क्रोध को जीतने के उपाय
क्रोध जीतना है तो क्या करना होगा? बोध को जगा दो तो क्रोध जीत जाओगे। बहुत छोटी-सी व्याख्या मैंने की है, छोटा सा समाधान दिया है। बोध जगते ही क्रोध शांत हो जाता है।
आपने कभी महसूस किया हैं? जब क्रोध होता है या आप क्रोध में रहते हो, तो उस समय बोध रहता है क्या? – “महाराज बोध रहें तो क्रोध काहे से होगा?” है न? तो अपने विवेक को जागृत करें। क्रोध की शुरुआत अविवेक से होती है और अंत पश्चाताप से। प्रायः क्रोधी व्यक्ति को क्रोध कर चुकने के बाद दिमाग में आता है “अरे, बेकार क्रोध कर लिया।” उस समय दिमाग काम नहीं करता। कहते हैं “आपा खो बैठता है”। आपा खो बैठने का मतलब अपने विवेक को कुंठित कर देना, अपना होश खो देना, जागरूक रहें। क्रोध के संदर्भ में मैंने कई बार बोला है, फिर भी युवा ने प्रश्न किया है। यह ऐसी बीमारी है कि एक खुराक में ठीक होने वाली नहीं है। बीच-बीच में एक-आध dose मिलते रहना चाहिए।
क्रोध को जीतने के लिए जब आप होश में हो तब प्रयास करो। आज कल एक बहुत बड़ा विज्ञान विकसित हुआ है, Power of Subconscious Mind! कहते हैं कि उसमें आप अपने व्यक्तित्व को चाहे जैसा ढ़ाल सकते हो, चाहे जैसा बना सकते हो। जैन साधना में यह बात बहुत प्राचीन काल से कही जा रही है कि आप जो पाना चाहते हो उसकी भावना भाओ और जिस से बचना चाहते हो उससे बचने की भावना भाओ। हमारे यहाँ भावना को भव नाशनी बताया और जो Power of Subconscious Mind की व्याख्या करने वाले लोग हैं, चाहे सीक्रेट रूप में हो या अन्य रूप में, वह यही कहते हैं कि आप जो सोचते हैं उसकी Feeding आपके Subconscious Mind में आती है, और वह Subconscious Mind के संस्कार आपके जीवन में प्रकट होकर Conscious Mind को प्रभावित करते हैं और उससे आपका व्यक्तित्व बनता है। तो यही जैन सिद्धांत करता है, यही जैन साधना कहती है।
क्रोध पर नियंत्रण लेना है तो आप अपने मन में जब शांत रहो, तो हमेशा भावना भाओ –
अक्रोधोहम, मैं क्रोध रहित हूँ, मैं क्रोध रहित हूँ, मैं क्रोध रहित हूँ, क्रोध मेरा स्वभाव नहीं, क्रोध मेरा स्वभाव नहीं, क्रोध मेरा स्वभाव नहीं, मुझे क्रोध पर अंकुश रखना है, मुझे क्रोध पर अंकुश रखना है, मुझे क्रोध पर अंकुश रखना है, मुझे क्रोध को नियंत्रित करना है।
यह फीडिंग अपने माइंड में रखों। “महाराज इससे क्या होगा?” जब भी क्रोध आने को होगा ना, तब यह बात तुम्हारे मानस पटल पर उभरेगी, जागरूक करेगी कि नहीं मुझे क्रोध नहीं करना है। और यह बहुत प्रैक्टिकल उपाय है। मैंने एक दो लोगों पर इसका प्रयोग करवाया भी है। एक ऑटो सजेशन होता है, ऑटो सजेशन अपने स्वयं को स्वयं के द्वारा एडवाइज देना, समज गए?
तो आप शांत बैठ जाओ किसी स्थान पर, भावना भाओ, ऐसे वाक्यों को ५, १०, ५० बार दोहराओ, क्रोध मेरा शत्रु है, मुझे क्रोध को जीतना है, क्रोध मेरा स्वभाव नहीं। इस आशय के वाक्यों को ५०-५० बार दोहराओ। और एकदम दीर्घ और लयात्मक तरीके से। उससे आपके मानस में उसकी फिडिंग होगी। जहाँ आप उठते बैठते हो, जहाँ से बार बार आना जाना होता है, एक पर्ची पर स्लोगन की तरह उन वाक्यों को लिख लो जिस पर आपकी बार-बार दृष्टि पड़ें, बार-बार दृष्टि पड़े तो एकदम जागरूक हो जाओगे। क्योंकी जितने लोग क्रोध करते हैं न, जानबूझ कर क्रोध करने वाले कम लोग हैं, अनजाने में क्रोध करने वाले लोग ज्यादा हैं। दूसरे शब्दों में कहें कि बुद्धिपूर्वक क्रोध कम होता है, अबुद्धिपूर्वक क्रोध ज्यादा होता है क्योंकि तुम्हारे सबकॉन्शियस में क्रोध के संस्कार बहुत गहरे पड़े हुए हैं। तो जो संस्कार तुम्हारे क्रोध के गहरे पड़े हुए हैं उन संस्कारों को तुम नष्ट करना चाहते हो तो उसके विरुद्ध संस्कारों को अपने भीतर भरना पड़ेगा तो फरक पड़ेगा।
एक व्यक्ति मेरे संपर्क में रहे, वह क्रोध की प्रतिमूर्ति! माने यह स्थिति कि उनके घर में उनके क्रोध के कारण पूरी तबाही थी। पूरा इलाका उस व्यक्ति के व्यवहार से घबड़ाता था, काँपता था। पैसा था, बिजनेस अच्छा था लेकिन मिजाज एकदम गरम, बिलकुल जिसको अपन कहते हैं कि एकदम रंगबाज टाइप का व्यक्ति। सब लोग उससे थर्राये और पूरा घर हिले। संयोग ऐसा हुआ, कभी कभी एक छोटी सी घटना व्यक्ति के जीवन की टर्निंग पॉइंट बन जाती है। उसके घर में बहू आयी। शादी हुवी बेटे की, बहू आई। और अपने ससुर के इस क्रोध भरी स्थिति को देखकर वह बुरी तरह घबड़ाई और एक दिन अपने परिवार में फोन कर रही थी कि मैं कहाँ आ गई मुझे तो लगता है मैं नरक में आ गई। यह शब्द उस व्यक्ति ने सुन लिया। नॉर्मली जब ऐसे प्रतिकूल शब्द सुनने का जो आधी नहीं था वह कुछ भी कर सकता था, उसके अंदर आग लग सकती थी, लेकिन उसका कुछ पुण्योदय जगा। यह वाक्य उसके चिंतन को मोड़ दिया। उसने अपने अंदर झाँका कि धिक्कार है मुझे। जिस घर में आने वाली बहू घर की लक्ष्मी होती हैं, आज उसके अंदर से वेदना पूर्वक यह निकल रहा है कि मैं कैसे नरक में आ गई, कहाँ फँस गई। वह आदमी सीधे मेरे पास आ गया। वही मेरा चातुर्मास था बस मंदिर के बाजू में ही घर था। आँखों में आँसू, “महाराज मुझे मेरे क्रोध से मुक्ति दिलाओ, मुझे मेरे क्रोध से मुक्ति दिलाओ। मैंने देख लिया कि मेरे क्रोध के कारण मेरे घर में मेरे लिए जगह नहीं है।” फिर मैंने उस व्यक्ति को यह प्रयोग करने के लिए बोला और उसी दौरान मैंने किसी लेख में पढ़ा था कि बागवानी करने से भी क्रोध शांत होता है। मैंने उसको वह लेख पढ़ने को दिया। उसके घर के पिछवाड़े में थोड़ी सी जगह थी। उसने वहाँ गार्डन लगाया, बागवानी में लग गया। और अपने क्रोध पर इस अभ्यास से, आप सुनकर आश्चर्य करेंगे, तीन चार महीने में ही एकदम जो व्यक्ति अंगार था वह शांति मूर्ति हो गया। आज उसके स्वभाव में बहुत बड़ा बदलाव आ गया।
तो ध्यान रखें क्रोध के बारे में सवाल पूछने से और समाधान सुनने से क्रोध से मुक्ति नहीं मिलेगी। क्रोध के प्रति जागरूक होने से ही क्रोध से मुक्ति मिलेगी। यह ऐसी बीमारी है जिससे हर व्यक्ति ग्रसित है। ऐसा एक व्यक्ति इस सभा में और जीतने लोग सुन रहे हैं, एक भी व्यक्ति दुनिया में ऐसा नहीं मिलेगा जिसने जिंदगी में क्रोध ना किया हो अथवा किसी के क्रोध का शिकार ना बना हो। अपवादिक रूप में ऐसा हो सकता है कि किसी ने क्रोध ना किया हो लेकिन ऐसा एक भी आदमी नहीं मिलेगा जो किसी के क्रोध का शिकार ना हुआ हों। कहीं ना कहीं तो फंसे हैं।
तो अपने आप को जगाईये, स्वयं के प्रति जागरूक होईये, सोच को पॉजिटिव बनाइए, समग्रता से चिंतन कीजिए। मैंने इस सन्दर्भ में कई बार कई तरीके से चर्चा की है, आप कोई भी उपाय को आजमाइए और अपने आप को इस बीमारी से मुक्ति दिलाइये।
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