हमारी भावनाओं का प्रकृति पर असर
भावनाओं का प्रकृति पर बहुत ज़बरदस्त असर पड़ता है। आज से 50 वर्ष पहले अगर पूछा जाता तो शायद इसका उत्तर नहीं होता लेकिन इन दिनों जो वैज्ञानिक नई-नई निष्पत्तियाँ आती हैं उससे बात बहुत अच्छे से स्पष्ट होती है कि प्रकृति पर भावनाओं का असर पड़ता है। मुझे आचार्य गुरुदेव जी के मुख से सुनी एक कथा याद आ रही है। एक राजा वन में भटक गया।वह घोड़े पर सवार था, भटकते-भटकते उसे एक कुटिया मिली; उस कुटिया में एक वृद्धा थी। उसने देखा कि राजा है, उसने राजा का आत्मीय सत्कार किया; आग्रह पूर्वक राजा को अपनी कुटिया में बिठाया। उसे लगा कि राजा बहुत थका हुआ, भूखा प्रतीत हो रहा, प्रचण्ड गर्मी है। बुढ़िया अपने बगीचे में गई और थोड़ी देर बाद, कुछ ही मिनटों में एक लोटा अनार का रस उसने राजा को दिया। राजा ने उस अनार के रस को पिया, तो उसे अपूर्व तृप्ति की अनुभूति हुई। वह बहुत आनन्दित हुआ, पूछा- ‘क्या पिलाया?’ अनार का रस। फिर पूछा- ‘कहाँ से लाये?’ वह बोली, मेरे बगीचे में बहुत सारे अनार लगे हुए हैं। राजा ने कहा- ‘इतने उत्तम फल तुम्हारे यहाँ होते हैं, राजा को कोई कर जाता है क्या?’ उसने कहा नहीं; वह राजा से परिचित नहीं थी। वहाँ से आने के बाद राजा ने उस फल पर कर लगा दिया।
कुछ दिन बाद राजा को फिर उधर से गुजरने का योग बना। कुटिया में गया तो फिर बुढ़िया ने जूस पीने का निवेदन किया। वह अनार का रस निकालने के लिए गई; अबकी बार उसे आधा घण्टा लग गया और लौट कर आई तो पिछली बार तो पूरा लोटा भरा हुआ था, इस बार आधा ग्लास लेकर आई। राजा ने पिया, तो उसे मजा नहीं आया। राजा ने पूछा क्या बात है पिछली बार तुम कुछ ही मिनटों में आईं थीं और पूरा लोटा भर के लाईं थीं। बहुत रस आया था, आनंद आया था, उसमें स्वाद भी भरपूर था और इस बार तुम इतनी देर से आई और रस भी बहुत थोड़ा सा, कुछ भी स्वाद नहीं। क्या कारण है, तुम्हारे पेड़ ने फल देने बन्द कर दिये क्या? आखिर बात क्या है? कोई प्रकृति में परिवर्तन का कारण है? उसने कहा- “क्या बताऊँ भैया! सब कुछ ठीक है, लेकिन हमारे यहाँ के राजा की नियत में खोट आ गया, सो प्रकृति ने रस देना बन्द कर दिया। राजा ने जबसे इस पर टैक्स लगाया है, पेड़ों ने रस देना बन्द कर दिया है।”
यह तो कहानी है, वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि हम जैसी भावनाएँ रखते हैं, उसका वैसा परिणाम होता है। वैज्ञानिकों ने पौधों पर एक प्रयोग किया। फूल के बगीचे में माली गया, तो फूल हँस पड़े। उसी फूल के बगीचे में जब वैज्ञानिक का मन उस फूल को तोड़ने का हुआ तो उसने पॉलीग्राफ नाम के यन्त्र में देखा कि उसमें नेगेटिव हलचल हुई। ये है पेड़ों पर हमारी भावनाओं का असर।
अभी पानी पर एक प्रयोग हुआ; एक इमोटो नाम के वैज्ञानिक ने इस पर रिसर्च किया। मैंने एक लेख पढ़ा था जिसमें लिखा था कि जल सुनता है, सोचता है, अनुभव करता है। भारतीय ज्ञानपीठ की एक पत्रिका निकलती है ज्ञानोदय, उसका एक अंक था 2004 का। उसमें इमोटो नाम के एक वैज्ञानिक एक रिसर्च किया कि पानी पर हमारी भावनाओं का क्या असर पड़ता है। पानी को काफी निम्न ताप में जमा कर, -20 डिग्री सेल्सियस में जमा कर, उसका रविकरण किया जाता है। पानी की बोतल रखी जाती है और उस बोतल के ऊपर एक स्टीकर लगा दिया जाता है और उस पर लिखा जाता है कि तुम एक यमदूत हो, मैं तुम्हें मार डालूँगा। दूसरी बोतल पर, तुम बहुत अच्छे हो, तुम्हें धन्यवाद! इस तरह के आशय की पर्चियाँ लगाई गई। उन बोतलों को माइनस 20 डिग्री के टेंपरेचर में जमा कर उसका रविकरण किया गया। जब उसका रविकरण किया गया, तो उसके बाद उसके फोटो लिए गये, मेरे पास फोटो हैं, जिसमें कहा गया कि तुम बहुत अच्छे हो, तुम्हें धन्यवाद, उसकी जो तस्वीर आई, ऐसा लगा जैसे कोई खिला हुआ फूल है और जिसमें लिखा था कि तुम यमदूत हो, मैं तुम्हें मार डालूँगा, उसकी जो तस्वीर उभरी, वह तस्वीर ऐसी है जैसे कंकाल का ढेर लगा हुआ है। यह है भावनाओं का असर। तो भावनाओं का प्रकृति पर बहुत असर पड़ता है और प्रकृति का हमारी भावनाओं पर भी असर पड़ता है। हम जहाँ अच्छी जगह रहते हैं, वहाँ हमारी भावनाएँ अच्छी होती हैं और जब बुरी जगह रहते हैं, हमारी भावनाएँ बुरी हो जाती हैं। इसलिए अपनी भावनाओं को हमेशा सँभाल कर रखना चाहिए।
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