तनावमुक्त जिंदगी जीने के मूल मंत्र
एक बार एक युवक ने पूछा- कि महाराज! जब चारों ओर घोर अंधेरा हो, कुछ भी ना सुझे तब क्या करें? जब सब तरफ के रास्ते बंद हो, कोई मार्ग ना दिखे तो क्या करें? जब चित्त में घोर हताशा के बादल छा जाए तो क्या करें? जब मन एकदम अशांत और असंतुलित हो जाए तो क्या करें? मैं समझता हूँ – यह सवाल किसी एक व्यक्ति का नहीं हर व्यक्ति का हैं। जब कभी भी मनुष्य के सामने इस तरह की विषम परिस्थितियां निर्मित होती है उसका चित्त एकदम अशांत और उद्दिग्न हो जाता है मन में अनावश्यक तनाव उत्पन्न हो जाता है जो मनुष्य के चित्त को चंचल, व्यग्र और बेचैन बना देता है। आखिर इससे कैसे बचा जाए? जीवन में जब कभी भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो तो हम क्या करें? आज मैं उसकी ही बात करने जा रहा हूँ। हमारी जिंदगी की क, ख, ग में आज है ‘त’ की बात, ‘त’ मतलब तनाव।
हर मनुष्य के अंदर किसी ने किसी प्रकार का तनाव होता है तनाव सर्वथा बुरा नहीं है तनाव अच्छा भी होता है तो तनाव बुरा भी होता है जब हम सकारात्मक आगे दिशा में आगे बढ़ने के लिए कोई तनाव करते हैं तो वो तनाव आगे बढ़ने की प्रेरणा बनता है और ऊर्जा मिलती है लेकिन जब तनाव नकारात्मक दिशा में बढ़ता है तो वह हमारे शरीर में अनेक प्रकार की विकृतियों उत्पन्न करता है और हमारे जीवन के संतुलन को खंडित कर देता है, छिन्न-भिन्न कर देता हैं। आज मैं बात आपसे कर रहा हूँ उस तनाव की, जो आपके जीवन को घोर बेचैन बनाता है। आज हर व्यक्ति के अंदर किसी ने किसी प्रकार का तनाव है और चिकित्सक कहते हैं इस तनाव की वजह से अनेक प्रकार की भयानक बीमारियाँ होती हैं। आज डाइबिटीज, ब्लड प्रेशर, जो हार्ट की प्रॉब्लम है, और कोलाइटिस जैसी बीमारियाँ, अल्सर जैसी बीमारियाँ, यहाँ तक कि कैंसर जैसी विघातक बीमारी भी तनाव की अधिकता से होती हैं। सवाल है तनाव क्या है? तनाव क्यों होता है? तनाव से बचने का उपाय क्या है?
सबसे पहली बात तनाव है क्या? परिस्थिति और मन:स्थिति के बीच में सामंजस्य ना हो पाने का नाम ही तनाव हैं, सिचुएशन कुछ हो और हमारे भीतर की इमोशंस कुछ हो। जो सिचुएशन और इमोशंस में बैलेंस नहीं बना पाते वे सदैव तनावग्रस्त रहते हैं और जो सिचुएशन के साथ अपने इमोशंस को सेट कर लेते हैं उनके सामने चाहे जैसी परिस्थितियां क्यों ना हो, कोई टेंशन नहीं होता। आप थोड़ा सा विचार करके देखे, कितने भी प्रकार का, कैसा भी तनाव है यह परिभाषा सब जगह लागू हो जाती है, सबसे पहले सिचुएशन को देखिए। संसार में ऐसा एक भी व्यक्ति आपको नहीं मिलेगा जो यह कहे कि मेरे साथ सदैव मेरे अनुकूल परिस्थितियां रहती है, किसी के साथ नहीं। आप औरों की बात जाने दीजिए, भगवानों को भी प्रतिकूल परिस्थितियों के दौर से गुजरना पड़ा हैं वह भी नहीं बच पाए तो हम-तुम किस खेत की मूली हैं। परिस्थितियां बनती हैं, बदलती हैं, वह हमारे हाथ में नहीं हैं,हैं क्या? कभी तुम सोचो- सारे समय, हर समय एक सी सिचुएशन रहे, संभव ही नहीं है। दिन के बाद रात होगी, होगी, होगी और भाई! रात होगी तभी तो प्रभात होगी अगर रात ही नहीं तो प्रभात कहाँ? अंधेरा ही नहीं तो उजाले का महत्व कहाँ? यह प्रकृति का नियम है, यह निसर्ग का नियम हैं, यह व्यवस्था है इसे कोई बदल नहीं सकता। मनुष्य के जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं क्योंकि हमारी जिंदगी सपाट मैदान की तरह नहीं है जिसमें सदैव एकरूपता हो। हमारा जीवन तो नदी की तरह है जिसे कई-कई दुर्गम घाटियों को पार करना पड़ता हैं, जिसमें ढेर सारे घुमाव और मोड़ होते हैं, उनमे हमे अपनी जीवन यात्रा को पूरी करनी हैं यह जीवन की अनिवार्यता हैं। इसे कोई टाल नहीं सकता, इसे कभी नकारा नहीं जा सकता। जो इस हकीकत को समझते हैं वह जीवन में आगत किसी भी परिस्थिति से घबराते नहीं और जो इस हकीकत को नहीं समझते जब कभी भी ऐसी कोई विषम स्थिति आती है अंदर से घबरा उठते हैं उनके मन में सबसे पहले उस परिस्थिति को देखकर एक प्रकार का तनाव उत्पन्न होता है और यही तनाव आगे चलकर के अवसाद का कारण बन उसे डिप्रेशन का शिकार बना देता है। यह परिवर्तन ऐसा चलता रहता हैं मैं आपसे पूछता हूँ – आपके जीवन में देखिये- हमेशा अनेक प्रकार की स्थिति आती है उस समय मन में तनाव आता है आप तनाव से बचना चाहते हो परिस्थिति को बदलने की कोशिश करते हो परिस्थितियां बदल सके, बदल लो लेकिन ना बदले तो।
मेरे सामने जब युवक ने सवाल किया तो मैंने उससे एक सवाल किया कि यह बताओ तुम जा रहे हो और सामने पहाड़ आ जाए तो क्या करोगे? जा रहे हो, पहाड़ आ जाए तो क्या करोगे? गाडी को पहाड़ पर चढ़ाओगे?
युवक बोला: नहीं, पहाड़ पर नहीं चढ़ाऊंगा।
महाराज जी: रिवर्स आओगे?
युवक: नहीं रिवर्स भी नहीं आऊंगा,
महाराज जी: क्या करोगे?
युवक: डायवर्जन देखूंगा, डायवर्जन कहाँ हैं, डायवर्जन को पकडूँगा और पहाड़ को पार कर लूंगा।
मैंने कहा- बस तुमसे मैं यही कहता हूँ जब भी किसी परिस्थिति का पहाड़ तुम्हें अपने सामने दिखे घबराओ मत। पहाड़ से टकराओ भी मत, गाडी को रिवर्स भी मत लाओ, डायवर्जन देखकर के, गाडी को डाइवर्ट करो और पहाड़ को पार कर लो। डाइवर्ट कीजिये अपने आप को, मतलब!
पहली कोशिश परिस्थिति को बदलने की हो और परिस्थिति ना बदल पाए तो अपनी मन:स्थिति को बदलिए। मनःस्थिति बदल जाए कभी तनाव नहीं होगा, कभी भी तनाव नहीं होगा, कोई भी बात को लेकर आप अपने मन के तनाव को टटोलिये। जब भी आप तनाव में होते हैं जैसा मैंने कहा- सिचुएशन और इमोशंस में बैलेंस ना बनाने के कारण होते हैं मन में भावनाएं कुछ होती हैं और परिस्थितियां कुछ होती हैं। इच्छाएँ कुछ होती हैं, परिस्थितियां कुछ होती हैं, अपेक्षाएं कुछ होती हैं, परिस्थितियां कुछ होती हैं। हमारे जीवन का संतुलन बिगड़ता है, मन में तनाव उत्पन्न हो जाता है। क्या करें? कोशिश करो। महाराज! फिर क्या करें परिस्थितियों के आगे अपने आप को सरेंडर कर दे, अपने में कुछ परिवर्तन करने की बात ना करें अगर ऐसा नहीं करेंगे तो ग्रोथ कैसे होगा? हम आगे कैसे बढ़ेंगे? हम बोले- आगे बढ़ो, आगे बढ़ने का कही निषेध नहीं हैं, प्रयास करो उसका भी कही निषेध नहीं, बस बात तो केवल इतनी सी हैं सब कुछ करो, प्रयास करो, परेशान मत होओ, आगे बढ़ो पर घबराओ नहीं। धर्म कभी भी मनुष्य की प्रगति को रोकने की बात नहीं करता धर्म और अध्यात्म मनुष्य को उसकी प्रतिगति से बचाता है। प्रगति और प्रतिगति इन दोनों में अंतर है, हम आगे बढ़े यह प्रगति है और जाना कहीं हो और पहुंच कही जाये यह प्रतिगति है। प्रोगेसिव बनने में कोई बुराई नहीं है बनिये, आगे बढ़िए, सतत प्रयास कीजिए लेकिन उसकी चिंता अगर आप करोगे तो आपकी सारी गति अवरुद्ध हो जाएगी, आपके मन की शांति उससे खंडित हो जाएगी, उससे अपने आप को बचा करके चलना चाहिए। उसकी तरफ से अपने आपको बचाइये।
आज मैं कुछ टिप्स आपको देना चाहता हूँ , विपरीत परिस्थितियां मनुष्य के तनाव का सबसे प्रबल कारण है और जब भी विपरीत परिस्थिति आए उस घड़ी अपने उस तनाव से अपने आपको कैसे बचाए उसकी लिए चार बातें आपसे करता हूँ , हर मनुष्य के साथ है। जब भी विपरीत परिस्थिति निर्मित हो, सबसे पहली बात अपने दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश कीजिए, अपने एटीट्यूड को चेंज कर लीजिए। एटीट्यूड को चेंज करने से क्या होगा? जो प्रतिकूल हैं वह अनुकूल लगने लगेगा, जो बुरा है वह अच्छा लगने लगेगा, जो दु:ख है उसमें सुख दिखने लगेगा, जहां कष्ट है उसमें भी आनंद दिखने लगेगा। आपने अपने एटीट्यूड को चेंज किया सारी चीज़े अपने आप बदल गई। जैसे आपको मैं बोलूं- आप अभी सभा में बैठे हैं, आनंद से बैठे हैं। अब मान लीजिए यहाँ आप बैठे हैं और बैठे हैं आपके घुटने में दर्द है आपने सोचा था कि चेयर पर बैठूंगा और देखा तो यहाँ चेयर का अरेंजमेंट कम है चेयर आपको मिली नहीं। अब प्रवचन सुनना है खड़े-खड़े सुन नहीं सकते हैं, बैठने की व्यवस्था नहीं है। एक पल के लिए आपके मन में तकलीफ होगी, थोड़ा सा तनाव भी होगा लेकिन फिर आपने सोचा कि भाई! इतनी दूर से आए हैं, चलो क्या बात है? महाराज का प्रवचन सुनेंगे, उधर ध्यान ही नहीं आएगा थोड़ा दर्द सह लेंगे, कोई दिक्कत नहीं हैं, महाराज के प्रवचन से बड़ा दर्द थोड़ी है चलो अब आगे बैठकर के सुनना हैं, महाराज के सामने बैठकर के सुनेंगे तो आनंद कुछ और होगा, पीछे बैठेंगे तो कुछ होगा थोड़ी देर हम टॉलरेट कर लेंगे, क्या हुआ? आप बैठ गए। दर्द हो रहा है आकुलता हो रही हैं? नहीं- क्यों? क्यों, आपका दृष्टिकोण बदल गया आपने अपने एटीट्यूड को चेंज कर लिया। किया ना? आप आनंद में हैं। ऐसे आपको कोई बोल दे तो, नहीं और यह एटीट्यूड क्यों बदला क्योंकि आपने उसे एक्सेप्ट कर लिया। स्वीकार्यता हमारे दृष्टिकोण को बदलती है और जैसे ही चीज़े स्वीकार हो जाती है तो दु:ख भी सुख के रूप में लगने लगता है कष्ट में भी आनंद आता है। आपसे भूखे रहने के लिए कोई कहे, रहने को राजी होओगे? किसी दिन सुबह से भोजन न मिले तो क्या हाल होता है तुम्हारा? महाराज! भोजन की बात तो जाने दो, चाय ना मिले तो हंगामा हो जाता है। आपको आकुलता है और जिस दिन आपने उपवास किया हो उस दिन। चीजें तो वही है जिस दिन चाय नहीं मिली, केवल चाय में एकाध घंटे का विलंब हुआ और आपने तूफान मचा दिया और जिस दिन आपने चौबीस घंटे का उपवास किया, उस दिन आपको फर्क क्यों नहीं पड़ा? महाराज! यहाँ तो एटीट्यूड ही दूसरा है और देखो! आपने स्वयं इच्छा से उपवास किया और किसी दिन भोजन के अभाव में उपवास करना पड़े तो, जो काम अपनी स्वीकार्यता से करते हैं वह हमारे लिए कितना भी दुष्कर हो, सहज बन जाता है और जिस काम में हम अपनी स्वीकार्यता प्रदान नहीं करते वह कितना भी सरल है हमारे लिए बहुत भारी बन जाता है। यह सूत्र निकला ना?
मैंने आपसे कहा- जब कभी भी आपको लगे कि चीज़े मेरे अनुकूल नहीं हैं, परिस्थितियाँ मेरे अनुकूल नहीं हैं। आपको ऐसा लगता है कि मेरे पति का स्वभाव मेरे अनुकूल नहीं है, मेरे पति का स्वभाव बड़ा गुस्सैल है, मेरा पति नशा करता है, मेरा पति रोज झगड़ा करता है, ठीक है तो पति बदलने की गुंजाइश हो तो बात करो वो तो हैं ही नहीं।
एक बार ऐसा हुआ, एक युवक अपनी भाभी से बहुत परेशान था, भाभी का स्वभाव थोड़ा तेज था, भाइयो में बड़ा प्रेम था तो एक दिन बड़े भाई अपने छोटे भाई को मेरे सामने लाकर कहा- महाराज! जरा इसको समझाओ। मैंने पूछा क्या बात है बोला- महाराज! मेरे यहाँ सब कुछ ठीक है पर यह खुश नहीं रहता, मैंने उससे पूछा- क्यों भाई! क्या बात है? बोला- भैया से मुझे कोई शिकायत नहीं है, भाभी का नेचर ठीक नहीं है, भाभी का व्यवहार मुझे ठीक नहीं लगता इसलिए मुझे अच्छा नहीं लगता तो बडे भाई ने जो बात कही, बोला-महाराज! मैं इससे क्या कहूँ – भाभी को बदल नहीं सकता, दूसरी शादी कर नहीं सकता, अब उसे बदल नहीं सकता, दूसरी शादी कर नहीं सकता, उसका नेचर में बदल नहीं सकता तो मेरे हाथ में क्या हैं? इससे पूछो, मैं क्या करूं? तो मैंने कहा- तू उसके प्रति अपना ऐटिट्यूड बदल दे, भाभी अच्छी हो जाएगी काम खत्म| उसको उसका नेचर मान लो, जिसे तुम गलत समझते हो उसके गलत प्रवृति को भी यदि तुम उसका स्वभाव मान लो तो तुम्हारी एक्सेप्टेंस भी बढ़ेगी और उसको इग्नोर करने की कला भी तुम्हारे भीतर विकसित हो जाएगी कोई टेंशन नहीं, कोई तकलीफ नहीं। होता हैं देखिये!
विपरीत परिस्थितियां जब भी आए, चाहे व्यक्ति या वस्तु हो, कोई भी अनिष्ट संयोग होता है यदि आपने उसके प्रति अपना दृष्टिकोण बदल दिया वह स्वीकार हो जाती है और जैसे ही चीजें स्वीकार होती है वह हमारे लिए बहुत सहज हो जाती है फिर उसका कोई दु:ख नहीं होता। आप अपने रिलेशंस में देखिये! प्राय: लोगों को होता आजकल लोगों के अंदर फैमिली को लेकर के बड़ा टेंशन होता है कही लोग लोग कहते हैं – महाराज! फैमिली प्रॉब्लम है, अरे प्रॉब्लम का नाम ही तो फैमिली है। फैमिली को हिंदी में बोलते हैं परिवार, परिवार की व्याख्या ऐसी की गई- जहाँ ‘पर’ यानि सब और से वार हो उसका नाम परिवार। इसके लिए तैयार हो जाओ जब तुम बैंड-बाजा बजाकर के अपना परिवार बसाए हो, मतलब- बैंड बाजा बजा करके तो बसवाये, कितना उत्सव किया था अपना परिवार बसाने के लिए तो जितने उत्सव से तुमने परिवार बसाया है, उतने ही उल्लास से परिवार को निभाने की कला सीखो। उल्लास होना चाहिए इसको स्वीकार करो यह तो हैं ही, चलेगा। चार बर्तन हो और टकराये नहीं तो क्या होगा? चार बर्तन होंगे तो टकराएंगे ही टकराएंगे लेकिन बस एक चीज कहता हूँ चार बर्तन ऐसे टकराते हैं तो टंकार होती हैं और चारों बर्तनों में आपस में थोड़ी एडजस्टमेंट हो जाए, एक लय उत्पन्न हो जाए तो झंकार उत्पन्न होती है। मैं तुमसे केवल इतना ही कहता हूँ परिवार में अगर बर्तन टकराये तो कोई दिक्कत नहीं, टंकार नहीं झंकार हो, सबके अंदर आनंद हो। एडजस्टमेंट यह तुम्हारे अपने ऐटिट्यूड पर है अगर किसी व्यक्ति को जो तुम्हारी नजर में गलत है और गलत-गलत-गलत- गलत- गलत- गलत, बोल-बोल कर उसको कोसते रहोगे तो क्या वह अच्छा होगा? तुम्हारे साथ उसका व्यवहार अच्छा होगा? दोनों के मध्य तनाव बढ़ेगा कि नहीं? तनाव से टकराव, टकराव भी बढ़ेगा एक दूसरे के साथ खींचातानी होगी और मुश्किल यह है कि दोनों अलग भी नहीं हो सकते, साथ ही रहना हैं तो क्या करें? अरे भाई! गलत है तो ठीक है वह उसका नेचर है उसको मान लो, बाकी चीजों को इग्नोर करो, मामला खत्म। नेचर को नेचर मान लो तो जीवन का मजा ही कुछ और होता है स्कूल में एक छात्र था, पढ़ने मैं होशियार नहीं था ज्यादा तो वह नेचर को, नेचर की स्पेलिंग क्या? नेचर- जब उसको उसको बोलते थे कि नेचर बोले तो वह बोलता था नटूरे-नटूरे-नटूरे। टीचर उसको नेचर बोलने के लिए बोले तो वह नटूरे बोले तो बड़ी दिक्कत। एक दिन उसके पिताजी जब स्कूल आए तो शिक्षक ने शिकायत की कि आपका बेटा बड़ा गड़बड़ है इसको कितना सिखाते हैं नेचर को नेचर बोले यह नटूरे बोलता है| उसने कहा- छोड़िए न सर! इसका फटूरे ही ऐसा हैं। बाप अगर फ्यूचर को फटूरे बोलता है तो बेटा अगर नेचर को नटूरे बोल दे तो कौन सी बात है।
एटीट्यूड को चेंज करने की कला डेवलप कीजिए, यह कला आपके भीतर विकसित होनी चाहिए। मेरा दृष्टिकोण बदले, मेरे चिंतन की धारा बदले, दु:ख भी सुख लगने लगेगा। मेरे संपर्क में एक युवक है देखिये! आप में लोगों की ही बात करता हूँ आपको सुनाता हूँ ताकि आप प्रैक्टिकल लाइफ में उसे अपना करके अपना जी अच्छा कर सके। उसका विवाह हुआ, विवाह के पूर्व उसकी एक ही इच्छा थी कि मैं कैसी कन्या से विवाह करूं जिससे सद्गृहस्थ बन सकूं और समाज के बीच एक अच्छा आदर्श उपस्थित कर सकू। बहुत सारी लड़कियां खोजी उसके लायक लड़की नही मिली। दो-तीन साल बाद जब बहुत प्रयास हुआ, नहीं मिली तो उसने अल्टीमेटली सरेंडर कर दिया, परिवार वालों से कहा- आपको जिससे संबंध करना है कर दो। संयोग! जो लड़की मिली, वह उसी के लायक थी। उसी के लायक मतलब- दूसरा उसको झेल सके, ऐसी नहीं। एकदम यह पूरब वह पश्चिम। बोलो- अगर ऐसा किसी के साथ हो जाए तो आजकल तो उल्टा होता है शादी होती है विदाई होती है और दूसरे दिन से तलाक की बात शुरू हो जाती है। दूसरे दिन ही कहते हैं हमारा एडजस्टमेंट नहीं हो रहा है चाहे लड़का हो या लड़की। उस लड़के के साथ ऐसी स्थिति बनी अब ऐसी लड़की से विवाह हो गया उपाय क्या है? कोई उपाय उसे नहीं दिखे। वह आलू नहीं खाए, प्याज नहीं खाए उसकी थाली में वही परोसा जाए लेकिन वह आदमी बहुत समझदार था। जब कभी कुछ होता वह उसका प्रतिवाद नहीं करता अगर ऐसा हुआ तो जो उसको परोसा, चुपचाप बाकी चीजें खाकर के उठ जाता और कुछ नहीं बोलता, मुस्कुराता। कोई प्रतिक्रिया नहीं करता, कई-कई बार तो ऐसा हुआ कि वह केवल पानी पीकर के उठ जाता। एक रोज वह मुझसे बातचीत कर रहा था बहुत पुरानी बात है में एक दालन में बैठा था, सामने हॉल था बीच में तीस फीट का रोड था, छोटा सा क्षेत्र था बिनाबारहा की बात हैं। उसकी धर्मपत्नी दूध पीती बच्ची को लेकर के हॉल में थी और वह मेरे साथ तत्व चर्चा कर रहा है। इसी बीच बच्ची रोने लगी, पत्नी ने वहीं से आंख दिखाई जैसे ही पत्नी पर नजर पड़ी वह अपनी चर्चा को बीच में छोड़कर सीधे पत्नी के पास पहुंचा। पत्नी ने इतनी जली-कटी सुनाई कि सुनकर मुझे भी तरस आ गया, यह क्या हाल है? इतना कोई दूसरा नहीं झेल सकता वह एक लब्ज नहीं बोला,एक लब्ज नहीं बोला। बच्ची को गोद में लिया, पुचकारा, उसे शांत किया। थोड़ी देर में जब बच्ची शांत हो गई, पत्नी का गुबार ठंडा हो गया उसके बाद बच्ची समेत मेरे पास आया। मैंने पूछा- भैया! क्या कर रहे हो? मैंने पूछा- भैया! क्या कर रहे हो? उसने कहा- महाराज! निर्जरा कर रहा हूँ , निर्जरा कर रहा हूँ और सच में उस व्यक्ति ने निर्जरा कर ली। आज उसकी धर्मपत्नी में इतना बड़ा परिवर्तन आ गया कि उससे कदम से कदम मिलाकर बल्कि दो कदम आगे चल रही है और धर्म के मार्ग में लग गई हैं। मैंने पूछा- तो बोला महाराज !मैने तो एक ही बात आप लोगों से सीखा और शास्त्र से जाना है कि कर्म के संयोग से जो होना होता हैं, होता है। मैंने अपनी मन की खूब पत्नी खोजी नहीं मिली तो जो मिली है उसे ही मन की मान लिया मैं यह सोचता हूँ – कि मेरे लिए, लोग बोलते हैं तेरी पत्नी का स्वभाव ऐसा क्यों है? मैं सोचता हूँ – बहुत अच्छा है, मुझे बहुत अच्छी पत्नी मिल गई क्योंकि मैं गृहस्थ हूँ तपस्या नहीं कर सकता तो कम से कम पत्नी की बातें सुनकर वाचिक और मानसिक तपस्या तो मेरी हो जाती है कर्म की निर्जरा तो हो जाती है। है, तुम्हारे अंदर ऐसा माद्दा। यह दृष्टिकोण बना लेने वाला व्यक्ति जीवन में कभी दु:खी होगा। बोलो क्या हुआ? दृष्टिकोण लो अरे महाराज! बुरा- बुरा- बुरा है। क्या, जो लिखा के लाए हो वही होगा। उसे एक्सेप्ट कर लो, अपना ऐटिट्यूड बदल लो जीवन में मजा ही मजा होगा। दृष्टिकोण बदलिए, उसको एक्सेप्ट करना शुरू कर दीजिए, आपके सामने कभी किसी प्रकार का तनाव दुःख या व्यग्रता उत्पन्न नहीं होगी यह
पहला सूत्र- ऐटिट्यूड बदलिए उसे एक्सेप्ट कीजिए|
दूसरी बात- कैसी भी परिस्थिति है यह सोचिए यह थोड़े देर की बात है। क्या बोला? थोड़ी देर की बात है कोई परमानेंट नहीं है चलो थोड़ी देर की बात है हम टॉलरेट कर लेंगे अगर आप ने सोचा कि ये थोड़ी देर की बात है तो इससे क्या होगा? आपके मन में धीरज आएगी और मन धैर्य उस परिस्थिति से जूझने की आपको शक्ति देगा, संभल देगा, आपका मन डगमगाएगा नहीं। जैसे- आज मान लीजिए यह कार्यक्रम है यहां आप बैठे हैं, आपको पता है महाराजजी एक घंटे में अपना प्रवचन पूरा कर देते हैं आपको अगर थोड़ा बैकएक भी हो, पीठ में दर्द भी हो या और भी कोई तकलीफ हो तो आप कहोगे- घंटे भर की बात है महाराज के प्रवचन में समय का पता ही नहीं लगता हैं अपन तो आराम से बैठते हैं और आगे बैठकर के सुनते हैं आपको कोई परेशानी नहीं होगी और किसी ने कह दिया आज तो इतवार है महाराज जी तीन घंटे का प्रवचन देंगे तो क्या करोगे? क्या हो गया? बोलो- फिर क्या करोगे या फिर सोचोगे कैसे महाराज से नजर बचे और में यहाँ से खिसकूं। क्या हुआ? यह एक example है। तुम्हारे जीवन में जब भी कोई प्रतिकूल स्थिति निर्मित हो, यह सोचो, यह थोड़ी देर की बात है, थोड़ी देर की बात है। ठीक हैं, “it will be pass”, बीत जायेगा, निकल जायेगा। थोड़ा समय, कोई बात नहीं हम इसको टॉलरेट कर लेंगे। अगर मन में धीरज आ जाए तो मनुष्य अपने आप ताकतवर बन जाता है। मैं हमेशा कहता हूँ , धीरज कमजोर की ताकत है और अधीरता ताकतवर की कमजोरी। जो लोग अधीर हो जाते हैं, वह ताकतवर होने के बाद भी कमजोर हो जाते हैं लेकिन धैर्य रखोगे तो धैर्य बहुत बड़ा संबल है।
नीतिकार कहते हैं- क्षमा विपत्ति में धीरज हमारा सबसे बड़ा संबल है। घनी रात है, रात है, रात है. काली रात है, रात हो गई, रात हो गई. रात को कोसने से क्या होगा, रात को कोसने से क्या होगा। अरे भाई, रात को कोस कर रात को मत बिताओ, सुबह की प्रतीक्षा में रात गुजार दो। देखो, जीवन में कितना आनंद आता है।
एक बार हम लोगों विहार चल रहा था, रास्ता बताया लोगों ने। जबलपुर के पास एक बेलखालू है और वहाँ से तारादेही जाना था। रास्ता बताया 16 किलोमीटर, कच्चा रास्ता था, दूसरा रास्ता 27 किलोमीटर का था, उससे भी ज्यादा का था तो शॉर्टकट था, हम गुरुदेव के साथ थे, 16 किलोमीटर का रास्ता बता रहे है, इसी पर चलते हैं, वो ही फाइनल हो गया। एक पहाड़ चढ़े, उतरे, फिर दूसरा पहाड़ चढ़े, उतरे। रास्ता भी बड़ा भयंकर कंकरीला, वो 16 किलोमीटर नहीं था, 16 मील था, 25-26 किलोमीटर होगा। अब पूरा संघ चला, उस दिन संघ चार-पांच स्थानों में रह गया, बस तीन महाराज मुकाम तक पहुंच पाए, बाकी सब इधर-उधर। हम 6 साधु आचार्य महाराज के साथ तारादेही से 3 किलोमीटर पहले एक ही स्कूल में रुके, स्कूल में ठंड का समय था, टेंपरेचर 6 डिग्री था रात का और एक स्कूल मिला जिसके खप्पर 4-5 गोल थे, वो चौड़े वाले खप्पर थे जो इंग्लिश टाइप के छप्पर होते हैं। झरोखे में कोई कवर नहीं था और दरवाजे में कोई लगाने की व्यवस्था नहीं थी। सब समझ लीजिए, 19वीं शताब्दी का स्कूल होगा। अब रुक गये, रात तो गुजारना है। अब 6 साधु, 6 साधु ही बिना चटाई वाले। एक कमरा था, आचार्य महाराज को हम लोगो ने थोड़ा बेंचो की ओट करके एक तरफ कर दिया और बाकी हम लोग रात भर इधर-उधर। अब रास्ता हमने ही दिखवाया था। अब महाराज लोग हमें उलाहना दे पर क्या करे भाई, अब परेशान तो सब हुए है, हुए है सो हुए है, अब कोई उपाय नहीं। सुबह हुई, गुरुदेव ने पूछा, कैसी कटी रात, कैसी कटी रात, हमने कहा सुबह की प्रतीक्षा में। फिर उन्होंने एक बात कही जो सबसे मुख्य है, जिसने रास्ता बताया उस पर गुस्सा तो नहीं आ रहा? हमने कहा, महाराज! यह उस पर गुस्सा नहीं कर रहे, हम पर तो यह सब गुस्सा कर रहे हैं तो गुरुदेव ने क्या बात कही, उस पर गुस्सा मत करो, उसका आभार जताओ, उसने आज कर्म निर्जरा का अवसर प्रदान कर दिया। अगर ऐसा स्थान नहीं मिलता तो रात भर जो परिषह सहे, रात भर जो बैठकर गुजारे यह मौका मिलता क्या। जिस मनुष्य के भीतर इतना ऊंचा दृष्टिकोण होगा, वह कभी दु:खी हो सकेगा। बोलो, मन का खेल है, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। बस मन में जब भी कभी ऐसी स्थिति आए, यह सोचो, यह थोड़े देर की बात है। एक बात सदैव स्मरण रखना, रात लंबी हो सकती है पर शाश्वत नहीं हो सकती। रात के बाद तो प्रभात होना ही है, घबराओ मत, हिम्मत रखो।
यह पतझड़ की शाम अकेला, फूल उदास बहुत है।
सूलो की महफ़िल में अली का कटु उपहास बहुत है।
रो मत मृदुल समीर दोबारा कोई और मिल खिलेगा|
यह जीवन तो नीर किनारा कोई और मिलेगा।
गा प्रभात के गीत, भीत हो अँधियारा पिघलेगा।
यह जीवन तो नीर किनारा कोई और मिलेगा।
अपने मन में यह सोचिए, थोड़ी देर की बात है, सब ठीक हो जाएगा।
तीसरी बात, सब ठीक हो जाएगा, आशावादी बनिए, मन में हताशा को हावी मत होने दीजिए। चलो ठीक है, आज परेशानी है, कल होगी ऐसा कोई जरूरी नहीं। मैं सारी जिंदगी परेशानी को भुगतने के लिए अभिशप्त नहीं हूँ । आज बुरा है, कल अच्छा होगा। आज बुरा है कल अच्छा होगा, ऐसा आशावादी दृष्टिकोण हमेशा बना कर रखिये, मन कभी विचलित नहीं होगा, बैचेन नहीं होगा। आशावादी बनिये, मन में हताशा को रंच मात्र हावी मत होने दीजिए। जयशंकर प्रसाद की इन पंक्तियों को हमेशा याद रखिए-
लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गीत प्रीत के गाता चल|
नम होगी यह मिट्टी जरूर, आंसू के कण बरसाता चल|
सिसकियों और चित्तकारों से चाहे कितना हो आकाश भरा|
खप्परों का हो ढेर, चाहे कंकाल से हो पटी धरा|
जीवित सपनो के लिए मार्ग मुर्दों को देना ही होगा।
लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गीत प्रीत के गाता चल|
हिम्मत रखिये, आशावादी बनिए, कभी हताश मत होइये। जो हताश होते है, वो हार जाते हैं और जिनके मन में आशा बनी रहती है, वह कभी नहीं हारते।
मेरे संपर्क में एक व्यक्ति है, जिनके जीवन के 3 वर्ष बड़े बुरे निकले, लगातार नुकसान पर नुकसान, नुकसान पर नुकसान, नुकसान पर नुकसान। स्थिति यह हो गई कि लगातार 3 साल के नुकसान से उस व्यक्ति की हालत बहुत खराब हो गई। लाखों रुपया दान देने वाला व्यक्ति, ₹11000 का दान देने की स्थिति में भी नहीं था। उसके मन में इस बात की पीड़ा थी लेकिन आदमी के अंदर बहुत बड़ा जज्बा था, उसके बेटे का मन सुसाइड करने का हो गया। परिस्थितियां मनुष्य के ऊपर जब हावी हो जाती है तो उसका मन टूट जाता है और जिसका मन टूटता है, उसको संभालना बहुत मुश्किल होता है लेकिन उस व्यक्ति के जज्बे की बात मैं क्या करूं, वह हमेशा अपने बेटे को समझाया, मोटिवेट करा, उसने अपने बेटे को संभाला। बोला, बेटा कोई बात नहीं, आज बुरा है कल बुरा होगा, ऐसा कोई जरूरी नहीं। हम जहाँ आज पहुंचे थे, शुरुआत में वैसे नहीं थे। आज वापस हमारी स्थिति बिगड़ी है, फिर कल चढ़ जाएंगे। जीरो से नयी गिनती करेंगे, घबराओ नहीं, गिरने वाला ही चढ़ता है। हम चढ़ेंगे, प्रयास करते रहो, करते रहो। अभी अशुभ समय है, थोड़ा समय टाल दो। अभी हमको कोई ट्रांजैक्शन नहीं करना, कोई काम नहीं करना , समय आयेगा, सब कुछ ठीक हो जाएगा। अभी हम धर्म-ध्यान करें। उसने अपने बेटे को संभाला, खुद को संभाला, 3 साल उसके खराब हुए और चौथे साल से जो प्रगति शुरू हुई तो आज पहले से अच्छी स्थिति में आ गया है। चढ़ना शुरू होता है तो मनुष्य चढ़ता ही जाता है। इसलिए कभी भी जीवन में कोई ऐसी स्थिति आए, मन में हताशा को हावी मत होने देना। आज बुरा है, कल तो अच्छा होगा, कल अच्छा होगा इस भावना और धारणा के साथ जीने वाला मनुष्य कभी घबराता नहीं है। ठीक है, सब ठीक हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा, हम इसको ठीक कर लेंगे, यह आप अपने साथ रखें और
नंबर चार सकारात्मक सोचिये, हर बात के प्रति पॉजिटिव थिंकिंग रखिए, नकारत्मकता से अपने आप को बचाइये। नेगेटिविटी जहां है, वहां प्रॉब्लम है और सकारात्मकता में हर समस्या का समाधान है। आप क्या करते हैं? प्रायः लोग प्रॉब्लम की बात करते हैं। संत कहते हैं – ‘प्रॉब्लम की बात मत करो, सॉल्यूशन की बात करो‘। समस्या सामने मत रखो, समाधान के रास्ते खोजो। समाधान की संभावनाएं हमेशा हमारे सामने खुली रहती हैं। महापुरुषों के जीवन-चरित्र को पलट कर के देखो, उनके जीवन में कितनी बड़ी-बड़ी विषमताएं आई लेकिन वह उससे विचलित नहीं हुए। उस समय अपना एटीट्यूड पॉजिटिव रखें, और थिंकिंग पॉजिटिव रखें। कहां से कहां पहुंच गए, अंजना जैसी स्त्री को देखो जो एक अबला है, पति के घर से निकाल दी गई, पिता के घर में भी प्रवेश नहीं मिला, वन में चली गई। पेट में तद्भव मोक्षगामी हनुमान है, फिर भी क्या है? चलो कर्म जो खेल खिला रहा है, वह खेलेंगे। कर्म हमें जहां ले जा रहा है, वहां हम जाएंगे, विचलित होने का कोई काम नहीं। यह दृष्टिकोण अपने भीतर जब विकसित करोगे तो तुम जीवन का एक अलग मार्ग अपना सकोगे। कोई भी स्थिति हो, हमेशा पॉजिटिव सोचो।
एक व्यक्ति ने अपना मकान बनाया, बहुत सुंदर मकान बनाया, हफ्ते भर बाद उसे उस मकान में प्रवेश करना था। संयोग, शॉर्ट-सर्किट से मकान में आग लग गई, उसके सपनों का महल धूं-धूं करके जल उठा। उसके सपने का महल धूं-धूं करके जल उठा, सब लोग सकते में आ गए। अरे, ये क्या हो गया? उस व्यक्ति से जब बात की गई तो उसने कहा, भैया मैं भगवान का बहुत शुक्रगुजार हूँ कि जो आज मकान में आग आज लगी है, अगर हफ्ते भर बाद लगी होती तो पता नहीं, क्या होता। क्योंकि हफ्ते भर बाद में मैं इस मकान में प्रवेश करने वाला था। यदि मकान में प्रवेश कर गया होता फिर ये आग लगी होती तो मेरा पूरा परिवार स्वाहा हो जाता। मकान तो फिर से बन सकता है, परिवार दोबारा नहीं आ सकता। यह दृष्टिकोण, जिस व्यक्ति के अंदर होगा वो कभी भी परिस्थितियों के आगे पीड़ित नहीं होगा, उसका मन कभी दु:खी नहीं होगा तो बंधुओं! आज चार बातें मैंने आप से की। तनाव से मुक्त होना है, एटीट्यूड को बदलिए, एक्सेप्टेंस बढाइये, चीजों को इग्नोर करना शुरू कर दीजिए, सारा जीवन सहज हो जाएगा। दूसरी बात मैंने आपसे कहीं, धीरज रखे। तीसरी बात, आशावादी बनिए और चौथी बात हमेशा सकारात्मक बन करके चलियेगा, निश्चयतया अपने जीवन को आप ऊंचाई पर पहुंचा सकेंगे|