जैन धर्म ऊपरी बाधा, भूत प्रेत और पित्र के बारे में क्या बताता है? अगर किसी के ऊपर यह होता है, तो जैन धर्म के अन्तर्गत क्या इसका उपाय है? इन चीजों को किस तरह से दूर किया जा सकता है और अगर जैन धर्म ऐसा मानता है, तो फिर क्या वैष्णव धर्म के हिसाब से हम को कर्मकांड करना चाहिए?
जैन धर्म के अनुसार यह सब अन्धविश्वास है। कोई ऊपरी बाधा नहीं होती, कोई भी पित्र नहीं होता।
आज ही सुबह एक महिला को मेरे पास लेकर आया गया; लोग सोच रहे थे कि ऊपरी बाधा है, बातचीत देख कर के समझ में आया कि इनको पूर्णतया Psychiatric Problem (मनोरोग परेशानी) है। ज़्यादातर ये जितने भी केस होते हैं वह सभी मानसिक होते हैं, मनोरोगी होते हैं। हमें मनोचिकित्सक से परार्मश करके चिकित्सा करानी चाहिये।
इसी तरह पित्र की बात है। जैन धर्म में पित्रों की कोई मान्यता नहीं है। पित्रों के विषय में कहना चाहता हूँ कि हमारा चतुर्मास गया में था २००८ में। वहाँ के एक लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं नागोरी गोपाल; अजैन थे, वह हमसे जुड़े थे। उन्होंने कहा कि “महाराज जी! आज हम जैन बनने से को बहुत फायदा हो गया।” हमने कहा- क्या हो गया भाई? उन्होंने कहा कि “मैं अभी रेलवे स्टेशन पर उतरा, वहाँ बहुत सारे पंडित थे, वहाँ पित्र पक्ष चल रहा था, तो वो लोग पीछे लग जाते हैं। स्टेशन में उतरते ही मैने देखा कि कुछ जैन यात्री उतरे, उन्होंने पंडित से कहा -“हम जैन हैं”, तो पंडितों ने उनको छोड़ दिया। तो हमने भी बोल दिया कि ‘हम जैन हैं’, तो हमको भी छोड़ दिया गया, तो हमने सोचा जैन बनने से फायदा हो गया, हमारा ख़र्चा बच गया। उसी दिन से हम समझ गये कि इन सब चक्करों में न पड़ने में ही सार्थकता है।
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