एक बार एक जिज्ञासु सेठ अपने महल में पधारे हुए संत के पास निवेदन लेकर पहुंचा और बोला:
सेठ: गुरुदेव जीवन में धन पैसे का उपयोग समझ में आता है, शरीर के स्वास्थय का महत्व भी समझ आता है और प्रतिष्ठा और प्रभाव का महत्व भी समझ आता है। लेकिन धर्म का कोई उपयोग दिखाई नही देता पर फिर भी आप लोग सबसे ज्यादा धर्म की दुहाई क्यों देते है?? तो लोग धर्म करते क्यो है?
संत(जिज्ञासा सुन मुस्कुराते हुए ): तुम्हें तुम्हारी कोठी दिखाई पड़ रही है?
सेठ: हाँ दिखाई पड़ रही है |
संत: पूरी कोठी दिखाई पड़ रही है?
सेठ: हाँ, पूरी दिखाई पड़ रही है।
संत: तो तुम्हारी जितनी कोठी है तुम्हे उतनी दिखाई दे रही??
सेठ: हां, जितनी है उतनी ही दिखाई दे रही है।
कुछ पल रुक कर….
संत: तो बताओ इसकी नींव कहाँ है???
सेठ: सोचते हुए बोला गुरुदेव नीव तो दिखाई नही दे रही !!
संत(मुस्कुराते हुए)- अगर इस कोठी की नींव नही होगी तो क्या ये कोठी दिखेगी??
सेठ: नही गुरुदेव नीव के अभाव में कोठी दिखाई नही पड़ेगी।
संत( संबोधते करते हुए) – “जो स्थान इस कोठी में नीव का है वही स्थान जीवन में धर्म का है।” जैसे कोठी की स्थिरता के लिए नीव आवश्यक है वैसे ही जीवन की स्थिरता के लिए धर्म आवश्यक है।”
Compiled by Utkarsh Jain, Sagar
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