शंका
मुझे मन्दिर में जैन प्रतिमाओं को देखकर बुरे भाव आते हैं, णमोकार मन्त्र के प्रति भी अधिक घृणित भाव आते हैं जबकि में रोज अभिषेक करता हूँ, ऐसा क्यों? कृपया मुझे प्रायश्चित बताएँ?
समाधान
यह एक प्रकार की मनोविकृति है, मानसिक बीमारी है, psychosomatic disorder (मनोदैहिक विकार) हैं। मनोवैज्ञानिकों का इस सन्दर्भ में कहना है कि किसी व्यक्ति के भीतर जब कोई पश्चाताप होता है, अपने जीवन में कोई अपराध किए गए हों, जो अन्दर दबा रह गया हो, तो ऐसे व्यक्ति ऐसी बीमारी के शिकार होते हैं। व्यक्ति को चाहिए किसी मनोवैज्ञानिक (psychiatrist) के पास जाकर काउंसलिंग करें, वहाँ जाकर के अपने मन का बोझ उतारे, अपने हृदय के विकार को बाहर निकाले, तो इस प्रकार की विकृति से अपने आप को बचा सकते हैं। यह एक मानसिक बीमारी है आप उसको उसी तरीके से ठीक करें।
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