मनः पूतं समाचरेत

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दर्पण में आप अपना प्रतिबिंब देखते हैं। कब देख पाते हैं? जब दर्पण साफ और स्वच्छ हो। यदि दर्पण में कोई दाग धब्बे हो तो उसमें उभरने वाला प्रतिबिंब भी दागदार बनता है इसीलिए आप दर्पण को हमेशा साफ रखते हैं। जैसे गंदे दर्पण में हमारी स्वच्छ तस्वीर नहीं उभरती वैसे ही गंदे चित्त में हम स्वस्थ जीवन नहीं भर पाते। अपने जीवन को अगर ठीक बनाना है तो चित्त शुद्धि की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बल पवित्रता को दिया गया है। विगत दिनों से जो श्रंखला चल रही है उसमें मैंने भारतीय संस्कृति में जीवन के मूल तत्व पर आप सबका ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की-

शांतम् तुष्टम् पवित्रं च सानंदमित् तत्वतः

जीवनम् जीवनम् प्राहों भारतीय सुसंस्कृतम्।

भारतीय संस्कृति में उसी जीवन को जीवन कहा गया है जो शांत हो, तुष्ट हो, पवित्र हो और आनंद हो। आज क्रम पवित्रता का है। अपने भीतर झांक कर देखिए कि मैं कितना पवित्र हूं। ऐसे देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने आप को दूध का धुला समझता है। समझिए। मैं कहता हूं दूध का धुला समझिए मत, दूध का धुला बनिए। हम अपने आप को लोगों के बीच जिस रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं यदि हम वैसा बन जाएं तो हमारा जीवन धन्य हो जाए। अपने मन से पूछो कि तुम अपने आपको जिस तरीके से expose एक्सपोज़ करते हो exactly एग्जैक्टली वैसे हो? उसकी तैयारी है? दूसरी बात आप यह देखो कि किसके जीवन से आप प्रभावित होते हो? किसकी और आप आकर्षित होते हो? जिसके जीवन में ढेर सारी विकृतियां हैं उसकी तरफ या जिसका जीवन व्यवहार विचार पवित्र है उसकी तरफ। बोलो। हमारी तरफ क्यों? कुछ दिख रहा है इसलिए या ऊपर के रूप को देखकर? स्वाभाविक है जहां पवित्रता होती है वहां आकर्षण होता है और जहां विकृति होती है वहां विकर्षण होता है। फूल की सुहास हो आप सहज रुप से उस तरफ आकर्षित होंगे। कोई बगीचे के बाजू से निकलेंगे आपका चित्त आकर्षित हो जाएगा और किसी घोड़े के पास से निकलेंगे तो नाक पर रुमाल लगा लेंगे। क्यों? किसने सिखाया? पवित्रता के प्रति आकर्षण और गंदगी से नफरत आखिर क्यों? यह सहज विधि है। संत कहते हैं जैसे तुम पवित्रता को पसंद करते हो दुनिया के और लोग भी पवित्रता को पसंद करते हैं। यदि तुम चाहते हो कि दुनिया के लोग तुम्हें पसंद करें और यदि तुम चाहते हो कि तुम सदाबहार प्रसन्न रहो तो अपने भीतर पवित्रता को जगाने की कोशिश करो। आपके मन से पूछो आपका मन कब प्रसन्न रहता है। जब मन में विकारों की गंदगी छाई होती है तब या जब मन शांत और स्वच्छ रहता है तब। प्रसन्नता कब होती है गुस्से में, गुमान में? बोलो। कब? जब शांत और स्वच्छ होता है तब। रहना क्या चाहते हो? शांत, प्रसन्न या अशांत, दुखी।

शांत और प्रसन्न रहना चाहते हो लेकिन करते क्या हो? संत कहते हैंयदि तुम चाहो कि दुनिया तुम्हें पसंद करें और तुम चाहो कि तुम्हारा मन सदाबहार प्रसन्न रहें तो अपने चित्त को शुद्ध करने की कोशिश करो और अपने जीवन में पवित्रता को प्रतिस्थापित करने की कोशिश करो। जीवन की यह सबसे बड़ी आवश्यकता है। मैं देखता हूं कि लोग धर्म के क्षेत्र में बड़ेबड़े काम कर लेते हैं। पूजापाठ, सत्संग, समागम, दानपुण्य, व्रतउपवास, त्यागतपस्या जितने उत्साह के साथ आप यह कार्य करते हो अपने चित्त की शुद्धि के लिए अपने विचारों की शुद्धि के लिए क्या आपके हृदय में वैसा उत्साह होता है? संत कहते हैंजितना उत्साह तुम धार्मिक क्रियाओं के प्रति प्रकट करते हो उसका दसवां अंश भी चित्त की शुद्धि के लिए कर लिया तो फिर तुम्हें किसी धर्म की क्रिया करने की जरूरत नहीं होगी। तुम स्वयं धर्म की मूर्ति बन बैठोगे। कोशिश तो करो। मूल की तरफ दृष्टि हमारी जानी चाहिए। भगवान महावीर ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा है

धम्मो शुद्धस्य चिट्ठैः

धर्म का वास पवित्र हृदय में होता है। अगर तुम्हारे हृदय में पवित्रता नहीं है, मन में शुद्धि नहीं है तो तुम कभी धर्म के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकोगे। तुम्हारे जीवन में धर्म का प्रभाव घटेगा। कल मैंने आपको एक उदाहरण दिया था कि कचरे के ढेर में सेंट ड़ालोगे तो क्या फायदा होगा? मन में गंदगी, ऊपर से धर्म की क्रिया कर रहे हो। अरे! तुम कर क्या रहे हो? कचरे के ढेर में सेंट की बोतल उन्ड़ेल रहे हो। संत कहते हैं जहां कचरा है वहां सुगंध प्रकट करने के लिए सेंट डालने की जरूरत नहीं है। कचरे को निकालकर बाहर फेंकने की जरूरत है। सूरज की तेज किरणें उसकी बदबू को अपने आप सौख लेंगी और वहां सुगंध अपने आप प्रकट हो जाएगी। मन को पवित्र बनाना है, अपने जीवन को पवित्र और विशुद्ध बनाना है तो कोई क्रिया करने से काम नहीं होगा। चित्त के रूपांतरण के लिए संकल्पित होना पड़ेगा और अपने भीतर की विकृतियों को बाहर निकालने का उपक्रम करना होगा। आप कितना तत्पर है उसके लिए? आप अपनी भावधारा को टटोल कर देखिए। मनुष्य का मन बहुत खराब है। अच्छा है आज के युग में मन की पूरी बातों को जानने की क्षमता मनुष्य के पास नहीं। काश अगर ऐसी व्यवस्था होती तो सब एक दूसरे को देख कर परेशान हो गए होते या पागल हो गए होते क्योंकि एकदूसरे के प्रति मनुष्य का मन बड़ा खराब है। ऊपर से तुम कुछ और दिखते हो भीतर से कुछ और हो। मेरे पास एक 80 वर्ष के बुजुर्ग दादा जी ने आकर बड़ी ईमानदारी से कहा कि महाराज क्या बताऊं 80 वर्ष की उम्र हो गई और भगवान के दर्शन करने जाता हूं, दर्शन करतेकरते भी किसी युवती पर ध्यान चला जाता है, उसका चेहरा दिख जाता है तो मन में विकार जाता है। मैं क्या करूं? मैं आपसे सवाल पूछता हूं अपने मन में झांक कर देखो कहीं तुम्हारे भीतर भी तो ऐसा मनुष्य नहीं बैठा है। दूसरे के मत तांकना। लोग दूसरों के घर में बुहारी लगाने की आदत रखे हुए हैं। दूसरों के घर में बुहारी लगाने से तुम्हारे घर का कचरा साफ नहीं होगा। अपने भीतर झांकने की कोशिश कीजिए। मैं कितना पानी में हूं। उसे नापिए, अपने मन से पूछो। बाहर से तल्लीन होकर पूजा कर रहे हो पर तुम्हारे मन में क्या डोल रहा है। दुनिया तुम्हें एक धर्मात्मा की दृष्टि से देख रही है, तुम्हें आदर और सम्मान दे रही है पर तुम्हारे भीतर कौन छुपा है। इसे देखने की कोशिश करो। मनुष्य तन से पाप बहुत कम करता है, वचन से उससे कुछ अधिक करता है पर मन से पाप सबसे ज्यादा करता है। क्योंकि पाप हमेशा छिपकर किया जाता है, छिपाकर किया जाता है। तन का पाप जल्दी उजागर होता है इसलिए उससे पाप कम करता है, वचन का पाप तन की अपेक्षा से कम उजागर होता है इसलिए वचन के स्तर पर मापा जाता है। मन का उजागर तो दिखता ही नहीं इसलिए 24 घंटे करता रहता है। तुम बोलोगे गलत पकड़ में जाएगा। लेकिन गलत सोचोगे इसे पकड़ने वाला कोई नहीं है। उसे तुम्हें खुद पकड़ना होगा। क्या है तुम्हारी सोच की दशा? कभी सोचा? गैरों के बारे में तुम क्या सोचते हो यह बात मैं बाद में करूंगा, पहले यह देखो अपनों के बारे में तुम्हारी सोच क्या है। कभी सोचा आपने।

पतिपत्नी दोनों जा रहे थे। रास्ते में एक कुआं पड़ा। उस पर बोर्ड लिखा हुआ था चमत्कारी कुआं और एक सूचना लिखी थी कि इस कुएं में झांकने पर अब जो मांगोगे वह मुराद पूरी होती है, आपकी मनोकामना पूरी होगी। सबसे पहले पति झांका फिर पत्नी झांकी। पत्नी जरूरत से ज्यादा झुक गई, धड़ाम से कुएं में गिर गई। पति ने कहाहे भगवान! मुझे थोड़ी पता था कि इतनी जल्दी मनोकामना पूरी हो जाएगी। यह है तुम्हारी असलियत।

कहां हैं आप? हम बातें कितने ऊंचे आदर्शों की करते हैं पर वैचारिक धरातल पर पाताल में हो। विचार शुद्धि, भाव शुद्धि जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। जिस पर हमारा गहरा ध्यान होना चाहिए। अपने विचारों को देखो, टटोलो मैं कहां हूं? देखोगे तो 24 घंटे तुम्हारा मन राग, द्वेष, ईर्ष्या, काम, क्रोध, लोभ और मोह की भावना में उलझा दिखेगा। दिखता है? 24 घंटे इन्हीं में लगे रहते हो। आखिर इससे जीवन का कल्याण कैसे हो? जीवन का उद्धार चाहते हो तो जीवन की दिशा बदलनी होगी। वस्तुतः धर्माचरण का उद्देश्य केवल पुण्य का उपार्जन नहीं है, धर्माचरण का सच्चा उद्देश्य जीवन को पुण्यमय बनाना है। पुण्यमय बनाना मतलब पवित्र बनाना। अपने चित्त को रूपांतरित करो। तुम कहां से कहां पहुंच जाओगे। सवाल है चित्त को रूपांतरित कैसे करें? महत्वपूर्ण सवाल है। महाराज, आप जितनी बात प्रवचन में बता रहे हो उतना तो हमें पहले से पता है कि गंदा मन नहीं होना चाहिए, मन साफ होना चाहिए, चित्त शुद्धि होनी चाहिए और आप जैसे सारे प्रवचनकार यही फरमाते हैं कि चित्त साफ हो, चित्त की शुद्धि हो लेकिन यह तो बताइए कि चित्त की शुद्धि आखिर हो कैसे? बहुत महत्व की बात है। मैं ज्यादा आपकी बुराई नहीं करूंगा। मैं तो भगवान से यह प्रार्थना करता हूं कि सबका मन पवित्र हो और यह प्रवचन मैं आप लोगों को नहीं सुना रहा हूं क्योंकि मेरी दृष्टि में भीलवाड़ा के सारे लोग बड़े पवित्र हैं। यह प्रवचन तो मैं उन लोगों को सुना रहा हूं जो मेरे सामने नहीं है। अब आप देख लीजिए कि आप कहां हो और एक सच्चाई है मुझे आपकी बुराई दिखती भी नहीं। तो महाराज, आप इतनी बातों का पता कैसे लगा लेते हैं? बहुत सारी चीजें ऐसी होती है जो देखने से नहीं आती, सुनने से नहीं आती लेकिन अपने आप आ जाती है। कैसे? आप लोग खुद अपने आप को किसी न किसी रूप में एक्सपोज़ कर देते हैं तब जीवन का अनुभव प्रकट होता है, जीवन का सार निचोड़ प्रकट होता है। जीवन को उसी दिशा में हमें आगे बढ़ाना चाहिए और उसी हिसाब से सोचने की बात करनी चाहिए। मैं चित्त की अशुद्धि आपकी कैसी है इस पर ज्यादा समय नहीं दूंगा लेकिन आज आपको कुछ ऐसे टिप्स दे रहा हूं जिन्हें आप आत्मसात करें तो आप अपने जीवन में मूल स्वरूप रूपांतरण घटित कर सकते हो। 100% रूपांतरण होगा उसमें कोई संशय नहीं है बशर्ते आप इसे follow फॉलो करें। चित्त शुद्धि का सबसे पहला उपाय- “प्रतिक्रमण”। भगवान महावीर ने हमारे चित्त के निर्मलीकरण के लिए एक बहुत सुंदर साधना दी- “प्रतिक्रमण”। प्रतिक्रमण का मतलब क्या है? घर में कचरा देखते हैं तो आप क्या करते हो? बुहारी लगाते हो और बुहारी लगाकर कचरे को बाहर कर देते हो। अपने मकान का कचरा तुम बुहारी लगाकर साफ कर देते हो और चित्त के कचरे को साफ करना है तो प्रतिक्रमण की झाड़ू लगा दो तुम्हारा कचरा साफ हो जाएगा। झाड़ू लगाओ अपने चित्त में। प्रतिक्रमण का मतलब वह प्रतिक्रमण नहीं जो रटे-रटाए शब्दों में हम रोज कर लेते हैं। मेरा प्रयोजन उस प्रतिक्रमण से नहीं है। प्रतिक्रमण का मतलब है-

“कृत दोष निरायरणम प्रतिक्रमणम”। किए गए दोषों को निकाल फेंकने का नाम प्रतिक्रमण है। अगर तुम्हें पल भर को भी एहसास हुआ कि मैंने बुरा सोचा या बुरा किया, मैं ट्रेक से उतरा जिस क्षण तुम्हें आभास हो कि मैं पटरी से उतरा हूं, रंचमात्र पटरी से उतरा हूं तुरंत अपने आपको रोको और अपनी निंदा करो। हे परमात्मा! मैं कैसा पतित हो गया, मैं कैसा नीच हूं, कैसा पापी हूं, कैसा दुरात्मा हूं। मैंने अपने द्वारा अपने जीवन को कितना नीचे गिरा लिया। हे भगवान! मुझे माफ करें और आगे से ऐसी गलती की पुनरावृत्ति नहीं करूंगा। मैं संकल्पित होता हूं, समर्पित होता हूं और आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे शक्ति दें कि जब भी मैं ऐसा करूं मेरे भीतर समझ विकसित हो। कीजिए अभ्यास। आज से ही शुरु कीजिए। जैसे आप से गलती हो, गलती का एहसास हो, आभास हो तुरंत प्रतिक्रमण करें। महाराज, यह तो बड़ा मुश्किल काम है। गलती करते समय गलती का आभास नहीं होता और जब तक आभास होता है तब तक पानी सर से निकल जाता है। चलिए यह आपको प्रेक्टिकल नहीं दिखता है तो इसे ही मैं आपको दूसरे रूप में बताता हूं। रोज शाम को परमात्मा के दरबार में जाओ और परमात्मा के दरबार में जाना संभव नहीं हो तो घर में एक जगह बैठो। शांत मन से बैठो। प्रभु परमात्मा को याद करो और सुबह से शाम तक के किए गए कृत्य को रिकॉल करो। मैंने सुबह से क्या-क्या किया और जो-जो सही किया उसके बारे में कुछ सोचने की जरूरत नहीं है। तुमने जो-जो गलत कृत्य किए, गलत निर्णय किए, गलत बात की, गलत प्रवृत्ति की, गलत विचार किया, गलत सोचा उन सबको रिकॉल करो और भगवान से प्रार्थना करो कि हे भगवान! मैंने यह बुरा सोचा मेरा यह पाप मिथ्या हो। मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। भगवान ऐसी शक्ति दो कि जब कभी मौका आएगा तो मैं ऐसा नहीं सोचूंगा। मंदिर से घर आया बेटे की कोई गलती नहीं थी फिर भी मैंने बिना सोचे समझे उसे डांट दिया, बच्चे का मन दुखी हुआ, बाद में मेरा भी मन दुखी हुआ। बाद में मुझे समझ आया कि मैंने तो गलतफहमी में डांट दिया। काश! मैंने पहले ऐसा सोच लिया होता तो मैं नहीं डटता। भगवान ऐसी शक्ति दो कि अब बोलने के बाद सोचने की जगह बोलने से पहले सोचना शुरु करूंगा। बेवजह पत्नी को फटकार लगा दी। उसकी सुनी ही नहीं। हे भगवान! मुझे ऐसी शक्ति दो कि अब पहले सुनूंगा, विचरूँगा, उसके बाद प्रतिक्रिया दूंगा। मैंने सुबह से जो भी गलत किया- मैं अपने ऑफिस में बैठा अपने व्यापारी से मैंने इस तरह का छल किया जो मुझे नहीं करना चाहिए था। यह गलत है। हे भगवान! मुझे ऐसी शक्ति दो कि अब मैं किसी के साथ चीटिंग नहीं करूं। मैं किसी के साथ विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं किसी को धोखा नहीं दूंगा। किसी के साथ दगाबाजी नहीं करूंगा। मैं किसी के प्रति दुर्व्यवहार नहीं करूंगा। मेरे चित्त में इतनी बार काम, क्रोध, लोभ, मान की भावना आई, मैं अपने चित्त से ना जाने क्या-क्या सोच लिया, अपनों के ही बारे में कितना गलत सोच लिया। हे प्रभु! मुझ अधर्मी, पापी को क्षमा करो और ऐसी शक्ति दो कि दोबारा मैं ऐसा ना कर सकूं। आप रोज ऐसा कर सकते हैं। इसका नाम है- प्रतिक्रमण।

एक बात बोलूं- मेरी कमियों को मैं जितना समझता हूं दुनिया में कोई नहीं समझ सकता। केवल भगवान समझ सकते हैं। भगवान को छोड़कर मेरे अलावा मेरी कमियों को, मेरी बुराइयों को, मेरी गलतियों को कोई नहीं समझ सकता। मेरे अंदर की जो बीमारी है उसे मैं डायग्नोस करूंगा तो इलाज भी मुझे ही करना होगा। रोज यह तैयारी कीजिए। सोने से पहले 10 मिनट का समय दीजिए और प्रतिक्रमण कीजिए और उसी प्रतिक्रमण के अंत में संसार के सभी जीवो से क्षमा मांगिए। जिनके-जिनके लिए आपने बुरा सोचा, बुरा बोला, बुरा किया। परोक्ष रूप से उनसे क्षमा मांगो और कहो आपके प्रति जो भी मैंने गलती की मुझे हृदय से क्षमा करो और मैं अब संकल्प लेता हूं कि दोबारा कभी ऐसा गलत नहीं करूंगा। दूसरे ने भी जो मेरे प्रति गलत किया मैं उसे मन से क्षमा करता हूं। मेरे हृदय में कोई बैर की गांठ नहीं रखूंगा। आज के मामले को आज ही खत्म, कल पर नहीं डालूंगा। हे प्रभु परमात्मा! अब मैं निर्भर होकर सो रहा हूं, हल्का होकर सो रहा हूं, बिस्तर पर जा रहा हूं। प्रभु, तेरे लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कि तेरी कृपा से आज का दिन अच्छे से निकल गया। प्रार्थना केवल इतनी है की इस बीच यदि मेरे जाने की बारी आ जाए तो इतनी कृपा करना जाने से पहले मेरी आंखें खोल देना। मैं तेरा दरस करते हुए इस दुनिया से जाना चाहता हूं। नियमित प्रतिक्रमण करना शुरू कीजिए। देखिए, आपके चित्त में कैसे शुद्धि होती है। एक क्रांति होगी। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आप अपने सबकॉन्सियस माइंड में जैसी बातें read करेंगे वही आपके कॉन्शियस माइंड में प्रकट होगा और जो कॉन्शियस माइंड में आएगा वही आपका संस्कार बनेगा। संस्कार से प्रवृत्ति होगी और प्रवृति से चरित्र बनेगा। जड़ को पकड़िए। यह बहुत ही उपयोगी साधना है। आज से ही प्रतिक्रमण कीजिए। वह पाठ वाला प्रतिक्रमण तुम मत करो कोई बात नहीं पर मैंने जो प्रतिक्रमण बताया उस प्रतिक्रमण में कोई दिक्कत है? बोलो कर सकते हो? कितने लोग करेंगे? आधे ही लोग हां बोल रहे हैं। महाराज, आप हमें नहीं पहीचानते, हम लोगों ने तो अपने साथ एक बुलेट प्रूफ व्यवस्था बना रखी है। आप प्रवचन की कितनी भी गोलियां दागो हम पर कोई असर नहीं होगा। हम तो केवल सुनने के लिए आ जाते हैं। इसलिए आ जाते हैं कि लोग कहें कैसे लोग हैं महाराज आए हैं और आते ही नहीं। 🙂

हमें अपने जीवन के परिवर्तन के लिए खुद तैयार होना होगा, तत्पर होना होगा। अगर आप सच्चे मन से ऐसा प्रतिक्रमण करते हैं आप 3 महीने का प्रैक्टिस कीजिए, देखिए आपके चित्त की कैसी शुद्धि होती है। हो सकता है इस सभा में बैठे हुए लोग प्रतिक्रमण करते भी होंगे। बहुत सारे लोग प्रतिक्रमण करते हैं लेकिन यही रटा-रटाया प्रतिक्रमण। मैं उस प्रतिक्रमण से कोई दिलचस्पी नहीं रखता। मैं उस प्रतिक्रमण के लिए अपनी रुचि रखता हूं जो आपके भीतर एक टर्न पैदा करें। टर्न मतलब भीतर आने के लिए तैयार कर दे। अपने आप को परिवर्तित करने के लिए संकल्पित कर दे। वह प्रतिक्रमण अपने जीवन में घटित करने का उत्साह जगाइए। तो पहली बात- “प्रतिक्रमण”।

दूसरी बात- “सम्यक चिंतन”, “आत्म चिंतन”। जिसे जैन पारिभाषिक भाषा में कहा जाता है- “सामायिक”। इसकी शुरुआत सुबह से कीजिए। आप लोग सुबह उठते हैं तो कैसे उठते हैं? आंखें मलते-मलते। मैं आपसे कहता हूं- सुबह की शुरुआत पूरे उत्साह से होनी चाहिए। जिस क्षण आप उठे अपने हृदय को खूब प्रसन्नता से भरे। क्यों भरें? इसलिए भरे कि परमात्मा की कृपा से मुझे जीवन का एक नया दिन देखने को मिला है। यह कम उपलब्धि है? तुम्हें कोई २ रूपए की गिफ्ट देता है तुम उसे स्माइल देते हो, थैंक यू कहते हो। जिसने तुम्हें इस जीवन का नया दिन दिया उस परमात्मा के लिए तुम्हारे पास स्माइल है? धन्यवाद के दो शब्द है? ईमानदारी से बोलना कितने लोग हैं जो सुबह उठकर परमात्मा को धन्यवाद देते हैं? काफी लोग हैं लेकिन अनुपात कम है। क्योंकि महाराज हमें तो पता ही नहीं लगता कि कब सुबह होती है, कब शाम होती है, जिंदगी तमाम होती है। हम तो अपना एक रूटीन है उसी में जीते हैं और जीते चले जाते हैं। नहीं, उठिए, आंख खोले, मन को प्रसन्नता से भरें। मुझसे एक युवक ने पूछा- महाराज, आप इतने प्रसन्न क्यों रहते हैं? आपको जब भी देखते हैं आपके चेहरे पर मुस्कान ही होती है। मैंने बोला- क्या चाहते हो, रोता रहूं? मैंने कहा मैं अपने दिन की शुरुआत प्रसन्नता से करता हूं तो सारा दिन प्रसन्नता से बीतता है। तुम आंखें मलते-मलते उठते हो तो दिन भर रोते रहते हो। प्रसन्नता से भरो, खूब प्रसन्नता से भरो, चेहरे पर जबरदस्त स्माइल हो। यह प्रसन्नता स्वाभाविक तौर पर प्रकट होगी यदि तुम्हें इस बात का बोध हो जाए कि आज मेरे मुझे जो नया दिन मिला है वह परमात्मा की कृपा से मिला है। यह अनायास नहीं मिला। यह बेशकीमती दिन है। थोड़ा सोचो रात में सोते-सोते चले जाते तो तुम्हारा क्या होता? यह संभव है कि नहीं? दुनिया में न जाने कितने लोग हैं जो सोते-सोते रह जाते हैं। कब किस की खबर आ जाए कहा नहीं जा सकता। इसीलिए यदि तुम्हें जीवन का नया दिन देखने का सौभाग्य मिला है तो सोने के बाद जब उठो तो अपने चित्त को प्रसन्नता से भरो। उसके बाद प्रभु को धन्यवाद दो। प्रभु का नाम स्मरण करो और प्रभु से एक प्रार्थना करो। हे प्रभु! तेरी कृपा से मुझे आज जीवन का नया दिन देखने का सौभाग्य मिला मुझे शक्ति देना कि आज का दिन मैं अच्छे से जी सकूं। आज के दिन को अच्छा दिन बना सकूं। प्रभु, तुझसे एक निवेदन है कि जब भी किसी गलत काम के लिए मेरे हाथ बढे तो मेरे हाथ को रोक लेना, गलत चीज को देखने के लिए मेरी आंखे जाए तो मेरी आंखें बंद कर देना और यदि गलत बात पर मेरा चित्त आकर्षित हो मेरे चिंतन को रुद्ध  कर देना। प्रभु, तुम से मेरी इतनी प्रार्थना है। यह प्रार्थना करो और यह प्रार्थना अपने सबकॉन्सियस माइंड में फीड करो। तुम्हारे भीतर का परमात्मा तुम्हें रोकेगा। शुरु तो करो। लेकिन कोई करना ही नहीं चाहता। हमें खुद को तैयार करना होगा। इस प्रार्थना से दिन की शुरुआत करें और फिर थोड़ा आत्म चिंतन करें। मैं कौन हूं? मेरा क्या है? मैं क्या कर रहा हूं? मुझे क्या करना चाहिए? मैं इस संसार में क्यों आया? मेरा कर्तव्य क्या है? मेरा दायित्व क्या है? मैं किस लिए आया, क्या कर रहा हूं यह विचार, इसी का नाम है- “आत्म चिंतन”। इसी का नाम है- “सम्यक चिंतन”। इसी का नाम है- “सामायिक”। सुबह उठते ही करो। महाराज, हम सुबह उठते ही करते हैं। क्या करते हैं? दिनभर बिजनेस की क्या-क्या डील करनी है। कोई पॉलिटिक्स में है तो आज मुझे क्या-क्या पॉलिटिकल प्रोग्राम अटेंड करने हैं। कोई घर गृहस्थी के काम में है तो आज सुबह क्या बनाना है, शाम में क्या बनाना है, किसके यहां आना है, किसके जाना है, किस को निमंत्रण देना है, किसके आमंत्रण में जाना है। तुम लोग गोरखधंधे की बात सोचते हो। खटकर्म की बात सोचते हो। संत कहते हैं- सत्कर्म की बात सोचो, आत्मा के कल्याण की बात सोचो, गोरखधंधे से बाहर आने की बात सोचो। आत्मचिंतन एक बहुत बड़ा आलंबन है। इसका अगला रूप मेडिटेशन है, ध्यान है। उसकी गहराई में डूबिएगा। चित्त का रूपांतरण होगा, बहुत बड़ा रूपांतरण होगा। तो यह दूसरा माध्यम- आत्मचिंतन, सामायिक, ध्यान। जिसे आप नियमित अपनाइए। कम से कम आप सुबह उठकर भगवान से प्रार्थना करें फिर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद थोड़ा योग प्राणायाम करें। उसके बाद कुछ नहीं तो 20 मिनट के लिए ध्यान करना शुरु कीजिए। आप अपने मन को रिचार्ज कर लीजिए और पाओगे कि आपके जीवन में सकारात्मकता असाधारण रूप से बढ़ेगी, आपका मनोबल ऊंचा होगा, कार्य क्षमता बढ़ेगी। आप अपने साधारण व्यक्तित्व को असाधारण रूप दे सकेंगे। चाहते हैं आप? हर कोई पर्सनालिटी डेवलपमेंट की बात सोचता है पर समझो तो। उसका माध्यम क्या है? ध्यान रखना कुछ लोग हैं जो पर्सनालिटी को दूसरों को प्रभावित करने के लिए डेवलप करते हैं और जितने भी यह मोटिवेटर हैं तुम्हरी पर्सनालिटी डेवलप करने की बात करते हैं जो तुमको इंप्रेसिव बनाएं। मैं आपसे कहता हूं इंप्रेसिव बनने के मोटिवेशन तुम्हें बहुत मिलेंगे पर प्रोग्रेसिव बनने के मोटिवेशन तो केवल सद्गुरु देंगे। प्रोग्रेसिव बनो। भीतर से प्रोग्रेसिव बनो। प्रभावित करने की कला तुम्हें कोई भी सिखा सकता है, परिवर्तित करने की कला तो केवल गुरु बताते हैं। अपने चित्त को परिवर्तित करो। दूसरों को तुम कितना प्रभावित करते हो यह महत्वपूर्ण नहीं। तुमने अपने जीवन को कितना परिवर्तित और परिष्कृत किया यह महत्वपूर्ण है और यदि तुम भीतर से परिवर्तित हो गए, भीतर से तुम्हारा रूप परिष्कृत और निखरा हुआ होगा तो तुम्हें किसी को प्रभावित करने की जरूरत नहीं होगी। दुनिया स्वत ही तुम्हारी ओर आकर्षित हो जाएगी। और ऐसे तुम दूसरों को प्रभावित करने की कितनी भी कोशिश कर लो वह कदाचित प्रभावक हो सकती है पर वह अल्पकालिक होगी, टिकाऊ नहीं। आज नहीं कल असलियत सामने आएगी तुम्हें कोई उपलब्धि नहीं होगी और जो कुछ उपलब्धि होगी वह बाहर की उपलब्धि होगी क्योंकि तुम सामने वाले को प्रभावित तो कर लोगे लेकिन खुद को प्रभावित नहीं कर पाओगे। अपने जीवन को वैसा आप बनाएं, खुद के भीतर एक प्रकाश प्रकट करें। तो पहली बात- प्रतिक्रमण। दूसरी बात- आत्म चिंतन या सामायिक।

तीसरी कड़ी है- सत्संग की, सुसंगति। अगर आप अपने जीवन को अच्छा बनाना चाहते हैं तो हमेशा अच्छों के साथ रहना सीखें। नीतिकारो ने कहा है- “जैसी संगत वैसी रंगत”। पानी को जैसे मिट्टी में डाल दिया जाए पानी वैसा ही हो जाता है। जैसा रंग मिलता है वैसा हो जाता है।

कुरल काव्य में एक बहुत अच्छी बात लिखी कि लोगों का यह भ्रम पूर्ण विश्वास है कि मनुष्य का स्वभाव उसके मन में बसता है। उसका वास्तविक निवास तो उस गोष्ठी में है जिनके बीच वह रहता है। मतलब हमारा मन संगति से बहुत ज्यादा प्रभावित होता है तो हम अच्छी संगति करें, अच्छे लोगों की संगति करें। यदि आप अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाना चाहते हैं तो जिनका जीवन नकारात्मकता से भरा है, जिनकी सोच नकारात्मक है, जिनकी प्रवृत्ति खराब है, उनसे सुरक्षित दूरी बनाकर रहिए। अपने विचारों की शुद्धि चाहते हैं तो ऐसे लोगों से दूरी रखिए जिनके विचारों में विकृति है। वरना आप भी उनकी चपेट में आओगे और आज नहीं तो कल उनका रंग चढ़ा तो गए काम से। ध्यान रखना विचार बहुत संक्रामक होते हैं। विचार एक दूसरे को बहुत तेजी से प्रभावित करते हैं। हमारे मन में एक विचार जगा उसे बाहर निकाला, दूसरा, दूसरे से तीसरा। बहुत तेजी से प्रभावित करते हैं एक-दूसरे को। जैसे एक ने ताली बजाई सब ताली बजा देंगे। भले ही वह ज़रूरत पर बधाई हो या गैर जरूरत पर। वैसे ही एक के विचार दूसरे विचार को प्रभावित किए बिना नहीं रहते। अपने विचार अच्छे रखना चाहते हो तो अच्छे वातावरण में रहो, अच्छे लोगों के बीच रहो, अच्छी संगति करो ताकि तुम्हारे विचारों की शुद्धि बनी रहे।

अकबर और बीरबल के जमाने की घटना याद आ गई। एक दिन अकबर ने बीरबल से पूछा कि बीरबल यह बताओ कि मेरे राज्य के लोग कैसा सोचते हैं? बीरबल बोला- महाराज, सब एक सा सोचते हैं। जो एक सोचता है वही सब सोचते हैं। अकबर ने कहा- बीरबल, तुम्हारी बात से मैं सहमत नहीं हूं। मैंने तो यह सुना-

“मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना”।

जितने लोग आ जाएं उतनी तरह की बातें। बीरबल बोला- नहीं महाराज, मैंने जो कहा बिल्कुल सही कहा। जो एक सोचता है वही सब सोचते हैं। कैसे? बीरबल- आप आज्ञा दे तो मैं दरबार में साबित कर दूं? अकबर ने बीरबल को अनुमति दे दी और बीरबल ने फरमान जारी करा कि कल सुबह बादशाह सलामत अकबर को दूध के कुंड में स्नान करने का मनोभाव हुआ है। बादशाह ने दूध के कुंड में स्नान करने की इच्छा जताई है। सभी नगर वासियों को बादशाह सलामत का आदेश है कि एक-एक लोटा दूध उस कुंड में डालें और यह काम आधी रात्रि से पूर्व हो जाना चाहिए ताकि सुबह चार बजे बादशाह उसमें स्नान कर सकें। सब तरफ अनाउंसमेंट हो गया। रात में एक आदमी दूध का लोटा लेकर घर से निकला। उसके मन में आया- अरे! यह बादशाह को भी सनक रहती है। दूध से नहाएंगे, इतनी महंगाई में दूध कहां से लाएं और कुंड बहुत बड़ा है कि पूरे गांव भर का दूध लग जाएगा। चलो ठीक है सब तो दूध डालेंगे मैं एक लोटा पानी डाल दूं क्या फर्क पड़ता है। उसने दूध का लोटा उठाकर नीचे रखा और पानी का लोटा उठाकर चल दिया और पानी डालकर आ गया। बादशाहा के मन में बड़ी उत्कंठा थी कि आज मैं दूध के कुंड में नहाऊंगा। सुबह जब कुंड के नजदीक पहुंचा तो बादशाह देखकर दंग रह गया पूरा कुंड पानी से लबालब था। अकबर का दिमाग ठनक गया। बीरबल से कहा- यह क्या मजाक है? बीरबल बोला- हुजूर, मजाक नहीं, यह आपके सवाल का जवाब है। यह कैसा जवाब है? मैंने कहा था ना जैसा एक सोचता है वैसा सब सोचते हैं। अकबर बोला- क्या हुआ? बीरबल बोला- देखिए मैंने अपने गुप्तचरो से पता लगाया। एक आदमी अपने घर से दूध का लोटा लेकर चला लेकिन उसी पल उसके मन में आया कि सब तो दूध डालेंगे मैं एक लोटा पानी डाल दूंगा तो क्या होगा। उसने दूध का लोटा रख दिया और पानी का लोटा डाल दिया और उसके विचार का संक्रमण इतनी तेजी से हुआ कि हर व्यक्ति ने यही सोचा कि सब दूध डालेंगे हम पानी डाल दें तो क्या होगा। अब आपको यकीन नहीं तो सबके घर में देख लीजिए- दूध का लोटा पडा हुआ होगा और पानी का लोटा यहां आ गया। अकबर ने जांच करवाई, देखा सबके घर में दूध का भरा हुआ लोटा पड़ा था। तब बीरबल ने कहा कि एक के विचार का असर सभी पर पड़ता है। आपको बात समझ में आ रही है।

विचारों का प्रभाव बहुत तेजी से पड़ता है इसलिए अच्छे विचारों के लोगों के बीच रहने का अभ्यास कीजिए। अपने विचार अच्छे रखिए और अच्छी संगति कीजिए। दो चीजें हैं- संगति और सत्संग। आप अच्छे मित्रों के बीच रहिए, अच्छे विचारों के लोगों के बीच रहिए। अच्छे लोगों का साथ दीजिए। जिससे आपका जीवन अच्छा होगा।  दूसरा- सत्संग कीजिए। सुसंगति आप नियमित कीजिए और सत्संग का जब अवसर मिले तब कीजिए। सत्संग यानी गुरुजनों का समागम जिनसे आप अपने जीवन की बात सीख सकें। वह आपके जीवन के रंग ढंग को बदल देगा, जीवन को परिवर्तित कर देगा, परिमार्जित कर देगा, परिष्कृत कर देगा। वह सत्संग आपके भीतर होना चाहिए। क्या पता किस संत की कौनसी वाणी से तुम्हारे जीवन में चमत्कार घटित हो जाए। एक पल के सत्संग से अंगुलिमाल मुनि बन गया, थोड़ी देर के सानिध्य से वाल्मीकि ऋषि बन गए, कुछ पल के सानिध्य से अंजन चोर निरंजन बन गया तो कब मेरे ऊपर किस सत्संग का क्या असर पड़ जाए कोई पता नहीं इसलिए सत्संग कीजिए। उसे एक मोटिवेशन मिलता है और वह जीवन को एकदम बदल डालता है, मोड डालता है। आपने देखा जितने भी नालियों का पानी होता है कितना गंदा होता है लेकिन नालियों का गंदा पानी जब गंगा जी में मिल जाता है तो वह गंगाजल बन जाता है तो जिनका जीवन नालियों जैसा गंदा है तो अगर वह सत्संग की गंगा में आ जाए तो उनका जीवन भी पवित्र गंगाजल बन जाएगा। हमारा जीवन एक लता की तरह है। वह कुएं की पाठ में उतर जाए तो नीचे जाता है और किसी स्तंभ का आश्रय ले ले तो आसमान को छू लेगी। भद्रजनों की संगति करोगे ऊपर जाओगे और अभद्र लोगों की संगति करोगे तो नीचे जाओगे। जैसी संगत वैसी रंगत इस बात को ध्यान में रखो। अच्छी संगति करो और सत्संग करो। सत्संग जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाता है।

मेरे संपर्क में ऐसे ऐसे लोग हैं जो सुबह की शुरुआत शराब के कुल्ले से करते थे। यह जीवन का एक अध्याय है लेकिन मेरे संपर्क में आने के बाद आज जीवन में ऐसा बदलाव हुआ कि वह व्यक्ति बन गए, घर में रहकर संतो जैसा जीवन जी रहे हैं। मैं केश लॉन्च कर रहा था और यह आज से लगभग 20-25 वर्ष पुरानी बात है। (उस समय आज से लगभग 4 गुना बाल थे। अब तो फसल आधी हो गई) उसमें केश लॉन्च देखा और देखते ही देखते उसके अंदर पता नहीं क्या उथल पुथल हुई। मेरा और उसका कोई परिचय नहीं था। केश लोंच पूरा होने के उपरांत, आखिरी होने तक वह एकटक देखता रहा। दो-तीन घंटे लगते हैं। केश लोच होने के बाद वह मेरे चरणों में आया। फूट-फूट कर रोने लगा। बोला- महाराज, आज मेरा मन मुझे भीतर से कचोट रहा है। महाराज जी मुझे लगता है कि मैंने अपने मनुष्य जीवन को बर्बाद कर दिया। सच्चा रास्ता तो आपका है। आपकी उम्र मेरी उम्र से आधी है पर मैं अपने आप को लज्जित महसूस कर रहा हूं कि मैंने किस रास्ते को अपनाया, कैसे पाप में, व्यसन में, बुराइयों में, अपने आप को लिप्त रखा। कितना धन-पैसा बर्बाद किया। महाराज आज से मैं अपनी सारी बुराइयों को आपके चरणों में छोड़ता हूं। मैंने सोचा अभी ज्यादा उपदेश देने की जरूरत नहीं है मैंने उसे केवल इतना कहा कि सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आए तो वह भूला नहीं कहलाता। कोई बात नहीं, तुम दृढ़ संकल्पी बन जाओ और अब तक किया सो किया आज से यह संकल्प लो- अभी तक मैंने पाप किया था, अब मैं पाप काट दूंगा। उसने कहा- महाराज, ऐसी शक्ति दो। मैंने उसे संबोधन दिया, णमोकार मंत्र पढ़ा कर उसे संकल्पित करवाया। बस इतनी वार्ता हुई। दूसरे दिन वह आदमी आहार देने आ गया धोती दुपट्टा पहनकर। मुझे जिसके बारे में पता होता है कि यह आदमी शराब पीता है उसके हाथ से आहार नहीं लेता और जो शराब पीते हो वह पहले अपने हाथ को शुद्ध करें फिर हमें आहार देना। आ गया चौके में, वह शराबी था। हमने कहा कल का ही दिन था और आज यह आ गया। स्वीकारता हूं तो गड़बड़, ठुकराता हूं तो खतरा। मैंने दिमाग से काम लिया। गर्मी का समय था, पसीने के कारण अंतराय ना आ जाए इसलिए एक हवा कर रहा था। मैंने उसको गमछा पकड़वा दिया, उसको हवा करने में लगवा दिया। वह पूरा टाइम हवा करता रहा। मेरा आहार हो गया। मैं चुपचाप बैठ गया। बाद में उसके हाथ से कुल्ला कर लिया। बाद में उसने बोला- महाराज, आपने मुझसे आहार नहीं लिया। मैंने कहा- तुमसे आहार लेंगे पर अभी तुम्हारे शुद्धिकरण की जरूरत है। तुमने जो संकल्प लिया पहले वह मैं महीना दो महीना देखूंगा, जिस दिन तुम मेरी नजर में खरे उतर जाओगे उस दिन मैं तुमसे आहार ले लूंगा। तुम्हारे घर में भी मैं तभी आहार करूंगा। उस आदमी का जीवन बदल गया। उसने उसी समय बोला महाराज अब मैं जब तक अपनी पात्रता को आपके सामने प्रमाणित नहीं करूंगा आहार नहीं दूंगा। चौके में आ सकता हूं? मैंने बोला हां आ सकते हो। रोज वह हवा करता रहा, मैंने देखा डेढ़ महीने में उसके जीवन का रंग ढंग पूरी तरह परिवर्तित हो चुका था। वह अपना जितना देर कारोबार में समय लगाना होता था लगाता बाकी सारा समय हमारे पास लगाता। डेढ़ महीना बीत गया। मैंने कहा- अब तुम मेरी कसौटी पर खरे उतर गए हो। तुम चाहो तो अपने घर में चौका लगा सकते हो। उसने चौका लगाया मेरा आहार हुआ। जिस दिन आहार हुआ उसी दिन उसने रात्रि में चारों प्रकार के आहार का बिना कहे त्याग कर दिया। मैंने पूछा- हो जाएगा? बोला- महाराज, जब आप एक टाइम खाना खा कर अपना जीवन चला सकते हो तो क्या हम रात का पानी छोड़ कर नहीं चला सकते। मैंने जब पूछा निभ जाएगा तो बोला महाराज सब निभेगा, निभाने वाले के लिए सब निभता है और बहाने बनाने वाले से कुछ नहीं निभता। उसके बाद उस व्यक्ति के जीवन में जो मोड आया, स्वाध्याय से जुड़ा, सत्संग से जुड़ा। उसके विचार में भी बदलाव आया, व्यवहार में भी बदलाव आया और आज वह आदमी सात प्रतिमा का धारक है। घर में रहकर एक संत जैसा जीवन जी रहा है और चातुर्मास के चार माह में 1 दिन भोजन करता है 1 दिन उपवास करता है। लक्ष्य अपनी समाधि का है। यह सत्संग का चमत्कार। जिंदगी इतनी हाइट पर जा सकती है। मैं नहीं कहता कि तुम सत्संग करके संत बन जाओ। मैं तुम्हें संत बनने के लिए सत्संग करने का उपदेश  बिल्कुल नहीं दे रहा हूं। महाराज सब तो यही चाहते हैं मैं नहीं चाहता, क्योंकि किसी के बोलने से जो संत बनता है वह संत नहीं होता कुछ और हो जाता है। संतत्व तो भीतर की घटना है। मैं तुम्हें संत बनने के लिए सत्संग का उपदेश नहीं दे रहा हूं। संत बनो या ना बनो यह तुम्हारा सौभाग्य है। सज्जन तो बन जाओ और सज्जन बनना है तो संतों की शरण में आ जाओ।

एक भला आदमी बनना चाहते हो, एक अच्छी सोच का इंसान बनना चाहते हो सत्संग करो। रुचि से सत्संग करो, हृदय से भर कर सत्संग करो। अगर सत्संग करोगे तो तुम्हारे जीवन का रंग ही बदल जाएगा।

चौथी बात है- “उपासना” या “प्रार्थना। पूजा, पाठ, धार्मिक क्रियाएं  जितनी भी है, हमारे जितने भी रिचुअल हैं। यह हमारी चित्त शुद्धि के अनुष्ठान हैं। आप प्रार्थना कीजिए पर जागृत प्रार्थना। मृत प्रार्थना नहीं। महाराज, प्रार्थना भी जिंदा और मरी हुई होती है क्या? अगर जीवन के परिवर्तन का प्रयोग बना कर प्रार्थना करते हो तो मैं उसे जीवित प्रार्थना कहता हूं और केवल रूटीन की प्रार्थना करोगे तो मैं उसे केवल मरी हुई प्रार्थना समझता हूं। रूटीन की प्रार्थना टेप रिकॉर्डर की तरह शुरू हो गई। आप मंदिर में गए, स्तुति बोल दी, हो गई प्रार्थना। बोल भी रहे हैं, आंखें इधर-उधर घूम रही हैं, मन इधर-उधर डोल रहा है। बोलो, यह प्रार्थना है क्या? यह शाब्दिक प्रार्थना है। यह प्रार्थना जीवित प्रार्थना नहीं होती जिसमें हमारे मन: प्राण नहीं जुड़े, वही प्रार्थना जीवित प्रार्थना कहलाती है जो हमारे मन से प्रकट होती है, जो हमारे प्राणों से जुडी होती है वह प्रार्थना कीजिए। भगवान के चरणों में पूजा कीजिए। पूजा जीवन में सकारात्मकता लाती है। पूजा प्रार्थना से जीवन में आमूलचूल परिवर्तन होते हैं। मैं धार्मिक क्रियाओं का निषेध नहीं करता। जो लोग धार्मिक क्रियाओं को कोरा कर्मकांड कहते हैं वह सही नहीं कहते क्योंकि उन्होंने इसमें छिपे विज्ञान को नहीं जाना। लेकिन हां, धार्मिक अनुष्ठान कोरे कर्मकांड बन जाते हैं तब- जब हम उन्हें रूटीन बना लेते हैं तब। रूटीन मत बनाइए, उसे अपने जीवन की रूटीन बदलने का आधार बनाइए। इस तरीके से कीजिए कि तुम्हारे जीवन का रूटीन ही चेंज हो जाए। तुम्हारी चर्या क्रिया ही बदल जाए, तुम्हारी प्रवृत्ति ही परिमार्जित हो जाए, तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा। अपने जीवन को ऊंचाई तक पहुंचाने में समर्थ हो जाओगे। तो ऐसी पवित्रता के लिए आज के 4 सूत्र आप याद रखिए-  “प्रतिक्रमण”, “सामायिक”, “सत्संग”, और “प्रार्थना” या “उपासना”। इसे अपने जीवन का अंग बनाइए। नियमत: अपने जीवन को ऊंचाई पर पहुंचाने में समर्थ होंगे। ज्यादा नहीं तीन महीने का एक प्रयोग करके देखें। तीन महीने आपके जीवन को बहुत ऊंचा उठाएंगे और सारे विकारों से दूर करेंगे। सब प्रकार के दुखों से मुक्ति का रास्ता बताएंगे और जीवन को धन्य करेंगे।

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