मंदिरजी बनाने का क्या महत्त्व है?
अगल-बगल में छोटे बड़े मंदिर बना देते हैं। देखो मंदिर बनाना महान पुण्य का कार्य है मंदिर बनना चाहिए।
शास्त्रों में लिखा है जिस ने मंदिर बनाया, जो जिन प्रतिमा स्थापित करता है, जो मंदिर में उपकरण देता है उनके लिए महान पुण्य के लाभ का वर्णन कियाऔर यह तक लिख दिया कि उस व्यक्ति के द्वारा प्रतिमा जी या मंदिर आदि के निर्माण करने के बाद उसमें जितने लोग पूजा अर्चा करेंगे सबका पुण्य उसको मिलेगा। यह बड़ा पुण्य का काम है। इसलिए मंदिर आदि की कभी आलोचना करना नहीं। लेकिन हाँ, हम अगर जगह-जगह मंदिर बना देते हैं तो मंदिर के प्रति जो लोगों का लगाव है जुड़ाव हैं वह कम होता है। उत्साह भी लोगों का कम हो जाता है। व्यवस्थाएं भी बिगड़ जाती है।
तो अच्छे मंदिर बनाओ। भव्य मंदिर बनाओ। इसको देखकर के भाव विशुद्धि बढ़े और वहाँ बैठ करके तुम्हारा मन लगे, देखने वालों के मन में भी आकर्षण उत्पन्न हो। जहाँ आवश्यक हो वहाँ मंदिर बनाना चाहिए। लेकिन जगह-जगह ज्यादा मंदिर बनाने से ठीक काम नही।
अब आप यह भी पूछ सकते हैं, मुझसे एक बार पूछा भी गया था शायद किसीने शिखरजी में इतने मंदिर क्यों बनाये? भाई यह कॉलोनियों का गाँव थोड़ी है? यहाँ कॉलोनी थोड़ी बनेगी? यहाँ भगवान का गाँव, यहाँ तो मंदिर ही बनेंगे। और क्या बनेंगे? यहाँ करना क्या है? इतने मंदिर के दर्शन के अलावा फुरसत ही नहीं मिले शॉपिंग करने की। समज गए? तुम लोग इधर उधर घूमते हो, भगवान का जी भरके दर्शन करो। इसमें कोई बुराई नहीं है।
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