ढंग से जीवन जीने का कला

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ढंग से जीवन जीने का कला

एक दिन एक बच्चा शर्ट पहन कर निकला और नीचे की बटन को ऊपर की काज में लगा लिया, आप समझ सकते हैं नीचे की बटन ऊपर की काज में लगा है तो कैसा लगेगा? उसकी माँ  ने उसे देखा और तुरंत कहा- बेटे! यह कैसे पहनी हैं शर्ट? ढंग से पहन, बटन ढंग से लगा। आज मैं आपसे केवल उसकी ही बात करने जा रहा हूं जैसे एक शर्ट को आप पहनते हुए, एक कमीज को पहनते हो, उस कमीज को पहनने का एक ढंग होता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में जाएं, हर क्षेत्र में, हर क्षेत्र का, हर विषय का अपना एक तरीका होता है, सलीका होता है, ढंग होता है अगर आपने ढंग से किया तो सब ठीक और अगर ढंग ठीक नहीं तो सबकुछ बेठीक।

मुझसे कहा जा रहा है-आज ‘ढ’ पर आपको बोलना है तो मैं अपनी बात ढंग से कह रहा हूं।

पहले तो आप यह बताओ मेरे कहने का ढंग आपको पसंद आया कि नहीं आया, बात ढंग की है। ढंग, जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, हर क्षेत्र में ढंग होना चाहिए सबसे पहली बात। जीने का ढंग, आप जीवन जी रहे, सब कोई जीवन जीते हैं, हम भी जी रहे हैं, आप भी जी रहे हैं लेकिन आप अपने जीवन के ढंग के विषय में कभी सोचते हो? आपके जीने का ढंग क्या हैं? सबके जीने का अलग-अलग ढंग  हैं, अलग-अलग तरीका हैं, जिसकी जैसी रूचि होती है जिसका जैसा चिंतन होता है, जिसकी जैसी सोच होती है या जिसकी जैसी धारणा होती है वह वैसा, उसके जीने का ढंग वैसा बन जाता है, मैं आपसे पूछता हूं-क्या आप अपने जीने के ढंग से संतुष्ट हो? आपके जीने का ढंग ठीक हैं? कई बार लोग एक दूसरे के विरुद्ध टिप्पणी करते हैं और कभी-कभी लोग कहते हैं इनके रंग-ढंग ठीक नहीं हैं, आप की छवि क्या है? आपकी जिंदगी ढंग की हैं या बेढंगी? विचारणीय बात केवल यह है किस तरीके से जी रहे हो? जिसके जीवन जीने का सलीका अच्छा है, ढंग अच्छा है, वे सारे मानव जाति के लिए आदर्श बन जाते हैं और जिनके जीने का ढंग ठीक नहीं होता वे पूरी मानवता के लिए कलंक बन जाते हैं। इस धरती पर वे लोग भी उत्पन्न हुए, जिन्हे हम महापुरुषों के नाम से श्रद्धा प्रकट करते हैं और वह लोग भी हुए जिन्हे हम पूरी मानवता के कलंक के रूप में देखते हैं। अगर ऊपरी तौर पर देखा जाए तो जिन्हे हम महान आत्मा के रूप में पूजते हैं वह भी हमारी ही तरह जन्मे और जिन्हें हम दुरात्मा के रूप में दुत्कारते हैं उनका जन्म भी हमारी ही तरह हुआ। जन्म का ढंग सब का समान, सब मां के पेट से ही निकले लेकिन क्या कारण है कि एक आदर्श बन गए और दूसरे हमारे लिए उपेक्षा के पात्र बन गए, किसने बनाया? कोई पूज्य बना तो क्यों बना और कोई कलंकित हुआ तो क्यों हुआ?

कभी आपने विचार किया, संत कहते हैं – कोई पूज्यता पाता है तो अपने जीने के ढंग के कारण और कोई कलंकित होता है तो वह भी अपने जीवन के ढंग के कारण। तुम्हारे जीने का ढंग कैसा है? थोड़ा अपना रंग-ढंग देखो अगर ठीक है तो फिर कुछ कहने की जरूरत नहीं और गड़बड़ है तो सुधारने की प्रक्रिया प्रारंभ कर लेना चाहिए यदि गड़बड़ है तो इसके सुधार की प्रक्रिया प्रारंभ कीजिए ताकि हम अपने जीवन को ठीक बना सके, जीवन को सुंदर बना सके, कैसा हो हमारे जीने का ढंग? बोलो-जीने का ढंग कैसा हो? दो तरह के जीवन जीने के लोग हमारे सामने हैं और मैं दोनों को आपके सामने उपस्थित करता हूं फिर आप तय करना कि इनमें से अच्छा कौन है और मैं कहां हूं?

पहला! जो अमूमन देखने में आता है, एक आदमी जो बड़ा मतलबी हो, एक आदमी जो बड़ा क्रूर हो, एक आदमी जो बड़ा बदमिजाज हो और एक आदमी जिसमें घोर पाखंड हो, मतलबी, क्रूर, बदमिजाज और पाखंडी किस्म के जीवन जीने वाले व्यक्ति के जीने का ढंग और दूसरी तरफ उदार, सेवापरायण, धर्मात्मा और सदाचारी दयालु व्यक्ति हो, उसके जीने का ढंग। दोनों व्यक्ति आपके सामने हैं दोनों का अपना अलग-अलग है व्यक्तित्व है दोनों में आप किसको पसंद करोगे बोलो- मतलबी को, क्रूर को, बदमिजाजजी को, पाखंडी को, किसको? उदार को, सेवापरायण को, मिलनसार को तो आप अपने भीतर देखिए कि हमारे भीतर का व्यक्तित्व कैसा है? हम अपने भीतर कैसे मनुष्य का निर्माण कर रहे हैं? यह तो हमें खुद को देखना होगा ना और एक बात बताऊं मैं क्या हूं? इसे मैं जान सकता हूं आप नहीं जान सकते तो मेरी कमियों को मुझे खुद ठीक करना हैं और वह तब होगा जब मैं अपने भीतर झाकूँगा।

अपने जीने का ढंग क्या है जिस व्यक्ति के जीने का जैसा ढंग होता हैं उसकी प्राथमिकताएं वैसी होती है।

कुछ लोग हैं जिनकी जीवनशैली में केवल मौज-मस्ती है, जिनके जीवन शैली में केवल भोग-विलास है, जिसके जीवन शैली में केवल रंग-रेलियां हैं, धर्म-कर्म, नैतिकता, सदाचार और मूल्यों का कोई स्थान नहीं। उस व्यक्ति को हम क्या आदर्श मान पाएंगे? संत कहते हैं- ‘अपने जीवन के ढंग की समीक्षा कीजिए और ढंग से जीने का अभ्यास कीजिए।’ हर कदम पर ध्यान रखिए, जीने का ढंग कैसा हो? बस प्रत्येक क्रिया को करने से पूर्व उसके परिणाम पर विचार करने वाले व्यक्ति के जीने का ढंग बहुत अच्छा होता है और जो व्यक्ति क्रिया करता है उसके परिणाम पर विचार नहीं करता उसका ढंग कभी अच्छा नहीं होता।

हम कोई भी कार्य करें देखें, मेरे इस कार्य का, इस क्रिया का क्या परिणाम होगा? मैं अपने हित की पूर्ति करता हूं पर मैं अपने हित की पूर्ति के साथ किसी दूसरे के हितों में बाधक तो नहीं बन रहा हूं यदि मैं अपने हितों की पूर्ति करूं तो इसमें कोई दिक्कत नहीं लेकिन अपने हितों की पूर्ति के लिए औरों के हितों में बाधक बनूँ तो यह तरीका ठीक नहीं है। बस जीने के लिये ऐसा ढंग अपनाइये जिससे कोई आप से कहीं भी तकलीफ न पाए आप अपने जीवन को जिये लेकिन इस बात का ख्याल रखिए कि मेरे किसी कृत्य से किसी को किसी प्रकार का, कभी भी कष्ट ना होने पाए। वह अपने जीवन में एक अलग प्रकार का रस घटित कर सके, आनंद गठित कर सके लेकिन आजकल यह सब बातें बड़ी बेईमानी सी होती जा रही हैं लोग अपने-अपने तरीके से जीते हैं उसमें कोई बदलाव नहीं लाना चाहते और एक बात और मैं देखता हूं लोगों को दूसरों का ढंग समझ में नहीं आता लेकिन खुद के ढंग को बदलने के लिए तैयार नहीं होते यदि तुम्हें दूसरों के जीने का गलत ढंग, दूसरों का गलत व्यवहार तुम्हें पसंद नहीं आता तो तय मान करके चलना तुम्हारा व्यवहार भी औरों को पसंद नहीं आएगा। ढंग से जिये, अपना जीवन इस तरीके से जिये कि हर व्यक्ति के दिल में निवास हो जाए, ऐसा मत जिये कि आप उपेक्षा के शिकार बन जाए, व्यवहार अच्छा रखिए।

चार सूत्र देता हूं आज आपको ढंग से जीने का। वह सूत्र जो आपके जीवन में मधुरता का संचार कर दें, जो आपके जीवन में माधुरी का रस घोल दें, वह सूत्र मैं आप सब से बोल रहा हूं उन्हें अपने जीवन में लाइए।

सबसे पहली बात मृदुभाषी बनिये। अगर आप अपने जीने का ढंग बनाना चाहते हो तो मृदुभाषी बनिये, आपका संभाषण मधुर होना चाहिए। कई बार आप लोग बोलते हैं ना, अरे उनके बोलने का लहजा बड़ा अच्छा हैं,  बहुत अच्छे ढंग से बोलते हैं, ढंग से समझाते हैं, बड़े ढंग की बात करते हैं, उनसे मिलते हैं तो बड़ी प्रेरणा होती है, होती है। ढंग से समझाते हैं, ढंग की बात करते हैं आप ढंग से समझ रहे हो, बोलो ढंग से समझ लोगे तो तुम्हारे जीने का ढंग बदल जाएगा कोशिश तो करो।

पहली बात, बात करने का ढंग ठीक करो, मधुर संभाषण होना चाहिए। बोलिए! ढंग से बोलिए! तुम्हारे मुख में मिठास होना चाहिए।

जिसके मुंह में मिठास, उसका हर दिल में निवास ।  

जिसके मुंह में खटास, कोई ना भटके उसके पास।।

कौन आएगा उसके पास? कोई सामने नहीं आएगा तो बोलते समय थोड़ा विचार करो, मैं बोल रहा हूं, मेरे पास शब्दों की अपार संपदा है तो हम उस संपदा का उपयोग क्यों नहीं करते? कंजूसी क्यों करते?  जब हम किसी को मृदु भाषा में बोलते हैं तो वह हमारा कायल हो जाता है और वही अगर हम कटु भाषा का प्रयोग करते हैं उसका चित्त घायल हो जाता है। तुम्हारे पास जब शब्द हैं औरों को कायल बनाने वाले तो ऐसे शब्दों का प्रयोग करो जो कायल हो जाए, ऐसे शब्दों का प्रयोग क्यों करते हो जिससे सामने वाला घायल हो। तुम्हें तो शब्द है, शब्दों के कोई पैसे तो नहीं लगते लेकिन तुम लोग बड़े कंजूस हो वस्तुतः मुख से अपशब्दों का उच्चारण वैचारिक कृपणता का प्रतीक है जिस व्यक्ति के विचार जितने समृद्ध होंगे और वैचारिक क्षेत्र में जो व्यक्ति जितना उदार होगा उसके वचनों में उतनी ही मिठास होगी, वह कभी हल्की भाषा का प्रयोग नहीं करेगा। वचनों से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता लगता है अगर तुम हल्की भाषा का प्रयोग कर रहे हो तो समझ लेना, उस व्यक्ति की सोच भी हल्की है, भले ओहदा कितना ऊंचा होगा लेकिन उसकी सोच अच्छी नहीं हो सकती। अपनी सोच अच्छी रखो, अच्छे ढंग से बोलो, हमेशा इस बात का ख्याल रखो कि मेरे शब्दों का किसी पर दुष्प्रभाव ना पड़े, मेरे वचनों से सामने वाले के मन में आह्लाद हो, आघात नहीं, उसके मन में राहत आये आहात न हो।  

ऐसा बोलो कि उसका मन खिल उठे, ऐसा मत बोलो कि वह खौल जाए। शब्दों का प्रयोग अच्छा करो और भाई! बात ही बात खेल हैं, कहावत है।

‘बात ही हाथी पाइए, बात ही हाथी पांव’।

एक राजा था, उसको अपना भविष्य जानने की इच्छा हुई, एक ज्योतिषी को बुलाया, ज्योतिषी ने पत्री देखा और कहा महाराज! क्या बताऊं? आपकी कुंडली का योग बड़ा विचित्र है सात पीढ़ी आपके सामने चली जाएगी। राजा एकदम गुस्सा हो गया और बोला- यह कोई ज्योतिषी है, सात पीढ़ी मेरे सामने जाएगी, इसको हाथी के पावं के नीचे कुचला दो। अब राजा ने एक दूसरे ज्योतिषी को बुलाया वह ज्योतिषी बहुत समझदार था, ज्योतिषी समझदार था और उससे पूछा कि हमारा भविष्य बताओ, हमारा हमारी आयु कितनी है? महाराज! आप जैसे पत्री तो बिरलो की होती है आपकी कुंडली में जो जीने का योग मिला है, वह अद्भुत हैं, लोखो में एक-आध की होती हैं , क्या बोलूं? आपकी आयु की बात? आपकी सात पीढ़ी की आयु भी मिला दो तो उससे बड़ी आपकी आयु होगी।क्या हो गया? तो बस दो लाइनें आप से कहता हूं-

‘बातें तो सब एक है, है कहने के ढंग’, बातें तो सब एक हैं, है कहने के ढंग और सीके चने अच्छे लगे, लोन-मिरच के संग’

तो लोन-मिर्च की डब्बी अपने साथ रखो, अपने मुख से ऐसे शब्दों का उच्चारण करो, जो सब व्यक्ति के हृदय में तुम्हारे लिए स्थाई स्थान बना दे। इसमें कंजूसी क्या? कहने का ढंग अच्छा होना चाहिए। आपका व्यक्तित्व इम्प्रेसिव होगा, आप अपने व्यक्तित्व को निखार पाओगे आपका व्यवहार अच्छा होगा तो पहली बार कहने का ढंग सुधारिए, मृदु संभाषण होना चाहिए। यह हमारे जीवन में आए अगर यह चीजें आ गई तो जीवन में बहुत अलग प्रकार का आनंद आएगा।

दूसरा! हमारे व्यवहार में शालीनता हो, वचनों में मृदुता, व्यवहार में शालीनता। व्यवहार शालीन हो, शालीनता तब प्रकट हो जब आपके अंदर विनम्रता होगी अक्कड़पन नहीं होगा। हर किसी का आदर करना सीखिए। आप आदर दोगे तो आदर पाओगे। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका व्यक्तित्व में जान नहीं होती लेकिन अकड़ बहुत होती हैं और मैं तो यही मानता हूं कि वही अकड़ता वही है जिनमें जान नहीं होती। अकड़ता वही है,जिसमें जान नहीं होती।

अकड़ खास मुर्दे की पहचान हैं, अकड़ खास मुर्दे की पहचान हैं, झुकता वही है, जिसमें जान है।

वस्तुतः जिनका व्यक्तित्व उथला होता है वह बहुत अकड़ता हैं। उनके बोलने का -चलने का, उठने का-बैठने का जो ढंग होता हैं, वह अलग ही उनका रोब दिखता है, ध्यान रखना! अपने चाल-ढाल में रुआब दिखाना, बहुत ध्यान से सुनना! चाल-ढाल में रुआब दिखाना और अपने व्यक्तित्व को रुआबदार बनाना, व्यक्तित्व में एक नया आब उत्पन्न करना, दोनों में बहुत अंतर है। जो रुआब या रुतबा दिखाते हैं उसको पीठ पीछे लोग गाली देते हैं और जो अपने जीवन कि आब बढ़ाते हैं लोग उससे अपने सिर पर बिठाते हैं तुम कहां ह? देखो! रुआब झाड़ने वालों में, रुआब दिखाने वालों या अपने आब को बढ़ाने वाले में। अगर तुम्हारे व्यक्तित्व में शालीनता होगी विनम्रता तुम्हारे प्रवृत्ति में दिखेगी और लोग तुम्हें अपना आदर्श बनाएं बिना नहीं रहेंगे। देखना है तो अशोक जी से सीखो- कहीं पर भी में देखता हूँ ,आएंगे अगर थोड़ा लेट हुए सबसे पीछे बैठ जाएंगे, सामान्य व्यक्ति के बीच बैठ जाएंगे जबकि आज यह समाज के सिरमौर है  इनने समाज में वह स्थान बनाया है और समाज इनको वह स्थान देकर गौरवान्वित होती है लेकिन यह खुद कहां पीछे रहते हैं। यह हमारे व्यक्तित्व की शालीनता का एक परिचय।

बधुओं! एक बात मैं आप से कहता हूं लोग कहते हैं-यह आदमी बड़ा, आदमी बड़ा, आदमी बड़ा, आदमी बड़ा, बड़े आदमी की आजकल बड़ी पूछ भी होती है पर मैं आपसे पूछता हूं-आपकी नजर में बड़ा आदमी कौन है? बोलो! मैं किसी बड़े आदमी की बात करूं तो आपकी आंखों में कैसे व्यक्ति की छवि उभरेगी? थोड़ा ईमानदारी से बोलना! हाँ, क्या बोल रहे हो? ओम जी जैसे। हाँ ओम जी! भी उदाहरण हैं कद छोटा है लेकिन वक्तित्व बड़ा है लेकिन मैं आप से कहता हूं बड़ा आदमी, अमुमन बड़ा आदमी का मतलब जिसके पास बड़े बाग, बड़े ठाठ हो, बढ़ा रुतबा हो उसको बड़ा कहा जाता है। यह तो मेरी सभा में तुम लोग ऐसा बोल रहे हो -मुझे मालूम हैं लेकिन मैं तुम्हें एक बड़े आदमी की पहचान बताता हूं, बड़े आदमी की पहचान बताता हूं बड़ा आदमी कौन? जिसके पास जाने वाला कभी अपने आपको छोटा महसूस ना करें, वह आदमी बड़ा आदमी है। वही आदमी बड़ा आदमी हैं, जिसके पास छोटा से छोटा आदमी भी जाए और उसे अपने आप को छोटा महसूस ना करना पड़े वह बड़ा आदमी है और ऐसे आदमी का बड़प्पन होता है जो सबको अपने हृदय से लगाता है, यह शालीनता है। जीवन में यह गुण उभरना चाहिए, जीवन में गुण उभरना चाहिए तो जीवन का एक अलग रस होगा, एक मजा होगा, अपने भीतर उसे घटित करने की कोशिश करो। आज ऐसी शालीनता की मूर्तियां कम दिखती हैं, बहुत कम। ध्यान रखना! ऊचांई सदैव गहराई सापेक्ष होती है कोई भी पेड़ उतना ही ऊंचा जाता है जितनी कि उसकी जड़े गहराती है अगर ऊपर उठना चाहते हो तो जड़ को गहरी बनाओ। व्यक्तित्व में शालीनता नहीं चाहिए, अपनी जीवनशैली में इसे अपनाओ, जीवन निखर उठेगा।

तीसरी बात सरलता, सरलता। जीवन में कुटिलता ना हो, कृत्रिमता ना हो, जिसके जीवन में सरलता है उसके जीवन में उसका जीने का ढंग सही है और जहां कुटिलता है वहां ढोंग है, ढंग के बाद क्या होता है? ढोंग । आजकल सरल लोग कम मिलते हैं सरलता का ढोंग करने वाले लोग ज्यादा मिलते हैं और आजकल तो ढोंग बहुत बढ़ गया, लोग ढोंग करते हैं ,ढोंग रचते हैं, ढोंग दिखाते हैं और आज मैं आपको ढोंग मिटाने की बात करूंगा अगर जीने का ढंग समझ जाओगे तुम्हारे जीवन का ढोंग खत्म हो जायेगा। ढोंग का मतलब क्या है, दिखावा। ढोंग का मतलब क्या है, प्रदर्शन। ढोंग का मतलब क्या है, नौटंकी। ढोंग का मतलब क्या है,कुटिलता। ढोंग का मतलब क्या है, छल।

यह सब चीज़े ढोंग के अंतर्गत आते हैं और आप देखिये! आपके जीवन में ढंग हैं या ढोंग? कई मौके ऐसे आते हैं जब आप भांति-भांति के ढोंग रचते हो या ढोंग दिखाते हो। होना कुछ और दीखना कुछ, इसका नाम ही ढोंग है। नाटक रचते हो आप लोग! ऊपर से आंसू बहाते हैं और अंदर-अंदर कुछ का कुछ कह देते हो, बाहर सहानुभूति प्रकट कर रहे हो और अंदर से खुशी हो रही है, यह जो ढोंग है, ढंग से मुक्त होइए। लोग कई तरह के ढोंग रचते हैं कुटिलता लोगों के पास होती है।

एक कुम्हार था, उसका गधा बीमार था उसे मिट्टी लाने जाना था जंगल में तो अपने पड़ोसी के यहां गया और बोला- भैया! एक काम करो थोड़ी देर के लिए गधा दे दो थोड़ी देर के लिए अपना गधा दे दो मुझे जंगल से मिट्टी लाना है जरूरी काम है। उसने कहा- क्या बताऊं? भाई! तुम्हें तो गधा मैं दे देता आज तक तो कभी मना किया क्या तुम्हारे लिए?  तुमने कुछ बोला-मैंने मना नहीं किया, क्या बताऊ, गधा तो जंगल चरने गया है, गधा तो जंगल चरने गया है जैसे ही उसने बोला गधा जंगल चरने गया, पीछे बंधा हुआ गधा जोर-जोर से रेंकने लगा। उसने कहा-गधा जंगल चरने गया, पीछे बंधा हुआ गधा जोर-जोर से रेंकने लगा। उसने कहाँ हद हो गई भाई! गधा तो भीतर रेंक रहा है और तुम कह रहे हो गधा जंगल चरने गया हैं उसने कहा -क्या कहते हो-‘जी आदमी की बात पर भरोसा नहीं जानवर की बात पर भरोसा करते हो’।

ढोंग और दिखावे ने मनुष्य की विश्वसनीयता को खत्म कर दिया। कहीं का कुछ भी होता है आप अपने जीवन व्यवहार में देखे, कई बार आप कई तरह की बातें रखते हैं. करते हैं लेकिन अंदर से क्या होते हैं अगर ऐसा कहीं है, तो वह सब ढोंग है। आपके ढोंग कई रूप में आते हैं साधारण आदमी अपने आपको करोड़पति दिखाने का ढोंग करता है। कई बार लोगों को ज्ञान बिल्कुल नहीं है, लेकिन ज्ञानी बनने का ढोंग करता है। हम लोग देखते हैं -समझ में आ जाता है, ढोंग जल्दी पकड़ में आ जाता हैं, ज्यादा देर नहीं लगती। हर व्यक्ति जान ले लेता है, आदमी साधारण हैं और अपने आप को विशेष बनाने का जब वह प्रदर्शन करता और उसके लिए ढोंग रचता है तो हर समझदार आदमी उसे पकड़ लेता है कि यह कितने पानी में हैं। कई बार लोग अपना ज्ञान दिखाने के लिए हम लोगों के सामने आते हैं, सामान्य व्यक्ति  उसकी बात को भले न समझ पाए पर जो यथार्थ में ज्ञानी वह जान लेते हैं कि यह कितना पानी में है? कई बार मैंने देखा! कई लोग अपनी बात को प्रकट करने के लिए कई तरह का तरीका अपनाते हैं और ढोंग करते हैं और देखो! कैसा ढोंग होता है लोगों का आप। करने की चतुराई कैसी होती हैं, तरीका क्या होता है?

एक बार गुरुदेव के पास एक बहन जी शिकायत, निवेदन कर रही थी, अपनी पीड़ा प्रकट कर रही थी कि महाराज जी पंद्रह दिन से चौके में आहार नहीं हुआ, पंद्रह दिन हो गए चौके में आहार नहीं हुआ, पंद्रह दिन से चौका खाली जा रहा हैं आहार नहीं हुआ। एक बहन जी दूसरी, उसके बाजू में बैठी थी बोली- हे बाई ऐसा कहा जाता है क्या? हे बाई महाराज से ऐसा कहा जाता है क्या? हम तो नहीं कहे, हमारा बीस दिन से खाली जा रहा हैं। बहुत चतुराई से अपनी बात कह दी।

बंधुओ! कभी भी कोई काम करो, सरलता से करो अगर हमें किसी चीज को मना भी करना पड़े तो उसे मना कर देना अच्छा है, हाँ करके उसको लटकाने की अपेक्षा। कई बार लोग बोलते महाराजजी! यह सब नहीं करे तो व्यवहार खराब हो जाता है थोड़ा बहुत तो करना पड़ता है सीधे-सीधे ना कर दे तो फिर हमारा व्यवहार कैसे चलेगा? भैया! जब वास्तविकता पता चलती है तो फिर क्या होता है बोलो! ध्यान रखो-कितनी सरलता रखोगे, उतने सुखी होंगे और जितनी कुटिलता रखोगे, उतने दु:खी होंगे। जीवन में हर क्षेत्र में सरलता होनी चाहिए यदि किसी व्यक्ति ने आप से कुछ कहा और वह आप करने की स्थिति में हो तो कर दो और करने की स्थिति में नहीं हो तो विनम्रता के साथ हाथ जोड़ लो की भाईसाहब! आपने कहा तो जरूर लेकिन मैं इसे करने की स्थिति में नहीं हूं, क्या होगा? तकलीफ तब होती है जब सामने वाला करने की स्थिति में होता और ना करता। तुम इतने उदार बनो कि करने की स्थिति में हो तो जरूर कर दो और करने लायक नहीं हो तो इंकार कर दो, हाँ कर लटकाने का क्या काम और उसके लिए झूठ का इस्तेमाल करने का क्या काम? बड़ा विचित्र रूप है यह कुटिलता हैं जो ढोंग को जन्म देती है और यह ढोंग मनुष्य के जीवन में नीचे से शुरू होता और बहुत बड़ा रूप ले लेता है। ढोंग मनुष्य को पाखंडी बनाता है कई बार व्यक्ति ऊपर से बड़ा पवित्र दिखता है लेकिन भीतर पाखंड पालता रहता है ऐसे व्यक्ति को ढोंगी कहा जाता है जब तक पता ना लगे तो दुनिया उसे पूजती है सम्मान देती है जिस दिन उस की पोल खुलती है सारे जगत में दूर-दूराया जाता है। संत कहते हैं- ‘अपनी असलियत को सामने रखो नहीं तो कभी रंगा सियार की तरह तुम्हारी हालत खराब हो जाएगी’।  

ढोंग कभी मत करना, सरलता से पेश आना और मैं तुमसे एक बात और करता हूं कदाचित अपने जीवन व्यवहार में थोड़ा-बहुत ढोंग हो जाए तो हो जाने देना, धर्म के क्षेत्र में कभी ढोंग मत करना जितना बने उतना धर्म करो, धर्म में दिखावा मत करो, धर्म में ढोंग मत करो। तुमने जो बाना धारा है उस बाने की पवित्रता को बनाकर रखो तुमने जो छवि बनाई है उस छवि को बेदाग रखो उसमें कभी कोई दाग नहीं लगने दो। ऊपर-ऊपर से तो तुम कुछ और रहो और भीतर से कुछ और हो जाओ यह ठीक नहीं, यह घोर आत्मवंचना है इसका परिणाम बहुत कुटिल होगा। क़ुरलकाव्य में ऐसे लोगों के लिए कहा गया है- कि जो ऊपर से धर्मी होते हैं और भीतर से पाप पालते हैं उनकी दशा उस बहेलिए की तरह है जो झाड़ियों की ओट में छिपकर चिड़ियों का शिकार करता है। गहराई से समझिए, ऊपर से धर्मी होने का बाना तुमने ओड़ दिया और भीतर से पाप कर रहे हो तो इससे बड़ा अपराध और कोई दूसरा नहीं। चाहे साधु हो या गृहस्थ, धर्म के क्षेत्र में तुम जो भी रहो एकदम साफ-सुथरे रहो तुम्हारी यह जवाबदारी हैं क्योंकि तुम्हारे सफेद चादर में लगने वाला एक छोटा सा दाग भी पूरी समाज को कलंकित करता है शर्मसार कर देता है यह जवाबदेही तुम्हारी है कि तुम जो हो अपनी असलियत के साथ रहो, तुम हर पल स्वरूप को ध्यान में रखो तो ढोंग तुम्हारे जीवन में कभी नहीं आएगा।

मैं साधु बना हूं, हम रोज सोचते हैं, मैं श्रमण हूं समाज मुझे एक सम्मान देती है, उच्च आसान पर बिठाती है तो मैं श्रमण हूं इसका आभास मेरे मन में होता है और हर पल मैं यही सोचता हूं कि मैं श्रमण हूं तो श्रामणय की कसौटी पर मुझे खरा उतरना है ऐसा कोई काम नहीं करना जिससे पूरे श्रमण परंपरा पर लोग उंगली उठाए यह जवाबदारी मेरी है जिससे में संभालता हूँ। मेरे भीतर की यह जागरूकता ही मुझे संभाली है नहीं तो नाटक करने की बुद्धि तो हर इंसान के पास है मैं भी बहुत नाटक कर सकता हूं आपके सामने आऊं तो परम ज्ञानी बन जाऊं और भीतर रहूं तो मैं क्या हूं? मैं जानू। संत कहते हैं- ऐसा करने वाला दुनिया को धोखा नहीं देता खुद के साथ धोखा करता है तो साधू अपनी को साधुता की कसौटी पर खरे उतरना चाहिए उसे अपनी चर्या में कोई दाग नहीं लगाना चाहिए और जीवन में कोई ढोंग नहीं होना चाहिए जो भी काम करें ढंग से करें और ढंग क्या है? आगम ही ढ़ंग है और आगम की मर्यादा ही ढ़ंग है जो आगम की आज्ञा हैं  जो शास्त्र की आज्ञा हैं जो गुरु ने हमारे लिए मर्यादा खींचकर दी है उसके भीतर रहना तुम्हारा जीवन सफल है उसका उल्लंघन कर दोगे जीवन बर्बाद। वहां सावधान हो, यह साधु जीवन की बात है जो इसकी मर्यादा का पालन करते हैं वह अपने जीवन को धन्य कर लेते हैं और हमे करना चाहिए, कोई दिखावे की जरूरत नहीं। तुम जैसी स्थिति में हो वैसे ही रहो, कोई बुराई नहीं अगर तुम साधु हो करके साधुता का पालन नहीं करते तो इससे पूरा साधु मार्ग कलंकित होता हैं,तुम्हारे पास क्षमता नहीं है गृहस्थ रहो ना। नीचे रहकर ऊपर का काम करना अच्छा है ऊपर की भूमिका में रहकर नीच कर्म करना अच्छी बात नहीं है यह बात हर व्यक्ति को हर पल सोच कर चलना चाहिए।

दूसरी, आप धर्मात्मा हैं, धर्म करते तो धर्म कीजिए, जी भर कर के कीजिए क्योंकि धर्म से अच्छा और कोई आलम्बन है ही नहीं लेकिन ढंग से धर्म कीजिए, ढंग से बोलिए, ढंग से व्यवहार कीजिए, ढंग से जीवन में सरलता रखिए और धर्म ढंग से कीजिए। आजकल लोग धर्म कम करते हैं धर्म का दिखावा ज्यादा करते हैं अगर व्यक्ति धर्म कर रहा है और धर्म करने के बाद भी उसका रंग-ढंग वही है तो फिर क्या मतलब? आजकल लोगों के साथ ही होता है सब कुछ सुनते हैं, धर्म सुनते हैं, सब कुछ सुनते हैं पर अपना ढर्रा नहीं बदलते, पुराने ढर्रे पर चलते हैं, यह ‘ढ’ ही हैं ना, ढर्रा बदलिए, ढंग बदलिए, ढोंग मत कीजिए, दिखावा मत कीजिए, क्या करते हैं आप? आजकल कई बार लोगों के साथ ऐसा होता है कि धर्मी होने के बाद भी अपने जीवन में जब धर्म को स्थान नहीं दे पाते तो दूसरे लोग धर्म से विमुख होने लगते हैं।

मैं सम्मेद शिखरजी में था। दिल्ली का एक परिवार आया, उनके साथ एक युवक भी था माता-पिता ने कहा कि महाराज! इससे कहिए कि यह थोड़ा धर्म करें मैं जैसे ही उस बच्चे की तरफ मुखातिब हुआ उस लड़के ने कहा- महाराज! यदि धर्म का यही रूप है जो मेरे पिताजी करते और माँ करती है तो मुझे ऐसे धर्म से एलर्जी हैं यदि धर्म का यही रूप है जिसे मेरे पिताजी करते हो और माँ करती है तो मुझे ऐसे धर्म से एलर्जी हैं। मैंने कहा- क्या मतलब?  बोला- महाराज! मेरे पिताजी सुबह पाँच बजे मंदिर जाते हैं, मंदिर का दरवाजा ये ही खोलते हैं सामायिक करते हैं, अभिषेक करते हैं, पूजन करते हैं, स्वाध्याय करते हैं, नौ बजे के पहले कभी घर नहीं आते, मेरी माँ का भी यही क्रम है। महाराज! रोज पूजन, अभिषेक, स्वाध्याय आदि सब कुछ करते हैं और आप मुनिगण आ जाए दस-साढ़े दस बजे के पहले घर नहीं लौटते पर महाराज जी! क्या बताऊं? घर आते ही आसमान फाड़ देते हैं इतना गुस्सा करते हैं, बात-बात पर इतना गुस्सा करते हैं कि इतना गुस्सा तो शायद ही कोई करता हो और महाराज! लालच इनका इतना हैं कि उसका कोई हिसाब ही नहीं और जब यह दुकान पर आते हैं तो इनका कोई ईमान नहीं बचता तो मैं सोचता हूं यह मंदिर जाकर क्या करते हैं यह तो समय की बर्बादी ही है, इतना धर्म करने के बाद भी इन में परिवर्तन नहीं तो उस धर्म से क्या लाभ? बोलिए! कहीं आप लोगों में ऐसा व्यक्ति नहीं छिपा हैं। खूब मंदिर में पूजा-पाठ कर रहे हो, भक्ति कर रहे हो, गुरुओं के पास दान-पुण्य कर रहे हो और धर्म ध्यान में आगे लग रहे हो, जीवन व्यवहार को कितना बदल रहे हो जिसके लिए यह सब कर रहे हो वह पा रहे हो या नहीं? अगर प्रयोजन को प्रकट कर रहे हो तो तुम्हारा धर्म ढंग का है अगर प्रयोजन दूर भाग रहा है तो वह सब ढोंग है। ऐसा करके तुम समाज में धर्मी  होने का लेबल तो लगवा सकते हो लेकिन धर्मी नहीं।

कई बार ऐसा होता हैं, मैं एक स्थान पर था प्रवचन हुआ, प्रवचन के बाद एक सज्जन जो मंच का संचालन कर रहे थे वह मेरे पीछे-पीछे आ गए। समाज के लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति और वह मेरे पीछे-पीछे आए मेरे चरणों में शीश रखा और फूट-फूट कर रोना शुरु कर दिया। मैंने देखा यह आदमी इतना भावुक क्यों? सब को अलग किया दरवाजा बंद करवाया पूछा – क्यों क्या बात है? पूछा, क्यों क्या बात है? बोले- महाराज! आज आपने मेरी आंखें खोल दी, आज आपने मेरी आंखें खोल दी, मेरा हृदय घोर आत्मग्लानि से भरा है, मेरा मन मुझे भीतर से कचोट रहा है। मैने कहा -क्या बात हो गई? बोले – महाराज जी! आज मुझे लगा कि अभी तक मैंने केवल धर्म का ढोंग किया है महाराज! हाई सोसाइटी के नाम पर मैंने हर वह कर्म किया जो मुझे नहीं करना चाहिए पर महाराज! समाज में मेरा अलग स्थान है लोग मुझे बड़े धर्मी के रूप में जानते हैं। मेरी अलग प्रतिष्ठा, आप गुरुजनों का भी मेरे प्रति एक अलग प्रकार का आशीर्वाद, आप सबका स्नेह और कृपा मुझ पर बरसती है और समाज मुझे सम्मान देती है लेकिन आज आपने! उस दिन मेरे प्रवचन का विषय था ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ और प्राय: लोग उस दिन द्रवीभूत हो गए थे कुछ ऐसी धारा बह निकली थी तो उस व्यक्ति ने कहा बोला- महाराज! आज समाज में, मैं धार्मिक जाना जाता हूं लेकिन आज मेरा ध्यान गया कि मैं असल में क्या हूं? मैं जब अपने लोगों के बीच रहता तो मैंने क्या-क्या नहीं किया? महाराज! आज मेरी आत्मा मुझे कचोट रही है, मुझे लगता हैं अभी तक तो मैं ढोंगी बना रहा महाराज! मेरा उद्धार कीजिए मैंने उन्हें सम्बोधा! और कहा- ‘सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता’ कोई बात नहीं, आज से ही सुधर जाओ तो सुधर जाओ, जब जागो तभी सवेरा! और उस व्यक्ति ने कहा महाराज! मेरे जीवन के अठावन वर्ष व्यर्थ हो गए आज मैं अपनी सारी बुराइयो को त्यागता हूं अपने जीवन में बदलाव लाता हूं। उस व्यक्ति ने संकल्प लिया, जीवन बदल गया और संयोग कुछ ऐसा रहा, उस घटना के तीन महीने बाद उस आदमी का हार्ट फ़ैल हुआ लेकिन इस दुनिया से गया तो सुधर करके गया, नमोकार जपते हुए गया।

ऐसा एक नहीं अनेक उदाहरण मिल जाएंगे। धर्मी होने का लेबल तो तुमने लगा लिया, तुम्हारे भीतर धर्म की छाप पड़ी या नहीं है यह तुम्हें देखना है। दूसरों में मत देखना है कि यह कितना धर्मी है? आजकल उल्टा होता है लोग दूसरों के आगे थर्मामीटर लगाते हैं, देखते हैं वह धर्मी है कि नहीं, अरे भैया! अपने गिरेबान में झांक कर देखो! गुरुदेव कहते हैं – ‘दूसरों के घर झाड़ू लगाने से तुम्हारे घर का कचरा साफ नहीं होगा’ दूसरों को मत देखना, खुद को देखना, खुद के भीतर देखने की कोशिश करना तो तुम जीवन का असली आनंद ले पाओगे, मजा ले पाओगे अन्यथा सब कुछ व्यर्थ और विनष्ट हो जाएगा तब तुम धर्मी हो, धर्म करते हो, समाज में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हो तो तुम जो सम्मान पाते हो उस लायक हो या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं जैसा लोक में तथाकथित सफेदपोशों के भीतर का श्याहा आचरण होता है वह तुम्हारे साथ जुड़ा है आज देश में ऐसा ज्यादा होता है बहुत से सफेदपोश हैं जो श्याहा आचरण से जुड़े हुए हैं सामने आये तो क्या आये ,इतने अच्छे आदमी लेकिन भीतर से क्या है तुम्हें सुधारना है भीतर से अच्छा बनो, जीवन धन्य होगा, जीवन सुखी होगा और तब अपने जीवन में कोई सार्थक उपलब्धि कर पाओगे तो तुम्हारे जीवन में कोई ढोंग नहीं रहना चाहिए कोई कुटिलता नहीं होनी चाहिए ढंग का जीवन होना चाहिए।

मैं आप से कहता हूं- धार्मिक तुम बन गए हो बहुत अच्छी बात है धर्मात्मा बनने का प्रयास करो। धार्मिक वह है जो धर्म की क्रिया करें और धर्मात्मा वो है जिसकी आत्मा में धर्म बसे। धार्मिक क्रिया करें और धर्मात्मा वो है जो धर्म को अपनी आत्मा में बसा ले, धार्मिक व्यक्ति का धर्म उसके पूजा-पाठ और धार्मिक क्रियाओं तक सीमित रहता है और धर्मात्मा व्यक्ति का धर्म उसके प्रत्येक विचार और व्यवहार में प्रतिबिंबित होता है। अपने भीतर एक धर्मात्मा को जन्म दो अगर तुम सच्चे धर्मात्मा हो पाप से विमुख हो जाओ अगर पाप कर रहे हो तो अपने आपको धर्मात्मा मत समझना। मर्यादाहीन कोई आचरण नहीं होना चाहिए जीवन में किसी प्रकार की अनैतिकता नहीं होनी चाहिए तब तुम अपने जीवन में कोई शाश्वत उपलब्धि घटित कर सकोगे और जीवन को सार्थकता प्रदान कर सकोगे अन्यथा सब कुछ व्यर्थ हो जाएगा तो बस आज ‘ढ’ की बात है ढंग से जीये , ढोंग को छोड़िए ,ढोंग मिटाइए, ढोंग-धतूरे से अपने आप को बचाइए, ढकोसले-बाजी से अपने आप को दूर कीजिए और अपने जीने का ढर्रा बदल दीजिए इसी शुभ भाव के साथ।

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