शंका
कभी-कभी हमें अन्तरंग में क्रोध आता है और पाप भी हो जाता है और विकार भी हर तरह के उठने लगते हैं, तो इससे बचने का क्या उपाय है?
समाधान
इसका बचने का सिर्फ एक ही उपाय है कि अपने आप को यथासंभव शुभ में लगाओ, जब भी अपने मन में अशुभ विकल्प आयें- जिन्हें दुर्विकल्प कहते हैं, दुष्ट संकल्प कहते हैं- उस समय अपने मन में अपनी निंदा करो, अपनी गाथा करो, अपने आप को धिक्कारो, भगवान के सामने जाकर के अपने आपको अपराधी की तरह प्रस्तुत करो, भगवान से क्षमा मांगो, णमोकार मंत्र जपो, कायोत्सर्ग करो; ऐसे भावों की पुनरावृत्ति ना करने का मन ही मन संकल्प लो तभी आप अपने अशुभ परिणामों से बच सकते हैं।
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