शंका
न प्रशंसा से प्रफुल्लित हो, न निंदा से विचलित!
समाधान
यह स्वाभाविक है, प्रशंसा सुनने में गुदगुदी होती है और निंदा सुनने में खलबली। ये दोनों ही बहुत घातक है। इससे अपने आप को बचाने की भावना होनी चाहिए और वे ही बचा सकते हैं जो सदैव अपने आपको विनम्र बनाए रखते है और दूसरों की बातों से जो ज्यादा प्रभावित नहीं होते।
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