शंका
भगवान के समक्ष सभी क्रियाएं निरपेक्ष भाव से करें!
समाधान
उत्तम तो यही है कि हम भगवान के सामने कोई भी क्रिया या धार्मिक क्रिया करें, निरपेक्ष भाव से करें। पर यद-किंचित आकांक्षा आती है, तो ये दुर्बलता है। सराग भूमिका में कदाचित होती है पर इसे प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए, यथासम्भव नियंत्रित करना चाहिये।
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