णमोकार मंत्र की प्राकृत भाषा जन भाषा में कैसे प्रचारित हो?
णमोकार मंत्र हमारी प्राकृत भाषा का मूल मंत्र है। प्राकृत भाषा हमारी संस्कृति की मूल है। जब तक हम भाषा को नहीं जानेंगे तब तक संस्कृति को नहीं बचा सकेंगे। हमारी अपेक्षा है कि लोगों का प्राकृत भाषा और संस्कृत के प्रति रुझान बढ़े।
आजकल लोगों का संस्कृत, प्राकृत के प्रति रुझान कम होता जा रहा है, इससे भविष्य में हमारे प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन-अध्यापन में बहुत कठिनाई होगी। मैं चाहता हूँ कि समाज के लोग इस पर आगे बढ़ें अपभ्रंश, प्राकृत और संस्कृत के अध्ययन में रुचि रखें। यह बहुत कठिन नहीं है, थोड़े से प्रयास के साथ इसे सीखा जा सकता है। प्राकृत बहुत अच्छी भाषा है, यह ज्ञेय भाषा है और इसके माध्यम से अर्थ को सहज रूप से जाना जा सकता है। तो जिस भाषा में हमारा महामंत्र है उस भाषा को हम न जाने यह हमारे लिए बहुत बड़ी विडंबना है। समाज के सभी लोगों से मैं कहना चाहूँगा कि इसके लिए प्रयास होना चाहिए और प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत भाषा के प्रति समाज में जागरूकता के लिए कुछ ठोस कार्यक्रम भी बनाना चाहिए।
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