मेरा बड़ा बेटा १२ वीं में पढ़ता है- यश और छोटा बेटा आठवीं में पढ़ता है-हर्ष। परन्तु आज के माहौल के हिसाब से अब बच्चों को हमें घर में रहकर उन्हें क्या शिक्षा और क्या संस्कार देना चाहिए जिससे के वो धर्म से जुड़े रहें।
१२ वी और ८ वी में पहुँचने के बाद संस्कार की बात करना तो बहुत गड़बड़ है। संस्कार की बात तो तब से शुरू करनी चाहिए जब से बच्चा पेट में आ जाए। समझ गए?
तब पहली बात तो बहुत लेट हो गए आप। जो बच्चा १२ वी में यानी सोला सतरह बरस का हो गया, और सोलह सतरह बरस में अगर आपने उसका FOUNDATION ठीक रखा है तब तो गनीमत है और FOUNDATION गड़बड़ तो सब गड़बड़ है। मैं मानता हूँ आपने अच्छा ही संस्कार दिया होगा।
तो अब आप का सवाल है कि इस जगह, इस AGE में, हम उन्हें कैसे ढालें क्योंकि यह TEEN-AGE है। और आज का जो परिवेश से बड़ा विकृत है; तो ऐसे TEEN-AGE में रहने वाले युवकों को कैसे ढालें?
उनको गुरुओं के संपर्क में लाए, उन्हें कुछ संकल्प दिलायें, उन्हें अपने जीवन के प्रति कुछ हिदायतें दें जिससे वो खुद के प्रति जागरूक हों और वो उस जागरूकता के बल पर अपने जीवन को सुधार सकें। उन्हें समझें कि हमें यह बात समझाएं कि इस AGE में कहाँ-कहाँ दुर्घटनाएँ होती हैं।
फिर दूसरी बात सबसे पहले उन बच्चों के मन में अपने प्रति इतना विश्वास जगायें कि वे बच्चे कोई बड़ी से बड़ी गलती भी कर देंगे तो आप उन्हें केवल सीख देंगे; सजा नहीं। माँ बाप बच्चों को दंडित करते हैं। इसका नतीजा यह निकलता है कि बच्चे अपनी बातें माँ बाप को नहीं बताते, उन्हें भ्रम में रखते हैं, अंधेरे में रखते हैं और उनकी गलतियों को पूरी दुनिया जानती है पर वह नहीं जान पाते तो मामला गड़बड़ हो जाता है। तो आप अपने बच्चों के साथ उनका विश्वास जीतें। उन्हें सीख दें, उन्हें सजा न दें। उनके मन में विश्वास होना चाहिए। और फिर बच्चों के ह्रदय में ऐसा विश्वास कि वह अपनी पर्सनल लाइफ की सब बातें आपसे शेयर कर सकें। कोई भी गड़बड़ी उनके जीवन में हो तो आपको बता सकें। और आपके अनुभवों का वो लाभ भी ले सकें और अपने जीवन में परिवर्तन ला सकेँ।
इस उम्र में क्या-क्या गलतियाँ होती हैं और उसमें क्या सावधानियाँ अपेक्षित हैं इसकी भी उन्हें जानकारी दें, तब जीवन में बदलाव आता है। और फिर गुरु चरणों में लाकर उन्हें संकल्पित कराएं। उन्हें बताएं कि इस AGE में बच्चे किस तरीके से मादक पदार्थों की तरफ आकर्षित होते हैं, किस प्रकार से विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होकर पथ भ्रष्ट होते हैं, किस प्रकार अपने खान-पान में गड़बड़ियाँ कर डालते हैं, इस उम्र जन्य भावनात्मक आवेग और उन्माद के कारण जीवन में कैसी-कैसी विकृतियाँ पैदा होती हैं, बड़े मनोवैज्ञानिक तरीके से उन्हें समझाने की जरूरत है। और दूसरों के इस व्यवहार से अपने आप को कैसे बचायें इसके लिए तैयार करने की आवश्यकता है।
यदि आप ऐसा करेंगे तो मैं मानूँगा कि आपके बच्चे कभी भी नहीं डगमगाएंगे और मेरा तो अनुभव यह बताता है आज जो बच्चे उच्च शिक्षा के लिए घर से बाहर जाते हैं और सुरक्षित आ जाते हैं, मानो वह काजल की कोठरी से बे-दाग लौटते हैं! बहुत कठिन और चुनौती भरा, बहुत कठिन और चुनौती भरा माहौल है लेकिन फिर भी मुझे खुशी है कि आज भी बहुत सारे बच्चे बचे हुए हैं, वह बचे हुये हैं जिनकी बुनियाद अच्छी हैं।
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