब डूब जाओ, भरोसा नहीं हैI इस वास्तविकता को समझो, जानते हो कि सब छूट जाने वाला है तो फिर इतने व्याकुलचित्त क्यों, यह भागमभाग क्यों, यह आपा-धापी क्यों, यह रेलमपेल किसके लिएI थोड़ा जागो, अपने आप को झकझोरो, जीवन की दिशा बदलो, दृष्टि बदलो तब अपने जीवन में कोई सार्थक उपलब्धि होगीI

छुटकारा पाओ, इस जंजाल सेI छोड़ना है मुझेI छुटकारा पाओ, नहीं यह तो एक दिन छूटना ही है तो इसको पकड़ूँ क्यों? बाहर निकलूँ, मुक्त होउI जहा जब जैसी आवश्यकता है उसके अनुरूप में उनका सदुपयोग करुँI यह दृष्टि हमारी होनी चाहिए तो छोड़ना, छूटना, छुड़वाना, छुटानाI यह दोनों अलग-अलग sence में है, हम किसी की बुराई छुड़ाते है तो यह गुण हैI तुम छोड़ो, खुद छोड़ो, औरों से छुड़वाओ पर एक बात बताओ जो खुद ना छोड़े, वह किसी से छुड़वा सकता है, क्या कोई छुड़वा सकता है? हम जैसे साधु तुम्हें अपरिग्रह का उपदेश दे तुम्हें समझ में आएगा पर खुद परिग्रह में लदा हुआ व्यक्ति तुमसे अपरिग्रह के आदर्श की बात करें तो, तुम क्या कहोगे? खुद के गिरेबान में झांकोI तुम किसी से छुड़वाना चाहते हो, कोई भी बुराई छुड़वाना चाहते हो तो चाहिए कि तुम पहले खुद उसे छोड़ोI अपना स्तर उससे ऊंचा रखोगे, तभी तुम किसी का उद्धार कर पाओगे I खुद छोड़ो, औरों को छोड़ने की प्रेरणा दो लेकिन आजकल तो उल्टा होता हैI

एक आदमी ने शराब के विरुद्ध पुरजोर पुस्तक लिखीI जबरदस्त पुस्तक थी, हज़ारो आदमी उसकी पुस्तक को पढ़ कर के बदल गए और लोगों ने शराब छोड़ दीI एक रोज, एक आदमी के शराब नशे में धुत होकर नाली में गिरा पड़ा मिला, लोगों ने उसे उठाया, उठाने के बाद उसे जब कुछ होश आयाI लोगों ने कहा- भैया! तुमने उस आदमी कि वो पुस्तक नहीं पढ़ीI उसने अपने कोट के जेब में हाथ डाला और हाथ डालकर के किताब निकाली लोगों के सामने रख दियाI यह वही किताब थी, जिसकी लोग चर्चा कर रहे थेI लोगो को आश्चर्य हो गया, इस किताब को पढ़ने के बाद भी तुमने शराब नहीं छोड़ीI उसने कहा- इसका लेखक मैं ही हूंI ऐसे व्यक्ति को क्या कहूंगा, औरों को उपदेश दे और खुद अंधेरे में रहे, वह जीवन में कुछ नहीं कर सकताI अगर अपने जीवन का उद्धार करना चाहते हो पहले खुद छोड़ो, फिर छुड़ाने की बात करोI यह छुड़ाने की बात है, तुम लोग क्या करते हो, पिंड छुड़ाते होI बुराई छुड़ाओ, परिग्रह छुड़ाओ, पाप छुड़ाओ, पाखंड छुड़ाओ और तुम लोग तो पिंड छुड़ाने की कोशिश करते होI भैया! किससे पिंड छुड़ा रहे हो, जिससे तुम्हारा अहित हो उससे पिंड छुड़ा दो, ठीक है लेकिन जिससे तुम्हारा हित हो उससे अपनी प्रीति बनाने में कमी मत करो, तब जीवन का कोई लाभ होगा और अपने जीवन में कोई सार्थक उपलब्धि घटित की जा सकेगीI लोगो की बुराई छुड़ाना ,नाता मत छुड़ाना, रिश्ता मत छुड़ाना, व्यवहार मत छुड़ाना, प्रेम मत छुड़ानाI लोग ये सब छुड़ाने में माहिर है, जो छुड़ाना है वो नहीं छुड़ाते यह विडंबना हैI और

चौथी बात छीनना, छीनना मतलब किसी के स्वामित्व की चीज को बरजोरी से हड़प लेनाI अपने बलपूर्वक ले लेना, यह घोर अनैतिक कर्म हैI छीना-झपटी तो एक प्रकार का पाप है, यह लूट-खसोट हैI तुम लोग छीनते हो, तय करो आज से मैं अपने जीवन में कभी किसी से कुछ नहीं छीनूँगा और छीनूँगा भी तो मौका छीनूँगाI किसका? अच्छा काम करने का मौका छीन लूंगा और कुछ नहीं छीनूँगाI तुम लोग धन छीनते हो, तुम लोग संपत्ति छीनते होI यह तो लूट खसोट का काम है, लुटेरों का काम है, डकैतों का काम हैI यह छीना-झपटी क्यों, इस छीना-झपटी से अपने आप को बाहर करो, छिनना है तो मौका छीनो, अच्छे कार्यों का मौका छीनो जिससे तुम अपने जीवन को सुंदर बना सको, जीवन को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में समर्थ बन सकोI लेकिन लोग हैं, आजकल तो बड़ी ज्यादा छीना-झपटी लगी है, होड़ है गलाकाट प्रतिस्पर्धा बनी हुई हैI यह प्रवृत्ति बहुत ही भयानक प्रवृत्ति है, हमें ऐसी प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना चाहिएI आज लोग इस तरह के कृत्य से इस तरह जुड़ गए हैं कि लोगों के जीवन की कोई जमीर नहीं बची, कोई ईमान नहीं बचाI लोग किसी भी स्तर तक उतर जाते हैंI बंधुओ! हम मनुष्य हैं तो हमें चाहिए, हम मनुष्यता की सीमा के भीतर रहें और अपने जीवन में ऐसा कुछ भी ना करें जिससे हमारा जीवन कलंकित होता हो, जिससे हमारी पहचान खंडित होती हो और जिस से स्व-पर का हित बाधित होता हो, ऐसा कार्य कभी नहीं करनाI आजकल लोग ऐसी प्रवृत्तियां बहुत तेजी से करने लगे है, हमें इन सब बातों से अपने आप को बचा कर के चलना चाहिए और इससे बाहर निकलना चाहिए, तब हम अपने जीवन की वास्तविक उन्नति कर सकेंगेI यदि आपने छोड़ना सीख लिया, छुड़ाने की कला प्राप्त कर ली तो आपके लिए छूटने का दर्द नहीं होगा और छीनने का कृत्य आप कभी नहीं कर पाओगेI छीनने के भी कई रुप हैं, एक छीना झपटी तो जो  लोग खुलेआम करते हैं और एक छीना झपटी जो आप लोग पर्दे के पीछे करते हैंI छिनना यानि लूट लेना, तुम्हारी दुकान में कोई ग्राहक आया और तुम ने उस ग्राहक की जेब को खाली कर दिया अनैतिक तरीके सेI तुम्हें जितना लाभ लेना था, उससे ज्यादा तुमने लाभ उठा लियाI सामने वाले की अजानकारी का तुमने अनुचित फायदा उठा लियाI यह छिनना ही तो तो है, यह चोरी है, यह महाअनर्थ हैI इनसे अपने आप को बचाइए, तय कीजिए, मैं कुछ भी होगा अपने ईमान को कभी नहीं खोऊँगाI यह संकल्प लेना चाहिए लेकिन अब क्या बताऊं, गैरों की बात तो जाने दीजिए, लोग अपनों के साथ भी ऐसा दुर्व्यवहार कर देते हैंI आज भाई-भाई के बीच में छीना-झपटी लगी हुई है, आखिर क्यों? थोड़ी सी संपत्ति के पीछे इतनी माथाफोड़ी क्यों? आखिर यह क्या हो रहा है, तुम्हें पता नहीं है, सब छूटना है, फिर यह मशक्कत किसके लिए? काश, तुम्हारे लिए इतनी समझ होती तो यह सब कहने की जरूरत नहीं होतीI लेकिन मनुष्य की ऐसी दुर्बलता उसके ऊपर हावी हो गई है कि वह सब बातों को भूल जाता हैI

आगाह अपनी मौत से कोई बसर नहीं, सामान सौ बरस का पल की खबर नहींI

है तुम्हें पता? एक घटना घटी, मेरे संपर्क में एक सज्जन है, अब तो नहीं रहे दुनिया में, कटनी के जय कुमार सिंघईI उन्होंने एक बार मुझसे कहा था, 1995 की बात है, उन्होंने कहा- महाराज! एक बड़ा विचित्र प्रसंग आपको सुना रहा हूंI उनके एक मित्र मेरठ के कपड़े के व्यवसायी, उनने कहा कि महाराज मैं अपने मित्र के यहां गया, बहुत सुंदर हवेली थी और हवेली के प्रवेश द्वार पर लिखा था-

आगाह अपनी मौत से कोई बसर नहीं, सामान सौ बरस का पल की खबर नहींI

महाराज! मुझे यह देखकर के बड़ा अटपटा लगा कि मुख्य द्वार पर तो पर तो मंगल वाक्य लिखे जाते हैं, स्वागतम लिखा जाता है, अतिथि देवो भवः की बात की जाती है पर यह वैराग्यप्रद सन्देश द्वार पर क्यों?I मैंने अपने मित्र से पूछा आखिर आपने घर के मुख्य द्वार पर यह बात क्यों लगा रखी है, तो महाराज उन्होंने जो बात कही- वह मैं आपको सुनाना चाहता हूंI उन्होंने कहा- मेरे पिताजी ने बड़ी लगन से यह हवेली बनाई थी, 1975 के आसपास उनकी हवेली बनी थी, उस जमाने में 30 लाख रुपए की लागत लगी थीI इटालियन मार्बल लगाया थाI मेरे पिताजी खुद छत्ता लेकर खड़े होकर के काम कराते थेI बड़ी उमंग से उनने यह मकान बनाया, एक-एक चीज घूम-घूमकर के लाकर के बड़े सलीके से उन्हें लगायाI बड़ा नायाब मकान उन्होंने बनायाI  महाराज! क्या बताऊं, उन्होंने कहा- कि जिस दिन गृह प्रवेश था, गृह प्रवेश करते समय मेरे पिताजी घर की देहरी में पैर रखेI एक पैर दरवाजे के भीतर और दूसरा बाहर था, उसी समय उनका हार्ट फेल हो गया, वह घर में जा नहीं सकेI एक पैर भीतर, दूसरा पैर बाहर दरवाजे पर ही हार्ट फेल, ठीक गृह प्रवेश के दिनI उस दिन उनका प्राणांत हो गया तब मुझे लगा, आगाह अपनी मौत से कोई बसर नहीं, सामान सौ बरस का पल की खबर नहींI लोगों ने उससे कहा यह मकान छोड़ दो, तुम्हारे लिए अशुभ हैI वह व्यक्ति भी बड़ा जिंदादिल आदमी थाI उसने कहा, मैं क्यों छोडूँ, यह मकान मेरे लिए अशुभ नहीं है, यह मकान मेरे लिए शुभ है, जिसने जीवन की वास्तविकता का पाठ पढ़ा दियाI इस संसार में सब छूट जाने वाला हैं, साथ जाने वाला कुछ नहींI यह वास्तविकता का पाठ पढ़ा दिया और बोला तभी से मैंने इसे अपने दरवाजे पर रख दियाI आज मेरे हृदय में किसी के प्रति आसक्ति नहीं है, मुझे लगता है सब छूटना है, सब छूट जाना है तो फिर मैं जोड़ूँ क्यों? जो है उसका उपभोग करूं, उपयोग करो, जिससे अपना जीवन आगे बढ़ेगाI

तो बंधुओ! आज चार बातें मैंने आपसे कहीं, छोड़ना, छूटना, छुड़ाना और छिननाl छीनने से बचो छूटना है इस बात को ध्यान में रखोI जितना बने दूसरों को औरो को छुड़वाने की कोशिश करोI और मुझे छोड़ना है इसे अपने जीवन का आदर्श बनाओI यदि ऐसा कर लिए तो तुम्हारी छुट्टी हो गई, फिर कुछ कहने की जरूरत नहीं है, जीवन धन्य हो जाएगाI बस मैं तो आपसे यही कहूंगा, अपनी छुट्टी करो, पाप से छुट्टी करो, आसक्ति से छुट्टी करो और जीवन को ऊंचा उठाओI

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