जैन परिवारों में विवाहित विजातीय कन्याएं आहार क्यों नहीं दे सकतीं?
आहार की अपनी संहिता है। विवाह संबंध के विषय में मैंने कई बार कहा कि विधर्म विवाह अनुकरणीय नहीं। इसके परिणाम ठीक नहीं आते। इसलिए ऐसे विवाह को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। मेरे संपर्क में ऐसे अनेक युवक और युवती आये, जिन्होंने भावुकता में आकर विधर्म विवाह किया, माँ-बाप की उपेक्षा करके, गुरुओं के निर्देशों की उपेक्षा करके, लेकिन उनके जीवन में सफलता नहीं है। पहली बात तो यह है कि जो हमारी भारतीय समाज की व्यवस्था है और जो हमारी रीतियाँ हैं उनकी दृष्टि से विधर्म विवाह को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। इस पर रोक लगाना चाहिए क्योंकि इसके परिणाम घातक हो रहे हैं। कई चीजें ऐसी हैं जो व्यवहारिक जीवन में लागू नहीं हो पाती और उसका परिणाम मनुष्य को सारे जीवन भोगना पड़ता है।
यदि किसी व्यक्ति ने ऐसा विवाह सम्बन्ध कर लिया है, तो उनके साथ क्या करें? मैं बहिष्कार को कतई अच्छा नहीं मानता। मैं सदैव संस्कार की बात करता हूँ। अच्छी बात है, कोई अजैन लड़की यदि कहीं से जैन में आ गई और जैन धर्म सीखना चाहती है, तो उसे सिखाना चाहिए, उसे ठुकराना नहीं चाहिए, उसका मान रखना चाहिए। लेकिन किसी को पाँवों तले कुचलो मत, पर इसका मतलब यह नहीं कि सबको सिर पर बैठा लो। उसे देखो, उसे सीखने दो, उसे समझने दो ताकी हमारी संहिता भी बनी रहे, दूसरे उसे प्रोत्साहित भी ना हों और मार्ग भी खुले। उससे बोलो कि तुम अभी यह गलत कार्य किए हो जो हमारे नियम के विरुद्ध है, धर्म के विरुद्ध है, तुम्हारा विवाह यह गन्धर्व विवाह है जो माँ, बाप और परिवार की सहमति के बिना किया गया विवाह है, इसलिए अभी तुम दोषी हो। पहले अपने आप को शुद्ध करो और जब तक शुद्धी नहीं होती, ऐसी क्रियाओं की जी भर के अनुमोदना करो और मन में प्रार्थना करो, ‘हे भगवान, मेरा ऐसा पुण्य मिले कि आने वाले समय में मैं ऐसे कुल में जन्म लूँ जहाँ देव, शास्त्र, गुरु का साक्षात समागम मिलता रहे और अपना उत्कर्ष करूँ।’
उनकी उपेक्षा भी ठीक नहीं है, पर उनको सब काम में रास्ता खोल देना भी ठीक नहीं है। उनके लिए बीच का रास्ता यही है कि खूब अच्छे तरीके से धर्म सीखें, आचार और विचार से जैन बने और तब तक अनुमोदना करें फिर आगे गुरुओं का मार्गदर्शन लेकर आगे बढ़े।
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