ठोकर से ठाकुर बनने की कला

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   ठोकर से ठाकुर बनने की कला

हम जब कभी भी सड़क पर चलते हैं, देख कर चलते हैं, पर कभी-कभी थोड़ी सी चूक लगने पर ठोकर लग जाती हैं। और ठोकर लगने पर क्या करते हैं, हम? एक बार ठोकर लगने के बाद संभल-संभल कर चलना शुरू कर देते हैं। आज बात में आपके ठोकर की करूंगा, ‘ठ’ से ठोकर। सड़क पर चलते हो जब कभी भी ठोकर लगती है, संभल जाते हो, दोबारा वैसी गलती नहीं करते। जीवन व्यवहार में भी तुम देखो, तुम्हें कितनी बार ठोकर लगी और तुम संभले या नहीं। आज चार बातें आप से करूंगा:

 

  • ठोकर लगना
  • ठोकर खाना
  • ठोकर मारना
  • ठुकराया जाना

 

चारो चीजें हैं,  हम इसे लोक और लोकोत्तर दोनों क्षेत्र में विचार करेंगे।

सबसे पहली बात लोक की देखें जब कभी इंसान को ठोकर लगती है वह संभल जाता है, और कहते हैं ठोकर लगने से संभलने वाला मनुष्य ही अपने जीवन को आगे बढ़ता है। ऐसी भी कहावत है- ठोकर खाने वाला ही ठाकुर बनता है, ठोकर खाने से ठाकुर बनते है। हमे चोट नहीं लगेगी तब तक हम संभलेंगे नहीं, वस्तुतः ठोकर लगना हमारे लिए एक नसीहत है। यदि हम संभल जाए एक बार हमारे जीवन में कोई हताशा लगी, कोई आघात हुआ, कोई मुश्किल पड़ी, हम किसी परेशानी में फंसे और अपने आप को संभाल ले तो जीवन की बड़ी-बड़ी परेशानियों को पार करके उपलब्धियों के शिखर पर चढ़ सकते हैं और दुनिया में ऐसे बहुत लोग है जो ठोकर लगने के बाद संभले है और ठोकर खाकर ठाकुर बनने की कहावत को चरितार्थ किया है। तुम अपने जीवन में झांक कर देखो- तुमसे कभी कोई चूक हुई, तुम्हें कभी कोई ठोकर लगी, कभी तुम्हें किसी प्रकार का आघात पहुंचा और कभी तुमसे ऐसी कोई भयंकर गलती हुई जिससे तुम्हें भारी क्षति उठानी पड़ी हो, बड़ा नुकसान झेलना पड़ा हो। याद करो यदि ऐसा हुआ है तो तुमने क्या किया, तुमने क्या किया। जब कभी भी ठोकर लगी, दुनिया में ऐसे बहुत से महान लोग हुए हैं, जिन्हे ठोकर लगी तो अपने जीवन में कुछ अलग ठाना और ठानकर के आगे बढ़ाया।

हमने चाणक्य के बारे में सुना है कि चाणक्य को एक बार ठोकर लगी तो चाणक्य ने सबसे पहले उस शिलाखंड को उखाड़ फेंका, जिसके कारण ठोकर लगी और उसने कहा-जिसके कारण मैंने ठोकर खाया है, उसे उखाड़ कर के फेकूंगा। और चाणक्य ने ठान लिया, नंद वंश के साम्राज्य को उखाड़ फेंका और एक बहुत बड़ा करतब दिखा दिया। उसे समझ में आया, उनने ठान लिया और अपने जीवन-व्यवहार में बहुत बड़ा बदलाव कर लिया। मैं आप सब से कहता हूं- अनेक महापुरुष हुए है जिनने अपने जीवन को सफलता के शिखर तक पहुंचाया है। उन लोगों के जीवन को आप निकट से जाकर देखने की कोशिश कीजिए। उनने अपने जीवन को कितनी ऊंचाई दी है, किस तरीके से आगे बढ़े हैं? आपको जब कभी भी ठोकर लगती है, आप अपने आप को संभालने की कोशिश करते हैं, लौकिक क्षेत्र में तो आप ऐसा कर ही लेते हैं, हर क्षेत्र में आपको इस तरह की दृष्टि अपनानी चाहिए। कभी भी ठोकर लगे घबराओ नहीं, ठोकर लगने के बाद संभलो लेकिन ठोकर लगना कोई चित कदाचित होता है, ठोकर खाना उससे आगे की बात हो जाती है, एक-आद बार ठोकर लगे और मनुष्य संभल जाए तो बहुत आगे बढ़ सकता है लेकिन बार-बार ठोकर खाए, वह तो दर-दर का भिखारी बन जाता है। तुमने अपने जीवन के बारे में कभी सोचा है, तुम्हें ठोकर लगती है, कि तुम ठोकर खाते हो। कभी सोचा- तुम्हारा स्थान कहाँ है- ठोकर लगने वालों में या ठोकर खाने वालों में? रोज पूजन में बोलते

जग के विषयों को पाकर के, मैं निश दिन कैसा अलमस्त रहा

चारों गति की ठोकर को खाने में ही अभ्यस्त रहा।’**

क्या बोलते हो, ठोकर खाने वाले में हो कि ठोकर लगने वाले में? ठोकर खाते आए हो आज तक, इस भव में और अतीत के अनंत भवो में भी, थोड़ा सा व्यापकता से सोचिए। तुम्हारे अतीत का अनुभव तुम्हे क्या सिखाता है? कहाँ-कहाँ तुमने ठोकर नहीं खाया। लौकिक क्षेत्र में तो तुम बहुत समझदारी रखते हो और कहीं तुम्हे ठोकर लगती है, संभल जाते हो। दोबारा ऐसी नौबत कभी नहीं आने देते, और अपने आप अपने रास्ते पर बढ़ जाते हो लेकिन पारमार्थिक क्षेत्र में तुम कहाँ हो, कभी सोचा? तुमने अपने जीवन में कितने ठोकर खाए हैं, इसके पता है, कहाँ-कहाँ तुम ठोकर खाए हो, और क्यों खानी पड़ी है ठोकर? अपने वर्तमान जीवन को भी देखो, तुम ठोकर खाते भी हो ठुकराए जाते भी हो, फिर भी चिपके हो। दुर्दशा, इस जीवन की दुर्दशा और भव-भव की दुर्दशा कहाँ-कहाँ ठोकर खाए हो, पता है। पहले यहां से शुरू करूं कि पीछे की बात शुरू करो, यहीं से बात शुरू करता हूं।

देखो, आज के लोगों की दशा कैसी है, कैसी विडंबना है कि लोग आज अपने ही घर में अपनों से ही ठुकराए जाते हैं और लोग बड़े आराम से ठोकर खाते रहते हैं। कोई तुम्हें ठुकराये है और तुम उसे सहज रुप से स्वीकार लो, इसी का नाम तो ठोकर खाना है। आज क्या दुर्दशा हो गई, आज औरों की बात जाने दो, सगे माँ-बाप को भी अपने ही संतान से ठुकराने का पात्र बनना पड़ा है, अपने ही संतान अपने ही माँ-बाप को रोज ठुकरा रहे हैं। कैसी विडंबना है, घर में कुत्तों के लिए जगह है, माँ-बाप को वृद्धाश्रम में भेजा जा रहा है, यह ठुकराया जाना ही तो है, यह ठोकर खाना ही तो है। कदाचित ऐसा नहीं भी हो तो रात-दिन व्यक्ति को दुत्कारा जाता है, भोजन भी मिलता है तो सब्जियों के साथ नहीं तानों के साथ, फिर भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा कर आदमी उसी से चिपका रहता है, बेटा-बहू का दुर्व्यवहार तुम्हें सहना पड़ता है और अपनों का भी दुर्व्यवहार तुम्हें सहना पड़ता है और तुम रात दिन उसे स्वीकारते हो, यह तो यहां की कहानी, अब इसको मैं थोड़ी देर के लिए रोकता हूँ। थोड़ा, अपनी इस कहानी के पीछे ले चलता हूं, ठोकर तुमने कितने खाए हैं, पता है। अगर अपने जीवन के अतीत के अनुभवों को पलटकर के देखोगे, तो यहां तो किसी दूसरे ने तुम्हें ठुकराया है। अतीत का अनुभव बोलता है कि तुम खुद अपनी अज्ञानता के कारण भव-भव में ठोकर खाए हो, किसी दूसरे ने तुम्हें नहीं ठुकराया, तुम अपने ही अज्ञान से ठुकराये गए हो, और तुम्हे ठोकर खाना पड़ा है। थोड़ी अपने अतीत की झांकी देखो, अतीत की झांकी, तुम्हारे जीवन में अतीत में आज तक जो कुछ भी अनुभव है दुःख का है, कष्ट है , पीड़ा है , त्रास है, इसके अलावा और क्या है। हर प्राणी के जीवन की केवल एक ही कहानी है, वह है दुःख। आज हम मनुष्य हैं, अपने आप को एक उच्च श्रेणी के प्राणी के रूप में देखकर बड़ा गौरव अनुभव करते हैं, गौरवान्वित होते हैं। पर संत कहते हैं- ‘ थोड़ा विचार करो, आज तो मनुष्य हो पर अनादि से मनुष्य कभी नहीं रहे, इसे कभी भूलना मत। इस मनुष्य पर्याय तक तुम पहुंचे हो, इसके पीछे तुम्हें बहुत कुछ करना पड़ा है और एक प्रकार के दौर से गुजरे हो तब तुम यहाँ आये हो। चार गतियों में 84 लाख योनियों में ऐसी कौन सी अवस्था नहीं हुई, जिसे तुमने अनन्तो बार पाकर के नहीं छोड़ा। एक इन्द्रिय से हमारे जीवन की यात्रा की शुरुआत होती है। जिस अवस्था में लोग हमारे अस्तित्व को ही नकारते हैं, कभी मिट्टी, कभी पानी, कभी हवा, कभी अग्नि, और कभी वनस्पति के रूप में हमने कितनी बार जन्म और मरण किया है, इसका हमें कोई आभास नहीं और यदि कभी उससे आगे बढ़े तो कीड़े-मकोड़ों की तरह लोगों के पांव तले कितनी बार रोंदा गया, इसका भी पता नहीं है। आज जब कभी कीड़े-मकोड़ों का समूह दिखता है, उस पल काश यह विचार आये कि इन जैसा जीवन मैंने भी अनंतो बार जी करके बिताया है, तो जीवन की दिशा ही परिवर्तित हो जाए लेकिन ऐसा कहाँ लगता है तुम्हें, इन कीड़े-मकोड़ों की जिंदगी आखिर है क्या, कितनी दुरावस्था है उनकी, किस प्रकार का जीवन जीते हैं और प्राणियों के मन में उनके प्रति कोई संवेदना जैसी भी नहीं रहती। कभी लट, कभी गजाई, कभी चींटी, कभी मक्खी, कभी भौंरा, कभी तितली, कभी कीट, कभी पतंग कोई अता-पता है और थोड़ा आगे बढ़े तो कभी वन्य प्राणी के रुप में जन्म लिया। वन्य प्राणी के रुप में जन्म लेने के बाद अनेक बार ऐसा हुआ की अपने से सबल प्राणियों का शिकार बने। कभी शेर और बाघ का निवाला बने कभी चीतों ने हमें चीर खाया, कदाचित शेर और बाघ जैसी अवस्था को भी पाए, तो क्रूर मनुष्य का शिकार बनने से अपने आप को नहीं बचा पाए। कितनी बार प्राकृतिक प्रकोप की वेदना सहनी पड़ी, कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी दावानल या कभी भूकंप जैसे आघातों के कारण अकाल में काल-कवलित होना पड़ा। कभी इन बातों का आभास होता है, रंचमात्र भी स्मृति होती है।

नरकों की अकथ कहानी क्या कहूं, जिसका नाम सुनने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाए, उन नरकों में कितनी बार त्रास भोगनी पड़ी, तुम्हें कभी उसकी स्मृति है जहां की धरती के स्पर्श मात्र से ऐसी अपार वेदना मानो एक साथ हजारों बिच्छुओं ने काट खाया हो, उससे भी प्रगाढ़ वेदना। ऐसी तीक्ष्ण ऐसी तीव्र सर्दी कि मेरु पर्वत जैसा लोहे का घुला हुआ पिंड भी पल में जम जाए और ऐसी प्रचंड गर्मी कि सुमेरु पर्वत भी एक क्षण में पिघल जाए। नारकियों के परस्पर के आघातजन वेदना जिनको शब्दों में कहा नहीं जा सकता है। यह क्या है? तुम्हारे जीवन का अनुभव ही तो है। कदाचित देव भी बने तो अपने से अधिक सामर्थ्य वाले देवों के वैभव को देखकर ह्रदय ईर्ष्या से वेदित होता रहा और कई बार अपने से अधिक वैभव वाले देवो की आज्ञा पालने की व्यवस्था के कारण भी हमारे मन में घोर पीड़ा, अवसाद और तनाव बना रहा। आज देवताओं के साथ भी यह स्थिति बनती है। कभी पालतू पशु पक्षी बने तो भी मनुष्यों की यातना का शिकार बनना पड़ा, यातनापूर्ण त्रासदी झेलनी पड़ी, बंधन में बंधना पड़ा, कभी छेदा गया, कभी भेदा गया, कभी काटा गया,  कभी मुझ पर मेरी क्षमता से ज्यादा वजन डाला गया और कभी मुझे भूखा रखा गया, यह तो मेरे जीवन की कहानी है और कभी मनुष्य भी बने तो आज सड़क चलते बहुत सारे मनुष्य ऐसे दिखाई पड़ते हैं, जो मनुष्य होकर के भी पशुओं से बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर है। जो जन्म से अनाथ है, जिसके लिए माँ बाप का साया नहीं मिला, कोई विकलांग है, कोई मूर्ख है, कोई बधिर है, कोई विद्रुप है, कोई अस्वस्थ है और ये अवस्थाये भी तुमने, हमने, सबने अनन्तो बार धारण की और छोड़ी है। हर जगह हम गए, कही भी सुख नहीं मिला, तो हमे क्या मिला, हमने ठोकर ही तो खाई है, और क्या खाई है? है इसका आभास? कहाँ -कहाँ ठोकर नहीं खाई ये बताओ। जो अपने इस अतीत की स्मृतियों को याद करता है, और ठोकर खाने के बाद सीख लेता है, उसके जीवन का काया-पलट हो जाता है।

यह कहानी मैंने तुम्हें इसलिए नहीं सुनाई कि तुम घबरा करके भाग जाओ, यह कहानी मैंने तुम्हें केवल इसलिए सुनाई कि तुम जाग जाओ, सावधान हो जाओ, ठोकर खाकर संभल जाओ यह अतीत की बातें हैं। अगर नहीं सम्भलोगे तो भविष्य में भी ऐसा ही होता रहेगा। अपने जीवन को आगे बढ़ाओ,

चरेवेति-चरेवेति की उक्ति को चरितार्थ करो।

जीवन की दिशा बदलिए खूब दुःख होता है, खूब त्रास जेली है, खूब पीड़ा का अनुभव किया है, खूब यातनाएं सही है, अब तो संभल जाओ। अब नहीं सम्भलोगे तो कब सम्भलोगे। अज्ञानता में की गई चूक क्षम्य होती है। जान बूझकर किया गया चूक, चूक नहीं अपराध कहलाता है। अतीत में तो तुम चूकने वालों में हो पर वर्तमान में तुम्हें हम चूकने वालों की संख्या नहीं देंगे। अगर जानने के बाद भी नहीं संभले तो ये तो अपराध ही है और इसलिए तुम अपराधी हो, तुम्हारा अपराध है। किसी गैर के प्रति नहीं ,स्वयं के प्रति तुम्हारा अपराध, इस अपराध से बाहर निकलो, अन्यथा इसकी सजा तुम्हें खुद भुगतनी पड़ेगी। दुनिया में तो फिर भी ऐसा हो सकता है कि कोई अपराध करें और बच जाए लेकिन स्वयं के प्रति किए गए अपराध से आज तक न तो कोई बचा है, न बच सकता है। इसलिए संभलिए, ठोकर खाने की आदत से बाज आइए, किसके कारण ठोकर खाए हो, अपने मोह के कारण, अपनी आसक्ति के कारण, अपने अज्ञान के कारण तुम्हे ठोकर खाना पड़ा है और ठोकर खाने से बचना चाहते हो तो इस मोह-माया को ठोकर मारना शुरू कर दो, जीवन में कभी ठोकर नहीं खानी पड़ेगी।

ठोकर मारो, आज तक संसार में जिनने भी अपना उद्धार किया है, इस मोह-माया को ठोकर मारने से ही किया है। तुम्हारी स्थिति उल्टी है, जिसको ठोकर मारना चाहिए उसे गले लगा रहे हो और जिसे गले लगाना चाहिए उसे ठोकर मार रहे हो। क्या कर रहे हो बोलो? तुम जिस मोह माया के प्रपंच में फंसे हो, जिस भोग विलास के चक्कर में उलझे हो, जिस मौज-मस्ती के पीछे पागल हो, वो गले लगाने लायक है या ठोकर मारने लायक। ठोकर मारने लायक कर क्या रहे हो क्या कर रहे हो, गले लगा रहे हो। तुम्हे अच्छी सीख मिलती है, वो तो तुम नहीं अपनाते, ध्यान रखो, मैं तुम्हें कुछ बातों को ठोकर मारने की बात करता हूं और कुछ बातें गले लगाने की करता हूं। गंभीरता से सोचना और देखना, तुम कर क्या रहे हो? ठोकर मारना है तो अपने अज्ञान को ठोकर मारो, ठोकर मारना है तो अपने अहंकार को ठोकर मारो, ठोकर मारना है तो अपनी ममता को ठोकर मारो, ठोकर मारना है तो अपनी आसक्ति को ठोकर मारो, ठोकर मारना है तो पाप को ठोकर मारो, ठोकर मारना है पाखंड को ठोकर मारो, ठोकर मारना है तो व्यसन को ठोकर मारो, ठोकर मारना है तो बुराइयों को ठोकर मारो। ये सब ठोकर मारने लायक चीजें हैं, इन कार्य को ठोकर मार कर दूर भगाना है।  ये सब ठोकर मारने लायक चीजें है, हमें इन से एकदम दूर होना है, इनकी तरफ देखना भी नहीं चाहिए। ठोकर मारकर ऐसे फेंकिए, फिर कभी देखने की भी बात ना आए। ठोकर मारिए और अपनाइये, गले लगाइए, किसको? धर्म को गले लगाइए, धर्म को गले लगाइए, माँ – बाप को गले लगाइए, गुरुओं को गले लगाइए, अच्छे मित्रों को गले लगाइए, जिससे जीवन में अच्छी सीख मिले। आप लोग क्या कर रहे हो, धर्म को गले लगाओ , धर्म को अपनाओ, धर्म को आत्मसात करो। आजकल लोगो में उल्टा देखने में आता है, लोग धर्म से विमुख होते हैं। कई लोग तो कहते है, हमको धर्म से एलर्जी है। ठीक है, एलर्जी है तो रखो, इस एलर्जी का कोई इलाज भी नहीं है। दुनिया की सारी एलर्जी का इलाज धर्म से हो सकता है लेकिन जिसको धर्म से ही एलर्जी है, वह जिंदगी भर बीमार बना रहेगा। उसकी एलर्जी मिटने वाली नहीं है। यह बात गांठ में बांध के रखने की है, हमें जीवन की वास्तविकता को समझने की आवश्यकता है, उसी अनुरूप अपने जीवन को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। हम धर्म के बारे में सोचें, धर्म के प्रति हमारा प्रगाढ़ लगाव होना चाहिए, वो हमारी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो धर्म को और धर्मी को गले लगाने की बात सोचते हैं।

प्रायः लोग धर्म की उपेक्षा करते हैं, धर्मी की उपेक्षा करते हैं। धर्म और धर्मी की उपेक्षा करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकता। यह बात गांठ में बांध कर रखो, इन्हे गले लगाए, इन्हे अपनाओ यह हमारे जीवन में सबसे ऊंची प्राथमिकता पर होनी चाहिए। दूसरे क्रम में माँ-बाप, उन्हें जीवन में कभी मत ठुकराना। विडंबना है कि आज उन्हें भी ठुकराया जा रहा है, उन्हें भी ठुकराया जा रहा है और उस ठुकरायेपन को देखकर माँ-बाप के अंदर कितनी वेदना होती है। आप सोच सकते हैं। एक पिता, बेटा उसे वृद्ध आश्रम में छोड़ा, वृद्धाश्रम में छोड़ कर जब लौट रहा था। बेटे ने पिता से पूछा, पिताजी, आप मुझे कुछ कहना चाहेंगे, इस घड़ी आप मुझे कुछ कुछ कहना चाहेंगे। पिता ने केवल एक ही बात कहा, बेटा बस मैं एक ही बात सोच रहा हूं , आज से 30 बरस पहले तुझे अनाथाश्रम में भेज दिया होता, आज से 30 बरस पहले मैं तुझे अनाथ आश्रम में भेज दिया होता तो आज मुझे वृद्धाश्रम का मुंह देखने की नौबत नहीं आती। 30 बरस पहले मैंने तुझे अनाथ आश्रम में भेज दिया होता तो आज मुझे वृद्धाश्रम का मुंह नहीं देखना पड़ता। कितनी गहरी बात है, आप सोच सकते हैं कि इन सब का क्या परिणाम निकलता होगा। कितनी बेरहमी और निष्ठुरता पूर्वक लोग अपने ही जन्मदाता, जीवनदाता, संस्कार दाता, माता-पिता की उपेक्षा करते हैं, तिरस्कार करते हैं, अवमानना करते हैं, अनादर करते हैं. यह ठुकराना ही तो है, ठोकर मारना ही तो है पर वे भूल जाते हैं, जो दूसरों को ठोकर मारता है वह एक दिन खुद भी ठुकराया जाता है। दूसरों को ठोकर मारने वाला खुद ठुकराया जाता है, जिन्हें गले लगाना है, उन्हें तुम ठोकर मार रहे हो। ठोकर मारना है, तो अपने अंदर की बुराइयों को ठोकर मार कर के निकालो, उन्हें तो गले लगा रहे हो और अपनों को ठोकर मार रहे हो। जिसके ह्रदय में बुराइयां भरी होगी, वो जीवन कहीं का नहीं रहेगा। आज तुम किसी को ठोकर मारोगे तो तुम्हें भी ठोकर खाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

बंधुओ! मैं आप सब से कहता हूं कभी किसी का तिरस्कार मत करना, कभी किसी को ठुकराना मत, जितना बन सके अपनाना और अपनाने की स्थिति ना भी हो तो उसका तिरस्कार तो मत करना, उपेक्षा तो मत करना, क्या पता? आज जिसे तुम ठुकरा रहे हो, कल तुम्हें उसी के सामने जाकर हाथ फैलाने को मजबूर होना पड़ जाए , कहा नहीं जा सकता। इसलिए अगर तुम आज किसी को ठुकराओगे, कल तुम्हें बहुत शर्मिंदगी भोगनी पड़ सकती है। एक युवक चला जा रहा था, उसके पांव से ठोकर लगी और एक पत्थर का टुकड़ा उचट कर के पास लगे गुलाब के पौधे के पास जा गिरा। गुलाब ने पत्थर को आते देखा और व्यंगय से मुस्कुरा उठा। और उसके मुख से निकला, यह भी कोई जिंदगी है, बस ठोकर। पत्थर ने गुलाब के शब्द सुने, सिहर उठा, पर कुछ कह नहीं सका। थोड़ी देर बाद एक दूसरा व्यक्ति उधर से गुजरा, उसकी नजर उस पत्थर पर पड़ी, वह निकट जाकर पत्थर को उठाया, उलट-पलट कर देखा, उसे पत्थर पसंद आया, उसे घर ले आया। वो एक शिल्पी था, उसे आकार देना शुरु कर दिया। थोड़ी देर बाद उस पत्थर से एक मूर्ति निकल गई, थोड़ी देर बाद उस पत्थर से एक मूर्ति निकल गई। उसने उस मूर्ति को अपने घर के पूजा घर में स्थापित किया। अगले दिन जो पहला फूल चढ़ाया, वह वही गुलाब था, जो कल उस पत्थर को देखकर हंस रहा था। वही गुलाब था, जो कल उस पत्थर को देख कर हंस रहा था, उसकी हंसी उड़ा रहा था। प्रतिमा ने फूल को देखा, तो मुस्कुरा उठी कहा कुछ नहीं। फूल ने प्रतिमा को देखा तो अपने आप में घोर शर्मिंदगी का अनुभव किया कि आखिर में क्या कर रहा हूं? बस मैं तुमसे इतना ही कहता हूं, अपनी उच्चता के दर्प में तुम किसी की अवमानना करोगे, तो कल तुम्हे बहुत नीचा देखना पड़ सकता है। कभी किसी को ठुकराना मत, घर में आए कुत्ते को भी ठुकराया नहीं जाता, दुरदुराया नहीं जाता, तो फिर तो कोई इंसान है उसे क्यों ठुकराओगे, उसका क्यों तिरस्कार करोगे। इस बात को कभी मत भूलना:-

जो आज एक नाथ है, न नाथ कल होता वही।

जो आज उत्सव मग्न है, कल सूखकर रोता वो ही।

जीवन बदलते देर नहीं लगती इसलिए कभी किसी को मत ठुकराना और अगर ठुकराओगे तो तुम भी ठुकराए जाओगे। ठुकराता है जो औरों को वह नर भी ठुकराया जाता है। इस बात को कभी भूलना मत, अगर तुम औरों को ठुकराओगे, तुम खुद भी ठुकराए जाओगे। और माँ-बाप को ठुकरा रहे हो तो कल तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे लिए ठुकराने में कमी नहीं रखेंगे, कमी नहीं रखेंगे। बेटे ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में भेज दिया, और 3 साल हो गए, 3000₹ महीना माँ को भेजता था। 3 साल बाद, एक दिन माँ  ने बेटे को अचानक फोन किया और कहा बेटा आ। बेटे ने पूछा- माँ क्या काम है, कल आ जाऊंगा, नहीं आज ही आ, आज ही जरूरी है बेटा, बस तू आ। बेटा आया। माँ ने बेटे के सामने 1,08000₹ रखते हुए कहा, बेटा ये रुपये पकड़।, माँ इनकी मुझे जरुरत नहीं है, क्यों दे रही है? बेटा, रख तुझे बड़ी जरूरत है। बोला क्यों? मुझे 3 वर्ष हो गए, इस आश्रम में रहते हुए यहाँ के लोग बड़े अच्छे हैं, मुझे बहुत प्यार करते हैं मैं भी इनके साथ ही हिल-मिलकर रहती हूं, उनके साथ काम में हाथ बंटाती हूं, बड़ा मजा आता है। हम बहुत अच्छे से रह रहे हैं। यहां के लोग मुझसे इतने प्रभावित हैं, कहते हैं माता जी आप पूरा जीवन भी निकाल लोगे तो हम आपका साथ देंगे, आपको कोई जरूरत नहीं है तो तूने मुझे 3000₹ भेजे ना वह मेरे आज तक काम में नहीं आए, ये मेरे पास ज्यों के त्यों रखे है , तो मैंने सोचा कि मैं तुझे लौटा दूं, तेरे काम में आ जाए। नहीं-नहीं माँ वो पैसा तेरे लिए है, तू रख। माँ ने कहा- बेटा नहीं, मेरे से ज्यादा तेरे काम के है, तू इसे संभाल क्योकि, मैंने तो तुझे संस्कार दिया, उसका यह परिणाम है कि तू कुछ नहीं तो मेरे लिए कम से कम 3000₹ मेहनत तो देता है पर तू बड़ा बिजी रहता है, अपने व्यापार में बड़ा उलझा रहता है, तेरे पास इतना भी वक़्त नहीं है कि तू अपने बच्चों को संस्कार दे सके तो मैं सोचती हूं संस्कार देने के परिणाम स्वरुप तूने मुझे रुपए भेजें। कल तेरे बेटे संस्कार न पाने के कारण पता नहीं रुपए भेज पाएंगे या नहीं भेज पाएंगे। मुझे कम उम्मीद दिखती है कि यह रुपए तेरे बच्चे तेरे को भेजेंगे, इसलिए इन्हे रख ले, जब तेरे बेटे तेरे को वृद्धाश्रम में दाखिल करेंगे ना तब तेरे काम में आ जाएंगे। बेटे की आंखें फटी रह गई, उसने माँ की बात सुनी तो भीतर से कांप उठा। माँ, मुझे माफ कर! मैंने तो समझा ही नहीं, पैसे से हर चीज का मूल्य नहीं होता, जो बात प्रेम में है वह पैसे में नहीं है। पैसे लिए और दिए जाते हैं पर प्रेम ऐसे लिए-दिए नहीं जाते, प्रेम तो अपने भीतर प्रकट किए जाते हैं।  माँ! मुझे मेरी भूल का एहसास हो गया, मैं माफी मांगता हूं, चरणों में गिर पड़ा।

बंधुओ! में आप सबसे केवल इतना ही कहता हूं, कभी किसी को मत ठुकराना अन्यथा ठुकराए जाओगे। दर-दर के भिखारी बनने को मजबूर होना पड़ेगा तो धर्म को कभी ठोकर मत ठुकराना ,भूलना मत माता-पिता को कभी मत ठुकराना, गुरु को और गुरु के वचनों की कभी उपेक्षा मत करना। जो व्यक्ति गुरु की हिदायतों की उपेक्षा कर देते हैं, वो जीवन में कभी सफल नहीं होते।  बुंदेलखंड में बड़ी अच्छी कहावत है:-

ना माने सयानो की सीख, ले खपरिया मांगे भीख।

अर्थात गुरुजनो, बड़े जनों को हमेशा मान देना, उनकी बातों की कभी उपेक्षा और अवहेलना मत करना, उसका तिरस्कार मत करना, उनका सम्मान करना तो तुम्हारा जीवन सम्माननीय बना रहेगा। यदि तुम उसकी उपेक्षा करके बैठोगे तो जीवन तहस-नहस हो जाएगा, जीवन बर्बाद हो जाएगा। अपने जीवन को सही रास्ते पर लगाने का यह मार्ग है, उस दिशा में हमें हमेशा गतिशील रहना चाहिए। कभी ठोकर मत मारना, ठोकर मारोगे, ठोकर खाने को मजबूर होना पड़ेगा। उन्हें कभी मत ठुकराना, यह तुम्हारी दृष्टि में होना चाहिए और फिर जो तुम्हारे अच्छे मित्र हैं उनको हमेशा गले लगाना। अच्छा मित्र कौन, जो हमे हित में लगाए, जिसे तुम दोस्त कहते हो वह तो अच्छा मित्र है ही, साहित्य भी अच्छा मित्र है, मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र एक अच्छा साहित्य होता है तो हम अच्छे साहित्य का पठन-पाठन करें और अच्छे लोगों की संगति में रहे, उनकी बातों को हम हमेशा याद रखें, उन्हें कभी ठुकराए नहीं। रावण ने विभीषण को ठुकराया, नतीजा सबके सामने है। काश रावण विभीषण की बात मान लिया होता, तो आज रावण संसार में नफरत का पात्र नहीं बना होता, उसकी ये दुर्गति नहीं होती, ये दुर्दशा नहीं होती। तुम भी देखो, जब तुम अपने अहम् में चूर होते हो, उस समय तुम्हारे लिए कोई अच्छी सलाह देने आता है, तो तुम क्या करते हो, उसकी बात को स्वीकारते हो अथवा अपने दंभ के दर्द में अकड़कर उसका तिरस्कार करते हो। क्या करते हो? अहंकारी व्यक्ति की यह दुर्बलता होती है कि वो सबको ठोकर मारता है, ठुकराने का आदी होता है, लेकिन ध्यान रखना कहावत है:- अभिमानी का सिर नीचा।

जो अभिमानी होता है उसे कल पराभव झेलना पड़ेगा। आज तुम औरों को ठुकरा रहे हो, कल तुम्हें ठुकराया जाएगा। और उस समय तुम्हारी दशा फुटबॉल जैसी हो जाएगी, कभी इधर, कभी उधर, कभी इधर, कभी उधर ऐसा काम कभी मत करना। मेरे संपर्क में एक व्यक्ति ने आकर के रोते हुए कहा:-  महाराज मैंने अपने द्वारा किए हुए अपराधों का फल भोग लिया है, क्या हुआ? महाराज जी! हम लोग चार भाई थे। पिताजी ने हम चारों को बराबरी से हिस्सा दिया और पांचवा हिस्सा उनने अपना रखा। उनके बाद वह माँ का हो गया। हम चारो भाइयों ने अपनी माँ को एक जगह नहीं रखा, हम लोगों ने शिफ्ट बना दिया एक-एक महीने, परिवर्तन होता रहता था। एक-एक महीने की शिफ्ट एक माह यहाँ, एक माह यहाँ, एक माह यहाँ। महाराज! हम चारों भाइयो के मन में माँ की संपत्ति पर तो नजर गड़ी थी, लेकिन माँ की सेवा की भावना हम किसी की नहीं रही। सब अपनी-अपनी दुनिया में मग्न थे। महाराज! जो हुआ, हुआ जवानी का जोश था। हमारी माँ की स्थिति अच्छी नहीं हुई, महाराज क्या बोलूं, बोलने में मुझे लज्जा भी आ रही है और वेदना भी आ रही है। शेर की तरह जीने वाली माँ को हमने कुत्तों की मौत मरने को मजबूर कर दिया। शेर की तरह जीने वाली माँ  को हमने कुत्ते की मौत मरने को मजबूर कर दिया। पर महाराज आज उसका फल हम देख रहे हैं, आप लोगों के संपर्क में आने के बाद मैंने अपने जीवन के 58 वर्ष तो अलग दुनिया में ही बिताये, आप लोग धर्म, साधु, गुरु, प्रवचन, मंदिर हमारी दुनिया में था ही नहीं, मैं तो हाई प्रोफाइल जिंदगी जीता था और हाई सोसाइटी में ही अपने आपको सब कुछ अच्छा समझता था। और उस कारण हम लोगों का जीवन स्तर था, वह बड़ा आज के शब्दों में कहूं, तो घिनोना था। पर महाराज क्या बताऊं, अब मैं 68 का हो गया, मेरी घरवाली चली गई। मेरे दो बेटे हैं और दोनों में एक भी मुझे रखने को तैयार नहीं है। मैं क्या करूं? दो बेटे है, दोनों में से एक भी मुझे रखने को तैयार नहीं है। आज मेरे आंखों के आगे वह सारे दृश्य झूलते हैं, जब मैंने मेरी माँ की उपेक्षा की। हम चार मिलकर एक माँ को नहीं पाल पाए तो मेरे दो बेटे मुझे कैसे पालेंगे, मैं उनका बोझ बन गया हूं। महाराज! बड़ी-बड़ी बेचैनी होती है, आज पैसों से तो मैं समर्थ हूं लेकिन महाराज आज मैं समझता हूं कि जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता। महाराज! सब कुछ होने के बाद में अलग-थलग हो गया हूं, एकदम अकेला। मेरी स्थिति बड़ी भयानक हो गई, अब मुझे लगता है कि काश आज माँ होती तो मैं माँ के पांव पकड़कर उससे क्षमा मांगता और अपने अपराध का प्रायश्चित करता। महाराज! अब आप बताइए मेरा उद्धार कैसे होगा?

बंधुओ! ऐसे एक नहीं अनेक लोग हो सकते हैं, आप में भी कोई ऐसा हो सकता है, हो सकता है, अनुभव करना। तुम ने यदि ठुकराया हो और आज तुम्हारे माँ-बाप तुम्हारे घर में हो, इस प्रवचन को सुन रहे हो तो सबसे पहला काम करना की प्रवचन की समाप्ति के तुरंत बाद जो यहां है, वह घर जाकर सबसे पहले अपने माँ-बाप से क्षमा मांगना। और जो घर में सुन रहे हैं वे तुरंत अपने माँ-बाप के चरणों में शीश रखना, उनसे क्षमा मांगना। कहना, अपराध क्षमा करो, मेरी भूल थी मैंने आप को ठुकराया। अब मैं ठुकराऊँगा नहीं, गले लगा लूंगा, गले भी नहीं लगाऊंगा, आपको तो पलकों पर बिठा लूंगा, सिर पर बिठा लूंगा क्योंकि आप हमारे माता-पिता हो, जन्मदाता हो, जीवनदाता हो, संस्कारदाता हो। वो में करूँगा, तब हमारे जीवन में कोई सार्थक उपलब्धि घटित होगी अन्यथा सब कुछ व्यर्थ होकर विनष्ट हो जायेगा। आप सोचिए, आप किसी को ठुकराओगे तो ठुकराए जाओगे। कभी किसी को मत ठुकराना, और इन चार की जिनकी चर्चा की, धर्म को कभी मत ठुकराना, गुरु को कभी मत ठुकराना, माँ-बाप को कभी मत ठुकराना और अच्छे मित्रों को और उनकी बातों को कभी मत ठुकराना तो बात मैंने आपसे की ठोकर लगना, ठोकर खाना, ठोकर मारना। ठोकर लगना परिस्थितिवश होती है, आप उससे बचे, संभले। ठोकर खाना मनुष्य की अज्ञानता के कारण होता है लेकिन हम अगर संभल जाएं तो जैसा मैंने आपसे कहा ठोकर खाकर भी ठाकुर बना जा सकता है। अभी ठोकर खाए हो, अब ठाकुर बनने की कला सीखो। मैं तुम्हे आज ठोकर खाकर, ठाकुर बनने का पाठ पढ़ा रहा हूं। हमारी बात को मानो, हम भी गुरु की सीख माने। कभी ठोकर खाने वालों में थे, हमारे गुरु ने हमें मार्गदर्शन दिया, हमने उनकी बात मानी, उनने हमें ठाकुर बना दिया। बनाया, कि नहीं बनाया? ठोकर खाकर ही ठाकुर बने, मैन्युफैक्चरिंग तो हमारी-तुम्हारी सब की एक समान है, अंतर नहीं है, सब एक ही प्रकृति के प्रोडक्ट हैं लेकिन जो संभल गया वह सफल हो गया, और जो नहीं संभला वो फिसल गया। सफल होने के लिए संभलना जरूरी, नहीं तो फ़िसलोगे गिरोगे।  ठोकर खाते आए हो, संभलो और जिनके कारण ठोकर खानी पड़ी उनको ठोकर मारो। जिनके कारण तुम्हें ठोकर खानी पड़ी उन्हें ठोकर मारो, अपने अज्ञान को ठोकर मारो, अपने अहंकार को ठोकर मारो, अपनी आसक्ति को ठोकर मारो, अपनी मूर्छा को ठोकर मारो। संसार के मोह माया के प्रपंच को दूर करो, पाप को ठोकर मारने की कला सीखो। जब तक इन्हे गले लगाए रखोगे, ये तुम्हारे गले की हड्डी बनी रहेगी, गले की फांस बनेगी, तुम्हारे जीवन को गन्दा कर देगी, इसके प्रति ध्यान रखना है। और अपनों को कभी ठोकर मत मारना। अगर ऐसा करोगे तो कही भी तुम ठुकराए नहीं जाओगे, फिर तुम्हें कोई नहीं ठुकराएगा। जो पाप को ठोकर मार देता है, सारी दुनिया उसे अपनाती है। जो पाप को गले लगाता है, दुनिया उसे ठुकराती है। तुम क्या हो? पाप को ठोकर मारने वाले हो या पाप को गले लगाने वाले हो, तय करो। अभी कहाँ स्थान है तुम्हारा? बोलो, क्या हो गया? पाप को गले लगाने वाले में हो कि पाप को ठोकर मारने वालों में। गले लगाने वालों में हो और कसम खाए बैठे हो, जिंदगी के आखिरी समय तक नहीं छोड़ेंगे। बोलो, महाराज! अभी तक तो हम ठोकर खाने वालो में थे, और पाप को गले लगाने वालों में थे। आज आप से मार्गदर्शन मिला है, अब हम पाप को गले नहीं लगाएंगे। आज से ही पाप को ठोकर मारना शुरू करेंगे और ठोकर मार कर पाप को इतना दूर कर देंगे कि वो हमारे जीवन की सीमा में कभी प्रवेश ही नहीं कर सकेगा और अपने जीवन को आगे बढ़ा देंगे।

पाप को ठोकर मारोगे तो दुनिया तुम्हें गले लगाएगी, पाप को गले लगाओगे तो दुनिया तुम्हें ठुकराएगी।

इस बात को कभी भूलना मत। आज वही ठुकराए जाते है, जो पाप को गले लगाते हैं। चाहते हो, कि कोई मुझे ना ठुकराए तो तुम्हें कोई कहीं ठुकराया न जाए तो पाप को छोड़ना शुरू करो, बुराइयों को छोड़ना शुरू करो, अच्छाइयों को अपनाना शुरू करो, दोष और दुर्बलताओं को दूर करो, सद्गुणों की वृद्धि करो। देखो जीवन में क्या रस आता है, कैसा आनंद प्रकट होता है। वो कला तुम्हारे भीतर विकसित होनी चाहिए। तो एक बात कोई तुम्हे ना ठुकराए तो तुम्हें चाहिए कि खुद संभल संभल कर के चलो, ठोकर खाते रहोगे तो ये ही स्थिति होगी। ठोकर मारना भी सीखो जिसे ठोकर मारना हैऔर यदाकदाचित सब कुछ होने के बाद भी कही तुम ठुकराए जाओ तो मन में हीन भावना ना आने दो। बहुत सारे ऐसे लोग होते है जिनकी लोग उपेक्षा कर देते हैं, अवमानना कर देते है, तिरस्कार कर देते है। ऐसे लोगों के हृदय में एक प्रकार की हीन भावना विकसित होने लगती है, वह अंदर-अंदर से टूट जाते हैं, वह अपने आप को बिल्कुल अकेला महसूस करने लगते हैं और वे लोग डिप्रेशन के शिकार बन जाते हैं। देखिये, मैं अपने प्रति जो कर सकता हूं, वो मेरे हाथ में है। दुनिया मेरे प्रति क्या करें, वो मेरे हाथ में नहीं है। तो क्या करें, यदि दुनिया का दृष्टिकोण मेरे प्रति अच्छा है तब तो कुछ सोचने की बात ही नहीं। यदि दुनिया का दृष्टिकोण मेरे प्रति खराब है तो हम अपना दृष्टिकोण थोड़ा सा बदल दे, उनकी ख़राब दृष्टि भी अच्छी हो जाएगी। अभी अगर तुम्हें कोई ठुकराए, कही तुम्हें लगे कि मेरी उपेक्षा है, मेरी कोई कदर नहीं। आजकल एक शब्द है मेरी कोई वेल्यू नहीं है, लोग कहते है। इससे लोग बड़ी हीन भावना से ग्रसित होते हैं। तुम्हे अगर ऐसा कभी लगे तो मन में हीन भावना लाने की जगह यह सोचना, यह मेरे किए का फल है, मैंने भी कभी किसी को वैल्यू दी नहीं तो मुझे वैल्यू कहाँ मिलेगी। कदर करने से कदर मिलती है, उपेक्षा करने से तो केवल उपेक्षा ही मिलती है। मैंने किसी को वैल्यू नहीं दी, मैंने किसी की कदर नहीं किया इसके कारण यह सब हुआ है। अब में कदर करना सीखूंगा, चलो कर्म का उदय है, क्षमता से सहन कर लो। आज वह मेरी उपेक्षा कर रहे हैं, कल जिस दिन मेरी अच्छाइयों को समझेंगे वे मेरी उपेक्षा को अपने आप दूर करना शुरू कर देंगे। यह सोच लेकर के हम चलेंगे तो जीवन में कोई कितना भी ठुकराए, हमारा मन विचलित नहीं होगा। हम अपने जीवन को सही मार्ग पर चलाने में समर्थ होंगे। तो आज ‘ठ’ से ठोकर की बात की है, अभी तक ठोकर खाए हो, ठाकुर बनने की ठान कर जाओ तो जीवन धन्य हो जाएगा। फिर तुम्हारे जीवन में किसी से ठनेगी नहीं, सबसे बनेगी। ठोकर खाना नहीं है, ठोकर मारकर ठाकुर बनना है और जीवन में किसी से ठने नहीं ऐसा मानकर चलना है। यही पर विराम!

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