वृद्धावस्था में धर्म ध्यान कैसे और कितना?

150 150 admin
शंका

मेरे घर में चैत्यालय है, मैं सुबह से ३ घंटे मंदिर में लगाती हूँ। ३ घंटे के अलावा, परिवार में रहते हुए मुझे और कितना समय धर्म ध्यान में लगाना चाहिए।

समाधान

अब परिवार से अपने आप को थोड़ा दूर करो । अब परिवार को बच्चों और बहुओं के हाथ में सौंपो और अपने आप को देखो। एक उम्र हो जाने के बाद जब संतान योग्य हो जाए और सारे पारिवारिक, ग्रहस्थी और व्यापारिक दायित्वों को संभालने में सक्षम हो जाएं, तो मां-बाप को चाहिए कि घर के मालिक बनने की जगह मेहमान की तरह रहना शुरू कर दें; सब कुछ उन को सौंप दें। हालाँकि बच्चों को यह चाहिए कि आख़िरी तक मां-बाप को मालिक माने, मेहमान ना माने! कही ये न सोचें कि “दो चार दिन के मेहमान हैं”, बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। मां-बाप तो मां-बाप हैं, तुम्हारी नजर में सदैव मालिक होना चाहिए। लेकिन मां बाप को चाहिए कि वे अपने आप को मालिक नहीं, मेहमान माने और अपना जो समय है, उस समय का अधिकतम सदुपयोग करें।

वे लोग बड़े भाग्यशाली है जिनकी संतान योग्य हैं और वृद्धावस्था में जिन्हें अपने जीवन के निर्वाह की कोई चिंता न करना पड़े। यह परम पुण्य है, इस परम पुण्य का सही क्षेत्र में नियोजन करो; पुण्य को भोगने की जगह पुण्य के फल को त्याग कर अपने जीवन के पथ को प्रशस्त करने का रास्ता अपनाओ। कोशिश करो और सोचो -“अब हमको क्या काम है?” बचपन ज्ञानार्जन के लिए, जवानी धनार्जन के लिए और बुढ़ापा पुण्यार्जन के लिए! बस यही एक रास्ता है और कोई रास्ता नहीं।

Share

Leave a Reply