आजकल घरों में इतना मोह हो गया कि हम लोग बच्चों की इच्छा पूरी करने के लिए सच झूठ किसी का भी सहारा ले लेते है; न उनसे कुछ कहते है,न उनको धर्म में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते है। तो घर में जीवन के प्रति कैसा व्यवहार रखें?
मोह का साम्राज्य बड़ा जटिल है और बहुत पुराना है, अनादि से मोह की सत्ता हर जीव मेंं जमी हुई है आप लोग छःढाला में बोलते हैं “मोह महामद पियो अनादि भूल आपको भरभत वादी” इस मोह का प्रभाव संसार के हर प्राणी पर है, विरले जीव ही है जिनकी भवतव्यता अच्छी होती है वहीं मोह को जीत पाते हैं,कम कर पाते हैं। अधिकतर लोगों से आप बात करो तो वो गोरखधंधा और रोज़मर्रा की जिंदगी तक ही अपने आप को सीमित करते हैं। एक परिवार मेरे पास आया उसकी उम्र होगी करीब 50 साल की, मैंने पूछा तुम्हारे जीवन का मकसद क्या है,बोला- “अभी तक कुछ तय नहीं है।” सांसारिक उपलब्धि को ही जो अपनी उपलब्धि माने व्यापार, परिवार, गोरखधंधा, ठाट बाट मौज मस्ती में ही जो अपने जीवन की परिपूर्णता मानकर के चलते हैं वे अपने जीवन में कभी मोह को नहीं जीत सकते। जिन्हें अपने आत्मा के कल्याण की तीव्र ललक होती है जो इस मनुष्य जीवन की दुर्लभता को अच्छे से समझते हैं और अपने जीवन को सार्थक करने का संकल्प जगाते हैं उनका ही मोह शांत होता है।
मोह के उपशमन का रास्ता केवल यही है कि आप गुरु की शरण में आओ। आप खुद बोलती हैं कि -“महाराज मैं अपने संपर्क में रहने वाले परिवार से जुड़े और अन्य लोगों से कहती भी हूँ कि सारी सुविधा है, आओ जुड़ जाओ लाभ उठाओ, लेकिन किसी को रूचि नहीं होती।” कहा जाता है कि – “जाकी जाहि मेंं लगन वह तो वाही मेंं मगन!” आपको यहाँ रस है क्योंकि आपने जीवन के मर्म को जाना है और जिसने नहीं जाना उसको वही आनंद है; विष्ठा का कीड़ा विष्ठा मेंं ही आनंद मनाता है। हम भावना भाये कि वह स्वरूप को पहचाने और दुर्लभ मनुष्य जीवन को सार्थक करें।
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