जीवन का आधा पतन – व्यसन

261 261 admin

जीवन का आधा पतन – व्यसन

धरती पर अगर चंदन का पेड़ उगाना हो तो वर्षों लग जाते हैं और बेशर्म का पौधा उगाने में कुछ भी श्रम नहीं लगता। उसे तो जहाँ फेंक दो, अपने आप उग आता है, इसलिए उसका नाम ही बेशर्म है। अच्छाइयों को आरोपित करना होता है, बुराइयाँ स्वतः प्रकट हो जाती हैं और न केवल प्रकट होती हैं अपितु बहुत तेजी से पनपने लगती हैं। और एक बार मनुष्य किसी बुराई से जकड़ जाए तो उस से मुक्त होना उसके लिए बड़ा मुश्किल सा हो जाता है और वह उसके चित्त और चेतना को खोखला कर देती है। कहते हैं, जिस धरा पर बेशर्म या गाजर घास उग जाती हैं, वहाँ उसके रहते कोई अच्छी फसल नहीं उग पाती। चित्त की भूमि में यदि हम अच्छे बीजों का अंकुरण करना चाहते हैं तो हमें सबसे पहली आवश्यकता उसे साफ करने की है। जो बुराइयों की गाजर घास हमारे चित्त की भूमि में उग आये हैं, जो बेशर्म उग आये हैं, आवश्यकता उसे उखाड़ कर के अपनी मनोभूमि को स्वच्छ बनाने की है।

आज बात मैं उसी की कर रहा हूँ। ‘व’ पर मुझे जो बात करनी थी वह बात आज मैं कर रहा हूँ। वह है व्यसन,जो हमारे जीवन की सबसे बड़ी बुराई है, जो हमारा पतन कराए वह व्यसन है। व्यसन का मतलब, किसको बोलते हैं व्यसन? बुरी आदत, व्यसन का मतलब होता है दुःख। संस्कृत में व्यसन का अर्थ दुःख होता है और हमारे अंदर की जो भी बुरी आदतें हैं वो सब व्यसन ही है। व्यसन है क्या? जिसे हम करना भी ना चाहे और छोड़ भी ना पाए, उसका नाम व्यसन है। किसी भी व्यसनी की बात करिए आप। व्यसन यानी लत, लत अच्छी भी होती हैं, बुरी भी होती है। अच्छी लत लगन में बदल जाती है जो हमारे जीवन को ऊँचा उठा देती है लेकिन बुरी लत हमारा पतन करा देती है, वो हमे बहुत नीचे ले जाती है। तो जब भी हम कई कार्य ऐसे होते हैं, जो हम करना नहीं चाहते लेकिन करते हैं, वो व्यसन है, छोड़ नहीं पाते वो व्यसन हैं। हम जब भी व्यसनों की बात करते हैं, हमारा ध्यान सप्त व्यसनों पर चला जाता है। मैं समझता हूँ इस सभा में उपस्थित लोगों में सप्त व्यसनी तो कम होंगे लेकिन मैं आज आपका ध्यान पहले दूसरे प्रकार के व्यसनों पर भी केंद्रित करना चाहूँगा। उसकी जड़ तक आपको पहुँचाऊँगा और फिर उस से बाहर निकलने का रास्ता भी बताऊँगा।

व्यसन मात्र व्यसन है, हमें सभी व्यसनों से बाहर निकलने की आवश्यकता है। लेकिन जैसा मैंने अभी बताया व्यसन क्या है, जिसे हम करना न चाहे पर वो करें बिना न रह पाए, वह है व्यसन। वो व्यसन कई तरह का है, सबसे पहला है, क्रोध,गुस्सा। कई लोगों की गुस्से की आदत होती है, बात-बात पर गुस्सा होते है, करना नहीं चाहते लेकिन करे बिना नहीं रहता। व्यसन है या नहीं, गुस्सा करना नहीं चाहता लेकिन करें बिना नहीं रहता। है बुराई, आपने कभी सोचा कि मेरे अंदर क्रोध एक व्यसन की भांति बैठ गया है। कैसे बैठता है, व्यसन बनते कैसे है, उसकी चर्चा तो अभी थोड़ी देर बाद में करूँगा, लेकिन पहले हमें ये पहचानना है, यह व्यसन है जो हमारी प्रवृति सी बन जाती है, जिसे हम अबुद्धि पूर्वक करने लगते हैं, जिसके बिना हम अपने आप को रोक नहीं पाते। है ना ऐसी आदत? आज हमें तय करना है कि हमें इस पर नियंत्रण लाना है।

कई बार हमारा मन विकारग्रस्त रहता है, मन में विकारी भाव आते रहते हैं और उन विकारी भाव से प्रेरित होकर के कई तरह की प्रवृत्तियाँ आप लोग करते रहते हो जैसे किसी किसी को कुछ नहीं है तो मोबाइल चलाने की आदत है। अब तो अच्छे-अच्छे बुड्ढे लोग भी चलाते हैं। WhatsApp चल रहा है, Facebook चल रहा है और दूसरे सोशल साइट्स का आप प्रयोग कर रहे हैं। कहते हैं इससे टाइम वेस्टेज है, यह सब समय की बर्बादी है। रोज सुबह सोचते है कि आज नहीं करूँगा, पर बाद में मन क्या कहता है, चलो एक बार देख लो। है ना? बोलो यह व्यसन है या नहीं। बोलो तो, तुम लोग व्यसनी हो या नहीं? कई लोगों को गंदी साइट्स देखने का एडिक्शन हो जाता है, पोर्न वीडियोस देखते हैं। मेरे पास कई लोगों ने आ कर के अपना आत्म निवेदन प्रकाशित किया, उसमें बच्चे भी हैं, युवा भी हैं, वृद्ध भी हैं। हाथ में ऐसी चीज ले ली, उसके प्रति मन में उत्पन्न हुआ सूक्ष्म आकर्षण हमें उस में संलिप्त कर लेता है। कई लोगों की आदत थोड़ी दूसरी तरह की हो जाती है। माता-बहनों को देखने की इच्छा, गंदी दृष्टि से देखने की इच्छा हो जाती है। उनसे संपर्क बनाने की इच्छा हो जाती है। है यह प्रवृत्ति, पुरुषों में स्त्रियों के प्रति, स्त्रियों में पुरुषों के प्रति, यह एक व्यसन है, जो हमारा पतन कराता है। क्या है, इसे समझने के लिए पहले हम इसके आधार को स्पष्ट करें।

हम जो भी प्रवृत्तियाँ करते हैं, उन सब की प्रेरणा हमें हमारे मन से मिलती है और हमारे मन के दो रूप है, एक वह मन जो सामने प्रकट है और एक वह मन जो हमें प्रकट रूप में दिखता नहीं लेकिन वह हमें प्रेरित करता है। मनोविज्ञान की भाषा में यदि हम बात करें तो एक हमारा चेतन मन है तो दूसरा अवचेतन मन। हम किसी भी कार्य की शुरूआत जब करते हैं तो चेतन मन से करते हैं और चेतन मन के माध्यम से जो भी कार्य हम करते हैं, उनके संस्कार हमारे अवचेतन मन पर पड़ जाते हैं। चेतन मन चीजों को विचार करके स्वीकार करता है लेकिन अवचेतन मन बिना विचार के सब को संग्रहित करता रहता है और एक बार संग्रहित कर ले तो बार-बार वह हमारे चेतन मन को उकसाता रहता है। आज हमारी जो प्रवृत्तियाँ हैं, वह चेतन मन के कारण कम अवचेतन मन के कारण अधिक हैं। हमारे अवचेतन मन में वह संस्कार जम गए और ऐसे जम गए, ऐसे जम गए ऐसे जम गए कि उनसे निजात पाना हमारे लिए मुश्किल सा हो गया, असंभव तो नहीं है लेकिन कठिन है। यदि हम जाग जाएं तो उस पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। हम उसे अपने नियंत्रण में ला सकते हैं।

कैसे बनते हैं संस्कार? जो कालांतर में हमारी आदत बन जाती है। थोड़ी सी बात हम यहाँ से शुरू करें और फिर आगे बढ़े। जैसे मान लीजिए, कोई भी गंदी आदत है, किसी को नशा करने की आदत हुई। जब व्यक्ति पहली बार नशा करने के लिए प्रवृत्त होता है, तो कैसे करता है? या तो किसी के दबाव में आकर करता है या किसी के प्रभाव में आकर करता है या अपने दोस्तों-यारों की संगति में आकर के करता है या घर परिवार में अपने से बड़ों की देखा-देखी में करता है। किसी ने दबाव डाला, request किया, चलो थोड़ा सा ले लो। क्या फर्क पड़ता है, थोड़ा सा ले लो। बार-बार कहे तो शुरुआत में तो हमारा मन उसके लिए स्वीकार नहीं करता कि नहीं मुझे नहीं करना लेकिन जब बार-बार बार-बार दबाव होता है या संगति का प्रभाव हमारे मन में होता है, एक दूसरे को देखते हैं तो देखते-देखते मन में आता है कि चलो एंजॉय कर के देख लो। एक बार आपने लिया और लेने के बाद फिर धीरे-धीरे-धीरे वो आपके अवचेतन मन में संस्कार चला गया। फिर धीरे-धीरे धीरे-धीरे वह फलीभूत होता है और हमें दोबारा लेने की इच्छा होती है। तीसरी बार लेने की इच्छा होती है और होते, होते, होते, होते, एक समय ऐसा आता है, जब लोग उसके आदी बन जाते हैं, उसके बिना रह नहीं पाते।

आपने खेत में पगडंडियों को देखा होगा, पगडंडियाँ बनती है, तो खेत में कोई पगडंडी कैसे बनती है। वहाँ कोई फावड़ा लेकर पगडंडी नहीं बनाता। पगडंडी से कोई व्यक्ति एक बार गया, एक बार गया, कुछ-कुछ घास दबी, दूसरी बार गया, तीसरी बार गया, चौथी बार गया, जाते-जाते 4,5 बार जब जाए तो लोगों को लगता है कि यह पगडंडी जैसी है और 25 -50 लोग आते-जाते हैं तो देखते, देखते पूरी पगडंडी उभर जाती है। एक बार पगडंडी पूरी उभर जाए फिर क्या होता है, जो जाता है उसी रास्ते से जाता है फिर वो रास्ता बन गया। शुरुआत एक से हुई और बार-बार बार-बार उसकी पुनरावृति हुई, रास्ता बन गया। हमारे माइंड में भी ऐसा ही कुछ होता है, कोई गलती हम पहली बार करते हैं, यदि वहीं रुक जाए तो फिर आगे बात नहीं बढ़ती। लेकिन मुश्किल हमारे साथ यह है कि हम वहाँ रुक नहीं पाते और दो, चार, पाँच बार उसी के आदी होने के बाद हमारा अवचेतन मन हमें बार-बार प्रेरित करता है, वह पूरा रास्ता बन जाता है फिर आदमी हर पल उसी रास्ते पर चलता है, उससे डाइवर्ट नहीं हो पाता। यह एक अनुभव सिद्ध बात है।

हमारे जीवन में जो भी बुराइयाँ हैं, वह इसी तरीके से हम पर हावी होते जाती है और हावी होते होते हमारे जीवन के संपूर्ण क्रम को बिगड़ डालती है। संत कहते हैं- यहाँ हमें सावधान होने की जरूरत है। जैसे कोई भी व्यक्ति धूम्रपान करता है उस से पूछो, जब पहली बार उसने धूम्रपान किया होगा तो उसे घुटन महसूस हुई होगी। पहली बार करने के बाद वह खांसता है। उस समय उसका एक मन उसे रोकता भी है कि छोड़ लेकिन वह चेतन मन की बात को दबा देता है, अवचेतन मन की प्रेरणा पा लेता है और वह फिर उसी दिशा में प्रवृत्त हो जाता है। नतीजा, व्यक्ति उसका शिकार बन जाता है और आदी होने के बाद उससे बाहर निकलना बहुत कठिन जैसा हो जाता है। संत कहते हैं- थोड़ा गंभीरता से चीजों को समझिए और अपने आप को किसी भी व्यसन या बुराई का आदी होने से बचा लीजिए। मुझे किसी भी व्यसन में फँसना नहीं है। यदि मेरे जीवन में कोई व्यसन नहीं है तो तय करना आज के बाद मुझे व्यसन रखना नहीं है और यदि व्यसन में मैं फँस गया हूँ तो अब मुझे उससे बाहर निकलना है। एक बार व्यक्ति किसी भी व्यसन में लिप्त होता है तो वह चक्रव्यूह में फँस जाता है, प्रवेश करना तो आसान होता है लेकिन अभिमन्यु की तरह बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है, दुश्वार होता है। तो पहला प्रयास हमारा यह होना चाहिए कि जीवन में कोई व्यसन आये ही नहीं और यदि आए तो हम उसे नियंत्रित करें, उसे रोके, उसे अपने ऊपर हावी ना होने दें।

आज मैं आपसे चार बातें करूँगा, व्यसनों को नियंत्रित करने के लिए जो सबसे ज्यादा आवश्यकता है। सबसे पहली बात इच्छा शक्ति जगायें। कोई भी व्यसन हो जब तक आपके मन में उसे छोड़ने की प्रबल इच्छा शक्ति नहीं जगती तब तक आप उससे बाहर नहीं निकल सकते। इच्छा शक्ति जगाइये, ठान लीजिए कि मुझे छोड़ना है तो छोड़ना है। कैसा भी व्यसन हो छूट जाएगा। मेरे संपर्क में ऐसे अनेक लोग है जो महाव्यसनी रहे कभी लेकिन अपनी इच्छा शक्ति के बल पर उनने अपने जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर लिया। और कई ऐसे भी उदाहरण है जिनमें व्यसन और एडिक्शन के शिकार लोगों को लोगों ने रिहैबिटेशन सेंटरस में भी कई बार भेजा लेकिन वहाँ रहे तब तक ठीक, घर आने के बाद वही हाल। क्यों? मन में उसे छोड़ने की इच्छा जागृत ही नहीं हुई, तो कैसे छुटेगा? आप लोग यहाँ बैठे हैं, व्यसनों में सबसे बड़ा विषय है, नशे का व्यसन, किसी भी प्रकार के मादक पदार्थ का आप सेवन करते हो, चाहे शराब हो, चाहे गुटखा हो, तंबाकू उत्पाद हो या गांजा, चरस, अफीम, भांग हो तो ये फिर मालवा का अंचल है, मंदसौर के बाजू का, रतलाम वाला है, यहाँ तो ड्रग्स भी बहुत आते हैं। किसी का भी एडिक्शन हो। आपके अंदर यदि उसे छोड़ने की प्रबल इच्छा है, तब तो उसे छोड़ा जा सकता है। इच्छा-शक्ति के धनी व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं और जिसकी इच्छा-शक्ति अजाग्रत है, उसके लिए कुछ भी संभव नहीं। अपनी मानसिकता को बदलना है, आज तुम सब कुछ कर सकते हो। इच्छा शक्ति को जगाओ, इच्छा शक्ति जगेगी तो संकल्प शक्ति बढ़ेगी, इच्छाशक्ति के बाद संकल्प शक्ति। मन में इच्छा हुई, प्रबल हुई, डिजायर हो गया, डिजायर होने के बाद हमें अपनी इच्छा को डिसीजन में बदलना है, निर्णय लेना है और अपने निर्णय को संकल्प में परिवर्तित करना है एकदम determined हो जाए कि नहीं अब तो मुझे इसे छोड़ना ही है। इच्छा-शक्ति के आगे जब मनुष्य की संकल्प शक्ति विकसित हो जाती है तो वह सब बातों को बड़ी आसानी से नियंत्रित कर सकता है, असंभव नहीं है। लोग संकल्प दिलाते हैं पर बिना मन के संकल्प लेते हैं, वह सुबह लेते है, शाम को तोड़ डालते हैं। और जो अपनी इच्छा से संकल्प लेते हैं उनका संकल्प दृढ होता है। मेरे संपर्क में एक युवक है, बहुत शराब पीता था। एक रोज वो आया, उसकी पत्नी साथ में थी और कहा महाराज जी मुझे शराब का नियम दे दो, संकल्प दे दो। वही उसका मित्र बैठा था, उसकी तरफ देख कर पूछा- भैया कितनी बार ले रहा है नियम तू। वो कई बार नियम ले चुका था, तोड़ चुका था तो उसने जो बात कही और बाद में उसका परिणाम दिखा, वह मैं आपको बता रहा हूँ। उसने कहा, महाराज अभी तक मैं इस के कहने से आता था, इसलिए मेरा नियम नहीं निभता था। मैं इस के कहने से नियम लेता था पर महाराज जैसा आप लोग बोलते है ना अन्टी बांध के संकल्प ले लो, मैं वैसा करता था, मैं अंदर से नियम ही नहीं लेता था। पर महाराज जी पिछले 3 दिनों से आप के संपर्क में आने के बाद मेरे भीतर घोर उथल-पुथल हो रही है और आज मैं खुद इसको ले कर के आया हूँ कि चलो महाराज के पास, आज मैं शराब का त्याग करता हूँ, मेरी इच्छा जाग गई। आप सब को सुनकर के आश्चर्य होगा, वह व्यक्ति जो प्रतिदिन शराब पीता था,अपनी इच्छा से शराब का त्याग किया और आज तक उसको शराब से कोई वास्ता नहीं रहा, उस घटना को लगभग 14 वर्ष बीत गए। तुम लोगों के साथ ऐसा ही होता है, इसी का दूसरा रूप देखो सम्मेद शिखरजी की मैं वंदना कर रहा था, वंदना करते हुए मैं पारसनाथ टोंक पर पहुँचा। एक नवदंपत्ति भी वहाँ बंदना के लिए आया था। मैं दर्शन कर रहा था वो लोग भी दर्शन कर रहे थे तो पत्नी ने पति से कहा, देखो, शिखरजी जैसे इतने बड़े तीर्थ पर आए हो, आज से आप गुटखा मसाला छोड़ दो। उसने पत्नी की बात रखी और कहा ठीक है। धर्मपत्नी ने मुझसे कहा महाराज! आज इनको नियम दिला दो। मैंने पारसनाथ भगवान के चरणों में हाथ रखवा कर के कहा, बोलो, आज से तंबाकू उत्पाद, गुटखा मसाला नहीं खाऊँगा। बोला, नियम है और कार्योत्सर्ग कर लिया। मैंने वह सामायिक की, वो लोग कुछ पूजा-पाठ किए फिर नीचे, मैं सामायिक करके जब नीचे की ओर उतर रहा था वंदना करके तो डाक बंगले के लिए जो मोड़ होता है, वहाँ मैंने देखा एक डोली वाला खैनी ठोक रहा था। खैनी समझते हो ना, उधर बहुत चलता है, बिहार यूपी में। तम्बाकू का ही एक उत्पाद है, चुना मिला कर। तो खैनी ठोक रहा था और जैसे ही खैनी ठोक रहा था, वो भी पूर्वांचल का ही था। उसने अपनी हाथ उसकी तरफ बढ़ा दी, वह हाथ बढ़ाया, उसी बीच मेरा गुजरना हुआ। मेरी उस पर नजर पड़ी, मैंने उससे कहा बन गया भिखारी, बन गया भिखारी। अभी-अभी तुम 1 घंटे पहले ऊपर त्याग किए और अब तुरंत हाथ फैला दिये। महाराज जी! हमने गुटखा मसाला छोड़ा था, खैनी थोड़ी छोड़ा था।

ऐसों को क्या करेंगे! ऐसे लोगों की मानसिकता बड़ी जकड़ी हुई होती है, गुलाम होती है। इच्छा-शक्ति, संकल्प-शक्ति फिर विश्वास, भरोसा। अपने ऊपर भरोसा होना चाहिए कि नहीं मैं इसे छोड़ सकता हूँ, फिर इच्छा जगाओ और ठानो कि मुझे छोड़ना है, संकल्पित हो जाओ की छोड़ दिया, छोड़ दूँगा, दृढ संकल्प और अपने ऊपर विश्वास रखो, कि नहीं मेरा संकल्प निभेगा, मुझे निभाना है। कई लोग नियम लेते हैं, महाराज जी! किसी दिन टूट जाए, तो क्या करूँ? तो भैया तू तोड़ने के लिए नियम ले रहा है कि निभाने के लिए ले रहा है। आप लोगों का मन बड़ा डगमग होता हैं। कोई भी नियम लेते है, महाराज जी! किसी दिन टूट जाए तो? अरे भाई, यह तो बताओ टूट जाए तो, की बात आज आ क्यों रही है? मैंने तो नियम निभाने के लिए लिया है, दिखाने के लिए तो नहीं लिया ना? तो मुझे निभाना और उसका भरोसा होना चाहिए कि निभ जाए। जिनके मन में विश्वास नहीं रहता वो नियम ले ही नहीं पाते। बहुत सारे लोग हैं, हम नहीं लेंगे, कहीं टूट गया तो।

विश्वास, शक्ति की कमी है, वे सब के सब गुलाम है, वे सब के सब गुलाम है। गुलामी कई तरह की होती है, एक व्यवस्थागत गुलामी होती है, एक राजनितिक गुलामी होती है, एक आर्थिक गुलामी होती है और एक व्यक्तिक गुलामी होती है। इन सब गुलामियों से तो लोग आज काफी-कुछ बाहर आ गये, व्यवस्थागत गुलामी आज हमारे बीच नहीं है। राजनीतिक रूप से भी लोग आज आजाद हो गए है। अब वह गुलाम प्रथा भी नहीं है जिससे लोगों को गुलाम बनाया जा सके लेकिन फिर भी सब के सब लोग गुलाम हैं, वह गुलाम किसके हैं? अपनी आदतों के गुलाम, सबके सब अपनी आदतों के गुलाम है। एक बार जैसी मनोवृति बन जाती है, उसे बदलना बड़ा मुश्किल होता है। आदत, उस पर अंकुश होना चाहिए। मुझे अपनी मानसिकता को आजाद करना है, लत पड़ गई, छूटती नहीं। जाग जाओगे, सब छूट जाएगी। अच्छे-अच्छे लोग बुरी लत के शिकार होने के बाद उस से मुक्त नहीं हो पाते, बुरी लत के शिकार हो गए मुक्त नहीं हो पाते। मेरे संपर्क में एक कैंसर के विशेषज्ञ चिकित्सक थे, वो खुद गुटखा खाते थे। मैंने कहा- डॉक्टर साहब, आप कैंसर के विशेषज्ञ, आपको अच्छी तरह से पता है कि गुटखा मसाला कैंसर का कारण है। आप इतने पढ़े-लिखे हो फिर भी आप गुटखा कहते हो। यह अच्छी बात नहीं है। बोले, महाराज मैं क्या बताऊँ, मैं छोड़ ही नहीं पाता। जब से मैं मेडिकल कॉलेज में गया, मेरी आदत हो गई, दोस्तों के साथ। महाराज गुटखा ही नहीं खाता, कभी-कभी शराब भी पी लेता हूँ, शराब पी लेता हूँ, छूटती नहीं है। मैं क्या करूँ? छूटती नहीं है, ये बात बेमानी है, तुम छोड़ना चाहते नहीं, यह सच्चाई है। जिस दिन तुम छोड़ दोगे, जिस दिन ठान लोगे, उसी दिन छूट जाएगा। मैंने कहा कि तुम इसका क्या दुष्परिणाम है, मुझे बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुम तो चिकित्सक हो, लोगों को भी बताते होंगे। मन में संकल्प जगाओ, दृढ़ता रखो, छोड़ दो। मैंने थोड़ी देर उसे समझाया, उसने कहा, महाराज! आज पहली बार मुझे किसी ने इस तरीके से बोला है, मेरी पत्नी मुझे रोज बोलती थी तो वह जितना बोलती उतना मैं खाता था। आदमी की बड़ी कमजोरी है, वह सब की सुनता है, अपनी घरवाली की नहीं सुनता। इसलिए तुम लोगों से बोलता हूँ, खाए तो बोलो और खाओ, उल्टा बोलोगे तो असर पड़ेगा, उनको छोड़ने की बोलोगे तो वो तुम्हें छोड़ देगा! एक के साथ ऐसा ही हुआ, एक बहुत गुटखा खाता था, बहुत ज्यादा गुटखा खाता था तो उसकी धर्मपत्नी ने कहा, महाराज जी! इनका गुटखा छुड़वाओ, बहुत गुटखा खाता था। उस ने कहा- महाराज! मैं इसको छोड़ सकता हूँ लेकिन गुटखा नहीं छोड़ सकता। हमने कहा, भैया, ध्यान रख जो तू कर रहा है यह कुकृत्य क्या पता, कब क्या हो जाए? छोड़, छोड़ने की कोशिश कर, महाराज! छूटती नहीं, मैं एकदम उससे जकड़ गया, आदी हो गया। अगर छोड़ता हूँ तो बड़ी मतली होती है, बैचनी होती है, मैं रह ही नहीं सकता। हमारे मस्तिष्क में जब कोई किसी व्यसन का आदी हो जाता है तो उसके कारण हमारे पूरी की पूरी अंत:स्रावी ग्रंथियों में विशेष प्रकार का स्राव होने लगता है। उस स्त्राव के परिणाम स्वरुप हम फिर उसके एकदम आदी हो जाते है, उसके अभाव में व्यक्ति एकदम परेशान हो जाता है। तो वह बोला, महाराज! छोड़ना चाहते है छूटती नहीं है। हमने कहा मन में संकल्प लोगे तो सब छूट जाएगा। मेरे कहने के बाद उस व्यक्ति ने छोड़ दिया और उस व्यक्ति की बात जिसकी मैं कर रहा था कि पत्नी को छोड़ सकता हूँ, गुटखा को नहीं छोड़ सकता। मैं बोला- भाई ध्यान रख, तू पत्नी को छोड़ या गुटखा को छोड़, ये बाद कि बात है कहीं दुनिया न छोड़ना पड़े, सावधान हो जा। मेरे मुँह से निकला, क्यों तू मौत को अपने मुँह में लगा रहा है, पान मसाला यानि मौत मसाला है। गुटखा यानी जो आदमी को गुटक कर खा जाए। गुटकने वाले को खाये उसका नाम गुटखा है। कहीं तेरा ये काम, कही तेरा ये कृत्य तुझे दुनिया छोड़ने के लिए मजबूर ना कर दे। लेकिन क्या बताऊँ, उस व्यक्ति को उस समय कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि उसकी मानसिकता नहीं थी। दो महीने बाद उसे कैंसर डिटेक्ट हो गया, तुरंत भागा-भागा आया। बोला, महाराज! कैंसर की संभावना बता दी है डॉक्टर ने। आज त्याग करता हूँ। मैंने कहा- 2 महीने पहले अगर कर लिया होता तो यह नौबत नहीं आती। विचार कर लो, सावधान हो जाओ, तुम जब भुगतने की स्थिति में आ जाते हो, तब छोड़ने की बात करते हो। संत कहते हैं- पहले से ही हमें इसके बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। लेकिन लोग गुलाम है, उनका विश्वास नहीं होता कि मैं इसे छोड़ सकता हूँ। छोड़ा जा सकता है, मन में संकल्प हो, विश्वास हो, इच्छा-शक्ति, संकल्प-शक्ति और विश्वास, यह हमारे साथ जुड़े।

एक व्यक्ति एक हाथी के प्रदर्शनी स्थल पर गया, हाथी बंधा था और हाथी किससे बंधा था। साधारण सी रस्सी से बंधा था। सामने वाले को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना बलशाली हाथी और इससे  तुमने रस्सी मात्र से बांधा है। एक छोटी सी रस्सी, बहुत मोटा रस्सा भी नहीं, ये हाथी तो कभी भी तोड़ कर भाग जाएगा और तुम आराम से सो रहे हो और रात में उत्पात मचा दे तो? वो बोला, भाई साहब ऐसा कुछ नहीं होगा, आप निश्चिंत रहिए, ऐसा कुछ नहीं होगा। आप निश्चिंत रहिए। बोला, क्या बोलते हो? यह तो कभी भी हो सकता है, यह तो कभी भी हो सकता है, साधारण सी चीज है। हाथी की बात तो छोड़ दीजिए, हम जैसे लोग भी इस रस्से को थोड़ा झटका देकर तोड़ सकते है। बाबूजी आपसे कहा ना यहाँ कुछ नहीं होगा।

बोले क्यों? इसकी आदत पड़ गई, आदत पड़ गई, क्या मामला है? बोला, बात ऐसी है, जब यह बच्चा था, तब हम इसके पाँव में यही रस्सा लगाते थे। उस समय ये रस्सी को तोड़ने की कोशिश करता था, रस्सी को तोड़ने के लिए कोशिश करता था। उस समय उसके पास बल कम था, रस्सी मजबूत थी तो रोज-रोज तोड़ने की कोशिश करता, कुछ दिनों तक उसने किया। रोज-रोज करने के बाद जब रस्सी टूटे नहीं तो इसने ये सोच लिया कि मैं रस्सी तोड़ नहीं सकता। इसके दिमाग में यह बैठ गया कि यह रस्सी में तोड़ नहीं सकता और जब इसके दिमाग में ये गहरे रूप में बैठ गया कि इस रस्सी को मैं तोड़ नहीं सकता, इस रस्सी को मैं तोड़ नहीं सकता, इस रस्सी को मैं तोड़ नहीं सकता तो अब ये तोड़ने की कोशिश ही नहीं करता। हम लोग इसको इसी रस्सी से बांधते है, बचपन से बांधता आया है, यह कोई प्रयास नहीं करेगा, निश्चिंत है, इसे सांकल से बांधने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसके दिमाग में बैठा है यह रस्सी टूट नहीं सकती। बस मैं तुमसे भी यही कहता हूँ, तुम सब एक हाथी हो, तुम सब एक हाथी हो, तुम्हारे पास उस रस्सी को तोड़ने की ताकत है। पर तुम्हारे दिमाग में यह बात बैठ गई यह रस्सी टूट नहीं सकती, यह रस्सी टूट नहीं सकती। यह मुझसे हो नहीं सकता, यह मुझसे हो नहीं सकता। विश्वास जगाइए, विश्वास अगर जग गया, तुम्हारी गुलामी मानसिकता की खत्म हो जायेगी।

आज लोग आदत के गुलाम हैं और कुछ लोगों को गुलामी की आदत बन गई है। अपनी इच्छा-शक्ति, संकल्प शक्ति, विश्वास-शक्ति को जो प्रबल और प्रगाढ़ बनायेगा, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। बोलो, रस्सा तोड़ना है कि उसी में फँसे रहना है। अच्छा ये ईमानदारी से बताओ, कितने लोग है इस सभा में जो गुटखा खाते हैं। बस 2, 4 ही है खाने वाले? नहीं खाने वाले कितने है, थोड़ा दिखाओ। वाह रतलाम तो बहुत सुधरा हुआ है।

मैं आप सब से कहता हूँ, आप भी अपनी इच्छा इस तरह से जगा लेंगे, इस सभा में बहुत लोग होंगे, तय कीजिए कि आज से मैं कोई व्यसन अपने जीवन में हावी नहीं होने दूँगा। आपको अपने ऊपर भरोसा होना चाहिए की मैं नियम लिया हूँ तो मैं इसे निभा सकता हूँ। जब कभी किसी को कोई इस तरह के संकल्प की बात की जाती तो वो कहता है, कोशिश करूँगा। जो संकल्पित होता है, वह निभा लेता है और जो कोशिश करता है, वह केवल बहाना बनाता है। अगर तुम्हें अपने ऊपर भरोसा है तो कोशिश क्यों? कमिटमेंट क्यों नहीं? बुरे को बुरा मानते हो तो तुम उसे तत्क्षण दूर करने के लिए संकल्प क्यों नहीं लेते हैं? अरे ले, ले तो कही टूट ना जाये। अरे भैया, कई लोग नियम लेकर तोड़ देते है । एक बार एक ने मुझसे कहा, महाराज जी हम तो इसलिए नियम नहीं लेते कि देखते है कई लोग नियम लेकर तोड़ देते हैं। हमने कहा हद हो गई भैया, एक आदमी रोटी खाए और उसको डिसेंट्री हो जाए तो तुम रोटी खाना बंद कर दोगे क्या? वो उसकी दुर्बलता है, उसने नियम लेकर तोडा है। मैं नियम लेकर निभाऊँगा और उसके जैसा नहीं होगा, अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए।

इच्छा शक्ति जगाइए, संकल्प शक्ति जगाइए, विश्वास शक्ति अपने भीतर जगाइए, अपने अंदर भरोसा रखिए और चौथी बात अपने मन में समर्पण का भाव जगाइए। खुद हो कर अगर नहीं कर सकते तो गुरु चरणों में समर्पित हो जाइए, समर्पण गुरु के प्रति तुमने कर लिया, गुरु को अपने हृदय में बिठा दिया तो फिर तुम्हारे लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। हो सकता है, समर्पण हो जाये, देखो कैसे होता है? एक व्यक्ति मेरे संपर्क में है, जो चेन स्मोकर, चेन स्मोकर लेकिन उसका एकदम से छूट गया, सब के सब लोग आश्चर्य कैसे छूट गया। वो बोला, महाराज! जिस दिन मैं आप के प्रवचन पहली बार सुना, आपको मैंने अपने हृदय में बैठा लिया और उस हृदय में बैठने के बाद जैसे ही मैं सिगरेट लेता, मेरे आंखों के सामने आपकी छवि आ गई, उसी पल मेरा हाथ का सिगरेट छूट गया, मुझे किसी ने नहीं छुड़वाया। ना आप ने छोड़ा, ना और किसी ने कहा, आज तक कहने वालों ने अनेकों ने कहा, मेरी पत्नी से तो रोज मेरी इस बात को लेकर लड़ाई होती थी लेकिन मैं नहीं छोड़ पाया, लेकिन आप मेरे ह्रदय में बैठ गए हो तो अब मैं ले ही नहीं पाता। बस कुछ दिन जब मैंने देखा, जब-जब मैंने हाथ में सिगरेट ली, उसे सुलगाना चाहा, मुझे आपकी छवि दिखी, मैंने उसे उठाकर फेंक दिया। महाराज! अब तो मेरे मन में उसके प्रति नफ़रत का भाव हो गया, अब नाम लेना भी पसंद नहीं कर सकता। समर्पण भाव जगाइये, व्यसन टूट जाएंगे, कोई भी व्यसन तुम पर हावी नहीं होगा।

ये चारों बातों को अगर आप सामने रखकर के चलेंगे, देखिए आपका जीवन कितनी ऊँचाइयों पर जाता है। और बंधुओं यह व्यसन एक बार बनता है, हम खुद बनाते हैं, जितनी भी आदते हैं, वह तुम खुद डालते हो और शुरुआत में कई लोग बोलते है, चलो थोड़ा-थोड़ा कर ले क्या फर्क पड़ता है। लेकिन उसके बड़े भयानक परिणाम आते हैं।

एक आदमी सेठ था, जंगल के रास्ते से जा रहा था, रास्ते में उसे एक बाघ का बच्चा दिखाई दिया। वो उस बच्चे को उठा लाया, घर में रखा, उसे अपने बच्चे की तरह पाला, दूध पिलाता, बाघ को पालता और बाघ भी बड़ा शांत और संयत हो गया। उसके घर में कुत्ते थे, कुत्तों ने भी उसे कुत्ते जैसा समझा और बाघ भी कुत्तों के बीच रहा तो बाघ भी अपने आप को कुत्ते जैसा महसूस करने लगा, वो ऐसे ही दुर्बल जैसा दिखा। एक बार उसके कुछ मित्रों ने उसे सुझाव दिया कि भाई तुम्हारा बाघ है और बाघ को बाघ जैसा रखो, इसे तुम दूध पिलाओगे तो क्या होगा? इसे तुम कच्चा मांस खिलाना शुरू करो, तुम इसे कच्चा मांस खिलाना शुरू करो, कुछ ही दिनों में यह बाघ एकदम कद्दावर बन जाएगा और लोग देख कर के तुम्हारे शौर्य और पुरुषार्थ का गौरव गान करेंगे कि देखिए कितना बलशाली है, इसके पास बाघ है। तो जब इस तरह की बातें की लोगों ने प्रेरित किया, उसने कहा, ठीक बात है बाघ का मूल भोजन तो मांस है। उसने उसे कच्चा मांस खिलाना शुरू किया गया, शुरुआत में बाघ लेने में थोड़ा आगे-पीछे हुआ लेकिन धीरे-धीरे धीरे-धीरे बाघ ने उसे खाना शुरू कर दिया। मांस और उसमे खून भी था, देखते ही देखते बाघ बड़ा विकसित हो गया और उसके स्वभाव में भी कुछ परिवर्तन आ गया। पहले शांत रहता था अब धीरे-धीरे उग्रता आ गई। लोग देखते और कहते, अरे भाई इस सेठ के पास कितना बड़ा बाघ है यह सेठ कितना बड़ा आदमी है, यह रोज का क्रम था। एक रोज सेठ सड़क चलते आ रहा था, गिर पड़ा, उसके घुटने में चोट लगी, छिल-छिल गया और उससे रक्त की धार बहने लगी, रक्त की धार बहने लगी, उसने थोड़ा बहुत उपचार किया और आ गया। घर आने पर बाघ जब कभी आता तो बाघ उससे लिपटता था, उसको चाटता और उसे बहुत अच्छा लगता था। आज के दिन जब वह बाघ आया लिपटा तो चाटते-चाटते उसके घुटने तक उसकी जीभ पहुंची। जब घुटने को चाटना शुरू किया तो सेठ को भी कुछ देर के लिए अच्छा लगा लेकिन बाघ है, जो खून की धारा आ रही थी, उसका स्वाद उसे अच्छा लग रहा था, वो हटने का नाम नहीं ले रहा था और जब लगातार बाघ चाटे जाए, चाटे जाये तो उसे दर्द होने लगा। शुरुआत में तो अच्छा लग रहा था, बाद में उसे दर्द होने लगा। उसने बाघ को हटाना चाहा लेकिन बाघ है जो मानने के लिए राजी नहीं। उसने बार-बार कोशिश की, झटके से बाघ को हटाने का प्रयास किया लेकिन बाघ हटने की जगह गुर्राने लगा। उसने बाघ के तेवर को देखा और अपने बच्चों का आवाज लगाया की देख इस बाघ को हटा ये चाट रहा है, बाघ को हटा ये चाट रहा है, मुझे बहुत वेदना हो रही है और वह चीख रहा था अपनी वेदना से और बाघ उसे चाटे जा रहा था। जब बच्चों ने देखा बाघ को हटाने की कोशिश की, बाघ नहीं हटा तो उस पर फायर करके उसके सिर में गोली मार कर के बाघ को मार दिया, बाघ मर गया, कहानी यही पूरी हो गई। सेठ बच गया लेकिन इसका जो कथ्य है, वह मैं आपसे केवल इतना ही कहना चाहता हूँ। हमारा यह जो शरीर है, इस शरीर में जब भी हमारे माइंड में कोई भी व्यसन एक बार बाघ की तरह बैठ जाता है और एक बार कोई व्यसन की आदत खून की तरह हमारे मुंह में लग जाती है तो उसे छोड़ना बड़ा मुश्किल होता है। व्यसन की शुरुआत करना सरल है लेकिन उसको समाप्त करना बहुत मुश्किल होता है। ये सारे व्यसन बाघ की तरह हमारा खून चूसते रहते है और हम सोचते है, इसे हटाओ, इसे हटाओ, इसे हटाओ। लेकिन वो हटने को तैयार नहीं, सेठ के पुत्रों ने तो उस बाघ को मार कर के सेठ को बचा लिया पर तुम्हारे भीतर के इस व्यसन रुपी बाघ को मारने के लिए कोई बाहर से आने वाला नहीं है, उसके लिए तुम्हे खुद संकल्पित होना होगा। अपने अवचेतन मन को जागृत करने की आवश्यकता है।

अपने आप को जगाओ, जिस पल तुम अपने आप को जगा लोगे, जीवन की दिशा और दशा अपने आप परिवर्तित हो जाएगी। व्यसन मुक्ति के विषय में मैंने आपसे चार बातें कही, इच्छा शक्ति को जगाइए, संकल्प शक्ति को जगाइए, मन के विश्वास को जगाइए, समर्पण भाव जगाइए। देखिए आपके मन की दुर्बलताये कैसे दूर होती है? ऐसी कोई दुर्बलता नहीं जिसे आप दूर न कर पाए।

एक राजा का एक हाथी था, हाथी महाबलशाली, जवानी के दिनों में राजा उस के बल पर बड़े-बड़े युद्ध जीते थे। संयोगतया हाथी बूढ़ा हो गया और एक दिन तालाब में नहाने के लिए गया और दलदल में फँस गया। हाथी को निकालने के बहुत सारे प्रयास किए गए, बहुत सारे प्रयास किए गए लेकिन हाथी जो दलदल में फंसा सो निकल नहीं पाया। राजा उस हाथी को बड़े दिल से चाहता था कि किसी भी तरीके से इस हाथी को निकलना चाहिए, बहुत प्रयास किया तब भी हाथी नहीं निकला तो जो उसका महावत था, जो खुद बूढ़ा हो गया था, उसको बुलाया, महावत ने देखा हाथी निकल जाएगा। राजा बोला, क्या करे? महावत बोला, सेना बुलाओ और सेना सामने आ के तन गई और उसने युद्ध भेरी बजाई, नगाड़ा बजाना शुरू कर दिया। जोरदार नगाड़ा बजाया, युद्ध की भेरी बजी, जोरदार नगाड़ा बजाया, युद्ध की भेरी बजी। भीतर के उस दलदल में फँसे हाथी के भीतर का हाथी जग गया और उसने अपनी पूरी ताकत लगाई और दलदल से बाहर निकल गया। बस मैं आपसे केवल इतना ही कहता हूँ, अपने भीतर के शौर्य और पराक्रम को जागृत करो, अपने विश्वास को उद्घाटित करो। हम नगाड़ा बजा रहे हैं, उसके बाद भी तुम नहीं जाग रहे हो तो क्या होगा? इस दलदल से तभी निकल पाओगे अन्यथा कोई उपाय नहीं है।

और कुछ उपाय आपको देता हूँ, चार बाते और जो व्यसन के आदी है, उससे बचने के लिए क्या करें? आपने छोड़ दिया, आज आप सब छोड़ेंगे भी नहीं, जो छोड़ेंगे भी और जो घर बैठे वह भी छोड़ेंगे। कुछ उपाय, कई बार व्यसन छोड़ने के बाद खासकर किसी भी चीज का कोई एडिक्शन उसे छोड़ते हैं, बाद में बहुत सारी तकलीफें आती है। तन पर, मन पर उसका दुष्प्रभाव पड़ता है, मतली आती है, किसी को उल्टियाँ होती है, किसी के अंदर बेचैनी होती है, किसी को गुस्सा आता है, किसी को चिढ़चिढ़ाहट आती है, उसके लिए कुछ उपाय बताए गए हैं जो बड़े अच्छे उपाय हैं। आप लोग इसका उपयोग कर सकते हैं, आयुर्वेदिक में एक बात कही गई है, अदरक के प्रयोग की जो व्यसन करते हैं, उनके लिए अदरक का परहेज नहीं। आप अदरक के कुछ टुकड़े लीजिए, उसमे नींबू का रस निचोडिये और काला नमक लगाइए और इसे धूप में सुखा कर रख लीजिए। अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े में नींबू का रस, काला नमक मिलाइए और धूप में सुखा कर रख लीजिए और उसे डब्बी में अपने जेब में रख लीजिये। जब भी आपको किसी भी प्रकार का नशा करने की तलब लगे, खासकर गुटखा, तंबाकू आदि के लिए, शराब तक के लिए। उसका एक टुकड़ा निकालिये और मुंह में डालकर चूसना शुरू करे। अदरक में सल्फर की मात्रा बहुत होती है और शरीर में सल्फर जाने से एडिक्शन कम होता है, ऐसा विशेषज्ञ बोलते हैं आप इससे बच सकेंगे। और ऐसे प्रयोगों से बहुत सारे लोग बचे हैं, यह प्रयोग राजीव दीक्षित बताया करते थे। मेरे पास भी पहले कई बार आए। एक बार भोपाल में मेरे सामने इस बात का जिक्र किया और उनने कहा, महाराज! ऐसा करके मैंने हजारों लोगों की जो व्यसन की आदतें है वो छुड़वा दी और नशा छुड़वा दिया। आप आराम से कर सकते है, दो-चार दिन में फिर मन डगमगा जाता तो फिर चालू कर देते है। आप इसको रखिए आपके पास, इससे बचिये।

और दूसरा उपाय जब भी आप की तलब हो, एक बड़ा सहज उपाय है। अपने दाहिने नथुने को अंगूठे से बंद कर दीजिए और केवल बायीं नाड़ी से सांस लीजिए, छोड़िए, सांस लीजिए, छोड़िए। ये चंद्र नाड़ी कहलाती है, चंद्रमा हमारे मन से जुड़ा है, चन्द्रमा हमारे मन से जुड़ा है, ये हमारे मन को शक्ति देता है, सबल बनाता है, इससे हमारा संकल्प स्थिर होता है। 5 मिनट तक अपने दाहिने नथुने को बंद कीजिए। जब भी आपको नशा करने की इच्छा हो तुरंत 5 मिनट ऐसा कीजिए, आप बच जाएंगे।

तीसरा उपाय जो मुझे होम्योपैथी चिकित्सक ने बताया, होम्योपैथिक मेडिसिन में एक आती है सल्फर। लिक्विड होती है, पानी जैसा होता है। आप उसको लीजिए और एक बूंद, केवल एक बूंद सुबह-सुबह खाली पेट मुंह में ले लीजिए, लगातार 3 दिन लीजिए। सामान्य नशे के आदी के लोगों के नशे की आदत उससे छूट जाएगी, खासकर गुटखा-मसाला। नोर्मली, सल्फर 200 पोटेंशियल, जो ज्यादा लेते है वह लीजिए सल्फर 1000। सल्फर 1000 को आप लीजिए और उसको उसी तरह 3 दिन लीजिए और उसके बाद सप्ताह में एक दिन उसको ले लीजिए, आपको उस पर नियंत्रण करने की अनुकूलता हो जाएगी।

चौथा एक प्रयोग आप कर सकते हैं मेथी, दाना मेथी होती है, दाना मेथी का पाउडर बना लीजिए और पाउडर बना कर के रोज उसको फांकिये। दानामेथी लेने से भी नशे की आदत कम होती है।

ये चारों उपाय आप करेंगे तो नशे से आप प्रभावित नहीं होंगे, उसके शिकार होने से बचेंगे। अपने जीवन में इस नशे से बचें जो हमारे जीवन का विनाश कर दे, वह नशा है तो इस नशे की प्रवृति से अपने आप को बाहर करें। व्यसन से अपने आप को मुक्त करें, व्यसन जो हमारे जीवन का आधा पतन कराता है, उससे हम मुक्त हो लेकिन आज सभा को छोड़ने के पहले मैं चाहूँगा जो यहाँ बैठे हैं वे और जो घर में बैठे हैं, वह सब आज संकल्प लें कि आज से महाराज में सभी प्रकार की नशीली वस्तुओं का परित्याग करता हूँ। आप सब लोग मेरी बात से सहमत हैं तो एक बार हाथ उठाइए, सब हाथ उठाइए महिलाओं के कुछ हाथ कम उठते है और यह संकल्प ले कि महाराज श्री! आज से मैं सभी प्रकार के नशीली वस्तुओं का त्याग करता हूँ, त्याग करती हूँ।

 

Share