थकने से पहले थमो और थामो
एक व्यक्ति तेज रफ्तार में अपनी गाड़ी चलाते हुए आगे जा रहा था। रास्ते में गांव के युवक ने गाड़ी रोकने के लिए हाथ दिया, इशारा किया। उसके घर में उसका छोटा भाई बीमार था, उसे लिफ्ट की आवश्यकता थी पर सामने वाले ने उसकी बात को अनदेखा कर गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी। जब वह गाड़ी क्रॉस करके जाने लगा तो उसने एक पत्थर उठाया और पीछे से उसकी गाड़ी पर दे मारा, गाड़ी की कांच फूट गई। गाड़ी रुकी, उसने पूछा कि तुमने पत्थर क्यों मारा? उसने कहा- गाड़ी को इतना तेज मत भगाओ कि उसे रोकने के लिए किसी को पत्थर फेंकना पड़े। गाड़ी को इतना तेज मत भगाओ कि उसे रोकने के लिए किसी को पत्थर उठाना पड़े, पत्थर फेंकना पड़े। मैं आप सब से केवल इतना ही कहता हूँ आप भी अपनी गाड़ी को बहुत तेज गति से भगा रहे हो, भगा रहे हो कि नहीं? जन्म के आदिम क्षण से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक मनुष्य केवल भागता है, भागता है और भागता है। कल आपने महाराज जी से पंक्तियां सुनी थी- ‘जन्म से लेकर मरण तक दौड़ता है आदमी, और दौड़ते ही दौड़ते दम तोड़ता है आदमी।’ यह भागमभाग, यह आपा-धापी जीवन के आदिम क्षण से लेकर अंत तक लगी हुई है। मैं आज आपसे केवल इतना कहता हूँ, थोड़ा थमो। क्या करो? आज किसकी बात है, ‘थ’ की बात है। आज बात करूंगा आपसे-
- थमना
- थकना
- थामना
- थूकना
ये चार क्रियाएं हैं, जो हमारे जीवन की एक बहुत बड़ी प्रेरणा है। यदि हमने कुछ इनसे सीख लिया तो जीवन में बहुत कुछ उपलब्धि हम अर्जित कर सकते हैं। मैं आपसे पूछता हूँ – भाग तो बहुत रहे हो, थमोगे कब? कब थमोगे, कहाँ रुकोगे, कि सारी जिंदगी भागते ही रहोगे? कभी विचार किया, भागते-भागते पहुंचोगे कहाँ? आज मनुष्य की बड़ी विचित्र दशा हैं, वो भाग बहुत तेजी से रहा हैं पर पहुंच कही नहीं रहा। गति है लेकिन गंतव्य नहीं रहा, रफ्तार है लेकिन मंजिल नहीं। आखिर इसकी वजह क्या है और इसका परिणाम क्या है? हमें बहुत गंभीरता से विचार करने की जरूरत हैं, आपा-धापी के इस जीवन में केवल भागना-भागना अच्छी बात नहीं है। कुछ लोग हैं जो केवल भागते रहते हैं, उनकी दशा बड़ी विचित्र है। आप सड़क चलते एक प्राणी को देखते होंगे, जिसे चलता हुआ कभी नहीं पाएंगे, हमेशा दौड़ता ही रहता है, देखते कि नहीं देखते, अक्सर दिखता है। आपने देखा, बात समझ में आई जो हमेशा दौड़ता है, आपको सड़क चलते बहुत मिल जाता है, क्या नाम है उसका? क्या, थोड़ा जोर से मुझे सुनाई नहीं पड़ा, मैं नहीं बोलूंगा लेकिन देखता रहता हूँ, जिंदगी भर दौड़ता रहता है और उसकी मौत कितनी बुरी होती है। मैं तुमसे केवल इतना ही कहूंगा कि अगर सारी जिंदगी भाग-दौड़ में लगे रहोगे तो अंत तुम्हारा कुत्तों की मौत की तरह होगा, कुत्तों की तरह मरना होगा। आज आप देख लीजिए, दुनिया में ऐसे बहुत लोग मिल जाएंगे, जो अपना सारा समय और सारी शक्ति केवल भाग-दौड़ में खपाते हैं। जीवन की सारी ऊर्जा वो उसी में खपा देते हैं, कही विश्राम नहीं लेते और उनका अंत कैसा होता है? अस्पतालों में सड़-सड़ कर। पैरालिसिस से ग्रसित हो जाते हैं, ब्रेन स्ट्रोक आ जाता है, सालों कोमा में पड़े रह जाते हैं, ऐसे लोगों को भी मैंने जाना है। कभी आपने इस पर विचार किया? जब कभी ऐसी घटनाएं घटती हैं, ऐसा कोई प्रकरण या प्रसंग हमारे सामने आता है। हमारे मन में सामने वाले के प्रति सहानुभूति और संवेदना की भावना जगती है लेकिन कभी इसके कारणों का पड़ताल करने की बात हमने सोची? आखिर ऐसा क्यों है? यह भागमभाग स्ट्रेस के कारण नहीं है, क्या? इसके पीछे हमारा तनाव कारण नहीं है क्या? जब तक भागम-भाग है तब तक तुम केवल भागते रहोगे, भागते रहोगे, तुम्हारे मन में तनाव आएगा और तुम थक जाओगे। और थकने के बाद तो सबको थमना ही पड़ता हैं। पर इससे पहले कि तुम थको, थम जाओ। थकने के बाद थमने का मजा नहीं है, थके को थामने का मजा है। अपने जीवन में कुछ करना चाहते हो तो थकने के पहले थमो। थम करके अपने बारे में विचार करो। हमारे यहां नीतिकार कहते हैं – जब तक तुम्हारा तन स्वस्थ हैं, जब तक मौत तुम्हारे निकट नहीं आती तब तक अपने आत्मा का हित कर लो। कुछ थम जाओ, कुछ विचार कर लो, अपने बारे में। अन्यथा जब प्राण ही निकल जाएंगे तो तुम क्या करोगे, तुम्हारे पास कुछ भी शेष नहीं बचेगा? तुम कुछ करने लायक नहीं बचोगे इसलिए इससे पहले कि तुम थको, थोड़ा थमो। शिखर जी की जब वंदना करता हूँ तो देखता हूँ कि कुछ लोग बहुत तेजी से सरपट आगे निकलते हैं।
एक दिन जब मैं वंदना कर रहा था। मेरे साथ एक डोली वाला भी चल रहा था। मेरे साथ चलते हुए कुछ लोगों को तेजी से चलता हुआ देखकर के कहा- भैया थम-थम कर चलो, नहीं तो थक जाओगे। थोड़ा थम-थम कर के चलो, नहीं तो थक जाओगे। उसने उनकी बात को अनसुना कर दिया लेकिन थोड़ी देर आगे जाकर के जब मैं उनके तक पहुंचा तो देखा दोनों के दोनों खाट पर पड़े हुए थे, क्यों? हालत इतनी थक गई कि अब चलने लायक नहीं तो जब शिखर जी की वंदना करते हैं तो कहा जाता है कि बीच-बीच में थमते जाओ, अपनी सांस को थामते जाओ, थोड़ा नॉर्मल होते जाओ और फिर आगे बढ़ते जाओ। थकने से पहले जो थमता है, उसके ऊपर थकान हावी नहीं होती और बिना थके, थकने तक जो थमे नहीं, उसकी थकान कभी मिटती नहीं। संत कहते हैं- ‘पहाड़ी को चढ़ने के लिए तो फिर भी इसकी उपेक्षा की जा सकती है पर जीवन की पहाड़ को चढ़ना है तो तुम्हें थकने के पहले थमना होगा।’ थमो, रूको, कही रूको, कभी रूको, बोलो- कब थमोगे? अपने मन से पूछो- यहां जितने बैठे हैं, सब के दिमाग में ढेर सारी प्लानिंग है। किस की प्लानिंग है? व्यापार की, व्यवसाय की, दुनियादारी की, गोरखधंधे की, आपा-धापी, भागमभाग, धमाचौकड़ी और क्या? यही करते रहोगे और यही करते करते एक रोज राम नाम सत्य हो जाएगा। फिर क्या होगा? कदाचित बच गए तो तुम्हारा शरीर अशक्त और निढाल हो जाएगा, फिर क्या होगा? इससे पहले कि- तुम थको, थमो, रूको,अपनी दिशा को मोड़ो ,सही रास्ते पर चलने का लक्ष्य बनाओ, पुरुषार्थ जगाओ।
मनुष्य के जीवन की विडंबना यह है की मनुष्य जीवन को पाकर जो करणीय है, उसके बारे में वह कभी सोचता नहीं और जो अकरणीय है उसमें अपनी पूरी शक्ति लगा देता हैं। तय करो तुम्हारे लिए करणीय क्या है? जो तुम कर रहे हो वो या जिसकी तरफ अभी तक तुमने प्राथमिकता नहीं रखी है वो? विचार करो, क्या करणीय है, तुम्हें क्या करना चाहिए? यदि करणीय को तुमने करना शुरू कर दिया तो तुम्हारी करनी सुधर जाएगी और करनी क्या सुधरेगी यह जीवन तुम्हारे लिए बहुतरणीय बन जाएगी, जिंदगी बहुतरणीय हो जाएगी। अपनी करनी को सुधारिए, तय करिए, ये मनुष्य जीवन हमें किस लिए मिला। कभी विचार करते हो? मनुष्य जीवन किसके लिए मिला? बोलो, चलो, आपसे दूसरा सवाल पूछता हूँ – आप जी क्यों रहे हो? क्यों जी रहे हो? बोलो, जी तो रहे हो ना, इसमें तो संशय नहीं है। जिंदा तो हो ना? इसमे तो कोई संशय नहीं है- नहीं है ना तो फिर बोलो, क्यों जी रहे हो? कोई जवाब क्यों नहीं। हाँ, रोटी कपड़ा मकान के लिए। एक बार मैंने पूछा- क्यों जी रहे हो? एक ने उत्तर दिया इसलिए कि अभी मरे नहीं है। रोटी, कपड़ा और मकान केवल इसी को तुमने अपने जीवन का ध्येय बनाया तो यह तो केवल जीवन के निर्वाह के साधन है, यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं। रोटी, कपडा और मकान तो पशु-पक्षी भी अपने लिए तैयार कर लेते हैं, भले एक छोटा सा घोंसला ही सही, पक्षी भी जुगाड़ कर लेता है। अपनी जो व्यवस्थाएं हैं, पशु-पक्षी सब कर लेते हैं, इसमें कोई सार्थक उपलब्धि नहीं है, यह तो जीवन का निर्वाह है। जीवन केवल गुजारने के लिए गुजार देना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है, अपना सारा जीवन केवल गुजारे में बिता देने का कोई लाभ नहीं। जीवन मिला हैं तो उसे गुजारे में मत बिताओ, गुजरने से पहले कुछ कर गुजरो, कुछ कर गुजरने के लिए जियो। क्या करना चाहते हो, बोलो? महाराज! अगले जीवन को अच्छा बनाओ। बहन जी कह रही हैं, अगले जीवन को अच्छा बनाओ, मैं कहता हूँ, इस जीवन को अच्छा बनाओगे तो अगला जीवन अच्छा बनेगा। जिसका यह जीवन खराब, अगला जीवन कहाँ से होगा? सब अगले की चिंता में हैं। अरे! ये जीवन तो सुधारो। जिसका यह जीवन सुधरता उसका ही परभव सुधर सकता है, इसलिए अपने ही जीवन को सुधारने का लक्ष्य बनाइए। हमें कुछ कर गुजरना हैं, लोग कर गुजरने की बात करते और कर गुजरने के नाम पर ढेर सारी कारगुजारियां कर देते हैं, क्या कारगुजारियां कर रहे हो? कुछ कर गुजरो, धन-पैसा इकट्ठा करो, बेशुमार संपत्ति के मालिक बन जाओ, अकूत धन एकत्रित कर लो, यही तुम्हारी कारगुजारी है। दौलत पा लो, शोहरत पा लो, रूप पा लो, रुपया पा लो, रुतबा पा लो, यह ही तुम्हारी कर गुजरने की बात है। ठीक है ,तुम ने कितना भी सुंदर रूप पाया, कितना भी रुपया पाया, तुमने कितनी भी शोहरत पा ली, रुतबा पा लिया, इससे क्या होगा? एक दिन तो चले जाओगे, फिर क्या होगा? बोलो, यह तुम्हारे लिए कुछ उपलब्धि हुई या गई। संत कहते हैं – ‘जीवन मिला है तो इसे जीवन की उपलब्धि में लगाओ’। यह जीवन, जीवन को पवित्र बनाने के लिए मिला है। यह जीवन, जीवन को सुधारने के लिए मिला है। यह जीवन, जीवन को संभालने के लिए मिला है, केवल धन, दौलत बटोरने के लिए नहीं, शोहरत बटोरने के लिए नहीं। अपने जीवन को सुधारने और संभालने का लक्ष्य बनाओ अन्यथा तो सब धरा रह जाएगा। दुनिया में बहुत बड़े बड़े धनी लोग आए, जिनने चक्रवर्ती जैसा वैभव पाया, आज उन्हें कोई याद नहीं करता। दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग आये जिनका पूरे धरती पर नाम गुंजा, पर आज उनका कोई नाम भी नहीं जानता। ऐसे लोगों से क्या होगा, वह तो सब धरा रह जाएगा? इस धरती में यदि नाम लिया जाता है तो राजा-महाराजाओं का नहीं, इस धरती पर यदि नाम लिया जाता है तो सेठ-साहूकारों का नहीं, इस धरती पर यदि नाम लिया जाता है तो संत और महात्माओं का लिया जाता है जिनने अपने जीवन को सुधारा है, संवारा है और सारी धरती को तारने का रास्ता बताया है। वो आदर्श होना चाहिए बाकी तो सब धरा रह जाएगा। बोलो, जिसको तुम अपने जीवन भर की उपलब्धि के रूप में गिनते हो, मौत के क्षणों में उसे दांव पर लगाओ, क्या वह तुम्हारे जीवन को बचा लेंगे? यही मनुष्य को विचारना हैं। जब प्राण निकलने को होंगे तो तुम्हारी दौलत काम में आ जाएगी? तुम्हारी शोहरत काम में आ जाएगी? क्या काम में आएगा, महाराज! क्या काम आएगा सब टुकुर-टुकुर देखते रह जाएंगे, और क्या होगा? सब मुँह ताकते रह जायेंगे, और क्या होगा? उस समय मुझे लगेगा कि अब तक मैंने जो अपना समय लगाया, शक्ति लगाई और श्रम लगाया, वो सब व्यर्थ रहा, इसमें कोई अर्थ नहीं है। काश, मनुष्य इस पर गंभीरता से विचार करें तो उसके जीवन की दिशा ही परिवर्तित हो जाए, लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। विचार करो, अंत क्या है?
गुरु जी ने ब्लैक बोर्ड पर एक 0 बनाया, उसके सामने प्लस का निशान लगा कर के फिर 0 लगाया और सवाल किया 0 प्लस 0 इक्वल टू क्या? 0 प्लस 0 बराबर क्या? सब छात्रों ने कहा 0। उन्होंने उसके आगे थोड़ा बड़ा जीरो लगाया, उस 0 के आगे एक और उसी के बराबरी का 0, पूछा, इस 0 प्लस 0 बराबर क्या? सबने बोला 0। फिर एक और बड़ा 0 बनाया जो आधे ब्लैक बोर्ड को कवर कर लिया था, उसकी बराबरी का 0 सामने था और पूछा, इस 0 प्लस 0 इक्वल टू क्या? सबने बोला, 0। एक छात्र ने पूछा, कि सर बात समझ में नहीं आता, 0, छोटा 0 हो या बड़ा 0, 0 की भी कोई अलग वैल्यू है क्या? छोटे 0 का रिजल्ट छोटा और बड़े 0 का रिजल्ट बड़ा, ऐसा है क्या? बोलो, तुमसे पूछूं तो क्या बोलोगे? 0 बराबर 0 चाहे छोटा हो तो 0, बड़ा हो तो 0, पता है ना। 0=0, छोटा हो तो और बड़ा हो तो। बस मैं तुमसे इतना ही कहता हूँ, राजा हो या रंक, अंत सबका 0 है। सबको चिता की राख में परिवर्तित हो जाना हैं, और क्या है? मर जाने के बाद और क्या होगा- सब शून्य। यह हो सकता है कि रंक को गोबर के उपलों से जलाया जाए और राजा को चंदन की लकड़ी से जलाया जाए, पर ध्यान रखना, राख दोनों की समान होगी। गोबर के उपलों की राख में दुर्गंध नहीं होती और चंदन की राख में सुगंध नहीं होती। इस बात को कभी भूलना मत अंत 0 है, समझ में आ रही है बात, बोलो, तो कब थमोगे यह तो बताओ? हाँ! महाराज! थम जायेंगे। कब्र में पांव लटक जाने के बाद भी लोगों को थमने की बात नहीं आती, कैसी आसक्ति होती है मनुष्य की? कितनी प्रगाढ़, पैसे के पीछे मनुष्य की अंतहीन लालसा, उसे सारी जिंदगी दौड़ाते रहती है, यह आसक्ति है जो हमें थमने नहीं देती। इसका बंधन एक ऐसा बंधन है जिससे बंधने वाला मनुष्य सारी जिंदगी दौड़ता रहता है। दुनिया के अन्य जितने भी बंधन हैं, उससे आदमी कैद हो जाता है लेकिन आसक्ति का बंधन एक ऐसा बंधन है जिसके कारण मनुष्य सारे जीवन केवल दौड़ता रहता है, उसे दौड़ना पड़ता है। सब दौड़ रहे हो की नहीं दौड़ रहे, बोलो। किसके लिए? लेकर जाने के लिए, क्या होगा कुछ ले जाओगे? तो फिर, किसके लिए? तुम जो एकत्रित कर रहे हो उसे ले जा नहीं सकते और जो ले जाया जा सकता है, उसे तुम पहचानते नहीं। उसके लिए तुम्हारा कुछ प्रयास नहीं, संत कहते हैं- ‘इन ठीकरो का मोह तुम छोड़ो और जो ले जाया जा सकता है उसे उपार्जित करने की कोशिश तुम शुरू कर दो।’ उसका प्रयास कर दो तो जीवन में कुछ कामयाबी होगी अन्यथा सब कुछ व्यर्थ हो कर भी नष्ट हो जाएगा, कुछ भी साथ नहीं आएगा। इस मनुष्य जीवन को पाया है, थोड़ा थम कर विचार करो कि हमें यह मानव पर्याय क्यों मिली और मुझे क्या करना है? एक आचार्य ने मनुष्य पर्याय के उद्देश्य का बहुत सुंदर उल्लेख करते हुए कहा- यह मनुष्य जीवन इसलिए नहीं मिला कि तुम परिवार-परिजन में ही खो कर रह जाओ। इस मनुष्य जीवन की प्राप्ति इसलिए भी नहीं हुई कि तुम रमणियों में रमते रहो। यह मनुष्य जीवन तुम्हें इसलिए भी नहीं मिला कि तुम केवल धन-पैसे में उलझ करके रह जाओ। अपनी आत्मा का उद्धार करने के लिए, भव सागर से पार उतरने के लिए मनुष्य जीवन मिला है, इसका उपयोग करो नहीं तो सब व्यर्थ हो जाएगा। जिससे इसकी पहचान होती है वो थमता है और जिसके अंदर इसकी समझ नहीं होती वह थक कर मर जाता है। एक दिन क्या होगा, अपनी जिंदगी से थक जाओगे और मर जाओगे। थकने के बाद तो क्या होता है, थकते हैं फिर पड़ते हैं तो मरने का मतलब क्या है? पड़ जाना लंबे समय के लिए, काम खत्म। संत कहते हैं – ‘नहीं, थकने के पहले थमो, भागदौड़ से बचों।’ पर कब होगा? जब आशक्ति कम होगी, तब ना। एक बार मैंने जब इस तरह की बात की तो एक व्यक्ति ने कहा- महाराज जी! आपकी बातें सही है पर प्रैक्टिकल नहीं, हम बोले, क्या बात है, भाई प्रेक्टिकल क्यों नहीं? महाराज हम लोग गृहस्थ हैं, आप तो साधु हैं। आपको इनकी जरूरत नहीं, पर आपको पता नहीं आज के सारे सामाजिक मूल्य रुपयों पर आधारित हो गए, हमारे पास पैसे नहीं होंगे तो कैसे काम चलेगा? थोड़े बहुत पैसे तो चाहिए। मैंने कहा, ठीक है तू कहता, थोड़े बहुत पैसे तो थोड़े और बहुत का कोई लिमिट है, बोलो, कि थोड़े चाहिए या बहुत चाहिए? बोलो, थोड़ा-बहुत वालों? थोड़ा और बहुत यह ही तो घालमेल है, कितना चाहिए? कोई लिमिट है? कोई लिमिट, कितने में पर्याप्त होगा यह और बता दो? की महाराज यह लिमिट हो गई, अब हम थम जाएंगे। एक अवस्था में मनुष्य के लिए पैसा कमाना उसकी रिक्वायरमेंट होती है, एक लिमिट तक पैसा कमाना मनुष्य की रिक्वायरमेंट होती है, बाद में कमाना ही मनुष्य की रिक्वायरमेंट हो जाती है। अपने रिक्वायरमेंट की पूर्ति के लिए तुम कमाओ, कोई मना नहीं लेकिन पैसा कमाना ही, तुम्हारे रिक्वायरमेंट बन जाए तो बड़ी मुश्किल है। जीने के लिए कमाना और कमाने के लिए जीना, इन दोनों के अंतर को कभी भूलना मत। किसके लिए कमा रहे हो, जीने के लिए, तो ठीक है कमाओ, उसके बिना तुम्हारा गुजारा नहीं होगा। मैं भी कहता हूँ- जियो, जीने के लिए कमा लो, कितना चाहिए उतने में देख लो कि इतने में मेरी जिंदगी अच्छे से चल जाएगी, काम खत्म उतना ही ध्यान दो। उतना हो जाने के बाद फिर नशा चढ़ जाता है, फिर आदमी जीने के लिए नहीं कमाता, कमाने के लिए जीना शुरु कर देता है और ऐसे व्यक्ति की भागदौड़ अंत तक नहीं मिटती, यह भूख मिटेगी भी नहीं। देखो, तुम्हें चार रोटी की भूख हो, दो रोटी मिल जाए तो भूख आधी होती है कि नहीं, चार रोटी की भूख थी दो रोटी मिली, भूख आधी हो गई। होती है, रोज का अनुभव है। 10 लाख की चाह थी 5 लाख मिल जाए तो क्या होता है, चाह आधी हुई की 20 लाख की पैदा हो गई? क्या होता है, अनुभव बताना क्या होता है? थोड़ा बोलो तो, बढ़ जाती है बस यही गणित है। थमिये, अन्यथा भागते ही रहिएगा और कुछ नहीं होगा। एक बहुत अच्छी कहानी है- How much land a man required? इसका अनुवाद किया जैनेंद्रजी ने, ‘कितनी जमीन’, बहुत अच्छी कहानी है, मुझे याद आ गई। एक फकीर किसी किसान के घर मेहमान हुआ, किसान ने उसका आत्मीय स्वागत किया, भोजन कराया। फकीर उसकी सेवा से प्रसन्न हो उठा और जाते वक्त उससे पूछा- क्या करते हो? उसने कहा, कुछ नहीं, ढाई बीघा जमीन है, जोतता हूँ, अपने और अपने परिवार का पालन करता हूँ। आप जैसे संतों की रज ले कर अपने जीवन को कृतार्थ कर लेता हूँ। फ़क़ीर ने कहा, तुम बड़े गरीब आदमी हो, तुम्हारे पास मात्र ढाई बीघा जमीन है। बोला, हाँ! यह गरीब क्या होता है। अरे भाई, जिसके पास थोड़ी सी जमीन होती है, वह गरीब होता है और जिसके पास ढेर सारी ज़मीनें होती हो वो अमीर होता है और उसी क्षण वह आदमी गरीब बन गया क्योंकि अमीर बनने की चाहत जो जग गई। अमीर बनने की चाहत जगते ही वह गरीब हो गया। उस की मायूसी को ताड़ते हुए फकीर ने उससे कहा, बंदे! तूने मेरी सेवा की है, मैं तेरी सेवा को व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। तू एक काम कर, मैं तुझे एक मंत्र देता हूँ, 2 दिन के उपवास के साथ इसकी साधना करना, देवता प्रसन्न होंगे और उसके बाद तू जितनी चाहेगा, उतनी जमीन का मालिक बन जाएगा। बड़ा प्रमुदित हुआ, मंत्र लिया। 2 दिन के उपवास के साथ उसने मंत्र को साधा, देवता प्रसन्न होकर प्रकट हो गए और जैसे ही देवता ने पूछा, क्या चाहते हो? उसने कहा, जमीन चाहता हूँ। बोले, देख यहां जितनी जमीन दिख रही है, यह सब मैं तेरे नाम कर दूंगा। एक काम करना, कल सूर्योदय से तु शुरू करना और सूर्योदय से सूर्यास्त तक तू जितनी जमीन घेर लेगा, मैं सब तेरे नाम कर दूंगा। रात सो नहीं पाया, सपने में भी दौड़ता रहा, सुबह उठा, खाया- पिया नहीं, सोचा कुछ खा- पीकर चलूंगा तो दौड़ नहीं पाऊंगा। बस एक पानी का बोतल अपने कंधे में टांग लिया, दौड़ना शुरू किया, थोड़ी देर में वो काफी आगे निकल गया। उसने देखा, अभी तो दिन चढ़ा भी नहीं है और अभी तो बहुत जगह है और आगे चलो, दौड़ते गया, वो एक क्षण को पानी पीने भी नहीं रुका क्योंकि उस से 2-4 गज जमीन कम हो जाती, वो दौड़ता गया। जब काफी आगे निकल गया, तब तक दिन चढ़ चुका था, उसे लगा कि अब मुझे लौटना भी है लौटना शुरू किया, शरीर थक चुका था, शरीर जवाब दे रहा था। वो बार-बार जैसे-तैसे ताकत बटोर कर दौड़ रहा था, गिरते-पड़ते, आगे चलते-चलते, अचानक उसे एक ठोकर लगी, वो गिरा फिर उठ नहीं सका। ठोकर लगी, गिरा तो हमेशा को गिर गया, उठ नहीं सका, उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। कहते हैं, उस देवता ने वही पर उसकी कब्र बना दी और उस कब्र पर एक शिलालेख अंकित कर दिया। उस पर लिखा था, बस इतनी सी जमीन की खातिर यह आदमी सारी जिंदगी दौड़ता रहा। बात समझ में आ रही है?
कुछ भी नहीं है तेरा, 2 गज जमीन है तेरी। मिल जाए यह भी तुझको, यह भी नहीं जरूरी।।
फिर अपने यहाँ तो 2 गज जमीन की भी व्यवस्था नहीं, उसी 2 गज में कितने दफन हो चुके। क्या है? काश, मनुष्य शब्दों को समझे तो वही उसके कदम थम जाएंगे। इसलिए मैं आप से कहता हूँ, थमिये, नहीं तो थक कर के मर जाओगे, कुछ नहीं होगा।
अब वक्त थमने का आ गया है, तय करो, कब तक मुझे सक्रिय गृहस्थी में रहना है, कब तक मुझे व्यापार-धंधे में उलझना है। अब तो विराम लो, कब तक मौज मस्ती में लीन होना है, कहीं तो रुको। केवल भागते ही रहोगे, भागते रहोगे तो हाल बहुत बुरा होगा, थक जाओगे। इसीलिए थकने से पहले थमो और थम कर क्या करो, थामो। किसको थामो? धर्म का दामन थामो। किस को थामना है? धर्म का दामन थामो, धर्म को अंगीकार करो, धर्म को आत्मसात करके अपने जीवन को आगे बढ़ाओ, तभी तुम्हारा उद्धार होगा। एक बात बताओ, जब कोई थक जाए और थकने के बाद वह किसी को थाम ले तो थकान कम होती है कि नहीं होती? बोलो, पर मैं आप से कहता हूँ, आजकल लोग धर्म के क्षेत्र में आते हैं, पर कब? जब थक जाते हैं, तब। आज जितने भी साधु-संत है जिनके धर्मोपदेश-प्रवचन होते है, आप देख लो उनकी सभाओं में प्रौढ़ और बुजुर्ग मिलेंगे, युवा कम मिलते हैं , बहुत कम। अनुपात देखे तो 10% का भी नहीं होगा, ज्यादातर सीनियर सिटीजन होते हैं, क्यों? जिंदगी से थक जाते हैं, तब उनको समझ में आती कि धर्म करना है और उस समय उनका शरीर कुछ भी करने लायक नहीं होता, देखो चेयर पर बैठने वालों की संख्या दिनों- दिन बढ़ते जाती हैं। अब में उन्हें कहुँ- पद्मासन लगाकर सामायिक करो, तो करने लायक बचे ही नहीं। प्रारम्भ से ऐसे किये होते, जमीन से जुड़े होते तो आज यह दशा नहीं होती। मैं तो ऐसे लोगों को कहता हूँ- थोड़ा पुण्य किया तो आसन मिल रहा है, ज्यादा कर लेता तो सिंहासन मिल जाता। लेकिन यह क्या है, सब थकने के बाद सोचते हैं, आप देखिए सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए जब आप किसी पार्क में जाएंगे तो वहां सब प्रौढ़ और बुजुर्ग दिखेंगे, युवा नहीं दिखेंगे। क्यों? थकने के बाद थामते हैं, थकने से पहले थम जाओ तो तुम्हे किसी को थामने की जरूरत नहीं होगी। तुम औरों को थामने में समर्थ बन जाओगे, यह कोशिश करो।
थककर थमने की जगह, थकने के पहले थमना सीखो। एक दिन तो सब थकते हैं और थम जाते हैं, बोलो, तुम व्यापार करोगे, एक दिन छोड़ना पड़ता है कि नहीं, छोड़ते हो कि नहीं, जब बिस्तर पकड़ लेते तो छूटता है कि नहीं? हाँ, महाराज! फिजिकली तो सब छूट जाता हैं पर मेंटली नहीं छूटता, चलता रहता हैं कि नहीं। आदमी अंदर से जुड़ा रहता है लेकिन फिर भी फिजिकली छूट गया, छूटा ना। कब? थक कर के थमे हो, तो ये हाल हो गए कि किसी लायक नहीं। जैसे वो पहाड़ पर चलने वाले खाट पर पड़े रहे, तुम खाट पर पड़े रहे? अगर पहले से सोच लिए होते, सही सलाह मान ली होती, थोड़ा थम-थम करके चले होते तो खटिया क्यों पकड़नी पड़ती। बात समझ में आ रही है, भाइयों, सुन तो रहे हो ना, थम-थम कर चलोगे तो थकोगे नहीं, तुम्हें खटिया नहीं पकड़नी पड़ेगी। थकने के पहले थम जाओ, समझ गए। अपने जीवन को आगे बढ़ाने का रास्ता भी अंगीकार करो, अपना पथ प्रशस्त करो तो वो हमारे जीवन के उद्धार का आधार बनेगा, तब अपने जीवन में कुछ कामयाबी अर्जित कर पाओगे, कुछ घटित कर पाओगे। अन्यथा, सब यही साफ हो जाएगा, हाथ में कुछ भी नहीं रहेगा। तो थकने के पहले थमो। तन थके, मन थके, कुछ थके, उससे पहले थम जाओ और थमने के बाद क्या करो, थाम लो।
जब तक तुम थमोगे नहीं तब तक तुम धर्म को थाम नहीं सकते। थमना पड़ेगा तभी थामोगे, आप लोगों ने थामना शुरु कर दिया हैं, थाम लिया हैं, अब बस पकड़े रहो मजबूती के साथ पकड़े रहो। एक बात बोलूं, जो थकने के पहले थम जाता है और धर्म को थाम लेता है, वह जीवन के आखिरी तक कभी नहीं थकता, जीवन के अंत तक नहीं थकता, आखिरी तक जवान बना रहता है, उनके अंदर का उत्साह अलग रहता है, उम्र पार कर जाने के बाद भी उसके अंदर का उल्लास हमेशा कायम बना रहता है। हम लोग देखते भी हैं, बहुत सारे व्रती लोग हैं। हमारे साथ बाबा जी थे, 85 साल के, आज आप देख लीजिए उनके अंदर का कैसा उत्साह हैं। थमे हैं और थामा हैं, इसका यह परिणाम है। तुम लोग जाओगे, 70 बीमारियां पैदा हो जाएगी, अब क्या करें, कुछ कर नहीं सकते, जीवन बर्बाद। हाथ में क्या हासिल हुआ, बोलो, क्या हुआ, कुछ भी नहीं ना? तो उसके लिए रास्ता तो अंगीकार करना होगा। संत रोज यही उपदेश देते हैं – भैया! थमो, थामो। एक रास्ता आज तय करो कि मैं कब थमूंगा? चलो, पूरी तरह न थम सको तो कम से कम गति तो कम कर दो, इतना तो कम कर सकते हो। हम लोग कहते है ना थमी हुई है, ट्रैन जब चलती है, थमी हुई है, रुकी हुई है। अगर स्पीड थोड़ी धीमी होती तो लोग कहते इसको भी थमी मान लो। थम जाओ, चल रहे धीमे- धीमे-धीमे-धीमे चलना शुरू करो, गति को भी तो थोड़ी कम कर दो। महाराज! ऐसी बातें मत करो, हम तो बिल्कुल रेस में चल रहे हैं, सबको पीछे छोड़ कर आगे जाना चाहते हैं, कुछ ऐसी ही मंशा है क्या? आख़िर, अंतिम लक्ष्य क्या है तुम्हारा, उद्देश्य क्या है तुम्हारा, ध्येय क्या है तुम्हारा, गंतव्य क्या है तुम्हारा? यह तुम्हे सोचना होगा बाद में क्या होगा यही होगा कि यह आदमी 5000 करोड़ की संपत्ति अपने पीछे छोड़ कर के गया, कोई 2-5 करोड़, कोई 100- 50 करोड़, कोई 1000-5000 करोड़, कोई और उससे ज्यादा, इसके अलावा एक साम्राज्य जिसे तुम साम्राज्य कहते हो। बाकी क्या है, वो तो भगवान ही जानते हैं? उसे तुम छोड़कर के जाओगे, अपने लिए क्या करोगे, कुछ भी नहीं मिलेगा, विचार करो छूटने में और छोड़ने में अंतर मैंने एक दिन बताया था, छूटेगा यह तो तुम्हारी मजबूरी है कि छोड़ कर जाना पड़ता है, छोड़ते थोड़ी हो तुम साथ जाता तो यह भी नहीं छोड़ते, लेकिन इसके पहले की चीजें छूटे, अपने आप धर्म से जुड़कर, अपने जीवन को संवारने का प्रयास करो। अपने आचार-विचार और व्यवहार में परिवर्तन लाने का उपक्रम करो, जीवन में स्थाई बदलाव गठित करने की कोशिश करो। जीवन में पवित्रता लाने का प्रयास करो, संयम-साधना के रास्ते पर चलने का उपक्रम करो। तब कुछ होगा, साहस जगाओ, सम्बल जगाओ, संकल्प जगाओ, शक्ति अपने आप जग जाएगी। साहस चाहिए, संबल चाहिए, संकल्प चाहिए, शक्ति को जगाने की देर नहीं, आवश्यकता है। केवल एक बार अपने मन में ऐसा संकल्प हो जाए कि नहीं मुझे केवल यही-यही-यही करना है। अब मुझे विराम लेना है, मुझे बदलना है, जीवन को मोड़ना है तो आज आपके जीवन की दशा परिवर्तित हो जाएगी। हम महान-महान आत्माओं के जीवन को देखें, मैंने कहा थमना, थकना, थामना। थकने के पहले थम कर के थाम लो, जीवन में कोई कठिनाई नहीं आएगी जिसने एक बार धर्म के दामन को थाम लिया, वह जीवन में कभी नहीं थकेगा। आप देखते होंगे, बच्चे कभी-कभी खम्भा को पकड़कर गोल-गोल चक्कर काटते हैं, देखते हैं कि नहीं, कभी काटा भी होगा। खम्भा पकड़कर गोल-गोल चक्कर आप ने काटा हो या नहीं काटा, हमने तो काटा हैं। खम्भे को पकड़कर के गोल-गोल-गोल-गोल-गोल-गोल चक्कर काटते रहते, जितनी देर खम्भे को पकड़े रहते, चक्कर आता है क्या? बोलो, नहीं आता, और खम्बे से हाथ छूटा तो सिर चकराता है, अनुभव है। खम्भे को पकड़कर के कितने भी चक्कर लगाए कुछ नहीं होता, खम्बे से हाथ छूटता है, सिर चकराए बिना नहीं रहता। मैं तुमसे इतना ही कहता हूँ, दुनिया का जितना चक्कर लगाना है लगाओ, धर्म के खम्भे को थामे रहो कभी चक्कर नहीं आएगा। थाम लो जोर से छूटना नहीं चाहिए, आखिरी सांस तक नहीं छूटना चाहिए, तो तुम्हारे जीवन का उद्धार होगा, तब तुम अपने जीवन का पथ प्रशस्त कर सकोगे। आखिरी बात मैंने की थी, थूकने की। उन महापुरुषों को देखें जिन्होंने जीवन भर कुछ जोड़ा आखिरी में थूक कर चले गए। छोड़ दिया उच्छिष्ट की तरह, यह सब व्यर्थ है। चक्रवर्ती जैसा एक छत्राधिपति साम्राज्य, छः खंड की नीतियाँ, सार्वभौमिक साम्राज्य को भी उन्होंने जीर्ण-तृण की तरह छोड़ दिया। क्यों? अपने भीतर की चिन्मयी वैभव को पहचान लिया। तुम भी उसे पहचानो तो, वह तो बाद की बात है पर आज मैं आप से कहता हूँ- थमने, थकने और थामने की बात को अपने जीवन में उतार लीजिए और तय कीजिए अब मुझे थमना है, बाइंड-अप करना शुरू कीजिए।
देखिये एक उदाहरण देता हूँ आपको, आप लोग जब यात्रा पर निकलते हो, आपका स्टेशन आना होता है, उससे पहले अपना लगेज संभालते हो कि नहीं? ट्रेन में यात्रा कर रहे हो, स्टेशन आने के पहले आखरी स्टेशन आ रहा है, उससे पहले अपना लगेज संभालते हो कि नहीं? सँभालते हो ना, तो भैया तुम्हारा स्टेशन आने वाला है, लगेज तो संभाल लो और एक बात बताँऊ जितना हैवी लगेज लेकर के चलोगे, उतरने में उतनी ही कठिनाई होगी, एक झोला ले लो, जहां स्टेशन आए सीधे उतर जाओ, कोई दिक्कत नहीं है, एक बार केवल छलांग लगानी पड़ती है। बाइंड-अप करना शुरु कीजिए, अब स्टेशन आने वाला है। कब आ जाये कोई पता है, बोलो? अपने सफ़र में तो तुम्हारी टिकट पहले से तय होती, तुम्हें तुम्हारा डेस्टिनेशन पता होता है, लेकिन यहां की टिकट का कोई सिस्टम नहीं है, कब गाड़ी रुकी और तुम्हे उतरना पड़े, कोई भरोसा नहीं। इसलिए अपना लगेज ठीक करो, बाइंड-अप करना शुरू करो, थम जाओ, थकने से पहले थाम लो और अपने जीवन को बदलने का प्रयत्न कर लो, तो यह हमारा जीवन सार्थक होगा। तो ‘थ’ की बात पर थोड़ा विचार करना, जीवन में थिरता आ जाएगी। समझ गए ना, उसे उद्घाटित करने की कोशिश करिए। यहीं पर विराम!