बच्चों को गुल्लक की जमाराशि कहां दान देना चाहिए?
देखो, बच्चों के मन में दान का भाव आना, मैं कहता हूँ, उनके सौभाग्य के उदय का प्रतीक है। बच्चे पैसा के संग्रह में तो जन्म-जात प्रवृत्ति रखते हैं। एक छोटे बच्चे को भी देखो, कागज फाड़ देगा नोट नहीं फाड़ेगा, बनिया का बेटा है।
एक बीच में बात बता दूँ, बनिया कैसा होता है? बच्चों को अच्छा लगेगा, आप लोगों को भी अच्छा लगेगा। एक जौहरी का बेटा था। २५ साल का बेटा, और कूड़े के ढेर पर लोट रहा था। लोगों ने उसके पिता से शिकायत की कि “तुम्हारा बेटा क्या पागल हो गया या उसने शराब पी ली है? क्या कर रहा है? वह कचरे के ढेर पर लोट रहा है।” पिता को बहुत बुरा लगा। वो दरवाजे पर आकर खड़ा हुआ, देखा तो पूरे कपड़े गंदगी से एकदम लथपथ! पिता ने गुस्से में पूछा “यह क्या शक्ल बना रखी है तूने? यह क्या कर रहे हो?” उसने कुछ नहीं कहा। उसने कहा “पिताजी, हाथ तो आगे बढ़ाइयें”। पिता ने हाथ बढ़ाया। उसने अपने जेब में हाथ डाला और अपने हाथ की मुट्ठी को, पिता की हथेली में खोला। देखा, उसमें एक बेशकीमती हीरे का बड़ा नग था। हीरे का बड़ा सा नग। पिता ने पूछा “यह नग कहाँ से लाये?” बोला “उसी कचरे के ढेर से”। तो बोले “पर लोटा क्यों?”। बोला “सीधे सीधे उठाता तो लोगों को पता लग जाता। तो मैंने लोटने का नाटक किया और हीरा उठा लाया।” समझ गये? तो जौहरी का बेटा कचरे में भी लोटता है तो हीरा खोजता है। ऐसे ही बनिया का बेटा, कहीं भी होता है तो जन्मजात पैसा पकड़ता है, समझ गये?
पैसा पकड़ने का आश्चर्य नहीं लेकिन किसी बच्चे के मन में अभी बचपन में अपने पॉकेट मनी को जो दान करने का भाव है, बहुत मांगलिक भाव है। और मैं इसे एक बहुत बड़े बदलाव का संकेत मानता हूँ। इस गुणायतन में पिछले ६ महीने से, अभी और इसके पहले भी हमारे विभिन्न चातुर्मासों में, मैंने लोगों की भावनाएं देखी। छोटे छोटे बच्चों ने अपनी जो जमापूंजी थी वह समर्पित कर दी। मैं समझता हूँ यह हमारे समाज के भावी भामाशाह बनेंगे। ऐसा पुण्य संचय करेंगे कि आगे चलकर के पूरी समाज का उद्धार करने वाले होंगे। इसलिए बच्चों के मन में दान का भाव होना चाहिए।
जो तुम्हारे मम्मी-पापा तुम्हें देते हैं उस पैसे का कुछ हिस्सा खर्च करो और कुछ हिस्सा बचाओ। मैं यह नहीं कहता कि सब दान दे दो, पर सब खाना भी ठीक बात नहीं है। कुछ बचाना चाहिए, फ़ालतू में पैसा नहीं खर्च नहीं करना चाहिए और अच्छे कार्य के लिए पैसे को बचाकर रखना चाहिए।
अब कहाँ दे दूँ? तो मैं बच्ची से यही कहता हूँ, तुम चैनल पर रोज देखती होगी। प्रायः कोई बच्चा अपने गुल्लक लाकर समर्पित करता है। तुम भी अपने पापा से कहना कि “यह गुल्लक हमको गुणायतन में जाकर देना है।” तुम्हारा यह गुल्लक शाश्वत हो जाएगा। और जब तुम पढ़ लिख कर के बड़े होओगे और इस मंदिर के दर्शन करोगे, तो तुम्हारा मन गदगद हो जाएगा कि “यह वह मंदिर है जिसमें, मैं जब चार साल का था या चार साल की थी, पाँच साल की थी, मैंने अपना पैसा दिया था, यह मेरे पैसे से मंदिर बना है!” तो तुम्हें कितना आनंद आएगा। बहुत अच्छा लगेगा ऐसे कार्य में बच्चों को आगे बढ़ाना चाहिए।
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