झगड़े का समाजशास्त्र

261 261 admin

झगड़े का समाजशास्त्र

दो मित्र आपस में बात कर रहे थे। एक व्यवसायी था और दूसरा साहित्यकार। व्यवसायिक मित्र ने साहित्यकार मित्र से पूछा कि लोग झगड़ा क्यों करते है? क्या पूछा- झगड़ा क्यों करते है? साहित्यकार ने बात को टालते हुए कहा- फिर कभी बताऊँगा, कि लोग झगड़ते क्यों हैं?

बातचीत का क्रम आगे बढ़ा और इसी बातचीत के क्रम में साहित्यकार ने अपने व्यापारी मित्र से कहा कि तुम सब काम छोड़कर रोज भगवान का पूजन किया करो। व्यापारी मित्र ने कहा- भैया! सब काम छोड़कर भगवान की पूजा करूंगा तो मेरा धंधा-पानी कैसे चलेगा, सब चौपट हो जाएगा। साहित्यकार ने कहा कि तुम्हें अगर मुझसे मित्रता रखनी है तो यह काम करना ही होगा। व्यापारी ने कहा- यह भी कोई बात हुई क्या, कोई भी बात तुम थोप दोगे। यह काम करना ही होगा ऐसी कोई बात है। साहित्यकार बोला- मैंने कह दिया ना तुम्हें मेरी बात मानना है, अगर मुझसे नाता रखना है तो तुम्हें मेरी बात मानना ही होगी। सामने वाले ने कहा- मैं नहीं मानूंगा। साहित्यकार ने कहा- नहीं मानोगे तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। उसने कहा- तुम्हें मेरा साथ देना होगा। दूसरे ने कहा- मैं यह नहीं कर सकता। उसने कहा- तुम्हें मेरा साथ देना होगा। दोनों अपनी बात पर तनातनी पर उतर गए। दोनों ने अपनी-अपनी बात पकड़ करके बैठना शुरु कर दिया। दोनों की बात वाद-विवाद में परिवर्तित हो गई। थोड़ी देर में देखते ही देखते बड़ी बहस हो गई, बहस ने बखेड़े का रूप ले लिया, धीरे-धीरे हाथापाई हो गई। जब दोनों को आपस में उलझे देखकर आसपास के लोग एकत्रित हुए। उन्होंने पूछा- भैया! तुम लोग इतने अच्छे मित्र हो तो आपस में झगड़ क्यों कर रहे हो, ये झगड़ा क्यों कर रहे हो? तो फिर साहित्यकार मित्र ने अपने आपको संभालते हुए कहा- मैं इससे झगड़ा कर नहीं रहा हूँ, इसके सवाल का उत्तर दे रहा हूँ। अभी थोड़ी देर पहले उसने मुझसे पूछा लोग झगड़ा क्यों करते है? मैंने झगड़ा करके बता दिया कि झगड़ा क्यों होता है।

सच्चाई यही है, जब मनुष्य अपनी बात पर अड़ जाता है तब झगड़ा खड़ा होता है। आज बात की है। आज मैं आपसे झगड़े की बात कर रहा हूँ। चिंता मत करना झगड़े की बात करूंगा, झगड़ा नहीं करूंगा। झगड़े की बात करना और झगड़ा करना इसमें बड़ा अंतर है। आज चार बातें आप सब से कहूँगा-

झगड़ना, झगड़ा खड़ा करना, झगड़े में फंसना और झगड़ा मिटाना।

चारों बातें झगड़े से जुडी हुई है लेकिन चारों के अर्थ अलग-अलग है। पहले आप अपने मन से पूछो- आपका कभी किसी से कोई झगड़ा हुआ कि नहीं हुआ? आप कभी किसी से झगड़ते हो या नहीं? महाराज! हम तो रोज ही झगड़ते हैं। झगड़ा होता है कि नहीं होता या, किससे होता है, आप इस बारे में सोचिए। आप झगड़ा करते हो या नहीं, आप झगड़ते हो या नहीं? पहला सवाल- आप झगड़ते हो? दूसरा सवाल- आप किससे झगड़ते हो?

थोड़ी देर अपने मन को पलटिए, मेरे पहले सवाल का उत्तर दीजिए- आपका झगड़ा होता है या नहीं? नंबर दो- किससे होता है? अपनों से या गैरों से? अपनों से, क्यों होता है? तीसरी बात-झगड़ा होता है या नहीं? झगड़ा किससे होता है? झगड़ा क्यों होता? कारण पड़ने पर होता है या बिना कारण ही होता है? और वो कारण क्या होता है? आप लोगो कि रोज मर्रे की जिंदगी में जो झगड़े खड़े होते है उसके पीछे का कारण क्या है? कभी आपने सोचा है, क्यों झगड़ते हैं आप? मतभेद! छोटी-छोटी बातों में झगड़ा खड़ा हो जाता है, झगड़ा मचा देते हो। बड़ी-बड़ी बातों में लोग झगड़े तो बात समझ में आती है, लेकिन छोटी-छोटी बातों में जो लोग उलझ जाते है तो बात समझ से परे हो जाती है। आप बताइए आपके घर में, आपके परिवार में, आपस में जो झगड़े होते है उसके पीछे मसले बड़े होते हैं या छोटे? क्यों? ये छोटी-छोटी बातों में इतनी अधिक उलझन क्यों? ये झगड़ा क्यों? यह बखेड़ा क्यों? ये झमेला क्यों? ये झंझट क्यों?

कभी आपने सोचा सुबह हुई, कि उठ करके अभी खड़े नहीं हुए, आपको बेड-टी मिली, चाय थोड़ी ठंडी हो तो दिमाग गर्म होता है कि नहीं? बोलो! चाय ठंडी है तो दिमाग गरम, क्यों? छोटी-छोटी बातों में तुम्हारा चित्त आखिर क्यों उलझ जाता है? तुम छोटी-छोटी बातों में झगड़ा क्यों शुरू कर देते हो? नहाने के लिए गए हो, तुम्हारे कपड़े बाथरूम में ठीक ढंग से नहीं पहुंचे, साबुन पानी की व्यवस्था ठीक ढंग से नहीं हुई, तुम ignore करते हो कि झगड़ते हो? नहाकर के मंदिर आए, भगवान के दर्शन कर रहे हो, भगवान के दर्शन करते-करते अभिषेक करने में क्रम थोड़ा आगे-पीछे हो गया तो कई लोग वहाँ भी झगड़ा खड़ा कर देते है। भैया! यह बताओ- तुम झगड़ा करने के लिए पैदा हुए हो या जीवन का आनंद लेने के लिए, ये तो बता दो? बात-बात पर झगड़ने की जो प्रवृति है ये बड़ी बुरी प्रवृत्ति है, और इससे कमोबेश हर कोई प्रभावित है। उसका दुष्परिणाम यह है कि हमारा जीवन, जो प्रेम और आनंद के रस से आपूरित होना चाहिए, उसकी वजह से हमेशा अशांति, उद्वेग, व्यग्रता और बेचैनी से ग्रसित रहता है। छोटी-छोटी बातों में झगड़ा, आपस में आप लोगों का शीत युद्ध तो अक्सर चलता रहता है। खासकर पति-पत्नी के मध्य, भाई-भाई के मध्य, पिता-पुत्र के मध्य, देवरानी-जेठानी के मध्य, ये सब क्यों? झगड़े के कई रूप होते है। एक झगड़ा होता है जिसमें व्यक्ति हाथापाई करता है और एक झगड़ा होता है जिसमें व्यक्ति के मन में मनमुटाव खड़ा हो जाता है, आपस में तालमेल का अभाव हो जाता है, या बातचीत होती है, बहसा-बहसी होती है, आपस में विवाद और उलझन होता है, यह झगड़े के रूप है। मित्र भी झगड़ते है परिवार के लोग भी झगड़ते हैं परिजन भी झगड़ते हैं, अडोसी-पड़ोसी से झगड़ते है। कुछ लोगों का स्वभाव ही होता है झगड़ पड़ना। आप उनमे से कहाँ हो? झगड़ा होता है तो अपनों से होता है कि गैरों से होता है। आप पाएंगे कि अपनों से ज्यादा झगड़ा होता है, गैरों से तो यदाकदा ही ऐसा होता है। अपनों से होता है तो कारण पड़ने पर होता है या बिना कारण पर? कारण पर होता है, तो देखिए छोटे-मोटे कारणों से होता है या बड़े कारण से होता है? यदि कारण से होता है, तो उस कारण का निवारण होने पर आपका झगड़ा शांत हो जाता है या खड़ा हो जाता है। कारण पड़ने पर झगड़ा होता है तो कारण की पूर्णता होने पर तुम्हारा झगड़ा मिट जाता है, शांत हो जाता है, कि उसके बाद भी झगड़ा खड़ा है? कभी आपने सोचा- चाय में शक्कर कम होने से आप अपनी पत्नी से झगड़ते हो, ठीक है, पत्नी ने यदि चाय में शक्कर डाल दिया तो झगड़ा शांत होना चाहिए कि नहीं? क्या हुआ, उसके बाद भी continue होता है। आखिर यह सब क्यों?

झगड़े के चार मूल कारण है। मुख्य तो अहम है लेकिन अहम का टकराव ही झगड़ा देता है और उसके पीछे के चार कारण हैं- रुचि-भेद, चिंतन-भेद, आग्रह और स्वार्थ, जहाँ यह होंगे, झगड़े होंगे। रुचि की बात ले, घर-परिवार में जितने सदस्य हो सबकी एकसी रुचि नहीं होती, हर कोई भिन्न-भिन्न रूचि वाला होता है। मेरी अपनी रुचि है, आपकी अपनी रुचि। और जब रूचि अलग-अलग है और लोग एक-दूसरे की रुचि के अनुरूप एक-दूसरे को चलाने की कोशिश करते है, तो बड़ा झगड़ा खड़ा हो जाता है। आप देखिए, आपकी रुचि कैसी है और सामने वाले की रुचि कैसी है? यदि सभी लोग अपनी अपनी रुचि से जीना शुरु करें और एक-दूसरे की रुचि को एक दूसरे पर थोपने की आदत से बाज आ जाए तो कभी झगड़ा हो ही नहीं सकता। लेकिन रूचि-भेद बहुत बड़े झगड़े का कारण है और उसी रूचि-भेद में भी, सबसे बड़ा कारण तो मैं यह देखता हूँ कि एक व्यक्ति की धार्मिक रुचि है और एक की धार्मिक रुचि नहीं है, रोज लड़ाई। खासकर पति पत्नी में, पति-पत्नी में रुचि-भेद के कारण रोज ठनती है।

आज से 20 वर्ष पहले की बात है, मैं ललितपुर में था। एक युवक अपनी बहन को लेकर आया। देखिए रूचि-भेद मनुष्य को कहाँ ले जाता है और उससे झगड़ा कैसे खड़ा होता है। युवक अपनी बहन को लेकर आया और बोला- महाराज! आप इसको समझाइए। इनकी शादी हुई, हमारे दामाद इंजीनियर है, एक अच्छे अधिकारी है, इंदौर ससुराल है और महाराज जी इन दोनों में बहुत अनबन है, स्थिति यह है कि मेरी बहन 6 महीने से घर में है और हमारे जीजाजी इसे ले जाना नहीं चाहते, ऐसा लगता है कि जैसे divorce ना हो जाए। आजकल divorce तो बहुत सामान्य चीजें हो गई। लोगों ने कपड़े बदलने की तरह पति-पत्नी को बदलना शुरू कर दिया है। बड़ी विचित्रता है, बड़ा ईज़ी हो गया। महाराज! लगता है कि कंही divorce ना हो जाए, आप कुछ समझाइए। मैंने उसकी बहन से पूछा-क्या बात है? तो उसका पहला स्टेटमेंट था, महाराज! क्या बताऊं, मैं तो एकदम नरक में चली गई। मेरा पति घोर अधर्मी है, पापी है। कुछ भी धर्म नहीं होता है महाराज! वहाँ पर। हमारे घर में इतना धर्म कि मेरी मां 7 प्रतिमाधारी, मेरे पिताजी प्रतिमाधारी और उसके बाद हम एसे घर में चले गए कि सामने वाला कभी मंदिर भी नहीं जाता, रात में खाता है। मुझे पता नहीं लगता मैं कहाँ चली गई, मुझे तो लगता है मैं नरक में चली गई। मैंने पहले ही वाक्य में मामले की गंभीरता को समझ लिया। उससे कहा-कि तुम अपने घर को नरक से स्वर्ग में बदलना चाहती हो? वो बोली, हाँ चाहती हूँ। मैंने कहा- घर को नरक से स्वर्ग में बदलना चाहती हो, तो आज से तुम अपने पति को धर्म के बारे में कुछ भी कहना बिल्कुल बंद कर दो। वो बोली- महाराज! धर्म के लिए बोलना बंद कर देंगे तो उनकी दुर्गति नहीं हो जाएगी, बताइए वह तो पापी जीव है, पापी जीव को सुधारना तो हमारा धर्म है। हम बोले- पापी को सुधारने की प्रेरणा देना धर्म है और पापी को सुधारने का ठेका लेना बड़ा पाप है। तुम पाप कर रही हो और सुधारने के नाम पर उसके पीछे पड़ी हो, यह कतई अच्छी बात नहीं। मैं तुमसे कहता हूँ- तुम्हारे पति को सुधारने की जगह तुम्हें सुधरने की ज्यादा जरूरत है। यह बताओ- तुम अपने पति को पापी कहती हो, कोई व्यसन है? वो बोली- नहीं, महाराज! शराब पीता है? बोली- नहीं। नशा करता है? बोली- नहीं। तुम्हारे साथ मारपीट करता है? वो बोली- नहीं, महाराज! तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, सब करता है फिर इतनी शिकायत क्यों? दुनिया में तो ऐसे बहुत सारे पति है जो रोज़ शराब पीते है, बहुत सारे पति है जो विवाहेतर संबंधों में फंसे होते है, बहुत सारे ऐसे पति है जो एकदम निकम्मे और निकक्ठु होते है, कुछ कमाते-धमाते नहीं है और बहुत सारे ऐसे भी पति होते है जो रोज़ अपनी पत्नी पर वार करते रहते है। तुम्हारा पति उनसे कितना अच्छा है। जो तुम मुझसे बात कह रही हो, उसे पापी कह रही हो, उसकी जगह यह सोचो कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ, कि मेरा पति कम से कम व्यसन और बुराइयों में तो लिप्त नहीं। महाराज! वह तो है लेकिन थोड़ा तो धर्म करना चाहिए। अब मैं उनकी धर्मपत्नी हूँ, हमारे यहाँ कोई धर्म का काम नहीं होता। मैंने आज तक कभी रात्रि भोजन किया नहीं, देखा नहीं तो मुझे यह पसंद नहीं है। हमने कहा- ठीक, तुम्हें जो पसंद नहीं है, इसके पीछे तुम लड़ती हो और उसे जो पसंद नहीं है उसके पीछे वह लड़े। एक सवाल- क्या उसने तुम्हारी धार्मिक क्रियाओं के पीछे तुम्हें कभी रोका-टोका? वो बोली- नहीं, महाराज! उन्होंने कभी नहीं रोका, उन्होंने कभी नहीं टोका। हमने पुछा – तुम कभी रात्रि भोजन नहीं करती हो तो कभी उसने जबरदस्ती तुम्हें रात में खाना खिलाने की बात की? वो बोली- नहीं, महाराज! उन्होंने कभी नहीं की। मगर महाराज मैं चाहती हूँ कि वो भी रात में ना खाए, मेरे घर में मुझे रात में खाना बनाना ही ना पड़े। मैं रात में जब भोजन परोसती हूँ तो मुझे बहुत तकलीफ होती है। महाराज! मैं तो आजकल करती ही नहीं हूँ कह देती हूँ कि तुम्हें खाना है तो अपने हाथ से खा लो। मैंने पूछा- क्या होता है? बोली- चुपचाप खा लेता है। मैंने कहा- इतना सीधा पति मिल गया तुम्हें और उसके बाद भी तुम यह कह रही हो। आखिर यह सब बातें कोई कैसे झेलेगा? मैंने कहा- ध्यान रखो, तुम्हें एक बात सीख करके रखनी चाहिए और अपनी गांठ में बाँध कर रखनी चाहिए कि तुम उसकी पत्नी हो और वह तुम्हारा पति है। तुम उसकी गुरु नहीं हो जो उसको सुधारो। तुम्हें पत्नी बन कर रहना होगा पति में जब बदलाव आना होगा तो होगा क्योंकि पति सबकी सुनता है अपनी घरवाली की नहीं सुनता है। खासकर धर्म के मामले में, पति सबकी सुनेगा लेकिन अपनी घरवाली की नहीं सुनेगा क्योंकि पत्नी उसकी गुरु नहीं है। मैंने उसको संकल्पित किया कि आज से तुम संकल्प लो कि धर्म के कार्य में मैं उसे कुछ भी नहीं बोलूंगी, एक लब्ज नहीं बोलूंगी। यह प्रतिज्ञा मैंने उसे दिलवाई। तुम अपना काम करो, वह तुम्हें रोकता नहीं है, टोकता नहीं है, यही तुम्हारे परम पुण्य का उदय है। बिना रोक-टोक के तुम अपना काम कर रही हो, अपनी रुचि उस पर थोपना बंद करो।

उन दिनों मेरे प्रवचनों की एक श्रृंखला चली थी। ललितपुर में, जो ‘दिव्य जीवन का द्वार’ श्रृंखला थी। कैसेट आती थी उस समय तो, सीडी और पेन ड्राइव की व्यवस्था नहीं थी। 1998 की बात है। मैंने कहा- ये पूरे प्रवचन तुम ले जाओ, इन्हे तुम सुनो और पति जब ऑफिस से आए, उसके 5-10 मिनट पहले चालू करना और जैसे वो आए इसको बंद करना, कभी उसे सुनाने की कोशिश मत करना। तुम इसे ले जाओ, पति का घर आने का टाइम हो और इसको चालू करना, वो घर आ जाए वैसे ही इसे ऑफ कर देना। कभी कहना मत कि आप इसे सुनो और ऐसा प्रयास भी मत करना कि उसे लगे कि तुम उसे सुनाने प्रयास कर रही हो। उसे बात अच्छी लगी, अबकी बार वह घर गई तो थोड़ा बदला-बदला वातावरण दिखा तो पति को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे लगा कि महाराज के पास गई है। पता तो लग ही गया था महाराज ने इसे कुछ समझाया है तो एक कुछ चमत्कार हुआ। खैर जो भी हो वह रोज पति के आने के थोड़ी देर पहले कैसेट चलाती और पति आता तो उसको बंद कर देती। एक दिन हो गया, दो दिन हो गया, तीन दिन हो गया और निषेध में जिज्ञासा होती है। तीसरे दिन उसने पूछा- क्या बात है? क्या सुनती हो तुम? वो बोली- कुछ नहीं, प्रवचन सुनती हूँ। मेरा नाम लिया, बोली महाराज के प्रवचन है। पति बोला- महाराज के प्रवचन है तो तुम बंद क्यों कर देती हो। वो बोली- आप बोलो तो मैं चालू कर देती हूँ। पति बोला- अच्छा चलने दो। संयोगत: उस दिन मेरा प्रवचन का विषय था ‘युक्ताहार-विहार’। उस प्रवचन में मैंने रात्रि भोजन और जैन जीवन शैली की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डाला था। वो पुरा प्रवचन उसने सुना। प्रवचन सुनने के बाद उसने पूछा महाराज! कहाँ है? देखिए आप परिवर्तन कैसा होता है। शुक्रवार का दिन था। उसने पूछा ये प्रवचन महाराज ने दिया है, अभी महाराज कहाँ है? उसने कहा- महाराज अभी ललितपुर में है। पति बोला- कल सुबह की टिकट बनाते है। कल सेटरडे फिर संडे है, दो दिन की छुट्टी है। हमें महाराज के पास चलना है, महाराज के दर्शन करना है। पत्नी को तो लगा कि चमत्कार हो गया। एक प्रवचन में व्यक्ति बदल गया। उसने हामी भरी, वो रात में ट्रेन से बैठे सुबह मेरे पास आए और आने के बाद उन्होने पूरा वाक्या सुनाया। उस व्यक्ति ने आकर कहा-महाराज! आप ने मुझे झकझोर दिया। आज मैं आपके चरणों में रात्रि भोजन का त्याग करने के लिए आया हूँ। महाराज! पिछले तीन-चार वर्षों से ये प्रयास कर रही थी मुझे तो ऐसा लग रहा था कि इसके प्रयास से हो सकता है कि मैं रात्रि भोजन का त्याग तो नहीं लेता इससे तलाक भले ही ले लेता लेकिन आप की प्रेरणा ने मेरा हृदय बदल दिया, मेरी रुचि बदल गई। अभी तक तो ये अपनी रुचि मुझे पर थोपती थी लेकिन आपने मेरी रुचि को परिवर्तित कर दिया, मेरा जीवन बदल गया। उनका झगड़ा खत्म हो गया।

मैं आपसे पूछता हूँ- आप अपनी रुचि को देखिए, अपनी रुचि से जिएं, कोई दिक्कत नहीं है लेकिन सबको अपनी रुचि से चलाने का प्रयास मत कीजिए। यह अच्छी बात नहीं है, अगर आप अपनी रुचि थोपोगे तो रोज रार होगी, झगड़ा होगा। चाहे घर-परिवार की बात हो, चाहे व्यापार-व्यवसाय की बात हो। आज देखिये आज की दो जनरेशन में झगडे क्यों होते है? पिताजी अपने तरीके से व्यापार करना चाहते है और बेटा अपने तरीके से व्यापार करना चाहता है। पुराने समय का सिस्टम अलग था, आज की टेक्नोलॉजी बिल्कुल एडवांस हो गई। अब लड़का पढ़-लिख कर आया है। वह अपने तरीके से करना चाहता है, पिताजी अपने तरीके से करना चाहते है और दोनों में तनातनी हो जाती है क्योंकि दोनों की रुचियाँ आपस में टकराती है, होता है? अगर दोनों के अंदर उदारता हो, पिता सोचे- ठीक, मेरा बेटा पढ़-लिख कर आया वह अपने तरीके से कुछ करता है तो करने दो, एक-दो बार करेगा, ज्यादा से ज्यादा होगा तो नुकसान ही होगा लेकिन नुकसान भी उसके लिए नसीहत का कारण बनेगी, करने दो, उसे करने दो, करने दो। उस पिता-पुत्र का संबंध बड़े मधुर होता है। लेकिन पिता ने लकीर खींच दी कि जो मैं कहूँगा वह तुझे करना ही होगा तो बेटा मुंह फुला करके बैठा रहेगा या रोज के रोज तनातनी होगी। इधर अगर बेटा सोच ले कि मैं पढ़-लिख करके आया हूँ, लेकिन मेरे पिता का अनुभव जो मैंने यूनिवर्सिटीज में पढा है उससे भी अच्छा है। मैं अब तक जो कॉलेज में पढ़ करके आया हूँ, इंस्टिट्यूट्स में पढ़ करके आया हूँ, अब मैं अपने पिता के पास पढ़ूँ और उनसे कुछ उनका तजुर्बा सीखूँ, जो मेरे जीवन भर के लिए काम में आएगा। दोनों में कभी झगड़ा नहीं होगा। लेकिन ये सोच ही नहीं है। इस सोच को विकसित कीजिए। रूचि के अनुरूप जिएं और किसी की रुचि को जबरदस्ती बदलने का प्रयास मत कीजिए। रूचि बदलिए- प्रेरणा देकर, आदेश देकर नहीं, बार-बार की टोका-टाकी करके नहीं। आप थोड़ी कल्पना करें जो अपने पति को यदि थोड़े धर्म के कार्य से विमुख हो और उसे वो अपने पति से अधर्मी कहे, पापी कहे, तुम्हें नरक में जाना पड़ेगा, इस तरह की बद्दुआएं दे तो वहाँ प्रेम रहेगा क्या? झगड़ा ही तो होगा। तो आप क्या करते हैं?

पहली बात- रूचि-भेद। समझ में आ रही है ना बात आपको। अलग-अलग रूचि होगी-

सबकी अपनी-अपनी रुचि और लोग अपने-अपने तरीके से जीते है। जहाँ रुचियों का टकराव होता है वहाँ रोज जो बखेड़ा होता है आप लोग देखते है।

दूसरी बात- चिंतन-भेद। दो व्यक्ति के अलग-अलग चिंतन हो, सोच अलग हो।

रूचि मनुष्य की प्रवृत्ति को दर्शाती है, उसके शौक से जुडी होती है और चिंतन से उसका संपूर्ण व्यवहार बनता है। किसकी क्या सोच है उसको देखिए। हमारी सोच और आपकी सोच एक हो यह कोई जरूरी नहीं है। मैं अपने तरीके से सोचता हूँ, आप अपने तरीके से सोचते है। सोच अलग-अलग होने में व्यवधान नहीं है, कोई झगड़ा नहीं है, झगड़ा सोच के टकराव में है, चिंतन के टकराव में है। मैं अपने चिंतन में अड़ जाऊं और आप अपने चिंतन में अड़ जाओ तो झगड़ा हुए बिना नहीं रहेगा। चिंतन का टकराव नहीं होना चाहिए। मैं अपने चिंतन में दृढ रहूँ इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन मैं अपने चिंतन पर अड़ जाऊं इससे बुरा और कुछ नहीं।

चिंतन का टकराव- तालमेल होना चाहिए। वस्तुत: सुचिंतन वही है जो अपने साथ औरों में सामंजस्य बैठाए। एक चिंतन है जो कहता है कि जो मेरा सो खरा और एक चिंतन है जो कहता है कि जो खरा सो मेरा। किसे अच्छा मानते हो आप? अगर जो खरा सो मेरा इस चिंतन को अच्छा मानते हो तो थोड़ा भीतर झाँक करके तो देखो! क्या इस कसौटी पर तुम खरे उतरते हो? तुम्हारी स्थिति क्या है? मेरा सो खरा या खरा सो मेरा? मेरा सो खरा जब तक रहेगा तब तक झगड़ा है और खरा सो मेरा जहाँ आ गया वहाँ प्रेम है। तय करो आपको क्या करना है। मेरा सो खरा यह खोटा चिंतन और खरा सो मेरा यह सम्यक चिंतन। जो सबका समादर करने में समर्थ हो। हमारा चिंतन व्यापक होना चाहिए। वैचारिक सहिष्णुता अपने हृदय में विकसित होनी चाहिए जिसका आज घोर अभाव दिखता है।

हम बात अनेकांत की करते है, अनेकांतवाद की दुहाइयाँ देते है लेकिन अपना जीवन जीवन स्तर बहुत हल्का बनाए रखें है। छोटी-छोटी बातों में उलझ जाते है। अनेकांतवाद के व्यावहारिक अर्थ को समझने की जरूरत है। अनेकांत का मतलब क्या है? अनेकांत का मतलब है- ‘वैचारिक सहिष्णुता को विकसित करना’।

एक-दूसरे के विचारों को समझना, उसका भूमिका अनुरूप सत्कार करना। केवल अपनी बात का आग्रह थोपने वाले मनुष्य जीवन में कभी सफल नहीं होते। सामने वाले की बात का समादर करने वाला ही सफल हो पाता है। हमें तालमेल बना करके चलना चाहिए। वैचारिक सामंजस्य होगा तो विचारों में टकराव कभी नहीं होगा। जीवन में केवल आनंद ही आनंद आएगा। वैचारिक सामंजस्य और वैचारिक टकराव का दुष्परिणाम क्या होता है? वैचारिक सामंजस्य में सुलह होती है।

पिता-पुत्र दोनों एक थाली में खाना खाते थे। एक दिन किसी बात को लेकर बाप-बेटे में अनबन हो गई और बेटा रूठ गया। उसने कहा-पापा कल से मैं आपके साथ नहीं खाऊंगा। पिता ने बात संभाला और कहा- ठीक है, बेटा! मैं तेरे साथ खा लूंगा। बात समझ में आ रही है। बेटा बोले- पापा मैं आपके साथ नहीं खाऊंगा तो पिता बोले कि कोई बात नहीं, मैं तेरे साथ खाना खा लूंगा। ऐसा व्यक्ति कभी झगड़ेगा, कभी कोई झगड़ा होगा? हो ही नहीं सकता है, एक्सेप्टेन्स, ठीक है।

एक घटना है, दो भाई थे। दोनों में परस्पर बड़ा प्रगाढ़ प्रेम था। दोनों एक दूसरे के लिए जान न्यौछावर करते थे लेकिन संयोग ऐसा बना कि दोनों में किसी बात को लेकर खटपट हो गई तो बड़े भाई ने कहा- अब हम साथ नहीं रहेंगे। छोटे भाई ने मामले को देखा और समझ लिया कि बड़ा भाई अपनी बात पर आमादा है। उसने कहा- ठीक है, जैसा आप ठीक समझो, हम अलग-अलग रहेंगे। हम अलग-अलग रह लेंगे। दोनों के पास एक सोने का कटोरा था, सम्पति के नाम पर वो ही था। बड़े ने कहा- उस कटोरे को मैं रख लूं? छोटे ने कहा- जैसा आप ठीक समझो। बड़ा बोला- देखो! पहले मैं रख लूँ और फिर बाद में तुम कहोगे कि बड़े ने सब हड़प लिया तो ये कटोरा मैं तुम्हें दे देता हूँ, छोटा बोला- जैसा आप ठीक समझे। ऐसा करते है उसको आधा-आधा बांट लेते है। मैं तुम्हें वो कटोरा दे दूं, तुम रख लोगे, बहुत जल्दी कह दिया, ठीक है। छोटे भाई ने कहा- जैसा आप ठीक समझे, आधा-आधा बांट लेते है। जैसा भी आप ठीक समझे। बड़े भाई ने कहा- यह कोई बात हुई। आधा-आधा करने पर यह ना मेरे काम का रहेगा ना तेरे काम रहेगा, तो उसे क्या फायदा। छोटे भाई ने फिर से वही कहा- जैसा आप ठीक समझे। इस पर बड़े भाई ने कहा- क्या तुम झगड़ा करना नहीं चाहते? छोटा बोला- नहीं, मैं प्रेम से रहना चाहता हूँ। बड़े ने कटोरे को एक तरफ फेंका, कहा- झगड़ा खत्म। आओ हम दोनों साथ रहेंगे, झगड़ा ख़तम हो गया।

बंधुओं! अपने अंदर झांकिए। चिंतन का टकराव कभी उत्पन्न मत होने दीजिए। आजकल लोग छोटी-छोटी बातों में एकदम टकरा जाते है। टकराव टालिए, समझौते का रास्ता अपनाइए, जीवन में बदलाव आएगा। मनुष्य के अंदर रूचि भेद होती है तो उससे वो ईगोइस्ट होता है, अपनी बात को सब पर थोपना शुरू कर देता है और फिर वह उसका आग्रही बन जाता है। आग्रह यानि अड़ जाना, Adamant। आप देखिए जितनी भी लड़ाईयां है, आप गहराई में जाएंगे तो आप देखेंगे कि सब आग्रह की भूमि में ही होती है। महाभारत तो कुरुक्षेत्र में हुआ लेकिन हर व्यक्ति ने आग्रह का एक कुरुक्षेत्र अपने हृदय में स्थापित कर रखा है। जहाँ व्यक्ति अपनी बात पे अड़ता है वहीं लड़ना शुरू हो जाता है। होता है कि नहीं? किसी बात का आग्रह आपने किया, अपनी बात थोपना, मामला गड़बड़। आजकल तो छोटी-छोटी बातों का ऐसा आग्रह होता है कि मत पूछो।

मेरे संपर्क के एक व्यक्ति के बेटे की सगाई टूट गई, आप सब सुनोगे तो हंसोगे और देखें चिंतन कीजीए कि समाज किस दिशा में जा रही है। बड़ा ही धार्मिक और एक समृद्ध परिवार था। लड़के की सगाई हुई वह भी एक समृद्ध परिवार में हुई। सगाई के बाद करीब दस महीने का गैप था विवाह में। लड़की वाले कुछ ज्यादा आधुनिक विचारधारा से जुड़े हुए थे। लड़की वालो की तरफ से ऑफर किया कि लड़की और लड़का दोनों बाहर घूम कर आएं, विदेश घूम कर आएं। लड़के के परिवार वाले लोग धार्मिक और मर्यादाओं को मानने वाले लोग थे, संस्कारित परिवार था। उन्होंने कह दिया कि जब तक विवाह नहीं होगा हम बेटे को अपने होने वाली बहू के साथ अकेले नहीं भेजेंगे। लड़के वाले की तरफ से बात लड़की वाले को पहुंचा दिया गया। लड़की वालों ने कहा कि नहीं, चलना पड़ेगा। उन्होंने कहा- नहीं, हम नहीं जा सकते, हम अपनी मर्यादाओं का हनन नहीं कर सकते, हम गुरुओं से जुड़े हुए लोग है। विवाह होगा, उसके बाद आपकी बेटी नहीं फिर हमारी बेटी होगी। उसकी मर्यादा की सुरक्षा करना हमारा दायित्व है। इसलिए हम ऐसा नहीं कर सकते। जब यह उनकी बात नहीं मानी, सामने वाले भी अड़ गए तो उन्होंने कहा- ठीक है, ऐसे दकियानूसी परिवार में हम अपनी बेटी नहीं देंगे। उन्होंने सगाई तोड़ दी। वह व्यक्ति ने आकर के मुझसे कहा- महाराज! ऐसा हो गया। हमने कहा- जा, भगवान को एक श्री फल चढाओ, अच्छा हुआ पहले ही मामला ठीक हो गया। जो लड़की शादी के पहले इस तरह का अड़ियल रुख रखेगी, शादी के बाद पता नहीं, क्या रास रचाएगी।

कैसी टेंडेंसी है? कंही कोई कोम्प्रोमाइज करने को तैयार नहीं होता। व्यापक बदलाव घटित होना चाहिए। मैं आप सबसे कहता हूँ अपने नेचर में परिवर्तन लाइए। मैं कभी अड़ामेंट नहीं होऊंगा, एडजस्टमेंट करके चलूंगा। एक है – अडामेंट होंना एक है- एडजस्टमेंट होना। आप अपनी बात पर अड़ते हैं या समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाते हैं? क्या करते है? छोटी-छोटी बातों पर अड़ जाते है। बहस क्यों होती है? जब दो व्यक्ति अड़ जाते हैं अगर एक शांत हो जाए तो बहस खत्म। हो सकता है उसने कह भी दिया, अनुचित भी कहे तो हो सकता है, बहुत सारी बातें अनुचित हो जाती है, अगर वह अनुचित भी कहे तो ठीक है उस समय उसका मूड भाँपते हुए उस समय चुप हो जाओ, शांत हो जाओ, झगड़ा खत्म। फिर कोई किसी प्रकार की उलझन हो ही नहीं सकती। जीवन में किसी किसी प्रकार की दुविधा आ ही नहीं सकती। अपने अंदर की दुविधा को मिटाने के लिए यह रास्ता क्यों नहीं अपनाते हो? एक आदमी समझदारी रख लें तो झगड़े खत्म। हो सकता है कि नहीं, बोलो! होता है कि नहीं। आज से यह संकल्प लो कि मैं अपनी रुचि किसी के ऊपर नहीं थोपूंगा और चिंतन में टकराव उत्पन्न नहीं करने दूंगा और किसी बात को ले करके अङुगा नहीं, सामने वाले के मूड को भांपते हुए देखो और अड़ना बंद कर दो, देखो बहुत आनंद आएगा।

मैं एक ऐसे दंपति को जानता हूँ, जिसका पति बड़ा क्रोधी और पत्नी उतनी ही शांत। पति क्रोधी, बात-बात पर झगड़ पड़ने वाला और पत्नी एकदम शांत। किसी ने पूछा कि ऐसे पति को तुमने कैसे निभा लिया? उसने कहा- मैंने तो एक ही बात समझा है, सामने वाला चाहे कितना ही आग हो मुझे पानी बनना है। वह जितना गुस्सा करते है मैं उतना शांत रहती हूँ, मामला ठीक हो जाता है। अब जो हो, मेरे पति है, झगड़ा करके भी क्या होगा? मैं अगर उनकी बात का प्रतिवाद करूंगी तो मामला और बढ़ेगा। हमें मामले को बढ़ाने की जगह शांत करना सीखना चाहिए। मैं आप सबसे कहता हूँ- छोटी-छोटी बातों को अपने ईगो का विषय मत बनाइए, प्रेस्टीज का इश्यू मत बनाइए, उन पर अड़ामेन्ट होने की आदत बंद कीजिए, एडजस्टमेंट की कला डवलप कीजिए। हमें एडजेस्टमेन्ट करके चलना है। और एक बात बता देता हूँ जीवन एक समझौते का नाम है, जिंदगी से जीवन में हमें अनेक प्रकार के समझौते करने पड़ते है, कदम पर समझौते करने पड़ते है। आप इग्नोर नहीं करोगे तो जीवन में कभी सफल नहीं होओगे और अड़ोगे तो सड़ोगे, लड़ोगे, मडोगे, पता नहीं क्या होगा, ये अड़ियल रवैया अच्छी बात नहीं। जिनकी सड़ियल सोच होती है वह अड़ियल रवैया रखते है। एडजेस्टमेंट की पावर होनी चाहिए। अगर यह चीज हो जाए कभी झगड़ा नहीं हो।

झगड़ा करना, झगड़ना और दूसरा है- झगड़ा खड़ा करना। झगड़ा खड़ा करने का मतलब- झगड़ा मचा देना। छोटी सी बात को ऐसा पलीता लगाना कि विस्फोट बन जाए। कई होते हैं जो बिना मतलब की बातों को तूल देते है और लोगों को आपस में लड़वा देते है। माचिस लगाने का काम करते है, यह बहुत गंदा काम है। लड़ाई करना और लड़ाई करवाना यह बहुत खतरनाक है। लड़ाई करने से भी बुरा है लड़ाई करवाना, झगड़ा करवाना। यह बहुत निम्न स्तर के व्यक्ति कहलाते है। हमारे शास्त्रों के विधान के अनुसार ऐसे लोग कापोत लेश्या के धनी होते है यानी वह बहुत निम्नतम विचारधारा के व्यक्ति होते है। छोटी-छोटी बातों में झगड़ा मचा देते है, बवाल पैदा कर देते है। आजकल ऐसा बहुत हो रहा है। आप सोशल मीडिया में क्या कर रहे है- आग लगा रहे है या आग बुझा रहे है, क्या कर रहे है? आग लगा रहे है, कितने गर्व से कह रहे है। लगाने वाला कौन है, क्यों शामिल हो तुम? आग बुझाने का काम करो, सुलगाने की आदत बंद करो, सुलझाने की प्रवृत्ति अपनाओ। आजकल सुलगाने वाले लोग अधिक सुलझाने वाले लोग कम, झगड़ा मचाना बंद करो। लोग तो ऐसा बवाल खड़ा कर देते है कि पूरा मोहल्ला तमाशा देखना शुरु कर देता है। दो के बीच की बात को वो ऐसा बतंगड़ बना दे कि आगे चलकर वो कम्युनल राइट्स का रूप ले ले। ये सब क्या है? ये घोर अमानवीय कृत्य है। अनैतिक कृत्य है इससे अपने आपको बचना और बचाना चाहिए।

जीवन में संकल्प लो कि मैं किसी से झगड़ा नहीं करूंगा और झगड़ा हो तो सुलह करूंगा लेकिन झगड़ा मचाने का काम तो जीवन में कभी नहीं करूंगा। कुछ लोग है जो एक दूसरे के विरुद्ध, एक दूसरे के विरुद्ध उकसा-उकसा करके लड़वा देते हैं। अभी लडवाओगे फिर नरक में जाकर के तुमको असुर लड़वाएंगे। नरक में जाने के बाद जो होगा वह तो भगवान जानें पर जीते जी तुम्हारा जीवन नरक बन जाएगा, यह तय है। इसमें कोई संशय नहीं। वहाँ से अपने आपको बचाने की कोशिश कीजिए। हमें कभी किसी के बीच झगड़ा खड़ा नहीं करना। आप लोग क्या करते है? कम्युनिकेशन गैप करते है, मिसअंडरस्टेंडिंग क्रिएट करते है, झगड़ा फैला देते है। थोड़ी सी अफवाह फैला दिए तो झगड़ा खड़ा हो गया। बात का बतंगड़ बनाने की आदत कुछ लोगों की होती है। आज यही हो रहा है। हर व्यक्ति इस तरह की प्रवृत्ति का आदी बनता जा रहा है। सकारात्मक बातें तो आजकल कम दिखती है। नकारात्मक बातें बहुत तेजी से फैलाई जा रही है और उसका दुष्प्रभाव पूरे समाज पर पड़ रहा है। पूरा समाज अंदर से घुट रहा है। इस घुटन को मिटाएगा कौन? आपको आगे आना पड़ेगा। जीवन बहुत दूषित हो रहा है, अंदर से बर्बाद हो रहा है, इसे शांत स्वच्छ बनाओ, निर्मल बनाओ, तब जीवन में आगे कुछ कर पाएंगे।

झगड़ा करना और झगड़ा खड़ा करना या झगड़ा मचाना यह दोनों चीजें ठीक नहीं है। अपने आपको इससे रोंके। झगड़ा तो दो व्यक्तियों के मध्य होता है, सुलह भी हो जाती है। अपनों के मध्य जब झगड़ा होता है तो उसे सँभालने में भी देर नहीं लगती। कई ऐसे झगड़े होते हैं। आप लोग तो रोज झगड़ते है और रोज एक हो जाते है। मुझसे एक बार किसी ने कहा- महाराज! पति-पत्नी का संबंध प्रेम करने के लिए नहीं होता, पति-पत्नी का संबंध झगड़ा करने के लिए होता है। महाराज! जो पूर्व जन्म का बैर होता है उसको भुनाने के लिए लोग पति-पत्नी बनते है। पता नहीं उसकी बात में कितना दम है क्योंकि अनुभव मुझे नहीं है। यह एक्सपीरियंस आप लोगों को है। भैया! ये सब किसके लिए? जिंदगी मिली है प्रेम से जीने के लिए कि लड़ने के लिए या तकरार करने के लिए। विचार कीजिए कि आप आखिर कर क्या रहे है? छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करने की कला अगर अपना लोगे तो जीवन में कभी झगड़ा खड़ा नहीं होगा। एक अलग प्रकार की दशानुभूति होगी, आनंद आएगा। अपने भीतर ये घटित करना चाहिए। लेकिन गड़बड़ होता है।

पति-पत्नी दोनों का बेटा सामने था और दोनों पति-पत्नी तय करना चाह रहे थे कि बेटे को क्या बनाना है, बेटे को क्या बनाना है। पति कह रहा था कि बेटे को डॉक्टर बनाना है, इंजीनियर बनाना है, वैज्ञानिक बनाना है। पत्नी कह रही थी डॉक्टर बनाना है। दोनों में बातचीत आपस में बढ़ने लगी। दोनों ने बोला चलो बेटे से पूछते है कि तुम क्या बनोगे? बेटे ने कहा- मैं वकील बनूंगा, मैं वकील बनना पसंद करूंगा। पति-पत्नि बोले क्यों? मैंने देख लिया जब आप लोग लड़ोगे तो डाइवोर्स का पेपर तो मुझे ही बनाना होगा।

झगड़ा करना, झगड़ा मचाना, झगड़े में फंसना। कई बार लोगों के साथ ऐसा दुर्भाग्यवश हो जाता है। बिना वजह लोग झगड़े में फंस जाते है। झगड़ा, झंझट, झमेला, मुसीबत, मुश्किल यह सब चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई है। आपका कोई रोल नहीं है, आपकी कोई भूमिका नहीं है। फिर भी लोग आपको ऐसे झमेले में, झगड़े में फंसा देते है। द्वेष वश, दुर्भावना वश ऐसा अगर कभी तुम्हारे साथ हो जाए तो घबराओ मत, उसे अपने कर्मों का उदय मानो, बर्दाश्त करो। अपनी सहन शक्ति को विकसित करो। समय सबको ठीक करेगा। कई बार लोगों के साथ ऐसा होता है। बेगुनाह होने के बाद भी लोग उन्हें बड़े झगड़े में फंसा देते है जहाँ उनका रोल नहीं वहाँ भी। मैं आप सबसे कहता हूँ- जीवन में कभी किसी को झगड़े में मत फंसाना यह बड़ा अनैतिकता पूर्ण कृत्य है। यदि किसी झगड़े में तुम फंस गए तो तुम उसमें घबराना मत, कर्म का उदय मान करके उसका सामना करना। कहते हैं ‘भगवान के घर देर है अंधेर नहीं’ आज नहीं तो कल सफल होगा।

तीसरी बात जो इसके साथ कह रहा हूँ- किसी के झगड़े में तुम इन्वॉल्व मत होओ। किसी के झगड़े में फंसने का मतलब है अपने लिए भारी मुसीबतों को आमंत्रित करना। दो झगड़ रहे है, झगड़ने दो। पहले तो ऐसा प्रयास होता था कि लोग सुलह करते थे, सुलह करवाते थे तो शांति रहती थी। लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि लोग किसी के झगड़े में बोलते है तो उल्टे उलझ जाते है। आप देखिए किसी का निजी मामला है तो निजी मामले में दखल देने की कोशिश आप तब तक मत कीजिए जब तक सामने वाले की मानसिकता ठीक नहीं है। ध्यान रखना मैं आप सबसे एक बात कहता हूँ- जब व्यक्ति आवेश में हो उस घड़ी उसे कोई भी सलाह मत दो। उसकी मानसिकता ठीक नहीं है। गलत मानसिकता में व्यक्ति को दी गई सही सलाह भी अच्छी नहीं होती। उस समय न्यूट्रल हो जाओ, तटस्थ हो जाओ। यदि आपने उस समय कुछ बोला तो अपने लिए मुसीबत को मोला।

एक पहलवान किसी से बहस कर रहा था, बातचीत हो गई। पहलवान ने कहा- ज्यादा बोलोगे तो एक घुसा दूंगा, बत्तीसी क्या 64 बाहर आ जाएंगे। ज्यादा बोला तो एक घुसा दूंगा 64 बाहर आ जाएंगे। एक व्यक्ति वहीं खड़ा था, युवक था। उसने कहा- भैया! दाँत तो 32 ही होते है 64 कैसे बोल दिए। मुझे मालूम था कि तू बीच में बोलेगा तो तेरे भी 32 गिन लिए। बीच में तू भी बोलेगा 32 तेरे भी गिन लिए। ऐसा बोल कर अपनी बत्तीसी बाहर मत करो। झगड़े में फंसाओ मत और झगड़े में फंस जाओ तो घबराओ मत। यह जीवन का सूत्र है।

आखिरी बात- झगड़ा मिटाना। झगड़ा करना जितना सरल है झगड़ा मिटाना उतना ही कठिन। झगड़ा करना कठिन नहीं है। झगड़ा करने में क्या है? थोड़ा सा ट्रैक से नीचे उतरा कि झगड़ा हो गया। ट्रैक से नीचे उतरी, नीचे आई हुई गाड़ी को ट्रैक पर लाना बहुत कठिन है तो झगड़ा मिटाओ। किससे झगड़ा मिटाओ? पहला अपने से अगर किसी के झगड़ा हुआ है तो झगड़े को मिटाने की प्रक्रिया शुरू करो और झगड़े को मिटाने के लिए क्या है- सॉरी कहने की कला सीखो। अपने ईगो को विदाई दो, अपने अहंकार को एक तरफ करते हुए अगर किसी के साथ कोई झगड़ा हो जाए, सुबह झगड़ा हो, घंटे भर बाद होश आ जाए। अगर तुम्हारा तुम्हारी पत्नी से झगड़ा हुआ या तुम्हारे पति से झगड़ा हुआ है तो तुरंत जाओ और कहो- सॉरी माफ करो, मैंने अपना आपा खो दिया। मैंने अपना विवेक नहीं रखा, मुंह से अंटशंट निकल गया, मुझे क्षमा करना, सॉरी। वो सॉरी करे और तुम सॉरी कर दो तो झगड़ा खत्म। पिता-पुत्र में हुआ है तो, भाई-भाई में हुआ है तो, पड़ोसी-पड़ोसी में हुआ है तो, मित्र-बंधुओं से हुआ है तो, जहाँ-जहाँ झगड़ा हो, झगड़ा मिटाना चाहते हो तो सॉरी कहना शुरू करो। महाराज! बड़ी कसमकश होती है- सॉरी कहने में। तो भैया! भोगो, अपने मन से पूछो- जीवन का रस झगड़ा मिटाने में होता है या झगड़ा करने में। झगड़ा मिटाने में है तो फिर उसको क्यों नहीं स्वीकारते। आप कहोगे महाराज! आप जब तक प्रवचन में कहते हो बहुत अच्छा लगता लेकिन बाद में लगता वह क्या सोचेगा, हम छोटे बन जाएंगे। धन्य है भाई! खोटे बनने को तैयार हो पर छोटे बनने को राजी नहीं। कहाँ है तुम्हारी मानसिकता? छोटे बनने की नौबत आए तो बन जाना पर खोटे बनने का काम जीवन में कभी मत करना। संकल्प लो। आज अगर झगड़े की बात आपको समझ में आई है, संकल्प लीजिएगा कि मैं झगड़ा करूंगा नहीं, झगड़ा मचाऊंगा नहीं और झगड़े में फसूंगा तो घबराऊँगा नहीं। यदि अब तक मेरा किसी से झगड़ा है तो आज जाते ही उससे झगड़ा मिटाने के लिए अपना हाथ बढ़ा लूंगा, हाथ मिला लूंगा, क्षमा मागूंगा, हृदय से क्षमा मागूंगा। कोई मेरे पास आएगा तो दिल से उसे क्षमा करके गले लगा लूंगा। देखिए जीवन का कितना बड़ा रस प्रकट होता है, कैसा आनंद आता है और यह चारों बातों को आपने आत्मसात कर लिया तो तय मानना तुम्हारे अंदर धर्म का झंडा गड़ जाएगा और जीवन आनंदमय हो जाएगा।

बंधुओ! समय आप सब का हो गया। आज सब संकल्प लो कि आज हम जिससे मेरा झगड़ा चलता है अगर प्रत्यक्ष हो तो हाथ जोड़ करके क्षमा मांग लूंगा और दूर हो तो फोन से उसे सॉरी कहूँगा। है आपके पास इतनी ताकत कम से कम एक व्यक्ति को, कम से कम एक व्यक्ति को सॉरी कहने की ताकत आप रखते हो? देखिए आनंद आता है। बंधुओं! जीवन का रस लीजिए, प्रवचन को केवल प्रवचन के रूप में मत लीजिए, इस एक मोटिवेशन मानिए। प्रवचन को आप एक मोटिवेशन की तरह देखेंगे तो आपके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव घटित हो सकता है। आप अपने जीवन में वैसा ही सब कुछ घटित करने की कोशिश कीजिए।

Share