शंका
आत्मा तो अजर-अमर है, उसकी मृत्यु नहीं होती। शरीर पुदगल है, उसका छूटना सुनिश्चित है। जब दोनों की वस्तु-स्थिति जानने वाले साधक का शरीर ग्रहण करना छोड़ दे, डॉक्टर भी जवाब दे दे, परन्तु सांसे शेष रह रहें, तब साधक एवं श्रावक क्या करें?
समाधान
शरीर अपना function (क्रियायें) करना बंद कर दे और सांसे शेष हों, तब सांसों को आत्मा के ध्यान या प्रभु के स्मरण के साथ पिरोते हुये सार्थक करना शुरू कर दें और इसी का नाम सल्लेखना है।
Leave a Reply