टीवी देखते समय मन नहीं भटकता, किंतु पूजा-माला-ध्यान के समय मन क्यों भटकता है?
यहाँ पाप और पुण्य की बात नहीं है, यहाँ रुचि और अभिरुचि की बात है। जिस कार्य में मनुष्य की रुचि होती है उसमें वह स्वभावगत एकाग्र हो जाता है, जहाँ मनुष्य की रुचि नहीं होती वहाँ उसका मन नहीं लगता।
टीवी में आपकी रुचि है, टीवी के प्रोग्राम में आपकी रुचि है, तो आप एकाग्र हो जाते हैं। माला, पूजा-पाठ में उस प्रकार की रुचि ना होने के कारण आपका मन नहीं लगता। आप उसे एक Routine (दैनिक कार्य) की तरह करते हैं। श्रद्धा से करें, अपनी रुचि को प्रगाढ़ करें!
बहुत से लोगों के तो ऐसे भी प्रश्न आते हैं कि बोरिंग पिक्चर हो तो उसमें नींद आ जाती है, मन नहीं लगता। अपनी रुचि बनाइये, मन लगेगा यह सोचें कि यह मेरे कल्याण की श्रेष्ठतम क्रिया है, यह माला और जाप मात्र नहीं, यह एक कल्याणकारी क्रिया है, मेरे जीवन का उद्धार इसी के बल पर होगा। अगर अंदर से ऐसी रुचि और श्रद्धा बन जाये तो आपके अंदर स्वाभाविक उत्साह जागेगा और एकाग्रता भी आ जायेगी।
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