आज दोपहर के प्रवचन में आपने मृत्यु के बारे में, मरण के बारे में कहा, विग्रह गति के बारे में कहा, समुद्रघात के बारे में कहा। यहाँ कई बुजुर्ग लोग हैं, अच्छा मरण कैसे हो इस के बारे में मार्गदर्शन करें। मैं डॉक्टर के नाते देखता हूँ, जब मैं के.ई.एम. पूना हॉस्पिटल में होता हूँ, त्यागी लोग भी अन्ततः आई.सी.यु. (I.C.U.) में जाकर मरते हैं, वेंटिलेटर (Ventilator) पर मरते हैं। कई बार रिश्तेदारों को उनकी मृत्यु के १ घंटा २ घंटे बाद उनकी मृत्यु की बात पता चलती है। और दूसरी बात वे अपने इच्छा पत्र में यह बात जरूर लिखें कि ‘मैं कैसे मरना चाहता हूँ’। गुरुदेव, मेरी धर्मपत्नी डॉक्टर है, मेरे दोनों बच्चे डॉक्टर हैं, दोनों बहुएँ भी डॉक्टर हैं। पिछले मार्च में मैंने वसीयत बनाई, उसमें मैंने लिख दिया है कि इनके साक्षी से मैं अपना मरण गजपंथा तीर्थक्षेत्र के उस पहाड़ के गुफा मन्दिर में करूँगा, मैं दूसरी जगह नहीं मरूँगा, मैं हॉस्पिटल में कभी नहीं जाऊँगा।
आपने बहुत ही प्रशस्त भावना प्रकट की है। और यह प्रश्न बहुत ही समयोचित है। बन्धुओं, हमारे जीवन के मनोरथों में एक महत्वपूर्ण मनोरथ है- ‘ढंग से जीना और ढंग से मरना!‘ मेरा जीवन ढंग का होना चाहिए, तो मेरा मरण भी ढंग का हो। लोग मरण सुधारने की बात करते हैं लेकिन मरण तभी सुधर पाता है जब जीवन सुधरे। डॉक्टर साहब ने बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर सबका ध्यान आकृष्ट किया।
जितने भी यहाँ लोग हैं, यदि आप चाहते हैं कि आपका अन्त अस्पताल में न हो तो अभी से अपनी संयम-साधना को बढ़ा दीजिए। सबसे पहले बार-बार खाने-पीने की आदतों पर नियंत्रण रखिये। पहला प्रयास कीजिए, रात्रि में चारों प्रकार के आहार के त्याग का अभ्यास करने का, दूसरे चरण में दिन में बार-बार खाने का, तीसरे चरण में चाट पकोड़े तली फली चीजों को खाने का। आप इनको धीरे धीरे कम कीजिए। यह शरीर के लिए हानिकारक है, इन को मल-वर्धक कहा गया है, जिनसे एक्स्ट्रा कैलोरीज (अतिरिक्त ऊर्जा) जुड़ती हो, वह मेडिकल साइंस के अनुसार, हमारे शरीर के लिए हानिकारक हैं। चिकित्सक कहते हैं, जरूरत से ज्यादा कार्बोज की मात्रा भी हमारे लिए बहुत नुकसानदेह है। तो खान पान में संयम रखें। शरीर से जितना काम लेते हैं उतने हिसाब से आप भोजन कीजिए और खाने-पीने की आदतों पर अंकुश लगाइए। फिर दिन में बार-बार खाने की जगह अभ्यास कीजिए दो ही बार खाने की, दो ही बार पीने की। आप जैसा चाहेंगे वैसा अभ्यास बना सकते हैं।
अभी दसलक्षण चल रहा है, आप लोगों में प्रायः सभी एकासन कर रहे हैं और शाम को अगर कोई ले भी रहें तो केवल जलपान कर रहे हैं, या हल्की-फुल्की कोई चीज ले रहे हैं और आप की गाड़ी अच्छे से चल रही कि नहीं चल रही? चल ही नहीं रही है, दौड़ रही है। आम दिनों की तुलना में ज्यादा exersion (थकान) भी हो रहा है। इसका मतलब आप के पास शक्ति है। और आपका शरीर थोड़े में भी बहुत अच्छे से चल सकता है लेकिन आप लोग जबरदस्ती अपने शरीर में चीजें डालते हैं। तो इस पर अंकुश रखना शुरू कीजिए, अपना आध्यात्मिक चिंतन बढ़ाइए, स्वाध्याय कीजिए, सत्संग को बढ़ाइए, परिणामों में थोड़ी समता लाने का प्रयास कीजिए, सरलता लाने का प्रयास कीजिए। घर, ग्रहस्ती और व्यापार-व्यवसाय के कार्यों से अपने आप को धीरे-धीरे मुक्त करने की कोशिश कीजिए।
अपना समय, जितना बन सके, धर्म ध्यान में लगाइए, साधु-सन्तों के बीच लगाइए। डॉक्टर साहब इतने व्यस्ततम चिकित्सक हैं, पर चतुर्मास का यह चौथा ट्रिप है जयपुर का, और ऐसा नहीं कि सुबह आए, शाम को चले गए। यह इनकी रूचि है इसलिए आते हैं, ऐसा नहीं कि इन्हें कोई काम नहीं, काम तो इतना है कि इन के लिए दिन छोटा है। लेकिन जब व्यक्ति अपने जीवन की प्राथमिकताओं को सुनिश्चित कर लेता है, तो बाकी सब चीजें उसके लिए व्यर्थ हो जाती हैं। आपने एक बहुत उत्कृष्ट भावना व्यक्त की कि ‘मेरा मरण अस्पताल में न हो, मैं गजपंथा के गुफा में मरण करूँ जहाँ अनेक मुनियों की समाधि हुई, चारित्र चक्रवर्ती शान्तिसागर जी महाराज की समाधी हुई।
इसके लिए आप को जागरूक होना पड़ेगा और उसके लिए अपनी एक तैयारी करनी पड़ेगी। नहीं तो आप कहीं पैरालिसिस के शिकार होकर के मरोगे, कहीं आपको ब्रेनस्ट्रोक होगा, कहीं दिल का ऐसा दौरा पड़ेगा कि लटक जाओगे। वेंटीलेटर पर लटक कर मरने से अच्छा है णमोकार जपते हुए इस शरीर को छोड़ो। और वह गुरुओं की कृपा से ही सम्भव है। डॉक्टर साहब ने जैसा कहा ‘पहले अपने मन में दृढ़ता बनाओ और अपने परिवार परिजनों को इस बात के बारे में अवगत करा दो कि मैं अपने जीवन का कैसा अन्त चाहता हूँ और मेरी इस इच्छा की पूर्ति आप सब को ज़रूर करनी चाहिए।
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