न्यायालय में सल्लेखना पर दिये गये प्रमाणों पर मुनिश्री के उद्गार!

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शंका

सल्लेखना संथारा को आत्महत्या के समानान्तर अपराध बताने हेतु जो जनहित याचिका माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुई थी, उसमें विभिन्न अभिभाषक गण द्वारा जो लिखित बहस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई उसका आपने अवलोकन किया। कृपया मार्गदर्शन करें कि हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष या जिस प्रकार भी विधिवेत्ता निर्धारित करें, माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष नजर सानी याचिका में किस प्रकार आगे बढ़ने का प्रयत्न करें?

समाधान

आपने जो मुद्दा उठाया बहुत महत्वपूर्ण है। आज मुझे तब बहुत आश्चर्य हुआ जब आपके साथ विमल जी डागा ने मेरे सामने, अदालत में पेश किए गए प्रमाण प्रस्तुत किए। उन्होंने लगभग दो हजार पृष्ठों का यह प्रमाण प्रस्तुत किया है, लेकिन विडम्बना देखिए, यह देख रहें है आप, दो हजार पेज से अधिक पेजों को प्रस्तुत करने के बाद भी आपके माननीय महोदय को कोई प्रमाण नहीं मिला, अब इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा? सोचने की बात है। 

उन्होंने इसे consider नहीं किया। अब आपको न्यायलय के दरवाज़े पर जाकर इसी बात को प्रस्तुत करने की जरूरत है कि हमारे शास्त्र का एक-एक पन्ना सल्लेखना समाधि का गीत गाता है। हमारे रोम-रोम में सल्लेखना की महिमा छुपी हुई है, संथारा की महिमा छिपी हुई है। हर साधक की अन्तस की पुकार होती है समाधि, हर साधक की अन्तः का प्राण होता है सल्लेखना और हर साधक के जीवन का ध्येय बनता है संथारा, उसको हम कैसे छोड़ सकते हैं? 

आगम के सारे प्रमाण जब मैंने देखे, दिगम्बर-श्वेताम्बर परम्पराओं की सारे मान्य ग्रन्थों में जो भी उल्लेखित हैं, उन सब का उल्लेख किया है। इसे कोई साधारण व्यक्ति भी पढ़ ले तो समझ लेता कि सल्लेखना की क्या महिमा है! इसे आत्महत्या या सती प्रथा की तरह कोई क्रुप्रथा कहना तो बहुत ही छोटी बात है। बल्कि, इसे तटस्थ भाव से पढ़ने के बाद कोई सोचेगा कि जीवन के समापन का या जीवन के कल्याण का इससे अच्छा कोई मार्ग नहीं हो सकता। तो वह खुद सोचेगा कि मेरी भी ऐसी ही सल्लेखना हो। दुर्भाग्य है, पुण्यशाली जीवों को ही ऐसा योग मिलता है। जिनका भवितव्य अच्छा होता है, वही सल्लेखना धारण कर सकते हैं, हर कोई नहीं। 

लेकिन हमें अब घबड़ाना नहीं है। यहाँ नहीं तो कहीं ना कहीं ऊपर की अदालत में तो हमें न्याय मिलेगा ही और इसलिए न्याय की लड़ाई के लिए समाज को पूरी तरह से ताकत से जुटना है। अब और समय मिला है, तो उसमें और अंश को जो इसमें छूट गए हैं वह दिए जा सकते हैं लेकिन इसमें जो कुछ भी लिखा व्याप्त है इसे कहना कि सबूत नहीं दिए गए हमारी न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। विमल जी ने बहुत अच्छा काम किया है। यह आगे के लिए आपके काम में आएगा। ऐसे व्यक्ति ने एक श्रावक होने के बाद भी अपने स्वाध्याय के बल पर यह कार्य किया है। मेरे विचार से वे कोर कमेटी के सदस्य भी हैं, बहुत अच्छा कार्य किया है, सारे देश को इनकी सहराना करनी चाहिए।

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