क्या किसी के दोषों को दबाना दोषों का पोषण नहीं है?
ये पोषण नहीं शोधन है। दोष का ढिंढोरा पीटने से किसी के दोषों का शोधन नहीं होगा। दोष को दबाकर उसे समझाने से उसका शोधन होगा। धर्मात्मा के दोषों को दबाने के पीछे दो उद्देश्य हैं – पहला उद्देश्य तो ये कि अन्य लोगों की धार्मिक आस्था न डगमगाए और दूसरा उद्देश्य – यदि हम उस धर्मात्मा का स्थितिकरण करना चाहते हैं, उसे सही रास्ते पर लाना चाहते हैं, उसे सुधारना चाहते हैं; तो ऐसा हम उसे एकांत में समझा कर के ही करते हैं। अगर घर परिवार में कोई बच्चा गलत कार्य कर देता है, तो क्या उसे पूरे गाँव को सुनाते हो? उसे वहीं के वहीं दबाकर के प्रेम से समझाते हो और जब तक बात दबी रहती है, उसके सुधरने की सम्भावना बनी रहती है और जिस दिन बाद सार्वजनिक हो जाती है, तो उसे सुधार पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए दोष के पोषण के लिए नहीं, दोषों के शोधन के लिए कार्य करना चाहिए।
Leave a Reply