मेरा मन पूजन और जप आदि में कुछ क्षणों के लिए अशुभ की ओर दौड़ता है, ऐसा किस कर्म के उदय से होता है? क्या करें जिससे मन शुभ में स्थिर रहे?
हम पूजा-पाठ धार्मिक क्रिया क्यों करते हैं? अपने मन को अशुभ विकल्पों से बचाने के लिए! अशुभ से हटकर शुभ में रमने के लिए पूजा-पाठ आदि का आलम्बन लिया जाता है। वह आलम्बन लेने के बाद मन शुभ में रमेगा, कब? जब आलम्बन को ठीक रीति से अंगीकार करोगे, तब!
एक बार एक युवक ने बोला, ‘महाराज जी, दिन भर तो मन हमारा जिस काम में लगाते लग जाता है। जब पूजा में बैठते हैं, खासकर जाप में बैठते हैं तो मन भागता है।’ मैंने कहा, ‘तुम दिन भर तो तुम अपने मन को कहीं न कहीं लगाए रहते हो। जब जाप पूजा में बैठते हो, तो मन को फ्री होने का मौका मिल जाता है, तो वह भागता है, उसी को तो पकड़ना है। तुम गोरखधंधे में मन को लगाते हो क्योंकि तुम्हारी रुचि उसके प्रति है और अपने आप मन लग जाता है। जिस दिन धर्म ध्यान में तुम्हारी रुचि बढ़ जाएगी तो धर्म ध्यान में भी जाप पूजा में भी तुम्हारा मन अपने आप रम जाएगा।
जाप-पूजा में मन लगे इसलिए दो कार्य करना चाहिए- अपनी रुचि को बढ़ाना चाहिए और दूसरा-सजगता बढ़नी चाहिए। मन भागे उसे लौटाओ। ‘तेरी बाद में सुनूँगा, दिन भर तो तेरी सुनता हूँ, अभी तुझे मेरी सुननी होगी। जाप कर, ज्यादा उपद्रव करेगा तो मैं अपनी जाप पाँच की जगह सात कर लूँगा।’- मन को दंडित करो, मन को सुझाव दो, मन को रोको। मन रुकेगा और तभी मन रमेगा।
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