गुणस्थान क्या हैं और कितने हैं?
हमारे अन्दर के भाव २४ घंटे एक से नहीं रहते; कभी अच्छे होते हैं, कभी खराब होते हैं, उनमें उतार-चढ़ाव होता है। तो हम लोगों के इमोशंस (भावनाओं) के कारण, हमारे भावों में उतार-चढ़ाव आता है। आगम की भाषा में मोह और मन-वचन-काया की प्रवृत्ति से इसमें उतार-चढ़ाव होता है। हमारे अन्दर भावनाएँ बहुत हलचल मचाती हैं, जिसके कारण कभी हम बहुत अच्छी स्थिति में होते हैं, कभी खराब स्थिति में। आत्मा में होने वाले इस उतार-चढ़ाव को बताने के लिए जैन धर्म में एक शब्द है- गुणस्थान। गुणस्थान का मतलब है, भावों को नापने का पैमाना। जिससे सब जीवों के भावों को नापा जाए। गुणस्थान १४ होते हैं, वर्तमान में १ से ७ गुणस्थान वाले जीव पाए जाते हैं। गृहस्थजन एक से पाँच गुणस्थान में होते हैं, छठे और सातवें गुणस्थान में मुनि ही जा सकते हैं। माताजी, क्षुल्लक, क्षुल्लिका, ब्रह्मचारी, त्यागी व्रती पाँचवें गुणस्थान में और जो अव्रती सम्यक् दृष्टि होते हैं चौथे में और शेष उससे नीचे गुणस्थान में होते हैं।
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