डमरू बजाओ डर भगाओ
आज जब अभी ऊपर बैठा था, पंडित सुदर्शन जी ने कहा था, महाराज! आज ‘ड’ पर हैं, वो थोड़े घबराए हुए थे कि महाराज आज ‘ड’ पर क्या बोलेंगे? हम बोले- डरना नहीं हैं, डमरु बजाऊंगा, डरने का क्या काम। आज ‘ड’ हैं और मैं आपका डर मिटाने के लिए आया हूँ। ‘ड’ से डर, हर मनुष्य के मन में किसी ने किसी प्रकार का डर होता हैं। डर हैं क्या? एक नकारात्मक भावना हैं, नेगेटिव फीलिंग हैं जो किसी वास्तविक या काल्पनिक भयोत्पादक स्थितियों के निर्मित होने पर होती हैं। हर मनुष्य के मन में किसी न किसी प्रकार का डर होता हैं, प्रायः लोग डर को नकारात्मक रूप में ही लेते हैं लेकिन मेरी दृष्टि में डर नकारत्मक ही नहीं, सकारात्मक भी हैं। मैं आज आपसे चार बातें करूंगा-
- डरना
- डराना
- डर दिखाना और
- डर मिटाना
मैं आपको डर दिखाऊंगा और डर मिटाऊंगा। आपके डरने और डराने की प्रवृति से आपको बाहर भी निकालूंगा। कुछ जगह डरना अच्छा हैं और कुछ जगह डरना बुरा हैं। लोक में आप जिन बातों से डरते हो, वहाँ डरने जैसा कुछ भी नहीं हैं और जिनके प्रति आप बिल्कुल संकोच त्याग देते हो, उनका डर बहुत आवश्यक हैं। एक डर हैं जो हमारे जीवन को डगमगा देता हैं, डिगा देता हैं और एक डर वो हैं जो हमारे जीवन को सही दिशा देता हैं।
जीवन को डगमगाने वाले डर से बाहर निकलिए और जीवन को सही दिशा देने वाले डर को आत्मसात कीजिए।
दोनों बातें हमें साथ-साथ लेकर चलना हैं, सबसे पहली बात उस डर की हैं जिससे आप डगमगाते हो, जो आपको डिगा देता हैं, आपकी नैया डांवा-डोल कर देता हैं। उस डर को आप टटोलिये, अपने मन से पूछिए, आपके मन में डर हैं या नहीं, आप डरते हो कि नहीं। डरते हो, किससे-किससे डरते हो, सबका अपना-अपना डर हैं। किसी को असफलता का डर हैं, किसी को व्यापार में नुकसान का डर हैं, किसी को बीमारी का डर हैं, किसी को अपनी रेपुटेशन का डर हैं, किसी को अपने अपमान का डर हैं, किसी को बुढ़ापे का डर हैं, किसी को बीवी का डर हैं, किसी को बच्चों का डर हैं, सब को डर हैं, कोई ना कोई डर हैं। वस्तुतः जिनसे आप डरते हैं उनमे डरने जैसा कुछ नहीं। देखिए, हमारे पास जो डर होता हैं, एक होता हैं वास्तविक डर और दूसरा डर होता हैं काल्पनिक डर। वास्तविक डर कोई खौफनाक परिस्थिति निर्मित हुई, उस घडी में हमारे मन में जो डर होता हैं वो वास्तविक डर हैं लेकिन जब भी ऐसी सिचुएशन होती हैं उसके साथ उसका सोल्युशन खड़ा होता हैं। आपको कोई बीमारी हुई, आपके मन में डर आया, कैंसर भी हैं तो उसका इलाज भी हैं। बीमारी हैं, उसका इलाज हैं। डर एक समस्या हैं प्रॉब्लम के रूप में खड़ा हुआ हैं लेकिन उसका सोल्युशन भी साथ-साथ हैं। जीवन में कोई भी विपत्ति और समस्या आकर खड़ी होती हैं,आपके मन में उसका डर होता हैं। डर होना लाजिमी हैं लेकिन वह डर आपको ज्यादा आहत नहीं करता क्योंकि आपके सामने उसका सोल्युशन भी खड़ा दिखता हैं। गाड़ी चला रहे हैं, एक्सीडेंट के चांस हैं, बहुतों का एक्सीडेंट होता हैं पर हर किसी का एक्सीडेंट नहीं होता। हमें ठीक तरीके से गाड़ी चलाना हैं और कदाचित गाड़ी चलाएंगे, एक्सीडेंट हो भी जाए तो मेरी कार insured हैं, इंश्योरेंस की व्यवस्था हैं, डर किस बात का।
डर किस बात का अगर मेरे सामने कोई भी समस्या आकर के खड़ी होती हैं और उस समस्या का सोल्युशन हैं तो डरने की कोई बात नहीं हैं। वहाँ डरना नहीं हैं, सतर्क रहना हैं। व्यापार में नुकसान हो गया कोई बात नहीं, बहुतों को नुकसान होता हैं। बहुत ऐसे लोग हैं जिनको नुकसान होने के बाद वे वापस शिखर पर पहुंचे, बड़े भारी नुकसान के बाद भी वह अपने जीवनता के साथ जुटे हैं, शिखर पर पहुंचे हैं। जीवन में बहुत सारी समस्याएं होती हैं, उन समस्याओं को लेकर के मन में डर उत्पन्न होता हैं लेकिन गहराई से जा कर के देखोगे तो आपको दिखेगा, जहां प्रॉब्लम हैं वही सोल्युशन हैं।
जिनके-जिनके साथ प्रॉब्लम खड़ी होती हैं, वो खुद अपना सोल्युशन निकाल भी लेते हैं। उनके सामने भयप्रद स्थिति निर्मित होती हैं पर वह भयातुर नहीं होते। भयप्रद स्थितियाँ बनना स्वभाव हैं, भयातुर होना हमारी दुर्बलता। ऐसे किसी व्यक्ति के जीवन को आप नहीं देखेंगे की उनके सामने कोई चुनौतियाँ नहीं आई हो, जिनके सामने कोई समस्या नहीं आई हो। चुनौतियाँ आना कोई बड़ी बात नहीं हैं, चुनौतियों से डिगना नहीं, यही बड़ी बात हैं और वह वही कर पाते हैं जिनके अंदर जीवन के प्रति सही समझ होती हैं। डर निकल जाता हैं तो एक डर जो वास्तविक डर हैं, आप जा रहे हैं जंगल में शेर आ रहा हैं सामने से, डर लगेगा कि नहीं लगेगा, बोलो डर लगेगा ना। अब क्या करोगे? एक से पूछा, तुम जा रहे हो, अचानक जंगल में सामने से शेर आ जाए तो तुम क्या करोगे? भला मैं क्या करूंगा, वही करेगा जो करना होगा लेकिन ठीक हैं, शेर आया हैं, जो करना हैं तुझे कर ले, जाते-जाते भी मैं तेरा निवाला बन जाऊं तो मेरा क्या होगा। अब तो और कोई चारा भी नहीं हैं वहाँ घबराने से कोई रास्ता भी नहीं हैं, हो सकता हैं तुम्हारी इस ढृढ़ता से शेर का ह्रदय बदल जाए और वो अपना रास्ता बदल दे। ऐसा भी अनेक बार हुआ हैं, हो सकता हैं। तुम्हारे अंदर ऐसी बात होनी चाहिए तो मैं आप से कहता हूँ, जिस डर का सोल्युशन हैं, वहाँ डरने जैसी कोई बात हैं नहीं। अभी आपके एक-एक डर को हम लेकर चलेंगे पर पहले लेकर के चलेंगे पहले हम थोड़ा आपके भीतर उतरना चाह रहे हैं। इस सूत्र को याद रखना जिस डर का सोल्युशन हैं, वहाँ डरने जैसी कोई बात नहीं लेकिन एक दूसरा डर हैं, जो बड़ा भयानक हैं, खतरनाक। वह क्या हैं, काल्पनिक डर हैं। हैं कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं हैं पर दिमाग में घुसा हुआ हैं। जो मनुष्य देख करके सीख लेता हैं, एक्सेपट कर लेता हैं वो डर हैं मन का डर।
एक व्यक्ति का एक्सीडेंट देख लिया, मन में डर बैठ गया, मेरा एक्सीडेंट न हो जाए, मेरा एक्सीडेंट न हो जाए, मेरा एक्सीडेंट न हो जाए। ऐसे लोग दुनिया में हैं कि नहीं। एक व्यक्ति को बीमार देख लिया कहीं मैं बीमार न बन जाऊं, मैं बीमार ना बन जाऊं, मुझे में बीमारी ना हो और अपने अंदर वैसी बीमारी की फीलिंग भी शुरू कर लेते हैं, यह भी एक डर हैं। किसी व्यक्ति ने एक कोई failure देख लिया और उसके अंदर उसे failure देख कर, खुद के अंदर failure की फीलिंग आने लगी, यह failure फियर हैं, failure फियर हैं। मेरे साथ कहीं असफलता ना हो जाए, मैं कहीं फेल ना हो जाऊ, मेरे साथ कोई विफलता न घटित हो जाए, मेरे सामने अचानक कोई समस्या खड़ी न हो जाए, यह भी मन में आता हैं। किसी के जीवन में अगर कोई और विषमता आ जाए, मेरे साथ में ऐसा ना हो जाए, बड़ी दिक्कत हैं। एक बार कैसे-कैसे लोग आते हैं, एक के मित्र की बेटी का विवाह हुआ और तलाक हो गया, जो आजकल एवरेज होता हैं। एक व्यक्ति मेरे पास आया और बड़े परेशान और घबराये हुए। हम बोले क्या बात हैं, वो बोला महाराज जी बड़ी चिंता हो रही हैं, आजकल एक नया ट्रेंड हो गया हैं, शादी होती और तुरंत तलाक हो जाता हैं। मुझे इस बात का डर हैं कहीं मेरी बेटी की शादी के बाद तो ऐसा नहीं होगा। अभी शादी हुई नहीं हैं, मैंने पूछा अभी तेरी बेटी कितने साल की हैं, बोला 12 साल की बेटी हैं, शादी का कोई अता-पता नहीं हैं पर दिमाग में एक कीड़ा घुस गया हैं कि आजकल शादी के बाद तलाक हो जाता हैं, कहीं मेरी बेटी के साथ तो तलाक नहीं हो जाए। बड़ी मुश्किल हैं, एक किस्सा तो और अलग आया एक बहन जी मेरे पास आई, उनकी पहली बेटी थी, 4 साल की थी, 4 साल की बच्ची और वो बहन जी बहुत घबराई हुई आई। महाराज जी! मेरी एक बेटी हैं, मुझे बहुत चिंता हैं। बोली क्या बात हैं, किस बात की चिंता? महाराज! आजकल बेटियों के बारे में जो सुनते हैं, देखकर डर लगता हैं, कहीं मेरी बेटी के साथ तो ऐसा नहीं हो जाएगा। हम बोले- 4 साल की बेटी हैं तुम नेगेटिव क्यों सोचती हो, यह क्यों सोचती हो कि मेरी बेटी के साथ कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो जाएगा, यह क्यों नहीं सोचती हो कि मैं अपनी बेटी की अच्छी परवरिश करुँगी जिससे मेरी बेटी को सारी दुनिया आदर्श मानेगी, सारी दुनिया का डर मिटाएगी।
मनुष्य के मन में ऐसी कल्पनाएं भर जाती हैं और यह काल्पनिक भय हैं, जिसका कोई अस्तित्व नहीं, जिसका कोई वजूद नहीं, जिसकी कोई जड़ नहीं, उसके पीछे जो डरता हैं, इसका कोई इलाज? बीमार तन की सौ-सौ चिकित्सा हैं, बीमार मन का कोई इलाज नहीं हैं और आजकल तन से बीमार लोग कम हैं, मन से बीमार लोग ज्यादा हैं और जिनसे डरते हैं, उससे डरते हैं जिसका कोई अस्तित्व नहीं। मैं पूछता हूँ तुमसे जिसका सोल्युशन हैं, उससे डरने का कोई काम? और जिसका अस्तित्व नहीं उस से डरने का कोई काम? तो डरते क्यों हो? ये डर हैं तुम्हारा अज्ञान, जिसका सोल्युशन हैं वहाँ डरना नहीं और जिसका अस्तित्व नहीं उस से डरना नहीं लेकिन आपके मन में एक ग्रंथि की तरह यह बात बैठ जाती हैं और जब बैठ जाती हैं तो मनुष्य का जीवन डांवाडोल हो जाता हैं। जब मन में भय होता हैं, शंका आ जाती हैं, शंका से चिंता और चिंता से घबराहट, एक साथ। जब-जब देखो बड़ा विचित्र खेल हैं, जहां शंका होती वहाँ भय होता हैं और जहाँ भय होता हैं वही शंका होती हैं और भय, शंका, चिंता के चक्र में मनुष्य सारे जीवन घूमता रहता हैं। वह अनावश्यक रूप से अपने आप को दुःखी बना लेता हैं। मनोविज्ञान तो यह कहता हैं कि जब इस तरह मनुष्य अपने बारे में सोचने लगता हैं, इस तरह से अपने बारे में सोचना शुरु कर देता हैं तो उससे निकलने वाली जो नेगेटिव एनर्जी हैं, नकारात्मक तरंगे हैं, वह वैसे सिचुएशन को क्रिएट कर देता हैं। लॉ ऑफ अट्रैक्शन के सिद्धांत को जो समझते हैं वो इस बात को जानते हैं की ‘thoughts becomes things’। हमारे विचार ही साकार हो जाते हैं, अगर मेरे मन में एक बार नकारात्मक विचार बैठ गए तो बढ़ते-बढ़ते जो नहीं होना उसे प्रकट कर दे। जिनका अपना कोई अस्तित्व नहीं वे उनका भी निर्माण कर देते हैं। जिसकी वजह से मनुष्य सारे जीवन केवल दुःखी, दुःखी और दुःखी बना रहता हैं तो यह दोनों तरह का भय। अपने मन को टटोलिए, आपके मन में ऐसा भय हैं, किस प्रकार का भय हैं पहले वाला या दूसरे वाला? तुम तो हमसे बोलने में डर रहे हो। किस प्रकार का डर हैं तुम्हारे मन में, पहले प्रकार के डर के शिकार हो या दूसरे प्रकार के डर के शिकार?
तो पहले इसका ट्रीटमेंट करूं, फिर पहले प्रकार का। देखो एक अच्छा डॉक्टर वह होता हैं जो पेशेंट से पूरी हिस्ट्री पूछता हैं तो मैं आपकी हिस्ट्री जानता हूँ। किस तरह का डर हैं, ज्यादातर लोगों के मन में काल्पनिक बातों का भय होता हैं और जिसका अस्तित्व नहीं उसका भय। तुम चाहते हो कि उस का भय समाप्त हो जाए तो एक ही बात स्वीकारना शुरू कर दो कि जिसके बारे में मैं सोच रहा हूँ, वह कुछ हैं ही नहीं। मैं तुमसे एक सवाल करता हूँ, रात सोते समय भयानक सपना देखो, ऐसा सपना कि कोई दैत्य तुम पर खंजर चला कर तुम्हें मार रहा हैं, तुम्हारा सब कुछ लूट रहा हैं, तुम्हारे सामने तुम्हारे पूरे परिवार को बर्बाद कर रहा हैं। मन में डर होता हैं कि नहीं? उस समय उस दृश्य को देखकर थरथराते हो कि नहीं, एकदम काँप जाते हो, कभी चीख भी निकली होगी, एकदम घबड़ा जाते हो और इसी बीच नींद खुल गई तो आँख खोल कर इधर-उधर देखा। अरे यहां तो कुछ नहीं, यह तो क्या था, सपना था, अभी थोड़ी देर पहले सांस फूल रही थी,अभी हांफ रहे थे। अब क्या हो गया? तसल्ली आई, डर मिटा। किसने मिटाया डर? बोलो, जवाब तुमसे पूछ रहा हूँ, हकीकत, बस यह समझ में आ गया कि जिसके कारण हम डर रहे थे, वह सपना था। ये हकीकत जान लिया ना, जिसके कारण हम डर रहे थे, वह सपना था, उसका कोई वजूद ही नहीं तो डरना क्या। बस तुमसे मैं इतना ही कहता हूँ- जो तुम्हारे मन में बैठाया, जिसे तुमने अपने मन में बैठा रखा हैं, समझ लो वो सपना हैं, वह कल्पना हैं, वह हकीकत नहीं हैं, डर अपने आप दूर हो जाएगा। मेरे मन की कल्पना हैं, मेरा भ्रम हैं, यह हकीकत नहीं, यह सपना हैं। यह बात जिस पल मन में बैठ जाएगी, सब अपने आप दूर हो जाएगा।
मेरे पास एक युवक आया, स्थिति बहुत भयानक थी। ऐसे कांपता था, पूरा शरीर कांपता था। पता नहीं उसके मन में क्या बैठ गया कोई भूत-वूत ना लग गया हो। घर भर के लोग न जाने कितने झाड़-फूंक करा चुके थे और उसे मेरे पास लेकर आए, वो बैठा। मैं देखा तो एकदम ऐसे एकदम हिलता हैं ना मैं जैसे हिल रहा हूँ, यह तो कम हैं, एक दम से तेज रफ्तार से हिलता था। मैंने पूछा-उसके माता-पिता साथ में थे कि बात क्या हैं। बोले, महाराज! एकदम हो गया, दिखाया, डॉक्टर को दिखाया? सारे diagnosis करा लिए, सारी जांच करा ली, diagnosis में कुछ नहीं निकलता, सब कुछ नॉर्मल हैं, सब कुछ नॉर्मल हैं। महाराज! लोगों ने कहा- कोई ऊपरी चक्कर हैं, हमने वह भी करा लिया महाराज जी, कुछ नहीं निकल रहा हैं, कुछ नहीं निकल रहा हैं। मेरे पास बैठा मैंने देखा तो देखो भाई! मैं थोड़ा कई बार कई तरह से ट्रीटमेंट कर देता हूँ, साइक्लोजिकल ट्रीटमेंट करना भी मैं जानता हूँ। मेरे पास बैठा, मैंने उसे आंख बंद करके नमोकार जपने के लिए बोला। आँख बंद किया, नमोकार जपा, मैंने कहा, जब तक नहीं बोलूं आंखें मत खोलना, बहुत सारे ट्रिक अपनाने पड़ते हैं और मैंने उसको देखकर नमोकार जपा। अपनी आंखें बंद की, मुझे अंदर से लगा इसको कुछ नहीं केवल वहम हैं और मैंने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बोल दिया तेरे साथ कुछ नहीं, जो था सो चला गया, भूल जा अब तेरे को कुछ नहीं हैं। नमोकार जप, तेरे को कुछ नहीं हैं और कुछ होता तो तू यहां नॉर्मल नहीं हो पाता और संयोग जितनी देर वो नमोकार जप रहा था, हिलना बंद हो गया। हम बोले- देख जो तेरे साथ लगा था, उसको हम ने भगा दिया, भूल जा। अब 4 बरस हो गए, आज तक वह लौट के नहीं आया, चंगा हो गया। वो अब कांपता नहीं हैं, हमेशा आता हैं, कहता हैं महाराज जी में ठीक हूँ तो क्या हुआ जो था ही नहीं उसको हमने क्या भगाया। मन का वहम था, भ्रम था, उसे भगा दिया, सब चला गया।
मैं तुमसे कहता हूँ, दुनिया में कोई भूत-प्रेत नहीं होते, सबसे बड़ा भूत डर का होता हैं, मन का होता हैं तो मन के भूत को भगा लो, सारा काम खत्म तो यह तुम्हारे उस भाई की बात हैं जो नकारात्मक दिशा में तुम्हें ले जाते हैं और ये काल्पनिक भय मनुष्य को बहुत दुःखी बना देते हैं। कई-कई बार तो ऐसे लोगों की स्थिति ऐसी हो जाती हैं जो बड़ी हास्यास्पद भी होती हैं, ऐसा लगता हैं कि लोग कहां अपना दिमाग लगा रहे, क्या कर रहे क्या कर रहे, क्या कर रहे और यह सब होता क्यों हैं? ये सब इसलिए होता हैं, जब हम कुछ ऐसी चीजें देख लेते हैं और देखने के बाद हम अपने सबकॉन्शियस में उसे बिठा देते हैं तो एक प्रकार के वह ऐसे संस्कार हमारे सबकॉन्शियस में बैठ जाते हैं कि यह ऐसा हुआ हैं ना, मेरे साथ ऐसा ना हो जाए, यह ऐसा हुआ ना यह मेरे साथ ना हो जाए। कई लोगों के मन में इस तरह कि नेगेटिविटी बहुत बढ़ती हैं।
मैं सम्मेद शिखरजी में था, सन 2006 की बात हैं जब तालिबान और सद्दाम हुसैन वगैरह का चक्कर बहुत चलता था तो मेरे पास एक युवक बड़ा घबराया हुआ आया क्योंकि डाक आई हुई थी और ढ़ेर सारे लिफाफे थे। एक युवक बैठा था, वह एकदम मुझे रोक लिया। महाराज जी! अभी आप लिफाफा मत खोलिये, आप इसको टच मत कीजिए एकदम घबराते हुए। मैंने कहा, क्या हुआ? बोला, महाराज! आजकल केमिकल वॉर का चक्कर आ रहा हैं और ऐसा सुनने में आया हैं कि इस तरह के जितने भी एन्वेलप्स होते हैं, उनके साथ कुछ केमिकल्स डाल देते हैं महाराज जी, कुछ हो गया आपको तो बड़ा गड़बड़ हो जाएगा, आप रूक जाइए। हम बोले जो होना होगा वो होगा, ऐसा होना होता तो अब तक तो दुनिया में कही का कही हो जाता। अगर इतनी छोटी-छोटी बातों से घबराएगा तो जीवन में क्या कर पायेगा। लोगों के मन में होता हैं, २००५-२००६ के आस-पास ही चक्कर बहुत चल रहा था, अफवाहें फैलती थी और लोग इन बातों से घबरा जाते थे। मैं आप से कहता हूँ जीवन की वास्तविकता को समझना शुरू कर दोगे तो यह सब चीजें अपने आप दूर हो जाएगी। सबसे पहली बात हम यह देखें कि इस डर की जड़ क्या हैं।
चार बातें हैं- जो डर की जड़ हैं, उखाड़ करके फेंक दूंगा, चिंता मत करना।
सबसे पली बात आत्मविश्वास की कमी, जिन व्यक्तियों का आत्मविश्वास कमजोर होता हैं, वे हमेशा डरते हैं, उनका कॉन्फिडेंस लूज़ होता हैं, वह हमेशा डाउट में जीते हैं, डिसीजन नहीं ले पाते। उनके साथ सब कुछ अनिश्चितता सी बनी रहती हैं, वो कुछ करने की स्थिति में नहीं रहते, करें, नहीं करें? ऐसा ना हो जाए, कहीं ऐसा ना हो जाए, सफल होंगे या नहीं, सफल होंगे या नहीं। यह संशय उसके मन में दौड़ता रहता हैं और इससे उसकी सोच नेगेटिव बन जाती हैं।
दूसरी बात नकारात्मक सोच| जिस व्यक्ति का सेल्फ कॉन्फिडेंस वीक होता हैं, वीक होता हैं वो डाउट में जीता हैं और जहां शंका आती हैं, वहाँ नकारात्मकता आती हैं और वही डर उत्पन्न होने लगता हैं। फियर फीलिंग, कुछ भी हो, अरे क्या करें। कई लोग होते हैं, कुछ व्यक्ति होते हैं जो आत्मविश्वास से लबरेज होते हैं, कोई भी काम करते हैं पूर्ण विश्वास के साथ करना शुरू कर देते हैं, सक्सेस हो जाते हैं। करना हैं, बड़े से बड़े काम कर लो, शुरू हो जाओ और काम अपने आप होता हैं। मैं अपने जीवन की सफलता का आधार अपना आत्मविश्वास मानता हूँ। मैं कोई भी काम हाथ में लेता हूँ कभी घबराता नहीं, मेरा आत्मविश्वास इतना तगड़ा हैं कि जिस काम को मैं छूता हूँ, उसे अंजाम तक पहुंचा कर ही चैन लेता हूँ। कई लोग हैं, जो बड़े आत्मविश्वासी होते हैं और उस आत्मविश्वास के बल पर जो भी काम शुरु करते हैं, उसे उसके चरम तक पहुंचा देते हैं, उनके मन में किसी तरह का डर नहीं होता लेकिन जिनका आत्मविश्वास कमजोर होता हैं, काम शुरू नहीं होता, उसके पहले डरना शुरू हो जाता हैं। अरे बिजनेस करना हैं, सक्सेस होंगे कि नहीं होंगे, कई नुकसान तो नहीं कहीं failure तो नहीं हो जाएंगे, जॉब मिली हैं चल पाएगी कि नहीं चल पाएगी, हमारे बॉस से हमारा बन पाएगा या नहीं बन पाएगा, टिक पाएंगे कि नहीं टिक पाएंगे, निभा पाएंगे कि नहीं निभा पाएंगे, कहीं तो शादी के नाम से भी डरते हैं, बहुत सारी चीजें होती हैं।
हर कदम पर मनुष्य डरता हैं बोलो डरते हो कि नहीं डरते हो, आत्मविश्वास की कमी। तुम यह सोचो कि मैंने जिस काम की शुरुआत की हैं, वह आगे बढ़ने के लिए की हैं या पीछे हटने के लिए की हैं, सफलता पाने के लिए की हैं या विफल होने के लिए। जब सफलता पाने के लिए तुमने कोई काम किया हैं तो तुम्हें केवल सफलता की सोचनी चाहिए, विफलता की क्यों सोचते हो। सोल्युशन निकालने की बात सोचो, प्रॉब्लम की बात क्यों सोचते हो पर सबसे बड़ी प्रॉब्लम तुम्हारी यह हैं कि तुम पहले प्रॉब्लम खड़ी करते हो, सोल्युशन जानते ही नहीं हो। होगा कि नहीं होगा, होगा कि नहीं होगा, यह क्यों? अरे क्यों नहीं होगा, जो मैं चाहूँगा वही होगा, यह कॉन्फिडेंस तुम्हारा होना चाहिए। जिसका सेल्फ कॉन्फिडेंस स्ट्रांग होता हैं वो मनुष्य कभी डरता नहीं और जिसका कॉन्फिडेंस वीक होता हैं, वह मनुष्य कभी संभलता नहीं, वह कुछ भी नहीं कर पाता। आप देखिएगा दुनिया में ऐसे लोग बहुत मिलेंगे जो हर बात में डरेंगे, भैया अरे कुछ गड़बड़ ना हो जाए, कुछ गड़बड़ ना हो जाए, कईयों की तो हार्टबीट भी बहुत तेज हो जाती हैं। एक आदमी गाड़ी चला रहा हैं उसके अंदर कॉन्फिडेंस हैं तो गाड़ी चला पाएगा और मन में थोड़ी भी खटक हैं, कसक हैं, गाड़ी चला पाओगे। बोलो, क्या होगा? बार-बार वह खटका अटकेगा, तुम गाड़ी ठीक ढंग से ड्राइव नहीं कर पाओगे या तो गाड़ी रोक दोगे या एक्सीडेंट करा लोगे। तो गाड़ी चलाने के लिए तुम्हारे मन में कॉन्फिडेंस चाहिए तो संत कहते हैं- केवल गाड़ी नहीं, जिंदगी की गाड़ी को भी भी बेरोक, बेखौफ चलाना चाहते हो तो कॉन्फिडेंस बिल्ड-अप करो, अपने अंदर कॉन्फिडेंस रखो, मन को आत्मविश्वास से लबरेज रखो।
दूसरी बात हैं नकारात्मक सोच, जिस व्यक्ति के भीतर जितनी अधिक नेगेटिव चीज होती हैं, वह आज भी उतना घबराता हैं, उसके मन में उतना डर होता हैं वह हर चीज के उल्टे परिणाम देखता हैं, उसको सीधा कुछ दिखेगा ही नहीं। कुछ हो ना जाए, कहीं कुछ हो ना जाए, कहीं कुछ हो गया तो, कहीं कुछ हो गया तो, जो होगा उसको देखेंगे। कहीं कुछ हो गया तो क्यों सोचते हो, हो गया तो उसका सोल्युशन ढूंढेंगे। दिमाग में ऐसी बात बैठ जाती हैं कि क्या कहे।
मेरे संपर्क में एक सज्जन हैं, उनके पिताजी को एक बड़ी प्रॉब्लम, बोले, महाराज जी! आप हमारे पिताजी को समझाओ हालाँकि समझाने के बाद मामला ठीक हो गया। हम लोग घर से बाहर जाते हैं महाराज तो जिस दिन घर से बाहर जाते हैं, अगर लौट कर नहीं आए तो हमारे पिताजी सो नहीं पाते, पूरी रात दरवाजे पर खड़े रहते हैं। किसी भी हालत में घर से बाहर जाने के बाद 9:00 बजे तक घर में आना हैं। हम लोग कहीं भी जाएं, उनके मन में एक ही बात रहती हैं, एक्सीडेंट ना हो जाए, एक्सीडेंट ना हो जाए, कहीं कुछ हो ना जाए, बस यह सोच उनकी चलती रहती हैं और महाराज वह सोते नहीं हैं, दरवाजे पर खड़े रहते हैं, आप उनको समझाएं। मैंने समझाया, यह क्यों सोचते हो कि हमारे बच्चों का एक्सीडेंट ना हो जाए, यह क्यों नहीं सोचते कि हमारे बेटे इतने काबिल हो गए हैं कि इतनी दौड़भाग करते हुए अपने आपको कहीं से कहीं पहुंचा दिए और सफल हैं। सोच बदलनी चाहिए, नेगेटिविटीज आप की बढ़ती हैं। आपसे एक सवाल करता हूँ, आपका अपना कोई व्यक्ति घर से बाहर गया और उसने बोला कि हम शाम 5:00 बजे तक आ जाएंगे, 6:00 बज गए अभी तक वो आया नहीं, उधर से कोई मैसेज नहीं, आपको चिंता होती हैं, होती हैं ना। और उस समय आप उसको मोबाइल लगा रहे हो, रिंग जा रही हैं, फोन नहीं उठ रहा हैं। आप क्या सोचते हो, अरे कुछ हो तो नहीं गया, क्या सोचने में आता पॉजिटिव की नेगेटिव, क्यों? तुम यह क्यों नहीं सोचते कि हो सकता हैं, उसकी कोई व्यस्तता बढ़ गई हो, उसका कोई आवश्यक काम आ गया हो, इसलिए ऐसा हो गया, कोई दिक्कत नहीं, आ जायेगा। इस नेगेटिविटी के कारण लोग कभी आगे नहीं बढ़ पाते। एक व्यक्ति अपने बच्चे को लेकर आया, बोला, महाराज ! बेटा बहुत इंटेलीजेंट हैं, लेकिन पेपर से इसको फोबिया हैं। एग्जाम आता हैं, पेपर देखकर घबराता हैं, इसको कुछ भी करो लिख ही नहीं पाता, आता सब हैं बाहर आकर सब बता देगा। अगर हम इससे पूछे ऐसे एग्जामिनेशन से बाहर लाकर, तो मैं कहुँ कि स्कूल में टॉप करने वाला बच्चा हैं लेकिन क्लास में जाता हैं, इसको डर लगता हैं, कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए, लिख ही नहीं पाता, उसका कॉन्फिडेंस वीक हो जाता हैं। मैंने कहा- कुछ नहीं तेरे को एक मंत्र देता हूँ तू लिखना शुरु करने से पहले 9 बार णमोकार मंत्र पढ़ना, आंख बंद कर गहरी सांस भरना और समझना सारी पॉजिटिविटी मेरे भीतर आ गई और जो मैं पढ़ा हूँ, सब मुझे आता हैं और मैं लिखूंगा। लिखना शुरु करो, उसका डर मिट गया, नेगेटिविटी खत्म हो गई, खुद के प्रति पॉजिटिव हो गया और अच्छे मार्क्स से पास हो गया। सोच को बदलिए, अगर आपकी सोच नकारात्मक होगी तो आप कभी भी डर से बाहर नहीं आ पाएंगे और जिसके मन की सोच सकारात्मक होगी, उसे कितना भी डराओ वो डरेगा नहीं। चाहे कैसी भी स्थिति हो, वो एकदम निर्भीक, निडर बन कर के चलेगा, उल्टे को सीधा करना हमें आता हैं।
डर का तीसरा कारण हैं, अंधविश्वास। दुनिया में बहुत से अंधविश्वासी लोग होते हैं, ज्यादातर अंध-विश्वासी लोग बहुत डरते हैं। वो धर्म भी डर के मारे करते हैं, टोना-टोटका, तंत्र-मंत्र, कंडा-ताबीज के चक्कर में उलझते रहते हैं और इसी अंधविश्वास के कारण दुनिया के सारे बाबाओं की दुकानें चलती हैं। वह अंधविश्वास, भूत-प्रेत, पिशाच ना जाने क्या-क्या लग जाते हैं। यह अंधविश्वास हैं, जब तक तुम्हारा यह अंधविश्वास नहीं मिटेगा, मन का डर कभी नहीं जाएगा। डर को मिटाना चाहते हो तो अंधविश्वास से बाहर आओ, अपने आत्मा के स्वरूप का विश्वास करो, कर्म सिद्धांत पर विश्वास करो, कर्म का विश्वास करो, जीवन के यथार्थ को जानो। जिसके ह्रदय में कर्म सिद्धांत पर विश्वास होता हैं, वो थोथे कर्मकांडों पर विश्वास नहीं करता। उसके चित्त में कभी किसी प्रकार का अंधविश्वास नहीं पनपता, वो एक ही विश्वास और भावना के साथ जीता हैं। इस संसार के जो भी सहयोग योग हैं, अपने-अपने कर्मों के अनुसार हैं, जो फ्रंट में आएगा हम उसको फेस करेंगे, यह दृष्टि हमारे सामने होनी चाहिए। क्यों हम डगमगाए? किससे हम डगमगाए? दुनिया के सारे खटकर्म करने के बाद भी जो होना होता हैं, वह होता ही हैं। ये अंधविश्वास ही मनुष्य के डर का बड़ा कारण हैं।
चौथा कारण हैं, कमजोर मनोबल। मनोबल जिनका कमजोर होता हैं वो बात-बात में डरते हैं। मनोबल को जगाइए, मनोबल को जगाने के लिए आपके अंदर आत्मदृष्टि होनी चाहिए, अपनी आत्मा को पहचानियेगा, सारा डर अपने आप में दूर भाग जाएगा फिर तुम्हारे ऊपर किसी प्रकार का डर हावी नहीं होगा। आपके ऊपर जो डर हावी होता हैं, एक बार उन सारे हमारे शास्त्रों में तो सात प्रकार के डर बताया हैं और एक सम्यक दृष्टि से कहा गया-
जो सात भयो से भी निःशंक हो, सम्यक दृष्टि सात भय से मुक्त होकर निःशंक होता हैं, उनके मन में कोई शंका नहीं होती। आज के समय में उन्ही सात भयों की अलग तरीके से व्याख्या हैं, उन्हीं भयों की चर्चा आज आप से करता हूँ और केवल चार बातें आप आत्मसात कीजिएगा। आपके मन में कोई भय नहीं रहेगा, चार बातों को पहले सामने रखता हूँ फिर जिन कारणों से आप घबराते हैं, उनको सामने रखना, देखना उनको देखते ही भय दूर हो जाएगा, डर दूर हो जाएगा, कहीं डर नहीं रहेगा। सबसे पहले आत्मा के स्वरूप का विश्वास, नंबर वन मैं आत्मा हूँ यह विश्वास, दूसरा कर्म के सिद्धांत पर भरोसा। आत्मा के स्वरूप पर विश्वास, नंबर दो में कर्म सिद्धांत पर विश्वास। संसार के जो भी संयोग-वियोग हैं, वह कर्म के अधीन होते हैं, हमारे अधीन नहीं हैं। तीसरी बात शरीर की नश्वरता का भान और चौथी बात संयोगों की नश्वरता का ज्ञान। चार बातें अपने दिमाग में रखो, कोई भी भय तुम्हारे सामने नहीं आएगा। जैसे आप देखिए डर, सबसे पहला डर किसका होता हैं, मैं फेल ना हो जाऊं, मेरा नुकसान ना हो जाए तो भैया नफा-नुकसान तुम्हारे हाथ में हैं कि कर्मों के हाथ में। जब तक तुम्हारे पुण्य का उदय होगा, सारी दुनिया तुम्हारे खिलाफ होगी, तुम्हारा कोई नुकसान नहीं होगा और पाप का उदय होगा तो खुद इंद्र भी तुम्हारा संरक्षक बनकर क्यों ना आ जाए, तुम अपने आप को नुकसान से बचा नहीं सकोगे, इस बात पर विश्वास रखो। पुण्य-पाप के खेल को समझो, कर्म सिद्धांत पर विश्वास होगा तो तुम्हें लगेगा यह पुण्य-पाप का खेल हैं। महापुरुषों के जीवन को देखो, उनके जीवन में भी कितने उतार-चढ़ाव आए, उनने अपने जीवन में किस भांति ठहराव रखा, वे नहीं डगमगाए, वो कभी नहीं डरे। अंजना को देखो, वो डरी थी क्या, घर से निकाल दी गई और पिता के घर में भी उसे प्रवेश नहीं मिला। वो वन में चली गई, बैखोफ भ्रमण करती रही, कहने को वह अबला थी पर बड़े-बड़े बलशाली पुरुषों के लिए भी वह आदर्श बन गई, यह थी अंजना। किस के बल पर, अंजना को किसका संबल मिला? आत्मा का विश्वास, कर्म सिद्धांत का विश्वास, संयोगो की नश्वरता को उसने जाना, जीवन की नश्वरता को उसने पहचाना, उसके जीवन में ये मोड आ गया। कोई डर नहीं, फेल होंगे तो जो फेल होता हैं वो पास भी होता हैं और फेल होने के डर से परीक्षा ही ना दे, उस व्यक्ति को हम क्या कहेंगे। फेल-पास तो जीवन में लगा हुआ हैं, इसमें डरना क्या। कहीं मेरा अपमान ना हो जाए, मेरे को कोई आर्थिक क्षति ना हो जाए, यह सब तो लगा हुआ हैं, मान, अपमान और सम्मान। ये तो सब बाहर की चीजें हैं, तुम जो हो उसका बाल बांका भी नहीं हो सकता। अपनी आत्मा के स्वरूप पर श्रद्धान करो, तुम्हे डर हैं failure का, तुम्हें डर हैं नुकसान का, तुम्हे डर हैं अपने रिलेशन के खराब होने का और तुम्हें डर हैं अपनी मौत का, तुम्हें डर हैं अपने बुढ़ापे का। क्यों डरते हो, जो संयोग होंगे, उसे हम स्वीकार करेंगे। आज तक जो तुमने चाहा वह हुआ हैं किसी व्यक्ति के साथ, जो-जो तुमने चाहा, वह हुआ हैं क्या, नहीं हुआ। किसी व्यक्ति के साथ, किसी व्यक्ति के पास ऐसी ताकत नहीं कि वह जो चाहे, वह सब हो जाए तो तुम्हारे साथ भी तुम इन बातों को ले करके क्यों घबराते हो, कहीं ऐसा ना हो, कहीं ना ऐसा ना हो, जो हुआ हैं, वह तुम्हें एक्सेप्ट करना पड़ा हैं। मन को तैयार कर लो, आगे जो होगा, उसे मैं एक्सेप्ट कर लूंगा, मन का डर अपने आप दूर हो जायेगा। जिसे अपनी आत्मा पर श्रद्धान होता हैं, जो कर्म सिध्दांत पर विश्वास करके चलता हैं, वह कभी भी डगमगाता नहीं, डिगता नहीं, डरता नहीं, घबराता नहीं। अपने आपको वैसा बनाने की कोशिश कीजिए, मन मजबूत बन जाएगा, कभी नहीं घबराओगे। क्या होगा? अरे जो होगा ऊपर का होगा, धन जाएगा, साख जाएगी, छवि जाएगी, वह तो सब ऊपर की हैं आज हैं कल रहे ना रहे। मुझे तो वह करना हैं, जो करना हैं, कर्म का उदय जैसा होगा, कर्म जैसा खेल खिलायेगा वह खेलेंगे। यह बाहर का खेल हैं, भीतर कुछ परिवर्तित होने वाला नहीं हैं। मैं मर भी जाऊंगा तो ये तन जलेगा, मेरी आत्मा को कुछ नहीं होगा क्योंकि जो मरेगा वह मैं नहीं हूँ, यह तो ऊपर का खोल हैं, मैं तो केवल भीतर हूँ जो हूँ सो हूँ, उसे पहचानो। डर किस बात का? उसे किसी प्रकार का भय नहीं होगा, ये श्रद्धान अपने मन में जमा लीजिए फिर डरोगे नहीं फिर किसी को डराओगे भी नहीं।
अब मैं एक डर आपको दिखाना चाह रहा हूँ, डरने, डराने की बात हो गई, डर भगाने की बात भी मैंने आपको बता दी लेकिन एक डर आपके मन में जगा रहा हूँ, आप का डर दिखाकर। आपको कुछ जगह डरना चाहिए, कहाँ डरो? भगवान से डरो, पाप से डरो, समाज से डरो, कानून से डरो। क्यों? यह डर तुम्हारे मन में एक संकोच उत्पन्न करेगा और तुम्हें अकार्य से रोकेगा। बोलो तुम्हें इस बात का तो डर रहता हैं, लोग क्या कहेंगे, कभी इस बात का डर हुआ हैं, भगवान क्या कहेंगे? लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता तुम्हारे मन में 24 घंटे रहती हैं, भगवन क्या कहेंगे इसके बारे में तुमने सोचा, ध्यान रखो, लोग क्या कहेंगे इस बात को सोचते हुए तुम हो सकता अकार्य में लिप्त हो जाओ लेकिन जिस पल तुम्हारे मन में ये बात आ जाए, भगवान क्या कहेंगे तुमसे कोई भी अकार्य नहीं हो सकता। भगवान का डर रखो, कोई भी बुरा कार्य आदमी करता हैं, बुरा कार्य करते समय आदमी इधर-उधर देखता हैं, कोई देख तो नहीं रहा हैं। बोलो कोई देख तो नहीं रहा हैं, यह मन का डर हैं ना। बुरा करता हैं, वह बेखौफ होकर करता हैं लेकिन आगे पीछे डरता भी हैं और जब देखता हैं कि कोई नहीं देख रहा हैं तो पाप करने में संकोच नहीं करता। वह सब प्रकार की बुराई करने के लिए आमादा हो जाता हैं लेकिन संत कहते हैं, भैया तुम उनको देख रहे हो इधर-उधर कोई देख तो नहीं रहा हैं और भगवान तो सबको देख रहा हैं। जिस दिन यह बात तुम्हारे मन में बैठ जाएगी, कोई अकार्य कर पाओगे। अच्छा यह बताओ, भगवान से छिपा हुआ कुछ हैं, भगवान सर्वज्ञ हैं, वह सर्व चक्षु समान हैं, वह सब जगह देख रहे हैं तो फिर तुम किसको धोखा दे रहे हो। तुम भगवान को मानते हो? ईमानदारी से बोलना, तुम लोग सब छद्म-नास्तिक लोग हो, आस्तिक नहीं हो, तुम भगवान को पूजते जरूर हो पर तुम्हारे मन में मालूम हैं, भगवान हैं थोड़ी, वह थोड़ी देखता हैं, कर लो कोई काम। तुम मंदिर में रहते हो भगवान के सामने कोई गलत काम करना चाहते हो, क्यों? सामने भगवान हैं ना तो यह बताओ दुनिया में ऐसी कौन सी जगह हैं, जहां भगवान की दृष्टि नहीं हैं। हैं कोई जगह जो भगवन की दृष्टि से बाहर हो? नहीं हैं ना, तुम्हे भगवान का डर ही नहीं हैं तो तुम बचोगे कहां से? महाराज डर तो तब हो जब विश्वास हो, भगवान का विश्वास ही नहीं हो तो डर क्या? विश्वास जगाइए और भगवान का डर कीजिए, कभी जीवन में अकार्य नहीं कर पाओगे, जीवन संभल जाएगा। भगवान का डर होना चाहिए, पाप का डर होना चाहिए, कोई भी पाप काम करो तो उसका डर मन में हो। दो तरह के लोग हैं, एक व्यक्ति हैं जो पाप से डरता हैं और एक व्यक्ति हैं जो पाप करके डरता हैं।
पाप करने स डरो, पाप करके मत डरो। पाप कर लिया अब घबराता हैं, मुँह छुपाता हैं, फेरता हैं, टेंशन दिखता हैं अरे अब क्या होगा, पोल खुल गई तो क्या होगा, किसको मुँह दिखाएंगे? पाप करने से डरने वाला शुर होता हैं और पाप करके डरने वाला धूल बन जाता हैं । पहले से डरो, पाप का ह्रदय में डर होना चाहिए कि मैं कोई भी पाप करूंगा, उसका परिणाम केवल मुझे, मुझे और मुझे भोगना पड़ेगा, इसलिए मैं सावधान हो जाऊं। ऐसा कोई कार्य न करुँ, जिससे में अनावश्यक पाप का भागी बनू, यह दृष्टि अपने अंदर होनी चाहिए। हैं तुम्हारे मन में पाप का डर? बड़ी विडंबना हैं, एक भी व्यक्ति इस सभा में हैं, जो कहे नरक जाऊंगा, नरक जाना कोई पसंद करते हो, क्यों नहीं हैं नरक जाना पसंद? नरक में दुःख हैं और पाप के कारण नरक जाते हो। नरक का कारण पाप हैं तो फिर पाप करते क्यों हो? पाप से नरक हैं, ये धर्म सभा में कि बाहर भी। बाहर भी हैं ना, अंदर से विश्वास हैं कि पाप से नरक हैं लेकिन ऐसा विश्वास हैं, दूसरों के लिए, हमारे लिए नहीं हैं। ओर पाप करेंगे, नरक जाएंगे, हम को तो भगवान ने छूट दे रखी हैं पाप करने की, विचार करो, जो जो पाप करेगा वह नरक गामी बनेगा, यदि यह सत्य सिद्धांत हैं ओर इस पर तुम्हारी आस्था हैं तो पाप करने से डरो। पाप का डर होना चाहिए, डर होगा जीवन अपने आप संभल जाएगा फिर तुम्हें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं होगी। यह सकारात्मक डर हैं, जो जीवन को संभाले, जो जीवन को सही दिशा दे, जो जीवन को सुरक्षा दे, जो जीवन के लिए संबल बन जाए वो डर उत्पन्न करो। पाप करेंगे तो नरक जाएंगे लेकिन सब बेखौफ होकर पाप करते हैं। किसी को पाप का सही अर्थ में डर नहीं हैं कहने को डर हैं। पाप करके डरने वाले और पाप करने से डरने वाले इनमे अंतर हैं। डरते हो पाप करने के बाद काश पाप करने से डर पैदा हो जाए तो जीवन बदल जाए, संभल जाए, फिर तुम्हें कुछ ज्यादा उपदेश देने की आवश्यकता और अपेक्षा शेष नहीं रहे। तो भगवान का डर, दूसरे नंबर में पाप का डर। पाप से डरो, आज किसी को पाप का फल भोगते हुए देखो तो खुद भी सोचो कि कल मैं करूंगा तो मेरी भी यही दशा होगी, मुझे उस से डरना हैं और अपने जीवन को उसी अनुरूप आगे बढ़ाने का सत-प्रयत्न करना हैं।
तीसरे नंबर में समाज का डर,अगर तुम्हारे मन में समाज का डर हो ना तो तुम बहुत सारे अकार्य से बच जाओगे। आज आपसे कोई व्यभिचार करने के लिए कहे, आप राजी हो? कोई बुरा कर्म करने के लिए कहे, आप राजी हो? क्यों? समाज में हमारी छवि खराब हो जाएगी, हमारी सामाजिक संहिता के विरुद्ध हैं, यह कार्य हमें नहीं करना। तो इस डर ने तुम्हें एक पाप से बचाया, एक गुनाह से बचाया, एक अपराध से बचाया कि नहीं बचाया हैं। यह डर होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? लोगों को समाज का कोई डर नहीं बचा, हमारी सामाजिकता खत्म हो गई, सामाजिक संहिता ख़त्म हो गई और इसके पीछे जिम्मेदार समाज के कर्णधार हैं जिनके कंधों पर समाज का दारोमदार हैं। उनका खुद का नैतिक बल कमजोर हो गया क्योंकि उनने अपने चरित्र को सुरक्षित नहीं रखा, उनने सामाजिक मर्यादाओ की धज्जिया उड़ाई, समाज का डर सबको खत्म हो गया। अब किसी को कुछ भी करने में कोई संकोच नहीं, पहले कोई भी व्यक्ति कोई भी समाज विरोधी कार्य नहीं करता था, हिम्मत नहीं कर पाता था क्योंकि उसको मालूम रहता था मैं अपनी सामाजिक परंपराओं के विरुद्ध कुछ करूंगा तो समाज मुझे दंडित करेगी, मुझे समाज को जवाब देना पड़ेगा लेकिन आज समाज की ऐसी दुर्व्यवस्था हो गई कि कोई बड़ा से बड़ा अपराध भी क्यों ना कर ले, समाज में उसकी कोई सुगबुगाहट नहीं होती, समाज में उसका कोई एक्शन नहीं होता और लोग फिर इस तरह के हीन स्तर के कदाचार करने लगते हैं, जिससे पूरे समाज को नीचा देखना पड़ता हैं। समाज का डर हो तो बहुत सारे अपराध से बच जाओगे, मन तो अपराधी हैं ही, मन पापी हैं, मन में बहुत सारे विकार भरे हैं और मन हमेशा उलटी दिशा में जाता हैं, उस मन को संभालने के लिए डर चाहिए। ‘भय बिन प्रीत ना होय गुसाईं’ जो बात कही जाती हैं वह इसीलिए कही जाती हैं।
समाज का डर हो और आखिरी कानून का डर, कानून का डर तुम्हें अपराध करने से बचाता हैं। तुमको कोई क्राइम करने के लिए कह दिया जाए, करोगे? अरे महाराज जेल जाऊंगा क्या? कानून के शिकंजे में फसूंगा क्या, मुझे ऐसा नहीं करना। यह चीज किसी भी योग्य आदमी के लायक नहीं हैं। हम कानून को मानते हैं, हमें कानून का डर हैं, जिन्हें कानून का डर होता हैं, वह कोई अपराध करने की नहीं सोचते, हिचकिचाते हैं और जिन्हे कानून का डर नहीं हैं, वह खुले आम अपराध करते हैं। मैं एक जगह की जेल में था, ललितपुर की जेल में, प्रवचन करने के लिए वहाँ के जेल में, बड़े प्रेमी थे, ले गये। मैंने देखा, उपदेश दिया तो मुझे लगा नहीं कि यहां उपदेश देने में आया, मुझे लगा मैं गलत जगह आ गया क्योंकि जितने लोग मेरे सामने बैठे थे, उनमें कोई के अंदर वह भाव नहीं। यद्यपि मैं बड़े-बड़े सेंट्रल जेल में भी उपदेश देकर आया और वहाँ बहुत परिवर्तन देखा लोगों में। पूरे के पूरे कैदियों को आंसू बहाते भी मैंने देखा, अच्छा लगता था। ललितपुर की जेल की बात हैं तो मैंने जब देखा प्रवचन तो कर आया, जब तक श्रोता का रिस्पांस प्रॉपर नहीं हो तो मजा थोड़ी आता हैं। बाद में मैंने जेलर साहब से कहा तो वो बोले कि महाराज यह सब पेशेवर अपराधी हैं, यह casual लीव में यहाँ आते हैं। इनको अपराध का कोई डर नहीं हैं, यह कानून से खेलने वाले लोग अपराध करते हैं, जेल आते हैं और जेल में आकर के सुरक्षित हो जाते हैं, कुछ दिन बाद इनकी बेल हो जाती, इनको अपराध का कोई डर नहीं, कानून का कोई डर नहीं। जिसे कानून का डर नहीं होता वो अपराधी होता हैं और जो कानून का डर रखते हैं वही सभ्य नागरिक बन पाता हैं तो अपने जीवन में उस सभ्यता को जगाना हैं, कानून का डर करो। डर तुम्हारे अंदर होगा तो जीवन सुधर जाएगा तो एक डर हैं जिससे जीवन डगमगाता हैं और एक डर हैं जिससे जीवन में स्थिरता आती हैं। जीवन को डगमगाने और दिखाने वाले डर से अपने आप को दूर करो, उस डर को भगा दो। और जिससे जीवन में स्थिरता आये, जीवन संभले और जीवन सुधरे, उस डर को आत्मसात करो तो तुम्हारे जीवन में कुछ परिवर्तन आएगा, वह डर तुम्हारे लिए सतर्क करेगा और जीवन को सही दिशा देगा। इसलिए डर से डर की डमरु आज बजी हैं, आप उसे सुधारिये और अपने डर को हमेशा हमेशा के लिए दूर भगाइये।