सच क्या है, क्या झूठ भी सच है
आपने पूछा है सच क्या है, क्या झूठ भी सच हो सकता है, देखो सच को हम कई संदर्भ में देखते हैं, सच को यदि केवल बोलने के विषय में हम सीमित रखते हैं तो यह सच का बहुत उछला रूप है और बोलने वाले सच के लिए जब बात कहा गया तो सच बोलना सच नहीं है, सच के साथ हितकर बोलना सच है| सच बोलो पर केवल सच मत बोलो, सच के साथ हितकारी भी बोलो| सच बोलने पर यदि किसी का अहित होता है तो वह सच झूठ है और तुम्हारे झूठ बोलने से किसी का हित हो जाए तो वह झूठ भी सच है| तो यह वाणी के सच की बात है और जब हम सच को गहराई में लेकर जाते हैं तो वह सच जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जाता, वह सच हमारे हृदय में है|
“सच्यम् खूब हेवम्”, सत्य ही भगवान है|
हमारे भीतर का परमात्मा ही भगवान है जिसके बारे में कहा नहीं जाता केवल अनुभव किया जा सकता है| वह सच परम सच है, परम सत्य है जिसे पाया जा सकता है| जिसे हम सच बोलते हैं वह सच नहीं सत्याचरण है, सत्य के आचरण से ही सत्य को पाया जा सकता है और वह सत्याचरण है क्या ? सत्याचरण है मन, वाणी और व्यवहार में सत्य को प्रतिस्ठापित कर पवित्रता का जीवन जीना, यही सच है|
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