जीवन में क्या सही-‘ढंग’ या ‘ढोंग’

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‘ढंग’ का जीवन में महत्त्व-

धर्म हमें ‘ढंग’ से जीवन जीने की व इस संसार सागर से पार उतरने की कला सिखाता है | ‘ढंग’ से हम अपने जीवन को इह लोक में व्यवस्थित, मर्यादित, सात्विक, अहिंसक एवं शांतिमय तरीके से जी सकते हैं और अपने जीवन के यथार्थ रस का आनंद ले सकते हैं | परिणामस्वरूप परलोक में हमें सद्गति की प्राप्ति हो सकेगी और हम दुर्गति से बच सकेंगे।

ढोंग क्यों नहीं ?

‘ढोंग’ के विपरीत यदि हम हमारा जीवन ‘ढंग’ से ना जी कर ढोंगपूर्वक जीते हैं, तो इहलोक में तो हमारी फजीहत होती ही है तथा परलोक में भी हम भव-भवांतर तक इस संसार सागर में भटकते रहते हैं। इस ढोंग के छलावे से हम इस जीवन का भी सही से आनंद नहीं ले पाते तथा परलोक में भी दुर्गति के पात्र बनते हैं। अतः हमें ढोंग से नहीं अपितु ‘ढंग’ से जीवन व्यतीत करना चाहिए।

ढोंगी मिले तो क्या करें ?

सच्चाई एक न एक दिन सामने आ ही जाती है और जनमानस उस ढोंग को दरकिनार कर देते हैं | ऐसे में बस ढोंगी के ढोंग को सुधारें और ढिंढोरा ना पीटें। क्योंकि ढिंढोरा पीटने का एक भयानक दुष्परिणाम है कि दुनिया सभी को एक ही चश्मे से देखना शुरु कर देती है। सबको एक ही तराजू में तोलना शुरु कर देती है। जिसके परिणाम अच्छे नहीं होते। ऐसे में उस व्यक्ति का सुधार करें, उपगूहन की पृष्ठभूमि में स्थितिकरण करें ताकि उसकी बदनामी से खामियाजा समाज व धर्म को नहीं भुगतना पड़े।

Edited by Arvind Jain, Pune

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