क्या प्रार्थना-जाप से किसी की जिंदगी बचा सकते हैं?

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शंका

क्या प्रार्थना-जाप से किसी की जिंदगी बचा सकते हैं?

समाधान

ये सवाल बड़ा महत्वपूर्ण हो गया है। प्राय: जब कभी जीवन में विपत्ति आती है धार्मिक लोग धर्म ध्यान के अनेक उपाय करते हैं, जाप करते हैं, पाठ करते हैं, शांति धाराएँ करते-कराते हैं और उसके बाद भी जब इस तरह की दुर्घटनाएँ घट जाती है, तो लोगों की आस्था डगमगाने लगती हैं। जैसा आपने अपने प्रश्न में प्रकट भी किया है कि ‘फिर मेरे जाप का काम क्या?’ सबसे पहली बात तो हमें अपने दिल-दिमाग में अच्छी तरह से बिठा लेना चाहिए “जीवन-मरण, संयोग-वियोग हमारे हाथ में नहीं है” हमारे यहाँ यह कहा जाता है 

“मणि-मंत्र-तंत्र बहु होई, मरते न बचावे कोई” 

अगर इसी तरह मन्त्र-तन्त्र अनुष्ठानों से किसी के मरण को बचाया जा सकता, तो फिर तो हर कोई अमर हो जाता। मृत्यु से किसी को नहीं बचाया जा सकता, अगर किसी का ऐसा ही योग होगा उसे, हम-आप छोड़ो, भगवान भी नहीं बचा सकते। यह संयोग है, उसे स्वीकार करना होगा। ‘फिर ये जाप अनुष्ठान आदि क्यों करें?’ मैं आपसे सवाल करता हूँ- किसी के बीमार पड़ने पर आप चिकित्सा क्यों कराते हैं, इलाज क्यों कराते हो? इसलिए कि इस इलाज से व्यक्ति ठीक हो सकता है, होता है। पर जो-जो इलाज कराते हैं, क्या सब ठीक हो ही जाते हैं? नहीं! आखिर में डॉक्टर भी कहता है ‘भैया! अब तो दुआ करो, भगवान को याद करो, भगवान का नाम लो, भगवान ही कुछ कर सकते हैं।’

अनेक लोग चिकित्सा लेने के बाद, उच्चतम चिकित्सा कराने के उपरान्त भी प्राणों को बचाने में असमर्थ रहते हैं, तो उन्हें देख कर क्या आप अपना इलाज कराना बंद कर देते हो? क्या करते हो? सोचते हो ‘ भैया! ठीक है, हमारा भाग्य ही ऐसा था।’ तो जैसे यह चिकित्सा है, ऐड (सहायता) है, ऐसे ही यह मन्त्र, प्रार्थना, पूजा-पाठ, जाप भी एक प्रकार की चिकित्सा है। जाप आदि के अनुष्ठानों से पुण्य की वृद्धि होने से कदाचित व्यक्ति की असामयिक मृत्यु टल सकती है, पर यदि किसी का मरण काल नियत हो गया, तो जैसा मैंने आपसे कहा “भगवान भी नहीं टाल सकते।” डॉक्टर के हाथ में चिकित्सा है आयु नहीं, मन्त्र-तंत्र आदि के हाथ में भी केवल भावना है आयु नहीं। आयु पर किसी का जोर नहीं चल सकता। यदि कोई ऐसा दम भरते हैं कि इस तरह की क्रिया से व्यक्ति ठीक हो जाएगा, हो ही जाएगा तो यह मिथ्या भ्रम है। 

ठीक हो सकता है; यह सम्भावना है, ठीक वैसे ही, जैसे किसी की चिकित्सा कराते समय हम करते हैं। इसलिए जब कभी भी कोई दु:ख-संकट आए, कोई बीमार पड़े, जहाँ पाठ-प्रार्थना-पूजा-वंदना कर सकते हैं, वह करें। इससे पॉजिटिव वेव्स (सकारात्मक किरणें) उसके अनुकूल होती हैं। ये एक प्रकार की चिकित्सा ही है, alternate medicine (वैकल्पिक चिकित्सा) के रूप में इस को जोड़ा जाता है। ये वैकल्पिक चिकित्सा है, कीजिये, लेकिन ऐसी भ्रान्त धारणा न रखिए कि ऐसा करने से ऐसा हो ही जाएगा, श्रद्धा रखिये। चिकित्सा तो इसी भाव से कराई जाती है कि सामने वाला ठीक हो जाएगा। अस्पताल में आप इसलिए दाखिल थोड़े ही होते हैं कि जब ठीक होना होगा तो हो जाएँगे। ‘जब तक सांस तब तक आस’, इसी तरह ‘जब तक सामर्थ्य तब तक प्रयास’। प्रयास रखिए, हो सकता है आपके प्रयासों के बाद भी आपको वांछित परिणाम न मिले, हताश न हों, हमारे भाग्य में यही था। आपकी माताजी नहीं रहीं, सोच लो उनकी इतनी ही आयु थी। उनको इसी विधि से जाना था। अब रहा सवाल आपका-‘हमारे जाप का क्या फल हुआ?’ तो जितनी देर आपने जाप की, उतनी देर आकुलता से बचे, उतनी देर पाप से बचे, कुछ पुण्य संचय किया, वह तुम्हारे काम में आया है। और हो सकता है ऐसा भी हुआ हो कि तुम्हारी जाप से उनकी मृत्यु तो नहीं टल पाई पर वेदना कम हो गई हो।

इसी कटनी में हमारे संघ के मुनिराज थे, प्रवचनसागर जी महाराज, सन २००३ की बात है। अमरकंटक से विहार करके आ रहे थे, यहाँ आते समय रास्ते में कुत्ता काट लेने से उन्हें हाइड्रोफोबिया हो गया था। रास्ते में ही उनको यह लक्षण प्रकट हो गए। डॉक्टरों ने बोला हाइड्रोफोबिया के symptoms produce (लक्षण प्रत्यक्ष) हो जाने के बाद आज तक दुनिया में कोई इलाज नहीं है। होने के पहले तक तो इलाज है लेकिन एक बार symptoms produce हो जाए तो कोई उसे बचा नहीं सकता। यौवन अवस्था थी, अच्छे साधक थे। सारे त्यागी- व्रतियों ने खूब जाप किया, शतादिक त्यागीव्रती थे यहाँ उस समय। पूरी समाज जप रही थी। हम भी एक दिन में बहोरीबंद से ५० किलोमीटर चलकर कटनी आए थे। जाप किया, बच नहीं पाए, डॉक्टरों ने पहले ही बोल दिया था, फिर जाप क्यों? जाप का ये फायदा हुआ कि हाइड्रोफोबिया के शिकार व्यक्ति में जो लक्षण दिखते हैं वह कुछ नहीं दिखे। ‘काटने के लिए दौड़ना, पानी की तरफ लपकना’ ऐसा कुछ नहीं दिखा और मेरे आँखों के सामने उनकी उत्तम समाधि हुई। परम समता के साथ उन्होंने समाधि धारण किया। ये जाप का एक लाभ है, हमने तो इसी रूप में देखा। 

तो यदि कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से किसी बीमारी से ग्रसित हो, मरणासन्न अवस्था में हो तो भी आप अपने जो धार्मिक अनुष्ठान हैं, उन्हें मत भूलो। वो निरर्थक नहीं हैं, हाँ! अगर कोई इस बात की गारंटी लेता है कि ‘ऐसा है, तो ऐसा हो ही जाएगा’, समझ लेना तुम्हें ठग रहा है। ऐसे लोगों के भरोसे में मत आना। ये एक माध्यम है, हो सकता है इसके निमित्त से अनहोनी टल जाए पर टलने की गारंटी नहीं है और अनहोनी टले या न टले कम से कम तुम्हारे मन का भय, तुम्हारे मन की चिन्ता तो दूर होगी। 

बहुतों को इस कोविड ने लीला हैं, कितने-कितने लोग असमय में गए हैं। मेरे सम्पर्क के भी अनेक लोग, जिनके लिए नियमित पाठ, जाप, शांति धाराएँ की गई, कराई गई, नहीं रह पाए। ऐसा तो होता है, मणि-मन्त्र-तन्त्र न होई मरते न बचावे कोई, इस उक्ति को कभी मत भूलना, मेरा आपके साथ पूर्ण आशीर्वाद है, सद्भावना है। निश्चित ही अपने किसी प्रिय को खोने का दु:ख होता है, अब लौट के नहीं आने वाले। आप के माध्यम से मैं उन तमाम लोगों तक अपना संदेश पहुँचाना चाहता हूँ जिनके जीवन में ऐसा कोई अघट घटा है, जाने वाला चला गया है, अब लौट कर के आने वाला नहीं है, लेकिन इन सब बातों से अपनी श्रद्धा को मत डगमगाने दीजिये; बल्कि ऐसी घटनाओं से सीख लेकर अपनी श्रद्धा को और प्रगाढ़ बनाइए। अपना श्रद्धान ऐसा बनाइए कि हर जीव का जीवन-मरण, संयोग-वियोग अपने-अपने संयोगों के अनुरूप होता है। हर जीव की अपनी स्वतंत्र सत्ता है, एक दिन सबको जाना है। हमें इन सब में अपने आप को स्थिर रखने का प्रयत्न करना है, यह प्रयास होना चाहिए।

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