माँसाहारी दवाओं के सेवन से कैसे बचें?

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शंका

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दवाइयों पर लाल या हरा चिन्ह नहीं लग सकता, तब जैन डॉक्टर का क्या नैतिक कर्तव्य है जिससे वह समाज को अव्यक्त और अशिक्षा के कारण या मजबूरी में होने वाले माँसाहार से बचायें?

समाधान

बहुत गम्भीर मुद्दा है! मैं तो यह मानता था कि दवाइयों में भी ग्रीन और रेड चिन्ह लगते हैं। अपने धर्म की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा और इसके लिए पहल करनी होगी ताकि आप सुरक्षित तरीके से कार्य कर सकें। इस कार्य में हमारे चिकित्सकों का बहुत बड़ा रोल है। पर मेरा मानना है कि केवल चिकित्सकों से काम नहीं चलेगा, समाज में भी इसके विषय में जागरूकता आनी चाहिए। क्योंकि चिकित्सक की सीमायें हैं, हर व्यक्ति जैन चिकित्सक से इलाज कराये, यह सम्भव नहीं। कई बार अन्य विकल्पों के कारण और अच्छी चिकित्सा पाने के चक्कर में लोग अलग-अलग चिकित्सकों से चिकित्सा कराते हैं। हमें अहिंसक समाज के बीच से प्रचार-प्रसार करना चाहिए कि यह दवाइयाँ खाने योग्य है और यह दवाइयाँ खाने योग्य नहीं। 

जब भी आप किसी चिकित्सक के पास जाएँ तो उनसे कहें कि ‘हमको ऐसी कोई औषधि न दें जिसमें किसी भी प्रकार का माँस है। हम ४ दिन बाद ठीक होंगे, हम को यह स्वीकार है लेकिन हम माँसाहारी दवाई खाकर के जिंदा रहना पसन्द नहीं करेंगे। हम मर जाने के लिए तैयार हैं पर अपना धर्म भ्रष्ट करने के लिए तैयार नहीं हैं।’ यह बात आप को दृढ़ता के साथ कहनी होगी और आप ऐसी प्रस्तुति चिकित्सकों के सामने करते हैं तो आपको बहुत सुविधा मिल सकती है, परेशानियाँ कम हो सकती हैं। 

दूसरी बात हमें एक पहल सरकार के साथ यह करनी चाहिए, पूरे देश भर के शाकाहारी समाज के लिए, कि ‘आपने जैसे खाद्य पदार्थों में शाकाहारी और माँसाहारी के लिए हरा और लाल चिन्ह बनाया है, उसी प्रकार औषधियों में, जो पहले चलता था उसे वापस चलाएँ। सुप्रीम कोर्ट की रोक क्यों हुई उस बात को ध्यान में रखते हुए, इसका विकल्प तैयार करें।

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