विदेश यात्रा में खानपान का दोष न लगे, कैसे सुनिश्चित करें?
अभी तक जो दोष लग गए उसकी बात तो बाद में, आगे दोष न लगे इसको सुनश्चित करो। मेरे सम्पर्क में तुम्हारे जैसे अनेक युवक हैं जो देश – विदेश जाते हैं, लेकिन बाहर जाने के बाद फाइव स्टार होटलों में भी रहते हैं पर वहाँ का कुछ नहीं खाते।
कनौज के पंकज जी का बेटा पुलकित, आज एक युवा उद्यमी है। उसका रात्रि भोजन का भी त्याग है, कहता है ‘महाराज! मैं जब भी बाहर जाता हूँ, मैं किसी भी होटल में नहीं खाता, मिनरल वाटर को छोड़ कर के वहाँ का मैं कुछ नहीं लेता।’ मैंने पूछा- “क्या-क्या करते हो?” बोला-‘महाराज! हम अपने साथ उपमा और दलिया का पैकेट लेकर के जाते हैं। अपने हाथ से बनाते हैं और खा करके अपना पेट भर लेते हैं।’
अगर तुम चाहोगे तो हमारे धर्म के आराधन में देश-काल की सीमाएँ बाधक नहीं बनतीं! बाधक अगर बनती है, तो वो है हमारे मन की दुर्बलता! अगर तुम्हारी निष्ठा मजबूत हो तो तुम्हारी Priorities (प्राथमिकताएँ) बदल जाएँगी। ‘नहीं! मुझे ऐसा नहीं करना’ यदि ये ख्याल रहेगा तो तुम्हे सब रास्ते मिल जाएँगे और तुम्हारा धर्म भी पल जाएगा। इसलिए इस दृढ़ता के संदेश को लेकर के जाओ, खूब देश-विदेश जाओ, तरक्की करो! मेरा आशीर्वाद है!लेकिन अपने धर्म को कभी मत भूलना।
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