बचें शक के जंजाल से
आज बात ‘श’ की है और ‘श’ शिक्षक का हैं। आज वैसे शिक्षक दिवस भी हैं, पहले मैंने सोचा कि शिक्षा की बात करूँ पर आज शंका-समाधान में विशेष कार्यक्रम रख दिया गया तो मैंने सोचा, अब शिक्षा की बात नहीं करता हूँ, शंका की बात कर लेता हूँ। ‘श’ से क्या? शंका। शंका हमारे जीवन की एक बहुत बड़ी दुर्बलता भी है, तो शंका हमारे जीवन की एक बड़ी विशेषता भी हैं। मनुष्य के मन में कई प्रकार की शंका होती हैं, शंका है, शक हैं। शक, शंका ये सब एक ही परिवार के सदस्य हैं। दो स्थितियों में होती है, एक जब हमारे मन में कोई जिज्ञासा होती है, कोई कुतूहल होता है और उसके निवारण के लिए हम किसी से पूछते हैं तो हमें समाधान मिलता है। शंका तब होती है, जब हमारे सामने कोई खतरा या संकट खड़ा हो जाता है तब भी हमारे सामने शंका होती है या जब भी हम कोई पूर्वानुमान लगाते हैं, अपने भविष्य के प्रति कुछ चिंतित हो जाते हैं, तब भी हमारे मन में शंका होती हैं। एक शंका जिज्ञासा की, एक शंका खतरे या संकट को देखकर, एक भविष्य को लेकर के अपने मन में शंका और एक अपनी सुरक्षा की शंका। यह चार प्रकार की शंका है। संत कहते हैं- जब तक शंका है तब तक खटका है और समाधान में शांति है, अपने मन को टटोल करके देखें। शंका-समाधान का कार्यक्रम तो आप रोज देखते हैं, पर मेरा मन निःशंक है या नहीं। धर्म का मार्ग शंका से निःशंका का है, निःशंक हो करके जो जीवन बिताते हैं, वह अपने जीवन में सफलीभूत होते हैं और जिनके अंदर शंका बैठी रहती है, उनका भविष्य शंकास्पद हो जाता है, वो संदेह के घेरे में होता है। आपने देखा, आपके मन में शंका कब होती है? जिज्ञासा पूरक शंका कोई बड़ी शंका नहीं है क्योंकि उसका हमें कहीं ना कहीं समाधान मिल जाता है हालाँकि जब तक हमारे मन में कोई जिज्ञासा होती है और जिज्ञासा मूलक शंका होती है, हमें उसका समाधान नहीं मिलता, हम चैन नहीं रखते, हमारी चैन खो जाती है और व्यक्ति उसके समाधान के लिए चाहे जितने व्यक्ति के पास जाता है और उससे येन-केन उपाय समाधान निकाल लेता है। यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, यह जिज्ञासा है और उसका समाधान मिलता है, उससे हमारे, ज्ञान की वृद्धि होती है और हमारे जीवन का पथ प्रशस्त होता है। तो वह शंका-समाधान की बात मैं आज आपसे नहीं कर रहा हूँ, वह तो रोज होती है और वो नहीं हो तब भी कोई दिक्कत नहीं क्योंकि वो शंका जहाँ उत्पन्न होती है, समय पाकर के अपने आप उसका समाधान हो जाता है।
मैं अपने जीवन के अनुभव की बात आप से करता हूँ, जब मैंने षटखण्डागम का स्वाध्याय किया तो हमारा चातुर्मास बाहर होता था। 1988 में हमारी मुनि दीक्षा हुई और 1989 से हमारे चातुर्मास बाहर हुये। इस मध्य हमने षटखण्डागम के 6 अध्यायों का अध्ययन किया और जब पढ़ता था तो जहाँ मेरे मन में शंका होती थी, उसे मैं अंडरलाइन कर लेता था, उसे नोट करके रखता था कि जब गुरुदेव मिलेंगे तब इसका समाधान होगा। जब मेरे 6 खंड का अध्ययन पूरा हो गया और 1992 में एक दिन मैं गुरुदेव से समय मांग कर जबलपुर मढ़िया जी में था सोचा कि आज समाधान के लिए गुरुदेव के पास चलना है। पूरे के पूरे 6 खंड के स्वाध्याय में मेरे करीब 90-92 शंकाये थी। मैंने सोचा जब गुरुदेव के पास जा रहा हूँ तो पहले एक बार विषय को देख लूँ ताकि उन तक सब बातें रखी जा सके। जब मैंने दोबारा विषय को दोहराया तो आधे से ज्यादा प्रश्न तो मेरे ऐसे हो गये फिर मैंने देखा तो उसमें से 10-15 प्रश्न ऐसे थे जो प्रश्न प्रिंटिंग त्रुटि के कारण हुए थे। वहाँ जो कुछ मुद्रण था, वह गलत था, वह अशुद्धि थी। कुछ ताड़पतियों की त्रुटि के कारण, उसमें वैसा अंकित था, उसका कोई सोल्युशन होना नहीं था। मैं जब गुरुदेव के पास गया तो जाने के पहले ही कुछ प्रश्नों का उत्तर जब मैं प्रश्न खोल करके बैठा तो आ गये पर आप सब को सुनकर आश्चर्य होगा कि 92 प्रश्नों की लिस्ट बनाई थी और गुरुदेव से केवल 7 प्रश्न पूछना पड़ा, समाधान मिल गया। तो जिज्ञासा, कुतूहल, मूलक जो शंकाये होती है, उसको उसके समाधान के लिए बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती। आप लोग शंका समाधान देखते है, शंका कोई करता है, समाधान किसी और को मिल जाता है, हो सकता है, शंका करने वाले के मन में शंका बनी रहे लेकिन जो समाधान खोजता है उसके लिए तो समाधान मिल ही जाता है। मैं उस शंका की बात नहीं कर रहा हूँ, मैं आपके सामने आज बात कर रहा हूँ दूसरी शंका की, आप अपने भविष्य के प्रति शंका रखते हो, रखते हो कि नहीं। रखते हो। बोलो, महाराज बहुत शंका होती है भविष्य की, तुम्हारी जिज्ञासा मूलक शंका का समाधान कोई दूसरा कर सकता है पर तुम्हारे भविष्य के प्रति तुम्हें कोई दूसरा नि:शंक नहीं कर सकता। जो अपने भविष्य को लेकर के शंका करते हो वे बड़े चिंतामग्न होते हैं, उनके मन में हर पल एक शंका होती है, खटका बना रहता है कि क्या होगा, क्या होगा, क्या होगा? कही कुछ गड़बड़ ना हो जाए, कही कुछ अशुभ ना हो जाए, कही कुछ गलत ना हो जाए, जो एक मन में खटका होता है, कीड़ा काटता रहता है। कुछ लोगों का स्वभाव ऐसा होता है कि हर बात में जब-जब भी हो तो मन में शंका होती है, उनकी सोच बड़ी नेगेटिव होती है कि अब क्या हो जाए, क्या हो जाए। गाड़ी ड्राइव पर है, एक्सीडेंट ना हो जाए, व्यापार कर रहे हैं, कहीं failure ना हो जाए। मन में हर पल किसी ना किसी बात की शंका बनी रहती है, जो हमारे चित्र को डांवाडोल करते हैं और जब मनुष्य के मन में शंका होती है तो उसकी क्षमताएं खंडित होने लगती है। एक तरफ शंका है, एक तरफ विश्वास है, एक तरफ डाउट है, एक तरफ कॉन्फिडेंस है। विश्वास मनुष्य की प्रगति कराता है और शंका उसकी प्रगति को अवरुद्ध कर लेती है। कुछ कर नहीं पाते, लोगों के अंदर हिम्मत नहीं होती। हम क्या करें, क्या करें, क्या करें? failure होने का भय, प्रगति अवरुद्ध हो जाने का भय, पता नहीं हम सक्सेस हो पाएंगे कि नहीं हो पाएंगे, शंका, देखो विद्यार्थी पढ़ाई करता है। शंका, कैसे व्यक्ति के भविष्य को रोकती है? विद्यार्थी पढ़ाई करता, सब कुछ अच्छे से करता, पेपर है पढ़ा हुआ है पर पूरा विषय पर मन में शंका बैठ गया, कहीं पेपर टफ ना आ जाए, मैं पेपर ठीक से कर पाऊंगा या नहीं, परीक्षा दे पाऊंगा या नहीं, क्या होता है, जो आता है वह भी भूल जाता है, क्यों? शंका, किसके कारण? अपनी दुर्बलता के कारण आपके मन में जो भी शंकाये आती है अपने भविष्य के प्रति, उसकी 4 वजह मुझे दिखती है। सबसे पहला आपके आत्मविश्वास की कमी, मन को आत्मविश्वास से भर लो कोई शंका नहीं, एक बार एक सज्जन ने मुझसे कहा, महाराज जी! मैं कोई निर्णय नहीं ले पाता, निर्णय नहीं ले पाता, मुझे डर लगता है। मेरा कोई निर्णय गलत ना हो जाए, गलत ना हो जाए, गलत ना हो जाए, इसलिए मैं हमेशा दुविधा में बना रहता हूँ, आप लोगो के साथ भी ऐसा ही होता है। महाराज! कोई उपाय बताये। मैंने उससे कहा, देख मैं तेरे को आशीर्वाद देता हूँ। तुम एक काम करना, मेरी छवि का ध्यान करना और 9 बार णमोकार मंत्र पढ़कर के निर्णय ले लेना, अभी ताली मत बजाओ मैं कुछ चमत्कार की बात नहीं कर रहा हूँ। देखो क्या कर रहा हूँ, मनोवैज्ञानिक तरीके से आदमी को ट्रीट करता हूँ, जब भी तुम्हारे मन में दुविधा हो तुम मेरी छवि याद करना, 9 बार णमोकार मंत्र पढ़ लेना और निर्णय ले लेना और 10 दिन की समीक्षा करके मेरे पास आना, उसने वैसा किया और उसके 10 निर्णयों में से 7 निर्णय सही निकले। बड़ा खुशी-खुशी आया, बोला, महाराज! चमत्कार हो गया, चमत्कार हो गया। आपके बताए फॉर्मूले के कारण अब मेरे 10 में से 7 निर्णय सही हो गए। मैंने कहा- भैया चमत्कार कुछ नहीं हुआ, भरोसा जागृत हुआ है, यह निर्णय लेने की क्षमता तो तेरे अंदर पहले भी थी, मैंने कोई चमत्कार नहीं किया तेरी मुझ पर श्रद्धा है, मैंने कहा मेरी छवि याद करना और नमोकार जपना। तुमने जो वो किया उससे तुम्हारे मन का जो संदेह था, शंका थी, वह दूर हो गई, तुम्हारे अंदर का विश्वास जागृत हो गया और विश्वास का यह परिणाम निकला कि तुम्हारे निर्णय सही हो गए। इसका तात्पर्य यह है कि तुम 70% सही निर्णय लेने में समर्थ थे, इसका तुम्हें पता नहीं था काश तुम्हें पता होता तो तुम्हारी यह दुविधा नहीं होती। कई बार लोगों के साथ होता है, देखो शत-प्रतिशत सही निर्णय तो किसी के नहीं होते, गलत निर्णय अनेक बार होते है। सही व्यक्ति, सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करता है, घबराना नहीं चाहिए लेकिन अपना आत्मविश्वास तो जगाइए, आत्मविश्वास जगाइए। अगर आपका अपना आत्मविश्वास प्रगाढ़ होगा तो आप अपने भविष्य के प्रति कभी शंका नहीं करेंगे। ठीक है, जो मैं करूंगा उसका परिणाम आएगा, बाई चांस कुछ गलत भी हो गया तो निपटेंगे। अरे भाई अपने जीवन को पलट कर देखो, तुमने चलना शुरू किया तो उससे पहले कितनी बार गिरे, बोलो, हम तुम जितने इस संसार में बिना गिरे कोई चलना नहीं सीखा और उस समय हमारी मां ने हमको यह सोचकर के पकड़ा नहीं कि कही गिर न जाए। अगर माँ यह सोच कर के बैठी रहती कि कही गिर ना जाए और हमें बार-बार पकड़ती, सहारा देती तो आज हम अपने बल पर चलने में समर्थ नहीं होते। यह मां की कृपा है कि हम चल रहे हैं, गिर रहे हैं तो गिरते समय उनने कुछ गिरने की चिंता नहीं की, बस पुचकार के कहा- बेटा उठ खड़ा हो फिर चलना, चलना, चलना और हम गिर-गिर कर मजबूत हुए। आज अपने पाँव पर चलने में समर्थ है, सब की कहानी है ना ये। गिरकर के चलना हुआ तो मैं गिर ना जाऊँ, उसकी शंका क्यों करते हो। गिरूंगा तो और मजबूत बनूंगा फिर उठकर खड़ा होऊंगा और सफलता के मुकाम पर पहुचूँगा। यह हौंसला अपने भीतर होना चाहिए, आत्मविश्वास प्रगाढ़ अपने भीतर जगाइए, बनाइये, भविष्य की कोई चिंता आपके मन में नहीं होगी। दूसरा है बस मनुष्य के मन में भविष्य की चिंता का भविष्य की शंका का जो कारण वह है नकारात्मक सोच, कुछ लोगों का स्वभाव होता है, हर बात पर नकारात्मक-नकारात्मक नजरिए से देखते हैं ,उनकी सोच ही ऐसी हो जाती है और नेगेटिव सोच-सोच कर सारे परिणाम नेगेटिव बना लेते हैं। अपनी सोच में बदलाव लाइये हम पॉजिटिव सोचे। अपने भीतर एक अच्छा माध्य जगाये और हर चीज को यदि सकारात्मक एंगल से देखेंगे तो हो जाएगा। दो तरह के लोग हमारे संपर्क में आते हैं, कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनसे कोई बात करो, यह कैसे होगा? कुछ लोग होते हैं जो कहते है, हो जायगा। जो हो जाएगा वो पार हो जाएगा और कैसे होगा, वह चीख़ते रह जाएगा। कुछ नहीं होगा, हमें करना है तो करना है। अपने मन में वह सकारात्मकता विकसित होनी चाहिए, नकारात्मकता जितनी हावी होगी, तुम्हारे मन में शंका, व्यग्रता, उद्वेग बनी रहेगी।
लोगों के अंदर होता है, आजकल ज्यादा नकारात्मक सोचते है, ज्यादा नकारात्मक सोचते है, देखिए कैसा आप सोचते है। कोई व्यक्ति आपके घर से बाहर गया और वह आने का समय बता कर गया था कि मैं अमुक तारीख को इतने बजे आऊंगा, अमुक ट्रैन से आऊंगा, अभी गाड़ी से आऊंगा, अपनी गाड़ी लेकर के गया, मान लीजिए। वो आदमी नहीं आया, दो-तीन घंटे हो गए, आपके मन में क्या आया, क्यों? क्यों नहीं आया, पहले चरण में क्या आएगा, एक्सीडेंट तो नहीं हो गया और बाई चांस आपने उसे फोन किया, घंटी पूरी बजी और फोन नहीं उठा, फिर क्या होता है। हार्ट- बीट बढ़ती है, ये शंका है ना, यह किस का परिणाम है, नकारात्मकता का। कल एक सज्जन मुझसे कह रहे थे कि किसी ज्योतिषी को दिखाया होगा, जो सीधे कह दिया इनका 2019 बहुत खराब होने वाला है। एक साल बाद 2019 बहुत खराब होने वाला है तो उनकी धर्मपत्नी अभी से अपनी हालत खराब कर ली, 2019 खराब होगा और अभी से परेशान है। अरे अभी 2019 आया नहीं, अभी तो 2018 चल रहा है, उसने बोला है, साल भर के बाद का काल इनका ख़राब है, हो सकता है इनको गंभीर बीमारी भुगतना पड़े तो जब भुगतना पड़े तो भुगतना पड़े। अभी क्यों? मैंने उनको समझाया अमर हो के आये हो क्या? और जितने मरते है, जितने बीमार होते है, पंडितों से पूछने के बाद बीमार होते हैं क्या? बोलो ज्योतिषियों से पूछने वाले ही बीमार होते हैं क्या? अगर तुम्हारे अंदर बीमारी होना होगी तो होगी, 1 साल बाद की बात को अभी मन में लिए, यह भविष्य की चिंता, चिंता मनुष्य को अंदर से तोड़ देती है। संत कहते हैं- इस शंका से बचने के लिए आप अपनी निगेटिविटीज को खत्म कीजिए, बस तुम्हारी कोई शंका नहीं होगी। नंबर 3, कर्म सिद्धांत पर विश्वास, अगर तुम्हारे हृदय में कर्म सिद्धांत पर विश्वास होगा, विधि के विधान पर भरोसा होगा तो तुम अपने भविष्य के प्रति कभी कोई शंका कर ही नहीं सकते। अरे मेरा भविष्य कैसा होगा, मेरा भविष्य कैसा होगा, जो मेरे भाग्य में होगा, जैसा विधि का विधान होगा, वैसा हो जाएगा। जो निमित्त आएगा, देखा जाएगा, जैसा मैंने अब तक झेला, आगे भी झेल लूंगा। संसार के सारे संयोग मेरे अधीन है, मेरे नियंत्रण में है। मैंने अपने जीवन में आज तक जो कुछ भी किया, और होगा क्या अपने आधीन हुआ। अब तक जो हुआ, उसमें कर्म की बड़ी भूमिका है, आगे भी जो कर्म का उदय होगा, वह हो जाएगा। उसको लेकर के ज्यादा शंका करने की क्या जरूरत, उस व्यक्ति के मन में कोई भय नहीं होता। मैना सुंदरी के जीवन को देखो, पिता ने कोढ़ी से विवाह कर दिया, उसके मन में डर हुआ। क्या होगा, क्या होगा? ऐसा जो मेरे कर्म के उदय में होगा, होगा और उसने अपने पुरुषार्थ से श्रीपाल को कोढ़ी के रूप में नहीं देखा, उसे पति परमेश्वर के रूप में देखा और वो कोढ़ी से कामदेव बना लिया। मैना सुंदरी ने तो चौथे काल में कार्य किया, अभी हम आपको आज के काल का एक उदाहरण देते हैं, एक लड़के की सगाई हो गई, सगाई होते ही 15 दिन में उस लड़के का क्रिएट 99 पर पहुंच गया, किडनी की स्थिति बहुत खराब हो गई उसके शरीर से प्रोटीन बाहर जाने लगा। लड़के ने लड़की से कह दिया कि देख मेरी शरीर की स्थिति खराब है और मेरी किडनी की स्थिति के बारे में डॉक्टर भी कुछ बोल नहीं पा रहे, यह मेरी पोजीशन है। सगाई हुई है, शादी नहीं हुई, तुम जिसको देखना चाहते देख लो। लड़के ने ईमानदारी से अपनी स्थिति लड़की से कह दी, लड़की के सारे परिवार वाले विवाह तोड़ने के लिए, सगाई तोड़ने के लिए एकदम आमादा हो गए लेकिन लड़की ने एक ही सवाल अपने परिवार वाले लोगों से पूछा, सगाई के पहले लड़का-लड़की का कोई आपस में संबंध नहीं था, दोनों अपरिचित थे, यह टोटली arrange थी। लड़की ने अपने परिवार वालो से एक ही सवाल किया- यह बताइए जो बीमारी आज हुई है, यदि विवाह के बाद होती तो आप क्या करते? जो बीमारी आज हुई, यदि विवाह के बाद होती तो क्या करते? 2 माह ही तो विवाह के रह गए, बीमारी का कोई पता लगता है क्या? और जिसके कर्म के उदय में जो होना होगा, सो होगा, हम उसको लेकर के क्यों शंका करें? आज उनके लिए बीमारी आई है, अगर यह बीमारी विवाह के बाद होती तो आप सब उनकी बीमारी को ठीक करने के लिए बुद्धि लगाते, मेरा पति बदलने की बात नहीं सोचते तो यदि आपको सोचना है तो अपनी शक्ति उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए लगाइये। उनके भविष्य के लिए शंका मत कीजिए। उस लड़की ने refuse कर दिया, पूरे परिवार के लोगों से कह दिया कि अब मेरा विवाह होगा तो केवल उससे होगा। यह संदेश जब लड़के वाले के पास पहुंचाऔर खासकर लड़के के पास पहुंचा तो बोला विवाह तो होगा, मैंने अपनी तरफ से कर दिया लेकिन अब मैं पहले ठीक होऊंगा फिर विवाह करूंगा। उसका इलाज हुआ, सब लोगों ने मिलकर के प्रार्थनाये की और वो ठीक हो गया, विवाह हो गया, उसके बच्चे भी हो गए। यह परिवर्तन है। लड़की ने कहा कर्म के ऊपर मेरा विश्वास है, मैं शंका क्यों करूं? कल कुछ हो ना जाए, कल कुछ हो ना जाए, कल कुछ हो ना जाए, अरे तो होना होगा तो हो जाएगा, आज को विफल क्यों कर रहे हो। कर्म सिद्धांत पर भरोसा, ऐसा उदाहरण बहुत बिरला देखने को मिलता है, इतनी बड़ी घटना हो गई लेकिन नहीं ठीक है जो मेरे कर्म के उदय में होगा उसे मैं स्वीकार कर लूंगा। उसके अनुरूप मेरा जीवन जीऊंगा, देखते है, अब मान लीजिए, किसी का विवाह हो और विवाह के तुरंत बाद किसी की आयु पूरी हो जाए, इसका कोई भरोसा है। अरे हो ना जाए तो होना होगा तो हो जाएगा। एक बात को अपने दिल- दिमाग में स्थाई रूप से अंकित करना चाहिए की चीजे हमारे अधीन नहीं है, संयोग हमारे अधीन नहीं है, वह कर्म के अधीन है। हमारा पुरुषार्थ केवल इतना है कि हम अपने जीवन की व्यवस्था को ठीक-ठाक बना कर के चले, सावधान होकर के चले, मन में शंका हावी ना होने दें। ध्यान रखना, जीवन के प्रति जो सावधान रहता है, उसके जीवन में हमेशा समाधान होता है और जो जो जीवन की व्यवस्था के प्रति असावधान होता है, उसकी स्थिति सदैव शंकास्पद बनी रहती है। कर्म सिद्धांत पर पूर्ण भरोसा, अपने मन में हो, आपको अपने भविष्य की शंका नहीं होगी। भैया जो होना है सो होगा तो चिंता अब कैसी-कैसी शंका होती है। एक बहन जी मेरे पास आई, प्रेगनेंसी गर्भवती अवस्था में आई और बड़ी दुखी थी। उसका पति उसे साथ लेकर आया, बोला महाराज! आप इसको समझाइए। बोले क्या बात है? महाराज जी पेट में बच्चा बच्चा आने वाला है, मेरे को इस बात की शंका है कि कहीं मेरा बच्चा आगे चलकर बिगड़ ना जाए, आजकल बच्चे बिगड़ जाते हैं। जो बच्चा पैदा नहीं हुआ उसको लेकर शंका की बच्चा बिगड़ ना जाए, क्या हाल है। पिछले रविवार को एक बहन जी आई, उसकी 6 साल की बच्ची, इस बच्ची को ले करके वह बहुत ज्यादा चिंता में, उसके मन में शंका, कहीं मेरी बच्ची पिछड़ ना जाए। अभी पिछले एग्जाम में इसके रैंक पीछे आ गए। मैं चाहती हूँ जैसे मैं आगे बढ़ी वैसे यह बढे। , इसके पापा आगे बढे वैसे यह बढे। मैंने कहा बहन जी आप आगे बढ़ाने के लिए इसको जितना प्रेशर दोगे, उतना पीछे होगी। बच्चों के ऊपर इतना प्रेशर देने से उनका बचपना छीनता है, उनको इतना ज्यादा प्रेशराइज करने की कतई आवश्यकता नहीं है। शंका करना उचित बात नहीं है, कर्म सिद्धांत पर भरोसा रखने वाला मनुष्य निःशंक होकर के जीता है और जिसका कर्म सिद्धांत पर भरोसा नहीं होता उसके मन में कदम-कदम पर शंका बनी रहती है तो भविष्य को लेकर के आपके मन में कोई शंका हो तो आप आत्मविश्वासी बनिए, नकारात्मक सोचिए मत और कर्म सिद्धांत पर विश्वास रखें और चौथी बात आत्म क्षृद्धानी बनिये, आत्मबोध से भरे, अपनी आत्मा की पहचान करें, मन में ना कोई भय रहेगा न शंका। मेरी आत्मा क्या है उसे जानिये, भविष्य को लेकर के लोगों के मन में शंका होती है, एक तो अपने कैरियर का और दूसरा कही हम मर ना जाए, कही हमें बीमारी ना आ जाये, यह असुरक्षा, खतरा शंका का तीसरा रूप खतरा। संत कहते है- ‘खतरे से सावधान होना समझदारी है और खतरे की शंका में उलझ जाना पागलपन’। अगर आप अपनी गाड़ी को डेंजर जोन में ले जा रहे हो तो उस समय दो स्थितियां बनती है, डेंजर जोन से जो गाड़ी लेकर के चलते है उनके साथ दो स्थितियां बनती है। एक स्थिति तो यह है कि सावधानी पूर्वक गाड़ी चलाओ और कुशलता से इस पार से उस पार हो जाओ। सावधानी पूर्वक गाड़ी चलाओ और कुशलता से इस पार से उस पार चले जाओ वो व्यक्ति चला जाता है। और दूसरे बड़ा डेंजर है, बड़ा डेंजर है, बड़ा डेंजर है, बड़ा डेंजर है तो क्या होगा, नहीं होना होगा तो हो जाएगा, जो नहीं होना है सो हो जाता है। जीवन में खतरा है, ठीक है उसका सामना करेंगे। खतरा हमने मोल नहीं लिया लेकिन खतरा आ गया तो सामना करेंगे और दुनिया में बहुत सारे लोग हैं जो बड़े खतरनाक दौर से गुजरे और मैं तो सबसे पहली बात बोलता हूँ, हमारा तो जन्म ही खतरे से हुआ, बच्चा पैदा कैसे होता है, कितना संघर्ष करना पड़ता है बच्चे को तब वो जन्म लेता है। जिसका जन्म खतरे से हुआ, जिसका जन्म जन्म संघर्ष से हुआ, वह अगर खतरे से घबराये तो मतलब क्या है। खतरे से सावधान रहो, संकट के आगे सावधान हो और समझदारी से काम करो पर उसकी शंका में कभी मत उलझो। ठीक है, यहाँ वही चारों बातें अपनाइए आप, आत्मविश्वास होगा, आपकी सोच सकारात्मक होगी, कर्म सिद्धांत पर विश्वास होगा और आपकी आत्मा का बोध होगा तो कोई खतरा नहीं, खतरा किस पर, तन पर, ज्यादा से ज्यादा प्राणों का खतरा इस के अलावा बड़ा संकट, परिवार पर संकट है। मेरा कुछ हो जाएगा तो परिवार का क्या होगा। जब दुनिया से जाओगे तो जो होगा सो होगा। बहुत चले गए, उसके बाद उनके परिवार का जो हुआ वह हुआ। उनके भाग्य में जो होगा वह होगा और रहा सवाल तन के जाने का तो तन तो 1 दिन सबका जाना ही है, अमर है ही नहीं। और जो तुम हो, उसको तो कोई छू भी नहीं सकता तो फिर शंका किस बात की? जीवन में चाहे जैसे खौफनाक परिस्थितियां क्यों ना आए, यदि तुम्हारे हृदय में आत्मबोध हो, तुम्हारा मन कभी नहीं घबराएगा, आत्मबोध के अभाव में व्यक्ति थोड़ी-थोड़ी सी बातों से घबरा जाते है, लोगों को बड़ी शंका होती है। मेरे संपर्क में एक सज्जन है वो हर 3 महीने में अपने शरीर का चेकअप कराते, दिल्ली जाते है, पूरी बॉडी का चेक अप कराते है। उनकी धर्मपत्नी ने मुझसे कहा महाराज यह खुद तो जाते सो जाते है, हमें और परेशान करते। आप बताइए इतनी शंका करते है। वो बोले, नहीं महाराज! अपना हेल्थ कॉन्सियस रखना चाहिए, मेरे मन में शंका होती है कही कोई बीमारी ना हो जाए, बीमारी ना हो जाए, बीमारी ना हो जाए। हम बोले- भैया, होना होगा तो ऐसे ही हो जायेगा। डॉक्टर उनसे बोलते है आपको इतनी बार चेकअप कराने की जरूरत नहीं है लेकिन शंका। मैंने कहा, ध्यान रख तू कितना भी चेकअप कराएगा पर उम्र की मार से अपने आप को बचा नहीं पाओगे और काल के प्रहार से तो कोई अपने आपको बचा ही नहीं सका, एक दिन तो जाना ही है। खानपान ठीक रखो, आचार-विचार ठीक रखो, दिनचर्या अच्छी रखो, स्वस्थ रहोगे, मस्त रहोगे लेकिन इस प्रकार की शंका करने से क्या फायदा। बड़ी दिक्कत होती है, आत्मबोध हो तो कभी कितनी भी खौफनाक स्थिति आ जाए, मन में डर नाम की कोई चीज नहीं। मेरे जीवन में एक ऐसा प्रसंग आया, जब मेरे आंखों के सामने मेरी मौत थी, 2006 में जब मैं पश्चिम बंगाल में विहार कर रहा था, बांग्लादेश की सीमा में था, कोलकाता से मुसीदाबाद के लिए जा रहा था। एक ही स्थान पर 1500-2000 धर्म द्वेषियों ने मुझे घेर लिया और पूरा रास्ता ब्लॉक। मेरे साथ 50-60 लोग थे, पुलिस की एक छोटी सी टुकड़ी भी थी। लोगों ने मुझे रोका जब मालूम पड़ा कि आगे इतने सारे लोग हैं, अपने को जाना है। मैंने साथ वाले से बोला, कुछ नहीं करो भगवान का नाम लेते हुए चलो, जो होगा सो देखेंगे, किसी को प्रोटेस्ट मत करना। जब लोगों ने मेरा रास्ता रोका तो मुझे घेर लिया, मेरे साथ चलने वाले लोगों ने एक घेरा पुरुषों का, उसके आगे दो घरा महिलाओं का फिर पुरुष आ गए तो में सुरक्षित घेरे में तो था। उस पूरे के पूरे 1500-2000 लोगों की भीड़ को 10-12, 20 से 25 साल के युवक लीड कर रहे हैं, उनमे बड़ा उन्माद सा था। उन्ही में से अपने लोग कुछ बीच-बचाव कर रहे थे। मैं देख रहा हूँ कि उनके हाथ में खंजर है, तलवार है लाठियां है, भयानक स्थिति थी । मैंने देखा, मेरे मन में न तो उनके प्रति क्षोभ हुआ, न भय, मैं एकदम सहज रहा। हमने कहा, कर्म का उदय सामने आया है, जानो और देखो। यदि इस तन का आज आखिरी दिन होगा और इनके निमित्त से होगा तो हो जाएगा और रहा सवाल मेरा तो मुझे तो कोई छू भी नहीं सकता मैं तो अस्पर्श हूँ, ना तो मुझे अग्नि जला सकती, ना अस्त्र मुझे काट सकते हैं, बिल्कुल जो हूँ सो हूँ, बस मेरे मन में समयसार कि वह पंक्ति, वह गाथा गूंजने लगी-
मैं देह नहीं, चेतन आत्मा हूँ और मैं आश्वस्त हो गया। बस सहज भाव से मुस्कुराते हुए सब चीजें देख रहा था। इसी बीच यह करीब 3 से 4 मिनट का दौर था, मेरे साथ के लोगों को उन लोगों ने थप्पड़ मारा और लाठियों से मारा, सब को पीटा। एक बेल्ट किसी ने मुझे यहां दिया फिर इसी बीच में रास्ता बना और एक पत्थर मेरे सिर पर लगा, इस स्थान पर, इतना बड़ा पत्थर था। खून आया लेकिन मुझे ब्रह्मचारी रोहित और एक युवक है कोलकाता का जीतू, मुझे पकड़कर के एकदम कहां से उनके पास ताकत आई, निकल गया वह दौर, कहानी अपनी जगह है। मुझसे कहा गया कि कि इनकी रिपोर्ट लिखाया जाए, वह सब किया जाए, मैंने मना किया हालांकि प्रशासन ने बहुत ही तत्परता दिखाई और उसके बाद आज तक उस रास्ते में फिर किसी साधु के ऊपर उपसर्ग नहीं आया, वह मामला निकल गया पर मेरे ऊपर एक कर्म का दौर आया और मैंने उस समय सामना किया। उसके बाद मुझे उस स्थान से 4.5 किलोमीटर और चलना था, वहां हमारा विश्राम था, रात्रि विश्राम। वहाँ पहुंचे, सब की हालत बदहवाश सी थी, मैंने अपने खून की कोई चिंता नहीं की, बहते खून में ही उतनी दूर तक चला, एक-एक से पहले बातचीत की सबकी। करीब-करीब 7:45 बज गए, सब को सांत्वना देने के बाद गुरुदेव के पास मैसेज भिजवाया तो गुरुदेव ने पहले तो सबको यह कहा कि ठीक है संयत रखो और सब की चीजें देखो लेकिन उन्होंने एक ही संदेश दिया और पुछा, फिर से कहो गुस्सा तो नहीं आया। हमने कहा नहीं आया, बोला तो पास हो गया, पास हो गए। जीवन में जब कभी ऐसी स्थिति आए ,आत्मबोध रखोगे तो मन कतई डांवाडोल नहीं होगा। कितना बड़ा खतरा है आने दो, जो होगा सो देखेंगे। खतरे से घबराने वाले लोग भी अपने जीवन में कुछ उपलब्धि नहीं करते और कुछ लोग हैं जो खतरे से खेलते हैं, वह भी ठीक नहीं है। संत कहते हैं- ‘ना खतरे से घबराओ ना खतरे से खेलो अपितु खतरे से सावधान रहो’। समाधान उसमें है जो सावधान है उसी के पास समाधान है। तो शंका, भविष्य की शंका, जिज्ञासा मूलक शंका, भविष्य की शंका, संकट की शंका,, खतरे की प्रति ले कर के जो शंका है उससे भी आप इन्हीं 4 बिंदुओं से बच सकते हैं और स्वयं की सुरक्षा की शंका। आजकल लोगों के मन में इन्सिक्युरिटी का भय बहुत रहता है, अपने आपको लोग असुरक्षित महसूस करते हैं। मेरे साथ क्या होगा, मेरे साथ क्या होगा? संत कहते है- ‘क्या जरूरत है, संसार में देखा जाए तो कोई सुरक्षित नहीं और यथार्थ से पूछा जाए तो कोई असुरक्षित नहीं’। व्यवहार में तुम जिसकी सुरक्षा करना चाहते हो, वह दुनिया में कहीं सुरक्षित नहीं है। बोलो, कोई सुरक्षित है, धन सुरक्षित है, परिजन सुरक्षित है, परिवार सुरक्षित है, शरीर सुरक्षित है, जीवन सुरक्षित है, कुछ भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि सब काल के प्रभाव से प्रभावित होते हैं। कर्म का चक्र चलता है और जीवन चक्र ऊपर-नीचे घूमता रहता है। उस क्रम को हम बदल नहीं सकते, वो हमारे हाथ में नहीं है और अभी तुम उसकी सुरक्षा की बात करते हो। ठीक है, तुम उसमें निमित्त बन सकते हो एक हद तक पर तुम सोचो कि मैं अपने जीवन की सारी व्यवस्थाओं को एक सी बनाए रखूं और जीवन की आखिरी सांस तक उन्हें सुरक्षित रखूं । ‘ न भूतो न भविष्यति’, तुम अपनी बात छोड़ दो, चक्रवर्ती जैसे वैभवशाली लोग भी अपने वैभव को सुरक्षित नहीं रख पाए। क्या कोई चक्रवर्ती अपने बेटे को चक्रवर्ती बनाकर गया हो, उसके नाम वसीयत की हो, उसे अपना चक्र सौंपा और उसे नौ निधियां सौंपी हो, उसे 14 रत्न दिया हो? महाराज! जब चक्रवर्ती खुद सुरक्षित नहीं तो उसका वैभव कहां सुरक्षित होगा? इतनी तो बात समझने की है। 2-2 चक्रवर्ती की कैसी दुरावस्था हुई, पता है। सुभौम और ब्रह्मदत्त कहाँ सड़ रहे है, नरको में। बेमौत मरे तो जब चक्रवर्ती खुद सुरक्षित नहीं तो तुम्हें क्या सुरक्षा देगा और उसके बाद वो दूसरे चीजों को, अपने वैभव को क्या सुरक्षित रखेगा तो फिर सोचो ऐसे पुण्यशाली जीवो का यह हाल है तो हम-तुम जैसे साधारण प्राणी किस खेत की मूली है? व्यवहार में तुम जिस की सुरक्षा को लेकर के संकित रहते हो, उसकी सुरक्षा हो नहीं सकती और भीतर की जिसकी सुरक्षा की चिंता है, वह कहीं असुरक्षित है ही नहीं। आत्मा की कौन सी असुरक्षा है, बोलो, कोई असुरक्षा, अरे वह तो सब की पहुंच से परे, वह तो सब के स्पर्श से परे जिसे शस्त्र छेद ना सके, जिसे हवा उड़ा ना सके, जिसे अग्नि जला न सके और जिसको पानी गला ना सके, वह मैं हूँ ।उसे तो पहचानो, जिस पल तुम्हें तुम्हारे आत्मतत्व की पहचान हो जाएगी, आत्मा का सच्चा श्रद्धान जग जाएगा, तुम्हारे मन में किसी भी प्रकार की शंका या भय का कोई स्थान नहीं रहेगा। अपने आप को बचाइए, चारों प्रकार की शंका निर्मूल हो जाएगी। बस इन चार बातों को आत्मसात कीजिए फिर रोज शंका-समाधान में भी आने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यही चार फॉर्मूला है जिसने इसे अपना लिया वो नि:शंक हो गया और जैन दर्शन में कहा जाता है, सच्चा धर्मी वही है जो नि:शंक है, जिसके मन में शंका है वो धर्मी नहीं। संत कहते- ‘शंका को खत्म करो जीवन में डंका पीट जाएगा, फिर तुम्हें कुछ करना नहीं, लंका जीत जाओगे। इस शंका को हटाइए, अपने भीतर वह भाव-बोध जगाइए तो जीवन की दिशा- दशा सब अपने आप परिवर्तित होगी तो यह शंका की बात हुई। अब इसी से जुड़ी हुई बात है जो शंका के ही परिवार का एक सदस्य है, वह है शक। शक किस पर होता है? शंका तो स्वयं के प्रति होती है और शक सदैव दूसरों के प्रति होता है। शक भी एक शंका है। शंका का समाधान तो बहुत आसानी से मिलता है लेकिन शक का समाधान बड़ा कठिन हो जाता है। जब तुम्हारे मन में किसी के प्रति एक बार कोई शक बैठ गया तो उस कीड़े को निकाल पाना बड़ा मुश्किल होता है। मैंने इस शक की वजह से अनेक परिवारों को टूटते-बिखरते देखा है, शक से एक-दूसरे के प्रति अविश्वास पनपता है। संत कहते है- ‘अपने जीवन-व्यव्हार में आगे बढ़ना है तो विश्वास और भरोसा के साथ चलो, यदि तुम शक पाल के रखोगे तो जीवन में कभी सफल नहीं होगे। तो महाराज क्या चाहे जिस पर विश्वास कर ले, चाहे जिस पर विश्वास करने की बात नहीं है?
पहले व्यक्ति को परख लो, फिर विश्वास करो। लोक-व्यवहार के जीवन में तुम आदमी को परखो और उस पर भरोसा करो पर तुम जिसके पीछे रह रहे हो, जिनके साथ तुम्हारे जीवन भर का संबंध है, उसके प्रति शक करोगे तो जिंदगी कैसे चलेगी। बाप बेटा पर शक करे, बेटा बाप पर शक करे, पति पत्नी पर शक करे, पत्नी पति पर शक करे, सास बहू पर शक करे, बहू सास पर शक करे तो बोलिए आपके संबंध क्या टिक पाएंगे? जिसके प्रति आपके मन में भरोसा होता, उसके प्रति होने वाला व्यवहार और जिसके प्रति मन में शक प्रकट हो जाता उसके साथ होने वाला व्यव्हार क्या एक सा होता है, क्यों? मन में पूर्वाग्रह बनता है और फिर शक बनने लगता है, हर बात पर शक।
एक युवक मेरे पास आया, बड़ा परेशान होकर, उसकी धर्मपत्नी की यह कहानी है कि उसको तो उसकी बेटियों पर शक है कि मेरा पति बड़ा धर्मात्मा है पर उसकी धर्मपत्नी ऐसी जो कहती है कि मेरा पति मेरी बेटियों के साथ भी गलत करता है । उसके मन में कुछ ऐसी बीमारी जैसी हो गई, वह मंदिर जाकर के माला फेरता है तो उसके मन में है कि इस मंदिर में औरतें आती है, इसलिए मंदिर में बैठा है। गुरुवर के पास आता है तो उसके मन में यही एक बीमारी है, शक करने की। वह तो गनीमत है कि वह युवक बड़ा धर्मात्मा और सच्चा धर्मात्मा है, इसलिए ऐसी बीवी को ढो रहा है, कोई दूसरा होता तो रास्ता दिखा देता बाहर का लेकिन यह चीजें होती है शक की शुरुआत छोटी होती है पर बढ़ती है तो बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है फिर उसे पार कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ, अपनों के प्रति विश्वास और भरोसा रखो, शक मत रखो और यदि कभी किसी के प्रति तुम्हारे मन में कोई शक उत्पन्न हो तो उससे संपर्क स्थापित करके उसका क्लैरिफिकेशन कर लो। वही के वही क्लैरिफाई करो, निराकरण कर लो, कई बार जितने भी शक होते हो गलतफहमी के कारण होते हैं। ग़लतफ़हमी के कारण होते है, क्या करें तो बड़ी दिक्कत होती है। एक व्यक्ति को अपनी धर्मपत्नी पर बड़ा शक होता है, वो क्या उसकी धर्मपत्नी देखने में कुछ ज्यादा अच्छी, उसको लेकर उसको शक, अब उसका रूप ही उसके लिए कैद का कारण बन गया। वो कही आने -जाने ना दे, किसी से बात न करने दे। अब बताओ ऐसा आदमी अपनी जिंदगी को नर्क बनाएगा कि नहीं बनाएगा। हर व्यक्ति के निजी जीवन की स्वतंत्रता होती है। हमें एक बात सीखना चाहिए, एक हम बाउंड्री लाइन खींचते है और उसके बाद निश्चिंतता से जियो और जीने दे, कोई शक करने की जरूरत क्या है। बेखटके की जिंदगी जिये, कभी किसी के ऊपर शक मत करो। हां, कभी-कभी किसी पर शक हो जाता है, उसके करतूतो के प्रति और किसी की करतूत के कारण आपको किसी पर शक है तो उसमे दो काम कीजिए। पहले शक को शक के रूप में देखिए, शक के आधार पर निर्णय मत लीजिए। लोग क्या करते है, किसी के प्रति मन में शक आता है और उसके प्रति पूर्वाग्रह पहले से बैठा लेते हैं और वह आधारहीन बात पर भी संकीत होकर के उसके साथ अपना संबंध बिगाड़ लेते है। किसी के प्रति शक हो भी तो जब तक वह सत्यापित ना हो तब तक आप उससे अपना व्यवहार मत बिगाड़िये। हो सकता है, ऐसे शक में आप अपने अच्छे मित्र को भी खो दो। वो कहानी आपको याद है, एक घर में एक नेवला पलता था, सब ने पढ़ा होगा तीसरी-चौथी क्लास में, कहानी नहीं सुना रहा हूँ। सबको पता है, क्या सुनाऊं? लेकिन क्या हुआ नेवला कितना उपकारी था, खतरनाक सांप से उसके बच्चे की रक्षा की। दरवाजे पर इस बात के भरोसे से खड़ा था कि मेरी मालकिन मुझे आज शाबाशी देगी, मैंने उसके बेटे की प्राण रक्षा की लेकिन नेवले के मुंह में लगे रक्त से देख कर उसको भ्रम हुआ, शक हो गया। कही इसने मेरे बेटे के साथ छेड़छाड़ नहीं की हो और जिसके मन में शंका होती है ना, शक होता है, वो बड़ा उतावला होता है, उसके मन में धैर्य नहीं होता है, समझदारी खत्म होती है। जो घड़ा भर कर पानी का लाई थी, उसी घड़े को उस नेवले पर उसने दे मारा। फिर क्या हुआ, क्या हुआ?इतना उपकारी सदस्य, उसके अनजाने में केवल शक के कारण मारा गया। शक के कारण मारा गया, ऐसा एक नेवला ही नहीं तुम रोज कितनों को मारते हो, शक के कारण भाई। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ, जब भी तुम्हारे मन में किसी के प्रति शक हो तो समझदारी से निर्णय लेना, हड़बड़ी में निर्णय मत करना, समझदारी से निर्णय लेना। अगर वह थोड़ी समझदारी रखी होती और पहले अंदर जाकर देखी होती तो उस नेवले को अपनी छाती से लगा ली होती कि इसने मेरे लाल की सांप से रक्षा की। तुम कई बार ऐसे करते हो अपने शक के कारण जो तुम्हारा हितकारी है, उपकारी है, आत्मीय है, उससे भी अपना संबंध बिगाड़ देते हो। मैं आपसे इतना जरूर करता हूँ, अंधा भरोसा मत करना, जमाना खराब है क्योंकि महाराज ने कहा किसी पर शक मत करना। शक हो तो शक को तब तक शक की कोठी में रखो, जब तक वह सत्यापित ना हो, उसको ऑब्ज़र्व करो, ऊपर से व्यव्हार मत बिगाड़ो। ऑब्ज़र्व करने के बाद ऐसा लगता है कि वाकई में हमारे हितों के विरुद्ध है, उससे सुरक्षित दूरी बना लो लेकिन केवल शंका, शंका के नाम पर करना उचित बात नहीं है। तो आज शंका की बात आ गई यह शंका का समाधान आप सबके अंदर आए, आप सावधान हो और अपने जीवन को ऊंचाइयों पर पहुंचा सके।