पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण-भारतीय संस्कृति का ह्रास
यह सब भारतीय संस्कृति के विरुद्ध हैं और यह सब पश्चिमी जो सभ्यता है उसकी विकृतियाँ हैं। भारत में सारा जीवन प्रेम में जीने की प्रेरणा दी जाती है और पश्चिम के लिए लोग हर कार्य के लिए केवल एक एक दिन सुनिश्चित करते हैं। यह सब चीजें ठीक नहीं है। और इस तरह की प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। मीडिया की कुछ इस तरह की देन हो गई है कि लोग आजकल इस तरह के कार्यक्रमों के प्रति ज्यादा झुकाव रखने लगे हैं। अपने को देखो, अपनी मूल संस्कृति को देखो जिसने वसुधैव कुटुंबकम का संदेश दिया, सत्वेषु मैत्री का संदेश जहाँ से गूँजा, हमे उसे अपना करके चलना चाहिए। यह प्रवृत्तियाँ कतई अनुकरणीय नहीं है।
अभी तीन दिन चार दिन पहले मुझसे कहा, उसका एक छोटा सा बच्चा था तीन चार साल का, वो आया और बस, छोटेसे आता है तो मेरे चरणोंमें एकदम लिपटसा गया। उसने फोटो खींच लिया। फोटो खिंचा और बोला ‘महाराज, आज फोटो खिंच लिया, आज हग डे है।’ बोले हग डे क्या होता है? यह क्या है पागलपन? यह सब भोगवादी संस्कृति की परणितियाँ हैं। ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। इससे बचना चाहिए, बचाना चाहिए।
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